3 सखियां: भाग-1

आभा,शालिनी और रितिका पक्की सहेलियां थीं. स्कूल के दिनों से ही उन का साथ था. कालेज में भी वे नियमित रूप से एकदूसरे से मिलती रहती थीं. जब अल्हड़ उम्र की थीं तब अकसर उन की बातचीत का विषय होता लड़के. कालेज के लड़के, पासपड़ोस के लड़के, गलीमहल्ले के लड़के. फिर जब शादी की उम्र हुई तो भावी पति को ले कर अटकलें लगाई जाने लगीं.

‘‘भई तुम लोगों की मैं नहीं जानती,’’ शालिनी आह भर कर कहती, ‘‘पर मेरे साथ जो होने वाला है उसे मैं जानती हूं. जहां मेरी बी.ए. की पढ़ाई समाप्त हुई, मेरी शादी कर दी जाएगी. मेरे मातापिता तो दिन गिन रहे हैं. उन्होंने तो लड़का भी तलाश कर लिया है.’’

‘‘अरे ऐसे कैसे तेरी शादी कर देंगे? अच्छी जबरदस्ती है,’’ रितिका बोली.

‘‘लड़का कौन है? तेरी पसंद का है या नहीं?’’ आभा ने पूछा.

‘‘मेरी पसंद की परवा किसे है भई. कई साल से मेरी बूआ हमारे पीछे पड़ी हुई हैं अपने बेटे के लिए, शायद उसी से…’’

‘‘अरे तेरा कजन? यह तो कुछ अच्छा नहीं लगता. इतना करीबी रिश्ता, तुझे कुछ अटपटा नहीं लगता?’’

‘‘लगता तो है पर मेरी सुनने वाला कौन है? हम दक्षिण भारतीयों में भाईबहन के बच्चों की शादियां होती रहती हैं. इस में कोई बुराई नहीं समझी जाती है. फिर एक तो भतीजी बहू बन कर आती है, तो उस से लगाव होना स्वाभाविक है. वह परिवार में रचबस जाती है. और दूसरी बात यह कि दानदहेज का बखेड़ा नहीं.’’

‘‘हां एक तरह से यह भी ठीक ही लगता है,’’ आभा बोली, ‘‘पहचान की ससुराल हो तो इतमीनान रहता है. पर मुझे देखो, पिताजी इंटरनैट पर मेरे लिए जोरशोर से वर तलाश रहे हैं. जवाब में तरहतरह के नमूनों की अर्जियां आ रही हैं. उन के फोटो देखो तो किसी हीरो से कम नहीं लगते. और उन के विवरण पढ़ो तो लगता है सब के सब जीनियस हैं. एकाध को पिताजी बहुत आशान्वित हो कर देखने भी गए पर बहुत मायूस हो कर लौटे. मैं तो मन ही मन मना रही हूं कि मुझे शादी कर के अमेरिका न जाना पड़े. वहां घर और बाहर का काम करतेकरते तो मिट्टी पलीद हो जाती है और सालों बीत जाते हैं अपनों की शक्ल देखे. ऐसा लगता है जैसे अज्ञातवास कर रहे हों. मैं तो कहती हूं कि अमेरिका के डाक्टर या इंजीनियर के बजाय इंडिया में एक साधारण हैसियत वाले से ब्याह कर के रहना ज्यादा अच्छा है.’’

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‘‘क्या कह रही है तू?’’ रितिका ने उसे झिड़का, ‘‘भला अमेरिका जाने में क्या बुराई है? तुझ में जरा भी हौसला नहीं है. अरे यही तो उम्र है अपने खोल से निकल कर दुनिया देखने की, जगहजगह की सैर करने की. मैं तो इसी ताक में हूं कि कोई मालदार आसामी फंसे और मैं उस से ब्याह कर इंडिया को बायबाय बोल विदेश का रास्ता नापूं. फिर विदेश घूमूं, दुनिया के अजूबे देखूं, तरहतरह की चीजें खरीदूं और भांतिभांति के व्यंजन चखूं. ओह सोच कर ही बदन में झुरझुरी उठती है.’’

‘‘अपनाअपना नजरिया है,’’ आभा ने सर हिलाया, ‘‘मेरे विचार में लड़का अपनी पसंद का होना चाहिए. वह अमीर हो या गरीब उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. जहां मन न मिले उस व्यक्ति के साथ पूरा जीवन बिताना एक सजा से कम नहीं है. तू ही बता बिना प्यार के एक अजनबी के साथ बंध कर उम्र भर कलपने का क्या तुक है?’’

‘‘इतनी भावुक न बन मेरी बन्नो, जरा प्रौक्टिकल बन. पैसा बड़ी चीज है. बिना पैसे के जीना मुहाल हो जाता है. जब पेट भर खाना नसीब न हो तो प्यारव्यार सब धरा रह जाता है. अभाव की जिंदगी जीना भी क्या जीना? पैसा पास हो तो जिंदगी की हर खुशी, हर नेमत खरीदी जा सकती है. मैं तो यह चाहती हूं कि जीवनसाथी ऐसा हो जो मुझ पर अपनी दौलत निछावर करे. मुझे  जिंदगी की हर खुशी दे ताकि मैं जीवन भरपूर जी सकूं, गुलछर्रे उड़ाऊं. कल किस ने देखा है,’’ रितिका जोश से उस से बोली.

‘‘वह सब तो ठीक है,’’ शालिनी उदास भाव से बोली, ‘‘अच्छा घर व वर कौन लड़की नहीं चाहेगी भला, पर ये सब अपने बस में तो नहीं है न.’’

‘‘क्यों नहीं है. मैं ने तो तय कर लिया है कि मैं एयरलाइंस जौइन करूंगी. सैर की सैर होती रहेगी और एक मालदार पुरुष से मिलने का चांस भी मिलेगा. अगर तू चाहे तो मैं तुझे उन विमान सुंदरियों के नाम गिना सकती हूं जिन्होंने अमीरजादों को अपने प्रेमजाल में फंसाया और आज ऐशोआराम की जिंदगी बसर कर रही हैं,’’ रितिका ने उस से भी बड़े जोश से कहा.

‘‘जरूरत नहीं है उन सुंदरियों का नाम गिनाने की. हम तेरी बात पर विश्वास करती हैं. हम भी मानती हैं कि दुनिया में पैसे की बड़ी अहमियत है. पर दौलत के साथसाथ मनचाहा पति भी मिल जाए तो सोने में सुहागा हो जाए,’’ शालिनी बुझे मन से बोली. परीक्षा समाप्त होते ही शालिनी की शादी की तैयारियां होने लगीं. लेकिन ऐन वक्त पर उस के कजन ने शादी से मना कर दिया. शायद उस का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा था. उस ने शालिनी के लिए अपने एक दोस्त का नाम सुझाया जो अमेरिका में नौकरी रहा था. फिर आननफानन शालिनी की शादी हो गई और वह अमेरिका के लिए रवाना हो गई. कुछ दिनों बाद आभा के लिए भी एक अच्छा वर मिल गया. इत्तफाक से वह भी अमेरिका में नौकरी करता था. सुनते ही आभा फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘मैं ने आप लोगों से एक ही शर्त रखी थी कि मैं ब्याह कर अमेरिका नहीं जाना चाहती और आप लोगों ने मेरी इतनी सी बात नहीं रखी,’’ उस ने आंसू बहाते हुए अपने मातापिता से कहा.

‘‘बेटी,’’ उन्होंने उसे समझाया, ‘‘यह तो संयोग की बात है. और चाहे वर अमेरिका में हो या कहीं और इस से क्या फर्क पड़ता है? पहली बात तो यह देखने की है कि वह तेरे योग्य है कि नहीं. हम ने इस लड़के के बारे में बहुत कुछ सुना है. लड़का क्या है हीरा है. ऐसा लड़का सब को नसीब नहीं होता. और तेरे मांबाप तेरा भला ही तो चाहते हैं. फिर आजकल तो जिसे देखो वही अमेरिका का रास्ता नाप रहा है और तू पगली है कि वहां जाने से घबरा रही है.’’ आभा की शादी के 1 साल बाद अचानक एक दिन उस के पास रितिका का फोन आया.

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