यह तो गहरी साजिश है

चुनाव निकट आते ही देशभर में हिंदूमुसलिम, हिंदूमुसलिम की आवाजें सुनाई देने लगती हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में जो बात सब से ज्यादा बोली गई है वह यह है कि मुसलिम मतदाता किस और वोट देंगी, उन के वोट भारतीय जनता पार्टी को तो नहीं जाएंगे पर क्या कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बंट जाएंगे? राजनीति के यह सवाल असल में पूरे समाज को 2 हिस्सों में बांटने लगे हैं और  भारत की मुसलिम औरतों के विकास, उन की शिक्षा, सोच, अंधविश्वासों पर गहरा असर पड़ रहा है.

पहले 3 तलाक के बहाने औरतों को मोहरा बनाया गया, यूनिकौम सिविल कोड यानि 4 तक शादियां करने की इजाजत, बुर्का और अब हिजाब को ले कर औरतों को केंद्र में रख कर हिंदू नेता अपनी वोटे इक्ट्ठी कर रहे हैं. मुसलिम नेता नाम की चीज तो यहां है ही नहीं पर जो भी लंबी दाड़ी वाले हैं वे इस विभाजन करने वाली राजनीति में अपना लंबी दूर तक चलने वाले मोटा मुनाफा देखते है और इस आग को सुलगते रहने देते रहना चाहते हैं.

औरतों को इस तरह के विवादों से ज्यादा फर्क पड़ता है क्योंकि आबादी के आधे हिस्से को अपने ही लोगों से बचाने वाले विरोध आम चर्चा से हट जाते हैं. आम हिंदू पिछड़ी व दलित औरतों की तरह आम मुसलिम औरतों को आज भी देश भर में केवल घर चलाने के लिए मुफ्त की नौकरानी समझ कर रखा जा रहा है और एक तरफ देश को इस कर्मठ हो सकने वाली आबादी की उत्पादकता का लाभ नहीं मिल रहा, दूसरी ओर ये अपने परिवारों, धार्मिक गुरुओं, रीतिरिवाजों के जंजालों में फंसी रह कर अपनी पर्सनैलिटी को लगभग शून्य कर रही है.

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मुसलिम महिलाएं जहां फैसले लेने वाली होनी चाहिए वहां उन्हें हिजाब पहना कर नुमाइश बना दिया गया है और दूसरों से अलगथलग रख कर एक बेमतलब के विवाद में फंस गई हैं. वे इस तरह उलझ गर्ई हैं कि उन के लिए निकलना मुश्किल होता जा रहा है. उन्हें हिजाब पहनने में कोई मजा आ रहा हो, यह कहना कठिन है पर जब कोई आपत्ति करे तो उन्हें लगता है कि उन के हकों पर हमला हो रहा हैं.

जहां मुसलिम महिलाओं को नौकरियों में बराबर के हक, संपत्ति में बराबर के हक, काजी मौलवी से छूटने के हक, नागरिकता कानून के पैने पंजों में दबते हकों के लिए लडऩा चाहिए उन्हें हिजाब को पहनने के हक में उलझा दिया गया है. इस में मुसलिम धार्मिक नेताओं की जीत साफ है जो औरतों की आजादी को एक बार फिर धकेलने में सफल हो रहे हैं जिस का जीताजागता उदाहरण अफगानिस्तान है जहां औरतों ने अपने बेटों को लडऩे मरने के लिए खुशीखुशी बलिदान किया, अब उन्हीं लोगों के अत्याचारों से दब रही हैं.

चुनावों में उन की बात उठा कर देश की राजनीतिक पार्टियां अपनेअपने लड्डू भून रही हैं पर कढ़ाई तो वे औरतें ही हैं जिनको तपन हो रही है. माल जो बन रहा है वह औरतों को नहीं मिलेगा.

उत्तर प्रदेश का कोई दल मुसलिम तो छोडि़ए हिंदू पिछड़ी व दलित औरतों के साथ ही नहीं खड़ा है. उन्हें मालूम है कि औरतें तो अभी तक गाय हैं, उन्हें तिलक लगाओ या हिजाब पहनाओ दूध देंगी और कहना मानेंगी वर्ना सडक़ों पर फेंकी जा सकती हैं.

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