Valentine’s Special: अनोखी- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

Valentine’s Special: अनोखी- भाग 2- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

पिछला भाग पढ़ने के लिए- Valentine’s Special: अनोखी (भाग-1)

‘‘अबे चल कोई फिल्म है क्या? मैं आंटी से बात करता हूं अगर तू वाकई सीरियस है तो,’’ प्रख्यात हंसा था.

‘‘अच्छा इतना ही सयाना है तो मेरी आंटी से लड़की से मिलने देने को क्यों नहीं कहता… ये पुरातनपंथी मानने वाले नहीं…’’

‘‘अरे कुछ ही दिनों की बात है. रहने देते हैं न उन्हें सुख से अपने संस्कारों में, अपनी मान्यताओं में. 15 को तो मिल ही लूंगा…’’

‘‘पसंद न आई तो?’’ सिकंदर अभी भी नहीं पचा पा रहा था कि प्रख्यात बिना देखे शादी के लिए कैसे मान रहा है.

‘‘अरे घर वाले ही हैं अच्छा ही सोचा होगा,’’ कह प्रख्यात मुसकराया.

‘‘फिर भी… कमाल है तू… हद ही है… अच्छा सुन अगले सोमवार कर लेते हैं शादी… वह कह रही थी कि हम सीधा कोर्ट आ जाएंगे… तू वहां का सब संभाल लेना. तेरे दोस्त वहां हैं न. फिर घर जा कर सब का आशीर्वाद ले लेंगे. उन्हें देना ही पड़ेगा घर वाले जो हैं,’’ वह प्रख्यात की बात दोहराते हुए हंसा था.

‘‘कमाल है, तू उलटापलटा काम करेगा और मेरी नकल उतारेगा… मैं इन बातों में साथ नहीं देने वाला… आंटीअंकल से मु झे डांट नहीं खानी… मेरा रैपो क्यों खराब करना चाहता है?’’

‘‘अबे यार उस की दोस्त सखी तो उस की मदद को साथ आ रही है,’’ सिकंदर बोला.

‘‘दोस्तसखी एक ही बात है. नाम नहीं कह सकता?’’

‘‘यही नाम मालूम है मु झे. वह हमारी शादी तक में सब संभाल लेगी. उस के बाद काम तेरा, तू कैसा दोस्त है यार… अच्छा चल किसी दोस्त को ही बोल दे वहां सब तैयारी रखे.’’

‘‘अरे यार आंटी से बात करने दे. ऐसे बिलकुल ठीक नहीं लगता,’’ प्रख्यात फिर हिचकिचाया.

‘‘अरे तब तो वे बिलकुल नहीं होने देंगी. दादी की सारी मान्यताएं उन्हें सिर ओढ़नी हैं… मान ले मेरा कहा यार… लड़के की तरफ से विटनैस तो तू ही होगा वरना मैं तेरी सगाई में नहीं आऊंगा सम झ ले,’’ वह छोटे बच्चे की तरह रूठ कर बोला तो प्रख्यात हंस दिया.

‘‘चल डन. तू मिला न मिला अपनी से मु झे बट मैं तु झे आज ही मिला दूंगा. शाम को 7 बजे क्वालिटी में. अभी उस से बात करता हूं… हम रोज ही मिलते हैं. तेरा बता देता हूं कि आज तू भी साथ होगा.’’

शाम को प्रख्यात मिला तो सुदीपा के व्यवहार से काफी इंप्रैस हुआ. फिर सोचने लगा कि हां फिट बैठेगी इस के घर में पर इस फंटूश को कैसे पसंद कर लिया इस ने. पर फिर थोड़ी देर में ही उसे पता चल गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है.

‘‘भाई प्लीज, आप हमारी शादी में हमारे साथ रहना, गवाह बनना कोर्ट में… बहुत डर लग रहा है. मांपापा की मरजी के बिना कभी कोई काम नहीं किया. मेरी दोस्त भी आएगी… उसी ने तो मु झे हिम्मत दिलाई है. बड़ी दिलेर है. किसी भी बात का उसे डर नहीं. एकदम बिंदास है. आप मिलना उस से, हम ग्रैजुएशन से दोस्त हैं… आप अपने दोस्त को वहां बोल देना सारी तैयारी, औपचारिकताएं पूरी रखे. मांपापा पहले तो नहीं मान रहे पर यकीन है बाद में मान जाएंगे,’’ सुदीपा बोली.

सुदीपा की मासूमियत भरी अनुनय देख कर प्रख्यात पिघल गया, ‘‘ओके फिर… आना ही पड़ेगा विवाह में, लड़के वाला जो बन रहा हूं…’’

वे सब रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.

सुदीपा की दोस्त सखी की बात सुन कर प्रख्यात को लाली फिर याद हो आई. वह भीतो ऐसी ही दबंग थी. कभी डेस्क में ब्लेड खोंस कर, चलती क्लास में बाजा बजाती. टीचर चिल्लाती कि कौन बजा रहा है, पर उस के डर से कोई नहीं बताता. शांति छा जाती. कभी पूरी क्लास की छुट्टी कराने का मन हो तो उस के निर्देश पर सभी किताब न लाने का बहाना बताते. पूरी क्लास को बैंचों पर खड़े रहने की सजा दे कर मैडम चली जातीं. बस पढ़ाई बंद और सीढ़ीनुमा क्लास की बैंचों पर चुपकेचुपके पकड़मपकड़म के मजे शुरू… कई दिनों से न जाने क्यों बारबार उस अनोखी शैतान की याद आ रही है. जिस के पल्ले पड़ी होगी उस का भला हो.

कोर्ट पहुंच कर प्रख्यात अचरज में था. सुदीपा को जींसटौप के

ऊपर ही चुन्नी ओढ़ा कर उस की दोस्त माथा ढकी साथ बैठी थी. सिकंदर भी सिंपल जींसटीशर्ट में था.

‘‘अरे यार तेरी शेरवानी कहां गई जो तूने उस दिन ली थी? मेरे साथ आज पहनी

क्यों नहीं?’’

‘‘लास्ट मोमैंट पर सखी ने तय किया.

मना किया कि बहुत खूबसूरत है ड्रैस पर कौन देख रहा है यहां, उस पर यह गरमी में क्या

तुक है भई… पक्की बात है दोनों के पेरैंट्स दोबारा धूमधाम से शादी करेंगे ही तब पहनना बेकार अभी वेस्ट क्यों करना. इसे ब्यूटीपार्लर

भी न जाने दिया. न दुलहन सी ड्रैसिंग करने दी कि यहां से सीधा कोर्ट जाना है. हमें भी लगा सही है.’’

‘‘तो मैं ही उल्लू बन गया, जो सूट कर आया हूं,’’ प्रख्यात पूरे सूट में था. न जाने क्यों उस ने कोर्ट में भी बाहर जूते उतारे और पास ही कुरसी पर बैठ गया. सब में तेज खिलखिलहट

जो उभरी थी वह सखी की ही थी, ‘‘नमस्ते’’.

मगर प्रख्यात खिसयाया सा नजरें नहीं

मिला पाया. न ही चेहरा ठीक से देख पाया

उस का. फिर एक ओर देखते हुए उस ने जवाब दिया, ‘‘नमस्ते.’’

फिर चोरी से देखना भी चाहा पर दिखी नहीं. न जाने कहां गायब हो गई.

थोड़ी देर बाद ही कैमरा चेहरे पर चढ़ाए फोटोशूट करती हुई नजर आई. प्रख्यात को उस का चेहरा अब और भी नहीं दिख रहा था.

‘‘जल्दी शुरू करो.’’

ज्यादा समय नहीं लगा, 1 घंटे में विवाह के सारे दस्तावेज, प्रमाणपत्र ले लिए गए. बधाई दे कर गले मिलने के बाद जब सब चलने को हुए तो कोर्ट के कमरे के बाहर से प्रख्यात के चमकते जूते गायब थे. सखी हैलमेट पहन अपनी स्कूटी स्टार्ट कर चुकी थी. अगेन कौंग्रैट्स सुदी सिक… मतलब सिकंदर भाई, मैं चली ड्यूटी बाय. थोड़ा ढूंढ़ो तुम. मिल जाएंगे… कोर्ट में सभी रिकौर्ड लेने में अभी बहुत टाइम है. थोड़ी मेहनत करो,’’ हंसते हुए वह फुर्र से निकल गई. रिम िझम बारिश होने लगी थी.

