छोटा मुंबई कहे जाने वाले शहर इंदौर में पली बढ़ी समीक्षा ने एक्टिंग में जाने का मन तभी बना लिया था जब उन्होंने पत्रकारिता में ग्रैजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया था. जीवन के हर कदम पर मां का साथ पाने वाली समीक्षा कहती हैं कि वे आज जो कुछ भी हैं अपनी मां के कारण हैं. अपने पहले ही औडिशन में जी टीवी के शो ‘जिंदगी की महक: महक’ में लीड रोल पाने वाली समीक्षा इसे अपनी जिंदगी का सब से बड़ा अचीवमैंट मानती हैं.
खाने और खिलाने की शौकीन समीक्षा कहती हैं कि शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब उन की रसोई से लजीज खाने की महक न आती हो. कड़ाही और चम्मच तो जैसे उन के खास दोस्त बन गए हैं. जी टीवी के इस शो की कहानी चूंकि दिल्ली की है इसलिए दिल्ली की रियल लोकेशन पर इस की शूटिंग की जा रही है. शूटिंग स्पौट पर ही समय निकाल कर समीक्षा ने अपनी बातें गृहशोभा से शेयर कीं:
जब पहली बार कैमरे के सामने आईं तो कैसा अनुभव रहा?
उस दिन को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी. जब इस शो के प्रोमो शूट के लिए मैं शूटिंग स्पौट पर पहुंची, तो पूरी शूटिंग यूनिट, भारीभरकम लाइटों और कैमरों को देख कर हालत पतली हो गई. उस समय मैं सोच रही थी कि कैसे मैं अपना सीन कर पाउंगी. पर शो के निर्देशक और पूरी टीम ने मेरा हौसला बढ़ाया. शुरुआत में कुछ समस्याएं आईं, क्योंकि इस से पहले मैं ने कभी कोई सीन शूट नहीं किया था. पहली बार कैमरे से रूबरू हुई थी. मैंने उन छोटीछोटी प्रौब्लम्स को बहुत अच्छे तरीके से सुलझाया और आज एक ही टेक में सीन ओके हो जाता है. रीटेक की नौबत कम ही आती है. कारण है मैं अब थोड़ीबहुत एक्टिंग में मैच्यौर हो गई हूं, क्योंकि अब 3 महीनों से ज्यादा का समय शूटिंग करते बीत गया है.
महक से समीक्षा कितनी मिलती है ?
सच बताऊं तो मैं खाने की बहुत शौकीन हूं, मुझे तरहतरह का खाना बहुत पसंद है, पर बनाना नहीं आता है. शो के कैरैक्टर महक को भी खाना बहुत पसंद है पर वह अच्छा खाना बना भी लेती है. मैं भी संयुक्त परिवार से हूं और महक के परिवार में भी सभी साथ रहते हैं. जब इस शो की कहानी मुझे सुनाई गई तब मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरी ही कहानी सुनाई जा रही है. जब इस शो का औडिशन देने गई तब भी मैं डर रही थी कि मैं कैसे कर पाऊंगी, क्या होगा. लेकिन मेरी मां ने मेरा आत्मविश्वास बहुत मजबूत कर दिया था, इसलिए बेखौफ हो कर औडिशन दिया और सलैक्ट हो गई.
जर्नलिस्ट से एक्टर कैसे बन गईं?
मैं ने इलैक्ट्रौनिक मीडिया में ग्रैजुऐशन किया है. जब ऐडमिशन लिया था तभी यह सोच लिया था कि पत्रकार नहीं बनना है. कुछ हट कर काम करूंगी. एक्टिंग का कीड़ा बचपन से ही था. स्कूल में होने वाले नाटकों में मेरी सक्रियता हमेशा रहती थी. शुरुआत में मुझे सैट डिजाइनिंग का शौक था. कालेज में पढ़ाई करते हुए इस पर ही फोकस किया था. कुछ प्रोजेक्ट्स और डौक्यूमैंटरीज बनाते समय एक्टिंग भी की.
