डायबिटीज और प्रजनन: क्या आप डायबिटीज के साथ गर्भधारण कर सकते हैं?

एक परिवार की शुरूआत करना, जीवन के सबसे खुशनुमा सफर में से एक होता है! वैसे यह थकाने वाला भी हो सकता है. इस पर हैरानी होना, स्वाभाविक बात है कि क्या यह पुरानी बीमारी आपकी प्रजनन यात्रा को प्रभावित कर सकती है, खासकर यदि आप टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं.

डायबिटीज आप पर और आपके बच्चे के लिये गंभीर परिणाम खड़ी कर सकती है और इसलिए जानकारी हासिल करना और सावधानी बरतना, आपके प्रजनन को आसान बनाने के लिये बेहद जरूरी हो जाता है. अच्छी बात ये है कि समय से पहले इसके बारे में प्लानिंग करने और अपने डॉक्टर की मदद लेने से इससे जुड़े जोखिमों को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है. इसके परिणामस्वरूप, आप हेल्दी प्रेग्नेंसी का अनुभव ले पाएंगी और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाएंगी.

डॉ.अस्वति नायर,आईवीएफ स्पेशलिस्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फटिर्लिटी, राजौरी गार्डन की बता रही हैं टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज के साथ प्रेग्नेंसी के लिये कैसे तैयारी करें.

गर्भधारण करने का प्रयास शुरू करने के कम से कम 6 महीने पहले अपने गाइनकोलॉजिस्ट या फर्टिलिटी विशेषज्ञ से परामर्श लें. उनसे पूछें कि कैसे ब्लड शुगर को अच्छी तरह नियंत्रित रखा जा सकता है, वहीं जरूरी सप्लीमेंट जैसे फोलेट के बारे में पूछें. आपको दवाइयां बदलने को लेकर भी सलाह मिल सकती है.

यदि आपकी सेहत अच्छी है, आप गर्भवती हैं और आपका डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित है तो एक सामान्य प्रेग्नेंसी और प्रसव की बेहतर संभावना है. यदि प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज अच्छी तरह नियंत्रित ना हो तो आपको आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं और यह आपके बच्चे के लिये भी खतरनाक हो सकता है.

डायबिटीज किस तरह प्रजनन को प्रभावित करता है?
डायबिटीज, महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही प्रजनन को प्रभावित करता है और इसका संबंध खराब स्पर्म क्वालिटी, एम्ब्रयो का क्षतिग्रस्‍त होना और डीएनए के क्षतिग्रस्‍त होने से है. डायबिटीज की वजह से होने वाला हॉर्मोनल अवरोध, इम्प्लांटेशन और गर्भधारण में होने वाली देरी का प्रमुख कारण है.

डायबिटीज, महिला प्रजनन अंगों की नसों और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करके यौन रोग का कारण बन सकता है.यह मासिक धर्म चक्र में व्यवधान पैदा कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले मोनोपॉज हो सकता है. डायबिटीज, इस प्रकार एक महिला की प्रजनन अवधि को कम कर देता है.इसके अलावा, ब्लड ग्लूकोज का उच्च स्तर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर से इरेक्शन की समस्या होती है.इसे इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहा जाता है. डायबिटीज मेलिटस, स्पर्म में डीएनए के विखंडन को बढ़ा सकता है, जोकि बेहद खतरनाक है क्योंकि यह गर्भधारण की संभावना को कम कर सकता है और कुछ मामलों में गर्भपात के जोखिम को बढ़ा सकता है. खंडित शुक्राणु द्वारा निषेचित अंडा एक अस्वास्थ्यकर भ्रूण के जन्म का कारण बनता है.

एक स्वस्थ गर्भावस्था का सफर-
टाइप 1 वाली कुछ महिलाओं को उनके इंसुलिन डोज को बदलने या फिर इंसुलिन पंप लेने की सलाह दी जा सकती है. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंसी के शुरूआती चरणों में बिना किसी दवा के केवल आहार के माध्यम से अपना ब्लड शुगर नियंत्रित करने की सलाह दी जा सकती है. नीचे, लाइफस्टाइल में बदलाव के कुछ और कारक दिए गए हैं जोकि आपको अपने डायबिटीज को नियंत्रित करने में थोड़ी और मदद कर सकते हैं.
1. आहार विशेषज्ञ/डाइटिशियन से सलाह लेना
2. मादक पदार्थ (धूम्रपान, शराब) का इस्तेमाल करने से बचना
3. दवाओं में बदलाव
4.विटामिन और मिनरल सप्लीमेंट लेना

सेहतमंद गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिये नीचे कुछ कारक दिए गए हैं, जिन्हें आपको नियंत्रित करने की जरूरत है.

ब्लड ग्लूकोज का स्तर: हो सकता है आप पहले से ही अपना अच्छी तरह ख्याल रख रहे हों, लेकिन गर्भावस्था के लिये यह और भी जरूरी हो जाता है. यह आपके और आपके बच्चे की सेहत के लिये महत्वपूर्ण है कि आपके ब्लड ग्लूकोज का स्तर स्थिर रहे.उपवास (भोजन से पहले) के दौरान आदर्श ब्लड ग्लूकोज का स्तर 4.0 और 5.5 mmol/L के बीच होता है और भोजन के 2 घंटे बाद 7.0 mmol/L से कम होता है. यदि आपको डायबिटीज है, तो स्वस्थ रहने और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिये गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान जितना हो सके अपने ब्लड ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखना जरूरी है.

HbA1c स्तर:
आपके प्रजनन के शुरूआत में, आपके HbA1c का स्तर आवश्यक रेंज के अंदर रहना जरूरी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि HbA1c का अधिक स्तर आपके बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है. खासातौर से गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले आठ हफ्ते) के दौरान यह महत्वपूर्ण है, जब बच्चे के अंगे विकसित हो रहे होते हैं.

HbA1c के स्तर को 48 mmol/mol से नीचे रखना बेहद आवश्यक है.यदि इसका स्तर 48 mmol/mol से अधिक हो जाता है तो खतरे को कम करने के लिये आपको सावधानियां बरतनी चाहिए.

फॉलिक एसिड:
अपने बच्चे के खतरों को कम करने के लिये गर्भधारण करने से पहले कम से कम 12 हफ्तों के लिये हर रोज 5 एमजी डोज लेना जरूरी है.

आहार और एक्सरसाइज:
एक्सरसाइज और संतुलित आहार, ब्लड ग्लूकोज के लक्ष्य तक पहुंचने में आपकी मदद कर सकते हैं. शारीरिक सक्रियता, तनाव को दूर कर, आपके दिल और हड्डियों को मजबूती देकर, मांसपेशियों की ताकत बढ़ाकर और आपके जोड़ों को लचीला बनाए रखकर, एक सेहतमंद ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है.गर्भावस्था के दौरान हर दिन 30 मिनट का ब्रिस्क वॉक भी रक्तसंचार को नियमित बनाए रखने का एक बेहतरीन तरीका है. अपनी मेडिकल टीम से बात करें कि वो आपको प्रभावी गतिविधियों के बारे में बताएं जोकि गर्भावस्था के दौरान आपके लिये सबसे अच्छे हैं.

जब खतरा हो डायबिटीज का

डाइबिटीज एक तरह का मेटाबौलिज्म  डिसआर्डर है. सामान्यता हमारे द्वारा खाए गए भोजन का अधिकांश हिस्सा ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है. पाचन के बाद ग्लूकोज खून के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचता है, जहां कोशिकाएं इस का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने और उस की वृद्धि में करती हैं. इस कार्य में मददगार होता है पैंक्रियाज से निकलने वाला खास हारमोन इंसुलिन. डाइबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों के शरीर से इंसुलिन निकलना बंद हो जाता है या कम होता है या फिर शरीर इस इंसुलिन का उपयोग ही नहीं कर पाता. ऐसे में शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जो पेशाब के जरिए बाहर आने लगती है.

मुख्य रूप से डाइबिटीज 2 तरह की होती है :

टाइप 1 : इस में इम्यून सिस्टम इंसुलिन उत्पाद करने वाली बीटा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट करने लगता है, जिस से इंसुलिन की कमी हो जाती है और शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है.

इस के मुख्य लक्ष्ण हैं- प्यास ज्यादा लगना, बारबार पेशाब आना, भूख बढ़ना, वजन कम होना, धुंधला नजर आना और बहुत ज्यादा थकावट महसूस करना.

टाइप 2 : 90 से 95% लोग टाइप 2 डाइबिटीज से पीडि़त होते हैं. इस स्थिति में पैंक्रियाज से इंसुलिन तो काफी मात्रा में निकलता है पर शरीर इस का सही उपयोग नहीं कर पाता है. इस अवस्था को इंसुलिन रिजिस्टेंस कहा जाता है. समय के साथ इंसुलिन उत्पादन भी घटने लगता है.

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टाइप 2 डाइबिटीज के लक्षण धीरेधीरे  विकसित होते हैं. इन में प्रमुख हैं- थकान होना, अधिक प्यास लगना, ज्यादा भूख लगना, वजन में परिवर्तन, नजर का धुंधला पड़ना, व्याकुलता होना, इन्फैक्शन होना (स्किन इन्फैक्शन, यूटीआई), घाव भरने में वक्त लगना आदि. इस समस्या के लिए मुख्य रूप से मोटापा और अधिक उम्र जिम्मेदार होती है. टाइप 2 से पीडि़त 80% लोग अधिक वजन के होते हैं. इस के अलावा डाइबिटिक फैमिली हिस्ट्री, शारीरिक असक्रियता, तनाव, इन्फैक्शन, हाइपरटेंशन आदि मुख्य कारण हैं. डाइबिटीज की वजह से किडनी, दिल, नर्वस सिस्टम और आंखोें पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस से बचाव बहुत जरूरी है. साधारणतया, डाइबिटीज की समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो पाती, मगर नियमित दवा लेने, व्यायाम करने, शारीरिक सक्रियता और खानपान का ध्यान रख कर हम इसे कंट्रोल में रख सकते हैं. मसलन :

अपने भोजन में पोषक तत्त्वों, जैसे विटामिन बी6, विटामिन सी,ई,डी, जिंक, मैग्नीशियम, बायोटिन, क्रोमियम, ओमेगा 3 आदि की संतुलित मात्रा लेने का प्रयास करें. हाई फाइबर वाली सब्जियां खाएं. जंक फूड, सैचुरेटेड फैट या कोलैस्ट्रौल बढ़ाने वाली चीजें कम लें.

शारीरिक सक्रियता बनाए रखें. रोज कम से कम 30 मिनट जरूर टहलें.

ब्लडप्रैशर व कोलैस्ट्रौल नियमित रखें और इन की नियमित जांच कराते रहें. ब्लड ग्लूकोज की जांच भी नियमित अंतराल पर कराएं.

ताजा रिसर्च में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया है कि बहुत से हर्बल सप्लीमैंट, जैसे बिल्बरी, गर्लिक, त्रिफला, ओनियन, नोपल कैक्टस, मेलन वगैरह भी ग्लूकोज लेवल घटाने में सहायक हैं. अत: इन का उपयोग भी किया जा सकता है.

वजन न बढ़ने दें और तनाव से भी बचें.

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