‘‘हैलो,’’ सुदीपा ने उस का फोन उठाया. सखी का ही था.

‘‘सुदीपा जरा दोनों से क्वहजारहजार जूता चुराई के मेरे वसूल लो फिर बताती हूं कहां छिपाए हैं… नो चीटिंग… पैसे दो जूते लो.’’

‘‘ओह तो यह कारगुजारी करने के लिए गायब हुई थी मैडम. अभी साली बन गई कोर्ट में ही,’’ सुदीपा हंसी.

‘‘तो अब दोनों नेग देने को भी तैयार हो जाओ. पैसे दे दो जूते ले लो. निकालिए आप हजारहजार रुपए.’’

‘‘वकील साहब हलकी फुहार में भी हैरानपरेशान पसीने से तर हो रहे थे. उन्हें अगले किसी मामले की तैयारी पर पहुंचने की जल्दी जो थी. वे उतावले थे जाने को. बारबार कहे जा रहे थे, ‘‘भैया पहले मु झे छोड़ दो 33 सैक्टर… देर हो रही है. वहां समय से क्लाइंट से मकान की राजस्ट्री के कागज तैयार कराने न पहुंचा तो मेरा नुकसान हो जाएगा.’’

आगे पढ़ें- अरे रुकिए तो वकील साहब. मेरे जूते…

Valentine’s Special: अनोखी- भाग 3- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

पिछला भाग- Valentine’s Special: अनोखी (भाग-2)

‘‘अरे रुकिए तो वकील साहब. मेरे जूते मिलेंगे तभी तो,’’ सिकंदर जूते ढूंढ़ते हुए बोला.

प्रख्यात कीचड में खड़ा कभी खुद को, तो कभी अपने गंदे हो रहे पांवों को खीज कर देख रहा था. पैसे निकाल कर उसे देने ही पड़े.

‘‘हैलो पैसे मिल गए?’’ सखी का फोन था.

‘‘हां, जल्दी बता कहां हैं जूते?’’

‘‘सच बोल रही है न?’’

‘‘हां भई, अब बता न.’’

‘‘जा जूते सिकंदर की गाड़ी में रखे हैं.’’

‘‘वादा किया था कोई शरारत नहीं करेगी पर मानी नहीं शैतान… इस की शादी में सारा बदला लूंगी अच्छी तरह,’’ सुदीपा ने मुसकराते हुए कार की ओर इशारा किया.

सभी तुरंत भाग कर गाड़ी में जा बैठे. गाड़ी वकील को 33 सैक्टर छोड़ने चल पड़ी.

‘‘अनोखी सखी है आप की… कोई अनोखा ही मिलना चाहिए उन्हें,’’ प्रख्यात जूते पहनते हुए बोला.

‘‘सही में… मैं तो उस के लिए यही

कामना करती हूं… शुक्र करो बहुत कम शरारत ही की उस ने… अरे मैं तो कालेज से देख रही

हूं. कभी किसी के सीट पर गोंद चिपकाना, तो कभी किसी की चोटी चेयर से बांधना… टीचरों के अपने ही नामकरण किए थे. इंगलिश वाली मैडम को सूर्पणखा तो बौटनी वाली को मां

शारदे, कैमिस्ट्री वाली को काली खप्परवाली, फिजिक्स टीचर को दुर्गति दुर्गा… अपने बचपन के तो तमाम शरारती किस्से मजे ले कर सुनाते नहीं थकती.’’

सिकंदर और सुदीपा को कोर्ट मैरिज के बाद घर वालों के बड़े गुस्से का सामना करना पड़ा. काफी समय नाराजगी रही, खूब डांट पड़ी. प्रख्यात ने अपनी तरफ से उन्हें काफी सम झाने की कोशिश की. फिर सही में मातापिता दोबारा शादी के बाद ही उन्हें पतिपत्नी के रूप में स्वीकारने के लिए तैयार

हो गए. सब के मन में खुशी की लहर दौड़ने लगी. पूछ कर शादी की तारीख 3 महीने बाद तय की गई.

रात को प्रख्यात घर पहुंचा तो मां ने उसे उस की सगाई का कार्ड दिखाया जो अभीअभी छप कर आया था.

‘‘देख प्रख्यात कितना सुंदर है तेरी सगाई का कार्ड… दे आ अपने दोस्तों को भी.’’

‘‘आयुष्मति निष्ठा…’’ वह चौंका. उसे लाली याद आ गई. उस का नाम भी…’’

‘‘अब तो यह फोटो देख ले उस का… कितनी प्यारी है. तभी तो रिश्ता आते ही हम ने हां कर दी… तूने हमेशा मना किया देखने को, अब बाद में न कहना. देख ले अभी भी…’’ मम्मी अपनी सही और सुंदर पसंद दिखाने को बेचैन हो उठी थीं.

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कुतूहलवश एक नजर उस ने देख ही लिया.

शुक्र है शक्ल उस लाली निष्ठा की नहीं. नाम से तो मैं तो घबरा ही गया था. लाली के पीछे से बौयकट, आगे से माथे को पूरा ढकते साधना कट हेयर, उस की हलकी सी भूरी आंखें… जुड़ी हुई भवें, सामने दांतों के बीच गैप… स्लाइड सी चल पड़ी प्रख्यात के दिमाग में.

‘‘क्या सोच रहा है. अच्छी नहीं लगी क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं. आप ने

पसंद की है तो अच्छी कैसे नहीं होगी,’’ वह मुसकराया.

सिकंदर के मातापिता ने थाईलैंड डैस्टिनेशन वैडिंग का निश्चय किया. वे सभी सहमत हुए तो उन की तैयारी शुरू हो गई. इधर रिसर्च पूरा होने के पहले ही प्रख्यात की जौब प्लेसमैंट के लिए मेल आ गया कि जल्दी थीसिस अप्रूव होते ही जौइन करें. मुंबई की नामी मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब मिल गई थी. निष्ठा तो उस के लिए सही रही, यह खुशखबरी कैसे बताए उसे एक  िझ झक मन में लिए वह निकल पड़ा अपने होस्टल अपनी थीसिस जल्दी पूरी कर सबमिट करने के लिए.

‘‘मेरी सखी अंतर्ध्यान हो गई… किसी रिश्तेदार की शादी में गई है हाऊ बोरिंग… उस के साथ हर पल रोचक रहता मेरा.’’

‘‘अब मेरा सखा भी चला गया रिसर्च सबमिशन के लिए… अपनी सगाई के समय ही आएगा.’’

सही ही कहा था सिकंदर ने. प्रख्यात वाकई अपनी सगाई के दिन ही पहुंचा था.

‘‘कमाल करता है यार इतना बिजी था… अभी तक लड़की को न देखा न बात की होगी… क्या सोचती होगी वह… मम्मापापा का संस्कारी बौय,’’ सिकंदर ने थोड़ा गुस्सा किया.

‘‘अच्छा चल पहले जल्दी सैलून चल अच्छी तरह तैयार हो कर आ. फिर यह आंटी की लाई शानदार ड्रैस पहनना.’’

प्रख्यात तैयार हो कर सब के साथ वेन्यू पहुंचा तो निष्ठा के पिता व भाइयों ने स्वागत किया. निष्ठा की प्रतीक्षा में स्टेज पर बैठे प्रख्यात के दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. निष्ठा आई तो चेहरे पर घूंघट डाल रखा था. सिकंदर और सुदीपा ने उसे थाम लिया, बधाई दी.

सुदीपा गले मिल कर बोली, ‘‘बहुत बधाई सखी, पर ज्यादा तंग न करना बेचारे को. बात पच नहीं रही थी फिर भी हम दोनों ने कुछ नहीं बताया इसे,’’ सुदीपा ने मुसकराते हुए उस की हथेली दबा दी.

‘‘हां, बिना मु झे पहले देखे मिले. मंगनी करने का फल तो भुगतना होगा जनाब को… न कौल की न मिले,’’ वह घूंघट में हंसी.

लड़कियां तो शादी के समय भी आजकल घूंघट नहीं करतीं यह तो… मम्मी तो बता रही थीं कि बड़े मौर्डन खयालात के हैं ये लोग… प्रख्यात सोचे जा रहा था.

सखी पास आ कर बैठ गई. सब ने तालियां बजाईं.

‘‘प्रख्यात घूंघट उठा. फिर सगाई की रस्म शुरू की जाए,’’ मम्मी की आवाज थी.

‘‘मगर मम्मी…’’

‘‘यहां भी तु झे मम्मी की हैल्प चाहिए?’’ वातावरण में ठहाका गूंज उठा.

प्रख्यात ने जब घूंघट उठाया तो हैरान हो उठा. निष्ठा ने उसे चिढ़ाने के

लिए अपनी आंखें पूरी स्क्विंट कर ली थीं. उस की भवें लाली जैसी ही जुड़ी थीं. वह पसीने से नहा गया. मम्मी को देखने लगा.

दूसरे ही पल निष्ठा ने आंखें ठीक कर लीं, तो राहत हुई. सुदीपा टिशू से उस की काजल से बनी भवें साफ कर हंसने लगी.

‘‘यही सखी है, लाली भी और आप की निष्ठा भी… बोला था न शादी करूंगी तो तुम

से. पूरी नजर रख रही हूं तब से ही… बैठी रही तुम्हारे इंतजार में… आंटीअंकल को सब पता

था, पार्क में भी उस दिन मैं ही थी. जब दिल

नहीं माना तो जंगली घास की बाली घुसा दी तुम्हारी शर्ट में. मम्मी को तो पहचान लिया

होगा. बुद्धू सिंह. तुम्हें सरप्राइज का जबरदस्त  झटका देना था. इसीलिए कोर्ट में चेहरा छिपाते हुए जल्दी ही भाग गई थी. तुम्हें तंग करने

का अलग ही मजा है. अब तो जिंदगी भर ये

मजे लूंगी,’’ और फिर हंसते हुए बड़ी नजाकत

से रिंग सेरेमनी के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

प्रख्यात हैरान हो अनोखी लाली का

बदला रूप मंत्रमुग्ध हो देखे जा रहा था.

बचपन में वह अनोखी की अनोखी शरारतों से डरता भी था पर रोज इंतजार भी करता था.

शायद उस की नित नई रंगभरी शरारतों का

इंतजार उसे अच्छा भी लगता था. इसीलिए तो आज वह पूरा जीवन इस जीवंत रंग में रंगने

के लिए अपने को बिना डर के सहर्ष तैयार पा रहा था.

‘‘अब पहना भी दो कहां खो गए? जल्दी करो, निहारते ही रहोगे क्या?’’

‘‘पहनाओ प्रख्यात वरना अनोखी फिर

कोई शरारत न कर दे,’’ एकसाथ कई आवाजें गूंजीं.

फिर ठहाकों और तालियों के बीच

आखिर मुसकराते हुए निष्ठा को मंगनी रिंग

पहना दी.

Valentine’s Special: अनोखी- भाग 1- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

पत्तियोंके  झुरमुट में फिर सरसराहट हुई. प्रख्यात ने सिर घुमा कर फिर देखने की कोशिश की. लग रहा था कोई उसे छिप कर देख रहा है. तभी पीछे शर्ट में कुछ चुभा. उस का हाथ  झट पीछे चला गया. जंगली घास की वह गेहूं जैसी बाली कैसे उस

की टीशर्ट में ऊपर पहुंच गई. उस ने निकाल कर एक ओर फेंक तो दी पर फिर सोचने लगा कि यह आई कहां से? इस तरह का कोई पौधा भी यहां नहीं दिख रहा. फिर उस ने सरसरी निगाह चारों ओर डाली.

‘‘क्या ढूंढ़ रहा है यार?’’ तभी बचपन से ग्रैजुएशन तक का साथी सिकंदर वहां आ पहुंचा.

‘‘तू अब आ रहा है? आधे घंटे से बोर हो कर वीडियो देखे जा रहा था… वह याद है तु झे वह जंगली घास की बाली हम बचपन में खेलखेल में एकदूसरे की ड्रैस में चुपके से घुसा देते थे. वही मेरी शर्ट में अभी न जाने कहां से आ गईर् थी… वही देख रहा था,’’ कह वह हंसा.

सिकंदर भी हंसा. फिर बोला, ‘‘कितना रोया करता था तू. लाली अकसर तेरी स्कूल ड्रैस में डाल दिया करती थी… तू रोता तो हम सब खूब मजे लेते, हंसते. कितनी पुरानी बात याद आ गई… कहीं वही तो नहीं आ गई… कितने मस्तीभरे दिन थे… किसी बात की चिंता नहीं होती थी.’’

‘‘सच में यार सब से शरारती, अनोखी लाली ही तो थी. हर दिन डरता भी था फिर भी शरारतों का इंतजार भी करता. कब क्या कर दे… न जाने कहां होगी अब… जी ब्लौक से ही तो चढ़ती थी स्कूल बस में. उस की मम्मी हिदायतें देते हुए उसे बस में चढ़ातीं, ‘‘लाली, स्कूल से अब कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए…किसी बच्चे को तंग नहीं करना लाली… अपना ही टिफिन खाना लाली… तेरी पसंद का ही सब रखा है लाली… तू सुन रही है न लाली… भैया जरा इस पर ध्यान रखना,’’ प्रख्यात उस की मम्मी की नकल करते हुए बोल रहा था.

‘‘तो हम भी उसे लालीलाली ही चिढ़ा कर पुकारने लगे थे. उस का असली नाम… याद नहीं आ रहा…हां वह तु झे चिढ़ कर प्रख्यात की जगह खुरपी खाद कहती थी यह याद है… और मु झे सिकंदर बंदर. हा… हा…’’

‘‘तू भूल गया मैं नहीं भूला उस का निष्ठा नाम… मेरी बगल में ही तो बैठती थी. होमवर्क के लिए अपनी कौपी टीचर से छिपा मेरी ओर सरका देती. खुंदक बहुत आती थी मु झे उस पर उस की अचरज भरी शैतानियों पर.’’

‘‘लंच के समय तु झे ही अकसर अपना डब्बा खाली मिलता, तू बहुत रोता तो अपनी मम्मी का दिया पौटिष्क लंच थमा जाती कि मम्मी ने अच्छे वाले छोटे कटहल भी छील कर इस में रखे हैं.

‘‘तू चिढ़ जाता कि ततहल मैं नहीं खाता तो ततहल कहकह कर हंसती. मैं बौक्स में देख कर तु झे सम झाता कि पागल, यह लीची को छोटा कटहल कह रही है.

‘‘सुंदर तो है तू रोतड़ू पर पौष्टिक खाना क्यों नहीं खाता? ये बर्गर, नूडल्स क्यों खाता है रोज? लंबातगड़ा होगा तभी तो शादी करूंगी तु झ से. मेरा लंच खा कर यह टौफी खा लेना. वह बड़े प्यार से तेरी शर्ट की पौकेट में डाल देती और तू भोंदू जब खाता तो फिर रोता कि चीटिंग की. फिर

इस ने रैपर में पता नहीं क्या भर दिया. थूथू… फिर वह खूब हंसती. रैपर में कभी इमली तो कभी मिट्टी निकलती. ऐसे ही छेड़ा करती. कभी रूमाल में जुगनू, तितलियां पकड़ लाती… पूरी क्लास को कुतूहल से भर देती… जहां भी होगी अपनी शैतानियों से बाज नहीं आई होगी यह तो तय है…’’

‘‘हां, हाई स्कूल के बाद हम बौयज सीनियर स्कूल में शिफ्ट हुए, तब जा कर उस से पीछा छूटा… अब तो मेरा कमर्शियल लौ का रिसर्च वर्क भी पूरा होने को है, फिर भी उसे कभी देखा नहीं और तू तो कालेज का फुटबौल चैंपियन था ही. आज 7-8 सालों में स्टेट कोच बन बैठा. यहां बहुत कम रहा, दूसरे शहर ही चला गया, उसे तू देखता कहां से.’’

‘‘और तू किताबों में घुसा रहा कहीं और देखने की तु झे फुरसत कहां थी… हो गई होगी शादीवादी किसी दूसरे शहर में और हो लिए होंगे उसे उस के जैसे ही शैतान बच्चे… हा… हा… भिंडी की ढेंपियां चेहरे पर चिपका कर दूसरों को डराते होंगे.’’

‘‘क्या बात करता है 7-8 सालों में उस के बच्चे?’’

‘‘और क्या, गै्रजुएशन के बाद अकसर पेरैंट्स विदा कर देते हैं… लड़की के पीछे ही पड़ जाते हैं.’’

‘‘अरे, लड़की क्या लड़के के पेरैंट्स भी पीछे पड़ जाते हैं जैसे मेरे… तय भी कर रखी

है. जौब लगते ही छोड़ेंगे नहीं, शादी करा के ही दम लेंगे.’’

‘‘फिर तो बधाई हो. कौन है कहां की है बता तो सही? तेरे पेरैंट्स ने तो सही ही किया है… तू भी तो पढ़ता ही जा रहा है… तेरे सारे एलएलबी के साथी ग्रैजुएशन के बाद ही काम

पर लग गए… चल बता उस के बारे में,’’ सिकंदर ने पूछा.

‘‘अरे कुछ भी नहीं मालूम,’’ प्रख्यात बोला.

‘‘यह क्या बात हुई भला?’’

‘‘हमारे यहां सब थोड़े पुराने खयालों के हैं. सब अच्छी तरह देख कर खुद ही तय करते हैं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे?’’

‘‘हूं यार, अगले महीने की 15 को सगाई करने वाले हैं. तभी देखूंगा तेरे साथ ही. तू तो होगा ही न?’’ प्रख्यात मुसकराया.

‘‘यह भी कोई कहने की बात है… अब मेरी सुन, मेरा तो संयोगिता हरण की योजना बन रही है. इश्क हो गया है मु झे,’’ सिकंदर कुछ रुक कर बोला.

‘‘क्या बात करता है फिर… बाज नहीं आएगा. इश्कबाज… पर सीधे से क्यों नहीं करता?’’ प्रख्यात मुसकराया.

‘‘सुदीपा नाम है. ब्राह्मण है और मैं सिकंदर ठाकुर… दोनों परिवार

राजी नहीं. इसलिए तेरी मदद चाहिए. तु झे करनी ही पड़ेगी. इस बार सच्चा इश्क हुआ है… सच कह रहा हूं.’’

‘‘अब यह कहां मिल गई तु झे?’’ प्रख्यात मुसकराया.

‘‘इतनी सिंपल, इतनी भोलीभाली कि  पहली नजर में बस गई. रिसैप्शनिस्ट है. पूरी टीम के लिए रूम्स बुक थे वहां, पर उस ने मु झे पहचाना नहीं. डेढ़ घंटे तक सारे प्रूफ लिए, तब कहीं अंदर जाने दिया मु झे. फिर बाद में मालूम होने पर कि मैं कौन हूं बड़ी माफी मांगी मु झ से. बस उस की मासूमियत पर दिल आ गया मेरा. यही मेरा प्यार है. तीसरे दिन उस से पूछ ही लिया कि मु झ से शादी करोगी तो वह शरमा गई. मतलब हां था. मगर दूसरे दिन ही उस ने अपनी परेशानी सकुचाते हुए बता दी कि हम ब्राह्मण परिवार से हैं और परिवार दूसरी कास्ट में मैरिज के सख्त खिलाफ है. खिलाफ तो हमारा परिवार भी है. ठाकुर ठाकुरों में ही ब्याह करते हैं… पर हमें ही कुछ करना पड़ेगा इस प्रथा को तोड़ने के लिए. हम भाग कर कोर्ट में रजिस्टर मैरिज करेंगे तब तो घर वालों को राजी होना पड़ेगा.’’

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