Hindi Kahaniyan : सुनंदा ने ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद पर एक नजर डाली, खुश हुई. लगा वह अच्छी लग रही है, अपने शोल्डर कट बालों पर कंघी फेरी, मनपसंद परफ्यूम लगाया, टाइम देखा, 5 बज रहे थे. किट्टी पार्टी में जाने का टाइम हो रहा था. अपने बैग में अपना फोन, घर की चाबी रखी, अपने नए कुरते और चूड़ीदार पर फिर एक नजर डाली.
यह ड्रैस उस ने पिछले हफ्ते ही खरीदी थी अपने लिए. आज उस का जन्मदिन है. उस ने सोचा किट्टी पार्टी में जाते हुए एक केक ले कर जाएगी और किट्टी की बाकी सदस्याओं के साथ काटेगी और भरपूर ऐंजौय करेगी.
वह अपनी किट्टी की सब से उम्रदराज सदस्या है. खुद ही उसे हंसी आ गई, उम्रदराज क्यों, 50 की ही तो हो रही है आज, यह इतनी भी उम्र नहीं है कि वह अपने को उम्रदराज सम झे. वह तो अपनेआप को बहुत यंग और ऊर्जावान महसूस करती है. उम्र से क्या होता है. चलो, कहीं देर न हो जाए. उस ने जैसे ही पर्स उठाया, डोरबैल बजी.
‘इस वक्त कौन है, सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला, तो सामने दिल धक से रह गया. सामने बूआसास सुभद्रा, जेठानी रमा और उस की अपनी बड़ी बहन अलका खड़ी थी.
सुनंदा के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा, तो सुभद्रा ने ही कहा, ‘‘अरे, मुंह क्या देख रही है, अंदर आने के लिए नहीं कहेगी?’’
‘‘हांहां, अरे, आइए न आप लोग,’’ कहते हुए उस ने सुभद्रा के पैर छुए. तीनों ने उसे जन्मदिन बिश करते हुए गिफ्ट्स दिए.
रमा बोली, ‘‘आज बहुत अच्छे दिन तुम्हारा बर्थडे पड़ा है, सुबह ही देवीमंदिर में बाबाजी आए हैं. पहले उन का प्रवचन होगा फिर कीर्तन, चलो, हम लोग तुम्हें लेने आए हैं.’’
सुनंदा हकलाई, ‘‘मैं कीर्तन?’’
सुभद्रा ने कहा, ‘‘चल, पता नहीं सारा दिन क्या करती रहती है, कुछ धर्म में मन लगा, पुण्य मिलेगा, बाबाजी इस बार बहुत दिनों में आए हैं. अगली बार पता नहीं कब आएं.’’
सुनंदा का मूड खराब हो गया. मन ही मन बाबाजी को कोसा, आज ही क्यों आ गए, उस की किट्टी है, लेकिन ये तीनों तो यह सुन कर ही बिदक जाएंगी कि वह कीर्तन छोड़ कर किट्टी में जाना चाहती है. वैसे ही ये तीनों उस के रंगढंग देख कर परेशानी रहती हैं.
फिर अलका ने उसे तैयार देख कर पूछा, ‘‘कहीं जा रही थी क्या?’’
‘‘हां दीदी, कुछ जरूरी काम था.’’
‘‘बाद में करती रहना अपना जरूरी काम, बाबाजी के प्रवचन से ज्यादा जरूरी क्या है? इस समय. जल्दी चलो, नहीं तो जगह नहीं मिलेगी.’’
‘तो न मिले. ऐसीतैसी में गया प्रवचन और कीर्तन, उसे नहीं जाना है,’ सुनंदा ने मन ही मन सोचा. तीनों को प्रत्यक्षत: कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी वह, क्या करे यही सोच रही थी कि सुभद्रा ने अधिकारपूर्वक हठीले स्वर में कहा, ‘‘अब चल.’’
सुनंदा ने भरे मन से कहा, ‘‘ठीक है, कार निकाल लेती हूं.’’
सुभद्रा ने कहा, ‘‘हां, गाड़ी से जाना ठीक रहेगा, देर तो कर ही दी तूने.’’
