स्तन कैंसर: निदान संभव है

भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है. ऐसे मामले विश्व स्तर पर हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रहे हैं. यह महिलाओं में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण भी है.

आज हमारे पास स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का मौका है. स्तन कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है ओर हारमोन थेरेपी, इम्यूनो थेरेपी और टारगेटेड थेरेपी जैसी नई विकसित के जरीए पहले की तुलना में अधिक विश्वास के साथ इसका इलाज किया जा सकता है.

सेल्फ एग्जामिनेशन

यदि प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लग जाता है तो उपचार अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है. इस अवस्था में कैंसर छोटा और स्तन तक सीमित होता है.

शुरुआत में एक छोटी गांठ की उपस्थिति या स्तन के आकार में बदलाव के अलावा कोई कथित लक्षण नहीं होता है, जिसे रोगियों द्वारा आसानी से अनदेखा किया जा सकता है. यही वह समय है जब स्क्रीनिंग जरूरी है. स्क्रीनिंग टेस्ट से स्तन कैंसर के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. ऐसे में जब कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते तब भी स्क्रीनिंग के द्वारा हमें इस बीमारी का पता चल सकता है. स्क्रीनिंग के लिए नियमित रूप से डाक्टर के पास जाना चाहिए ताकि रोगी महिला के स्तन की पूरी तरह से जांच कर सकें. डाक्टर अकसर इस के जरीए ब्रेस्ट में छोटीछोटी गांठ या बदलाव का पता लगा लेते हैं. वे महिलाओं को सेल्फ एग्जामिनेशन करना भी सिखा सकते हैं ताकि महिलाएं खुद भी इन परिवर्तनों को पकड़ सकें.

हालांकि मैमोग्राफी स्तन कैंसर की जांच का मुख्य आधार है. यह एक एक्स-रे एग्जामिनेशन है और गांठ दिखने से पहले ही स्तनों में संदिग्ध कैंसर से जुड़े परिवर्तनों का पता लगाने में मदद करता है.

पहला मैमोग्राम कराने और इसके बाद भी कितनी बार मैमोग्राम कराना है. यह इस पर निर्भर करता है कि उस महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का रिसक कितना है. जिन महिलाओं के रक्त संबंधी स्तन कैंसर या ओवेरियन कैंसर से पीडि़त हैं और जिनको पहले भी स्तनों से जुड़ी कुछ असामान्यताओं जैसे स्तनों में गांठ, दर्द या डिस्चार्ज आदि का सामना करना पड़ा है उन्हें जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफ कराना चाहिए. दूसरों को 40 साल की उम्र के बाद हर साल या हर 2 साल में जांच करवानी चाहिए.

टेस्टिंग

अगर मैमोग्राम में कैंसर का कोई संदिग लक्षण दिखता है तो पक्के तौर पर कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बायोप्सी की जाती है. इस प्रक्रिया में संदिग्ध क्षेत्र से स्तन ऊतक के छोटे हिस्से को निकाल लिया जाता है और कैंसर सेल्स का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है.

उच्च जोखिम वाल महिलाओं के लिए, बीआरसीए म्युटेशन जैसी जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की भी सिफारिश की जाती है. ‘बीआरसीए’ दरअसल ब्रेस्ट कैंसर जीन का संक्षिप्त नाम है. क्चक्त्रष्ट्न१ और क्चक्त्रष्ट्न२ दो अलगअलग जीन हैं तो किसी व्यक्ति के स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं. जिन महिलाओं में ये असामान्यताएं होती हैं उन सभी को स्तन कैंसर हो ऐसा जरूरी नहीं, मगर उनमें से 50% को यह जिंदगी में कभी न कभी जरूर होता है.

वीआरसीए जीन असामान्यता वाली महिलाओं को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए और नियमित रूप से वार्षिक मैमोग्राम कराने से चूकता नहीं चाहिए. जो महिलाएं नियमित रूप से जांच नहीं कराती हैं उनके लिए यह संभावना बढ़ जाती है कि उनके स्तन कैंसर का पता लेटर स्टेज या एडवांस स्टेज पर लगेगा. इस स्तर पर कैंसर संभावित रूप से स्तन या शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल सकता है. ऐसे में इलाज एक चुनौती बन जाती है, लेकिन जब डाइग्रोसिस शुरुआती स्टेज में हो जाती है तब इलाज के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं जो कैंसर का सफलतापूर्वक कर पाते हैं और इसके फिर से होने की संभावना पर भी रोक लगाते हैं.

