एक गलती

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं संकर्षण को क्या जवाब दूं कि उस का पिता कौन है? संकर्षण मेरा बेटा है, पर उस के जीवन की भी अजब कहानी रही. वह मेरी एक गलती का परिणाम है जो प्रकृति ने कराई थी. मेरे पति आशीष के लंदन प्रवास के दौरान उन के बपचन के मित्र गगन के साथ प्रकृति ने कुछ ऐसा चक्र चलाया कि संकर्षण का जन्म हो गया. कोई सोच भी नहीं सकता था कि गगन या मैं आशीष के साथ ऐसी बेवफाई करेंगे. हम ने बेवफाई की भी नहीं थी बस सब कुछ आवेग के हाथों घटित हो गया था.

मुझे आज भी अच्छा तरह याद है जब गगन की पत्नी को हर तरफ से निराश होने के बाद डाक्टर के इलाज से गर्भ ठहरा था. पर पूर्ण समय बाद एक विकृत शिशु का जन्म हुआ, जो अधिक देर तक जिंदा न रहा. होटल के कमरे में थके, अवसादग्रस्त और निराश गगन को संभालतेसंभालते हम लोगों को झपकी आई और कब हम लोग प्रकृति के कू्रर हाथों के मजाक बन बैठे समझ ही नहीं पाए. फिर संकर्षण का जन्म हो गया. मैं ने उसे जन्म देते ही गगन और उन की पत्नी को उसे सौंप दिया ताकि यह राज आशीष और गगन की पत्नी को पता न चले. गगन की पत्नी अपनी सूनी गोद भरने के कारण मेरी महानता के गुण गाती और आशीष मेरे इस त्याग को कृतज्ञता की दृष्टि से देखते.

हां, मेरे मन में जरूर कभीकभी अपराधबोध होता. एक तो संकर्षण से अपने को दूर करने का और दूसरा आशीष से सब छिपाने का. पर इसी में सब की भलाई थी और सबकुछ ठीकठाक चल भी रहा था. गगन और उन की पत्नी संकर्षण को पा कर खुश थे. वह उन के जीवन की आशा था. मेरे 2 बच्चे और थे कि तभी वह घटना घटी.

संकर्षण तब 10 वर्ष का रहा होगा. वह, गगन और उन की पत्नी कार से कहीं से लौट रहे थे कि उन की कार का ऐक्सिडैंट हो गया. गगन की पत्नी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. गगन को भी काफी चोटें आईं. हां, संकर्षण को 1 खरोंच तक नहीं आई.

काफी दिन हौस्पिटल में रहने के बाद गगन स्वस्थ हो गए पर दुनिया से विरक्त. एक दिन उन्होंने मुझे और आशीष को बुला कर कहा, ‘‘मैं ने अपनी सारी संपत्ति संकर्षण के नाम कर दी है. अब मैं संन्यास लेने जा रहा हूं. मेरी खोजखबर लेने की कोशिश मत करना.’’

हम लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की पर संकर्षण को हमारे हवाले कर के एक दिन वे घर छोड़ कर न जाने कहां चले गए. आशीष को गगन के जाने का गम जरूर था, पर संकर्षण अब हमारे साथ रहेगा, यह जान कर वे बहुत खुश थे. उन के अनुसार हम दोनों ने इतने दिन पुत्रवियोग सहा. तब से आज तक 10 साल बीत गए थे, लेकिन संकर्षण हम लोगों के साथ था.

हालांकि जब से उसे पता चला था कि गगन और उन की पत्नी, जिन के साथ वह इतने वर्ष रहा, उस के मातापिता नहीं हैं, मातापिता हम लोग हैं, तो वह हम से नाराज रहता. कहता, ‘‘आप लोग कैसे मातापिता हैं, जो अपने बच्चे को इतनी आसानी से किसी दूसरे को दे दिया? अगर मैं इतना अवांछनीय था, तो मुझे जन्म क्यों दिया था?’’

अपने बड़े भाईबहन से भी संकर्षण का तालमेल न बैठ पाता. उस की रुचि, सोच सब कुछ उन से अलग थी. उस की शक्ल भी गगन से बहुत मिलती थी. कई बार अपने दोनों बच्चों से इतनी भिन्नता और गगन से इतनी समरूपता आशीष को आश्चर्य में डाल देती. वे कहते, ‘‘हैरत है, इस का सब कुछ गगन जैसा कैसे है?’’

