घर का काम पीढिय़ों तक चलता आए, यह सिद्धांत हिंदू धर्म और हिंदू कानून की देन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान दिवस पर कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि परिवारों से चलती हुई राजनीतिक पार्टियां संविधान की भावना के विरुद्ध हैं घर वही नरेंद्र मोदी उस हिंदू भारतीय संस्कृति के गुण गाते अघाने नहीं हैं जिस में बारबार परिवारों का व्याख्यान है.
सगर राजा की कहानी को लें जिसे विश्वमित्र ने सुनाई. सगर अयोध्या का राजा था. उस की 2 पत्नियां थीं. 100 वर्ष (!) तप करने पर उसे वरदान मिला, और एक के एक पुत्र असमंजस पुत्र हुआ और दूसरी के एक लूंबी उत्पन्न हुई जिसे फोडऩे से 6000 पुत्र निकले. अब राजा सगर का बड़ा पुत्र असंमजस दृष्ट निकला और वह लोगों को और अपने भाइयों तक को पानी में फेंक कर खुश होना पर उस का पुत्र अंशुमन सज्जन निकला. इसी राजा समर ने एक यज्ञ करने का फैंसला लिया और उस में इंद्र ने यज्ञ के पवित्र अश्व को चुरा लिया. उस को ढूंढऩे 60000 पुत्र ही निकले.
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जब हमारे नेता धर्मग्रंथों पर अपाध श्रद्धा करते हुए उन का बखान करते हैं, उन के चमत्कारों को वैज्ञानिक खोज बताते हैं तो परिवारों को कैसे दोष दे सकते हैं. जब महाभारत का युद्ध जनता के हित के लिए नहीं राजाओं के पुत्रों के लिए हुआ हो तो उस की आलोचना कैसी की जा सकती है.
प्रधानमंत्री को विपक्षी दलों के बारे में सब कुछ बोलने का राजनीतिक अधिकार है पर नैतिकता कहती है कि आज जो बोलो, उस पर टिके और टिके रहो. सिर्फ बोलने के लिए मंहगाई का ‘म’ न बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह की आलोचना जनसभाओं में करने वाले अपनी मंहगाई न रोकने पर कांग्रेस का परिवारबाद पर भाषण नहीं दे सकते जबकि उन्हीं की पार्टी में मेनका गांधी और वरुण गांधी सांसद हैं. जब वे गांधी परिवार के महत्व को समझ रहे हैं तो कांग्रेस या समाजवादी या अन्य दलों को दोष कैसे दे सकते हैं.
भारतीय जनता पार्टी की शिवसेना लंबे समय सहयोगी रही जो बाल ठाकरे के बाद बेटे उद्धव ठाकरे के हाथों में है. परिवार के बिना पार्टियां चल सकती हैं यह पश्चिम के लोकतंत्र स्पष्ट कर रहे हैं पर भारत तो अपने पुराने ढोल पीटता रहता है, वह कैसे परिवारों को दोष दे सकता है?
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