Serial Story: एक ही भूल (भाग-5)

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दोनों के बीच एक खामोशी की दीवार थी जिसे तोड़ पाना अब मुमकिन नहीं था. सारिका जानती थी अब विनय उस का कोई भी सच नहीं सुनना चाहेगा.

वह विनय की आंखों में नफरत का सैलाब देख कर सहम गई थी. वह प्रकट में शांत था, मगर सारिका सम झ चुकी थी कि विनय अंदर ही अंदर  झुलस रहा है.

कुछ दिन बाद ही कबीर पूरी तरह स्वस्थ हो कर घर आ गया. इतने लंबे अंतराल के रोग ने उसे अब कुछ गंभीर भी बना दिया था. वह अधिकतर चुप ही रहता. मगर पिता को अपने से दूरी बनाते देख अधीर हो उठता था.

‘‘पापा अब मेरे साथ पहले जैसे क्यों नहीं खेलते मम्मा? वे क्यों मु झे हर वक्त तुम्हारे पास जाने को कहते हैं? बोलो न मम्मा?’’

‘‘पापा आजकल औफिस में बिजी रहते हैं न इसलिए,’’ सारिका बस इतना ही कह पाती.

विनय ने खुद को औफिस और अपने कमरे तक सीमित कर लिया था. वह किसी से कोई बात नहीं करता था. सारिका और कबीर जैसे अब उस के कुछ नहीं लगते थे. देर रात लड़खड़ाते कदमों से घर लौटता, शराब पी कर उस ने अपना गम भुलाना शुरू कर दिया था.

सारिका उसे दिनबदिन इस तरह घुलते नहीं देख पा रही थी. आखिरकार उस ने एक फैसला किया. विनय को इस दुख से आजाद करने का एक ही तरीका था कि वह कबीर को ले कर खुद ही विनय की जिंदगी से कहीं दूर चली जाए. वे खुद को कुसूरवार सम झती थी और उस की नजरों में उस के गुनाह की यही एक वाजिब सजा थी.

सारिका ने एक बैग में अपने और कबीर के कपड़े रखे और फिर अपनी मां को अपने आने की सूचना दे दी.

‘‘मम्मा हम कहां जा रहे हैं?’’ कबीर ने उसे बैग में सामान रखते देख पूछा.

‘‘कबीर, हम नानी के घर जा रहे हैं. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ सारिका कबीर की छोटीमोटी चीजें समेटते हुए बोली.

‘‘हुर्रे, हम नानी के घर जाएंगे,’’ नानी के घर जाने की बात सुन कर कबीर बेहद खुश हो उठा.

बैग तैयार कर सारिका अपने जाने की सूचना देने के लिए विनय के पास गई. उस ने

धीरे से कमरे के अंदर  झांका. विनय आंखें मूंदे बिस्तर पर लेटा था. इस थोड़े से ही अंतराल में उस का शरीर एकदम दुबला हो गया था. आंखों के इर्दगिर्द पड़े स्याह घेरे, बढ़ी दाढ़ी और फीका चेहरा, खुद को रातदिन शराब में डुबो कर विनय ने अपना क्या हाल बना लिया है… उसे देख कर सारिका का दिल रो पड़ा. बस विनय तुम्हें अब ये सब नहीं सहना पड़ेगा.

उसे सोया जान कर उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. धीरे से विनय ने आंखें खोलीं. सारिका को वहां देख कर बस एक पल के लिए उस के चेहरे पर कुछ भाव आए, फिर अगले ही पल घृणा से नजरें फेर लीं.

‘‘विनय मैं बस यह बताने आई हूं कि मैं कबीर को ले कर हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर जा रही हूं.’’

विनय किसी मूर्ति की तरह अविचलित बैठा रहा. जब उस ने सारिका को दोषी करार दे ही दिया था तो फिर कुछ कहनेसुनने की गुंजाइश ही कहां बची थी.

मगर आज सारिका ने ठान लिया था कि वह विनय को सारी सचाई बता कर ही रहेगी. जब उसे विनय की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर होना ही है तो यह मलाल क्यों दिल में रहे. अत: उस के मन में जो कुछ था वह सब उस ने विनय के सामने बोल दिया.

‘‘विनय, तुम्हें यही लगता है न कि तुम्हारे जाने के बाद मैं ने किसी और से संबंध बना कर कबीर को जन्म दिया? मगर यह बात सच नहीं है. तुम्हारे सिवा मेरे जीवन में कोई और कभी नहीं आया. मैं यह भी जानती हूं कि तुम कबीर में हमेशा किसी और की परछाईं ढूंढ़ोगे तो इस से अच्छा है कि मैं अपने बेटे को ले कर हमेशा के लिए तुम से दूर चली जाऊं,’’ सारिका ने बात खत्म की.

वह इस कशमकश के साथ अब और नहीं जीना चाहती थी. विनय को सारी सचाई बता कर उस का मन कुछ हद तक हलका हो गया था.

विनय उसी तरह चुपचाप बैठा रहा. उस ने नजर उठा कर सारिका की तरफ देखा तक नहीं. उस की कोई प्रतिक्रिया न पा कर सारिका टूटे दिल से भारी कदमों के साथ कबीर का हाथ पकड़ कर घर से निकल गई.

तभी अचानक कबीर ने अपना हाथ छुड़ा लिया.

‘‘यह क्या कबीर? कहां जा रहे हो? हमें देर हो रही है.’’

‘‘मम्मा मैं अभी आया, पापा को गुडबाय बोल कर,’’ बेचारा कबीर जानता ही नहीं था कि वह अब विनय से कभी नहीं मिल पाएगा.

सारिका ने उसे जाने दिया. वह वहीं खड़ी उस का इंतजार करने लगी. टैक्सी हौर्न बजाने लगी. सारिका ने कलाई में बंधी घड़ी देखी. ट्रेन छूटने में कम ही वक्त रह गया था.

बहुत देर हो गई थी कबीर को गए. सामान वहीं रख सारिका विनय के कमरे में गई, ‘‘कबीर, चलो बेटा देर हो रही है.’’

उस ने देखा विनय ने कबीरको अपनी गोद में बैठा रखा था और वह रो रहा था.

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‘‘मैं तु झे कहीं नहीं जाने दूंगा कबीर. मैं अपने बेटे के बगैर नहीं जी सकता,’’ विनय ने कबीर को कस कर सीने से लगा रखा था. वह पागलों की तरह बारबार कबीर का माथा और गाल चूम रहा था. कबीर भी विनय के साथ रो रहा था.

सारिका बुत बनी दोनों को देखती रही. आंसू तो उस के भी बह रहे थे, मगर आज ये आंसू सुकून के थे.

अगले दिन विनय के साथ बाजार में घूमते हुए उस की नजर एक दुकान पर गई जहां एक से बढ़ कर एक आकर्षक फ्रेम्स वाली बहुत सी तसवीरें लगी थीं. उन खूबसूरत तसवीरों को देख कर उस से रहा नहीं गया और फिर  झटपट दुकानदार को अपने लिए भी एक फ्रेम तैयार कर घर भेजने को बोल दिया.

‘‘वह इस कशमकश के साथ अब और नहीं जीना चाहती थी.

विनय को सारी सचाई बता  उस का मन कुछ हद तक हलका हो गया था…’’

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