Film Review Bawaal: न कहानी में जान न अभिनय में कमाल

रेटिंग : 5 में से आधा स्टार
निर्माता : साजिद नाडियादवाला व अश्विनी अय्यर तिवारी
लेखक : अश्विनी अय्यर तिवारी
निर्देशक : नितेश तिवारी
कलाकार : वरूण धवन, जाह्नवी कपूर, मनोज पाहवा, गुंजन जोशी, अंजुमन सक्सैना, मुकेश तिवारी, प्रतीक व अन्य.
अवधि : 2 घंटे 19 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म : अमेजन प्राइम

बौलीवुड की पतिपत्नी जोड़ी यानी कि ‘दंगल’ फेम निर्देशक नितेश तिवारी और ‘पंगा’ फेम निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी इस बार फिल्म ‘बवाल’ ले कर आए हैं. इस फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही इस के निर्माण से भी अश्विनी अय्यर तिवारी जुड़े हुए हैं जबकि फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी हैं.

फिल्म ‘बवाल’ देख कर यकीन ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी ने ही आमिर खान वाली फिल्म ‘दंगल’ के अलावा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘छिछोरे’ का निर्देशन किया था. इतना ही नहीं फिल्मकार ने इस फिल्म में मिरगी की बीमारी के प्रति जो अमानवीय रूख पेश किया है, उस के लिए तो उन्हें माफ भी नहीं किया जा सकता. इस के अलावा कहानी का मूल प्लौट एक सभ्य औरत द्वारा घमंडी व गंवार पुरूष का हृदय परिवर्तन करने की है, जो सैकड़ाें फिल्मों में दोहराई जा चुकी है.

कहानी : कहानी के केंद्र में लखनऊ का रहने वाला अजय उर्फ अज्जू (वरुण धवन) और निशा (जाह्नवी कपूर) हैं. अज्जू हमेशा अपनी छवि को चमकाने में लगा रहता है. अज्जू एक हाईस्कूल में इतिहास का शिक्षक है, पर वह खुद अज्ञानी है. पढ़ाना आता नहीं. अज्जू का एक ही काम है कि अपना और अपने आसपास के लोगों का समय बरबाद किया जाए. अज्जू की हरकतों से बैंक में नौकरी करने वाले उस के पिता (मनोज पाहवा) और घरेलू महिला मां (अंजुमन सक्सैना) बहुत परेशान रहते हैं.

अज्जू दिनभर अपने सब से अच्छे दोस्त विनय (प्रतीक पचोरी) के साथ अपने पिता की कमाई को उड़ाते रहता है. पर अज्जू की शादी एक उच्च शिक्षित, प्यारी व समझदार निशा (जाह्नवी कपूर) से हो जाती है, जो मिरगी की बीमारी से ग्रस्त है.

शादी के बाद निस्संदेह दोनों की जिंदगी बदल जाती है. सबकुछ जानते हुए भी अज्जू, निशा से दूरी बना लेता है. इस के बाद कहानी आगे बढ़ती है.

एक दिन स्कूल में विधायक (मुकेश तिवारी) का बेटा अज्जू से इतिहास का एक सवाल पूछ देता है, जिस का जवाब अज्जू को पता नहीं रहता। इसी बात पर गुस्से में अज्जू उस लड़के को थप्पड़ मार देता है. बस यहीं बवाल हो जाता है. अज्जू को सस्पैंड कर दिया जाता है. उस के खिलाफ जांच शुरू होती है. खुद की छवि को सुधारने के मकसद से अज्जू यूरोप जा कर जूम पर बच्चों को द्वितीय विश्वयुद्ध का इतिहास पढ़ाने की योजना बनाता है. अपने पिता से ₹10 लाख यह कह कर वसूलता है कि वह निशा के साथ संबंध सुधारने के लिए उस के साथ यूरोप जा रहा है.

अजय व निशा यूरोप में पैरिस, ऐम्स्टर्डम, बर्लिन वगैरह की यात्रा करते हैं. इस दौरान यूरोप में निशा व अजय के साथ कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. उस के बाद अज्जू का हृदय परिवर्तन हो जाता है.

लेखन व निर्देशन : फिल्म ‘बवाल’ देख कर इस के लेखक व निर्देशक दोनों की सोच, दिमागी समझ व उन की प्रतिभा पर तरस आता है. फिल्म में जिस तरह के दृश्य हैं, उन से एक बात समझ में आती है कि यह सारा मसला ‘सब्सिडी’ का है अन्यथा प्रेम, 2 इंसानों के रिश्तों, मिरगी की बीमारी के मर्म को समझने के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के यादगार स्थलों की यात्रा का कोई संबंध ही नहीं बनता. फिल्म में हिटलर और भयावहता के साथ ही गैस चैंबरों और उन में फेंके गए यहूदियों के खात्मे की दास्तान है, जिसे बच्चों ने आज तक पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ा. यह फिल्म लेखक व निर्देशक की विकृत मानसिकता का ही परिचायक है.

फिल्मकार ने मिरगी के प्रति अजय का जो रवैया दिखाया है, उसे अमानवीय ही कहा जाएगा क्याेंकि यह बड़ी समस्या नहीं है. सभी जानते हैं कि विश्व में करोड़ों लोग मिरगी यानी कि दौरा पड़ने की बीमारी वाले इंसानों के साथ अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं. नवविवाहितों के बीच मिरगी के कारण दरार पैदा करने के चित्रण को किसी भी स्तर पर संवेदनशील नहीं कहा जा सकता.

सभी जानते हैं कि मिरगी का दौरा कभीकभार महज 1 मिनट के लिए ही पड़ता है. फिल्मकार ने यूरोप यात्रा के दौरान अजय व निशा द्वारा एकदूसरे को समझने के दृश्यों को चित्रित करने की बजाय द्वितीय विश्व युद्ध के मैमोरियल पर ही ध्यान केंद्रित रखा, शायद ऐसा उन्हें सब्सिडी के कारण करना पड़ा होगा. हम इस से पहले भी देख चुके हैं कि सब्सिडी ले कर बनाई गई फिल्म में उस राज्य के पर्यटन स्थलों को समाहित करने के चक्कर में कहानी को चौपट किया जाता रहा है.

फिल्मकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध की विनाशलीला के साथ ही नाजी विरोध को रेखंकित किया है, मगर इस से अजय व निशा के रिश्तों को जोड़ना अपरिपक्व दिमागी उपज ही है. इतना ही नहीं, अजय के यूरोप जाने और द्वितीय विश्वयुद्ध के पाठों के लिए वीडियो शूट करने का पूरा विचार सतही है. लेखक व निर्देशक दोनों की कल्पनाएं कमाल की हैं जब अजय व निशा गैस चेंबर में जाते हैं, तब ब्लैक ऐंड व्हाइट दृश्य हैं. यहां अजय खुद को द्वितीय विश्व युद्ध के समय गैस चैंबर होने का सपना देखता है और तभी निशा को मिरगी का दौरा पड़ता है और अजय का हृदय परिवर्तन हो जाता है. वाह, क्या कहना लेखक व निर्देशक दोनों की सोच का.

लेखक ही नहीं निर्देशक के ज्ञान का सब से बड़ा उदाहरण यही है कि इन्हें तो भारत के बारे में कुछ पता नहीं. इन्हें यह भी नहीं पता कि नर्मदा नदी मध्य प्रदेश से गुजरात तक बहती है, नकि लखनऊ में. लखनऊ में तो गोमती नदी है. पर यह तो यूरोप व द्वितीय विश्वयुद्ध पढ़ा रहे हैं. इंसानी रिश्तो में मिठास लाने के कई तरीके हो सकते हैं, जिन की तरफ फिल्मकार व लेखक ने ध्यान नहीं दिया. फिल्मकार ने यूरोप यात्रा के लिए रवाना होते समय हवाईजहाज के अंदर एक गुजराती परिवार को पेश कर कुछ मनोरंजक दृश्य रचे हैं.

इस फिल्म की कहानी को परिवार के साथ जोड़ कर कहानी व रिश्तों को सुधारने की दिशा में रोचकता लाई जा सकती थी. गुजराती परिवार महज चंद मिनटों के लिए हंसी के क्षण पैदा करने के लिए नहीं होना चाहिए था.

अभिनय : अजय उर्फ अज्जू के किरदार में वरूण धवन और निशा के किरदार में जाह्नवी कपूर का अभिनय घटिया है और यह फिल्म उन के कैरियर को विनाश की ओर ही ले जाती है. इस फिल्म को देख कर एहसास होता है कि वरूण धवन और जाह्नवी कपूर को अभिनय की एबीसीडी नए सिरे से सीखने की जरूरत है. यदि वे ऐसा नहीं करते तो इन के कैरियर पर पूर्ण विराम लगते देर नहीं लगेगी. गुंजन जोशी, मनोज पाहवा और अंजुमन सक्सैना जरूर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. विधायक के छोटे किरदार में मुकेश तिवारी अपनी छाप छोड़ जाते हैं, मगर उन के जैसे सशक्त अभिनेता को इस तरह की फिल्मों से दूरी बना कर ही रखना चाहिए.

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