A Winter Tale At Shimla Film Review: भटकी हुई कथा और पटकथा

रेटिंग: पांच में से डेढ़ स्टार
निर्माता: आगस्त्या सिने ड्रीम्स एलएलपी
लेखक व निर्देशकः योगेश वर्मा
कलाकार: गौरी प्रधान,इंद्रनील सेन गुप्ता, दीपराज राणा,निखिता चोपड़ा, अंगद ओहरी,रितुराज सिंह,कर्मवीर चैधरी,ध्रुव चुघ और अन्य.

अवधि: दो घंटे 22 मिनट

लगभग 35 वर्षों तक कारपोरेट जगत में शीर्ष पदो पर कार्यरत रहने के बाद योगेश वर्मा बतौर लेखक व निर्देशक एक मैच्योर प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘ ए विंटर टेल एट षिमला’’ लेकर आए हैं, मगर कहानी भटकी हुई है.  बेवजह ही फिल्म में अनचाहे ट्रैक जोड़कर चूचू का मुरब्बा बना दिया.

कहानीः
फिल्म शुरू होती है चिंतन (इंद्रनीलसेन गुप्ता) के अस्पताल पहुंचने से. दिया (निहारिका चोकसी) को खबर मिलती है कि चिंतन का एक्सीडेंट हो गया है. उसके बाद कहानी अतीत व वर्तमान में झूलते हुए बढ़ती है. जिसके अनुसार कालेज दिनों में चिंतन (अंगद ओहरी) और वेदिका (निखिता चोपड़ा) के बीच प्रेम हो जाता है. चिंतन इंजीनियर होने के साथ ही कोमल हृदय वाला लेखक व दार्षनिक बातें करने वाला युवक है,जो कि वेदिका के पिता के आफिस में ही नौकरी करता है. वेदिका के पिता चिंतन को अपना दामाद स्वीकार करने की बजाय उसे अपमानित करने के साथ ही नौकरी से भी निकाल देते हैं. क्योंकि वेदिका के पिता वेदिका का व्याह किसी आई एएस अफसर के साथ करना चाहते हैं. पर वेदिका का विवाह पुलिस अफसर उदय सिंह (दीपराज राणा) से हो जाता है. इस बात को पच्चीस वर्ष गुजर चुके हैं.  उदय सिंह डीआई जी बन चुके हैं. वेदिका की एक बेटी दिया (निहारिका चोकषी) है.  दिया के ही कालेज में प्रोफेसर बनकर चिंतन (इंद्रनील सेन गुप्ता) की वापसी होती है. चिंतन का बेटा मयंक विदेश में है और बहू मोना (इषिता षाह) व पोता षिवम (बाल कलाकार प्राज्वल ठाकुर) उनके साथ रहता है. कालेज के एक समारोह में ही वेदिका (गौरी प्रधान तेजवानी) व चिंतन की पुनः मुलाकात होती है. चिंतन महसूस करता है कि इच्छाओं व सपनों को पाने के लिए संघर्ष करने की बजाय तकदीर में यकीन करने वाली वेदिका में बहुत कुछ बदल चुका है. अब वह 25 साल पहले वाली जोश से भरी वेदिका नही है. चिंतन का वेदिका के घर जाना होता है,जहां उदय सिंह ,चिंतन को पसंद नही करते और चिंतन की हत्या करवाने का असफल प्रयास करते हैं.  पर इस वजह से उनका प्रमोशन रूक जाता है. चिंतन के दोस्त नवीन (रितुराज सिंह) बहुत बड़े उद्योगपति व कालेज के संस्थापक हैं. नवीन ने षिमला में प्रबंधन अध्ययन के साथ वैदिक प्रथाओं को मिलाकर एक संस्थान स्थापित किया है. उसी में उसने चिंतन को नौकरी दी है. उनकी पहुॅच राज्य के मुख्यमंत्री तक है.  जांच षुरू होती है. मुख्यमंत्री, उदय सिंह के प्रमोशन की फाइल रोक लेते हैं.  कहानी कई मोड़ों से गुजरती है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कहानी व पटकथा काफी भटकी हुई है. लेखक ने मूल कहानी के साथ कई किरदारों की अवंाछित कहानियों को जोड़कर पूरी फिल्म का सत्यानाश कर दिया गया हे. यह फिल्म भानुमती का पिटारा बनकर रह गयी है,जिसमंे लेखक ने कई पात्र व कहानियां जोड़ दी,पर उनके साथ न्याय नहीं कर पाए. उदय सिंह और मुख्यमंत्री के बीच के रिष्ते को बेवजह ठॅूंसा गया है. बैदेही व उदय सिंह यानी कि पति पत्नी के बीच के रिष्ते को भी ठीक से चित्रत नही किया गया.  औसत दर्जे के कथानक के साथ ही औसत दर्जे के संवाद हैं. जब चिंतन व वैदेही कालेज में होते हैं,उस वक्त उनके बीच सपनों व तकदीर को लेकर बहस होती है. पर फिल्म बाद में सपनों या इच्छाओं और तकदीर के आपसी टकराव को ठीक से चित्रित करने में विफल रहे हैं.  इस तरह की फिल्म में जो भावनात्मक गहराई होनी चाहिए, वह भी नही है. उदय सिंह का किरदार भी ठीक से गढ़ा नही गया. जिस पद पर उदय सिंह हैं,उस पद पर आसीन वरिष्ठ पुलिस अफसर हर जगह अपना वर्दी मंे नही जाता. चिंतन के घर माफी मांगने व समझौते की बात करने उदय सिंह का अपनी वर्दी मंे जाना खलता है.  फिल्म अतीत और वर्तमान के बीच झूलती रहती है. अतीत पूरी तरह से चिंतन और वैदेही के बीच विनाशकारी प्रेम कहानी पर केंद्रित है. अतीत में वैदेही के पिता से जो घाव चिंतन को मिलते हैं,उन्हे चिंतन वर्तमान में भी नही भुला पाए हैं. चिंतन की नजर में वैदेही भी दोषी है.  एडीटिंग टेबल पर फिल्म को कसे जाने की जरुरत थी,मगर एडीटर बुरी तरह से मात खा गए.

अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो वैदेही के किरदार मे टीवी अदाकारा गौरी प्रधान ने बेहतरीन अभिनय किया है. मगर पति के अड़ियल व गुस्सैल स्वभाव के तले दबी पत्नी की व्यथा को व्यक्त करने में वह असफल रही हैं. चिंतन के किरदार में इंद्रनील सेनगुप्ता का अभिनय षानदार है. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उदय सिंह के किरदार में दीप राज राणा का अभिनय घिसा पिटा है. चरित्र में क्रूरता और रणनीतिक सोच के बीच वांछित संतुलन का अभाव है. यॅंू तो निर्देशक ने भी उनके किरदार के साथ न्याय नही किया है. दिया के छोटे किरदार मंे निहारिका चोकषी अपना प्रभाव छोड़ जाती है.

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