story in hindi

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समय की गति और तेज हो चली थी. देखते ही देखते 4 वर्ष बीत गए. शांत कोलकाता में अपना पीजी भी पूरा करने जा रहा था. इस बीच उस ने हम लोगों से लगातर संपर्क बनाए रखा था. खासकर मेरे और संजय के जन्मदिन पर और शादी की सालगिरह पर बधाई और तोहफा देना कभी नहीं भूलता था. शांत ने अभी तक शादी नहीं की थी.
इन दिनों मेरे मातापिता और सासससुर काफी चिंतित रहते थे. हम दोनों पतिपत्नी भी, क्योंकि अभी तक हमारी कोई संतान न थी. मैं ने दिन भर के अकेलेपन से बचने के लिए पास का एक प्राइवेट स्कूल जौइन कर लिया था.
एक दिन शांत पटना आया था, तो हम लोगों से भी मिलने आया. बातोंबातों में संजय ने हमारी चिंता का कारण बताते हुए कहा, ‘‘अरे डाक्टर, कुछ हम लोगों का भी इलाज करो यार. यहां तो डाक्टरों ने जो भी कहा वह किया पर कोई फायदा नहीं हुआ. यहां के डाक्टर ने हम दोनों का टैस्ट भी लिया और कहा कि मैं पिता बनने में सक्षम ही नहीं हूं…इस के बाद से हम से ज्यादा दुखी हमारे मातापिता रहते हैं.’’
मैं भी वहीं बैठी थी. शांत ने हम दोनों को कोलकाता आने के लिए कहा कि वहां किसी अच्छे स्पैशलिस्ट की राय लेंगे.
संजय ने बिना देर किए कहा, ‘‘हां, यह ठीक रहेगा. तनुजा ने अभी तक कोलकाता नहीं देखा है.’’
अगले हफ्ते हम कोलकाता पहुंच गए. अगले दिन शांत हमें डाक्टर के पास ले गया.
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एक बार फिर से दोनों के टैस्ट हुए. यहां भी डाक्टर ने यही कहा कि संजय संतान पैदा करने में सक्षम नहीं है. शांत ने डाक्टर दंपती से अकेले में कुछ बात की, फिर संजय से कहा कि बाकी बातें घर चल कर करते हैं.
उसी शाम जब हम तीनों शांत के यहां चाय पी रहे थे, तो उस ने मुझे और संजय दोनों की ओर देख कर कहा, ‘‘अब तो समस्या का मूल कारण हम सब को पता है, किंतु चिंता की बात नहीं है, क्योंकि इस का भी हल मैडिकल साइंस में है. दूसरा विकल्प किसी बच्चे को गोद लेना है.’’
संजय ने कहा, ‘‘नहीं, तनु किसी और के बच्चे को गोद लेने को तैयार नहीं है…जल्दी से पहला उपाय बताओ डाक्टर.’’
‘‘तुम दोनों ध्यान से सुनो. तनु में मां बनने के सारे गुण हैं. उसे सिर्फ सक्षम पुरुष का वीर्य चाहिए. यह आजकल संभव है, बिना परपुरुष से शारीरिक संपर्क के. उम्मीद है तुम ने सैरोगेसी के बारे में सुना होगा…इस प्रक्रिया द्वारा अगर सक्षम पुरुष का वीर्य तनु के डिंब में स्थापित कर दिया जाए तो वह मां बन सकती है,’’ शांत बोला.
यह सुन कर मैं और संजय एकदूसरे का मुंह देखने लगे.
तभी शांत ने आगे कहा, ‘‘इस में घबराने की कोई बात नहीं है. डाक्टर विजय दंपती के क्लीनक में सारा प्रबंध है. तुम लोग ठीक से सोच लो…ज्यादा समय व्यर्थ न करना. अब आए हो तो यह शुभ कार्य कर के ही जाना ठीक रहेगा. सब कुछ 2-3 दिन के अंदर हो जाएगा.’’
थोड़ी देर सब खामोश रहे, फिर संजय ने शांत से कहा, ‘‘ठीक है, हमें थोड़ा वक्त दो. मैं पटना अपने मातापिता से भी बात कर लेता हूं.’’
मैं ने और संजय दोनों ने पटना में अपनेअपने मातापिता से बात की. उन्होंने भी यही कहा कि कोई और विकल्प नहीं है तो सैरोगेसी में कोई बुराई नहीं है.
