एक छत के नीचे: महीनेभर बाद घर पहुंची तरु के साथ क्या हुआ?

Serial Story: एक छत के नीचे (भाग-2)

पूर्व कथा

बेटी सोनिया व पति मिलन के साथ तरु की जिंदगी सामान्य गुजर रही होती है. भाभी के उपकारों का बोझ कुछ हलका करने के लिए तरु अपनी भतीजी निक्की को गांव से शहर ले आती है. इस पर सास ससुर ही नहीं, पति भी तरु से नाराजगी प्रकट करते हैं. सासससुर की सुनने की आदी तरू मिलन को समझा लेती है और वे निक्की को घर का सदस्य मान लेते हैं.

तरु  अब सोनिया की ही नहीं, निक्की की भी मां होती है. शुरूशुरू में निक्की किसी से बात नहीं करती थी. जब तक मैं कालेज से वापस न लौटती, वह एक ही कमरे में दुबकी रहती. सोनिया उसे खूब चिढ़ाती. एक दिन ऐसे ही सोनिया ताली पीटपीट कर निक्की को चिढ़ा रही थी. निक्की कभी मिलन को देखती, कभी मुझे निहारती. मिलन ने प्यार से जैसे ही निक्की को अपने पास बुलाया, वह उन के गले में झूल गई थी. समय गुजरा और सोनिया की शादी हो गई. वह ससुराल चली जाती है. इधर, तरु कालेज की नौकरी छोड़ कर समाज सेवा करने में व्यस्त हो जाती है. इस बीच, मिलन को एहसास होता है कि तरु उन को समय नहीं दे पा रही है. जब तरु उन से कहती कि निक्की तो उन की देखभाल कर लेती है तो वे कहते कि…रात में…

अब आगे…

पिछली बार जब निक्की को वायरल हुआ था तो मैं ने सुबह उठ कर भवानी से घर को साफसुथरा करवाया. फिर निक्की के लिए दलियाखिचड़ी तैयार कर के घर से निकल रही थी कि मिलन ने मुझे रोक लिया था.

‘आज मत जाओ तरु. रुक जाओ. निक्की को अच्छा लगेगा.’

‘थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’ मिलन सब कामों को ताक पर रख कर मिलनेजुलने वालों से किनारा कर के निक्की के आसपास ही मंडराते रहते थे. उसे अपने हाथ से खिलाते, जूस पिलाते. उस वक्त उन की छवि एक ममतामयी मां की बन गई थी. निक्की अल्हड़ता से उन की गरदन में हाथ डाल कर झूल जाती.

‘अंकल, आप तो बढ़ी हुई दाढ़ी में भी हैंडसम लगते हैं. बिखरेबिखरे बाल, ढीलाढाला कुरतापाजामा. आप तो बिलकुल मेरे पापा बन जाते हैं.’

‘मेरे पापा बनने पर शक है क्या तुम्हें?’ मिलन नाराजगी प्रकट करते. निक्की पहले से ज्यादा गुमसुम रहने लगी थी. एक बार भी मेरे मन में यह खयाल नहीं आया कि उस के साथ कोई ऊंचनीच तो नहीं हो गई? मैं इस बिन बाप की बच्ची की मांबाप, भाईबहन सबकुछ तो थी. कितने जतन से उसे संभालती आई थी. उस के ही दायरे में बंधे, उस के इर्दगिर्द घूमते हुए, पलपल उसे बढ़ते देख, उस की छोटीछोटी गतिविधियों का अवलोकन करते हुए न जाने मेरा कितना समय बीत गया. अपने बारे में सोचने का खयाल, कभी अवचेतन तक में भी नहीं आया.

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बरसात थमे अभी थोड़ा ही वक्त हुआ था, लेकिन बादलों के काले गोले, अभी भी नीले आकाश में तैर रहे थे. खिड़की से आने वाली हवा सिहरन पैदा कर रही थी. मिलन कमरे में लौट आए थे. मैं ने घड़ी की तरफ देखा. 10 बज चुके थे. भवानी काम निबटा कर लौट गई थी. शाम को मैं ने उसे जल्दी आने के लिए कह दिया था. इतने दिनों बाद सोनिया आ रही थी. उस की मनपसंद चीजें तैयार करनी थीं.

अचानक मिलन ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर मुझे अपने करीब खींचा तो मैं उन से छिटक कर दूर जा खड़ी हुई. क्रोध के आवेश में होंठ थरथराने लगे. दिमाग की शिराएं तन गईं.

‘‘कब से चल रहा है यह सब?’’ मैं ने घृणा भरी नजर मिलन पर डाली.

‘‘क्यों? क्या किया है मैं ने? कुछ कहोगी भी या यों ही पहेलियां बुझाती रहोगी.’’

‘‘निक्की की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते हुए तुम्हें शरम नहीं आई?’’ मैं विद्रोह करने पर उतारू थी.

‘‘यह क्या बकवास है. शरम आनी चाहिए तुम्हें ऐसी बेहूदा बातें करते हुए,’’ मिलन का स्वर सख्त हो उठा.

‘‘जब तुम्हें बेहूदा हरकत करने में शरम नहीं आई तो मुझे कहने में शरम क्यों आएगी?’’ मैं गुस्से से बोली, ‘‘औरत की नजर बहुत तेज होती है पुरुष की अच्छीबुरी नजर पहचानने में. और पत्नी पति की नजर न पहचाने, यह असंभव है. तुम्हारी नजरें बता रही हैं कि तुम कितना सच बोल रहे हो.’’

‘‘तुम मुझ पर तोहमत लगा रही हो,’’ मिलन ने प्रतिवाद किया.

‘‘मिलन, मैं ने किसी और से सुना होता तो कतई विश्वास नहीं करती. मैं ने खुद तुम दोनों को रंगेहाथों पकड़ा है.’’

‘‘चुप हो जाओ तरु. लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे. हर जगह बदनाम हो जाऊंगा मैं.’’ मिलन के स्वर में गिड़गिड़ाहट थी. वे अपराधी बने मेरे सामने खड़े थे. मेरा सारा शरीर अपमान की ज्वाला में तप रहा था. अपने भीतर की उथलपुथल शांत करने के लिए मैं ने उन से पुन: अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘इस सब की शुरुआत कब हुई थी, मिलन?’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद निक्की उदास हो जाती थी, बेहद उदास. मैं जरा सी पूछताछ करता तो वह रो पड़ती. तरु, तुम्हें याद होगा, जब भूकंप पीडि़तों की सहायता के लिए तुम सप्ताह भर के लिए भुज गई थीं, निक्की उन दिनों मेरा पूरा ध्यान रखती थी. मेरे खानेपीने से ले कर मेरे कपड़ों की व्यवस्था के प्रति वह पूर्ण सजग रहती. थकीहारी निक्की के चेहरे पर मैं ने कभी तनाव की रेखा नहीं देखी थी. हमेशा मधुर मुसकान ही देखी थी.

‘‘उन्हीं दिनों मुझे 2 दिन के लिए गुवाहाटी जाना पड़ा. निक्की ने मेरा सामान व्यवस्थित किया. फिर रसोई में जा कर मेरे लिए लड्डू और मठरी बनाने लगी. पसीने से तरबतर निक्की को मैं जबरन अपने कमरे में ले आया और एअरकंडीशनर चला दिया. उस ने मेरे हाथ, अपनी पसीने से भीगी हुई हथेलियों में कस कर भींच लिए, फिर बोली, ‘अंकल, आप के जाने के बाद मैं बहुत अकेली हो जाऊंगी.’

‘‘ ‘2 दिन की बात है. मैं भवानी से कह दूंगा. तुम्हारे पास रात को सो जाएगी.’

‘‘मैं ने उसे ढाढ़स बंधाया, लेकिन उस का मन बहुत बेचैन था. मैं उसे पुचकारता रहा, सहलाता रहा और अपनापन जताता रहा. वह चुपचाप लेटी रही. उस की आंखें, उनींदी हो कर झपकने लगी थीं. मैं काफी देर तक उसे चूमता रहा. न जाने उस के भीतर क्या हुआ. उस की आंखें बंद हो गईं और मैं देर तक उस की गरम सांस अपनी छाती और गले पर महसूस करता रहा. उस की इस निकटता का मुझ पर ऐसा अजीब प्रभाव पड़ा कि मैं धीरेधीरे संयम खोता चला गया और फिर…’’

मुझे याद आया सहज ही अनैतिक संबंध हो जाने के 2 मुख्य कारण होते हैं. आवश्यकता और उपलब्धता. पत्नी की अनुपस्थिति से उपजी मिलन की भूख, जिस की सहज पूर्ति, अकेलेपन के कारण निक्की की उपलब्धि से हो गई. निक्की की छोटीबड़ी आवश्यकताओं को दूर करतेकरते मिलन न जाने कब निक्की की भावनाओं में बसते चले गए. निक्की भी उम्र के इस दौर पर पहुंच चुकी थी, जब शरीर कुछ अपेक्षाएं करने लगता है. ये नैसर्गिक इच्छाएं अकेले में मिलन से मिलते ही साकार रूप ले कर उस के सामने खड़ी हो जाती होंगी. हम दोनों के बीच अबोला सा ठहर गया था. सोनिया के सामने हम दोनों सामान्य बने रहते, लेकिन उस की गैरमौजूदगी में एकएक पल काटना भारी लगता था मुझे. सामान्य मनोदशा ठीक न होने के बावजूद सामान्य बने रहने का नाटक करना कितना कठिन होता है, यह तो भुक्तभोगी ही जानता है.

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सोनिया की कौन्फ्रैंस समाप्त हो गई. उस के लौटने का समय नजदीक आ गया. मिलन ने इन दिनों दफ्तर से अवकाश ले लिया था. एक दिन सोनिया ने लंबाचौड़ा प्रोग्राम बना लिया था. पहले जी भर कर किसी मौल में खरीदारी, फिर किसी होटल में लंच. इतनी बड़ी हो गई, लेकिन फिर भी उस का बचपना नहीं गया. मैं ने निक्की को फोन कर बुला लिया था.

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Serial Story: एक छत के नीचे (भाग-1)

ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी. मैं ने प्लेटफार्म पर ट्रेन के पहुंचने से पहले अपना सामान समेटा और शीघ्रता से उतर गई. निगाहें बेसब्री से मिलन को ढूंढ़ रही थीं. थोड़ा आश्चर्य सा हुआ. हमेशा समय से पहले पहुंचने वाले मिलन आज लेट कैसे हो गए. तभी मेरे मोबाइल पर मिलन का संदेश आ गया.

‘‘सौरी डार्लिंग, आज बोर्ड की मीटिंग है और 9 बजे दफ्तर पहुंचना है, इसलिए तुम्हें लेने स्टेशन नहीं पहुंच पाया.’’ टैक्सी से घर पहुंची तो मिलन बरामदे की सीढि़यों पर ही मिल गए. साथ में निक्की भी थी. हलके गुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी, जो उस के जन्मदिन पर मिलन ने उसे भेंट की थी, सुर्ख बिंदी, लिपस्टिक और हाथों में खनकती चूडि़यां… सब मुझे विस्मित कर रहे थे. मैं ने प्यार से निक्की के गालों को थपथपाया, फिर कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाली और बोली, ‘‘तू क्यों इतनी जल्दी जा रही है? रुक जा, 1 घंटे बाद चली जाना.’’ ‘‘अगर अभी इन के साथ निकल गई तो आधे घंटे में पहुंच जाऊंगी, वरना पहले बस फिर मैट्रो, फिर बस. पूरे 2 घंटे बरबाद हो जाएंगे.’’

‘‘शाम को जल्दी आ जाएंगे,’’ कह कर मिलन सीढि़यां उतर गए और कार स्टार्ट कर दी. दौड़तीभागती निक्की भी उन की बगल में जा कर बैठ गई. सामान अंदर रखवा कर मैं ने भवानी को चाय बनाने का आदेश दिया. फिर पूरे घर का निरीक्षण कर डाला. हर चीज साफसुथरी, सुव्यवस्थित, करीने से सजी हुई थी.

चाय की प्याली ले कर भवानी मेरे पास आ कर बैठी तो मैं ने कहा, ‘‘रात के लिए चने भिगो दो. साहब चनेचावल बहुत शौक से खाते हैं.’’

‘‘आजकल साहब रात में खाना नहीं खाते,’’ भवानी का जवाब था.

‘‘क्यों…’’

‘‘एक दिन निक्की बिटिया ने टोक दिया कि आजकल साहब का वजन बहुत बढ़ रहा है, बस तभी से रात का खाना बंद कर दिया,’’ भवानी ने हंस कर कहा.

‘‘मुझे तो बहुत भूख लगी है. जो कुछ बन पड़े बना लो. फिर थोड़ी देर सोऊंगी. थकावट के मारे बुरा हाल है.’’ नींद खुली तो कमरे से बाहर निकल कर बालकनी में बैठ कर मिलन और निक्की की प्रतीक्षा करने लगी. अभी उन के आने में 1 घंटा बाकी था. मैं ने अपने डिजिटल कैमरे में कैद फोटोग्राफ देखने शुरू कर दिए.

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दिल्ली से जबलपुर तक ट्रेन और  उस के आगे टाटा सफारी से मंडला तक की यात्रा काफी कठिन थी. पूरा क्षेत्र पानी में डूबा हुआ था. नर्मदा नदी में बाढ़ की वजह से तबाही मची हुई थी. जगहजगह सहायता शिविर और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र खोले गए थे. बाढ़ पीडि़तों की सहायता के लिए हमारी संस्था के साथ कई अन्य समाजसेवी संस्थाएं भी एकजुट हो कर कार्यरत थीं. 8 दिन का कार्यक्रम 1 महीने तक खिंच गया था. जब तक स्थिति में सुधार नहीं होता, लौटने का प्रश्न ही कहां उठता था?

मिलन की गाड़ी गेट पर नजर आई तो कैमरा बंद कर भवानी से कह कर चाय के साथ गरमागरम पकौड़े तैयार करवा लिए.

‘‘यह क्या बनवा लिया, बूआ?’’

‘‘बरसात के मौसम में तेरे फूफाजी को चाय के साथ गरम पकौड़े बेहद पसंद हैं.’’

‘‘वजन देखा है, कितना तेजी से बढ़ रहा है?’’ निक्की ने न जाने किस अधिकार के तहत पकौड़ों की प्लेट खिसका कर मिलन की तरफ देखा. मुझे उस का यह तरीका अच्छा नहीं लगा था.

‘‘आजकल यह सब बंद कर दिया है.’’

‘‘सिर्फ 1 कप दूध लूंगा,’’ मिलन बोले.

इतनी देर में निक्की 2 कप ग्रीन टी बना कर ले आई थी. टीवी देखते समय मिलन ने महज औपचारिकता के चलते वहां की कुछ बातें पूछीं और बातचीत का मुद्दा बदल दिया. शादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ था जब मैं और मिलन एकदूसरे से इतने लंबे समय के लिए अलग हुए थे. पूरे 1 महीने बाद मैं घर लौटी थी. उस पर मेरा कार्यक्रम इतना व्यस्त रहा था कि 1 दिन भी मिलन से जी भर कर बात नहीं हुई थी. बेडरूम में पहुंच कर भी मिलन के व्यवहार में वैसी गर्मजोशी नजर नहीं आई थी, जिस की मैं ने उम्मीद की थी. हर रात शारीरिक संबंध की कामना करने वाले मिलन, आज खानापूर्ति के लिए पतिपत्नी के शारीरिक रिश्ते की जिम्मेदारी निभा कर सो गए. मिलन के व्यवहार में आए इस बदलाव को देख कर मेरे मन में अब शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

‘कहीं मेरी गैरहाजिरी में मिलन और निक्की? नहीं…नहीं…मिलन मेरे साथ ऐसी बेवफाई नहीं कर सकते,’ उन के प्रति मेरे विश्वास की इस डोर ने ही शायद मुझे निश्ंिचत हो कर सोने का हौसला दिया और आज उन के बजाय मैं तकिए से ही लिपट कर सो गई.

आधी रात को जब आंख खुली तो मिलन बिस्तर पर नहीं थे. एक बार फिर मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा तो मैं ने स्टडीरूम में जा कर देखा. मिलन वहां भी नहीं थे. तभी निक्की के कमरे से पुरुष स्वर उभरा. कमरे में झांका तो जो दृश्य मैं ने देखा, उसे देख कर एक बार तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. मेरे पति मिलन निक्की के ऊपर पूरी तरह से झुके हुए थे. फिर उन की धीमी आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘निक्की, समझने की कोशिश करो. जब तक तुम्हारी बूआ यहां रहेंगी, हमें इसी तरह अलगअलग रहना होगा. तरु को जरा भी शक हो गया तो जानती हो क्या होगा?’’

इस पर निक्की का शिथिल स्वर उभरा, ‘‘जानती हूं, लेकिन आप से अलग हो कर मैं एक दिन भी तो नहीं जी सकूंगी.’’ मैं यों ही जड़वत खड़ी रह गई. मेरी बेचैन नजरें अपने पति पर ठहर गईं, जो अब भी सब से बेखबर हो कर निक्की को बेतहाशा चूम रहे थे. दुख, क्रोध और घृणा से तिलमिलाई मैं अपनी भावनाओं को अपने अंदर ही जज्ब कर के अपने कमरे मेें लौट आई थी.

मैं ने अपनी याददाश्त पर जोर दिया. पिछली बार जब मैं ने मिलन से निक्की के ब्याह की बात छेड़ी थी तो उसे सुनते ही मिलन भड़क उठे थे.

‘यों अचानक, निक्की को घर से निकालने की बात तुम्हें क्यों सूझी? पहले उसे किसी काबिल तो हो जाने दो. ब्याह तो कभी भी हो जाएगा.’

‘शादी की भी एक उम्र होती है मिलन. निक्की की उम्र अब उस के योग्य हो गई है. अच्छे रिश्ते नसीब से ही मिलते हैं.’

इस के बाद, श्रीचंद के बेटे सुशांत का बायोडाटा, जो भाभी ने कोरियर से हमें भेजा था, मैं ने मिलन के सामने रख दिया था. सुशांत ने एमए के बाद एमबीए किया था और अब एक मल्टीनैशनल कंपनी से उसे 7 लाख का पैकेज मिल रहा था. मिलन सुशांत का बायोडाटा मेज पर पटक कर बोले, ‘हम अपनी निक्की के लिए इस से अच्छा मैच ढूंढ़ेंगे.’ एम. ए. पास निक्की के लिए इस से अच्छा मैच और कौन सा हो सकता था? उस पर सब से बड़ी बात, दहेज की कोई मांग नहीं थी. इतना तो मिलन ने कभी अपनी बेटी सोनिया के लिए भी नहीं सोचा था, जितना वे निक्की के लिए सोच रहे थे.

मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब  निक्की को मैं गांव से पहलेपहल अपने घर लाई थी. निक्की की दादी यानी मेरी मां तो उसे मेरे साथ बिलकुल नहीं भेजना चाह रही थीं लेकिन मैं अपनी ही जिद पर अड़ी थी, ‘निकालो इसे इस दड़बे से और नई दुनिया देखने दो. कब तक इस गांव में रह कर यह यहां की भाषा बोलती रहेगी.’

मां तो आखिर तक विरोध करती रही थीं लेकिन भाभी मान गई थीं. अपने आधा दर्जन बच्चों में से किसी एक बच्चे का भी जीवन संवर जाए तो भला किस मां को आपत्ति होगी? निक्की को देखते ही मेरे सासससुर के माथे पर बल पड़ गए थे. किसी जरूरतमंद, दीनहीन, लाचार व्यक्ति को, अपने विशाल वटवृक्ष तले स्नेह और विश्वास से सींच कर आश्रय देने वाले मिलन भी सहज नहीं दिखाई दिए थे. ‘अम्मांबाबूजी की दवा और सोनिया की पढ़ाईलिखाई के खर्चे पूरे करतेकरते ही हम दोनों की आधी से ज्यादा पगार निकल जाती है. निक्की पर होने वाले अतिरिक्त खर्चे को कैसे बरदाश्त कर पाएंगे हम?’

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अम्मांबाबूजी के ताने सुनने की तो मैं शुरू से आदी हो गई थी लेकिन मिलन का रूखा व्यवहार बरदाश्त से बाहर था. मैं ने मिलन को तरकीब सुझाई कि कालेज से लौट कर मैं शाम के समय 3-4 ट्यूशन पढ़ा लूंगी. मिलन के चेहरे पर से तनाव की सुर्खी अब भी नहीं हटी थी. मैं ने फिर से अपनी बात पर जोर दिया.

‘मिलन, बड़ी भाभी के मुझ पर बहुत उपकार हैं. बाबूजी ने तो हमें मंझधार में छोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसा ली थी. दूसरे दोनों भाई अपनीअपनी गृहस्थी में रम गए. यदि भाभी का कृपाहाथ मुझ पर न होता तो शायद मेरा अस्तित्व ही न होता. भैया की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन हमेशा किया ही है.’ मिलन चुप हो गए थे.

शुरूशुरू में निक्की किसी से बात नहीं करती थी. जब तक मैं कालेज से वापस नहीं लौटती, वह एक ही कमरे में दुबकी रहती. सोनिया उसे खूब चिढ़ाती. कभी उसे अपने साथ खेलने पर मजबूर करती तो कभी उस की लंबी चोटी को झटक देती. एक दिन ऐसे ही सोनिया ताली  पीटपीट कर निक्की को चिढ़ा रही  थी. निक्की कभी मिलन को देखती, कभी मुझे निहारती. मिलन ने प्यार से जैसे ही उसे अपने पास बुलाया, निक्की उन के गले में झूल गई थी. मिलन देर तक उसे अपनी गोद में बिठा कर पुचकारते रहे. देर से ही सही, निक्की हमारे परिवार की सदस्य बन गई थी. स्कूल खुले तो हम ने निक्की का दाखिला सोनिया के ही स्कूल में करवा दिया था. उस की शक्लसूरत देख कर प्रिंसिपल ने पहले तो प्रवेश देने से साफ मना कर दिया था, लेकिन जब मैं ने स्वयं दिनरात मेहनत करने का भरोसा दिलाया तो वे मान गई थीं.

एक अच्छे पार्लर में जा कर मैं ने उस के बाल कटवा दिए. पुराने कपड़ों का स्थान नए कपड़ों ने ले लिया था. गांव की भाषा को छोड़ कर वह शुद्ध हिंदी बोलने लगी थी. रहने का सलीका धीरेधीरे उस के व्यक्तित्व का अंग बनने लगा. सोनिया में अद्भुत शैक्षणिक प्रतिभा थी. निक्की औसत छात्रा थी. हम ने उस के लिए एक मास्टर नियुक्त कर दिया था लेकिन उस का मन किताबों में रमता ही नहीं था. जितनी देर  सोनिया पढ़ती, वह ऊंघती रहती. उस का ध्यान भंग करने के लिए निक्की कभी किताब बंद कर देती, कभी पैनपैंसिल छिपा देती. एक दिन मैं ने उसे बुरी तरह झिड़क दिया, ‘कुछ देर तो मन लगा कर पढ़ा करो. सोनिया को देखा. डाक्टर बन गई और तुम थर्ड डिवीजन में 12वीं पास कर पाई हो. पता नहीं किसी कालेज में तुम्हें दाखिला मिलेगा भी या नहीं?’

मैं सिर्फ सोनिया की ही नहीं निक्की की भी मां थी और मां को तो हर पहलू से सोचना भी पड़ता है. मैं तो यही चाहती थी कि सोनिया की तरह निक्की भी आत्मनिर्भर बने. सोनिया की इंटर्नशिप समाप्त होते ही मिलन ने उस का विवाह अभिषेक से तय कर दिया. अभिषेक जितने सुंदर थे, उतना ही उन का व्यक्तित्व भी प्रभावशाली था. व्यवहार में सौम्यता और मृदुता छलकती थी. हंसीमजाक करते रहना उस के स्वभाव में शामिल था. पेशे से वरिष्ठ सर्जन भी थे.

सोनिया को मिलन का प्रस्ताव जरा भी नहीं भाया था. खूब रोई थी वह उस दिन, ‘पापा, मैं इतनी जल्दी विवाह नहीं करना चाहती.’ मिलन काफी परेशान हो गए थे. बारबार एक ही वाक्य दोहराते, ‘22 वर्ष की हो गई है सोनिया. विवाह की यही सही उम्र है. देर करने से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं. तुम किसी तरह समझाबुझा कर उसे विवाह के लिए राजी करो?’ सोनिया अभिषेक के साथ विवाह कर के बेंगलुरु चली गई. दोनों ने मिल कर वहां नर्सिंग होम खोल लिया. सोनिया के ब्याह के बाद हम दोनों पतिपत्नी बिलकुल अकेले पड़ गए थे. मिलन बेटी को बेहद प्यार करते थे. गहन उदासी उन्हें चारों ओर से घेरे रहती. किसी काम में मन नहीं लगता था. निक्की ही उन के पास बैठ कर उन का मन बहलाती. उन के खानेपीने का ध्यान रखती. मिलन भी सोतेजागते, उठतेबैठते निक्की की प्रशंसा करते नहीं अघाते थे. मैं अकसर मिलन से कहती, ‘एक बेटी विदा हुई तो दूसरी हमारे पास है. जब यह भी चली जाएगी तब क्या होगा?’

मिलन झील जैसी शांत शीतल निगाहें उठा कर, एक नजर मुझ पर डाल कर, हताशा के गहन अंधकार में डूब जाते. जीवन मंथर गति से चल रहा था. उन्हीं दिनों मैं ने कालेज से त्यागपत्र दे देने का अहम फैसला ले लिया. मिलन ने सुना तो मेरे फैसले का कस कर विरोध किया था.

‘अगले साल रिजाइन कर देना. तब तक मैं भी रिटायर हो जाऊंगा. एकसाथ घूमेंगेफिरेंगे. फिलहाल घर बैठ कर क्या करोगी?’

‘समाजसेवा करूंगी.’

मिलन चुप हो गए थे. मैं ने कई समाजसेवी संस्थाओं से संपर्क स्थापित किए और समाजसेवा के कार्यों में जुट गई. सुबह कुष्ठ आश्रम, दोपहर में अनाथ आश्रम. कभी समाज के निम्नवर्ग के उत्थान के लिए चंदा जमा करती, कभी गरीबों के प्रशिक्षणार्थ समाज के समर्थ लोगों से मिलती. ‘सोनिया तो अपनी ससुराल चली गई. अब तुम भी समाजसेवा के चक्कर में मुझ से दूर होती जा रही हो एक दिन मिलन ने शिकायत की.’

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‘यहीं तो हूं, तुम्हारे पास.’

‘कहां?’ मिलन मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लेते. मैं खुद को उन की बाहों की गिरफ्त से मुक्त करने का असफल प्रयास करती.

‘तुम भी तो हर समय दफ्तर के कामों में उलझे रहते हो. शाम को निक्की तुम्हारी देखभाल कर लेती है.’

‘और रात में?’

‘धत्,’ मिलन शरारत से पूछते तो मैं मुसकरा कर उन के सीने पर सिर रख देती. उन्हीं दिनों भाभी 2 दिन के लिए दिल्ली आई थीं. साथ में सुशांत का बायोडाटा भी लाई थीं. मुझे देखते ही हैरान रह गईं. ‘यह क्या हाल बना रखा है तुम ने, तरु? शरीर बेडौल होता जा रहा है. न ढंग से पहनती हो, न सजतीसंवरती हो,’ उन्होंने मेरे टूटेफूटे नाखून और फटी एडि़यों की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

‘अब सजसंवर कर किसे दिखाना है, भाभी?’

‘पुरुष का मनोविज्ञान बड़ा ही विचित्र होता है तरु. जिस पत्नी के साथ उस ने अपने जीवन के इतने वसंत देखे, हर सुखदुख में उस का साथ निभाया, जो पहले उसे अच्छी लगती थी, अब एकाएक उस में कमियां नजर आने लगेंगी और वह उसे फूटी आंख नहीं सुहाएगी.’ तब मैं ने भाभी की बात को मजाक में टाल दिया था, लेकिन आज उम्र के इस पड़ाव पर महसूस हो रहा था, जैसे अपनेआप को पूरी तरह समर्पित करने के बाद भी मैं मिलन का मन नहीं पा सकी. वरना उन के कदम क्यों भटकते?  2 घंटे बाद मिलन वापस लौटे. रात भर हम दोनों पतिपत्नी दो किनारों की तरह अलगअलग लेटे रहे. 2 अजनबियों की तरह आपस में ही सिमटे रहे. बंद आंखों से मैं ने महसूस किया, मिलन के हाथ मेरी ओर बढ़ते, फिर वे खुद पर काबू पा लेते. चादर पर बिछे गुलाब के कांटे मिलन को छेद रहे थे. वे मुझे भी तकलीफ पहुंचा रहे थे.

सुबह तेज बारिश हो रही थी. तेज हवा के झोंकों से खिड़कियों, दरवाजों के खटकने का शोर सुनाई दिया, तो मेरी तंद्रा भंग हुई. अब मैं वास्तविकता के धरातल पर थी. बेमन से बिस्तर छोड़ कर खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई. तभी निक्की के कमरे का दरवाजा खुला. हाथ में छोटा एअरबैग लिए वह मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘कहीं जा रही हो?’’ मैं ने नीचे से ऊपर तक उसे निहारा.

‘‘जी, अपनी सहेली के पास.’’

‘‘यों अचानक?’’

मैं जानती थी कि यह मिलन और निक्की की पूर्व नियोजित योजना थी. आज रात की फ्लाइट से सोनिया, बेंगलुरु से आ रही थी. दिल्ली में 2 दिन का उस का सेमिनार था. सोनिया जब भी आती, निक्की हमेशा इसी तरह घर छोड़ कर चली जाती है. मन पश्चात्ताप की आग में जल उठा था. कई बार हम सच को अस्वीकार कर उस से दूर क्यों भागते हैं? मुझे याद है, पिछली बार जब सोनिया आई थी तब निक्की यों ही बहाना बना कर अपनी सहेली के घर चली गई थी. मिलन के मोबाइल पर लगातार एसएमएस की ट्रिनट्रिन सुन कर सोनिया ने मोबाइल उठा लिया था.

‘पापा को इतने मैसेज कौन भेजता है, ममा?’

‘अरे, यों ही विज्ञापन कंपनी वाले परेशान करते रहते हैं,’ मैं ने लापरवाही से बात उछाल दी थी.

सोनिया एकएक कर के मैसेज पढ़ती चली गई.

‘ ‘आई लव यू’ ममा, इस उम्र में पापा को इतने हौट मैसेज कौन भेजता है? अच्छा, यह पढ़ो, ‘तकदीर ने मिलाया, तकदीर ने बनाया, तकदीर ने हम को आप से मिलाया. बहुत खुशनसीब थे वो पल, जब आप जैसे दोस्त इस जिंदगी में आए.’

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सोनिया की बातों पर मैं ने जरा भी ध्यान नहीं दिया था. इस में कोई संदेह नहीं कि मिलन में किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने का गुण है. रिटायरमैंट की उम्र तक पहुंच गए, लेकिन यौवन दूर नहीं गया. उन की आंखों में एक विशेष तरह की गहराई है. हर समय सलीके से कपड़े पहनते हैं. रात में भी परफ्यूम से सराबोर हो कर वे मुझे अपने आगोश में भींचते तो ब्याह के शुरुआती दिन मुझे याद आ जाते.

‘ओह, मिलन, इस उम्र में भी तुम्हें हर रात…’

‘इंसान को हमेशा जवान बने रहना चाहिए. अपने विचार ही तो बुढ़ापा लाते हैं.’

– क्रमश:

Serial Story: एक छत के नीचे (भाग-3)

चिंता सी हो रही थी कि सहेली के घर वह न जाने किस हाल में होगी. दूसरे, इसी बहाने से वह सोनिया से मिल भी लेगी. कौफी हाउस में डोसा खाते समय सोनिया ने दिल को छू लेने वाला विषय छेड़ दिया था, ‘‘‘ममा, आप ने ‘चीनी कम’ फिल्म देखी है? एक युवती अपने पिता की उम्र के प्रौढ़ से पे्रम करती है…’

‘‘हां, इसी विषय पर और कई फिल्में बनी हैं, ‘निशब्द’, ‘दिल चाहता है’ आदि.’’

‘‘ऐसा क्यों होता है, ममा?’’

‘‘उस वक्त प्रौढ़ और वह युवती, दोनों ही यह समझते हैं कि प्यार की कोई सीमारेखा नहीं होती. उन्हें यही लगता है कि प्यार तो कभी भी किसी से भी हो सकता है. युवती यह समझती है कि यह उस की जिंदगी है और इसे अपने तरीके से जीना उस का अधिकार है. उधर प्रौढ़ को भी अपनी युवा प्रेमिका से कोई उम्मीद तो होती नहीं, हालांकि प्रेमिका की उम्र के उस के बच्चे होते हैं, लेकिन प्यार के शुरुआती दिनों में वह इस बात को ज्यादा अहमियत नहीं देता और अपनी युवा प्रेमिका के साथ भरपूर मौज करना चाहता है. लेकिन एक दिन जब परिवारजनों को पता चलने पर उसे परिवार की तीखी निगाहों व आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है तो उस के पास पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता. और वह युवती? क्या पूरी उम्र रखैल की भूमिका निभा सकती है? नहीं. कभी न कभी उस का संयम भी जवाब दे जाता है.’’

मैं ने चोर नजरों से निक्की और मिलन की ओर देखा. दोनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं. मैं भी सोनिया के सामने कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाह रही थी. सोनिया को एअरपोर्ट छोड़ कर हम वापस लौट ही रहे थे कि मिलन के मोबाइल पर एसएमएस आने शुरू हो गए. निश्चित रूप से ये मैसेज निक्की ही भेज रही थी. न जाने किस मिट्टी की बनी थी यह लड़की? सोच कर हंसी भी आ रही थी, आश्चर्य भी हो रहा था. मेरे ही प्यार से सींचा गया यह पौधा, फिर भी इस पौधे ने इतना अलग रूप कैसे ले लिया? घर में कदम रखते ही मैं ने मिलन से सीधेसपाट शब्दों में पूछा, ‘‘अब आगे क्या सोचा है?’’

‘‘किस बारे में?’’ मिलन बुरी तरह हड़बड़ा गए थे.

मैं चुपचाप उन का चेहरा निहारती रही तो वे बोले, ‘‘तरु, तुम तो तरु हो. तुम्हारे नाम की सार्थकता इसी में है कि दूसरों को अपनी शीतल छाया के नीचे शरण दो. निक्की को रहने दो इसी घर में. समाज के सामने तो हम दोनों पतिपत्नी ही रहेंगे न?’’

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कितना भयावह रूप था मिलन का? जिस पुरुष के नाम का सिंदूर मैं अपनी मांग में भरती आई थी, उसी पुरुष ने मुझे कितनी आसानी से पराया बना दिया? क्या देह इतनी बेलगाम हो सकती है कि नैतिकता की सारी सीमाएं लांघ कर बेबुनियाद रास्ता अपना ले? अपमान की आग में चोट खाया मन, अंदर ही अंदर सुलगने लगा. अगर हालात से समझौता कर लूं तो क्या इतना सहज होगा रिश्तों में संतुलन बनाना? कभी न कभी सोनिया और अभिषेक मेरे मन की थाह पा ही लेंगे, फिर तो वे मिलन से नफरत ही करेंगे. मिलन मेरी और निक्की दोनों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे थे. मिलन करवट बदल कर लेट गए थे. मैं जानती थी कि उन्हें थोड़ी देर में नींद आ जाएगी. इतना ही अंतर होता है पुरुष और स्त्री में. पुरुष रिश्तों को ध्वस्त कर के भी सामान्य हो जाता है और स्त्री रिश्तों के भरभरा कर गिरने पर खुद भी टूट कर बिखर जाती है. पुरुष, जिसे अग्नि को साक्षी मान कर साथ निभाने का वचन देता है, उसे भूल कर दूसरी नारी के साथ संबंध स्थापित करने में जरा नहीं सकुचाता.

कमरे में अंधेरा सा छाने लगा तो मैं ने खिड़की के परदे हटा दिए थे. सूरज ढलने के बाद, जो मरियल सा उजाला फैला होता है, वही हर ओर पसरा था. सोनिया के जाते ही मिलन मुक्ति पर्व मनाने लगे. अब वे बेझिझक निक्की के कमरे में घुस जाते. घंटों वहीं बैठे रहते. उसे उपहार देते, घुमाने ले जाते, फिल्में दिखाते. उस दिन मैं ने नाश्ते की मेज पर मिलन को बुलाया. उन के पीछेपीछे निक्की भी आ गई थी

‘‘एक बात पूछूं, मिलन? उस शाम यदि निक्की के स्थान पर सोनिया होती तो क्या तब भी आप ऐसा ही घृणित कृत्य करते?’’ निक्की की मौजूदगी में मैं उन से ऐसा सीधा सपाट प्रश्न करूंगी, कभी सोचा नहीं था मिलन ने. ऐसा निर्मम और अश्लील प्रस्ताव सुनने के बाद मिलन अपना चेहरा झुकाए चुपचाप बैठे रहे.

मेरे सीने में जो अपमान भरा था, उसे तिलतिल कर खाली करते हुए मैं ने पुन: वही प्रश्न दोहराया तो मिलन उठ खड़े हुए. निक्की के लिए यह स्थिति अप्रत्याशित सी थी. वह तो यही समझ रही थी कि ऐसे ही चलता रहेगा सबकुछ. जवानी की दहलीज पर कदम रखती तरुणी की जैसे कुछ भी सोचनेसमझने की शक्ति चुक गई थी. किसी ने उस का मार्गदर्शन भी तो नहीं किया था. वह फूटफूट कर रो पड़ी थी.

‘‘बस कीजिए, बूआ. मैं अपने किए पर बेहद शर्मिंदा हूं.’’

‘‘सच हमेशा कड़वा होता है, निक्की. पर जैसे आदमी अस्वस्थ हो तो उसे कड़वी दवा पीनी पड़ती है, उसी तरह इंसान यदि गलती करता है तो उसे कड़वे बोल सुनने पड़ते हैं. इस घर की छत के नीचे रह कर दूसरी औरत बनने से कहीं अच्छा है सुशांत के साथ ब्याह कर उस की अर्धांगिनी बनो.’’ निक्की अपने कमरे में चली गई तो मिलन बौखला से गए. बोले, ‘‘कहीं निक्की कोई गलत कदम न उठा ले…’’

‘‘कुछ नहीं होगा. सुंदर, सुव्यवस्थित गृहस्थी में प्रवेश कर वह अपने अतीत को एक दुस्वप्न की तरह भुला देगी. मिलन, उसे अपनी जिंदगी जीने दो और तुम भी लौट आओ अपनी गृहस्थी में,’’ मेरे चेहरे पर दृढ़ता के भाव मुखर हो उठे. उस रात मिलन ने अपनी बांहों में मुझे कस कर भींचा तो लगा कि मैं दम ही तोड़ दूंगी. कितना सुखद था वह एहसास. अगले माह सुशांत से निक्की का विवाह हो गया. मैं ने अपने घर की टूटती दीवारों को बचा लिया था. मेरे चेहरे पर संतोष की रेखाएं घिर आई थीं.

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