इस के बाद लगा कि सैट डिजाइनिंग के बजाय मेरे लिए सही कैरियर औप्शन एक्टिंग है. इसलिए छोटीछोटी डौक्यूमैंटरीज में काम कर के अपनी एक्टिंग स्किल को ग्रूम करना शुरू किया. इस ग्रूमिंग की मदद से ही आज यह बड़ा ब्रेक मिल पाया है. मैं आज 21 साल की हूं. 6 साल पहले मैं ने सोच लिया था कि मैं कुछ ऐसे काम में कैरियर बनाऊंगी जो हट कर हो. मेरे हर फैसले पर मेरी मां का बहुत साथ मिला. उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया है. मेरे पापा शुरू में कुछ असमंजस में थे पर उन्हें इतना विश्वास था कि उन की बेटी जो भी फैसला लेगी अच्छा ही लेगी.
इंदौर को मिस करती हैं?
बहुत ज्यादा. वहां के राजबाड़ा की शाम और दोस्तों के साथ जा कर स्ट्रीट फूड का मजा लेना बहुत याद आता है. 4 महीने से मैं घर नहीं गई हूं. दिल्ली में ही हूं. परिवार के लोग तो मिलने यहां आ जाते हैं पर दोस्तों से नहीं मिल पाई हूं. याद तो सभी आते हैं पर यह सोच कर अपने को समझा लेती हूं कि घर वालों के साथसाथ मेरे शहर वालों की मुझ से बहुत उम्मीदें हैं. कुछ अच्छा करूंगी तभी सब की उम्मीदों पर खरा उतर पाऊंगी.
दिल्ली ने दिल जीता या नहीं?
यहां के लोग अच्छे हैं, दिलवाले भी हैं पर यहां प्रदूषण और ट्रैफिक बहुत ज्यादा है. पिछले दिनों दीवाली के बाद छाई धुंध को देख कर मैं सकते में आ गई थी. मुझे सांस लेने में परेशानी होने लगी थी. यहां रहने वाले लोग कैसे इस प्रदूषण को सहन करते होंगे. हमेशा इतना शोर होता है कि लगता है कि यहां ज्यादा रहूंगी तो कम सुनाई देने लगेगा. पिछले दिनों हमारे शो की शूटिंग चांदनी चौक में हुई. तब मैं ने रियल दिल्ली को देखा. लोगों की रेलमपेल के बीच परांठे वाली गली का स्वाद भी चखा. लेकिन मैं कहती हूं कि दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से हो कर जाता है और पेट भरने का सब से अच्छा तरीका हम इंदौरियों से अच्छा कौन जानता है.
इस शो में महक को ऐसी लड़की के तौर पर दिखाया गया है, जो अपने परिवार और खाने का बहुत ध्यान रखती है. तो रियल लाइफ में घर संभालना कितना बड़ा टास्क है?
होममेकर होना कोई छोटी चीज नहीं है. यह बहुत बड़ा काम है. बहुत सारी ऐसी घरेलू महिलाएं हैं, जो अपनी अहमियत नहीं समझ पाती हैं. उन्हें फैमिली के सामने कुछ नजर नहीं आता. कभी वे खाना बनाने में बिजी होती हैं, तो कभी किसी के लिए कुछ और करने में. मेरा कहना है कि उन्हें अपना भी ध्यान रखना चाहिए.
क्या अकेले दम पर अपनी पहचान बनाना मुमकिन है?
हां, अगर मन में ठान लिया जाए तो यह जरूर मुमकिन है. शुरुआत में तमाम मुश्किलों से दोचार होना पड़ता है पर मंजिल निश्चित मिलती है. आप का गौडफादर या इंड्रस्ट्री में रहने वाला रिलेटिव आप की यहां इजी ऐंट्री तो करा सकता है पर सर्वाइव तो आप को ही करना पड़ता है. अगर आप में वह काबिलीयत और अदाकारी नहीं है तो जल्द ही आप बाहर हो जाते हैं. हमारी इंडस्ट्री में तो ऐसे स्टार किड्स के कई उदाहरण आप को मिल जाएंगे जो अच्छे बैनर की फिल्मों के सहारे लौंच तो हुए लेकिन उस के बाद आज भी उन की पहचान उन के पेरैंट्स से है. उन की अपनी पहचान कुछ नहीं है.