family story in hindi

family story in hindi
‘‘सुप्रिया कहां हो तुम?’’ ललिता देवी फोन रखते ही बेचैनी से चिल्लाईं.
‘‘घर में ही हूं, मां. क्या हो गया? इस तरह क्यों चीख रही हो?’’ सुप्रिया ने उत्तर दिया.
‘‘यही तो समस्या है कि तुम घर में रह कर भी नहीं रहतीं. पता नहीं कौन सी नई दुनिया बसा ली है तुम ने.’’
‘‘मां, मुझे बहुत काम है. प्लीज, थोड़ा धीरज रखो. एक घंटे में आऊंगी. अभी तो मुझे सांस लेने तक की भी फुरसत नहीं है,’’ सुप्रिया ने अपनी व्यस्तता का हवाला दिया.
‘‘देखा, मैं कहती थी न, सुप्रिया तो घर में रह कर भी नहीं रहती. कई सप्ताह बीत जाते हैं, हमें एकदूजे से बात किए बगैर,’’ ललिता ने टीवी देखने में व्यस्त अपने पति, पुत्र व दूसरी पुत्री नीरजा से शिकायत की पर किसी ने उन की बात पर ध्यान नहीं दिया.
‘‘मैं भी कुछ कह रही हूं न. कोई मेरी भी सुन ले,’’ झुंझला कर उन्होंने टीवी बंद कर दिया. टीवी बंद करते ही भूचाल आ गया.
‘‘क्या कर रही हो, ललिता? मैं इतना महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम देख रहा हूं और तुम ने आ कर टीवी बंद कर दिया. मुश्किल से 10-15 मिनट के लिए टीवी देखता हूं मैं. तुम से वह भी सहन नहीं होता,’’ उन के पति अपूर्व भड़क उठे.
‘‘और भी गम हैं जमाने में…’’ ललिता बड़ी अदा से बोलीं.
‘‘मैं शेर सुनने के मूड में नहीं हूं. पहेलियां मत बुझाओ. रिमोट मुझे दो और जल्दी बताओ, समस्या क्या है?’’ वे बोले. उन के पुत्र प्रताप और पुत्री नीरजा ने जोरशोर से पिता की बात का समर्थन किया.
‘‘तो पहले मेरी समस्या सुन लो, बाद में टीवी देख लेना.’’
‘‘जल्दी कहो न, मां. हमारे सीरियल की नायिका एक नए षड्यंत्र की तैयारी कर रही है. वह निकल जाएगा,’’ नीरजा अधीरता से बोली.
‘‘कभी अपने घर के सीरियल की भी चिंता कर लिया करो. पता है अभी किस का फोन था?’’ ललिता ने नीरजा को आंख दिखाई.
‘‘नहीं.’’
‘‘तेरी शर्वरी मौसी का.’’
‘‘यही बताने के लिए आप ने टीवी बंद कर दिया.’’
‘‘यह बताने के लिए नहीं बुद्धू, यह बताने के लिए कि उन्होंने क्या कहा. और टीवी तेरी मौसी से अधिक आवश्यक हो गया?’’ ललिता देवी कुछ और बोलतीं उस से पहले ही सुप्रिया आ पहुंची, ‘‘बोलो मां, क्या हुआ जो आप ने पूरा घर सिर पर उठा रखा है? मेरा कल आवश्यक प्रेजेंटेशन है उसी की तैयारी कर रही थी. पर आप ने बुलाया तो अपना काम छोड़ कर आई हूं.’’
‘‘आ, मेरे पास बैठ. तू ही मेरी रानी बेटी है और किसी को तो मेरी चिंता ही नहीं है. तेरी शर्वरी मौसी का फोन आया था. वे कल अपने किसी परिचित को साथ ले कर यहां आ रही हैं. वे उन के बेटे से तुझे मिलवाना चाहती हैं. कह रही थीं कि रूप और गुण का ऐसा संयोग शायद ही कहीं मिले. वह तुझे अवश्य पसंद आएगा.’’
‘‘क्या हो गया है आप लोगों को? यदि आप यह सोचती हैं कि मैं चाय की टे्र ले कर सिर पर पल्लू रखे शरमाती, सकुचाती स्वयं को वर पक्ष के सम्मुख प्रस्तुत करूंगी तो भूल जाइए. मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली. मैं प्रेमरहित विवाह में विश्वास ही नहीं करती.’’
सुप्रिया ने अपना निर्णय कुछ इस अंदाज में सुनाया कि सब के कान खड़े हो गए. किसी को न टीवी की चिंता रही न अपने पसंद के कार्यक्रम की. सुप्रिया और प्रेम विवाह? किसी को विश्वास ही नहीं हुआ. सदा अपनी पढ़ाईलिखाई में व्यस्त रहने वाली और सदैव हर परीक्षा में प्रथम रहने वाली सुप्रिया प्रेम विवाह की बात भी करेगी, ऐसा तो उन में से किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था.
‘‘कोई है क्या?’’ अपूर्व, नीरजा और प्रताप ने समवेत स्वर में पूछा.
‘‘कोई है, क्या मतलब है?’’ सुप्रिया ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही पूछ डाला.
‘‘मतलब यह है दीदी कि प्रेम विवाह के लिए एक अदद प्रेमी की भी आवश्यकता पड़ती है. हम सब यही जानने का यत्न कर रहे थे कि आप ने किसी को चुन रखा है क्या? या शायद आप किसी के प्रेम में आकंठ डूबी हुई हैं और हमें पता तक नहीं,’’ नीरजा हर एक शब्द पर जोर दे कर बोली.
‘‘जी नहीं, किसी को नहीं चुना है अभी तक. समय ही नहीं मिला. पर जब विवाह करना होगा तो समय भी निकाल लूंगी,’’ सुप्रिया का उत्तर था.
‘‘मुझे यही आशा थी. सुप्रिया, प्यार के लिए समय निकाला नहीं जाता, अपनेआप निकल आता है. 26 की हो गई हो तुम. समय रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. तुम सब से बड़ी हो. इसलिए नीरजा और प्रताप का विवाह भी रुका हुआ है,’’ ललिता बेचैन स्वर में बोलीं.
‘‘मां, मेरे लिए इन दोनों का विवाह रोकने की क्या आवश्यकता है. दोनों ने अपने जीवनसाथी चुन रखे हैं. वे भला कब तक प्रतीक्षा करेंगे. मुझे जब विवाह करना होगा, कर लूंगी. कोई मेरी पसंद का नहीं मिला तो शायद मैं विवाह ही न करूं,’’ सुप्रिया ने चुटकियों में ललिता की समस्या हल कर दी.
‘‘यह तो मैं पहले भी कई बार सुन चुकी हूं पर तुम भी कान खोल कर सुन लो. हमारे संस्कार ऐसे नहीं हैं कि बड़ी बहन बैठी रहे और छोटे भाईबहनों का विवाह हो जाए.’’
‘‘पापा, आप कुछ कहिए न. मां तो जिद पकड़ कर बैठी हैं. मेरे कारण प्रताप और नीरजा का विवाह रोक कर रखने की क्या तुक है?’’
‘‘वे क्या बोलेंगे. उन्हें तो यह समझ ही नहीं आता कि विवाह भी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. यों भी हर चीज का एक समय होता है. वे तो तुम्हारी उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते. बस, एक बात इन की समझ में नहीं आती कि अच्छा सा वर देख कर तुम्हारे हाथ पीले कर दें…’’
‘‘ललिता, प्लीज, क्यों बैठेबिठाए घर में तनाव पैदा कर देती हो. हां, मुझे गर्व है कि सुप्रिया मेरी बेटी है. कभी 90 प्रतिशत से कम अंक नहीं आए हैं इस के. इतनी सी आयु में अपनी कंपनी की वाइस प्रैसिडैंट है. यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है इस ने.
चार लोग इस की प्रशंसा करते हैं तो अच्छा लगता है,’’ अपूर्व ने बीच में ही टोक दिया.
‘‘वह सब तो ठीक है, पर पिता होने के नाते आप का भी कुछ फर्ज है या नहीं? सुप्रिया से पहले प्रताप और नीरजा का विवाह हो गया तो ये लोग ही बातें बनाएंगे.’’
‘‘मां, समय बदल चुका है. सब अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि दूसरों के लिए समय ही नहीं है? कोई कुछ नहीं कहेगा. आप निश्ंिचत हो कर इन दोनों के विवाह की तैयारी कीजिए.
मुझे भी तो कुछ आनंद उठाने दीजिए. मेरे बाद इन का विवाह हुआ तो मैं भला जी खोल कर खुशियां कैसे मना पाऊंगी. अच्छा, मैं चली, बहुत काम पड़ा है,’’ सुप्रिया उठ खड़ी हुई.
‘‘रुक जा. खाना खा कर जा, नहीं तो फिर परेशान करेगी,’’ ललिता अनमने स्वर में बोलीं. खाने की मेज पर भी यही वादविवाद चलता रहा.
‘‘शर्वरी दीदी अपना समझ कर ही तो मदद कर रही हैं. कितनी आशा ले कर आएंगी वे. जब उन्हें पता चलेगा कि यह महारानी तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं हैं तो क्या बीतेगी उन पर. मैं तो सोच रही हूं कि उन्हें फोन कर के मना कर दूं,’’ ललिता देवी अब भी अपनी ही धुन में थीं.
‘‘नहीं मां, ऐसा मत करो, मौसी बुरा मान जाएंगी,’’ नीरजा बोली.
‘‘ठीक कह रही है, नीरजा. पहले से ही यह सोच कर बैठ जाना कि हम तो किसी से मिलेंगे ही नहीं, कहां की बुद्धिमानी है. शर्वरी दीदी किसी को ले कर आ रही हैं तो कुछ सोचसमझ कर ही ला रही होंगी. सुप्रिया, इस बारे में मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगा. तुम्हारी मां जो कह रही हैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हैं. तुम्हें उन की बात का सम्मान करना चाहिए,’’ अपूर्व ने पत्नी का पक्ष लेते हुए कहा.
‘‘ठीक है. मैं आप के अतिथियों से मिल लूंगी. बस, इतना ही आश्वासन दे सकती हूं. क्या करूं, न आप को नाराज कर सकती हूं न शर्वरी मौसी को,’’ सुप्रिया ने हथियार डाल दिए. वह नहीं चाहती थी कि यह बहस और लंबी खिंचे. परिवार का आश्वासन पा कर ललिता तैयारियों में जुट गईं. घर को सजानेसंवारने का काम वे रात में ही पूरा कर लेना चाहती थीं. अगला दिन तो खानेपीने की तैयारियों में ही बीत जाएगा. लगभग 1 बजे जब सुप्रिया अपना लैपटौप बंद कर सोने चली तो पाया कि ललिता देवी अब भी नए कुशन कवर लगाने में जुटी थीं.
‘‘मां, कब तक लगी रहोगी. रात का 1 बजा है. पता नहीं क्यों दिनरात काम में जुटी रहती हो. कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता कर लिया करो,’’ सुप्रिया बड़े प्यार से उन्हें पकड़ कर शयनकक्ष में ले गई. ललिता मुसकरा कर रह गईं. बात तो सच थी. 3 युवा संतानों की मां होते हुए भी घर के काम में वही जुटी रहती थीं. कभीकभी अपूर्व उन का हाथ बंटा लेते थे. अन्यथा उन्हें अपनी काम वाली बाई आशा का ही सहारा था. उस के नाजनखरे वे केवल इसलिए सह लेती थीं कि वह कामधंधे में उन का हाथ बंटाने में कभी आनाकानी नहीं करती थी. पर आज सुप्रिया ने उन के प्रति चिंता जताई तो उन्हें अच्छा लगा. कम से कम उन के बारे में सोचती तो है सुप्रिया. क्या पता घर के अन्य सदस्य भी उन की चिंता करते हों या शायद न करते हों, कौन जाने. बचपन में सुप्रिया दौड़दौड़ कर उन का हाथ बंटाती थी पर उन्होंने ही पढ़ाई में ध्यान देने का हवाला दे कर उसे ऐसा करने से रोक दिया.
अगले दिन औफिस जाते समय ललिता ने सुप्रिया को समझा दिया था, समय रहते ही घर लौट आए. फिर भी उन का दिल धड़क रहा था. क्या पता कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो. नीरजा को उन्होंने सुप्रिया को समय से घर लाने और तैयार करने का काम सौंप रखा था. अपूर्व अपने औफिस चले गए थे और तीनों बच्चे अपनेअपने काम पर. सभी लगभग तभी घर लौटने वाले थे जब मेहमान के आने का कार्यक्रम था. जरा सी फुरसत मिली तो शर्वरी को फोन मिला लिया. उन्हें सुप्रिया के संबंध में सूचना देना तो आवश्यक था.
‘‘बोल ललिता, कैसा चल रहा है सबकुछ? सारी तैयारी हो गई न?’’ शर्वरी ने ललिता का स्वर सुनते ही प्रश्न किया.
‘‘कहां दीदी, कुछ भी ठीक नहीं है. सुप्रिया ने तो साफ कह दिया है कि
वह प्रेम विवाह में विश्वास करती है. ऐसे में सारे तामझाम का क्या अर्थ है, दीदी.’’
‘‘तू छोटीछोटी बातों से परेशान मत हुआ कर. सुप्रिया जैसा चाहती है वैसा ही होगा. शर्वरी ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं सब संभाल लूंगी,’’ शर्वरी ने आश्वासन दिया.
‘‘ठीक है, दीदी, पर मुझे बहुत डर लग रहा है. सुप्रिया आजकल की लड़कियों जैसी नहीं है. आप तो उसे अच्छी तरह जानती हैं. वह तो आसानी से किसी से मिलतीजुलती भी नहीं.’’
‘‘चिंता मत कर. सुप्रिया बहुत समझदार है. अपना भलाबुरा भली प्रकार समझती है. वह जो भी निर्णय लेगी सोचसमझ कर ही लेगी. चल, ठीक है. फिर मिलते हैं शाम को,’’ शर्वरी ने उन्हें धीरज बंधाया. सुप्रिया के घर लौटते ही गतिविधियां तेज हो गईं. नीरजा अपने साथ अपनी 2 ब्यूटीशियन सहेलियों को भी लाई थी. तीनों ने मिल कर सुप्रिया को तैयार किया.
‘‘मेरी बेटी को किसी की नजर न लग जाए,’’ ललिता सुप्रिया को देखते ही खिल उठीं.
‘‘काला टीका लगा दो मां. दीदी हैं ही इतनी सुंदर कि जो देखे, देखता ही रह जाए,’’ नीरजा हंसी.
‘‘तुम लोगों को भी मुझे बनाने का अच्छा अवसर मिला है,’’ सुप्रिया हंस दी थी. अपूर्व और प्रताप मेज सजाने में ललिता की सहायता कर रहे थे.
‘‘हमारे समय में विवाह संबंध इसी तरह पक्के किए जाते थे. कई दिनों तक घर में उत्सव का सा वातावरण रहता था.’’
अपूर्व प्रताप को समझा रहे थे कि तभी सब को हैलोहाय कहते हुए शर्वरी का आगमन हुआ. उन के साथ ही एक युवक और उस के मातापिता भी थे. अपूर्व, प्रताप और ललिता ने आगे बढ़ कर उन का स्वागत किया. पहले औपचारिक और फिर अनौपचारिक बातचीत होने लगी. दोनों ही पक्ष बढ़चढ़ कर अपनी संतानों का गुणगान करने लगे. शीघ्र ही ठंडे पेय प्रस्तुत किए गए. उधर, शर्वरी ललिता का हाथ बंटाने उस के साथ चली गई.
‘‘अब बता, क्यों इतनी चिंता कर रही थी तू?’’ शर्वरी ने प्रश्न किया.
‘‘दीदी, सुप्रिया ने तो सुनते ही कह दिया कि वह तो प्रेम विवाह ही करेगी, मातापिता द्वारा तय किए विवाह में उस की कोई रुचि नहीं है.’’
‘‘उस ने कहा और तू ने मान लिया. ये बच्चे हमें बताएंगे कि वे किस प्रकार का विवाह करेंगे. हम ने क्या बिना प्रेम के ही विवाह कर लिया था. सच कहूं तो मुझे तेरे जीजाजी से पहली नजर में ही प्यार हो गया था. हमारा विवाह तो 6 माह बाद हुआ था.’’
‘‘ठीक कह रही हो, दीदी. मैं और अपूर्व तो मांपापा से छिपछिप कर मिलते थे. आप को तो सब पता है. मां को पता लगा तो कितना नाराज हुई थीं. उस मिलन में भी कितना रोमांच था. आधे घंटे की भेंट के लिए मैं दिनभर तैयार होती थी.’’
‘‘वही तो, हमारे प्यार में शालीनता थी, जिसे आज की पीढ़ी चाह कर भी समझ नहीं सकती.’’
‘‘वह सब छोड़ो न दीदी. इस बारे में कभी बाद में बात करेंगे. सुप्रिया का क्या करें, अभी तो यह बताइए?’’
‘‘तू क्यों चिंता करती है, सब ठीक हो जाएगा. मैं अभीष्ट और उस के मातापिता को ले कर आई हूं. अभीष्ट और सुप्रिया एकदूसरे को भली प्रकार जानते हैं. याद है 3 वर्ष पहले सुप्रिया मेरे पास छुट्टियां मनाने आई थी.’’
‘‘हां, याद है.’’
‘‘वहीं दोनों की मित्रता हुई थी जो बाद में घनिष्ठता में बदल गई. तुम चाहो तो इसे प्यार का नाम दे सकती हो.
दोनों घंटों कंप्यूटर पर बातचीत करते थे. फिर अचानक न जाने क्या हुआ कि दोनों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया. सुप्रिया को लगा कि अभीष्ट उसे धोखा दे रहा है.’’
‘‘हाय, इतना कुछ हो गया और सुप्रिया ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी.’’
‘‘तुझे तो क्या मुझे भी हवा नहीं लगने दी. यह नई पीढ़ी बहुत स्मार्ट है. मुझे तो अभीष्ट की मां ने पूरी कहानी सुनाई. उन्हीं ने बताया कि अभीष्ट ने प्रण लिया है कि विवाह करेगा तो सुप्रिया से नहीं तो जीवनभर कुंआरा रहेगा. मुझ से कहने लगीं कि इस समस्या का हल आप ही निकाल सकती हैं.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर क्या, मैं ने बहुत सोचा. क्या करूं क्या न करूं. अभीष्ट को मैं बचपन से जानती हूं. हर क्षेत्र में सुप्रिया से बीस ही होगा. किसी तरह का कोई व्यसन नहीं. ऐसे युवक आजकल मिलते कहां हैं. सुप्रिया को भी मैं भली प्रकार जानती हूं. किसी से मिलनेजुलने या प्रेम की पींगें बढ़ाने का समय ही कहां है उस के पास. वैसे भी अभीष्ट जैसा वर तो दीया ले कर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा. यही सोच कर मैं ने उस के परिवार को तुम सब से मिलवाने का निर्णय लिया. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मेरी बात नहीं टालेगी.’’
‘‘काश, ऐसा ही हो. मुझे तो यह सब सुन कर सुप्रिया की चिंता होने लगी है. यह तो बड़ी छिपी रुस्तम निकली. प्रताप और नीरजा ने मुझ से कभी कोई बात नहीं छिपाई.’’
‘‘होता है, ऐसा भी होता है. मेरी छवि ने तो ऐन शादी के दिन बताया था. तुझे तो सब पता है कि कैसे हम ने सारी बात संभाली थी. ऐसी बातों को दिल से नहीं लगाया करते,’’ शर्वरी ने समझाया.
‘‘ललिता, क्या कर रही हो तुम? वहां सारे मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ तभी अपूर्व आ खड़े हुए.
‘‘अभी आती हूं. आप जा कर मेहमानों के पास बैठिए न,’’ ललिता ने अनुनय की.
‘‘ललिता, तू जा कर सुप्रिया को ले आ. मैं मेहमानों के पास जा कर बैठती हूं,’’ शर्वरी बोलीं तो ललिता सुप्रिया के कक्ष की ओर बढ़ गईं.
‘‘चल सुप्रिया, तेरे पापा और शर्वरी मौसी तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिताजी हड़बड़ाहट में बोलीं.
‘‘क्या मां, मेरा तमाशा बना कर रख दिया है. मैं क्या कोई अजूबा हूं जो सब के सामने मेरी नुमाइश करवा रही हो.’’
‘‘अरे वाह, मन मन भावे, मूड़ हिलावे,’’ ललिताजी हंसीं.
‘‘तात्पर्य क्या है आप का?’’ सुप्रिया ने त्योरियां चढ़ा लीं.
‘‘लो, अब तात्पर्य भी मुझे ही समझाना पड़ेगा. शर्वरी दीदी ने मुझे सब बतला दिया है. ड्राइंगरूम में चल, सब समझ में आ जाएगा.’’
‘‘दीदी, मां क्या कह रही हैं? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ नीरजा साक्षात प्रश्नचिह्न बनी खड़ी थी.
‘‘धीरज से काम लो. सब समझ में आ जाएगा. चलो जल्दी, मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिता अपनी ही धुन में बोलीं.
अभीष्ट और उस के परिवार को देख कर सुप्रिया को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ‘शर्वरी मौसी को तो जासूसी कंपनी खोल लेनी चाहिए. न जाने कैसे सब पता लगा लेती हैं,’ उस ने सोचा.
‘‘यह सब क्या है? यहां आने से पहले मुझे सूचित तो कर सकते थे,’’ तनिक सा एकांत मिलते ही सुप्रिया ने अभीष्ट से शिकायत की.
‘‘चकित करने का अधिकार क्या केवल तुम्हें है? याद नहीं कैसे बिना कहेसुने गायब हो गई थीं तुम. मैं ने भी कसम खाई थी कि तुम्हें ढूंढ़ कर ही दम लूंगा. भला हो शर्वरी आंटी का जिन्होंने मेरा काम आसान कर दिया.’’
‘‘तुम्हारी सुनयना का क्या हुआ?’’ सुप्रिया ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में प्रश्न किया.
‘‘फिर वही सुनयनापुराण. मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मैं किसी सुनयना को नहीं जानता. पर तुम हो कि सुनने को तैयार ही नहीं हो,’’ अभीष्ट नाराज स्वर में बोला.
‘‘लो और सुनो. उस ने स्वयं मुझे फोन कर के बताया था कि तुम उस से अथाह प्रेम करते हो और विवाह उसी से करोगे.’’
‘‘मुझे क्या पता किस ने तुम्हें यह शुभ समाचार दिया था. पर इस बात का दुख अवश्य है कि तुम्हें मुझ से अधिक किसी अनजान के फोन पर विश्वास है,’’ अभीष्ट के स्वर में क्षोभ स्पष्ट था.
‘‘तुम मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हो? मैं ने उस फोन नंबर को संभाल कर रखा है जिस से मुझे पूरे 3 बार फोन आया था.’’
‘‘ठीक है, फोन नंबर दो मुझे. हम दोनों बात करेंगे,’’ अभीष्ट बोला था.
‘‘हैलो सुनयना,’’ फोन पर किसी युवती का स्वर सुनते ही अभीष्ट ने प्रश्न किया था.
‘‘हैलो, अभीष्ट, कहो, कहां तक पहुंची तुम्हारी प्रेम कहानी,’’ उधर से खिलखिलाहट के साथ प्रश्न किया गया.
‘‘कौन, ऋचा? तो यह तुम्हारी शरारत थी. तुम्हीं ने सुप्रिया को सुनयना के नाम से फोन कर के बरगलाया था.’’
‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो बस तुम्हारे कथनानुसार तुम्हारे प्रेम की परीक्षा ली थी. लगता है तुम्हारी बात ही सच थी. तुम दोनों को सचमुच एकदूसरे पर अटूट विश्वास है. विश्वास ही तो सच्चे प्रेम की नींव का पत्थर होता है.’’
‘‘ठीक कह रही हो तुम, सुप्रिया तो यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि मेरे जीवन में कोई और लड़की भी हो सकती है. फिर भी वह यह जानने को बहुत उत्सुक थी कि उसे कई बार फोन किस ने किया था.’’
‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सुनयना बन कर फोन कर रही थीं, अब तुम ही उसे समझा दो,’’ अभीष्ट ने फोन सुप्रिया को थमा दिया.
‘‘हाय, सुप्रिया, कैसी हो? अभीष्ट ने तुम्हारे बारे में इतने विस्तार से बताया है कि ऐसा आभास हो रहा है मानो तुम मेरी आंखों के सामने बैठी हो. आशा है हम शीघ्र मिलेंगे. मैं ने ही तुम्हें सुनयना के नाम से फोन किए थे. मेरी अभीष्ट से शर्त लगी थी कि आजकल का कामचलाऊ प्रेम जरा सा झटका भी नहीं सह सकता. उस ने मुझे चुनौती दी थी कि मैं चाहूं तो परीक्षा ले सकती हूं तो मैं ने वही किया. पर मुझे प्रसन्नता है कि अभीष्ट की जीत हुई,’’ ऋचा ने सबकुछ स्पष्ट कर दिया.
‘‘पर तुम हो कौन?’’ सुप्रिया ने प्रश्न किया.
‘‘क्या अभीष्ट ने बताया नहीं अभी तक. मैं ऋचा अभीष्ट के मामाजी की बेटी. हम दोनों भाईबहन कम, मित्र अधिक हैं. नर्सरी से ले कर कालेज तक की पढ़ाई हम दोनों ने साथ की थी, पर विवाह करने में मैं अभीष्ट से आगे निकल गई,’’ ऋचा हंसी. उस की स्वच्छ, निर्मल हंसी सीधे सुप्रिया के दिल में उतर गई.
‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा, ऋचा. आशा है हम शीघ्र ही मिलेंगे,’’ किसी प्रकार सुप्रिया के मुंह से निकला. वार्त्तालाप समाप्त होते ही सुप्रिया ने सिर झुका लिया. उस की आंखों से टपटप आंसू झरने लगे.
‘‘अब क्या हुआ?’’ अभीष्ट ने प्रश्न किया.
‘‘मैं तो तुम्हारी परीक्षा में असफल हो गई अभीष्ट, मैं ने तुम पर अविश्वास किया.’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है, सुप्रिया. मैं भी तुम्हारी जगह होता तो शायद ऐसा ही सोचता. प्रेम को विश्वास में बदलने में तो सारा जीवन लग जाता है. अब शीघ्रता से अपने आंसू पोंछ लो, सब हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’
सुप्रिया आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी थी. शर्वरी ने सुप्रिया को देखा तो आंखों ही आंखों में ललिता को बता दिया कि उन का परिश्रम व्यर्थ नहीं गया था. ललिता अपनी दीदी की योग्यता की कायल हो गई थी.