अभिनेत्री मंजरी फडनिस ने अपनी किस मायूसी की बात की, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई की खूबसूरत, छरहरी काया, मृदुभाषी मॉडल और अभिनेत्री मंजरी फड़नीस के पिता आर्मी में थे, जिस वजह से उन्हें पूरे देश में घूमने का मौका मिला. वह एक गैर फ़िल्मी परिवार से सम्बन्ध रखतीं हैं, और उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एक अभिनेत्री बनेंगी, लेकिन उन्हें स्टेज पर परफॉर्म करना पसंद रहा.

मंजरी ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘रोक सको तो रोक लो’ से किया है.  यह फिल्म कुछ खास नहीं रही, लेकिन इसके बाद फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ में नज़र आयीं. इस फिल्म में मंजरी ने इमरान की प्रेमिका की भूमिका निभाई आयीं थीं. फिल्म ने बॉक्स-ऑफिस पर सफल रही और आलोचकों ने मंजरी के अभिनय की तारीफ की. इससे वह सबकी नजर में आई और उन्हें काम मिलना थोडा आसान हुआ. हिंदी के अलावा मंजरी ने तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला आदि में भी काम किया है. अभी उनकी वेब सीरीज फ्रीलांसर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उन्होंने एक मजबूत इरादों वाली पत्नी की भूमिका निभाई है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में ख़ास गृहशोभा के साथ बात की पेश है कुछ ख़ास अंश.

 

मिली प्रेरणा

एक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारें में मंजरी कहती है कि मेरे परिवार में सभी आर्ट के किसी भी फॉर्म की कद्र करते है. कई लोग संगीत से जुड़े है. मैं 3 साल की उम्र से स्टेज पर परफॉर्म कर रही हूँ, जिसमे सिंगिंग डांसिंग, सभी किया है. अधिकतर साधारण परिवार में इन सब चीजों को एक्स्ट्रा करिकुलर के रूप में लेते है, उसे प्रोफेशन के रूप में नहीं ले सकते, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री बहुत कठिन है, इमोशनली बहुत स्ट्रोंग होना पड़ता है, क्योंकि इतना अधिक रिजेक्शन और कॉम्पिटीशन होता है कि खुद को सम्हालना मुश्किल होता है. इसलिए मैंने कभी सोचा नहीं था कि इस फील्ड में जाउंगी, लेकिन 16 साल की उम्र में मुझे आर्ट और उससे जुड़े लोगों के बारें में जानना बहुत पसंद रहा, जिसमें मुझे किसी दूसरे के चरित्र के बारें में जानना अच्छा लगता है और केवल एक्टिंग से ही मुझे इसकी जानकारी मिल सकती है. इससे बाद 14 साल की उम्र में जब मैंने स्कूल की एक प्ले में एक्टिंग किया, सभी को मेरा अभिनय पसंद आया, तो इतनी ख़ुशी मिली कि मैं उसे बयान नहीं कर सकती और वही मेरी पहली प्रेरणा थी.

चुनौतीपूर्ण भूमिका पसंद

मंजरी हमेशा किसी रोल को चुनते समय उस फिल्म में उनकी भूमिका, बैनर, को स्टार और निर्माता, निर्देशक को अधिक महत्व को देखती है. पूरी फिल्म की पैकेजिंग को देखती है, उन्हें अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और विद्या बालन की फिल्मे बहुत अच्छी लगती है, क्योंकि उनका काम के प्रति पैशन बहुत स्ट्रोंग है. इसके अलावा मंजरी फिल्म में उनकी भूमिका ऐसी हो, जो दर्शकों को प्रभावित कर सकें. वह कहती है कि मैंने जब फ्रीलांसर वेब सीरीज की स्क्रिप्ट पढ़ी, तब से मैं बहुत उत्साहित थी. इसमें मैने मोहित रैना की पत्नी की भूमिका निभाई है. उनकी लाइफ के ट्रामा में भी पत्नी बहुत स्ट्रोंग है और पति को सहारा देती है. मैं इससे रिलेट नहीं करती, लेकिन कई बार इमोशनल बातों को खुद से रिलेट किया है. देखा जाय तो रियल लाइफ में सभी एक्टर्स कुछ हद तक इमोशनल होते है और मैंने इस भूमिका के लिए बहुत मेहनत की है. ये बहुत चुनौतीपूर्ण भूमिका रही.

मिली मायूसी

इंडस्ट्री की अनिश्चित दुनिया में बिना गॉडफादर के टिके रहना कितना मुश्किल है, क्या कभी आप मायूस हुई ? इस बारें में अभिनेत्री हंसती हुई कहती है कि मैं एक ह्युमन बीइंग हूँ और इमोशन मेरे अंदर है. मैं कई बार टूटी और मायूस हुई हूँ और इस इंडस्ट्री में बड़े से बड़े एक्टर्स उनकी जीवन में उतार – चढ़ाव आते है. ये पूरे प्रोफेशन का एक पार्ट है, जिससे सभी को डील करना पड़ता है. ऐसे में एक अच्छा मानसिक स्ट्रेंथ देने वाला परिवार चाहिए और वह मेरे पेरेंट्स है, जो मेरे बैक बोन है. मेरे अब तक के कैरियर के फेज में, 15 साल में, तीन बार ऐसा लगा कि मुझे सब छोड़कर घर वापस जाना है और मैं आगे नहीं बढ़ पाउंगी, लेकिन तभी कुछ ऐसा प्रोजेक्ट आया कि मुझे वापस घर जाना नहीं पड़ा. आज मैं खुश हूँ कि इंडस्ट्री में मुझे अच्छा काम मिला, और जो भी काम मिला, उस काम ने मुझे आगे बढ़ने में मदद की. मुंबई शहर ने मुझे घर जाने नहीं जाने दिया.

 

परिवार का सहयोग

वह आगे कहती है कि हम सभी ह्युमन बीइंग है और इमोशनली कई बार टूट भी जाते है, ऐसे में एक मजबूत इमोशनल फॅमिली सिस्टम का होना जरुरी होता है, लेकिन कई लोग ऐसे है, जिन्हें परिवार का सहयोग नहीं मिलता, उन्हें एक अच्छे फ्रेंड की जरुरत होती है, जिससे आप कनेक्ट कर सके, आपकी भावनाओं को समझ कर एक अच्छी राय दे सकें और आगे बढ़ने में मदद करें. इसमें मैं खासकर यूथ जो स्कूल और कॉलेज गोइंग है, उन्हें कहना चाहती हूँ कि वे शुरू से अपने परिवार और दोस्त के सहयोग को बनाये रखने की कोशिश करें, जिनका सहयोग भविष्य में जरुरी होता है.

अपनी संघर्ष के बारें में मंजरी कहती है कि मैने हर रिजेक्शन को पॉजिटिव रूप में लेने की कोशिश की है और खुद को समझाया है कि कुछ चीज के ‘ना’ होना अच्छे के लिए होता है. मेरे लिए यह बहुत सही रहा, क्योंकि कई बार जो प्रोजेक्ट मुझे पसंद था और मुझे नहीं मिला, मैं बहुत उदास हुई और कई बार रोई भी, लेकिन बाद में वह मुझे ही मिला. इससे मेरे अंदर ये भावना जगी है कि जो प्रोजेक्ट मेरे नाम से है, वह मुझे अवश्य मिलेगा. अगर नहीं है तो कितना भी हाथ पैर मार ले, वह प्रोजेक्ट नहीं मिल सकता. इसलिए मुझे जो काम मिलता है, मैं उसी को एन्जॉय करती हूँ और दूसरे जो अच्छा काम कर रहे है, उनसे कुछ सीखने की कोशिश करती हूँ.

पसंद – नापसंद 

रियल लाइफ में मंजरी किसी बात से डरती नहीं, खुद का ध्यान रखना जानती है. उन्हें इंडस्ट्री की पार्ट बनना पसंद है, जहाँ बहुत सारे टैलेंटेड कलाकार परफोर्मिंग आर्ट से जुड़े है, जिनके साथ उन्हें काम करने का मौका मिल रहा है, लेकिन उन्हें झूठे, प्लेयिंग गेम और एक दूसरे के साथ राजनीति करने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं.

 

दर्शक है मुख्य  

वेब सीरिस में कहनियों में एक जैसी है, इसका प्रभाव फिल्म निर्माता पर कितना पड़ेगा? पूछे जाने पर मंजरी का कहती है, ये सही है कि थ्रिलर वेब सीरीज अधिक बन रहे है, पर कहानियां अलग – अलग परिवेश की है. इसे दर्शक पसंद कर रहे है, दर्शकों के अनुसार ही वेब सीरीज बनती है. उनके पसंद न होने पर ये बंद हो जाएगी.

आगे मंजरी संगीत के क्षेत्र में गाना चाहती है और जैसे – जैसे अभिनय का काम आता जायेगा, करती जाएगी. भविष्य के बारें में वह अधिक नहीं सोचती.

होली के बारें में अभिनेत्री श्रद्धा कपूर क्या कहती है, पढ़े इंटरव्यू

मुझे हिंदी फिल्मे देखना सबसे अधिक पसंद है. मेरी फेवोरिट फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ जैसी फॅमिली टाइप फिल्मे मुझे अधिक पसंद है. मनोरंजन फिल्म की मुख्य पार्ट होनी चाहिए और मैं भी उन्ही फिल्मों को अधिकतर देखती हूँ, जिसमे मनोरंजन अधिक हो. फिल्मे देखने हॉल में जाना और पॉपकॉर्न और परिवार के साथ उसे एन्जॉय करना ही मुझे पसंद है, कहती है, मुंबई की जुहू इलाके में रहने वाली अभिनेत्री श्रद्धा कपूर, जो शिवांगी कोल्हापुरे और शक्ति कपूर की बेटी है.बचपन से ही फ़िल्मी माहौल में पैदा हुई श्रद्धा कपूर को बचपन से अभिनय का शौक था.

सीखा उतार-चढ़ाव से

उसे पहला ब्रेक फिल्म ‘तीन पत्ती’ से मिला. फिल्म चली नहीं, पर श्रद्धा को तारीफे मिली, इसके बाद ‘लव का दि एंड’ आई, जो सफल नहीं थी.ऐसे में ‘आशिकी 2’ उसके जीवन की टर्निंग पॉइंट बनी और रातों रात उसकी जिंदगी बदल गयी.श्रद्धा शांत स्वभाव की है और सोच समझकर फिल्में चुनती है. फिल्म न चलने पर उसे खुद पर ही गुस्सा आता है. वह हर नए चरित्र को करना पसंद करती है. उन्होंने अपनी 12 साल की जर्नी में बहुत कुछ सीखा है. वह कहती है कि मैने अपने काम को सबसे अधिक प्यार करना सीखा. उतार-चढ़ाव कैरियर में आते है, लेकिन काम से प्यार होने पर उसपर अधिक फोकस होना संभव नहीं. मैं अच्छी फिल्मे और चुनौतीपूर्ण फिल्मों में काम करने की इच्छा रखती हूँ.

 

 

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उम्र के साथ बढती है अनुभव

अपनी कामयाबी का श्रेय वह अपने पेरेंट्स को देती है और मानती है कि माता-पिता ने हमेशा उन्हें हर वक्त सहारा दिया है. आज भी श्रद्धा अपने पेरेंट्स के साथ रहती है और अकेले रहना पसंद नहीं करती. हमेशा वह उनके साथ ही रहना चाहती है. श्रद्धा को बागीचा, पौधे. पेट्स बहुत प्रिय है. मसाला चाय उनके जीवन का प्रिय है, जिसे उनके घर पर देसी तरीके से बनाने पर पीती है और अपने जीवन में कभी छोड़ नहीं सकती. जिसे वह एक खास कप में पीती है. श्रद्धा उस कप को सालों से सम्हाल कर रखा है और चाय पीने के बाद खुद धोती है. उम्र श्रद्धा के लिए बहुत खास नहीं होती, एक नंबर होती है, जिसमे व्यक्ति खुद को एक अनुभवी मानने लगता है. वह कहती है कि हर व्यक्ति की एक बायोलॉजिकल और मेंटल ऐज होती है. मुझे कुछ लोग अजीबाई (नानी- दादी) कहते है, जबकि मेरी माँ हमेशा मुझसे पूछती है कि मैं बड़ी कब होउंगी. इस तरह कोई मुझे मेच्योर तो कोई मुझे एकदम बच्ची मानते है. असल में मैं पेरेंट्स को बहुत अधिक ज्ञान देती हूँ.

अभी उनकी फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ रिलीज पर है, जिसे लेकर श्रद्धा बहुत उत्साहित है, क्योंकि इसमें पहली बार उनके साथ अभिनेता रणवीर कपूर है. इसमें श्रद्धा ने किसिंग सीन्स से लेकर बिकिनी सीन्स भरपूर दिए है. साथ ही इसमें उनकी भूमिका फ्रंटफुट लेने वाली आज की लड़की की है, जिसे किसी बात का डर नहीं और बिंदास है. ये चरित्र उनके लिए खास और अलग है. श्रद्धा ने अपनी जर्नी के बारें में बात की जो बहुत रोचक रही.

 

 

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झूठ बोलना है मुश्किल

श्रद्धा ने कई बार झूठ का सहारा लिया है, वह हंसती हुई कहती है कि मैंने एक बार अपनी फ्रेंड से पेपर लेकर एग्जाम दिया और बहुत अच्छे मार्क्स थे, क्योंकि मुझे प्रश्न मालूम थे. टीचर को मेरे इतने अच्छे नंबर देखकर शक हुआ मुझे बुलाया और मैंने सारी बातें उन्हें बता दी. मेरी चोरी पकड़ी जाने पर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और मैंने मेहनत कर अच्छे मार्क्स आगे लाइ. मैं बहुत बुरी झूठी हूँ, झूठ बोलने पर पसीना आता है. सबको पता चल जाता है कि मैं झूठ बोल रही हूँ. पेरेंट्स के आगे तो मैं कभी झूठ नहीं बोल पाती हकलाने लग जाती हूँ.

हुआ अनुभव हार्ट ब्रेक का

जिंदगी में मक्कार बॉयफ्रेंड मिलने के बारें में पूछे जाने पर श्रद्धा कहती है कि हर किसी को एक मक्कार बॉयफ्रेंड लाइफटाइम में अवश्य मिलता है, हार्ट ब्रेक का अनुभव हर किसी को हुआ होगा, ऐसे में फ्रेंड से मिलना, परिवार से बातचीत करना, काम पर लग जाना आदि करना पड़ता है, सबसे अधिक खुद की शोल्डर होती है, जिसमे खुद को ही समझाना पड़ता है, फिर इससे निकलना आसान होता है.

विरासत में मिली संगीत

श्रद्धा कपूर एक गायिका भी है, यह उन्हें परिवार से विरासत में मिला है. वह कहती है कि एक्टिंग मेरा पैशन है, लेकिन जब मुझे पता चला कि मैं गाना भी गा सकती हूँ, तो बहुत ख़ुशी हुई. मेरी माँ गाती है और लता मंगेशकर मेरी मासी है. म्यूजिक मेरे परिवार में है. बचपन से मैंने माँ और मासी को गाते हुए भी देखा है. मैं आज भी किसी अवसर पर गाना पसंद करती हूँ और आगे मैं संगीत पर भी कुछ करने की इच्छा रखती हूँ.

 

 

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चैलेंजेस है कई

श्रद्धा कहती है कि मेरी जर्नी में चुनौतियां बहुत है और ये अच्छा होता है. ये हर किसी के जीवन का हिस्सा होती है,पर इसे कैसे आप लेते है,यह आप पर निर्भर करता है. इससे बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है. आज मैने समझ लिया है कि असफलता से घबराना नहीं है. मेरे शुरू की दो फिल्में फ्लॉप रही,लेकिन ‘आशिक़ी 2’ की सफलता की वजह से मैं लोगो की पसंदीदा बनी. असफल फिल्मों की दौर से निकलने में मुझे कुछ समय लगा था. हर फिल्म हमेशा सफल हो ये संभव नहीं होता,लेकिन फिल्म के बनने की प्रोसेस को मैंने हमेशा से एन्जॉय किया है.मेहनत पूरी करती हूँ, दर्शकों को फिल्म पसंद नहीं आती,तो ख़राब लगता है. श्रद्धा कपूर मानती है कि उनके परिवार ने उन्हें जो कुछ दिया है, उसकी भरपाई संभव नहीं , लेकिन वह जितना हो सके उन्हें खुश रखने की कोशिश करती है. इंडस्ट्री ने बहुत कुछ दिया है. मेरे सपने सच इस इंडस्ट्री की वजह से हुआ है. इसके अलावा मेरे पूरे परिवार ने मुझे हमेशा किसी भी परिस्थिति में मेरा साथ दिया है.

मजेदार त्यौहार है होली

होली के बारें में श्रद्धा का कहना है कि होली एक मजेदार त्यौहार है और अभी मैं अधिक रंग नहीं खेलती, पर बचपन की यादें बहुत मजेदार है. ललित मोदी का बंगला मेरे बिल्डिंग के नीचे थी, मैं ऊपर से रंग वाले वाटर बैलून अपने फ्रेंड के साथ मिलकर उनके स्विमिंग पूल और घर पर फेंकती थी. पूल लाल कर देती थी. वहां पार्टी होती थी, मुझे वहां जाने की इच्छा होती थी. इस अवसर पर पूरनपोली बनाई जाती है, जो मुझे पसंद है. इस त्यौहार पर शरीर और चेहरे से रंग निकालना एक मुश्किल बात होती है.

 

 

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महिलाओं के लिए मेसेज

वह कहती है कि बनावटी चीजो पर अधिक ध्यान न दे, इससे आपका आत्मविश्वास कम होता है. खूबसूरती के अलावा जो आपकी खूबी है, उसे हमेशा निखारे,अपने आप को कभी कमतर न समझे.सुंदर दिखने के अलावा बहुत सारे दूसरे फैक्टर्स है, जो आपको सुंदर बना सकते है. रंग,कद-काठी ये सब सुन्दरता की परिभाषा नहीं हो सकती.

क्यों कास्टिंग काउच का मोहरा नही बनीं एक्ट्रेस अंजलि ततरारी

धारावाहिक मेरे डैड की दुल्हन में निया शर्मा की भूमिका निभाकर चर्चित हुई 24 वर्षीय अभिनेत्री अंजलि ततरारी का जन्म उत्तराखंड की पिथौरागढ़ में हुआ. जब वह केवल 4 साल की थी, उनके पिता की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी, इसके बाद उनकी माँ मोना ततरारी मुंबई आकर हिंदी और संस्कृत की अध्यापिका बनी और अंजलि की परवरिश की. अंजलि पढाई के साथ-साथ फैशन ब्लॉगर और कई विज्ञापनों में भी काम करती रही. इसके बाद उन्हें ऑडिशन के द्वारा अभिनय का मौका मिला. अभी अंजलि सोनी टीवी पर शो ‘सरगम की साढ़ेसाती’ में सरगम की मुख्य भूमिका निभा रही हैं, जिसमे इमोशन के साथ-साथ कॉमेडी भी है. अंजलि के लिए ये भूमिका किसी चुनौती से कम नहीं. चुलबुली और हंसमुख स्वभाव की अंजलि से बात करना रोचक था, आइये जाने क्या कहती है वह अपने बारें में.

सवाल-इस चरित्र ने आपको कैसे प्रेरित किया?

पहली वजह ये थी कि ये एक कॉमेडी शो है, मैंने पहले कभी किया नहीं है. बहुत कम अवसर होता है, जब किसी कलाकार को अलग-अलग भूमिका निभाने का मौका मिलता है. इसके अलावा ये शो एक प्रोग्रेसिव विचारों वाला है, जो मुझे पसंद है. साथ ही इसकी कांसेप्ट और कहानी दोनों फ्रेश है. साढ़ेसाती से यहाँ साढ़ेसात परिवार के सदस्यों से है.

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सवाल-ये भूमिका आपसे अलग है, आपको कितनी तैयारी करनी पड़ी?

ये वास्तव में मुझसे अलग भूमिका है, क्योंकि रियल लाइफ में मैंने कभी भी इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी नहीं ली है, क्योंकि अभी मैं छोटी हूं. इसलिए मुझे पर्सनालिटी और रिलेशनशिप पर काम किया. इसमें दद्दू, ससुर, देवर, पति आदि सबके साथ एक अलग सम्बन्ध दिखाया गया है, जो मुश्किल रहा. इसके अलावा कॉमेडी में टाइमिंग और पेस का सही होना जरुरी होता है, जो मैं अनुभव के साथ ही अच्छा कर पा रही हूं. कुछ लोगों को लगता है कि कॉमेडी आसान है, लेकिन सबसे अधिक कठिन है. एक दृश्य को बार-बार रिटेक  करने पर उसकी पंच लाइन के चले जाने का डर रहता है.

सवाल-उत्तराखंड से मुंबई कैसे आना हुआ?

काफी पर्सनल बातें है, जिसे मैं शेयर करने में कम्फ़र्टेबल नहीं हूं. पारिवारिक समस्या के चलते मुझे और मेरी माँ को मुंबई आना पड़ा, लेकिन अब लगता है कि अभिनय ही मेरी डेस्टिनी रही है, क्योंकि मुझे बचपन में डांस बहुत पसंद था. स्कूल की सारी एक्टिविटीज में मैं हमेशा भाग लेती थी. वहां रहकर मेरी क्रिएटिविटी का सपना कभी पूरा नहीं हो पाता. मुंबई आने का कोई प्लान नहीं था. मुंबई में मैं अपने अंकल के पास आई और पढाई पूरी करती रही. सी ए की परीक्षा दी, पर मुझे ये सब करना पसंद नहीं था. मैंने ऑडिशन देना शुरू कर दिया. मुझे कैमरे के आगे ऑडिशन देने में भी बहुत मजा आता था और रिजेक्शन होने से भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था. तब मुझे लगा कि कैमरे के सामने मुझे रहना अच्छा लगता है और यही मेरे काम करने का फील्ड है.

सवाल-पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?

मैंने अभिनय में कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, मुझे अपना प्रोफाइल बनाना भी नहीं आता था. सबसे पूछकर मैंने अपनी प्रोफाइल बनायीं है और हर रिजेक्शन से मैंने अभिनय सीखा है. शुरुआत मैंने कई बड़े-बड़े विज्ञापनों से किया है, लेकिन टीवी पर काम करने से जितना एक्सपोजर मिलता है, उतना किसी दूसरे माध्यम में नहीं मिलता. मैंने टीवी शो से पहले एक अच्छी वेब शो में भी काम किया है, लेकिन लोगों ने मुझे शो मेरी डैड की दुल्हन की निया के चरित्र से पहचानना शुरू किया. ये चरित्र मेरे दिल के पास हमेशा रहेगा, क्योंकि इसमें कई सारे इमोशन जुड़े हुए है. निया के चरित्र में मुझे एक दो दिन के बाद ग्लिसरीन प्रयोग करने की जरुरत नहीं पड़ी.

सवाल-मुख्य भूमिका होने पर कितना प्रेशर रहता है?

मुख्य भूमिका हो या आंशिक, मेरे काम में ईमानदारी और नर्वसनेस काम के प्रति हमेशा रहा है. ये जरुरी भी है, क्योंकि जिस काम के लिए दर्शक इतना प्यार देते है, शो को देखते है, उसे मैं हल्के में नहीं ले सकती.

सवाल-आपके यहाँ तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा?

मैं एक छोटे हिल स्टेशन पिथौरागढ़ से हूं, जहाँ किसी ने इस क्षेत्र को देखा नहीं है. उनके लिए मुझे हमेशा सहयोग देना बड़ी बात रही है. जब मैंने सी ए किया, तब वे सपोर्टिव थे और जब नहीं किया तब भी सहयोग दिया. मेरी माँ सिंगल पैरेंट होकर भी मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है. जितनी कठिन उनकी जर्नी थी, उतनी ही सहज उन्होंने मेरी जर्नी बनाई है. आगे मैं उनके लिए एक स्मूथ जीवन बनाना चाहती हूं. माँ की सादगी और सबसे मेल-मिलाप बनाये रखने को मैं अपने जीवन में उतरना चाहती हूं.

सवाल-कितना संघर्ष रहा? क्या कभी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा?

संघर्ष से ही मैंने एक्टिंग सीखा है, इसलिए मैं उसे संघर्ष से अधिक चुनौती और हार्ड वर्क कहना चाहती हूं. ये चुनौती हर क्षेत्र में होती है. शुरू में बहुत रिजेक्शन मिला है, क्योंकि मुझे कैमरे को फेस करना, लाइटिंग की जानकारी, अभिनय कुछ भी नहीं आता था, इसलिए मुझे संघर्ष को ग्रूमिंग मानती हूं.

ऐसे काफी लोग मनोरंजन की दुनिया में मिलते है, जिनका इरादा कुछ और होता है. शुरू-शुरू में कई बार लोग बुला लेते थे और घंटो कॉफ़ी हाउस में बैठकर फिल्म और शो के बारें में चर्चा करते थे. मुझे समझ में आ गया कि यहाँ समय नष्ट करने के वजाय कई घंटे लाइन में खड़े होकर ऑडिशन देने में ही भलाई है.

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सवाल-क्या हिंदी फिल्मों में आने की इच्छा रखती है?

मुझे फिल्मों से अधिक वेब सीरीज में काम करने की इच्छा है, लेकिन मैने अभी दो साल टीवी में रहने का निर्णय लिया है. टीवी में पैसे के अलावा प्रसिद्धी भी मिलती है. मैं अभी थोडा स्टाब्लिश होने के बाद आगे एक्स्प्लोर करुँगी. मुझे इरफ़ान खान के साथ काम करने की इच्छा थी, पर दुर्भाग्य से वे अब नहीं रहे. मुझे निर्देशक इम्तियाज अली के निर्देशन में फिल्म करने की बहुत मन है. उनकी सारी फिल्मे मैंने देखी है.

सवाल-क्या महिला दिवस पर कोई मेसेज देना चाहती है?

मैं यूथ को कहना चाहती हूं कि सभी लड़के और लड़कियां कोरोना से बचने के लिए दिए गए गाइड लाइन्स को फोलो करें, क्योंकि फिर से इसका संक्रमण बहुत बढ़ गया है. इसके अलावा अगर आपमें प्रतिभा है तो आपको किसी गॉडफादर की जरुरत नहीं, मैंने भी घंटो लाइन में खड़े होकर ऑडिशन दिया है और यहाँ पहुंची हूं. मेहनत और धीरज से ही आपको सबकुछ मिल सकता है.

आखिर अभय देओल ने क्यों कहा कि स्पष्टभाषी होने का उनके कैरियर पर असर पड़ा, जाने यहां

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाले अभिनेता और प्रोड्यूसर अभय देओल ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्वभाव से स्पष्टभाषी अभय की चर्चित फिल्म ‘देवडी’ थी. इसके बाद उन्होंने कई अलग-अलग तरह की फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा, राँझणा,अहिस्ता-अहिस्ता, एक चालीस की लास्ट लोकल आदि कई है. वे फिल्मों के मामले में चूजी है और सोच समझकर ही फिल्मों को चुनते है.उनकी हॉट स्टार स्पेशल्स सीरीज ’1962 द वार इन दहिल्स’ रिलीज पर है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- इस फिल्म को करने की खास वजह क्या रही?

इसकी फिलोजोफी मुझे पसंद आई, क्योंकि जंग से किसी को कुछ हासिल नहीं होता. वॉर में जीतने के बाद भी एक ट्रेजिडी रहती है. इसकी कीमत दोनों देश को चुकाना पड़ता है.इसके अलावा जंग में जाने पर उस फौजी की पत्नी और बच्चों की मानसिक दशा पर क्या गुजरती है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. किसी भी तरफ से जंग लड़ने पर उस फौजी को कुछ नहीं मिलता, पर वे देश की खातिर शहीद हो जाते है. कहानी दोनों तरफ की एक ही होती है,  मुझे ये चीजें बहुत पसंद आई और मैंने हां कहा.

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सवाल- फौजी की भूमिका आप पहली बार कर रहे है, कितनी तैयारी करनी पड़ी?

तैयारी एक तरह की ही होती है, सिर्फ एक्शन पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. इस सन्दर्भ में मैं कहना चाहता हूं कि एक्टर्स हमेशा फिट रहते है.अधिकतर काम कहानी पर करना पड़ा, जिसमें उसका ग्राफ, कहानी कैसे जा रही है, कहाँ कैसे ख़त्म हो रही है आदि, क्योंकि एक कलाकार का ग्राफ कहानी के साथ-साथ ही चलता है.

सवाल- फिल्म के किसी भाग को शूट करने में कठिनाई आई?

मैं अभिनय से प्रेम करता हूं इसलिए कभी समस्या नहीं आती. हालाँकि इस शो को लद्दाख में शूट किया गया है, इसलिए वहां जाते समय सांस लेने में परेशानी हुई और दिन अधिक बड़े होने की वजह से कभी-कभी समस्या आई, लेकिन काम करते-करते वह ठीक भी हो गयी.

सवाल- आपने कई फिल्मों में काम किया,लेकिन सभी में एक अलग भूमिका निभाई, इस तरह की अलग भूमिका निभाने की बात आपके मन में कैसे आती है?

मेरी पर्सनालिटी ही वैसी थी, इसलिए मैं ऐसी फिल्मों को चुनता हूं. बचपन से मुझे ट्रेवल करने और फिल्में देखने का मौका हमेशा मिला है. इसमें अमेरिकन, फ्रेंच, ब्रिटिश आदि कई फिल्में मैं देखता था. वर्ल्ड के बारें में मुझे अच्छा ज्ञान था. इसके अलावा मैंने विदेश में पढाई की, वहां रहा, तो मेरा एक्सपोजर इंटरनेशनल था और मैं कई बार ये सोचता था कि ऐसी फिल्में मैं बॉलीवुड में भी बना सकता हूं. एक ही फार्मूले के पीछे हम क्यों जा रहे है,जबकि हमारा कल्चर इतना रिच है, साथ ही यहाँ कई कहानियां भी है. लोग अलग-अलग  कम्युनिटी को एक्स्प्लोर नहीं कर रहे है. ऐसे में मुझे लगा कि कुछ अलग किया जाय और मैंने किया. दर्शकों ने भी उसे पसंद किया.

सवाल- आप स्पष्टभाषी है, क्या इसका असर आपके कैरियर पर पड़ा?

अवश्य पड़ा है, पर मुझे जो कहना था मैंने इंडस्ट्री को कह दिया. चाहे मेरे पीछे कोई रहे या न रहे, पर मैंने जो मुद्दे इंडस्ट्री के अंदर उठाये थे, वे सही मुद्दे थे और कोई उसे गलत भी नहीं कह सकता. अभी जो काम मैं कर रहा हूं और करने जा रहा हूं, उससे मैं बहुत संतुष्ट हूं. भले मुझे ब्लैक लिस्ट किया जाय, पर मैं ऑथेंटिक हूं. मुझे पता है,वही लोग मेरे साथ काम करेंगे, जो मेरी इस अथेंटिसिटी को सम्मान देंगे, लेकिन वैसे लोग इंडस्ट्री में हमेशा से कम थे और जो भी थे, उनकी पॉवर बहुत कम थी. हां ये सही है किमेरे स्पष्टभाषी होने का कैरियर पर असर पड़ा है.

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सवाल- आपके कम काम करने के पीछे की वजह क्या है?

मैं जैसा काम करना चाहता हूं, वैसा लोग लिखते और बनाते नहीं है. शुरुआत में मुझे उसे बनानी पड़ी, फिर चाहे डेव डी, एक चालीस की लास्ट लोकल, मनोरमा आदि कोई भी फिल्म हो. फिल्म ‘डेव डी’ के लिए मैंने खुद आईडिया लिखा. ‘मनोरमा’ फिल्म के लिए मैंने निर्माता और निर्देशक को सबसे परिचय करवाया, सोचा न था फिल्म के लिए निर्देशक इम्तियाज़ अली को मैं ढूंढ कर लाया. मुझे उस मौके को बनाना पड़ा. अभी भी वही फिल्में देखने पर आज के परिवेश के लगते है, जो आज निर्माता, निर्देशक बना रहे है,उसे मैंने 10 से 12 साल पहले कर चुका हूं. अभी जो मैं बनाने जा रहा हूं, उसे भी लोग 10 साल बाद बनायेंगे. मैं बॉलीवुड की सोच से आगे बढ़ चुका हूं. बॉलीवुड के कई लोगों का कहना होता है कि ऐसी फिल्में लोग देखते नहीं है, पर अभी वे ऐसी ही फिल्में बना रहे है, ऐसे में मैं अपने आपको रोक देता हूं.

सवाल- वर्ष 2020 कोरोना संक्रमण की वजह से बहुत कठिन रहा है, ऐसे में आपने कैसे समय बिताया?

पेंड़ेमिक के समय मैं गोवा घर में था और खुश था. योगा, वर्कआउट शुरू किया और कुछ लिखा भी. मैं करीब 7 महीने तक लॉकडाउन में फंस गया था. इसके बाद काम भी शुरू हो चुका था. पेंडेमिक के दौरान ही मुझे काम मिला और मैं कनाडा जाकर डिजनी अमेरिका से जुड़ा. अभी मैं अमेरिका की एक फिल्म ‘स्पिन’ में काम कर चुका हूं, जो गर्मी में रिलीज होगी.

सवाल- आप विदेश में और देश में काम भी काम कर चुके है, दोनों में अंतर क्या पाते है?

अभी अधिक फर्क नहीं है, प्रोफेशनल और तकनीक में करीब एक तरह के काम होते है. कल्चर में थोड़ी अलग है. भारत की कल्चर, कम्युनिटी और ट्रेडिशन दोनों काफी अलग है. फिल्में भी उसी के हिसाब से बनती है. उसके बाहर वे सोच नहीं पाते. जबकि विदेश में बनायीं जाने वाली फिल्में पूरे विश्व को सोचकर बनाई जाती है, जिससे हर देश के लोग रिलेट कर पाते है. फर्क काम में नहीं आइडियाज में है. आइडियाज बॉलीवुड के लिमिटेड है.

सवाल- अभिनय में सफलता का राज क्या है?

सच्चाई और ईमानदारीसे काम करने वाला ही सफल होता है. आप जो है, उसे ही प्रोजेक्ट करें, तो दर्शकों का रेस्पोंस काफी अच्छा रहता है.

सवाल- गृहशोभा के ज़रिये क्या कोई मेसेज देना चाहते है?

सच्चाई और ईमानदारी को अपने जीवन में लायें, किसी से अधिक शिकायत न करें.

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कहानी में समस्या ही खलनायिकी है – गुलशन ग्रोवर

हिंदी सिनेमा जगत में बैडमैन के नाम से चर्चित एक्टर गुलशन ग्रोवर किसी परिचय के मोहताज नहीं. उन्होंने बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड में भी अच्छा नाम कमाया है. इतना ही नहीं उन्होंने इरानियन, मलयेशियन और कनेडियन फिल्मों में भी काम किया है.

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाले गुलशन ग्रोवर ने पढाई ख़त्म करने के बाद कैरियर की शुरुआत थिएटर और स्टेज शो से किया. इसके बाद वे मुंबई आकर एक्टिंग क्लासेस ज्वाइन किये और अभिनय की तरफ मुड़े. उन्होंने हमेशा विलेन की भूमिका निभाई और अच्छा नाम कमाया. उनका फ़िल्मी सफ़र जितना सफल था उतना उनका पारिवारिक जीवन नहीं. काम के दौरान उन्होंने शादी की और एक बेटे संजय ग्रोवर के पिता बने.  उनका रिश्ता पत्नी के साथ अधिक दिनों तक नहीं चल पाया और तलाक हो गया. उन्होंने सिंगल फादर बन अपने बेटे की परवरिश की है. 400 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम कर गुलशन ग्रोवर इन दिनों लॉकडाउन में अपने दोस्तों के साथ बातें कर समय बिता रहे है. उन्होंने गृहशोभा मैगजीन के लिए खास बात की आइये जानते है, कैसा रहा उनका फ़िल्मी सफ़र,

सवाल-लॉक डाउन में आप क्या कर समय बिता रहे है?

लॉक डाउन के इस समय को बहुत पॉजिटिवली इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा हूं. बहुत सारी किताबें जो नहीं पढ़ी, बहुत सारी फिल्में जो नहीं देखी, बहुत सारे काम जो समय की कमी की वजह से नहीं कर पाए जैसे व्यायाम करना, परिवार के लोगों के साथ समय बिताना, ज्ञानी लोगों के साथ बातचीत करना, किसी विषय पर चर्चा करना आदि है. इसमें महेश भट्ट, अक्षय कुमार, मनीषा कोईराला, मेरा क्लास मेट जस्टिस अर्जुन सीकरी, गौतम सिंहानिया, नवाज सिंहानिया, अनिल कपूर, सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ आदि सभी से उनके सम्बंधित विषयों पर बातचीत कर इस लॉक डाउन के प्रभाव और उसके बाद की स्थिति को जानने की कोशिश करता हूं.

 

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#BADMAN will be back soon on silver screen in #Sooryavanshi

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सवाल-लॉक डाउन के बाद इंडस्ट्री कैसे रन करेगी इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लॉक डाउन कोरोना संक्रमण के समस्या का समाधान नहीं, रोग फैले नहीं इसपर लगाम लगाने की एक कोशिश है, नहीं तो पूरे विश्व का इंफ्रास्ट्रक्चर फेल हो जायेगा और त्राहि-त्राहि मच जाएगी. इसके बाद इंडस्ट्री में काम शुरू होना संभव नहीं होगा, मुझे इस बात का डर है, क्योंकि दो अलग विचारधारायें इस विषय पर चल रही है, जिसमें अर्थव्यवस्था संकट सबसे बड़ी होगी. लॉक डाउन हटने के बाद बिमारी बढ़ने के चांसेस अधिक होगी, ऐसे में लोगों को समझना पड़ेगा कि लॉक डाउन में ढील के बाद वे घर से बाहर न निकले, क्योंकि इससे वे परिवार और खुद को खतरे में डाल सकते है. फिल्म इंडस्ट्री काफी समय तक शुरू नहीं हो पायेगी, क्योंकि हमारा कोई भी काम 100-150 लोगों के बिना नहीं हो सकता. शूटिंग नहीं हो पायेगी, क्योंकि ड्रेस मैन, हेयर ड्रेसर, मेकअप मैन आदि सब कलाकारों के काफी नजदीक होते है, ऐसे में काम पर आने वाले लोग स्वस्थ है कि नहीं ये जांचना बहुत मुश्किल होगा. डर-डर के शुरू होगा, पर पहले की तरह काम होने में देर होगी. मैंने सुना है कि कुछ कलाकार अभी से वैक्सीन लगाये बगैर काम पर नहीं आने की बात सोच रहे है, जिसमें सलमान खान, ऋतिक रोशन आदि है. ये अच्छी बात है, क्योंकि खुद की और दूसरों की सेहत का ख्याल रखने की आज सबको जरुरत है. समस्या सभी को होने वाली है. चरित्र एक्टर से लेकर, लाइट मैन, स्पॉट बॉय सभी के काम बंद हो चुके है. एक निर्माता को भी समस्या है, जिसने पैसे लेकर फिल्म बनायीं और उसे रिलीज नहीं कर पा रहा है. इसका उत्तर किसी के पास नहीं है. हम सब भी इसमें शामिल है, जिन्हें जमा की हुई राशि से पैसे निकालकर खर्च करने पड़ रहे है.

सवाल-आपकी 40 साल की जर्नी से आप कितने संतुष्ट है, कोई रिग्रेट रह गया है क्या?

मेरे लिए था शब्द का प्रयोग मैं नहीं कर सकता, क्योंकि अभी भी मैं जबरदस्त काम कर रहा हूं. इस समय मैं 4 बड़ी फिल्म में खलनायक की भूमिका कर रहा हूं. फिल्म सूर्यवंशी, सड़क 2, मुंबई सागा, इंडियन 2 इन सबमें मैं काम कर रहा हूं. मैं पहले की तरह उत्साहित, खुश और व्यस्त हूं. ये दुःख की घड़ी जल्दी निकल जाए, इसकी कामना करता हूं, कोई रिग्रेट नहीं है.

सवाल-आपकी इमेज बैडमैन की है, जिसकी वजह से रियल लाइफ में भी लोग आपसे डरते है, क्या किसी भी देश या शहर में आपने इसे फेस किया?

(हँसते हुए) कैरियर के शुरुआत में हर घड़ी लगातार मैंने इसे फेस किया है, क्योंकि तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं थी.फिल्म देखने के बाद लोग फ़िल्मी मैगजीन से ही कलाकारों के बारें में पढ़ते थे. जब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लोगों के घर तक पहुंचा और उन्होंने हमारे दिनचर्या को देखा, हमारे पार्टी में जाने और सबसे मिलने की तस्वीरें देखी तो लोग हमारी असल जिंदगी से परिचित हुए. हमारे व्यक्तित्व के बारें में उनकी धारणा बदली है, लेकिन वह भी बहुत अधिक नहीं बदला है. ब्रांड का डर हमेशा बना ही रहता है. मुझे याद आता है कि मैं अमेरिका और कनाडा में शाहरुख़ खान के साथ एक शो करने गया था. कनाडा में लड़कियां हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कलाकारों से बहुत प्रेरित होती है. शाहरुख़ खान के कमरे में लड़कियां अकेले लगातार जाती आती रही और सामने की तरफ मेरा कमरा था, जैसे ही उन्हें पता चला कि गुलशन ग्रोवर का कमरा है तो लड़कियां ऑटोग्राफ या पिक्चर लेने के लिए अपने भाई, कजिन, पेरेंट्स, होटल की सिक्यूरिटी, बॉयफ्रेंड आदि के साथ आती थी, जबकि शाहरुख़ खान के साथ अकेले खूब गपशप करती थी. इसके अलावा शुरू-शुरू में जब मैं डिनर होस्ट करता था तो कई हीरोइनों की सहेलियां उन्हें अपने माँ को साथ ले जाने की सलाह देती थी. कुछ एक्ट्रेसेस के रिश्तेदार भी मेरे यहाँ पार्टी में आने से मना करते थे.

सवाल-आपका व्यक्तित्व उम्दा होने के बावजूद क्या आपने कभी हीरो बनने की कोशिश नहीं की?

मुझे पहले ही समझ में आ गया था कि हीरो की सेल्फ लाइफ थोड़ी छोटी होती है. खलनायक की भूमिका में उम्र की कोई समस्या नहीं है. किस तरह के आप दिख रहे है, उसकी समस्या नहीं है. केवल काम अच्छा होना चाहिए. जब आप पर्दे पर आये तो उस भूमिका में जंच जाए. लम्बी सेल्फ लाइफ होने के साथ साथ भूमिका भी चुनौतीपूर्ण होती है. अधिक काम करना पड़ता है और मज़ा भी आता है.

सवाल-पहले की फिल्मों मेंलार्जर देन लाइफवाली कहानी होती थी, जिसमें हीरो, हेरोइन और विलेन हुआ करता था, अब ये कम हो चुका इसकी वजह क्या मानते है?

जो समाज में हो रहा होता है कहानी वैसी ही लिखी जाती है, समाज में उस तरह के स्मगलर, डॉन, सोने के स्मगलर के दौर चले गए. अब खलनायक कोई व्यवसायी, नेता, या भला आदमी हो गया है. जिसे बाद में कहानी में पता चलता है. खलनायक का शारीरिक रूप बदल गया है, अब खलनायक कभी ऊँची नीची जाति, कभी अमीर गरीब, दो लड़की से प्यार, किससे शादी करें या न करें आदि कई विषयों पर केन्द्रित हो गया है. कहानी में समस्या ही खलनायिकी है. अभी फिर से खलनायिकी का दौर शुरू हो चुका है.

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सवाल-क्या मेसेज देना चाहते है?

इस कठिन घड़ी में जब पूरे देश में लॉक डाउन है और इस समय डॉक्टर, नर्सेज, पुलिस और सफाईकर्मी कर्मी दिनरात मेहनत कर हमारी सुरक्षा में लगे है. वे अपने जिंदगी की परवाह किये बिना काम कर रहे है. जब वे अपने घर जाते है तो डरते है कि उनकी वजह से उनके परिवार संक्रमित न हो जाय. फिर भी वे काम कर रहे है. मेरे दिल में उनके लिए बहुत सम्मान है. मैं गृहशोभा के माध्यम से ये कहना चाहता हूं कि ऐसे सभी लोग जो एस्सेंसियल सर्विस में है. सरकार उनके वेतन डबल कर देने के बारें में सोचें,  जैसा कनाडा के प्राइम मिनिस्टर ने अपने देश के लिए किया है.