सुनंदा ने कार निकाली, तीनों बैठ गईं. देवीमंदिर पहुंच कर देखा, खूब भीड़भाड़ थी, पुरुष बहुत कम थे जो थे बुजुर्ग ही थे, महिलाओं का एक मेला सा था, सुनंदा मन ही मन छटपटा रही थी, चुपचाप तीनों के साथ जा कर फर्श पर बिछी एक दरी पर एक कोने में बैठ गई. बाबाजी पधारे, सारी महिलाओं ने बाबाजी की जय का नारा लगाया, प्रवचन शुरू हो गया.
सुनंदा परेशान थी, उस का कहां मन लगता है इन प्रवचनों में, कीर्तनों में, किसी बाबाजी में उस की कोई श्रद्धा नहीं है. उसे सब ढोंगी, पाखंडी लगते हैं. प्रवचन के एक भी शब्द की तरफ उस का ध्यान नहीं था. उसे तो यही खयाल आ रहा था कि किट्टी शुरू हो गई होगी. उफ, सब उस का इंतजार कर रहे होंगे. आज वह अपने बर्थडे पर एंजौय करना चाहती थी और यहां यह बाबाजी का उबाऊ प्रवचन, फिर कीर्तन.
हाय, अब सब हाउजी खेल रहे होंगे, कितना मजा आता है उसे इस खेल में. उस के उत्साह का सब कितना मजे लेती हैं, अब स्नैक्स का टाइम हो रहा होगा, नेहा के घर है आज पार्टी, हम सब में सब से कम उम्र की है, लेकिन कितना हिलमिल गई है सब से. आज उस ने मालपुए बनाए होंगे सब की फरमाइश पर. कितने अच्छे बनाती है. सुनंदा के मुंह में पानी आ गया. बाबाजी का ज्ञान चल रहा था.
‘यह दुनिया क्या है, माया है,’ सुनंदा ने मन ही मन तुक बनाई.
‘तू आज मेरे बर्थडे पर ही क्यों आया है,’ अपनी तुकबंदी पर वह खुद ही हंस दी.
उसे मुकराता देख अलका ने उसे कुहनी मारी, ‘शांति से बैठ.’
‘कैसे निकले यहां से. अभी कीर्तन शुरू हो जाएगा,’ यह सोच सब की नजर बचा कर उस ने अपने बैग में हाथ डाल कर मोबाइल पर सुनीता को मिस काल दी. उसे पता था वह तुरंत वापस फोन करेगी. सुनीता उस की सब से करीबी सहेली थी, यह किट्टी इन दोनों ने ही शुरू की थी. छांटछांट कर एक से एक पढ़ीलिखी, नम्र, शिष्ट महिलाओं का ग्रु्रप बनाया था.
सुनीता का फोन आ गया, ‘‘क्या हुआ सुनंदा? तुम कहां हो?’’
सुनंदा ने ऐक्टिंग करते हुए सुभद्रा को सुनाते हुए कहा, ‘‘क्या, कब? अच्छा, मैं अभी पहुंच रही हूं.’’
रमा और अलका ने उसे घबराए हुए देखा, धीरे से पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ सुनंदा ने घबराते हुए कहा, ‘‘मैं जा रही हूं, एक परिचित का ऐक्सीडैंट हो गया है, जाना जरूरी है.’’
सुभद्रा ने आंखें तरेंरी, ‘‘तू फोन बंद नहीं रख सकती थी क्या. बाद में चली जाना, तू जा कर क्या कर लेगी, बाबाजी…’’
सुनंदा ने बात पूरी ही नहीं होने दी, उठ खड़ी हुई, ‘बाद में मिलते हैं.’ सुनंदा जाने लगी, कितनी ही औरतों ने उसे घूरा, वह सब को अनदेखा कर बाहर निकल गई, चैन की सांस ली. केक की प्रसिद्ध शौप पर जा कर केक खरीद और पहुंच गई नेहा के घर. सब उसे देख कर खुश हो गईं.
नेहा ने कहा, ‘‘सुनंदाजी, इतना लेट?’’
सुनीता ने कहा, ‘‘यह तुम फोन पर कब, क्या, क्यों कर रही थीं?’’
सुनंदा ने हंसते हुए सब को पूरी कहानी सुनाई, सब बहुत हंसीं.
अनामिका बोली, ‘‘सुनंदाजी, आप का जवाब नहीं. आप हमारे सामने जिंदादिली का सजीव उदाहरण हैं.’’
‘‘तो और क्या, मैं आज की शाम किसी बाबाजी के लिए तो खराब नहीं कर सकती थी.’’
सब ने पूछा, ‘‘क्यों? आज कुछ खास है क्या?’’
सुनंदा ने केक टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘हां भई, आज मेरा बर्थडे है और मैं यह शाम तुम लोगों के साथ बिताना चाहती थी.’’
सब सुनंदा को गरमजोशी से विश करते हुए उस के गले लग गईं. सुनंदा की आंखें भर आईं. बोली, ‘‘तुम लोग ही तो अब मेरा परिवार हो जिन के साथ समय बिता कर मैं खुश हो जाती हूं.’’
बहुत अच्छा समय बिता कर सुनंदा खुशीखुशी घर लौट आई. घर आ कर अपने बैडरूम में थोड़ी देर के लिए लेट गई, वह अकेली रहती थी, वह 30 साल की थी जब उस के पति नीलेश की कैंसर से मृत्यु हो गई थी. तब उन का इकलौता बेटा गौरव केवल 7 साल का था, सुनंदा के ऊपर जैसे पहाड़ टूट पड़ा था.
नीलेश की असामयिक मौत पर वह परकटे पंछी की तरह मर्मांतक पीड़ा के अगाध सागर में डूब गई थी पर गौरव को देख कर उस ने खुद को संभाला था. नीलेश इंजीनियर थे, उन की सब जमापूंजी सुनंदा को हस्तांतरित हो गई थी, जिसे सुनंदा ने बहुत सोचसम झ कर गौरव की पढ़ाई में लगाया था, घर अपना था ही.
आज गौरव भी सौफ्टवेयर इंजीनियर है, जो 1 साल के लिए अपनी पत्नी कविता के साथ अपनी कंपनी की तरफ से किसी प्रोजैक्ट के लिए आस्ट्रेलिया गया हुआ था.
रोज रोरो कर जीने के बजाए सुनंदा ने जीवन को हंसीखुशी से काटना चाहा. गौरव उस के बैंक अकाउंट में बारबार मना करने पर भी उस की जरूरत से ज्यादा पैसे जमा करवाता रहता था. वे मांबेटे कम, दोस्त ज्यादा थे. गौरव एक आदर्श बेटा सिद्ध हुआ था. ऐसे ही अच्छे स्वभाव की कविता भी थी. गौरव की जिद पर वह ड्राइविंग, कंप्यूटर सब सीख चुकी थी.
एक मेड आ कर सुनंदा के सारे घर के काम कर जाती थी. गौरव और कविता से उस की रोज बात होती थी. कुल मिला कर अपने जीवन से सुनंदा पूर्णत: संतुष्ट थी.
नीलेश अपने मातापिता के छोटे बेटे थे. नीलेश की मृत्यु का उन्हें ऐसा धक्का लगा कि 1 साल के अंदर दोनों का हार्टफेल हो गया था. बड़ा बेटा देवेश उस की पत्नी रमा और उन के 2 बच्चे सार्थक और तन्वी, जिन्हें अपनी चाची सुनंदा से बहुत लगाव था. वे अपनी चाची से मिलने आते रहते थे.
अलका का भी कुछ ही दिन पहले पूना ट्रांसफर हुआ था. इन सब का साथ सुनंदा को अच्छा लगता था, लेकिन वह तब परेशान हो जाती जब ये तीनों उसे किसी न किसी कीर्तन या सत्संग में ले जाने के लिए तैयार रहतीं और उस की इन सब चीजों में कोई रुचि नहीं थी.
वह इन लोगों का अपमान भी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि नीलेश की मृत्यु के समय इन सब ने उसे बहुत भावनात्मक सहारा दिया था, जिसे वह भूली नहीं थी.
सुनंदा लेटेलेटे सोच रही थी कि वह अपना जीवन पुण्य कमाने के लिए किसी धार्मिक आयोजन में नहीं बिता सकती, वह वही करेगी जो उसे अच्छा लगता है, जिस से उस के मन को खुशी मिलती है.
नीलेश भी तो अंतिम समय तक उस से यही कहते रहे कि वह हमेशा खुश रहे, अपनी जिंदादिली कभी नहीं छोड़े. वह थी भी तो शुरू से ऐसी ही हंसमुख, मिलनसार, बेहद सुंदर, अपने कोमल व्यवहार से सब के दिल में जगह बनाने वाली.
