दुनिया गोल है

‘‘हैलो…मां, कैसी हो?’’

‘‘अरे कुछ न पूछ बेटी, 4 दिनों से कांताबाई नहीं आ रही है. काम करकर के कमर टेढ़ी हो गई है. घुटनों का दर्द भी उभर आया है.’’

‘‘जितना जरूरी है उतना ही किया करो, मां.’’

‘‘उतना ही करती हूं, बेटी. खैर, छोड़, तू तो ठीक है?’’

‘‘हां मां. परसों विभा मौसी की पोती की मंगनी थी, शगुन में खूब अच्छा सोने का सैट आया है. मौसी ने भी बहुत अच्छा लेनादेना किया है. 2 दिनों से बारिश का मौसम हो रहा है. सोच रही हूं आज दालबाटी बना लूं.’’

‘‘भैया से बात हुई? उन का आने का कोई प्रोग्राम है?’’

‘‘हां, पिछले हफ्ते फोन आया था. अभी तो नहीं आ रहे.’’

‘‘रीनू से बात होती होगी, कैसी है वह? मैं तो सोचती ही रह जाती हूं कि उस से बात करूंगी पर फिर तुझ से ही समाचार मिल जाते हैं.’’

‘‘वह ठीक है, मां? अच्छा अब फोन रखती हूं, कालेज के लिए तैयार होना है.’’ मां से हमेशा मेरी इसी तरह की बातें होती हैं. ज्यादातर वक्त तो वे ही बोलती हैं क्योंकि मेरे पास तो बताने के लिए कुछ होता नहीं है. पहले फोन बंद करते वक्त अकसर मेरे दिमाग में यही बात उठती थी कि मां की दुनिया कितनी छोटी है. खानापीना, लेनदेन, बाई, रिश्तेदार और पड़ोसी बस, इन्हीं के इर्दगिर्द उन की दुनिया घूमती रहती है. देश में कितना कुछ हो रहा है. कितने स्ंिटग औपरेशन हो रहे है, चुनावों में कैसीकैसी पैंतरेबाजी चल रही हैं, घरेलू हिंसा, यौनशोषण कितना बढ़ गया है, इन सब से उन्हें कोई सरोकार नहीं है. जबकि यहां पत्रपत्रिकाएं, जर्नल्स सबकुछ पढ़ कर हर वक्त खुद को अपडेट रखना पड़ता है. एक तो मेरा विषय राजनीति विज्ञान है जिस में विद्यार्थियों को हर समय नवीनतम तथ्य उपलब्ध करवाने होते हैं, दूसरे, बुद्धिजीवियों की मीटिंग में कब किस विषय पर बहस छिड़ जाए, इस वजह से भी खुद को हमेशा अपडेट रखना पड़ता है और जब इंसान बड़े मुद्दों में उलझ जाता है तो बाकी सबकुछ उसे तुच्छ, नगण्य लगने लगता है.

मैं मां की बातों को भुला कर फिर से अपनी दुनिया में खो जाती. रीनू से बात किए वाकई काफी वक्त बीत गया है. वह भी तो अपने काम में बहुत व्यस्त रहती है. दूसरे, अमेरिका और इंडिया में टाइमिंग का इतना अंतर है कि जब मैं फ्री होती हूं, बात करने का मूड होता है तब वह सो रही होती है या किसी जरूरी काम में फंसी होती है. पर आज रात मैं उस से जरूर बात करूंगी, उस की छुट्टी भी है. यही सोच कर मैं ने उस दिन उसे रात में स्काइप पर कौल किया था. काफी दिनों बाद बेटी की सूरत देखते ही मैं द्रवित हो उठी थी, ‘कितनी दुबली हो गई है तू? चेहरा भीकैसा पीलापीला नजर आ रहा है? तबीयत तो ठीक है तेरी?’

‘हां मौम, मैं बिलकुल ठीक हूं, एक प्रोजैक्ट में बिजी हूं. रही दुबला होने की बात, तो हर इंडियन मां को अपनी संतान हमेशा कमजोर ही नजर आती है. नानी भी तो जब भी आप से मिलती हैं, अरे बिट्टी, तू कितनी कमजोर हो गई है, कह कर लिपटा लेती हैं आप को. फिर नसीहतें आरंभ, दूध पिया कर, बादाम खाया कर…’

‘अच्छा छोड़ वह सब. यह वैक्यूमक्लीनर की आवाज आ रही है? मेड काम कर रही है?’ मेरी नजरें अब रीनू से हट कर उस के इर्दगिर्द दौड़ने लगी थीं.

‘यहां कहां मेड मौम? सबकुछ खुद ही करना पड़ता है. रोजर, मेरा रूममेट सफाई कर रहा है.’

‘क्या? तू एक लड़के के साथ रह रही है? कब से?’ मेरी चीख निकल गई थी. ‘कम औन मौम. आप इतना ओवररिऐक्ट क्यों कर रही हैं. यहां यह सब आम है. यही कोई 6-7 महीनों से हम साथ हैं.’ ‘साथ मतलब क्या? रीनू, हमारे लिए यह सब आम नहीं है. हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार इन सब की अनुमति नहीं देते. तुम्हारे नानानानी और दादादादी को ये सब पता चला तो तूफान उठ खड़ा होगा.’

‘फिलहाल तो आप बिना बात तूफान खड़ा कर रही हैं मौम, यह तो शुक्र है वैक्यूमक्लीनर की आवाज में रोजर कुछ सुन नहीं पा रहा है वरना उसे कितना बुरा लगता.’ ‘तुम्हें रोजर को बुरा लगने की फिक्र है और मुझ पर जो बीत रही है उस की जरा भी परवा नहीं?’

‘मौम प्लीज, आप बिना वजह बात का बतंगड़ बना रही हैं. मैं ने आप को बताया न, यहां ये सब आम बात है. दरअसल, आप की दुनिया बहुत छोटी है. इंसान चांद पर घर बसाने की सोच रहा है और आप की सोच अभी तक हमारा परिवार, हमारे संस्कार इन्हीं पर टिकी हुई है. एक बार अपनी दुनिया से बाहर निकल कर जरा बाहर की दुनिया देखिए, खुद ब खुद समझ जाएंगी. रोजर इधर ही आ रहा है मौम. बेहतर होगा हम इस टौपिक को यहीं समाप्त कर दें.’ ‘सिर्फ टौपिक ही क्यों, सबकुछ समाप्त कर दो.’ गुस्से में मैं ने संपर्कविच्छेद कर दिया था. मेरे गुस्से से न केवल स्टूडैंट्स बल्कि घर वाले भी खौफ खाते हैं. यह तापमापी के पारे की तरह पल में चढ़ता है तो समझानेबुझाने या क्षमायाचना करने पर पल में उतर भी जाता है. देर तक उस के शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे थे. मैं ने सिर झटक दिया था, मानो ऐसा कर के मैं सबकुछ एक झटके में दिमाग से बाहर फेंक दूंगी और सोने का प्रयास करने लगी थी. बहुत दिनों तक मेरा न रीनू से बात करने का मन हुआ था, न मां से. यह सोच कर दुख भी होता कि मैं रीनू का गुस्सा मां पर क्यों निकाल रही हूं. फिर मैं ने मां से बात की थी पर रीनू की बात  गोल कर गई थी. मांबाबा को आजकल वैसे भी कम सुनाई देने लगा है, इसलिए भी मैं उन्हें बताने से हिचक रही थी. पता नहीं, आधीअधूरी बात सुन कर वे जाने क्या मतलब निकाल लें जबकि मामला इतना गंभीर हो ही न? सासससुर देशाटन पर गए हुए थे.