उस रात शांत ने जब पूछा कि हम ने क्या निर्णय लिया है तो मैं ने कहा, ‘‘हम ने घर पर बात कर ली है. उन को कोई आपत्ति नहीं है. पर मेरे मन में एक शंका है.’’
शांत के कैसी शंका पूछने पर मैं फिर बोली, ‘‘किसी अनजान के वीर्य से मुझे एक डर है कि न जाने उस में कैसे जीन्स होंगे और जहां तक मैं जानती हूं इसी पर बच्चे का जैविक लक्षण, व्यक्तित्व और चरित्र निर्भर करता है.’’
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‘‘तुम इस की चिंता छोड़ दो. डाक्टर विजय और उन के क्लीनिक पर मुझे पूरा भरोसा है. मैं उन से बात करता हूं. किसी अच्छे डोनर का प्रबंध कर लेंगे,’’ कह शांत अपने कमरे में जा कर डाक्टर विजय से फोन पर बात करने लगा. फिर बाहर आ कर बोला, ‘‘सब इंतजाम हो जाएगा. उन्होंने परसों तुम दोनों को बुलाया है.’’
अगले दिन सुबह शांत ने कहा था कि उसे अपने अस्पताल जाना है. पर मुझे बाद में पता चला कि वह डाक्टर विजय के यहां गया था. डाक्टर विजय को उस ने मेरी चिंता बताई थी. उन्होंने शांत को अपना वीर्य देने को कहा था. पहले तो वह तैयार नहीं था कि तनु न जाने उस के बारे में क्या सोचेगी. तब डाक्टर विजय ने उस से कहा था कि इस बात की जानकारी किसी तीसरे को नहीं होगी. फिर शांत का एक टैस्ट ले कर उस का वीर्य ले कर सुरक्षित रख लिया.
अगले दिन मैं, संजय और शांत तीनों डाक्टर विजय के क्लीनिक पहुंचे. उन्होंने कुछ पेपर्स पर मेरे और संजय के हस्ताक्षर लिए जो एक कानूनी औपचारिकता थी. इस के बाद मुझे डाक्टर शालिनी अपने क्लीनिक में ले गईं. उन्होंने मेरे लिए सुरक्षित रखे वीर्य को मेरे डिंब में स्थापित कर दिया. वीर्य के डोनर का नाम गोपनीय रखा गया था. सारी प्रक्रिया 2 घंटों में पूरी हो गई.
देखते ही देखते 9 महीने बीत गए. वह दिन भी आ गया जिस का हमें इंतजार था. मैं एक सुंदर कन्या की मां बनी. पूरा परिवार खुश था. पार्टी का आयोजन भी किया गया. शांत भी आया था.
6 महीने ही बीते थे कि संजय को औफिस के काम से 1 हफ्ते के लिए सिक्किम जाना पड़ा. इन के जाने के 3 दिन बाद सिक्किम में आए भूंकप में इन की मौत हो गई. शांत स्वयं सिक्किम से संजय के पार्थिव शरीर को ले कर आया. अब चंद मास पहले की खुशी को प्रकृति के एक झटके ने गम में बदल डाला था. पर वक्त का मलहम बड़े से बड़े घाव को भर देता है. संजय को गुजरे 6 माह बीत चुके थे. शांत जब भी पटना आता बेबी के लिए ढेर सारे खिलौने लाता और देर तक उस के साथ खेलता था. अब बेबी थोड़ा चलने लगी थी.
एक दिन शांत लौन में बेबी के साथ खेल रहा था. मैं भी 2 कप चाय ले कर आई और कुरसी पर बैठ गई. मैं ने एक कप उसे देते हुए पूछा, ‘‘बेबी तुम्हें तंग तो नहीं करती? तुम इसे इतना वक्त देते हो…शादी क्यों नहीं कर लेते?’’
शांत ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारी जैसी अब तक दूसरी मिली ही नहीं.’’
मैं ने सिर्फ, ‘‘तुम भी न,’’ कहा.
इधर शांत मेरे मातापिता एवं सासससुर से जब भी मिलता पूछता कि तनु के भविष्य के बारे आप लोगों ने क्या सोचा है? मैं अभी भी उस से प्यार करता हूं और सहर्ष उसे अपनाने को तैयार हूं. एक बार उन्होंने कहा कि तुम खुद बात कर के देख लो.