आपके लिए कौन सा इलाज अच्छा

होगा यह प्रत्येक कैंसर की प्रोटीन असामान्यताओं पर निर्भर करता है, जिसका पता कुछ खास जांच द्वारा लगाया जाता है. एडवांस्ड थैरेपीज जिसे इम्मुनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हारमोनल थेरेपी इन विशेष अब्नोर्मिलिटीज पर काम करती है और बेहतर परिणाम देती हैं.

कुछ रोगियों के लिए ये उपचार पारंपरिक कीमोथेरेपी की जगह भी ले सकते हैं. कुछ उपचार जो कैंसर दोबारा होने से रोकते हैं उन्हें गोलियों के रूप में मौखिक रूप से भी लिया जा सकता है. यह अर्ली स्टेज के स्तन कैंसर की मरीज को भी एक अच्छी जिंदगी जीने को संभव बनाते हैं.

प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर डायग्नोज होने वाली महिलाओं में से 90% से अधिक इलाज के बाद लंबे समय तक रोग मुक्त जिंदगी जी सकती हैं. लेकिन भारत में स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं की 5 साल तक जीवित रहने की दर महज 42-60% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लगभग आधे रोगियों का पता केवल अंतिम चरण में चलता है.

हम इसे बदल सकते हैं. यदि महिलाएं अपने थर्टीज में स्तन कैंसर की जांच की योजना बनाती हैं और लक्षणों के प्रकट होने की प्रतीक्षा नहीं करती हैं.

स्तन कैंसर का डायग्नोज होना अब मौत की सजा की तरह नहीं होना चहिए क्योंकि हम कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं और हमारे पास इसके सफल उपचार के लिए इफेक्टिव थेरेपीज हैं.

स्तन कैंसर: निदान संभव है

भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है. ऐसे मामले विश्व स्तर पर हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रहे हैं. यह महिलाओं में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण भी है.

आज हमारे पास स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का मौका है. स्तन कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है ओर हारमोन थेरेपी, इम्यूनो थेरेपी और टारगेटेड थेरेपी जैसी नई विकसित के जरीए पहले की तुलना में अधिक विश्वास के साथ इसका इलाज किया जा सकता है.

सेल्फ एग्जामिनेशन

यदि प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लग जाता है तो उपचार अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है. इस अवस्था में कैंसर छोटा और स्तन तक सीमित होता है.

शुरुआत में एक छोटी गांठ की उपस्थिति या स्तन के आकार में बदलाव के अलावा कोई कथित लक्षण नहीं होता है, जिसे रोगियों द्वारा आसानी से अनदेखा किया जा सकता है. यही वह समय है जब स्क्रीनिंग जरूरी है. स्क्रीनिंग टेस्ट से स्तन कैंसर के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. ऐसे में जब कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते तब भी स्क्रीनिंग के द्वारा हमें इस बीमारी का पता चल सकता है. स्क्रीनिंग के लिए नियमित रूप से डाक्टर के पास जाना चाहिए ताकि रोगी महिला के स्तन की पूरी तरह से जांच कर सकें. डाक्टर अकसर इस के जरीए ब्रेस्ट में छोटीछोटी गांठ या बदलाव का पता लगा लेते हैं. वे महिलाओं को सेल्फ एग्जामिनेशन करना भी सिखा सकते हैं ताकि महिलाएं खुद भी इन परिवर्तनों को पकड़ सकें.

हालांकि मैमोग्राफी स्तन कैंसर की जांच का मुख्य आधार है. यह एक एक्स-रे एग्जामिनेशन है और गांठ दिखने से पहले ही स्तनों में संदिग्ध कैंसर से जुड़े परिवर्तनों का पता लगाने में मदद करता है.