चलो, एक तरह से अच्छा ही है. वे लौटेंगे, तब तक तो शायद वेणु भी लौट आएं. फिर वे अपनेआप संभाल लेंगे. वेणु की कमी मुझे इस वक्त बेहतर खटक रही थी. काश, वे इस वक्त मुझे संभालते, समझाते मेरे पास होते. वेणु और मेरी लवमैरिज थी. साथसाथ पढ़ते प्रेम के अंकुर फूटे और जल्द ही प्यार का पौधा पल्लवित हो उठा था. दक्षिण भारतीय वेणु आगे जा कर आर्मी में चले गए और मैं एक कालेज में शिक्षिका हो गई. हम दोनों जानते थे कि हमारे कट्टरपंथी परिवार इस बेमेल विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगे, इसलिए हम ने कोर्टमैरिज कर ली थी. जब वेणु मुझे दुलहन के जोड़े में अपने घर ले गए तो थोड़ी नाराजगी दिखाने के बाद वे लोग जल्दी ही मान गए थे. और फिर दक्षिण भारतीय तरीके से हमारा विवाह संपन्न हुआ था. पर मेरे मांबाबा को यह बात बेहद नागवार गुजरी थी. वे शादी में शरीक नहीं हुए थे. मैं उन से गुस्सा थी लेकिन वेणु ने हिम्मत नहीं हारी, मनाने के प्रयास जारी रखे. आखिर रीनू के जन्म के बाद मांबाबा पिघले और उन्होंने हमें दिल से अपना लिया. उस वक्त मैं बच्चों की तरह किलक उठी थी. मां से लिपट कर ढेरों फरमाइशें कर डाली थीं. तब से वेणु और रीनू उन के लिए मुझ से भी बढ़ कर हो गए थे. ऐसी शिकायत कर के मैं अकसर उन से बच्चों की भांति रूठ जाया करती थी. और सभी इसे मेरी जलन कह कर खूब आनंद उठाते थे. वेणु को नौर्थईस्ट में पोस्ंिटग मिली तो मैं रीनू को ले कर उन के साथ रहने आ गई थी. पर छोटी सी बच्ची के साथ उस असुरक्षित इलाके में रहना हर वक्त खतरे से खेलते रहना था. रीनू का खयाल कर के मैं हमेशा के लिए अपने सासससुर के पास रहने आ गई थी. मैं ने वापस कालेज में पढ़ाना आरंभ कर दिया था.

वेणु छुट्टियों में आते रहते थे. जिंदगी एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चलने लगी थी. रीनू पढ़ने के लिए विदेश चली गई और फिर वहीं अच्छी सी नौकरी भी करने लग गई. दिल तो बहुत रोया पर बदलते जमाने और उस की खुशी का खयाल कर मन को समझा लिया. पर अब, अब तो पानी सिर से ऊपर बढ़ गया है. इधर, कुछ समय से वेणु की पोस्ंिटग भी काफी सीनियर पोजीशन पर हिमालय की तराई वाले इलाके में हो गई थी. वहां पड़ोसी देश से छिटपुट लड़ाई चल रही थी और आएदिन छोटीबड़ी मुठभेड़ की खबरें आती रहती थीं. मुझे हर वक्त सिर पर तलवार  लटकती प्रतीत होती थी, जाने कब कैसा अप्रिय समाचार आ जाए. वेणु की बहुत दिनों से कोई खबर न थी. पर यह अच्छी बात थी क्योंकि सेना में ऐसा माना जाता है कि जब तक किसी के बारे में कोई खबर न मिले, समझ लेना चाहिए सब सकु शल है. मैं भी यही सोच कर वेणु के सकुशल लौट आने का इंतजार कर रही थी. वेणु की यादों के साथ रीनू के दिए घाव ताजा हो गए थे. जीवनसाथी तो मैं ने भी अपनी मनमरजी से चुना था. पर उस के साथ रही तो शादी के बाद ही थी. लेकिन यहां तो बिलकुल ही उलट मामला है. फिर मैं ने और वेणु ने शादी के बाद भी सब को मनाने के प्रयास जारी रखे थे. सब की घुड़कियां, धमकियां झेलीं, ताने सुने पर आखिर सब को मना कर रहे. और इस जैनरेशन को देखो, पता है मां गुस्सा है, नाराज है पर मानमनौवल का एक फोन तक नहीं. काश, वेणु यहां होते. खैर, बहुत इंतजार के बाद एक दिन रीनू का फोन आया था. पर बस, औपचारिक वार्त्तालाप-आप कैसी हैं? दादादादी कब आएंगे? पापा ठीक होंगे. और फोन रख दिया था. ऐंठ में मैं ने भी कुछ नहीं कहासुना.

हमारे फोनकौल्स न केवल सीमित बल्कि बेहद औपचारिक भी हो गए थे. मां जरूर थोड़े दिनों में फोन कर मेरे हाल जानती रहतीं. वेणु और सासससुर की अनुपस्थिति ने उन्हें मेरे प्रति ज्यादा चिंतित बना दिया था. वे मुझे धीरज और विश्वास देने का प्रयास करतीं. उन का आग्रह था, मैं अकेली न रहूं और उन के पास रहने चली जाऊं. मैं ने उन से कहा कि मैं तो छुट्टियों में हमेशा ही आती हूं. अभी सासससुर भी नहीं हैं तो वे मेरे पास आ जाएं. पर उन्होंने इतनी लंबी यात्रा करने में असमर्थता जता कर मेरा प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया. उन के अनुसार, वे छुट्टियों में मेरा इंतजार करेंगी और मैं थोड़ी लंबी छुट्टियां प्लान कर सकूं तो अच्छा होगा.

‘कोई खास वजह, मां?’

‘अरे नहीं, खास क्या होगी? बस ऐसे ही तेरे साथ रहने को दिल कर रहा था. क्या पता कितना जीना और शेष है? अब तबीयत ठीक नहीं रहती. तेरे भैयाभाभी को भी इसी दौरान रहने को बुला लिया है. सब साथ रहेंगे, खाएंगे, पीएंगे तो अच्छा लगेगा.’ पहली बार मां की दुनिया अलग नहीं, थोड़ी अपनी सी महसूस हुई. उन का दर्द अपना दर्द लगा. ‘हां मां, ज्यादा छुट्टियां ले कर आने का प्रयास करूंगी. कांता बाई से मुझे भी मालिश करवानी है. आजकल मुझे भी आर्थ्राइटिस की प्रौब्लम हो गई है. आप के हाथ की मक्का की रोटी और सरसों का साग खाने का भी बहुत मन हो रहा है. गोभी, गाजर वाला अचार भी डाल कर रखना मां.’ प्रत्युत्तर में उधर चुप्पी छाई रही तो मैं समझ गई कि भावनाओं के आवेग ने हमेशा की तरह मां का गला अवरुद्ध कर दिया है.

‘जल्द मिलते हैं, मां’, मां की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं ने तुरंत फोन रख दिया था. अगले सप्ताह एक लंबी छुट्टी अरेंज कर जल्दी ही उन्हें अपने आने की सूचना भी दे दी. स्टेशन पर मांबाबा दोनों को मुझे लेने आया देख मैं हैरत में पड़ गई थी क्योंकि उन के गिरते स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने उन्हें सख्त हिदायत दे रखी थी कि वे कभी भी मुझे लेनेछोड़ने आने की औपचारिकता में नहीं पड़ेंगे. बेमन से ही सही, वे मेरी हिदायत की पालना करते भी थे. पर आज अचानक…वो भी दोनों…जरा सा भी कुछ असामान्य देख इंसान का दिमाग हमेशा उलटी ही दिशा में सोचने लगता है. मेरे शक की सूई भी उलटी ही दिशा में घूमने लगी. अवश्य ही वेणु को ले कर कोई बुरी खबर है. मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘वेणु की कोई खबर, बेटी? ठीक है न वह?’

मैं ने राहत की सांस ली, ‘आप को तो मालूम ही है मां, कोई खबर नहीं, मतलब सब कुशल ही होगा.’

‘एक बहुत अच्छी खबर है. मैं एक प्यारे से गुड्डे की परनानी और तू नानी बन गई है.’ मां की नजरें मेरे चेहरे पर जमी थीं, जहां एक के बाद एक रंग आजा रहे थे. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी, मां किस की बात कर रही हैं.

‘हमारी रीनू ने 2 दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया है. वह यहीं है घर पर, हमारे पास.’

‘क्या?’ आश्चर्य से मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था. ‘उस ने तुझे यह तो बता ही दिया था कि वह रोजर नाम के किसी लड़के के साथ रह रही थी.’

‘हां, पर यह सब नहीं बताया था.’

‘उस की हिम्मत ही नहीं पड़ी बेटी, तेरे गुस्से से वह घबरा गई थी. फिर उसे यह भी खयाल था कि तू अभी बिलकुल अकेली रह रही है. वेणु भी इतने खतरनाक मोरचे पर तैनात हैं तो तू वैसे ही बहुत परेशान होगी.’

‘पर मां, उसे मुझे तो बताना था,’ मेरी आंखों के सम्मुख उस का पीला, दुबला चेहरा घूम गया.

‘वह तुझे बताना चाहती थी पर तभी सब गड़बड़ा गया. रोजर इतनी जल्दी बच्चे के लिए तैयार नहीं था. वह अबौर्शन करवाना चाहता था पर रीनू उस के लिए तैयार नहीं हुई. विवाद बढ़ा और रोजर घर छोड़ कर चला गया.’

‘ओह,’ मैं ने सिर थाम लिया. ‘रीनू बहुत हताश और परेशान हो गई थी पर तुझे और दुखी नहीं करना चाहती थी. इसलिए सारा गम अकेले ही पीती रही. एक दिन उस की बहुत याद आ रही थी तो उस का हालचाल जानने के लिए मैं ने ऐसे ही उसे फोन कर दिया. मैं फोन पर ही उसे दुलार रही थी कि सहानुभूति पा कर वह फूट पड़ी और सब उगल दिया. ‘हम ने उसे भरोसा दिलाया कि तुझे नहीं बताएंगे पर वह तुरंत हमारे पास इंडिया आ जाए और यहीं बच्चे को जन्म दे. उस ने हमारी बात मानी और आ गई. कल उसे अस्पताल से घर ले आए हैं. अभी तेरे भैयाभाभी उस के पास हैं. तेरे आने की खबर से वह काफी बेचैन है. तुम दोनों आमनेसामने हो, इस से पहले तुम दोनों को सबकुछ बता देना आवश्यक था.

‘उम्र और अनुभव ने हमें बहुतकुछ सिखा दिया है बेटी. हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं, अपनी अगली और पिछली पीढि़यों से हमारा टकराव स्वाभाविक है. ऐसे हर टकराव का मुकाबला हमें संयम और विश्वास से करना होगा. अपने बच्चों के साथ यदि हम ही खड़े नहीं होंगे तो औरों को उंगलियां उठाने का मौका मिलना स्वाभाविक है. हम अलगअलग पीढि़यों की दुनिया कितनी भी अलगअलग क्यों न हो, आ कर मिलती तो एक ही जगह है क्योंकि यह दुनिया गोल है. हम घूमफिर कर फिर वहीं आ खड़े होते हैं जहां से कभी आगे बढ़े थे. यह समय गुस्सा करने का नहीं, समझदारी से काम लेने का है. ‘आज की तारीख में हमारे लिए सब से बड़ी खुशी की बात यह है कि हमारी बेटी हमारे पास सकुशल है और उस के साथसाथ यह बच्चा भी अब हमारी जिम्मेदारी है. रीनू का आत्मविश्वास लौटा लाने के लिए उसे यह विश्वास दिलाना बेहद जरूरी है.’

घर आ चुका था. मैं ने भाग कर पहले रीनू को, फिर नन्हे से नाती को सीने से लगा लिया. रीनू आश्वस्त हुई, फिर खुलने लगी, ‘इस की आंखें बिलकुल पापा जैसी हैं न मौम…मौम, मुझे आप के हाथ का पायसम और उत्तपम खाना है,’ वह बच्चों की तरह किलक रही थी. ‘नानू, नानी, मौम आप सब को एक बात बतानी थी. कल रात दिल नहीं माना तो मैं ने रोजर को गुड्डू का फोटो भेज दिया, उस का जवाब आया है. वह शर्मिंदा है, जल्द आएगा.’ मां मुझे देख कर मुसकरा रही थीं.

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