सुभद्रा बूआ का तो उसे सम झ आता था. पुराने जमाने की बुजुर्ग महिला थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी. अपने बहूबेटे के साथ रहती थीं. उन की बहू को उन की कितनी भी जरूरत हो वे हमेशा किसी न किसी प्रवचन या सत्संग में अपना समय बिताती थी.
सुनंदा से वे कभीकभी नाराज हो जाती थीं. कहतीं, ‘‘सुनंदा, क्यों अपना परलोक खराब कर रही हो? नीलेश तो चला गया, अब तुम्हें धर्मकर्म में ही मन लगाना चाहिए. मन शांत रहेगा.’’
सुनंदा कभी तो उन की उम्र और रिश्ते का लिहाज कर के चुप रह जाती. कभी प्यार से कहती, ‘‘बूआजी, मन की शांति के लिए मु झे किसी के प्रवचन की जरूरत नहीं है.’’
सुनंदा को रमा और अलका पर मन ही मन गुस्सा आता, इस जमाने की पढ़ीलिखी औरतें हो कर कैसे अपना समय किसी बाबाजी के लिए खराब करती हैं, लेकिन वह यही कोशिश करती ये तीनों उसे न ले जाने पाएं.
अगले दिन वह नाश्ता कर के फ्री हुई. रोज की तरह उस ने वेबकैम सैट किया और गौरव और कविता से बात करने लगी. आस्ट्रेलिया के समय के अनुसार गौरव लंच करने इस समय घर आता था तो सुनंदा से जरूर बात करता था. दोनों से बात कर के सुनंदा का मन पूरा दिन खुश रहता था.
गौरव ने पूछा, ‘‘मां, कैसा रहा कल बर्थडे?’’
सुनंदा ने प्रवचन और किट्टी का किस्सा सुनाया, तो गौरव बहुत हंसा. बोला, ‘‘मां, आप का जवाब नहीं. आप हमेशा ऐसी रहना.’’
और थोड़ीबहुत बातचीत के बाद सुनंदा रोज के काम निबटाने लगी. शारीरिक रूप से वह बहुत चुस्तदुरुस्त, स्मार्ट थी, किसी को अंदाजा नहीं होता था कि वह 50 की हो गई है. वह एमए, बीएड थी.
उस ने काफी साल तक एक स्कूल में अध्यापिका के पद पर काम किया था, लेकिन गौरव ने अपनी नौकरी लगते ही बहुत जिद कर के मां से रिजाइन करवा दिया था. अब वह मनचाहा जीवन जी रही थी और खुश थी. पासपड़ोस की किसी भी स्त्री को उस की जरूरत होती, वह हमेशा हाजिर रहती. पूरी कालौनी में उस ने अपने मधुर व्यवहार और जिंदादिली से अपनी विशेष जगह बनाई हुई थी.
बस कभीकभी पड़ोस की कुछ महिलाएं उस के धार्मिक आयोजनों से दूर भागने पर मुंह बनाती थीं, जिसे वह हंस कर नजरअंदाज कर देती थी. उस का मानना था कि यह जीवन उस का है और वह इसे अपनी इच्छा से जीएगी, हमेशा खुश रहना उसे अच्छा लगता था.
एक दिन नेहा शाम को आई. कहने लगी, ‘‘संडे को हमारी पहली मैरिज ऐनिवर्सरी की ‘वैस्ट इन’ में पार्टी है, आप को जरूर आना है.’’
सुनंदा ने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार किया. थोड़ी देर इधरउधर की गप्पें मार कर नेहा चली गई. संडे को पूरा गु्रप ‘वैस्ट इन’ पहुंचा. पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी. लौन में चारों ओर पेड़ों और सलीके से कटी झाडि़यों पर टंगी छोटेछोटे बल्बों की झालरें बहुत सुंदर लग रही थी.
जुलाई का महीना था, बारिश की वजह से प्रोग्राम अंदर हौल में ही था, जो बहुत अच्छी तरह सजा हुआ था. सब ने नेहा और उस के पति विपिन को बहुत सी शुभकामनाएं और गिफ्ट्स दिए. सब से मिलनेमिलाने का सिलसिला चलता रहा.
नेहा ने सब को अपने मातापिता, सासससुर से मिलवाया और अंत में एक सौम्य, स्मार्ट और आकर्षक व्यक्ति को अपने साथ ले कर आई और सब से मिलवाने लगी, ‘‘ये मेरे देव मामा हैं, अभी इन का ट्रांसफर पूना में ही हो गया है. बाकी सब तो कल ही चले जाएंगे, ये हमारे साथ ही रहेंगे.’’