पहला मैमोग्राम कराने और इसके बाद भी कितनी बार मैमोग्राम कराना है. यह इस पर निर्भर करता है कि उस महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का रिसक कितना है. जिन महिलाओं के रक्त संबंधी स्तन कैंसर या ओवेरियन कैंसर से पीडि़त हैं और जिनको पहले भी स्तनों से जुड़ी कुछ असामान्यताओं जैसे स्तनों में गांठ, दर्द या डिस्चार्ज आदि का सामना करना पड़ा है उन्हें जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफ कराना चाहिए. दूसरों को 40 साल की उम्र के बाद हर साल या हर 2 साल में जांच करवानी चाहिए.

टेस्टिंग

अगर मैमोग्राम में कैंसर का कोई संदिग लक्षण दिखता है तो पक्के तौर पर कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बायोप्सी की जाती है. इस प्रक्रिया में संदिग्ध क्षेत्र से स्तन ऊतक के छोटे हिस्से को निकाल लिया जाता है और कैंसर सेल्स का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है.

उच्च जोखिम वाल महिलाओं के लिए, बीआरसीए म्युटेशन जैसी जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की भी सिफारिश की जाती है. ‘बीआरसीए’ दरअसल ब्रेस्ट कैंसर जीन का संक्षिप्त नाम है. क्चक्त्रष्ट्न१ और क्चक्त्रष्ट्न२ दो अलगअलग जीन हैं तो किसी व्यक्ति के स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं. जिन महिलाओं में ये असामान्यताएं होती हैं उन सभी को स्तन कैंसर हो ऐसा जरूरी नहीं, मगर उनमें से 50% को यह जिंदगी में कभी न कभी जरूर होता है.

वीआरसीए जीन असामान्यता वाली महिलाओं को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए और नियमित रूप से वार्षिक मैमोग्राम कराने से चूकता नहीं चाहिए. जो महिलाएं नियमित रूप से जांच नहीं कराती हैं उनके लिए यह संभावना बढ़ जाती है कि उनके स्तन कैंसर का पता लेटर स्टेज या एडवांस स्टेज पर लगेगा. इस स्तर पर कैंसर संभावित रूप से स्तन या शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल सकता है. ऐसे में इलाज एक चुनौती बन जाती है, लेकिन जब डाइग्रोसिस शुरुआती स्टेज में हो जाती है तब इलाज के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं जो कैंसर का सफलतापूर्वक कर पाते हैं और इसके फिर से होने की संभावना पर भी रोक लगाते हैं.

आपके लिए कौन सा इलाज अच्छा

होगा यह प्रत्येक कैंसर की प्रोटीन असामान्यताओं पर निर्भर करता है, जिसका पता कुछ खास जांच द्वारा लगाया जाता है. एडवांस्ड थैरेपीज जिसे इम्मुनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हारमोनल थेरेपी इन विशेष अब्नोर्मिलिटीज पर काम करती है और बेहतर परिणाम देती हैं.

कुछ रोगियों के लिए ये उपचार पारंपरिक कीमोथेरेपी की जगह भी ले सकते हैं. कुछ उपचार जो कैंसर दोबारा होने से रोकते हैं उन्हें गोलियों के रूप में मौखिक रूप से भी लिया जा सकता है. यह अर्ली स्टेज के स्तन कैंसर की मरीज को भी एक अच्छी जिंदगी जीने को संभव बनाते हैं.

प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर डायग्नोज होने वाली महिलाओं में से 90% से अधिक इलाज के बाद लंबे समय तक रोग मुक्त जिंदगी जी सकती हैं. लेकिन भारत में स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं की 5 साल तक जीवित रहने की दर महज 42-60% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लगभग आधे रोगियों का पता केवल अंतिम चरण में चलता है.

हम इसे बदल सकते हैं. यदि महिलाएं अपने थर्टीज में स्तन कैंसर की जांच की योजना बनाती हैं और लक्षणों के प्रकट होने की प्रतीक्षा नहीं करती हैं.

स्तन कैंसर का डायग्नोज होना अब मौत की सजा की तरह नहीं होना चहिए क्योंकि हम कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं और हमारे पास इसके सफल उपचार के लिए इफेक्टिव थेरेपीज हैं.

