जीवित रहना और उन्नति- स्तन कैंसर के शारीरिक और भावनात्मक प्रभावों को हराने की कहानी

किसी रोगी को कैंसर होने का पता चलने पर सबसे पहले मन में यही सवाल आता है कि ‘जीवन का कितना समय बाकी है? क्या मु?ो अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने का पर्याप्त समय मिल पाएगा? अपने परिवार के साथ और कितने दिन रह पाऊंगी? ’

ब्रेस्ट कैंसर से महिलाओं का केवल स्वास्थ्य ही प्रभावित नहीं होता बल्कि इसका असर उनके स्वाभिमान, दैनिक जीवन और प्रतिष्ठा पर भी होता है. सामान्य व्यवस्था में रोगी नसों के माध्यम से (इंट्रावेनस) उपचार लेने के लिए भीड़-भाड़ वाले भर्ती वार्ड में काफी समय बिताती हैं. समय लेने वाली यह प्रक्रिया रोगियों के रोजमर्रा के जीवन को मुश्किल बना देती है. कुछ रोगियों को नस में दवा चढ़ाने (इन्फ्यूजन) के लिए काफी लंबी दूरी तय करके आना पड़ता है. ब्रेस्ट कैंसर के रोगी के लिए समय का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि उसे काम, परिवार और उपचार के बीच भाग-दौड़ करनी पड़ती है.

स्वास्थ्य देखभाल में नई खोजों का लक्ष्य जीवन को सहज और सरल बनाना है. हाल के वर्षों में अनेक नए-नए अणुओं (मॉलिक्यूल्स) को स्वीकृति मिली है जिन्हें जैविक उपचार पद्धतियां कहते हैं. इनका प्रयोग ब्रेस्ट कैंसर की शुरुआती और शरीर के दूसरे अंगों में फैल चुके (मेटास्टैटिक), दोनों अवस्था के लिए किया जा सकता है. इन उपचार-पद्धतियों से इलाज की गुणवत्ता बढ़ गई है और लंबे समय तक जीवित रहने में मदद मिली है.

[1] दवा देने में नवाचार के कारण रोगी अब मिनटों में उपचार प्राप्त कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, फेस्गो (पर्ट्युजुमैब, ट्रेस्ट्युजुमैब और हेल्युरोनीडेज) जो एक स्वीकृत नुसखा औषधि (प्रेस्क्रिप्तिओन्क मेडिसिन) है, अध:त्वचीय (त्वचा में) सूई के रूप में जांघ की त्वचा के नीचे दिया जा सकता है. [2] उपचार के इन नजरियों से एक मां को अपने बच्चों के साथ खूबसूरत पल तैयार करने में, महिलाओं को अपने शौक पूरे करने और कॅरियर में प्रगति करने तथा परिवारों को एक-साथ अपने खास अवसरों का जश्न मनाने में मदद मिल सकती है.

वेदांत, अहमदाबाद के परामर्शी कैंसर विशेषज्ञ और हीमैटोऑन्कोलॉजी क्लिनिक के निदेशक, डॉ. चिराग देसाई ने कहा कि परंपरागत कीमोथेरैपी के दौरान ट्रेस्ट्युजुमैब और पर्ट्युजुमैब चढ़ाने ने लिए कम-से-कम

1-1 घंटा समय लगता है. लेकिन फेस्गो द्वारा दोनों मोनोक्लोनल ऐंटीबॉडीज को आधे घंटे के भीतर में सूई से त्वचा के नीचे दिया जा सकता है. इस प्रकार इससे रोगी के समय की बचत होती है और उसे कम चीरा लगता है.

भर्ती वार्ड में रहना, जहां अलग-अलग तरह के कैंसर के लिए अनेक रोगियों का उपचार हो रहा हो, सदमे से भरा हो सकता है. इसलिए फेस्गो जैसे नवीन उपचार भर्ती वार्ड में रहने के समय और सदमे में कमी करने में सहायक हो सकते हैं.

41 वर्षीय हितेश्वरीबा जडेजा को शरीर के दूसरे अंगों तक फैल चुके ब्रेस्ट कैंसर (मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर) के बारे में पता चला तो पूरी उपचार अवधि के दौरान हर समय और हर जगह डर उन पर हावी रहा था. लेकिन फेस्गो के चलते उन्हें समय मिल गया है. वे कहती हैं, ‘‘मैं अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिता सकती हूं क्योंकि मु?ो अब पूरा दिन अस्पताल में नहीं बिताना पड़ता है. फेस्गो देने में लगभग 20 से 30 मिनट का समय लगता है. पहले मु?ो लगभग एक हफ्ते तक भूख नहीं लगती थी. लेकिन फेस्गो से मु?ो काफी मदद मिली है.’’

डॉ. देसाई ने कहा कि हितेश्वरीबा के कैंसर में लगभग 2 वर्षों से कोई वृद्धि नहीं हुई है और वे एक अच्छा जीवन जी रही हैं. लेकिन शुरुआत में यह भरोसा करना मुश्किल था, उन्होंने उपचार लेने से इनकार कर दिया था. उन्हें मौत का डर था. उन्हें आगे उपचार कराने के लिए प्रोत्साहित करने में मु?ो कुछ समय लगा.

जिन महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चलता है, वे सदमे का शिकार हो जाती हैं. लोगों को न चाहते हुए भी गहरे डर का सामना करना पड़ता है. उन्हें सामने मौत खड़ी दिखने लगती है और वे भविष्य के बारे में जबरदस्त अनिश्चितता में उल?ा जाती हैं. उपचार कराने के बाद हितेश्वरीबा को जीने का एक नया उत्साह मिला है और वे जामनगर में अपने परिवार के साथ रह रही हैं.

हितेश्वरीबा की तरह ही अनेक रोगी उम्मीद खो देने के कारण उपचार नहीं कराना चाहती हैं. इसलिए कैंसर के उपचार में परामर्श एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. हैदराबाद की 50 वर्षीय माधवी वाराल्वर परामर्शदाताओं की वकालत करती हैं. उनके मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर की पहचान एक संयोग से हुई थी. उनके डॉक्टर ने हर जरूरी ध्यान और सहायता दी, लेकिन उन्हें लगता है कि परामर्शदाता कैंसर रोगियों के डर को दूर करने में और ज्यादा मददगार हो सकते हैं.

उन्होेंने कहा कि पूरे दिन कई-कई रोगियों को हैंडल करने के कारण डॉक्टरों पर भी बहुत ज्यादा बो?ा रहता है. इसलिए रोगियों को सलाह देने, उन्हें साइड इफेक्ट की जानकारी देने और इलाज के प्रति उनके मन में भरोसा जगाने के लिए एक सपोर्ट ग्रुप होना चाहिए.

डॉ. देसाई का भी कुछ ऐसा ही मानना है. उनके अनुसार हमारे हॉस्पिटल में परामर्शदाता हैं, लेकिन उन्हें  कैंसर रोगियों की सहायता करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है. फिर भी साइको-ऑन्कोलॉजी नामक एक नई शाखा विकसित हो रही है.

ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों के लिए समय उनका महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान साथी होता है. खासकर जब वे बीमारी के डायग्नोसिस, उपचार और स्वास्थ्य लाभ के कठिन दौर से गुजरते हैं. भले ही उनके लिए समय मायने रखता है, अत्याधुनिक चिकित्सीय और सहयोगी हस्तक्षेपों से रोगियों को उनकी भावनात्मक सेहत और निजी ग्रोथ के लिए अवसर प्राप्त हो सकता है. ब्रेस्ट कैंसर का सदमा ?ोलना भारी लग सकता है. फिर भी इसी में उम्मीद, हौसला और वापसी करने तथा बीमारी से रिकवर होने के लिए मानवीय भावना की मजबूत क्षमता का प्रमाण भी छिपा होता है. उपचार में इन प्रगति की बदौलत आशा- जीवित रहने वालों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिए उम्मीद की किरण हमेशा बनी रहती है.

 

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