अनुमान है कि 2030 तक डायबिटीज मैलिटस भारत के 7.94 करोड़ लोगों को प्रभावित कर सकता है तो चीन के 4.23 करोड़ और अमेरिका के 3.03 करोड़ लोग इस रोग से पीडि़त होंगे. कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जो देश भर में इस रोग की मौजूदगी के लिए जिम्मेदार हैं. मसलन, आबादी, शहरीकरण, मोटापा, श्रमरहित लाइफस्टाइल आदि.
डायबिटीज पीडि़त इन आशंकाओं के साथ जीने लगते हैं कि उन की आंखों की रोशनी चली जाएगी या उन की टांग अथवा पैर काटना पड़ सकता है या फिर किडनी फेल्यर के कारण उन की मौत हो जाएगी.
युवाओं में बढ़ते मामले
भारत में 22 से 30 साल की आयु वाले युवाओं की आबादी सब से अधिक है, जो ऊर्जावान एवं रचनाशील हैं, लेकिन इन युवाओं ने जिंदगी जीने के जिन तौरतरीकों को अपना लिया है, उन से कई तरह के रोगों का इन पर बुरा असर पड़ने लगा है.
भारत को डायबिटीज की राजधानी कहा जाने लगा है. दरअसल युवा अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतों के कारण मोटापे का शिकार हो रहे हैं, जो डायबिटीज और अन्य कार्डियोवैस्क्युलर समस्याओं का मुख्य कारण है. पहले जहां ये रोग 40 से 45 साल की उम्र वाले लोगों को होते थे वहीं अब 22 से 25 साल के युवा भी इन की चपेट में आने लगे हैं और इस का कारण है आज की पीढ़ी द्वारा पश्चिमी लाइफस्टाइल अपनाना.
संक्रमण का खतरा
थोड़ा सा कटने से ही त्वचा में होने वाले खतरनाक संक्रमण को सैल्युलाइटिस कहा जाता है. यदि आप को डायबिटीज है, तो अपनी त्वचा के प्रति ज्यादा सावधान रहें, क्योंकि ब्लड ग्लूकोस लैवल अधिक रहने पर संक्रमण का अधिक खतरा रहता है.
सैल्युलाइटिस एक गंभीर संक्रमण है, जो त्वचा के अंदर फैलता है और त्वचा तथा उस के अंदर की चरबी को प्रभावित करता है.
लोग अकसर सैल्युलाइटिस को सैल्युलाइट मान बैठते हैं. दरअसल, दोनों बिलकुल अलग चीजें हैं. सैल्युलाइटिस चरबी की अंदरूनी परत डर्मीज और त्वचा के अंदर के टिशू का एक बैक्टीरियल संक्रमण होता है जबकि सैल्युलाइट त्वचा के अंदर चरबी जमने के कारण होता है, जो संतरे के छिलके की तरह दिखता है. सैल्युलाइटिस की सब से बड़ी खराबी यह है कि सही समय पर उचित इलाज न होने पर यह बड़ी तेजी से फैलता है. इस वजह से टिशू क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और इस का बैक्टीरिया रक्तनलिकाओं के जरीए फैल जाता है.
सैल्युलाइटिस से सुरक्षा
– त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले कठिन
और अधिक कार्य करने से बचें. वही कार्य चुनें, जिन से आप को जल्दी थकान महसूस न हो. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह कि ब्लड शुगर का संतुलित स्तर बनाए रखें. ब्लड शुगर लैवल बढ़ने का मतलब है कि शरीर का इम्यून सिस्टम निश्चित रूप से कमजोर होगा और जख्म को भरने में यह असमर्थ हो जाएगा.
– कम कार्बोहाइडे्रट वाला भोजन करें और फाइबरयुक्त फलों का भरपूर सेवन करें. अपने साथ ग्लूकोस टैस्ट मीटर रखने से आप को इस की वृद्धि पर नजर रखने में मदद मिलेगी.
– यदि आप सैल्युलाइटिस के ज्ञात छोटे से छोटे रिस्क फैक्टर की चपेट में हैं तो प्रतिदिन अपनी टांगों पर नजर रखें. जख्म पर भी पूरा ध्यान रखें. त्वचा की सूजन, लाली जैसे लक्षणों पर नजर रखें.
– जख्मों को ठीक करने के लिए डाक्टर से ही परामर्श लें. याद रखें कि नियमित जांच के अभाव में छोटा सा जख्म भी सैल्युलाइटिस का कारण बन सकता है. जख्म वाले हिस्से को अच्छी तरह साफ रखें ताकि उस में पानी न लगने पाए. कुछ समय के लिए उसे खुली हवा में सुखा लें. डाक्टर की सलाह के अनुसार ही जख्म को ड्रैसिंग से ढक कर रखें और स्वच्छ ड्रैसिंग ही इस्तेमाल करें.
ऐसा करने पर आप डायबिटीज होने के बावजूद स्वस्थ व्यक्ति जैसा जीवन जी सकते हैं. लाइफस्टाइल में मामूली बदलाव से आप अपना ब्लड शुगर लैवल भी नियंत्रित रख सकते हैं और बेहतर महसूस कर सकते हैं.
(डा. मीना छाबड़ा, डायबिटीज क्लीनिक, नई दिल्ली)
ये भी पढ़ें- Breast Cancer: स्थिति, लक्षण और उपचार जानकर इस तरह रहें सुरक्षित