अपना सा कोई: क्या बीमारी थी अंकित को?

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-3)

नीचे के फ्लोर पर ही उन्हें कमरा दिलवाया और दरवाजा खोलती हुई बोली,”आ जाओ साहब. आज की रात यही आशियाना है तुम्हारा.”

थैंक्स कह कर अंकित ने दरवाजा बंद करना चाहा तो वह दरवाजे के बीच में आ गई.

“इतनी जल्दी पीछा छुड़ाना चाहते हो हम से मेरी जान?” लड़की की आंखों में कुटिलता और वासना की लपटें जल उठीं.

वह जबरन अंकित से सटती हुई बोली,”दिल चीज क्या है आप हमारी जान लीजिए…. हुजूर जो चाहे ले लो यह कनीज अब तुम्हारी है.”

“यह क्या कह रही हो?” घबड़ाता हुआ अंकित बोला.

मयंक भी अचरज से उस लड़की की तरफ देख रहा था. लड़की अब बेशर्मी पर उतर आई थी.

बिस्तर पर बैठती हुई बोली,” तुम्हारी जिंदगी की यह रात रंगीन कर दूंगी. तुम बस इशारा करो.”

अब तक अंकित और मयंक अच्छी तरह समझ गए थे कि यह किस तरह की लड़की है और वे इस होटल में आ कर बुरी तरह फंस गए हैं. मयंक बाथरूम की तरफ चला गया और इधर लड़की अंकित पर डोरे डालती रही. अंकित घबरा कर पीछे हट रहा था और लड़की उस के करीब आने का प्रयास करती रही.

अंकित तैयार नहीं हुआ तो वह अपनी अदाएं बिखेरती हुई बोली,”किस बात से डर रहे हो हुजूर? इस उम्र में जवां, खूबसूरत शरीर की जरूरत नहीं या जेब ढीली करना नहीं चाहते हो? चलो ज्यादा नहीं केवल ₹1 लाख दे देना. उतनी रकम तो होगी ही न. भारत दर्शन पर निकले हो.”

अंकित ने उसे परे करते हुए कहा,”नहीं बहनजी हमारे पास रुपए नहीं हैं.”

“ओए लड़के, बहन किस को बोला? मैं बहन नहीं तेरी. चल ₹1 लाख नहीं है तो अपनी यह घड़ी, अपनी यह सोने की चेन और अंगूठी दे देना. चल नखरे मत कर. शुरू हो जा. जी ले अपनी जिंदगी मेरे साथ आज की रात.”

अंकित सिकुड़ कर बैठता हुआ बोला,” सुनो, आप गगलतफहमी में हो. मेरा दोस्त बीमार है. इलाज के लिए आया हूं मैं.”

“देख चिकने, बहाने मत बना. तू ऐसे तैयार नहीं होगा तो यह शालू तुझे लूट लेगी,” कहते हुए उस लड़की यानी शालू ने बंदूक निकाल ली.

तभी मयंक सामने आ गया और बोला,”हम तो कब के लुट गए हैं शालू, बस तुम्हारी नजरों में अपना चेहरा ही ढूंढ़ रहे हैं. ”

ये भी पढ़ें- संबंध: पति की बेवफाई के बावजूद ससुराल से नीरू ने क्यों रखा रिश्ता?

मयंक ने शालू के करीब आ कर कहा तो अंकित आंखें फाड़ कर उस की तरफ देखने लगा.

“देख शालू, मेरी जिंदगी के बस आखिरी 2-4 महीने ही बचे हैं. मैं अपनी जिंदगी के बचे हुए इन थोड़े से दिनों में जीवन की सारी खुशियां पा लेना चाहता हूं. मैं 35 साल का हूं पर तू यकीन नहीं करेगी, आज तक मेरी न कोई गर्लफ्रैंड है न बीवी. अतृप्त ही रह जाता अगर तू न मिलती. जल जाना चाहता हूं आज. आ जला दे मुझे…”

शालू शराबी निगाहों से उस की तरफ देखती हुई बोली,”क्या सचमुच तू मुझे अब पाना चाहता है?”

“हां पर एक धंधेवाली की तरह नहीं, एक प्रेमिका की तरह मेरी बांहों में समा जा. मरने से पहले एक बार अपने प्यार से तृप्त कर दे मुझे,” मयंक ने शालू को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर कर बाथरूम की तरफ ले गया.

बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा करता हुए बोला,”आज मैं भीग जाना चाहता हूं तुम्हारे साथ,” कहते हुए उस ने शौवर चला दिया और शालू पूरी तरह भीग गई. मयंक ने अचानक अपने होंठ उस के भीगे होंठों पर रख दिए. शालू की सांसें तेज हो गई थीं. वह पूरी तरह मयंक की गिरफ्त में थी.

मयंक ने उसी के दुपट्टे से उस की आंखें बांधते हुए कहा,” बस अब देखो मत. महसूस करो मुझे. मैं तुम्हारी रूह में उतर जाना चाहता हूं. ”

कहते हुए मयंक ने उस की बांहें थामी और उसे पीछे की तरफ करता हुआ खुद बाथरूम से बाहर आ गया और जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया. शालू को बात समझ में आई तो वह दरवाजा पीटने लगी. तब तक मयंक और अंकित तेजी से होटल से बाहर निकल आए. जल्दी से कार स्टार्ट की और रफूचक्कर हो गए. वहां से काफी दूर आने के बाद उन की जान में जान आई.

अंकित हंसता हुआ बोला,”यार तू इतना रोमांटिक है, यह तो मुझे पता ही नहीं था.”

“और तू इतना शरमीला है यह भी कहां पता था मुझे,” मयंक ने कहा तो दोनों दोस्त ठहाके लगा कर हंसने लगे. काफी आगे जा कर उन्हें एक सलीके का होटल मिला तो दोनों वहीं ठहर गए.

आगे भी पूरे सफर में तबीयत खराब होने के बावजूद मयंक अपने मन की करता रहा. वह जिंदगी की हर खुशी अपने दामन में भर लेना चाहता था. कभी पहाड़ों पर चढ़ने की जिद करता तो कभी सागर में गोते लगाना चाहता. कभी हैलीकोप्टर में बैठ कर दुनिया देखने की डिमांड करता तो कभी स्ट्रीट फूड्स खाने को मचल उठता. अंकित उसे ऐसे कामों के लिए मना करता रह जाता और अमन अपने मन की कर गुजरता.

इसी दौरान एक दिन अचानक उस की तबीयत काफी खराब हो गई. उस समय वे शिमला में थे. अंकित जल्दी से उसे पास के एक अस्पताल में ले कर भागा मगर उस अस्पताल में मयंक को दाखिल नहीं किया गया. उन लोगों ने उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया. अंकित मयंक को ले कर वहां पहुंचा लेकिन वहां भी मयंक को ट्रीटमैंट की फैसिलिटी नहीं मिल सकी. उस की तबीयत बिगड़ रही थी. अंकित घबराया हुआ था. अंत में थक कर अंकित शिमला के सब से बड़े अस्पताल में पहुंचा. वहां मयंक को ऐडमिट कर लिया गया. 4-5 दिन में उस की स्थिति बेहतर हो गई तो छठे दिन उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

अब अंकित ने उस ट्रिप को थोड़ी जल्दी में पूरा किया और मयंक को ले कर वापस घर आ गया. 2 महीने के इस सफर के बाद मयंक बहुत खुश था. वह अंदर से बेहतर महसूस कर रहा था.

मयंक की बहन प्रज्ञा इस बात से बहुत खुश रहती थी कि अंकित मयंक का इतना खयाल रखता है.

वह जब भी फोन करतीं तो अंकित दोस्त के इलाज और हालत के बारे में विस्तार से बताता. मयंक की गतिविधियों का लेखाजोखा देता. बातचीत करते समय दोनों दोस्तों में मीठी झड़पें होतीं तो प्रज्ञा के बच्चे तालियां बजाबजा कर हंसते. वे अंकित को यंगर अंकल कह कर पुकारते और उस के साथ खूब मस्ती भरी बातें करते.

कई बार मयंक कहता,”मेरा भाई भी होता न तो तुझ सा नहीं हो पाता. तू तो भाई से भी बढ़ कर है.”

एक दिन मयंक की बहन वीडियो काल पर थी. अंकित चाय बनाने गया हुआ था और मयंक बहन से अंकित की तारीफ कर रहा था.

प्रज्ञा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा,”मयंक मैं एक बात कहूं, तू मानेगा?

“हां दीदी बोलो न.”

“मैं चाहती हूं तू अपना घर अंकित के नाम कर दे. तेरे बाद मैं नहीं बल्कि तेरा भाई अंकित ही इस घर का मालिक होगा.”

इस बीच अंकित चाय ले कर कमरे में आ रहा था. उस ने प्रज्ञा की बात सुन ली थी.

ये भी पढ़ें- तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?

चाय रखते हुए उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा,” नहीं दीदी यह सही नहीं. आप ऐसी बातें नहीं कर सकतीं. जो घर मयंक का है वह कल को आप का या बच्चों का होगा मेरा नहीं. मैं किसी चीज की ख्वाहिश में मयंक का साथ नहीं दे रहा बल्कि मयंक के साथ मुझे यों ही दुनिया की खुशियां मिल रही हैं. ”

“देख मेरे भाई, मेरे अंकित, मैं ने मयंक से घर तेरे नाम करने की बात इसलिए नहीं की है ताकि तेरे एहसानों का कर्जा उतारा जा सके बल्कि इसलिए की है ताकि आने वाले समय में कभी मुझे भारत जाने की इच्छा हुई तो मुझे यह सोच कर मन न मसोसना पड़े कि वहां अब मेरा और कोई नहीं. मैं मयंक के बाद भी भारत घूमने आऊं तो पूरे अधिकार के साथ तेरे घर आ कर रुक सकूं. तू मेरी बात समझ रहा है न अंकित ? ”

“हां दीदी समझ गया. जैसी आप की इच्छा,” कहते हुए मयंक की आंखें भर आईं. आज उसे महसूस हो रहा था कि वाकई उस की कोई बड़ी बहन भी है जो उस पर अपना पूरा हक रखना चाहती है. भले ही वह दुनिया में अकेला है मगर अब उस का भी एक परिवार था जो उसे बहुत प्यार करता था.

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-1)

आज मयंक बहुत खुश था. उस ने पूरे 2 दिन की छुट्टी ली थी. एक दिन तो हमेशा की तरह आराम और काम में निकल गया. मगर आज की छुट्टी का इस्तेमाल उस ने आसपड़ोस वालों से जानपहचान करने में लगाने की योजना बनाई थी. दरअसल, इस मोहल्ले में आए उसे पूरे डेढ़ महीने हो चुके थे. इस दौरान उस की नाइट शिफ्ट चल रही थी. सुबह 5 बजे निकल कर रात में 11 बजे घर में घुसता था. ऐसे में उसे दूसरों से परिचय करने का वक्त ही नहीं मिलता था.

उस ने 200 गज पर 1980-90 के समय के बने मकान का तीसरा फ्लोर खरीदा था. 3 कमरे, घर के बाहर खूबसूरत सी बालकनी और आसपास हरियाली देख कर उस ने यह घर पसंद किया था.

सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आया और सामने के ग्राउंड में कुछ फिटनैस फ्रीक लोगों को मौर्निंग वाक और जौगिंग करता देख मुसकरा उठा. उस ने मन ही मन सोचा कि आज पूरे मोहल्ले का 1-2 चक्कर लगाने और ग्राउंड में जा कर ऐक्सरसाइज करने के बाद ही वह घर लौटेगा.

उस ने ट्रैकसूट पहना और नीचे आ गया. वाक और ऐक्सरसाइज के बाद दूध, अखबार और ब्रैड खरीद कर वापस लौटने लगा कि दूसरे फ्लोर की सीढ़ियों पर आ कर ठिठक गया. दरवाजा अंदर से बंद था और बाहर जमीन पर अखबार के साथ 2 पत्रिकाएं भी पड़ी हुई थीं. मयंक को शुरू से किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक रहा है. उस ने पलट कर देखा तो सरिता और गृहशोभा एकसाथ देख कर उस का मन खुश हो गया. उस ने मन ही मन सोचा कि काश आज फ्री टाइम में मुझे यह पत्रिकाएं पढ़ने को मिल जातीं.

वह अभी पत्रिकाएं पलट ही रहा था कि तभी कमरे के अंदर से मुकेश के गाने ‘मैं पल दो पल का राही हूं…’ की आवाज आने लगी. गाना और मुकेश की आवाज दोनों ही मयंक को पसंद था. अपने इस पड़ोसी से मिलने का उसे मन कर रहा था. तभी दरवाज़ा खुला और अंदर से उसी की उम्र का एक युवक बाहर निकला. सवालिया नजरों से उस ने पहले मयंक को और फिर उस के हाथ में पकड़ी पत्रिकाओं को देखा.

ये भी पढ़ें- महापुरुष: किस एहसान को उतारना चाहते थे प्रोफेसर गौतम

मयंक मुसकराता हुआ बोला,” हाय, मैं मयंक. आप का पड़ोसी. इधर से गुजर रहा था. पत्रिकाओं पर नजर गई तो देखने लगा. ये पत्रिकाएं शायद आप बराबर लेते हैं…”

“जी हां. मैं इन्हें शुरू से ही पढ़ता आ रहा हूं. आइए अंदर आ जाइए. मेरा नाम अंकित है.”

मयंक अंकित के साथ अंदर आता हुआ बोला,” आप का म्यूजिक टेस्ट भी बिलकुल मेरे जैसा है. मुकेश की आवाज का मैं भी दीवाना हूं.”

“गुड. फिर तो अच्छी जमेगी हमारी.”

इस के बाद 2-4 मिनट की औपचारिक बातचीत के बाद अंकित उठता हुआ बोला,”आई एम सौरी मयंक बट आई एम गेटिंग लेट.”

मयंक भी उठ गया और बोला,”आई कैन अंडरस्टैंड. जौब प्रेशर तो सब को रहता है. आप जाइए मैं चलता हूं.”

पत्रिकाएं अभी भी मयंक के हाथों में थीं. वह उन्हें टेबल पर रखने लगा तो अंकित मुसकराता हुआ बोला,”आप चाहें तो ये पत्रिकाएं ले जा सकते हैं. पढ़ कर लौटा दीजिएगा.”

“थैंक यू सो मच,” मयंक के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

यह मयंक और अंकित की पहली मुलाकात थी. इस के बाद भी उन दोनों के बीच हैलोहाय से ज्यादा बात नहीं हो पाई क्योंकि मयंक की शिफ्ट वाली जौब थी तो अंकित का टूरिंग वाला काम. दोनों व्यस्त थे.

उस दिन रविवार था. मयंक दूध और फल लेने के लिए नीचे उतर उतर रहा था कि उस ने बरामदे में अंकित को बेहोश पड़ा देखा. इंसानियत के नाते मयंक उसे तुरंत अस्पताल ले कर गया. वहां उसे ऐडमिट कर लिया गया. उसे माइनर हार्ट अटैक आया था. उस के घर में कोई और सदस्य था नहीं इसलिए पूरे दिन मयंक ही अस्पताल में उस के साथ रहा. अगले दिन भी उसे अस्पताल में ही रुकना पड़ा. तीसरे दिन सुबह अंकित को छुट्टी मिल गई. अब तक अंकित की तबियत संभल चुकी थी. उस ने दिल से मयंक का शुक्रिया अदा किया. दोनों में दोस्ती हो गई. घर आ कर भी मयंक ने अंकित को अकेला नहीं छोड़ा. उसे खाना बना कर खिलाने के बाद ही अपने औफिस गया.

रविवार को सुबहसुबह अंकित मयंक के घर आया. वह मयंक के लिए बिरयानी बना कर लाया था. दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया. बिरयानी बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उंगलियां चाटता हुआ मयंक बोला,”यार तुम खाना तो बहुत टेस्टी बनाता हो. भाभीजी तो खुश हो जाती होंगी. ”

“नहीं यार मेरी शादी कहां हुई है अभी? ”

“क्या बात है, यानी इस मामले में भी हम दोनों एकजैसे हैं. मैं ने भी अब तक शादी नहीं की. वैसे तुम ने शादी क्यों नहीं की?”

“यार मैं एक अनाथालय में पलाबढ़ा हूं. उन्होंने ने ही मुझे पढ़ाया है. बाद में एक सज्जन ने मुझे गोद ले लिया. वे भी दुनिया में अकेले थे. नौकरी मिलने के बाद मैं यहां चला आया. इस बीच उन का देहांत हो गया. अब मेरे जैसे अकेले लड़के को अपनी बेटी कौन देगा? उस पर टूरिंग वाली जौब है. मैं खुद भी अब शादी करने से हिचकने लगा हूं.”

“यार, काफी हद तक मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मेरे पिताजी उसी समय चल बसे थे जब मैं मुश्किल से 8-10 साल का था. मां ने मुझे पढ़ायालिखाया. मुझे नौकरी लग गई उस के कुछ दिनों के बाद ही मां बीमार पड़ गईं. इस बीच मेरी बड़ी बहन की शादी अमेरिका में हो गई इसलिए वह भी दूर चली गई. मैं कई सालों तक मां की देखभाल और सेवा में लगा रहा. उस दौरान शादी का खयाल ही नहीं आया. 2 साल पहले उन का निधन हो गया. अब मैं भी दुनिया में अकेला हूं. शादी करने का सोचता हूं मगर परिवार में कोई न होने की वजह से मेरी शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं.”

ये भी पढ़ें- कर्ण: रम्या को कहां ले गए खराब परवरिश के अंधेरे रास्ते?

“कोई नहीं यार. अब हम दोनों एकदूसरे का साथ देंगे.”

“बिलकुल…” अंकित ने कहा तो दोनों ठठा कर हंस पड़े.

इस के बाद तो अकसर ही दोनों एकसाथ खाना बना कर खाने लगे. कई दफा अंकित मयंक के लिए खाना बना कर रखता. कई बार मयंक बाजार से कुछ खाने की चीजें लाता तो दोनों मिल कर खाते. दोनों ने डुप्लीकेट चाबी भी ऐक्सचैंज कर ली थी ताकि वे एकदूसरे के पीछे में उन के फ्रिज में खाने की चीजें रख सकें या जरूरी होने पर एकदूसरे के काम भी आ सकें. अकसर रविवार को समय निकाल कर दोनों साथ घूमने भी जाने लगे.

आगे पढ़ें- एक दिन अंकित बाजार से घर लौटा कि तभी…

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-2)

एक दिन अंकित बाजार से घर लौटा कि तभी उस का मोबाइल बज उठा. एक अनजान नंबर से काल आ रही थी. उस ने फोन उठाया तो सामने से आवाज आई,”जी मैं अनुज प्रसाद बोल रहा हूं. कल रात मयंक भाई औफिस में अचानक बेहोश हो गए. नाईट शिफ्ट की वजह से औफिस में ज्यादा लोग नहीं थे. मैं ने और मेरे एक कुलीग ने मिल कर उन्हें किसी तरह अस्पताल पहुंचा दिया है. उन का कोई रिश्तेदार तो यहां इस शहर में है नहीं. वे अकसर आप के बारे में बताया करते थे. इसीलिए उन के मोबाइल से आप का नंबर ले कर मैं ने काल लगाया है. आप आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा.”

“ओके मैं अभी आता हूं. आप अस्पताल का नाम और वार्ड वगैरह मैसेज कर दीजिए. अंकित जल्दीजल्दी तैयार हो कर अस्पताल पहुंचा. मयंक बैड पर था. डाक्टर ने कई सारे टेस्ट करवाए थे.

टेस्ट रिपोर्ट्स ले कर अंकित डाक्टर से मिला.

डाक्टर ने रिपोर्ट देखते हुए परेशान स्वर में कहा,”सौरी मगर मुझे कहना पड़ेगा कि मिस्टर मयंक अब 5-6 महीने से ज्यादा के मेहमान नहीं हैं.”

“मगर उसे हुआ क्या है डाक्टर?” अंकित की आवाज कांप रही थी.

“बेटे उसे पेनक्रिएटिक कैंसर है. इस के बारे में जल्दी पता नहीं चलता क्योंकि शुरुआती फेज में कोई खास लक्षण नहीं होते. बाद में लक्षण पैदा होते हैं मगर फिर भी इन की पहचान मुश्किल होती है. क्योंकि लक्षण बहुत कौमन होते हैं. जैसे भूख कम लगना, वजन घटना आदि. मयंक को अब तक एहसास भी नहीं हुआ होगा कि उसे कोई गंभीर बीमारी है.”

“पर डाक्टर क्या अब कोई उपाय नहीं है? ”

“नहीं बेटा, अब सच में कोई उपाय नहीं. बस उसे खुश रखो. उसे जितना प्यार और खुशियां दे सको उतना दो और क्या कहूं मैं?”

“जी डाक्टर,”वह भीगी पलकों के साथ डाक्टर के केबिन से बाहर निकला. मयंक कहने को तो उस का कुछ नहीं लगता था पर जाने क्यों उसे लग रहा था जैसे मयंक ही तो उस का पूरा परिवार था. उस के साथ सब कुछ खत्म हो जाएगा. वह दोस्ती और प्यार, वह अपनापन, उस का साथ, हंसीमजाक और छोटीछोटी खुशियां. पिछले कुछ समय से उसे लगने लगा था जैसे मयंक ही उस की दुनिया है. पर अब वह भी जाने वाला था. अचानक गैलरी के फर्श पर बैठ कर अंकित फफकफफक कर रो पड़ा.

ये भी पढे़ं- तलाश: ज्योतिषी ने कैसे किया अंकित को अनु से दूर?

अपनी बीमारी की बात जब मयंक को पता चली तो वह खामोश रह गया. पलकों की कोर से आंसू बह निकले.

अंकित ने उसे संभालते हुए पूछा,”तुम्हारी बड़ी बहन है न. उन का नंबर दो. मैं बात करता हूं.”

नंबर ले कर जब अंकित ने फोन लगाया और सारी बात बताई तो वह भी परेशान स्वर में बोलीं,” मेरे इकलौते भाई को यह अचानक क्या हो गया. इतनी दूर से मैं उस के लिए कुछ कर भी नहीं सकती. मेरे पति खुद बहुत बीमार हैं. उन्हें छोड़ कर आ भी नहीं सकती.”

फिर बहन ने भाई से वीडियो काल पर बात की. उसे दिलासा दिया पर साथ नहीं दे पाई.

अब मयंक की देखभाल के लिए अंकित के सिवा और कोई नहीं था. अंकित ने तय किया कि चाहे जो हो जाए वह अपने दोस्त का अंत तक साथ देगा. उस ने एक बड़ा फैसला लिया और अपनी नौकरी छोड़ दी. मयंक पहले ही रिजाइन दे चुका था. अंकित पूरे समय मयंक की देखभाल करने लगा. मयंक कई बार उलटियां कर देता तब अंकित उस की सफाई करता. उस का मुंह धुलवाता. उस के लिए सादा खाना बनाता फिर प्यार से खिलाता. उसे हर तरह का आराम देता. समय पर दवाएं देता. तरहतरह की फलसब्जियां ले कर आता और उसे खिलाता. जितना होता उसे खुश रखने का प्रयास करता.

एक दिन मयंक ने उदास स्वर में कहा,”जानते हो अंकित मेरा एक सपना था जो अब पूरा नहीं हो पाएगा.”

“कैसा सपना? कहीं शादी तो नहीं करना चाहता था तू…” हंसते हुए अंकित ने कहा तो मयंक बोला,”नहीं यार मेरा सपना शादी नहीं बल्कि मैं तो दुनिया घूमना चाहता था. दुनिया नहीं तो कम से कम भारत दर्शन तो करना चाहता ही था. हमेशा सोचता था कि कभी औफिस से 1-2 महीने की छुट्टी ले कर पूरा भारत देखूंगा. पर देख ले अब तो दुनिया से ही छुट्टी मिलने वाली है.”

“यदि ऐसा है तो तेरा यह सपना मैं जरूर पूरा करूंगा.”

“पर कैसे? नहीं यार इस हाल में अब संभव नहीं.”

“ऐसा कुछ नहीं है. डाक्टर ने केवल खानपान में परहेज करने को कहा है मगर घूमने से नहीं रोका है. फिर भी मैं डाक्टर से एक बार बात कर लूंगा. पर तेरा यह सपना जरूर पूरा करूंगा. तेरी खुशी ही तेरी बीमारी का इलाज है और फिर कोई इच्छा अधूरी छोड़नी भी नहीं चाहिए. नईनई जगह घूमने से तेरा मन बहलेगा. आबोहवा बदलेगी तो तुझे अच्छा लगेगा. तेरी तबीयत में भी सुधार आएगा. मैं आज ही प्लान बनाता हूं कि कैसे जाना है और कब जाना है.”

“सच यार तू मेरा यह सपना पूरा करेगा? तू मेरे भाई से भी बढ़ कर है. काश, हम पहले मिले होते. अब तो समय ही बहुत कम है मेरे पास.”

“कम है तो क्या हुआ? जितना समय है हम साथ घूमेंगे. तेरी मुसकान बनी रहेगी…” कहते हुए मयंक ने अंकित को भींच कर सीने से लगा लिया.

जल्द ही अंकित ने पुरानी कार खरीदी और अपने दोस्त को ले कर भारत दर्शन पर निकल पड़ा. उस ने मयंक की दवाएं और खानेपीने की जरूरी चीजें भी रख ली थीं. बीमारी की हालत में भी मयंक ने यह ट्रिप बहुत ऐंजौय किया. अंकित ने हर कदम पर उस का साथ दिया. उस के खानेपीने और दवाओं का ध्यान रखा. कोशिश करता कि मयंक के लिए साफसुथरा और सादा खाना मिल जाए. समय पर दवाएं खिलाता.

सफर के दौरान एक दिन वे मुंबई से पुणे के रास्ते में थे. पुणे के आउटर ऐरिया तक पहुंचतेपहुंचते ही शाम हो गई. दोनों ने तय किया कि रात यहीं बिताई जाए. उन्होंने ऐसी जगह कार रोकी जहां थोड़ी आबादी दिख रही थी.

अभी वे होटल, ढाबा जैसी कोई चीज ढूंढ़ ही रहे थे कि एक लड़की उन के करीब आई और बोली,”ठिकाना ढूंढ़ रहे हो क्या मुसाफिर?”

ये भी पढ़ें- गहराइयों: विवान को शैली की कौनसी बात चुभ गई?

“हां जी. हमें ठहरने के लिए जगह चाहिए.”

“नो प्रौब्लम. पास में ही मेरे चाचू का होटल है. चलो आप को वहां ले चलती हूं,” कह कर लड़की उन्हें एक छोटे से होटल में ले आई.

आगे पढ़ें- नीचे के फ्लोर पर ही उन्हें…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें