महिलाओं में बढ़ते हड्डी और जोड़ों के रोगों से कैसे बचें

युवतियां माहवारी शुरू होने के बाद ही किशोरावस्था में पहुंचती हैं. फिर धीरेधीरे बायोलौजिकल, हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक बदलावों से गुजरते हुए वे वयस्क होती हैं. जिंदगी के ये पड़ाव उन के शरीर में कई बदलाव ले कर आते हैं. इन सब से ज्यादा परेशानी उन्हें हड्डियों व जोड़ों की होती हैं, क्योंकि युवतियां अपने शरीर में हो रहे बदलावों के प्रति लापरवाह होती हैं, जिस से उन्हें कई तरह की बीमारियों जैसे औस्टियोपोरोसिस व औस्टियोआर्थ्राइटिस का सामना करना पड़ता है.

फरीदाबाद, हरियाणा के एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसैस के सीनियर कंसल्टैंट और और्थोपैडिक्स विभाग के प्रमुख डा. मृणाल शर्मा का कहना है कि युवतियों को समस्याओं पर गौर करना चाहिए ताकि वे स्वस्थ जिंदगी जी सकें.

मीनोपौज की मार

आमतौर पर दुनियाभर में महिलाओं को मीनोपौज 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है, लेकिन हाल ही में द इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज के सर्वे से पता चला है कि करीब 4 फीसदी भारतीय महिलाओं को मीनोपौज 29 से 34 साल की उम्र में ही हो जाता है, वहीं जीवनशैली मेें बदलाव के चलते 35 से 39 साल के बीच की महिलाओं का आंकड़ा 8 फीसदी है.

एस्ट्रोजन हार्मोन महिलापुरुष दोनों में पाया जाता है और यह हड्डियों को बनाने वाले औस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मीनोपौज के दौरान महिलाओं का एस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.

शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है और हड्डियों का घनत्व गिरने लगता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

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मोटापा है घातक

न्यूजीलैंड की औकलैंड टैक्निकल यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार, दुनियाभर में करीब 76 फीसदी जनसंख्या मोटापे की शिकार है और सिर्फ 14 फीसदी आबादी का वजन सामान्य है. भौतिक सुखसुविधाओं, खानपान और कसरत न करने से मोटापा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और इस से घुटनों के जोड़ सब से ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि शरीर का सब से ज्यादा वजन घुटने झेलते हैं. यह दबाव घुटने के जोड़ों के पतन का कारण बनता है. इस से महिलाओं को औस्टियोआर्थ्राइटिस होने का खतरा सब से ज्यादा रहता है.

ज्यादातर समय घर या औफिस मेें बैठे रहने, कसरत या फिजिकल काम न करने, वजन बढ़ने और कैल्शियम की कमी औस्टियोआर्थ्राइटिस के रिस्क को बढ़ा देती है. मोटापे से पीडि़त रोगियों के लिए वजन कम करना काफी उपयोगी है, क्योेंकि इस से गठिया के लक्षण और प्रगति में सुधार के लिए महत्त्वपूर्ण लाभ होता है.

विटामिन डी की कमी

हालांकि भारत में सूरज की रोशनी प्रचुर मात्रा में है, इस के बावजूद कई अध्ययन दर्शाते हैं कि भारत में करीब 80 फीसदी लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं. दरअसल, विटामिन डी शरीर में कैल्शियम सोखने में मदद करता है. अगर विटामिन डी की कमी होगी तो शरीर के लिए कैल्शियम सोखना संभव नहीं होगा, जिस से हड्डियों में कमजोरी होगी. इस से औस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के टूटने का खतरा अधिक रहता है. हड्डियों का सीधा असर जोड़ों पर पड़ता है और कमजोर हड्डियां जोड़ों को प्रभावित करती हैं.

यदि किसी युवती का वजन ज्यादा है तो आर्थ्राइटिस का रिस्क कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. इस से उस के घुटनों में दर्द, अकड़न और सूजन आ जाती है और उस का चलनाफिरना मुश्किल हो जाता है.

कैल्शियम की कमी

हम सभी जानते हैं कि हड्डियों का निर्माण व उन्हें मजबूत रखने में कैल्शियम का खास महत्त्व है, इस के बावजूद महिलाएं कैल्शियमयुक्त आहार जैसे दूध, पनीर, दही, हरी पत्तेदार सब्जियां, मेवे, अंडे, मछली इत्यादि प्रचुर मात्रा में नहीं लेतीं. इस से ढलती उम्र में कैल्शियम की कमी शरीर की हड्डियों को कमजोर कर देती है.

वैसे भी 30 साल की उम्र के बाद शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है और ऐसे में अगर उम्र से पहले ही मीनोपौज हो जाए तो एस्ट्रोजन का स्तर गिरने से बोन डैंसिटी तेजी से कम होने लगती है, क्योंकि हार्मोन के प्रभाव से शरीर में कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है. इसलिए कैल्शियम और विटामिन डी युक्त खाना खाएं.

पैराथायरायड

कई बार हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का कारण कैल्शियम या विटामिन डी की कमी नहीं होती बल्कि इस का कारण पैराथायरायड हार्मोन होते हैं. पैराथौयरायड ग्रंथियों का उद्देश्य रक्त के भीतर कैल्शियम को नियंत्रित करना है, जिस से हड्डियां मजबूत होती हैं. अगर शरीर में हार्मोन ज्यादा बनने लगे तो कैल्शियम कम होने लगता है, जिस से हड्डियों की बीमारियां होने लगती हैं.

महिलाओं में हड्डियों की क्षति का स्तर औसतन 2-3 फीसदी प्रतिवर्ष होता है जबकि पुरुषों में हार्मोन फेज के बाद हड्डियों की क्षति का स्तर सिर्फ 0.4 फीसदी होता है. इसलिए अगर महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस हो जाए तो उस का समय रहते इलाज कराएं.

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औस्टियोआर्थ्राइटिस का इलाज

शुरुआती स्टेज में औस्टियोआर्थ्राइटिस का इलाज अकसर पेनकिलर और कसरत से किया जाता है. जबकि पेनकिलर अस्थायी राहत के लिए दी जाती है. कसरत करने से जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. इस से न सिर्फ जोड़ों से, बल्कि भविष्य में होने वाली अन्य बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है.

गंभीर आर्थ्राइटिस में रोगी के लिए चलनाफिरना मुश्किल हो जाता है और तेज दर्द रहता है. इस से मरीज की जिंदगी काफी प्रभावित होती है. ऐसे में क्षतिग्रस्त जोड़ों को बदलना ही आखिरी विकल्प बचता है.

नी रिप्लेसमैंट सर्जरी के दौरान जांघ और पिंडली की हड्डी के जोड़ के बेकार हिस्से को हटा दिया जाता है और उस पर कृत्रिम इंप्लांट लगाया जाता है. इंप्लांट से दर्द में आराम मिलता है और जोड़ों की कार्यक्षमता सुचारु रहती है.

महिलाओं को अपनी हड्डियों व जोड़ों को स्वस्थ रखना चाहिए. हालांकि औस्टियोआर्थ्राइटिस से हुए नुकसान को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता लेकिन विभिन्न निवारक उपायों से इस के स्तर को कम किया जा सकता है.

नियमित कसरत, वजन कम करना, प्रोटीन व कैल्शियमयुक्त आहार लेना, कैफीन से परहेज और चाय व सोडा वाले ड्रिंक कम लेने से जोड़ों को सेहतमंद रखा जा सकता है.

कोरोना संक्रमण में हड्डियों को बनाये रखें मजबूत

कोरोना कहर की वजह से घर पर रहने वाले लोग एक बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे है, जिसमें खास है हड्डियों की मजबूती, जो शारीरिक गतिविधियों के कम होने की वजह से कई प्रकार की समस्याओं मसलन बोन डेंसिटी का कम हो जाना है. इस बारें में मिलेनियम हर्बल केयर के डॉ. दीपेश महेंद्र वाघमारे कहते है कि जब तक कोरोना संक्रमण महामारी जारी है, सभी को एक बड़े स्वास्थ्य संकट से गुजरना पड़ रहा है. विश्व स्तर पर इस महामारी ने पूरी मानव आबादी को अस्त-व्यस्त कर दिया है. हालाँकि लोग कम शारीरिक गतिविधि के साथ अपने घरों तक ही सीमित हैं, इससे तेजी से हड्डी की हानि हो रही है, क्योंकि मांसपेशियों और हड्डियों को पर्याप्त उत्तेजना नहीं मिल रही है। इसके अलावा महामारी के दौरान सूरज के संपर्क में कमी से हमारे शरीर में गंभीर रूप से विटामिन डी का स्तर प्रभावित हो रहा है. ऊर्जा और शक्ति की कमी से लोग अक्सर थकान महसूस करते है.

हर किसी को अपनी हड्डियों की सेहत को लेकर उतना ही सतर्क रहने की जरूरत है जितना कि उनकी अन्य जरूरतों के लिए वे करते है. हड्डी के स्वास्थ्य को हमेशा एक प्राथमिकता देनी चाहिए और इसकी अनदेखा नहीं करनी चाहिए. हड्डी के घनत्व (Bone density) की समस्या साधारण समस्या लगती है, पर समय की अवधि में ये बड़ी समस्या हो सकती है. जबकि ऑस्टियोपोरोसिस पुरुषों और महिलाओं के बीच उम्र के बढ़ने के साथ होता है, जबकि कुछ महिलाओं को उनके 30 के दशक से पहले ही खामियाजा भुगतना पड़ता है. स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ और अनावश्यक हड्डियों के मुद्दों से बचने के लिए, कुछ उपाय निम्न है, जो महामारी के दौरान आपकी हड्डियों की देखभाल कर सकती है.

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लें कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर संतुलित आहार

कैल्शियम के अच्छे स्रोतों में कम वसा वाले डेयरी उत्पाद, हरी पत्तेदार सब्जियाँ और सूखे मेवे शामिल हैं। विटामिन डी के अच्छे स्रोतों में गढ़वाले अनाज, अंडे की जर्दी, समुद्री मछली और दूध शामिल हैं। कैल्शियम और विटामिन डी आपकी हड्डियों की रक्षा के लिए एक साथ काम करते हैं कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाने रखने में मदद करता है,  जबकि विटामिन डी आपके शरीर को कैल्शियम को प्रभावी रूप से अवशोषित करने में मदद करता है.

पर्याप्त विटामिन डी के लिए रहे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में

पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से सूरज का संपर्क सबसे प्राकृतिक तरीका है। सूर्य की अल्ट्राव्हायोलेट बी (यू वी बी) किरणें त्वचा की कोशिकाओं में कोलेस्ट्रॉल को हिट करती हैं, जिससे विटामिन डी संश्लेषण के लिए ऊर्जा मिलती है। अखिल भारतीय अध्ययन के अनुसार सूर्य के संपर्क में आने का सबसे अच्छा समय सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच होता है क्योंकि अल्ट्राव्हायोलेट बी (यूवीबी) किरणों की तरंग दैर्ध्य इस अवधि के दौरान 290-320 nm होती है, जो त्वचा को विटामिन डी बनाने के लिए आवश्यक है।

भरपूर शारीरिक गतिविधियों पर दे ध्यान

मांसपेशियों की तरह, व्यायाम से हड्डियां मजबूत बनती हैं। स्वस्थ हड्डियों के लिए सबसे अच्छा व्यायाम शक्ति निर्माण और वजन बढ़ाने वाले व्यायाम हैं जैसे चलना, सीढ़ियां चढ़ना, वजन उठाना और नृत्य करना. प्रत्येक दिन 30 मिनट का व्यायाम करने की कोशिश करें.

अपनाएं स्वस्थ जीवन शैली

धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन हड्डियों के नुकसान और कमजोर हड्डियों में योगदान देता है. ये हानिकारक आदतें अनजाने में हड्डियों को रक्त की आपूर्ति को कम कर देती हैं, हड्डी बनाने वाली कोशिकाओं के उत्पादन को धीमा कर देती हैं और कैल्शियम के अवशोषण को बिगाड़ देती है. इन आदतों से बचकर, आप अपनी हड्डियों के नुकसान की दर को कम कर सकते हैं और अपनी हड्डियों को नकारात्मक प्रभावों से बचा सकते है.

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हड्डी के स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा तरीका उचित जीवन शैली को अपनाना है और हड्डी बनाने वाली कोशिकाओं (ओस्टियोब्लास्ट) और हड्डी के पुनर्जीवन कोशिकाओं (ओस्टियोक्लास्ट) के स्वस्थ संतुलन को बहाल करना है. उम्र बढ़ने के साथ यह संतुलन एक नकारात्मक दिशा में बदल जाता है, जिससे हड्डियों का नुकसान अधिक होता है, नियमित देखभाल से इसे रोका जा सकता है और आप एक अच्छी जीवनशैली गुजार सकते है.

5 टिप्स: ऐसे मिलेगी हड्डियों और जोड़ों के दर्द से राहत

ठंड के मौसम में हड्डियों की समस्याओं और दर्द से बचने के लिए ऐक्सरसाइज और सैर करना बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे हड्डियों को गरमाहट मिलती है और वे लचीली बनी रहती हैं, जिससे पैरों में अकड़न या दर्द की समस्या नहीं होती है. जीवनशैली से जुड़ी कुछ सावधानियां आपको हड्डियों के दर्द से राहत दिला सकती हैं.

1. मौर्निंग वाक है फायदेमंद

वैसे तो सुबह की सैर हर मौसम में सेहत के लिए फायदेमंद होती है, लेकिन सर्दी के दिनों में यह कुछ खास फायदा देती है. यह शरीर को गरमाहट देने के साथ-साथ स्वास्थ्य और हड्डियों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं से भी बचाए रखने में सहायक होती है.

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2. बैठने की आदतें

जो लोग कंप्यूटर पर बहुत समय तक काम करते रहते हैं उनके जोड़ों में दर्द होना सामान्य है. एक ही जगह ज्यादा देर तक बैठने से हड्डियों में ठंड लगने के कारण अकड़न आ जाती है, जिससे जोड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है. इस समस्या से बचने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर बाद उठ कर शरीर को स्ट्रैच करें. लंबे समय तक एक ही पोस्चर में न बैठें.

3. पर्याप्त कैल्सियम व विटामिन डी

हड्डियां कैल्सियम से बनी होती हैं, लेकिन उन्हें स्वस्थ रखने के लिए सिर्फ कैल्सियम का सेवन ही काफी नहीं, बल्कि विटामिन डी का सेवन भी आवश्यक है. यह कैल्सियम के अवशोषण में मददगार होता है. विटामिन डी की कमी से हड्डियों में अकड़न आने लगती है और मांसपेशियों में कमजोरी आती है. यदि इन समस्याओं से बचना है और हड्डियों को मजबूत बनाए रखना है तो विटामिन डी और कैल्सियम की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें.

4. खानपान पर ध्यान

दूध, दही, ब्रोकली, हरी पत्तेदार सब्जियां, तिल जैसे पौष्टिक आहार को अपने खाने में शामिल कर कैल्सियम की जरूरत पूरी कर सकते हैं. विटामिन डी का सब से अच्छा स्रोत सूर्य की रोशनी है. डेयरी उत्पाद तथा कई अनाज, सोया दूध और बादाम के दूध में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होता है.

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5. मालिश

सरसों या जैतून के तेल से शरीर की मालिश करवाएं. अगर किसी खास हिस्से में दर्द होता है तो गरम तेल से मालिश करने पर दर्द में आराम मिलेगा. जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर की सलाह से पेन रिलीफ जैल या स्प्रे भी ले सकती हैं.

जानें क्या है हड्डियों और जोड़ों में दर्द के कारण

जाड़े का मौसम शुरू होते ही लोग हड्डियों और जोड़ों के  दर्द से परेशान होने लगते हैं. दरअसल, जब हमारी त्वचा सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आती है तो हमारा शरीर विटामिन डी बनाता है, जिस से हड्डियां मजबूत रहती हैं. लेकिन सर्दियों में धूप कम रहने के कारण शरीर इसे ठीक से नहीं बना पाता. सेहत का पूरा खयाल न रखा जाए तो यह मौसम हड्डियों और जोड़ों से जुड़ी कई तरह की समस्याओं का शिकार बना सकता है. इस संदर्भ में सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर के डा. अखिलेश यादव कहते हैं कि जाड़े के मौसम में आमतौर पर 4 तरह की परेशानियां सिर उठाने लगती हैं:

1. जौइंट पेन

जिन लोगों को रूमैटौइड आर्थ्राइटिस या औस्टियोपोरोसिस जैसी समस्या होती है उन्हें ठंड के मौसम में दर्द ज्यादा होता है. दरअसल, जोड़ों के अंदर एक  झिल्ली होती है, जिसे साइनोवियल मैंब्रेन कहते हैं. इस में ठंड की वजह से इरिटेशन होती है, जिस से इन्फ्लेमेशन हो जाता है और दर्द होने लगता है.

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2. मस्क्युलर पेन

ठंड में मसल्स में भी ठंड लग जाती है, जिस की वजह से ब्लड सर्कुलेशन स्लो हो जाता है. इस से मसल्स सिकुड़ और ऐंठ जाती हैं. हड्डियों के लचीलेपन में भी कमी आ जाती है, जिस से दर्द होने लगता है.

3. न्यूरोलौजिकल पेन

हर्निएटेड डिस्क की प्रौब्लम में ठंड के मौसम में इस तरह की समस्याएं और बढ़ जाती हैं, क्योंकि बैक के आसपास की मसल्स ठंड में सिकुड़ती हैं तो नर्व पर प्रैशर बढ़ा देती हैं. इस से दर्द होने लगता है.

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4. पुरानी चोट

हड्डियों की पुरानी चोट जाड़े में बहुत परेशान करती है. उस खास हिस्से में ब्लड सर्कुलेशन घट जाने से वहां दर्द बढ़ जाता है.

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