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आभा,शालिनी और रितिका पक्की सहेलियां थीं. स्कूल के दिनों से ही उन का साथ था. कालेज में भी वे नियमित रूप से एकदूसरे से मिलती रहती थीं. जब अल्हड़ उम्र की थीं तब अकसर उन की बातचीत का विषय होता लड़के. कालेज के लड़के, पासपड़ोस के लड़के, गलीमहल्ले के लड़के. फिर जब शादी की उम्र हुई तो भावी पति को ले कर अटकलें लगाई जाने लगीं.

‘‘भई तुम लोगों की मैं नहीं जानती,’’ शालिनी आह भर कर कहती, ‘‘पर मेरे साथ जो होने वाला है उसे मैं जानती हूं. जहां मेरी बी.ए. की पढ़ाई समाप्त हुई, मेरी शादी कर दी जाएगी. मेरे मातापिता तो दिन गिन रहे हैं. उन्होंने तो लड़का भी तलाश कर लिया है.’’

‘‘अरे ऐसे कैसे तेरी शादी कर देंगे? अच्छी जबरदस्ती है,’’ रितिका बोली.

‘‘लड़का कौन है? तेरी पसंद का है या नहीं?’’ आभा ने पूछा.

‘‘मेरी पसंद की परवा किसे है भई. कई साल से मेरी बूआ हमारे पीछे पड़ी हुई हैं अपने बेटे के लिए, शायद उसी से...’’

‘‘अरे तेरा कजन? यह तो कुछ अच्छा नहीं लगता. इतना करीबी रिश्ता, तुझे कुछ अटपटा नहीं लगता?’’

‘‘लगता तो है पर मेरी सुनने वाला कौन है? हम दक्षिण भारतीयों में भाईबहन के बच्चों की शादियां होती रहती हैं. इस में कोई बुराई नहीं समझी जाती है. फिर एक तो भतीजी बहू बन कर आती है, तो उस से लगाव होना स्वाभाविक है. वह परिवार में रचबस जाती है. और दूसरी बात यह कि दानदहेज का बखेड़ा नहीं.’’

‘‘हां एक तरह से यह भी ठीक ही लगता है,’’ आभा बोली, ‘‘पहचान की ससुराल हो तो इतमीनान रहता है. पर मुझे देखो, पिताजी इंटरनैट पर मेरे लिए जोरशोर से वर तलाश रहे हैं. जवाब में तरहतरह के नमूनों की अर्जियां आ रही हैं. उन के फोटो देखो तो किसी हीरो से कम नहीं लगते. और उन के विवरण पढ़ो तो लगता है सब के सब जीनियस हैं. एकाध को पिताजी बहुत आशान्वित हो कर देखने भी गए पर बहुत मायूस हो कर लौटे. मैं तो मन ही मन मना रही हूं कि मुझे शादी कर के अमेरिका न जाना पड़े. वहां घर और बाहर का काम करतेकरते तो मिट्टी पलीद हो जाती है और सालों बीत जाते हैं अपनों की शक्ल देखे. ऐसा लगता है जैसे अज्ञातवास कर रहे हों. मैं तो कहती हूं कि अमेरिका के डाक्टर या इंजीनियर के बजाय इंडिया में एक साधारण हैसियत वाले से ब्याह कर के रहना ज्यादा अच्छा है.’’

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