-डा. सुरेश एच. आडवाणी द्वारा एमडी, (एफआईसीपी, एफएनएएमएस, कंसल्टेंट आन्कोलौजिस्ट)

 

जानें क्या है ब्रैस्ट कैंसर और इससे जुड़े सर्जरी के औप्शन

बदलते जीवन शैली की वजह से भारत में कैंसर एक महामारी के रूप में फ़ैल रहा है. शोध में यह पाया गया है कि लगभग 20 साल बाद कैंसर के मरीजों की संख्या दुगुनी हो जायेगी. आज शायद ही कोई ऐसा परिवार है, जिसके घर में कैंसर का एक मरीज न हो. गलत लाइफस्टाइल की कीमत लोगों को कैंसर के रूप में मिल रहा है और इसमें सबसे अधिक ब्रैस्ट कैंसर के रोगी है, जिसका समय रहते इलाज करने पर कुछ हद तक रोगी को बचाया जा सकता है. ब्रैस्ट कैंसर होने पर कई महिलाओं के ब्रैस्ट भी निकाल दिया जाता है, जिसका प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, इसे ध्यान में रखते हुए ‘पूर्ति’ की शुरुआत की गई है, जो महिलाओं को जीने की आजादी दे सकें. 

इस बारें में कोलकाता, टाटा मेडिकल सेंटर की ब्रैस्ट ओंको सर्जन डॉ. रोजीना अहमद कहती है कि पिछले कुछ सालों में ब्रैस्ट कैंसर के मरीज पूरे विश्व में बहुत अधिक बढ़ चुके है, लेकिन भारत में इसकी संख्या अभी कम है, यहाँ 3 वेस्टर्न महिलाओं में एक महिला भारत की ब्रैस्ट कैंसर से पीड़ित है, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह संख्या पहले से बढ़ी है. एक साल में करीब 800 से 900 महिलाएं ब्रैस्ट कैंसर की मेरे डिपार्टमेंट में आती है. जिसमें 800 महिलाओं को सर्जरी की जरुरत पड़ती है, जिसमें 200 एडवांस केस के मरीज की सर्जरी नहीं की जाती, जबकि 400 महिलाओं के ब्रैस्ट को प्रिजर्व कर लिया जाता है और 400 को फुल ब्रैस्ट रिमुवल की जरुरत पड़ती है. ब्रैस्ट कैंसर बढ़ने की वजह बताना मुश्किल है, लेकिन कुछ वजह निम्न है, 

  • जेनेटिक है, तो इसे पता करना मुश्किल नहीं होता, क्योंकि मरीज को अनुवांशिकी से मिला है, जिसकी संख्या बहुत कम है,
  • बाकी महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर गलत लाइफस्टाइल की वजह से होती है. केवल 8 से 15 प्रतिशत अनुवांशिक मरीज होते है और इन्हें पहचान पाना आसान होता है, जबकि दूसरी महिलाओं की जीवन शैली में बदलाव की वजह से ब्रैस्ट कैंसर होता है, जिसे समझ पाना मुश्किल होता है. 
  • यंग लड़कियों में होने की वजह अधिकतर जेनेटिक होता है. जो एक या दो जेनेरेशन के बाद भी हो सकता है, 
  • कुछ यंग लड़कियों में जेनेटिक चेंज यानि म्युटेशन जो अधिकतर प्रेगनेंसी के बाद होती है, ऐसे में परिवार के किसी को ब्रैस्ट कैंसर न होने पर भी उस महिला को ब्रैस्ट कैंसर हो सकता है. इसलिए ये चिंता का विषय है, जिसके बारें में सोचने की जरुरत है. ब्रैस्ट कैंसर के मरीज केवल किसी एक राज्य में नहीं पूरे देश में बढ़ रहा है. पहले एक धारणा थी कि ये शहरों में होता है, गांव में नहीं,पर अब गांव में भी होता है. अंतर इतना है कि गांव की अपेक्षा शहरों में थोडा अधिक होता है. इस बीमारी के बढ़ने की वजह अधिकतर महिलाओं का समय पर शारीरिक जाँच न करवाना है, जिससे कैंसर का पता नहीं चल पाता. 