Mother’s Day 2020: मेरी मां का ड्राइव करना मेरे लिए गर्व हुआ करता था– गोल्डी बहल

फिल्म बस इतना सा ख्वाब है से निर्माता, निर्देशक के क्षेत्र में कदम रखने वाले निर्माता, निर्देशक गोल्डी बहल ने 15 साल की उम्र में अपने पिता और फिल्ममेकर रमेश बहल को खोया. तबसे लेकर आजतक वे फिल्म निर्माण और निर्देशन का काम करते आये है. उन्हें हर नयी कहानी को कहना पसंद है. सालों पहले उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखी और फिल्मों के काम के ज़रिये उन्होंने प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली है. फिल्म ‘नाराज़’ के दौरान, महेश भट्ट को एसिस्ट करते हुए वे अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे से मिले प्यार हुआ, शादी की और बेटा रणवीर के पिता बने. अभी जी 5 पर उनकी वेब सीरीज रिजेक्ट्स का दूसरा भाग रिलीज पर है, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-ये कहानी क्या कहना चाहती है? क्या कोई मेसेज है?

ये यूथ की कहानी है, जहां मौज मस्ती के साथ-साथ थ्रिलर, क्राइम और तकलीफे दोनों ही है. साथ में ये संगीतमय भी है, क्योंकि इसमें एक बैंड की ग्रुप है. इसके अलावा इसमें कुछ ऐसी समस्या भी दिखाई गयी है, जो पैसों से भी हल नहीं हो सकती, ऐसे में वे कैसे बाहर निकलते है उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. बड़े से बड़े इंसान भी पैसे से सबकुछ नहीं कर सकता, कुछ चीजे उनके हाथ में नहीं होती.

फिल्म मेकर के हिसाब से मैंने किसी मेसेज के बारे में नहीं सोचा है, मनोरंजक फिल्म बनाने की कोशिश की है, पर अगर कोई मेसेज जाती है, तो अच्छी बात है.

सवाल-आप यंग ऐज में कैसे थे और कोई यादगार पल जो आप शेयर करना चाहे.

मैं जब 15 साल का था तो मेरे पिताजी गुजर गए थे. उस उम्र में मैंने काम शुरू कर दिया था. मैं कॉलेज जा नहीं पाया. काश मैं उसे फील कर पाता. शायद यही वजह है कि मैं अधिकतर यंग शोज बनाता हूं और जिंदगी को अपनी कहानी और चरित्र के ज़रिये जीता हूं. ये सही है कि मैंने उस अवस्था को जी नहीं पाया और काम पर लग गया. मेरे हिसाब से फिल्म लाइन में भी शिक्षा का होना जरुरी होता है. फिल्म स्कूल में जाना और तकनीक का ज्ञान जरुरी है. मैंने काम के साथ-साथ ट्रेनिंग ली, मसलन किसी का एसिस्टेंट डायरेक्टर बन गया या फिर पिता की अधूरी फिल्म को पूरी कर दी. परिवार का व्यवसाय था, इसलिए उसमें जाकर सीखा और ये सही तरीका नहीं होता है. इसमें प्रैक्टिकल नॉलेज मिल जाती है, लेकिन उसके ग्राफ को बनाये रखने के लिए स्कूल की ट्रेनिंग जरुरी है.

सवाल-आपने ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के बारें में सालों पहले सोचा था और आज इसका बोलबाला है, इस बारें में तब कैसे सोचा ?

मैंने दो तीन फिल्में बनायीं जो बिलकुल कामयाब नहीं थी. मेरी बहन भी मेरे साथ काम करती थी. मैंने सोचा कि जो कहानी मैं कहना चाहता हूं. जब उसे बनाता भी हूं तो उस कहानी के बनने के बाद समय के हिसाब से एडिटिंग करते वक़्त कई चीजे काट देता हूं और कहानी सही नहीं बन पाती. वेब सीरीज की इस फोर्मेट में मैंने देखा कि विदेश में एपिसोडिक फिल्में बन रही है, जिसमें कहानी को कहने के लिए बहुत सारा समय मिल जाता है, ये मुझे अच्छा लगा. मैंने फिर इसी को अपनाना शुरू कर दिया. इसमें बजट और समय की पाबन्दी नहीं होती . ड्रामा अब स्माल स्क्रीन पर आ गया है. हॉल तक न जाकर भी आप फिल्में देख सकते है.

सवाल-लॉक डाउन का असर इंडस्ट्री पर कितना पड़ने वाला है?

कुछ फिल्में जो तैयार है वह ओटीटी पर रिलीज हो जाएगी, जिससे एक्टर्स से लेकर टेक्नीशियन सभी को थोडा-थोडा पैसा मिल जायेगा, जो अच्छी बात है, पर कुछ कहानी के लिए थिएटर ही सही होता है. उन्हें रुकना पड़ेगा. सलमान खान की फिल्म हॉल में ही देखना अच्छा लगता है. इस समय थिएटर सबसे अधिक प्रभावित है, क्योंकि इस हालात में उसे खोलना संभव नहीं होगा. दिवाली तक उम्मीद है थिएटर खुल पायेगा.

सवाल-आप के जीवन में जब मुश्किल घड़ी आई, उससे आप कैसे निकले? देश में भी कठिन दौर चल रहा है, क्या सन्देश देना चाहते है?

समय किसी का नही होता. अगर अच्छा समय नहीं रहता है, तो ख़राब समय भी अधिक दिनों तक नहीं रहेगा. मेरे जीवन में बहुत कठिन दौर आया और इसी के साथ मैं आगे बढ़ा हूं.

देश पर आये इस समय को भी हम अगले साल याद करेंगे, जब सबकुछ ठप्प हो गया था. ये पृथ्वी केवल मानव की नहीं, जीव जंतुओं की भी है. पृथ्वी हमारी नहीं हम पृथ्वी के है.

सवाल-बचपन में मां के साथ बिताया पल जिसे आप मिस करते है?

मां अभी मेरे साथ रहती है. जब भी समय मिलता है, मैं उनके पास बैठ जाता हूं. बचपन में मेरी मां हर जगह ड्राइव कर ले जाती थी, उसे मैं मिस करता हूं. बहुत मज़ा आता था, क्योंकि वह जब भी ड्राइव करती थी तो मैं उनके बगल में बैठता था. मेरे लिए ये बात गर्व का हुआ करता था कि मेरी मां ड्राइव जानती है.

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