अकेली औरतें चाहे कितनी ही बोल्ड, शिक्षित व समर्थ हों, जब यौन हिंसा की बात हो तो वे किस आसानी से शिकार हो सकती हैं यह उस अमेरिकी युवती के मामले से साफ है जिस का 5 माह पहले 5 लोगों ने, जिन में से एक उन का गाइड भी था, उसी के पांच सितारे होटल के कमरे में बलात्कार किया और इस बुरी तरह डराया कि वह अगले ही दिन अमेरिका चली गई और अब जा कर उस में शिकायत करने की हिम्मत आई और उस ने ईमेल से शिकायत भेजी.

अकेली युवतियों को यात्रा के दौरान बहुतों को अपना साथी बनाना पड़ता है पर वे साथी कब धोखा दे दें, बलात्कार कर लें, लूट लें, इमोशनल व एकतरफा प्यार में बांध लें या केवल यूज ऐंड थ्रो कर डालें पता नहीं चलता. पुरुष चाहे कितना सभ्य, सुसंस्कृत दिखे, कब धोखा दे दे और औरत के अकेलेपन का लाभ उठा ले, यह कहा नहीं जा सकता.

इस तरह का मामला केवल भारत में होता हो, ऐसा नहीं, बलात्कार दुनिया भर में होते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप ने तो एक वीडियो क्लिप में उन के जननांग को अकारण पकड़ लेने तक की हिम्मत का रौब मार डाला था और फिर भी वह जीत गए. अमेरिकी समाज ने ऐसे व्यक्ति को चुना जो अपनी मर्दानगी का सुबूत औरतों को मनचाहे ढंग से इस्तेमाल करने में विश्वास करता हो.

इस औरत को न्याय दिलाने के चक्कर में हो सकता है कि पांचों को ढूंढ़ निकाला जाए और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाए पर उस औरत ने जो उन घंटों में, जब उस का बारबार 5 जनों द्वारा बलात्कार हुआ, जो दहशत सही वह किसी भी सजा से कम नहीं हो सकती.

हमारा समाज, दुनिया भर का, ऐसा है कि वह बलात्कार को केवल शारीरिक हिंसा नहीं मानता, कहीं न कहीं औरत को दोषी मानता है और इसी का दंश औरत को अंदर तक चोट सहने में मजबूर करता है. सैकड़ों पुरुष मारपीट में घायल होते हैं, दुर्घटनाओं में उन का अंग भंग हो जाता है, लंबी बीमारियां हो जाती हैं पर औरत को बलात्कार के दौरान जो वेदना होती है और बाद में जो आत्मग्लानि होती है वह शारीरिक देन नहीं, सामाजिक देन है. समाज, कानून, पुलिस, अदालतों,  मीडिया और घरों ने ऐसा माहौल बनाया है कि जो शारीरिक क्रिया औरतें खुशीखुशी करती हैं यकायक बोझ बन जाती है.

बलात्कार और सहमति से बने  यौन संबंधों में फर्क है तो वह सामाजिक, मानसिक देन है. यह थोपी हुई है. उस अमेरिकी औरत का भारत की गंदी सामाजिक कानून व्यवस्था पर इतना ज्यादा अविश्वास था कि वह महीनों चुप रही. अमेरिका में भी औरतें बलात्कार के बाद दिनों, महीनों और सालों चुप रहती हैं, क्योंकि डर समाज का है जो अब पुरुष को दंड तो दिलवाने लगा है पर फिर भी विक्टिम को भी मानसिक जेल में ठूंस देता है. बहुत औरतें इस जहर को पी कर आगे चलना चाहती हैं पर असल में ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि माहौल ऐसा है कि बलात्कार की शिकार को जानेअनजाने एहसास दिलाया जाता है कि वह खुद भी गलत ही होगी और अब वह दूषित है, कुलटा है, त्याज्य है, अहिल्या है, सीता है, अक्षभ्य है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...