ये भी पढ़ें- बेहद आसान है मोटापा कम करना, जानिए कैसे

इसके आगे डॉ.रोजीना कहती है कि जब महिलाएं शुरू में ब्रैस्ट पर एक गाँठ के साथ आती है, तो हमारी कोशिश होती है कि ब्रैस्ट को प्रीसर्व किया जाय, लेकिन कई बार सेर्जेरी से उसके ब्रैस्ट पूरी तरह से निकाल दिया जाता है. शुरू-शुरू में ब्रैस्ट कैंसर के मरीज डॉक्टर के पास पहुँचने से उनका इलाज संभव होता है. वैसे ब्रैस्ट कैंसर कई प्रकार के होते है, लेकिन स्टेज वन और स्टेज टू में आने पर भी 95 प्रतिशत महिलाओं का इलाज हो सकता है और ब्रैस्ट रिमूवल की जरुरत नहीं पढ़ती. कई बार लोग सोचते है कि ब्रैस्ट के कुछ पार्ट को निकलने से कैंसर वापस आ सकती है, पूरा ब्रैस्ट निकलना सही है,  ये बातें मिथ है. 

doc

पहले करीब 40 से 60 सालों से जब महिला का ब्रैस्ट कैंसर के होने से उसे निकाल देना ही एक रास्ता था, ऐसे में महिलाएं मानसिक रूप से टूट जाती थी. उन्हें लगता था कि उनका प्राइवेट जीवन अब अधूरा हो गया है. आज कई विकल्प है, अगर महिला के पास पैसे है, तो कॉस्मेटिक सर्जरी कर ब्रैस्ट इम्प्लांट कर लेती है, या फिर बाज़ार में कुछ ऐसी चीजो को खोजती है, जिनका प्रयोग वे ब्रैस्ट की जगह कर सकें. ‘पूर्ति’ इस दिशा में एक अच्छा आप्शन है जो ब्रैस्ट रिमूवल के बाद महिला को सामान्य जिंदगी जीने में सहयोग करती है,जो एक ब्रा के रूप में होता है, जिसके अंदर सिलिकॉन की पैडिंग होती है, जिसे पहनने पर  बाहर से कोई भी समझ नहीं सकता है कि महिला का ब्रैस्ट रिमुव हुआ है और उसे समाज में जीने की आज़ादी मिलती है. ये सही है जब महिला अपने कपडे उतारती है, तो उसे अपना शरीर दिखता है, जो उन्हें ख़राब लगता है, लेकिन कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत ही खर्चीला होता है, जिसे हर महिला करवा नहीं सकती. 

इसके आगे डॉक्टर का कहना है कि ब्रैस्ट कैंसर एक पेनफुल बीमारी नहीं होती, क्योंकि कई बार पीरियड साइकिल के लिए भी ब्रैस्ट में दर्द होता है. इसलिए ब्रैस्ट में हुए दर्द को सामान्य मानकर डॉक्टर के पास नहीं जाती, इसलिए ये धीरे-धीरे बढ़ जाती है. महिलाओं से कहना है कि कोई भी गांठ अगर ब्रैस्ट में दर्द या बिना दर्द के भी हो, तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें और इलाज करवाएं.

‘पूर्ति’ की कांसेप्ट को रियल बनाने में दिल्ली के बायोकेमिस्ट, ब्रैस्ट कैंसर रिसर्चर, डॉक्टर पवन मेहरोत्रा का काफी प्रयास रहा है. कई साल विदेश में ब्रैस्ट कैंसर के लिए दवाइयां बनाने का काम करने के बाद वे भारत में टाटा फंडामेंटल रिसर्च से जुड़े और वहां स्तन कैंसर के कई डॉक्टर्स के साथ मिलकर, ब्रैस्ट कैंसर की बीमारी के बढ़ने के बारें में जानकारी हासिल कर स्तन कैंसर के लिए सही दवाई बनाने की कोशिश करने लगे. इस काम को करते हुए डॉ. पवन बंगलुरु के एक अस्पताल के कैंसर वार्ड में गए, जहाँ उन्होंने देखा कि दक्षिण की महिलाएं अधिकतर साड़ी पहनती है और उनमें कुछ महिलाये साड़ी की पल्लू लेफ्ट में, तो कुछ राईट में पल्लू रखी थी. इसकी वजह के बारें में पूछने पर महिलाओं के पति ने बताया कि इन महिलाओं में किसी की राईट तो किसी की लेफ्ट ब्रैस्ट को निकाले जाने की वजह से इन्होने पल्लू ऐसे रखी है और मानसिक रूप से महिलाएं परेशान भी है, क्योंकि एक ब्रैस्ट के निकाले जाने की वजह से उनके शरीर का संतुलन बिगड़ गया है, जिससे उनके गर्दन और कन्धों पर दर्द होता रहता है. 

doctor

इस बारें में डॉ. पवन आगे कहते है कि उन महिलाओं के पति ने इलाज के साथ-साथ रिक्त स्थान की पूर्ति की भी बात मेरे सामने रखा. यही से ये कांसेप्ट मेरे दिमाग में आया और इस क्षेत्र में न रहते हुए भी मैं इस समस्या से जुड़ गया और दिल्ली की आई आई टी में बच्चों के साथ फर्स्ट इयर की पढाई कर मैन्यूफैक्चरिंग को सीखा और पूर्ति की स्थापना की, जिसमें रोगी की समस्या का खास ध्यान रखा गया. इसे बनाने में कई अस्पतालों और बायोटेक्नोलॉजी ने काफी सहयोग दिया. ट्रायल के लिए सारे अलग-अलग प्रोस्थेसिस होते है, जिसे ‘सम्पूर्ति सूटकेस’ कहते है. महिलाएं अपने हिसाब से अस्पताल में ट्रायल कर साइज़ बताने पर मरीज को ‘पूर्ति’ मिलती है. इस तरह ‘सम्पूर्ति पूर्ति सिस्टम’ का ये अभियान पिछले कई सालों से चल रहा है. अभी हजारों में महिलाएं इसका प्रयोग कर रही है. करीब 16 राज्यों में इसकी मांग है. श्रीलंका और बांग्लादेश में भी महिलाएं इसे पसंद कर रही है. इसमें कई स्तन कैंसर की महिलाओं को रोजगार भी मिला है, जिसमें वह नए मरीज को ट्रायल के बाद पूर्ति की किट देती है, जिसमें उन्हें कुछ रकम भी मिल जाती है. 

ये भी पढ़ें- तो हाजमा रहेगा सही

डॉक्टर पवन कहते है कि ब्रैस्ट सर्जरी के 2 से 3 महीने बाद इस ब्रा का प्रयोग किया जा सकता है. ये प्रोडक्ट चश्मे की तरह है, जिसे कई सालों तक चलाया जा सकता है. सिलिकॉन लाइट वेट से बना इस उत्पाद का अनुभव नार्मल ब्रैस्ट की तरह मुलायम होता है. इसमें केवल ब्रा को लेना पड़ता है, क्योंकि वह धोने से फट जाता है. बाकी प्रोडक्ट दिए गए निर्देश के अनुसार देखभाल करने पर सालों तक चलते है. महिलाओं से उनका कहना है कि दांत की तरह वे अपने ब्रैस्ट का भी ध्यान दें.

कोरोना वायरस पेंडेमिक का ब्रेस्ट कैंसर पर प्रभाव

कोरोना संक्रमण  और लॉक डाउन ने अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाया है. संक्रमण होने की संभावना के डर से लोगों ने नियमित जांच के लिए हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी जाने से परहेज किया है, जिसकी वजह से दूसरी बीमारियों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. इस बारें में  आदित्य बिड़ला हॉस्पिटल के ब्रैस्ट सर्जन डॉ, दीपाली गोंजारी कहती है कि ब्रेस्ट कैंसर भी ऐसी ही एक बीमारी है जो पूरी दुनिया के लोगों के लिए, खास तौर पर महिलाओं के लिए बड़ी चिंता का विषय है. इस महामारी के चलते भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और ऐसी परिस्थिति में मरीजों की जान बचाने के लिए शुरुआती दौर में जाँच और उपचार की अहमियत काफी बढ़ गई है.

इस महामारी का सबसे बुरा असर यह हुआ है कि आज ज्यादातर लोग नियमित शारीरिक जांच से परहेज करने लगे हैं, जिसमें मैमोग्राम जैसे आवश्यक स्वास्थ्य जांच भी शामिल है. दरअसल मेमोग्राम ब्रेस्ट का एक्स-रे है, जिसकी मदद से ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों की पहचान की जाती है. शुरुआत में इस बीमारी का पता लगाए जाने पर उस मरीज के ठीक होने की संभावना भी काफी अधिक होती है. आजकल कई अत्याधुनिक तरीकों से ब्रेस्ट कैंसर का इलाज किया जाता है और मरीज इलाज के इन तरीकों का फायदा उठा सकते हैं.

खुद से करें जाँच 

हालांकि रूटीन चेकअप के तौर पर मैमोग्राम कराना बेहद जरूरी होता हैं, लेकिन खुद से जांच करना भी महत्वपूर्ण है. खुद से जांच करने के लिए  ब्रेस्ट का खुद से अवलोकन करने और स्पर्श के जरिए भी पता लगाया जा सकता है, जिसमें ब्रेस्ट में होने वाले किसी भी बदलाव का पता लगाने के सबसे आसान तरीका है.  अगर ब्रेस्ट में किसी भी तरह के रैशेस, दर्द, गांठ, सिकुड़न, सूजन, डिम्पल बनना, ब्रैस्ट का बेढंगापन आदि लक्षण नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.

ये भी पढ़ें- इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा हो सकता है जानलेवा

बदल गए है इलाज के तरीके 

शुरुआती चरण में पता लगाना ही कैंसर की रोकथाम का सबसे कारगर तरीका होता है. इस हालात को देखते हुए डॉक्टरों ने टेली-कंसल्टेशन की शुरुआत की है. इसकी मदद से अब मरीज को कोरोनावायरस के संपर्क में आने का खतरा नहीं रहता है और रेग्यूलर फॉलो-अप करना आसान हो जाता है.पहली बार डॉक्टर से परामर्श के लिए वे टेली-कंसल्टेशन का उपयोग कर सकते हैं, जहां मरीज को उचित इमेजिंग और आगे की कार्यवाही का सुझाव दिया जा सकता है.इसके बाद मरीज बायोप्सी की जांच के साथ-साथ इस बीमारी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जांच के रिपोर्टों के साथ डॉक्टर के पास परामर्श के लिए जा  सकते हैं. मरीजों को कोरोनावायरस के संपर्क में आने के डर की वजह से डॉक्टर के पास परामर्श के लिए जाने से परहेज नहीं करना चाहिए. टेली-कंसल्टेशन की वजह से  मरीजों को अस्पताल के कई चक्कर लगाने से भी छुटकारा मिल जाता है. अस्पतालों द्वारा भी कई नियम और हायजिन के तरीके अपनाए गए हैं, जिससे व्यक्तिगत या शारीरिक परामर्श की जरूरत पड़ने पर भी संक्रमण के जोखिम से बचा जा सकें

न करें नज़रंदाज़ 

इसके आगे डॉ. दीपाली कहती है कि किसी भी तरह के संक्रमण के इलाज को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए और परिस्थितियों को गंभीर होने से बचाने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए. लोगों को इस बारे में शिक्षित करना बेहद जरूरी है ताकि वे गैर-कोविड बीमारियों को नजरअंदाज न करें. साथ ही किसी भी प्रकार की देरी इलाज में न हो, इसका भी ध्यान रखें.  इसके अलावा, अस्पतालों में गैर-कोविड बीमारियों की बिना रुकावट जांच को जारी रखना और अस्पतालों में ओपीडी (OPD) में सुरक्षा के बारे में लोगों को जानकारी रखने की भी जरुरत है.

इलाज की अत्याधुनिक तकनीक

अस्पताल ने मरीजों के इलाज के लिए नए ज़माने के अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाया है, जिसमें नए ज़माने के अनुरूप पूर्वानुमान परीक्षण (प्रॉग्नास्टिक ऐनलाइज़) की सुविधा मौजूद है, जिससे बेहद सटीक तरीके से प्रारंभिक चरण में ही ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम का अनुमान लगाने में मदद मिलती है. इस तरह ट्यूमर बायोलॉजी के आधार पर मामले को कम और उच्च जोखिम के तौर पर वर्गीकरण किया जाता है.

ये भी पढ़ें- कहीं हेल्थ पर भारी न पड़ जाए टैटू का क्रेज

हालांकि कोरोनो वायरस एक ख़तरनाक महामारी है, लेकिन इसकी वजह से आपको अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अपनी सेहत की नियमित जांच और परामर्श से समझौता भी न करें. कैंसर के इलाज में देरी होने से उसका प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है. ये सही है कि अस्पतालों में अपॉइंटमेंट लेने के बाद डॉक्टर से परामर्श के लिए जाते समय आपको पूरी सावधानी बरतने की जरुरत है, ताकि आप संक्रमण के शिकार न हो.

doctor

जानें क्या है ब्रेस्ट कैंसर

‘कैंसर’ शब्द न तो आंखों को सुहाता है, न ही कानों को अच्छा लगता है. यह विचारों और दृश्यों को नकारात्मक बना देता है, वास्‍तव में ऐसा नहीं होना चाहिये और इसका सरलता से निदान होना चाहिये. वर्तमान में मामलों की संख्या और मृत्यु दर के आधार पर भारत में ब्रेस्ट कैंसर सबसे आम है. लेकिन अच्छी खबर यह है कि यह सभी प्रकार के कैंसरों में सबसे अधिक रोकथाम योग्य है.

एक पुरानी कहावत है, ‘‘रोकथाम उपचार से बेहतर होती है’’, लेकिन हमने इस पर ध्यान नहीं दिया और हम तभी जागते हैं, जब समस्या उन्नत अवस्था में पहुँच जाती है. ब्रेस्ट कैंसर के कारकों, लक्षणों, उपचार, प्रबंधन और भ्रांतियों समेत इस पर जागरूकता फैलाने की प्रासंगिकता वर्तमान परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे समय में जब अधिक युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की पहचान हो रही है और इस समस्या का प्रभाव शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान है.

ब्रेस्ट कैंसर आनुवांशिक, हार्मोनल और लाइफस्‍टाइल घटकों के कारण स्‍नत में असामान्‍य कोशिकाओं की अनियंत्रित एवं अत्‍यधिक वृद्धि है. हमारे तथाकथित आधुनिक समाज में जो पानी हम पीते हैं, जो खाना हम खाते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, वह हानिकारक रसायनों से प्रदूषित है और इस कारण से ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं. कभी-कभी हमारी आदतों और जीवनशैली का भी इसमें योगदान होता है, जैसे मोटापा, अल्कोहल, व्यायाम नहीं करना, अत्यधिक तनाव, आदि.

ये भी पढ़ें- नमकीन-मीठा कम तो हेल्दी बने रहेंगे हम

ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम को कम करनाः

यह अनुशंसा की जाती है कि आप अपने शरीर के वजन को स्वस्थ सीमा में रखें, खूब सब्जियां और फल खायें (एक दिन में 5 कप से अधिक), और ऐसा आहार लें, जिसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड्स की प्रचुर मात्रा हो. प्रतिदिन की औसत कैलोरीज में आपका संतृप्त वसा सेवन 10 प्रतिशत से कम होना चाहिये और वसा का सेवन 30 ग्राम प्रतिदिन तक सीमित हो, ट्रांस फैट्स, प्रसंस्कृत मांस, भुने हुए भोजन से बचें. प्रमाण बताते हैं कि सप्ताह में 5 या अधिक दिन 45-60 मिनट व्यायाम करने से इसका जोखिम कम होता है.

ब्रेस्ट कैंसर का पता लगानाः

‘‘इसका जल्‍दी पता लगाएं, हमेशा के लिये मात दें’’

जल्‍दी पता चलने से प्रभावी उपचार की संभावना भी बढ़ती है और ब्रेस्ट खोने से बचा जा सकता है. शीघ्र पता लगाने के विभिन्न तरीके हैं, जैसे ब्रेस्ट की खुद जाँच करना, ब्रेस्ट की चिकित्सकीय जाँच, स्क्रीनिंग मैमोग्राम्स. यह देखकर अच्‍छा लगता है कि  कुछ रोगियों ने साहस दिखाते हुए खुद को बाहर की दुनिया के सामने लाये और ब्रेस्ट कैंसर पर विजय प्राप्त करने की अपनी कहानियों को सांझा कर दूसरे लोगों को प्रेरणा दी.

डॉ. आर. के. सग्गू, एमबीबीएस, एमएस, ब्रेस्ट एवं ऑन्को सर्जन, अपोलो स्पेक्ट्रा-करोल बाग से बातचीत पर आधारित

ये भी पढ़ें- दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी, जानिए कब और क्यों की जाती है घोषणा ?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें