World Ozone Day 2020: ओजोन परत यानी पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच

ओजोन परत का पर्यावरण और  मानव सभ्यता से ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर विचरण कर रहे समस्त जीव जंतु से गहरा नाता है. इसमें आने वाले बदलाव का असर पूरी धरती पर देखने को मिलता है. ओजोन परत यानि पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच, यह कवच पृथ्वी और पर्यावरण को सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों से बचाती है. लेकिन हम मनुष्य ने भौतिक सुख के लिए इस सुरक्षा कवच में भी छेद कर डाला है, जो सूरज की खतरनाक किरणों से हमें अब तक बचाती रही है. चिंता की बात यह कि अब यह छेद सिर्फ छेद नहीं, मानव अस्तित्व के लिए अंतहीन सुरंग बनने की ओर बढ़ता जा रहा है.  ओजोन भी हमारी सभ्यता के विकास में अहम कारक है, लेकिन औद्योगीकरण के नाम पर मनुष्य ने जिस तरह से पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया है उसका नकारात्मक प्रभाव ओजोन पर भी पड़ा है.ओजोन परत तकरीबन 97 से 99 प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है. इसके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार 16 सितंबर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है.

* अंटार्कटिका के ऊपर  ओजोन छिद्र:-  वैज्ञानिकों को सन् 1970 के दौरान ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे. इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1985 में संपूर्ण विश्व ने वियना में इस समस्या के निपटने के लिए प्रयत्न करने आरंभ किए. इसी साल ब्रिटिश वैज्ञानिकों जोसेफ फारमैन, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन को अंटार्कटिका के ऊपर  ओजोन छिद्र होने का पता चला था. इस ऐतिहासिक साल को वियना संधि के नाम से भी जाना जाता है. इसके बाद समूचे विश्व ने इस मुददे पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया जिसके फलस्वरूप मॉन्ट्रियल संधि हुई. सन् 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्ट्रियल संधि की स्मृति में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गया .23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओजोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए. हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओजोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है.

* ओजोन आवरण में छेद का कारण:- ओजोन परत की क्षरण के लिए क्लोरीन और ब्रोमीन के अणु जिम्मेदार हैं. जब इन अणुओं से युक्त गैसे पर्यावरण में छोड़ी जाती हैं तो ये कालांतर में ओजोन परत के क्षरण का कारण बनती हैं. ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाली सबसे आम हैलोजन गैस क्लोरोफ्लोरो कार्बन है जिसे सीएफसी के नाम से भी जाना जाता है.

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असल में ओजोन आवरण में छेद का कारण वायुमंडल में हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन व अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा में वृद्धि से है. इन तत्वों का रिसाव रेफ्रिजरेटर, एयरकंडीशनर, स्प्रे व कुछ औद्योगिक गतिविधियों से होता है. इसके नकारात्मक प्रभाव से केवल धरती ही नहीं बल्कि समुद्र भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. जिससे खाद्य श्रृंखला के गड़बड़ाने का खतरा उत्पन्न होता जा रहा है. जहां एक ओर ओजोन गैस ऊपरी वायुमंडल में आवरण के रूप में हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है वहीं सतह पर वायुमंडल में इसकी अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है.

* ओजोन परत और इसके संरक्षण को लेकर लोग जागरूप  होना होगा :- यह धरती हमें एक विरासत के तौर पर मिली है जिसे हमें आने वाली पीढ़ी को भी देना है, इस लिए धरती के इस कवच को बचाने के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे वहीं उर्जा की खपत भी घटानी जरूरी है. इसके अलावा पर्यावरण अनुकूल उत्पादों और वस्तुओं के इस्तेमाल पर जोर देकर भी हम इसके संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं. साथ ही  ओजोन परत और इसके संरक्षण को लेकर लोग जागरूप  होना होगा . सभी लोगों को उन पदार्थों और उनके नुकसान को लेकर जगरूप रहना चाहिए जो इस परत को नुकसान पहुंचाते हैं. कई आसान तरीके हैं जिन्हें अपनाकर ओजोन परत को बचाया जा सकता है जैसे पर्यावरण मित्र उत्पादों का इस्तेमाल करना, एयरोसोल और अन्य सीएफसी से युक्त चीजों के उपयोग से बचना, पौधारोपण को बढ़ावा देना, यदि फ्रीजर और एसी काम नहीं कर रहा तो उसे ठीक करवाना आदि. इस तरह की कई छोटी छोटी बाते हैं जिनका ध्यान रखकर ओजोन परत को बचाने में योगदान दिया जा सकता है.

एक नजर इन पर भी …

* ओजोन बिना दुर्लभ है जीवन:-ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन सम्भव नही है, ओजोन परत में छेद होने का परिणाम हम सब देख ही रहे है . आस्ट्रेलिया का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचा है. इसी नुकसान की वजह से सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बड़ी संख्या में वहां लोग त्वचा के कैंसर का शिकार हुए हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग चालीस करोड़ वर्ष पूर्व ओजोन परत पूर्ण रूप से बन कर तैयार हुई थी. इसके बन जाने के बाद ही जमीन पर जीवन का अस्तित्व आरंभ हो सका क्योंकि अब धरती ओजोन परत के कारण पराबैंगनी किरणों से सुरक्षित थी. इससे पूर्व इन किरणों से मुक्त होने के कारण केवल महासागरों तक ही जीवन का अस्तित्व सीमित था. लेकिन आज जब पृथ्वी पर जीवन को पनाह देने वाले विभिन्न कारकों का संतुलन बिगड़ रहा है. ओजोन आवरण के पतले होने के कारण पृथ्वी की सतह पर हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों की अत्याधिक मात्रा में पहुँचने का खतरा पैदा होता जा रहा है. जिसके परिणामस्वरूप त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां महामारी का रूप ले सकती हैं. ओजोन परत को वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समिति (आईपीसीसी) की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती का तापमान पिछले 100 सालों में 0.74 प्रतिशत बढ़ गया है. और इसका प्रभाव घातक है. यह तापमाप ओजोन में छिद्र से बढ़ा है, सोचिए अगर ओजोन में इस तरह के और दो चार छेद हो जाये तो क्या होगा ?

*ओजोन परत की खोज-  ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमे ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है. इस परत की खोज वर्ष 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिकों, चार्ल्स फैब्री और हेनरी बूइसॉ ने की थी.  इसके गुणों का विस्तार से अध्ययन ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जी एम बी डोबसन ने किया था. उन्होने एक सरल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर विकसित किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को भूतल से माप सकता था. सन 1928 से 1958 के बीच डोबसन ने दुनिया भर में ओजोन के निगरानी केन्द्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया था, जो आज तक काम करता है (2008). ओजोन की मात्रा मापने की सुविधाजनक इकाई का नाम डोबसन के सम्मान मे डोबसन इकाईरखा गया है. पृथ्वी से 30 मील ऊपर तक का क्षेत्र वायुमंडल कहलाता है और ओजोन वायुमंडल के सबसे ऊपर हिस्से में स्थित होती है. ओजोन नीले रंग की गैस होती है. ओजोन में ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिले हुए होते हैं.  इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं. यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है. पृथ्वी के वायुमंडल का 91 % से अधिक ओजोन यहां मौजूद है. यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के उपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है..

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*क्यों खतरनाक है पराबैगनी किरणे –  पराबैगनी किरण यानि अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली एक किरण है. जिसमें ऊर्जा ज्यादा होती है. यह ऊर्जा ओजोन की परत को नष्ट या पतला कर रही है. इन पराबैगनी किरणों को तीन भागों में बांटा गया है. इन तीन किरणों में से सबसे ज्यादा हानिकारक यूवी-सी 200-280 होती है. इस किरण से कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है. ओजोन परत हमें उन किरणों से बचाती है, पराबैगनी किरणों [अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन] की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. साथ ही इन किरणों का कृषि पर भी असर होता है, इन किरणों से कई फसल नष्ट हो सकती हैं. मनुष्यों , जानवरों और पेड़ -पौधों के अलावा  इनका असर सूक्ष्म जीवाणुओं पर भी होता है. इसके अलावा यह समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है. इस तरह हर प्रकार से यह किरणे  खतरनाक है .

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