मैं कहती, ‘‘बचपन से वहीं पला है… व्यक्ति अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखता है.’’

आशीष को आश्चर्य ही होता, संदेह नहीं. मैं और गगन दोनों ही उन के संदेह की परिधि के बाहर थे. यह सब देख कर मुझे खुद पर और क्षोभ होता था और मन करता था आशीष को सबकुछ सचसच बता दूं. लेकिन आशीष क्या सच सुन पाएंगे? इस पर मुझे संदेह था. वैसे संकर्षण आशीष की ही भांति बुद्धिमान था. केवल उस के एक इसी गुण से जो आशीष से मिलता था, आशीष का पितृत्व संतुष्ट हो जाता, पर संकर्षण उस ने तो अपने चारों तरफ हम लोगों से नाराजगी का जाल बुन लिया और अपने को एकाकी करता चला गया. पता नहीं यह कारण था अथवा कोई और संकर्षण अब बीमार रहने लगा. अस्थमा जैसे लक्षण थे. मर्ज धीरेधीरे बढ़ता गया.

हम लोग अब तक कोचीन में सैटल हो गए थे, पर कोचीन में ही नहीं बाहर भी अच्छे डाक्टर फेल हो गए. हालत यह हो गई कि संकर्षण कईकई घंटे औक्सीजन पर रखा जाता. मैं और आशीष दोनों ही बड़े परेशान थे.

अंत में ऐक्सपर्ट डाक्टरों की टीम की एक मीटिंग हुई और तय किया गया कि यह अल्फा-1 ऐंटीट्राइप्सिन डिजीज नामक बीमारी से पीडि़त है, जोकि जेनेटिक होती है और इस के  लक्षण अस्थमा से मिलतेजुलते हैं. हालांकि यह बीमारी 30 साल की उम्र के बाद होती है पर शायद संकर्षण को समय से पहले हो गई हो और इस के लिए पिता का डीएनए टैस्ट होना है ताकि यह तय हो सके कि वह उसी बीमारी से पीडि़त है और उस का सही इलाज हो सके. आशीष का डीएनए टैस्ट संकर्षण से मेल नहीं खाया. मेल खाता भी कैसे? आशीष अगर उस के पिता होते तब न.

आशीष तो डीएनए रिपोर्ट आते ही बिना मेरी ओर देखे और बिना संकर्षण की बीमारी की परवाह किए कार स्टार्ट कर घर चले गए. संकर्षण की आंखों में उठते मेरे लिए नफरत के भाव और उस का यह प्रश्न करना कि आखिर मेरे पिता कौन हैं, मुझे अंदर तक झकझोर गया. मैं तो अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी ही थी, गगन को संकर्षण की नजरों से गिराने की इच्छा न हुई अत: मैं चुप रही.

संकर्षण बोला, ‘‘आज तक मैं अपने को अवांछनीय समझता रहा जिस के मातापिता उसे बड़ी आसानी से किसी और की गोद में ऐसे डाल देते हैं, जैसे वह कोई निर्जीव वस्तु हो. पर आज पता चला कि मैं अवांछनीय होने के साथसाथ नाजायज औलाद भी हूं, अपनी चरित्रहीन मां और पिता की ऐयाशी की निशानी. आप ने आशीष अंकल को भी इतने दिन तक अंधेरे में रखा, जबकि मैं ने देखा है कि वे आप पर कितना विश्वास करते हैं, आप को कितना चाहते हैं.’’ मैं ने विरोध करना चाहा, ‘‘बेटा ऐसा नहीं है.’’

‘‘मत कहिए मुझे बेटा. इस से अच्छा था मैं बिना यह सत्य जाने मर जाता. कम से कम कुछ भ्रम तो बना रहता. अब हो सके तो कृपा कर के मेरे पिता का नाम बता दीजिए ताकि मैं उन से पूछ सकूं कि अपने क्षणिक सुख के लिए मुझे इतनी बड़ी यातना क्यों दे डाली, जिस से निकलने का भी मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,’’ संकर्षण बोला.

फिर उस ने अपनी सारी दवाएं उठा कर फेंक दीं और जो कुछ उस के खाने के लिए आया था उसे भी हाथ नहीं लगाया. मैं उसे असहाय सी खड़ी देख रही थी. मैं ने डरतेडरते आशीष को फोन मिलाया.

आशीष बोले, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘संकर्षण ने दवाएं फेंक दी हैं और खाना भी नहीं खा रहा है,’’ मैं ने कहा.