तब शांत ने कहा था कि वह इस बात की पहल खुद नहीं कर सकता, क्योंकि कहीं तनु बुरा मान गई तो दोस्ती भी खटाई में पड़ जाएगी.
एक बार मेरी मां ने मुझ से कहा कि अगर मैं ठीक समझूं तो शांत से मेरे रिश्ते की बात करेगी. पर मैं ने साफ मना कर दिया. इस के बाद उन्होंने शांत पर मुझ से बात करने का दबाव डाला.
इसीलिए शांत ने आज फिर कहा, ‘‘तनु अभी बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. तुम शादी क्यों नहीं कर लेती हो? बेबी को भी तो पिता का प्यार चाहिए?’’
मैं ने झुंझला कर कहा, ‘‘कौन देगा बेबी को पिता का प्यार?’’
‘‘मैं दूंगा,’’ शांत ने तुरंत कहा.
इस बार मैं गुस्से में बोली, ‘‘मैं बेबी को सौतेले पिता की छाया में नहीं जीने दूंगी, फिर चाहे तुम ही क्यों न हो.’’
‘‘अगर उस का पिता सौतेला न हो सगा हो तो?’’
‘‘क्या कह रहे हो? पागल मत बनो,’’ मैं ने कहा.
शांत ने तब मुझे बताया, ‘‘डाक्टर विजय के क्लीनिक में जब तुम ने वीर्य के जींस पर अपनी शंका जताई थी, तो मैं ने डाक्टर को यह बात कही थी. तब उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं तो यह काम मैं ही करूं. तुम ने अपनी कोख में 9 महीने तक मेरे ही अंश को संभाला था. अगर संजय जिंदा होता तो यह राज कभी न खुलता.’’
मैं काफी देर तक आश्चर्यचकित उसे देखती रही. फिर मैं ने फैसला किया कि मेरी बेबी को पिता का भी प्यार मिले…मेरी बेबी जो हम दोनों के अंश से बनी है अब अंशिका कहलाती है.
समय के भी पंख होते हैं. देखते ही देखते मेरी फाइनल परीक्षा भी खत्म हो गई. आखिरी पेपर के दिन शांत ने दोपहर को एक रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. वहां हम दोनों कैबिन में बैठे और शांत ने कुछ स्नैक्स और कौफी और्डर की.
शांत ने कहा, ‘‘तनु, तुम ने ग्रैजुएशन के बाद क्या सोचा है? आगे पीजी करनी है?’’
मैं ने कहा, ‘‘अभी कुछ तय नहीं है. वैसे मातापिता को कहते सुना है कि तनुजा की अब शादी कर देनी चाहिए. शायद किसी लड़के से बात भी चल रही है.’’
मैं ने महसूस किया कि शादी शब्द सुनते ही उस के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई थी.
फिर शांत बोला, ‘‘तुम्हारे मातापिता ने तुम से राय ली है? तुम्हारी अपनी भी तो कोई पसंद होगी? तुम्हें यहां बुलाने का एक विशेष कारण है. याद है एक दिन मैं ने कहा था कि तुम्हें इलू का मतलब बताऊंगा. आज मैं ने तुम्हें इसीलिए बुलाया है.’’
‘‘तो फिर जल्दी बताओ,’’ मैं ने कहा.
‘‘मेरे इलू का मतलब आई लव यू है,’’ शांत ने कहा.
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मैं बोली, ‘‘तुम्हारे मुख से यह सुन कर खुशी हुई. पर हमेशा अव्वल रहने वाले शांत ने प्यार का इजहार करने में इतनी देर क्यों कर दी? मेरे आगे की पढ़ाई और शादी के बारे में अपने मातापिता का विचार जानने की कोशिश करूंगी, फिर आगे बात करती हूं. मुझे तो तुम्हारा साथ वर्षों से प्यारा है,’’ इस के बाद मैं ने उस का हाथ दबाते हुए घर ड्रौप करने को कहा.
मेरे मातापिता शांत को पसंद नहीं करते थे. मेरे गै्रजुएशन का रिजल्ट भी आ गया था और मैं अपने रिजल्ट से खुश थी. इस दौरान मां ने मुझे बताया कि मेरी शादी एक लड़के से लगभग तय है. लड़के की ‘हां’ कहने की देरी है. इसी रविवार लड़का मुझे देखने आ रहा है. मैं ने मां से कहा भी कि मुझे पीजी करने दो, पर वे नहीं मानीं. कहा कि मेरे पापा भी यही चाहते हैं. लड़का सुंदर है, इंजीनियर है और अच्छे परिवार का है. मैं ने मां से कहा भी कि एक बार मुझ से पूछा होता… मेरी पसंद भी जानने की कोशिश करतीं.
अभी रविवार में 4 दिन थे. पापा ने भी एक दिन कहा कि संजय (लड़के का नाम) 4 दिन बाद मुझे देखने आ रहा था. मैं ने उन से भी कहा कि मेरी शादी अभी न कर आगे पढ़ने दें. पर उन्होंने सख्ती से मना कर दिया. मै ने दबी आवाज में कहा कि इस घर में किसी को मेरी पसंद की परवाह नहीं है. तब पापा ने गुस्से में कहा कि तेरी पसंद हम जानते हैं, तेरी पसंद प्रशांत है न? पर यह असंभव है. प्रशांत बंगाली बनिया है और हम हिंदी भाषी ब्राह्मण हैं.
मैं ने एक बार फिर विरोध के स्वर में पापा से कहा कि आखिर प्रशांत में क्या बुराई है? उन का जवाब और सख्त था कि मुझे प्रशांत या मातापिता में से किसी एक को चुनना होगा. इस के आगे मैं कुछ नहीं बोल सकी.
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अगले दिन मैं ने शांत से उसी रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. मैं ने घर की स्थिति से उसे अवगत कराया.
शांत ने कहा, ‘‘देखो तनु प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं और आगे भी करता रहूंगा. पर नियति को हम बदल नहीं सकते. अभी मेरी पढ़ाई पूरी करने में समय लगेगा…और तुम जानती हो आजकल केवल एमबीबीएस से कुछ नहीं होता है…मुझे एमएस करना होगा…मुझे सैटल होने में काफी समय लगेगा. अगर इतना इंतजार तुम्हारे मातापिता कर सकते हैं, तो एक बार मैं उन से मिल कर बात कर सकता हूं…मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे मातापिता को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा.’’
कुछ देर चुप रहने के बाद मैं ने कहा, ‘‘मुझे कोई फायदा नहीं दिखता, बल्कि मुझे डर है कि कहीं वे तुम्हारा अपमान न करें जो मुझे गंवारा नहीं.’’
इस पर शांत ने कहा था कि मेरे प्यार के लिए वह यह रिस्क लेने को तैयार है. आखिर वही हुआ जिस का डर था. पापा ने उसे दरवाजे से ही यह कह कर लौटा दिया कि उस के आने की वजह उन्हें मालूम है, जो उन्हें हरगिज स्वीकार नहीं. अगले दिन शांत फिर मुझ से मिला. मैं ने ही उस से कहा था कि मेरे घर कल उस के साथ जो कुछ हुआ उस पर मैं शर्मिंदा हूं और उन की ओर से मुझे माफ कर दे. शांत ने बड़ी शांति से कहा कि इस में माफी मांगने का सवाल ही नहीं है. सब कुछ समय पर छोड़ दो. मातापिता के विरुद्ध जा कर इस समय कोर्ट मैरिज करने की स्थिति में हम नहीं हैं और न ही ऐसा करना उचित है.
मैं भी उस की बात से सहमत थी और फिर अपने घर चली आई. भविष्य को समय के हवाले कर हालात से समझौता कर लिया था.
रविवार के दिन संजय अपने मातापिता के साथ मुझे देखने आए. देखना क्या बस औपचारिकता थी. उन की तरफ से हां होनी ही थी. संजय की मां ने एक सोने की चेन मेरे गले में डाल कर रिश्ते पर मुहर लगा दी. 1 महीने के अंदर मेरी शादी भी हो गई.
संजय पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे और पटना में ही पोस्टेड थे. चंद हफ्तों बाद मेरा जन्मदिन था. संजय ने एक पार्टी रखी थी तो मुझ से भी निमंत्रण पाने वालों की लिस्ट दिखाते हुए पूछा था कि मैं किसी और को बुलाना चाहूंगी क्या? तब मैं ने प्रशांत का नाम जोड़ दिया और उस का पता और फोन नंबर भी लिख दिया था. शांत अब होस्टल में रहने लगा था. संजय के पूछने पर मैं ने बताया कि वह मेरे बचपन का दोस्त है.
संजय ने चुटकी लेते हुए पूछा था, ‘‘ओनली फ्रैंड या बौयफ्रैंड…’’
मैं ने उन की बातचीत काट कर कहा था, ‘‘प्लीज, दोबारा ऐसा न बोलें.’’
संजय ने कहा, ‘‘सौरी, मैं तो यों ही मजाक कर रहा था.’’
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खैर, संजय ने शानदार पार्टी रखी थी. शांत भी आया था. संजय और शांत दोनों काफी घुलमिल कर बातें कर रहे थे. बीचबीच में दोनों ठहाके भी लगा रहे थे. मुझे भी यह देख कर खुशी हो रही थी और मेरे मन में जो डर था कि शांत को ले कर संजय को कोई गलतफहमी तो नहीं, वह भी दूर हो चुकी थी.
आगे पढ़ें- शांत कोलकाता में अपना पीजी भी पूरा करने जा रहा था. इस बीच…
प्रशांत और मैं पटना शहर के एक ही महल्ले में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे. यह भी इत्तफाक ही था कि दोनों अपने मातापिता की एकलौती संतान थे. एक ही गली में थोड़ी दूरी के फासले पर दोनों के घर थे. प्रशांत के पिता रेलवे में गोदाम बाबू थे तो मेरे पिता म्यूनिसिपल कौरपोरेशन में ओवरसियर. दोनों अच्छेखासे खातेपीते परिवार से थे. पर एक फर्क था वह यह कि प्रशांत बंगाली बनिया था तो मैं हिंदी भाषी ब्राह्मण थी. पर प्रशांत के पूर्वज 50 सालों से यहीं बिहार में थे.
हम एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. प्रशांत मेधावी विद्यार्थी था तो मैं औसत छात्रा थी. हमारा स्कूल आनाजाना साथ ही होता था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे.
ऐसा नहीं था कि मेरी कक्षा में और लड़कियां नहीं थीं, पर मेरी गली से स्कूल में जाने वाली मैं अकेली लड़की थी. हमारा स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. करीब पौना किलोमीटर दूर था, इसलिए हम पैदल ही जाते थे. मैं प्रशांत को शांत बुलाया करती थी, क्योंकि वह और लड़कों से अलग शांत स्वभाव का था. प्रशांत मुझे तनुजा की जगह तनु ही पुकारता था. हमारी दोस्ती निश्छल थी. पर स्कूल के विद्यार्थी कभी छींटाकाशी भी कर देते थे. उन की कुछ बातें उस समय मेरी समझ से बाहर थीं तो कुछ को मैं नजरअंदाज कर देती थी.
जब मैं 9वीं कक्षा में पहुंची तो एक दिन मां ने मुझ से कहा कि तू अब प्रशांत के साथ स्कूल न जाया कर. तब मैं ने कहा कि इस में क्या बुराई है? वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहता है… पढ़ाई में मेरी मदद कर देता है.
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जब मैं 10वीं कक्षा में पहुंची थी तो एक दिन शांत ने पूछा था कि आगे मैं क्या पढ़ना चाहूंगी तब मैं ने कहा था कि इंजीनियरिंग करने का मन है, पर मेरी मैथ थोड़ी कमजोर है. उस दिन से शांत गणित के कठिन सवालों को समझने में मेरी सहायता कर देता था. कभीकभार नोट्स या किताबें लेनेदेने मेरे घर भी आ जाता, पर घर के अंदर नहीं आता था, बाहर से ही चला जाता था. मेरी मां को वह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं चाह कर भी अंदर आने को नहीं कहती थी. पर मुझे उस का साथ, उस का पास आना अच्छा लगता था. मन में एक अजीब सी खुशी होती थी.
देखते ही देखते बोर्ड की परीक्षा भी शुरू हो गई. 3 सप्ताह तक हम इस बीच काफी व्यस्त रहे. शांत की सहयाता से मेरा मैथ का पेपर भी अच्छा हो गया. अब स्कूल आनाजाना बंद था तो शांत से मिले भी काफी दिन हो गए थे. अब तो बोर्ड परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था.
परीक्षा परिणाम भी घोषित हो गया. मैं अपनी मार्कशीट लेने स्कूल पहुंची. वहां मुझे प्रशांत भी मिला. जैसे कि पूरे स्कूल को अपेक्षा थी शांत अपने स्कूल में अव्वल था. मैं ने उसे बधाई दी. मुझे भी अपने मार्क्स पर खुशी थी. आशा से अधिक ही मिले थे. जब प्रशांत ने भी मुझे बधाई दी तो मैं ने उस से कहा कि इस में तुम्हारा भी सहयोग है. तब शांत ने कहा था कि मुझे भी इसी स्कूल में प्लस टू में साइंस विषय मिल जाना चाहिए.
अब मैं 11वीं कक्षा में थी. मुझे भी साइंस विषय मिला पर मैं ने मैथ चुना था, जबकि शांत ने बायोलौजी ली थी. वह डाक्टर बनना चाहता था. अब मेरे और शांत के सैक्शन अलग थे. फिर भी ब्रेक में हम अकसर मिल लेते थे. कभीकभी प्रयोगशाला में भी मुलाकात हो जाती थी.
उस की बातों से अब मुझे ऐसा एहसास होता कि वह मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा है. इस बात से मैं भी मन से आनंदित थी पर दोनों में ही खुल कर मन की बात कहने का साहस न था. पर शांत कहा करता था कि हमारे विषय भिन्न हैं तो पता नहीं 12वीं कक्षा के बाद हम दोनों कहां होंगे. एक बार मुझे जो नोटबुक उस ने दिया था उस के पहले पन्ने पर लिखा था तनु ईलू. मैं ने भी उस के नीचे ‘शांत…’ लिख कर लौटा दिया था. देखते ही देखते हम दोनों की बोर्ड की परीक्षा खत्म हो गई. शांत ने मैडिकल का ऐंट्रेंस टैस्ट दिया और मैं ने इंजीनियरिंग का. 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था. प्रशांत फिर अव्वल आया था. मुझे भी अच्छे मार्क्स मिले थे. शांत मैडिकल के लिए कंपीट कर चुका था. मैं ने उसे बधाई दी, परंतु मैं इंजीनियरिंग में कंपीट नहीं कर सकी थी. शांत ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे अपने मनपसंद विषय में औनर्स ले कर गै्रजुएशन की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी. कुदरत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया. मुझे पटना साइंस कालेज में फिजिक्स औनर्स में दाखिला मिल गया और शांत ने पटना मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. दोनों कालेज में कुछ ही दूरी थी. यहां भी हम लौंग बे्रक में मिल कर साथ चाय पी लेते थे.
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मुझे याद है एक बार शांत ने कहा था, ‘‘तनु, चलो आज तुम्हें कौफ्टी पिलाता हूं.’’
मैं ने कहा, ‘‘शांत यह कौफ्टी क्या बला है? कभीकभी तुम्हारी बातें मुझे मिस्ट्री लगती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ईलू.’’
उस ने कहा, ‘‘तो तनु मैडम को अभी तक ईलू समझ नहीं आया…कोई बात नहीं…उस पर बाद में बात करते हैं. फिलहाल कौफ्टी से तुम्हारा परिचय करा दूं,’’ और मुझे मैडिकल कालेज के गेट के सामने फुटपाथ पर एक चाय वाले ढाबे पर ले गया. फिर 2 कौफ्टी बनाने को कहा. ढाबे वाले ने चंद मिनटों में 2 कप कौफ्टी बना दिए. सच, गजब का स्वाद था. दरअसल, यह चाय और कौफी का मिश्रण था, पर बनाने वाले के हाथ का जादू था कि ऐसा निराला स्वाद था.
कुछ दिनों तक शांत और मैं एक ही बस से कालेज आते थे. वह तो शांत का संरक्षण था जो बस की भीड़ में भी सहीसलामत आनाजाना संभव था वरना बस में पटना के मनचले लड़कों की कमी न थी. फिर भी उन के व्यंग्यबाण के शिकार हम दोनों थे पर हम नजरअंदाज करना ही बेहतर समझते थे. चूंकि बस में आनेजाने में काफी समय बरबाद होता था, इसलिए शांत के पिता ने उस के लिए एक स्कूटर ले दिया. अब तो दोनों के वारेन्यारे थे. रास्ते में पहले मेरा कालेज पड़ता था. शांत मुझे ड्रौप करते हुए अपने कालेज जाता था. हालांकि लौटने में कभी मुझे अकेले ही बस या रिकशा लेना पड़ता था. ऐसा उस दिन होता था जब मेरे या शांत की क्लास खत्म होने के बीच का अंतराल ज्यादा होता था.
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