Saree : पसंद या मजबूरी ?

Saree :  साड़ी, 5 से 7 गज लंबा यह परिधान सदियों से न केवल भारतीय संस्कृति और परंपरा का दर्पण रहा है बल्कि धीरेधीरे महिलाओं की परिभाषा से भी जुड़ता चला गया.

इतिहास

भारत में साड़ी का इतिहास कुछ 5 हजार साल पुराना है. मध्यकालीन भारत में इस का प्रचलन तेज हुआ और धीरेधीरे यह महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी में इस प्रकार घुल मिल गया जैसे इस वस्त्र पर महिलाओं ने पेटेंट करा रखा हो.

साड़ी की उपयोगिता पर उठते सवाल

आज के समय में घरेलू कामकाज या कहें आम जिंदगी के लिए बेशक साड़ी एक आरामदायक पोशाक हो सकता है पर कामकाजी महिलाओं के लिए क्या साड़ी आरामदेह है? क्या वर्किंग वूमेंस साड़ी में सहज महसूस करती हैं?

कामकाजी महिलाएं और साड़ी

समय के साथसाथ समाज में महिलाओं की भूमिका तेजी से बढ़ रही है. महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाते हुए कामयाबी का डंका बजा रही हैं. घंटों मीटिंग करना, मैट्रो या ट्रेन से यात्रा करना, कभी दौड़ कर बस पकड़ना, कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करना, ईंट ढोना, दौड़भाग करना और ऐसे कई काम कामकाजी महिलाएं रोज किया करती हैं. ऐसे में साड़ी उन के लिए एक चुनौतीपूर्ण विषय भी बन जाता है.

कई महिलाएं साड़ी में सहज महसूस नहीं करतीं तो कई के लिए भागते हुए पैरों में साड़ी एक बंधन का काम करती है. कितनो की ट्रेन, मोटरसाइकिल या बसों में फंस कर जान चली जाती है तो कई महिलाओं को ट्रेन की भीड़भाड़ में मर्दों की तुलना में अधिक सतर्क रहने को मजबूर होना पड़ता है.

अब सवाल यह उठता है कि महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी में रचाबसा साड़ी नाम का यह परिधान उन की चौइस है, उन के लिए कंफर्टेबल है या सिर्फ कंप्लसन?

साड़ी : कितना कंफर्टेबल

‘उफ्फ, पेट दिख रहा है…’ ‘ओह मेरी साड़ी की प्लेट्स खुल गईं…’ ‘अरे यार, बस छूट गई…’ ‘थोड़ा सा तेज दौड़ी होती तो ट्रेन मिस नहीं होती…’ ‘आह, मेरा पल्लू फंस गया…’ ये कुछ ऐसी लाइने हैं जो साड़ी पहने कामकाजी महिलाओं की जद्दोजेहद को दिखाता है. ऐसे में महिलाएं कैसे कंफर्टेबल महसूस कर सकती हैं?
बेशक इन में से कुछ समस्याओं का समाधान बारबार अभ्यास करने से निकल सकता है पर कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिन का समाधान अभ्यास करने से भी नहीं निकल सकता.

साड़ी : क्या एक मजबूरी

महिलाओं ने बीते कुछ सालों में समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ते हुए कामयाबी की बुलंदियों को छुआ है, मगर आज भी ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें अपने पहनावे तक की आजादी नहीं है. वे क्या पहनेंगी, क्या नौकरी करेंगी, कैसी दिखेंगी ये भी कोई और तय करता है.

21वीं सदी के भारत में आज भी ऐसे लोग हैं जो साड़ी को महिला की गरिमा का प्रतीक मानते हैं. ऐसे में कुछ कामकाजी महिलाएं अपनी पसंद से समझौता कर साड़ी को मजबूरी के तौर पर अपनाती हैं.

कुछ लोगों का मानना है कि औरतें साड़ी में ही बेहतर दिखती हैं क्योंकि यह उन की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है. पर क्या परंपरा और संस्कृति का बोझ केवल महिलाओं के कंधे है? कभी मर्दों को धोती या लूंगी में औफिस जाते तो नहीं देखा है हम ने.

कुछ प्राइवेट और खासकर सरकारी दफ्तरों में साड़ी को ड्रैस कोड के रूप में पेश किया जाता है. ऐसे में, तमाम समस्याओं के बावजूद महिलाओं को मजबूरन साड़ी को ड्रैस कोड के रूप में पहनना ही पड़ता है.

महिलाओं की चौइस के रूप में साड़ी

आज के समय में साड़ी एक पारंपरिक पोशाक होने के साथ साथ फैशन स्टेटमैंट बन चुका है. पार्टी हो या फंक्शन फैशन ट्रैंड के मुताबिक साड़ी सभी महिलाओं की पसंद है.

साड़ी पहनना महिलाओं की व्यक्तिगत पसंद होनी चाहिए, कुछ महिलाएं इसे परंपरा और फैशन के फ्यूजन के रूप में पहनना पसंद करती हैं, तो कई इसे सामाजिक दबाव के कारण पहनती हैं.

हर इंसान की अपनी अपनी पसंद होती है. महिलाओं की भी अपनी पसंद होती है. वे किस परिधान को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाना चाहती हैं यह उन का व्यतिगत निर्णय होना चाहिए. यदि साड़ी किसी महिला के लिए आरामदायक और स्टाइलिश है, तो यह एक पसंद हो सकती है, मजबूरी नहीं.

ये 5 तरह की साड़ियां पहन पार्टी में छा जाएंगी आप

साड़ी एक ऐसा पहनवा है जिसे महिलाएं खास मौके पर पहनना बेहद पसंद करती हैं वैसे आजकल तो लड़कियां भी किसी फंक्शन पर साड़ी को पहनने से नहीं चुकती क्योंकि यह एक ऐसा पहनवा है जिसमे कई वैरायटी तो हैं ही साथ में पहनने का तरीका भी दिल को छू जाता है.

साड़ी कई अलगअलग फैब्रिक्स में आसानी से मार्केट में मिल जाती हैं भारत में कई राज्यों की साड़ी तो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं साड़ी ना एक आरामदायक परिधान है बल्कि यह आपको स्टाइलिश व खूबसूरत भी दिखाती है लाइटवेट साड़ी महिलाओं की पहली पसंद होती हैं फिर चाहे डेली वियर में पहनना हो या फंक्शन में क्योंकि ये पहनने में भी आसानी से आ जाती है और स्लिम भी दिखाती है तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसी साड़ियों के बारे में जो महिलाओ के साथसाथ लड़कियां भी पहन सकती हैं.

चंदेरी सिल्क साड़ी

चंदेरी साड़ी मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध साड़ी है इसे साडियों की रानी भी कहा जाता है वजन में यह बेहद हल्की व पारदर्शिता के लिए जानी जाती है ये साड़ी कॉटन व रेशमी कपड़े के साथ हाथ से तैयार की जाती हैं जरी का काम इन साडियों में बहुत ही लुभावना लगता है इनकी कीमत 1000रू से लेकर 5000 रु तक में आसानी से आ जाती है.वजन में बेशक हल्की लेकिन हैवी लुक देने में सहायक ये साड़ी गर्मियों के लिए बेस्ट व सदाबहार भी है.

टसर सिल्क

झारखण्ड के रांची में टसर की खेती होती है इन साड़ी के धागे बहुत ही मजबूत होते हैं जिससे सही रखरखाव के साथ यह 40 साल तक आराम से चलने वाली साड़ी है यह यह वजन में बहुत हल्की व चमक में शानदार होती है इस साड़ी की कीमत 8000 रु से लेकर लाख तक की होती है.

आर्गेजा साड़ी

आर्गेनाज़ा सिल्क को कोरा सिल्क भी बोला जाता है यह वाराणसी सिल्क है जो वजन में बिलकुल हल्की और पहनने में बहुत आसान होती है यह आपको एक रॉयल लुक देती है.यह सिल्क आजकल बहुत चलन में है यह 1000 रु से 5000रु तक में अच्छी साड़ी आ जाती है.

जामदानी साड़ी

यह पश्चिम बंगाल की पारम्परिक साड़ी है.जामदानी साड़ियां बहुत ही कोमल,महीन, मलमल बनावट और अलंकृत कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं.इस सारी की खास विशेषता है कि इन्हें अभी भी हथकरघा द्वारा बनाया जाता है.इसपर पारम्परिक सजावटी डिज़ाइन बहुत ही मनभावन होते हैं इसकी शुरुवाती कीमत 2500 रु है.

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