देव ने सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की, अपनी आकर्षक मुसकराहट और बातों से उन्होंने सब को प्रभावित किया.
डिनर हो गया. सुनंदा घर जाना चाहती थी. 12 बज रहे थे. किसी को घर जाने की जल्दी नहीं थी. सुनंदा ने नेहा और विपिन से विदा ली और बाहर निकल आई. थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि अचानक उस की कार रुक गई. बारिश बहुत तेज थी. उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कार स्टार्ट नहीं हुई. वह परेशान हो गई. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. कुछ सम झ नहीं आया तो उस ने नेहा को अपनी परेशानी बताई.
नेहा ने फौरन कहा, ‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी मामा को भेजती हूं.’’
‘‘अरे, नहीं, उन्हें क्यों तकलीफ देती हो?’’
‘‘कोई तकलीफ नहीं होगी उन्हें. बाकी सब डांस फ्लोर पर हैं. मामा ही अकेले बैठे है. वे आ जाएंगे. मैं आप का नंबर भी उन्हें दे देती हूं.’’
थोड़ी देर में देव पहुंच गए, उन्होंने फोन पर कहा, ‘‘आप अपनी गाड़ी वहीं लौक कर के मेरी गाड़ी में आ जाइए. बारिश बहुत तेज है. ध्यान से आइएगा. मैं सामने खड़ी ब्लैक गाड़ी में हूं.’’
सुनंदा ने गाड़ी में हमेशा रहने वाला छाता उठाया, गाड़ी लौक की और फिर देव की गाड़ी में बैठते ही बोली, ‘‘सौरी, मेरी वजह से आप को परेशानी उठानी पड़ी.’’
देव हंसते हुए बोले, ‘‘मैं तो वहां अकेले बेकार ही बैठा था. मु झे बरिश में ड्राइविंग करना अच्छा लगता है.’’
सुनंदा उन्हें अपने घर का रास्ता बताती रही. घर आ गया, तो देव ने कहा, ‘‘अगर आप चाहें तो अपनी कार की चाबी मु झे दे दें, मैं ठीक करवा दूंगा या घर पर कोई है तो ठीक है.’’
‘‘ओह, थैंक्स अ लौट,’’ कहते हुए सुनंदा ने कार की चाबी देव को दे दी.
देव ‘गुडनाइट’ बोल कर चले गए.
अगले दिन शाम को नेहा देव के साथ सुनंदा से मिलने चली आई. सुनंदा दोनों को देख कर खुश हुई. नेहा देव को सुनंदा के बारे में सब बता चुकी थी. बातचीत के साथ चायनाश्ता होता रहा, रात की पार्टी की बातें होती रहीं.
नेहा ने कहा, ‘‘कितना मना कर रहे हैं हम लोग मामा को अलग फ्लैट ले कर शिफ्ट करने से, लेकिन मामा तो हैं ही शुरू से जिद्दी.’’
देव मुसकराते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को प्राइवेसी चाहिए या नहीं?’’
सुनंदा हंस पड़ी, तो देव उठ खड़े हुए. बोले, ‘‘मैं चलता हूं. मु झे अपनी नई गृहस्थी की शौपिंग करनी है.’’
नेहा ने कहा, ‘‘विपिन आने वाले होंगे, मैं भी चलती हूं.’’
सुनंदा बोली,’’ मैं भी थोड़ा घर का सामान लेने जा रही हूं.’’
नेहा ने कहा, ‘‘तो आप मामा के साथ ही चली जाइए न. कार तो अभी है नहीं आप के पास.’’
सुनंदा ने औपचारिकतावश मना किया तो देव बोले, ‘‘चलिए न, मु झे कंपनी मिल जाएगी.’’
सुनंदा ने सहमति में सिर हिला दिया. कहा, ‘‘आप बैठिए, मैं तैयार हो जाती हूं.’’
नेहा चली गई. देव सुनंदा का इंतजार करने लगे. सुनंदा तैयार हो कर आई तो देव ने उसे तारीफ भरी नजरों से देखा तो वह थोड़ा सकुचाई. फिर दोनों घर से निकले ही थे कि बहुत तेज बारिश होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को देखा. देव ने कहा, ‘‘क्या हमेशा हम दोनों के साथ होने पर तेज बारिश होगी?’’
सुनंदा खुल कर हंस दी. दोनों ने शौपिंग की. फिर कौफी पी और देव ने सुनंदा को उस के घर छोड़ दिया. देव की बातों से उस ने इतना जरूर अंदाजा लगाया था कि देव अकेले हैं. ज्यादा कुछ उस ने पूछा नहीं था.
वह सोच रही थी वह माने या न माने, देव ने उस के मन में कुछ हलचल सी जरूर पैदा कर दी है. यदि ऐसा नहीं है तो उस का मन देव के इर्दगिर्द ही क्यों भटक रहा है, बाहर बारिश, कार के अंदर चलता एक पुराना कर्णप्रिय गीत, देव का बात करने का मनमोहक ढंग सुनंदा को बहुत अच्छा लगा था. नीलेश के बाद आज पहली बार किसी पुरुष के साथ ने उस के मन में इस तरह हलचल मचाई थी.
अगली किट्टी पार्टी का दिन आ गया. पार्टी सुरेखा के यहां थी. इस बार नेहा सब को उत्साहित हो कर बता रही थी, ‘‘मामा की शादी के 1 साल बाद ही उन का डाइवोर्स हो गया था. मामी अपने किसी प्रेमी के साथ शादी करना चाहती थी.
वह मामा के साथ एक दिन भी नहीं चाहती थी, मामा को उन्होंने बहुत तंग किया. मामी की इच्छा को देखते हुए मामा ने उन्हें चुपचाप डाइवोर्स दे दिया, उन्होंने तो अपने प्रेमी से शादी कर ली, लेकिन मामा ने उस के बाद गृहस्थी नहीं बसाई. मामा एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं. बस, उन्होंने काम में ही हमेशा खुद को व्यस्त रखा.’’
सुनंदा चुपचाप देव की कहानी सुन रही थी. नेहा ने अचानक पूछा, ‘‘सुनंदाजी, आप की और मामा की शौपिंग कैसी रही?’’
‘‘बहुत अच्छी,’’ कह कर सुनंदा और बाकी महिलाएं बातों में व्यस्त हो गईं.
अगले दिन औफिस से लौट कर देव सुनंदा के घर आए, उन्हें कार की चाबी दी. कहा, ‘‘आप की गाड़ी ले आया हूं.’’
सुनंदा ने कहा, ‘‘थैंक्स, आप बैठिए. मैं चाय लाती हूं.’’
थोड़ी देर में सुनंदा चाय ले आई. बातों के दौरान पूछा, ‘‘आप कैसे जाएंगे अब?’’
देव हंसे, ‘‘आप छोड़ आइए.’’
सुनंदा ने भी कहा, ‘‘ठीक है,’’ और खिलखिला दी.
तभी सुनंदा के मोबाइल की घंटी बजी. अलका थी. हालचाल पूछने के बाद वह कह रही थी, ‘‘सुनंदा, तुम फ्री हो न?’’
सुनंदा के कान खड़े हुए, ‘‘क्यों, कुछ काम है क्या?’’
‘‘अभी से बता रही हूं, मेरी सहेली ने घर पर कीर्तन रखा है. उस ने तुम्हें भी बुलाया है. कल आ जाना, साथ चलेंगे.’’
‘‘ओह दीदी, कल नहीं आ पाऊंगी, मेरी गाड़ी खराब है. मु झे कल तो समय नहीं मिलेगा. कल डाक्टर के यहां भी जाना है. रैग्युलर चैकअप के लिए और गाड़ी लेने भी जाना है. बहुत काम है दीदी कल.’’
थोड़ीबहुत नाराजगी दिखा कर अलका ने फोन रख दिया. सुनंदा भी फोन रख कर मुसकराने लगी, तो देव ने कहा, ‘‘लेकिन आप की गाड़ी तो ठीक है.’’
सुनंदा ने हंसते हुए अपनी कीर्तन, प्रवचनों से दूर रहने की आदत के बारे में बताया तो देव ने भरपूर ठहाका लगाया. बोले, ‘‘ झूठ तो बहुत अच्छा बोल लेती हैं आप.’’
देव अलग फ्लैट में शिफ्ट हो चुके थे. सुनंदा उन्हें उन की कालोनी तक छोड़ आई. अब तक दोनों में अच्छी दोस्ती हो चुकी थी. कोई औपचारिकता नहीं बची थी. अब दोनों मिलते रहते, अंतरंगता बढ़ रही थी. कई जगह साथ आतेजाते. सबकुछ अपनेआप होता जा रहा था. देव कभी नेहा के यहां भी चले जाते थे. उन्होंने एक नौकर रख लिया था, जो घर का सब काम करता था.
सुनंदा ने गौरव को देव के बारे में सब कुछ बता दिया था. उन के साथ उठनाबैठना, आनाजाना सब. सुनंदा विमुग्ध थी, अपनेआप पर, देव पर, अपनी नियति पर. अब लगने लगा था शरीर की भी कुछ इच्छाएं, आकांक्षाएं हैं. उसे भी किसी के स्निग्ध स्पर्श की कामना थी. आजकल सुनंदा को लग रहा था कि जैसे जीवन का यही सब से सुंदर, सब से रोमांचकारी समय है. वह पता नहीं क्याक्या सोच कर सचमुच रोमांचित हो उठती.
देव और सुनंदा की नजदीकियां बढ़ रही थीं. देव औफिस से भी सुनंदा से फोन पर हालचाल पूछते. अकसर मिलने चले आते. सुनंदा की पसंदनापसंद काफी जान चुके थे. अत: अकसर सुनंदा की पसंद का कुछ लेते आते तो सुनंदा हैरान सी कुछ बोल भी न पाती.
एक दिन विपिन से विचारविमर्श के बाद नेहा ने सुनंदा को छोड़ कर किट्टी पार्टी की बाकी सब सदस्याओं को अपने घर बुलाया.
सब हैरान सी पहुंच गईं.
मंजू ने कहा, ‘‘क्या हुआ नेहा? फोन पर कुछ बताया भी नहीं और सुनंदा जी को बताने के लिए क्यों मना किया?’’
नेहा ने कहा, ‘‘पहले सब सांस तो ले लो. मेरे मन में बहुत दिन से कोई बात चल रही है. मु झे आप सब का साथ चाहिए.’’
अनीता ने कहा, ‘‘जल्दी कहो, नेहा.’’
नेहा ने गंभीरतापूर्वक बात शुरू की, ‘‘सुनंदाजी और मेरे देव मामा को आप ने कभी साथ देखा है?’’
सब ने कहा, ‘‘हां, कई बार.’’
‘‘आप ने महसूस नहीं किया कि दोनों एकदूसरे के साथ कितने अच्छे लगते हैं, कितने खुश रहते हैं एकसाथ.’’
अनीता ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ? सुनंदाजी तो हमेशा खुश रहती हैं.’’
‘‘मैं सोच रही हूं कि सुनंदाजी मेरी मामी बन जाएं तो कैसा रहेगा?’’
पूजा बोली, ‘‘पागल हो गई हो क्या नेहा? सुनंदाजी सुनेंगी तो कितना नाराज होंगी.’’
‘‘क्यों, नाराज क्यों होंगी? अगर वे देव मामा के साथ खुश रहती हैं तो हम आगे का कुछ क्यों नहीं सोच सकते? आज तक वे हमारी हर जरूरत के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते क्या?’’
अनीता ने कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा है उन की सुभद्रा बूआ, जेठानी और बहन यह सुन कर भी उन का क्या हाल करेंगी?’’
‘‘क्यों, इस में बुरा क्या है? मैं आप सब से छोटी हूं. आप से रिक्वैस्ट ही कर सकती हूं कि आप लोग मेरा साथ दो प्लीज, समय बहुत बदल चुका है और सुनंदाजी तो किसी की परवाह न करते हुए जीना जानती हैं.’’
पूजा ने कहा, ‘‘गौरव के बारे में सोचा है?’’
बहुत देर से चुप बैठी सुनीता ने कहा, ‘‘जानती हूं मैं अच्छी तरह गौरव को, वह बहुत सम झदार लड़का है, वह अपनी मां को हमेशा खुश देखना चाहता है.’’
बहुत देर तक विचारविमर्श चलता रहा. फिर तय हुआ सुनीता ही इस बारे में सुनंदा से बात करेगी.
अगले दिन सुनीता सुनंदा के घर पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सुनीता ने पूछा, ‘‘और देव कैसे हैं? मिलना होता है या नहीं?’’
सुनंदा के गोरे चेहरे पर देव के नाम से ही एक लालिमा छा गई और वह बड़े उत्साह से देव की बातें करने लगी.
सुनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘इतने अच्छे हैं मि. देव तो कुछ आगे के लिए भी सोच लो.’’
सुनंदा ने प्यार भरी डांट लगाई, ‘‘पागल हो गई हो क्या? दिमाग तो ठीक है न?’’
‘‘हम सब की यही अच्छा है. अभी मैं जा रही हूं, अच्छी तरह सोच लो, लेकिन जरा जल्दी. हम लोग जल्दी आएंगी.’’
सुनंदा कितने ही विचारों में डूबतीउतराती रही कि क्या करें. मन तो यही चाहता है देव को अपने जीवन में शामिल कर ले सदा के लिए, पर अब? गौरव क्या कहेगा? सुभद्रा बूआ, रमा और अलका क्या कहेंगी? वह रातभर करवटें बदलती रही. बीचबीच में आंख लगी भी तो देव का चेहरा दिखाई देता रहा.
उधर विपिन और नेहा ने देव से बात की. उम्र के इस मोड़ पर उन्हें भी किसी साथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. देव के मन में भी जीवन के सारे संघर्ष झेल कर भी हंसतीमुसकराती सुनंदा अपनी जगह बना चुकी थी. कुछ देर सोच कर देव ने अपनी स्वीकृति दे दी.
सुबह जब सुनंदा का गौरव से बात करने का समय हो रहा था, सब पहुंच गईं और विपिन और देव के साथ. देव और सुनंदा एकदूसरे से आंखें बचातेशरमाते रहे.
सुनीता ने कहा, ‘‘सुनंदा, तुम हटो, मैं गौरव से बात करती हूं,’’ और फिर वेबकैम पर सुनीता ने गौरव को सबकुछ बताया.
सुनंदा बहुत संकोच के साथ गौरव के सामने आई तो गौरव ने कहा, ‘‘यह क्या मां, इतनी अच्छी बात, मु झे ही सब से बाद में पता चल रही है.’’
सुनंदा की आंखों से भावातिरेक में अश्रुधारा बह निकली. वह कुछ बोल ही नहीं पाई.
सुनीता ने ही गौरव का परिचय देव से करवाया. देव की आकर्षक, सौम्य सी मुसकान गौरव को भी छू गई और उस ने इस बात में अपनी सहर्ष सहमति दे दी तो सुनंदा के दिल पर रखा बो झ हट गया.
गौरव ने कहा, ‘‘मां, आप दादी, ताईजी और मौसी की चिंता मत करना, उन सब को मैं आ कर संभाल लूंगा. आप किसी की चिंता मत करना मां. आप अपना जीवन अपने ढंग से जीने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं. मु झे तो अभी छुट्टी नहीं मिल पाएगी, लेकिन आप मेरे लिए देर मत करना.’’
गौरव की बातें सुनंदा को और मजबूत बना गईं.
थोड़ी देर चायनाश्ता कर सब सुनंदा को गले लगा कर प्यार करती हुईं अपनेअपने घर चली गईं.
नेहा, विपिन और देव रह गए. विपिन ने कहा, ‘‘अब देर नहीं करेंगे, कल ही मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस में चलते हैं.’’
अगले दिन सुनंदा तैयार हो रही थी. सालों पहले नीलेश की दी हुई लाल साड़ी निकाल कर पहनने का मन हुआ. फिर सोचा नहीं, कोई लाइट कलर पहनना चाहिए. मन को न सही, शरीर को उम्र का लिहाज करना ही चाहिए. वह कुछ सिहर गई, क्या देव को उस के शरीर से भी उम्मीदें होंगी? स्त्री को ले कर पता नहीं क्यों लोग हमेशा नकारात्मक भ्रांतियां रखते हैं, कभी किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि उम्रदराज स्त्री भी…
आगे कुछ सोचने से पहले ही वह खुद ही हंस दी, उम्रदराज? उम्र से क्या होता है, फिर नीलेश का चेहरा अचानक आंखों को धुंधला कर गया. नीलेश उसे हमेशा खुश देखना चाहते थे और बस वह अब खुश थी, सारे संदेहों, तर्कवितर्कों में डूबतेउतराते वह जैसे ही तैयार हुई, डोरबैल बजी. सुनंदा ने गेट खोला. देव उसे ले जाने आ गए थे.