आशीष झल्ला कर बोले, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’ और फोन काट दिया.

मैं ने संकर्षण को समझाने की कोशिश की ‘‘प्लीज, ऐसा मत करो. ऐसे तो तुम्हारी तबीयत और खराब हो जाएगी. तुम ठीक हो जाओ. मैं तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दूंगी, अभी तुम मेरी बात समझ नहीं पाओगे.’’

‘‘क्या नहीं समझ पाऊंगा? इतना बच्चा नहीं हूं मैं. आप क्या बताएंगी? यही न कि मेरी कोई गलती नहीं थी. मैं  रेप का शिकार हुई थी. कम से कम यही बता दीजिए ताकि आप के प्रति मेरी नफरत कुछ कम हो सके, वरना इस नफरत से मेरे अंदर ज्वालीमुखी धधक रहा है.’’

मैं कैसे कह दूं यह, जबकि मुझे पता है कि मेरे साथ कोई रेप नहीं हुआ था और न ही हम दोनों अपने पार्टनर के प्रति बेवफा थे. यह बिलकुल सत्य है कि उस एक घटना के अलावा हम लोगों के मन में कभी एकदूसरे के प्रति और भाव नहीं आए. हम एकदूसरे का उतना ही आदर करते रहे जितना इस घटना के पहले करते थे, पर इस बात को संकर्षण समझ पाएगा भला? संकर्षण ही क्या आशीष भी इस बात को समझ पाएंगे क्या?

मेरा ऐसा सोचना गलत भी न था. तभी तो 2 दिन बाद आशीष ने मुझ से पूछा, ‘‘संकर्षण के पिता गगन ही हैं न?’’

मैं ने कहा, ‘‘पहले मेरी बात तो सुनिए.’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं सुनना है, तुम मुझे केवल यह बताओ के संकर्षण के पिता गगन ही है न?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

यह सुनते ही आशीष जैसे पागल हो गए. मुझ पर चिल्लाए, ‘‘नीच हो तुम लोग. जिन पर मैं ने जिंदगी भर विश्वास किया, उन्हीं लोगों ने मुझे धोखा दिया. मुझे इस की आदतें, शक्ल गगन से मिलती लगती थी, पर फिर भी मैं कभी संदेह न कर सका तुम दोनों पर…मेरे इस विश्वास का यह सिला दिया… तुम ने क्यों किया ऐसा?’’ और फिर गुस्से से आशीष ने मेरी गरदन पकड़ते हुए आगे कहा, ‘‘जी तो कर रहा है, तुम्हें मार का जेल चला जाऊं ताकि फिर कोई पत्नी पति को धोखा देने से पहले 10 बार सोचे, पर तुम इतनी नीच हो कि तुम्हें मारने का भी मन नहीं कर रहा है. उस से तुम्हारी तुरंत मुक्ति हो जाएगी जबकि मैं यह नहीं चाहता. मेरी इच्छा है तुम तिलतिल कर मरो,’’ और फिर आशीष ने मेरी गरदन छोड़ दी.

उधर संकर्षण अपने पिता का नाम जानने की जिद लगाए बैठा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे गगन का नाम कैसे बता दूं…मुझे पता था कि वह उन की बहुत इज्जत करता है. उन के साथ बिताए सारे सुखद क्षणों की स्मृतियां संजोए हुए है. अगर वे भी उस से छिन गईं तो कैसे जीएगा, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इधर कुआं तो उधर खाई. न बताने पर तो वह केवल अवसादग्रस्त है, बताने पर कहीं अपनी जान ही न दे दे. दवा न खाने और अवसादग्रस्त होने से संकर्षण की हालत 2 दिनों में और ज्यादा बिगड़ गई. उसे मानोवैज्ञानिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ गई. इधर गगन का कुछ भी पता न था. वे क्या कर रहे हैं, कहां हैं, किसी को कोई जानकारी न थी.

एक दिन मैं ने डरतेडरते आशीष से कहा, ‘‘गगन का पता लगाइए वरना संकर्षण का इलाज नहीं हो पाएगा.’’

‘‘मैं कैसे पता लगाऊं? तुम अनपढ़ हो क्या?’’ और फिर पैर पटकते हुए चले गए.

कुछ समझ में नहीं आ रहा था. पलपल अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को मरता देख रही थी. जिंदगी में अनजाने में हुई एक गलती का इतना बड़ा दुष्परिणाम होगा, सोचा न था. फिर मैं ने सारे संबंधियों, दोस्तों को ई-मेल किया, ‘‘संकर्षण बहुत बीमार है. उस की बीमारी डीएनए टैस्ट से पता चलेगी. अत: गगन जहां कहीं भी हों तुरंत संपर्क करें.’’ अंजन और अमिता भी संकर्षण को देखने आ गए थे. वीकैंड था वरना रोज फोन से ही हालचाल पूछ लेते थे. आज की जिंदगी में इनसान इतना व्यस्त रहता है कि अपनों के लिए ही समय नहीं निकाल पाता है. आते ही थोड़ा फ्रैश होने के बाद अमिता और अंजन दोनों ने एकाएक पूछा, ‘‘क्या बात है मम्मीपापा, आप दोनों बहुत परेशान नजर आ रहे हैं?’’

आशीष यह प्रश्न सुन कर वहां से उठ कर चले गए.

‘‘मम्मी इन्हें क्या हुआ?’’ अंजन ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, संकर्षण की ही बीमारी को ले कर हम परेशान हैं.’’

‘‘यह बीमारी का तनाव आप लोगों के चेहरे पर नहीं है. कुछ और बात है…हम लोग इतने बच्चे भी नहीं हैं कि कुछ समझ न सकें. सच बात बताइए शायद हम लोग कोई हल निकाल सकें.’’

मुझे बच्चों की बातों से कुछ आशा की किरण नजर आई, लेकिन फिर मन में संदेह हो गया कि जब आशीष कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं, तो बच्चे क्या खाक मेरी बात समझेंगे? फिर बताना तो पड़ेगा ही, सोच मैं ने बच्चों को सारी बात बता दी. आज की पीढ़ी शायद हम लोगों से ज्यादा समझदार है. सारी स्थिति का विश्लेषण करती है और फिर कोई निर्णय लेती है.

वे दोनों कुछ देर के लिए एकदम गंभीर हो गए, फिर अमिता बोली, ‘‘तभी हम लोग समझ नहीं पाते थे कि संकर्षण हम लोगों से इतना भिन्न क्यों है? हम लोग इस का कारण उस की परवरिश मानते थे पर सच तो कुछ और ही था.’’ फिर अंजन बोला, ‘‘पर कोई बात नहीं. सारी परिस्थितियों को देखते हुए अंकल और आप को इतना दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता है. हां, गलती आप की सिर्फ इतनी है कि आप ने यह बात इतने दिनों तक पापा से छिपा कर उन का विश्वास तोड़ा है, जो वे आप और अंकल पर करते थे. आप को यह बात उसी समय पापा को बता देनी चाहिए थी.’’

अमिता बोली, ‘‘भैया, तुम भी कैसी बात करते हो. क्या पापा आज जिस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं उसे उस समय सहजता से सुन लेते?’’

अंजन बोला, ‘‘सुन लेते, इस समय उन्हें ज्यादा धक्का इस बात का लगा है कि मम्मी ने यह सच उन से इतने दिनों तक छिपाया.’’

‘‘तुम गलत कह रहे हो. अगर मम्मी न छिपातीं तो यकीनन दोनों परिवारों का विघटन हो जाता. पापा और आंटी दोनों ही इस बात को सहजता से न ले पाते.’’

अंजन बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो, मम्मी ने ठीक ही किया. चलो, हम लोग पापा को समझाते हैं और संकर्षण को भी.’’

‘‘मम्मी, आप संकर्षण के पास हौस्पिटल जाओ हम लोग थोड़ी देर में आते हैं.’’ मेरे हौस्पिटल जाने के बाद अंजन आशीष के पास जा कर बोला, ‘‘मम्मी ने हम लोगों को सारी बात बता दी है. अब आप यह बताइए कि आप को मम्मी की किस बात पर अधिक गुस्सा है, मम्मी और अंकल के बीच जो कुछ हुआ उस पर अथवा उन्होंने यह बात आप से छिपाई उस पर?’’

‘‘दोनों पर.’’

‘‘अधिक किस बात पर गुस्सा है?’’

‘‘बात छिपाने पर.’’

‘‘अगर वे उस समय सच बता देतीं तो क्या आप मम्मी और अंकल को माफ कर देते?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो कितनी जिंदगियां बरबाद हो जातीं, यह आप ने कभी सोचा है? यह सत्य आज पता चला है. तब भी संकर्षण, आप और मम्मी मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं जबकि आप को मम्मी और अंकल पर कभी शक तक नहीं हुआ. इतना तो तय है कि वह क्षणिक गलती मात्र थी. उस गलती की आप मम्मी को और स्वयं को इतनी बड़ी सजा कैसे दे सकते हैं?’’

आशीष बोले, ‘‘पता नहीं. दिमाग तो तुम्हारी बात मान रहा है, पर दिल नहीं.’’

‘‘दिल को समझाएं. पापा, देखिए मम्मी कितनी परेशान हैं.’’

मैं हौस्पिटल में अमिता और अंजन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. ऐसा लग रहा था मेरी परीक्षा का परिणाम निकलने वाला है. तभी अमिता और अंजन मुझे आते दिखाई दिए. पास आए तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘धैर्य रखें समय लगेगा,’’ अंजन ने कहा और फिर संकर्षण से बोला, ‘‘क्या हालचाल है?’’

संकर्षण ने बिना उन लोगों की ओर देखे कहा, ‘‘ठीक हूं.’’

अमिता और अंजन ने मुझे घर जाने को कहा. बोले, ‘‘आप घर जा कर आराम करिए हम लोग संकर्षण के पास हैं.’’अमिता और अंजन के समझाने और मनोचिकित्सक के इलाज से संकर्षण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और वह दवा लेने लगा. साथ ही यह भी पता चला कि उस की बीमारी जेनेटिक न हो कर उस दवा की ऐलर्जी है, जो दवा वह खा रहा था. हालांकि उस द वा से ऐलर्जी के चांसेज .001% होते हैं, पर संकर्षण को थी. कारण पता चल जाने पर उस का इलाज सही होने लगा और वह स्वस्थ होने लगा. आशीष भी ऊपर से सामान्य दिखने लगे.

संकर्षण को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. उसे घर ले जाने का समय आ गया. हम सभी बहुत बड़े चक्रवात से निकल आए थे. घर जाने से पूर्व आशीष हौस्पिटल का बिल भरने गए थे और मैं मैडिकल स्टोर से संकर्षण की दवा खरीदने. तभी गेट पर मुझे संन्यासी की वेशभूषा में एक आदमी मिला जो मुझे देख कर बोला, ‘‘संकर्षण कैसा है?’’ मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा तो पता चला कि वह संन्यासी कोई और नहीं गगन ही हैं.

‘‘ठीक है, आप इतने दिनों तक कहां थे?’’

वे बोले, ‘‘यह सब न पूछिए. आप का ई-मेल पूरे ग्रुप में घूम रहा है. पता चला तो चला आया. आशीष सब कुछ जान गए होंगे? क्या प्रतिक्रिया रही उन की? मैं तो उन से नजरें मिलाने के काबिल भी न रहा. संकर्षण की जिंदगी का सवाल नहीं होता तो मैं यहां कभी न आता. चलिए डाक्टर से कह कर डीएनए टैस्ट करवा लूं.’’

‘‘नहीं, अब उस की कोई जरूरत नहीं है. उस की बीमारी जेनेटिक नहीं थी.’’

‘‘क्या संकर्षण भी जान गया है कि मैं उस का पिता हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘संकर्षण को कब तक हौस्पिटल से छुट्टी मिलेगी? कितना समय लगेगा उस के ठीक होने में?’’

‘‘अब संकर्षण बिलकुल ठीक है. बस थोड़ी कमजोरी है. आज हम लोग उसे घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘ठीक है फिर मैं चलता हूं,’’ कह कर गगन जाने को तैयार हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘संकर्षण से मिलेंगे नहीं?’’

‘‘नहीं, जो उथलपुथल इस सत्य को जान कर आप सभी की जिंदगी में मची होगी और किसी प्रकार सब कुछ शांत हुआ होगा, वह सब मुझे देख कर पुन: होने की संभावना है. वैसे भी मैं मोहमाया का परित्याग कर चुका हूं और एक एनजीओ में गांव के बच्चों के लिए काम कर रहा हूं. संकर्षण को मेरा प्यार कहिएगा और आशीष से कहिएगा कि हो सके तो मुझे क्षमा कर दें,’’ इतना कह कर वे वहां से चले गए. मैं उन्हें जाते हुए तब तक देखती रही जब तक नजरों से ओझल नहीं हो गए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें