Family Issue : मेरे पति मुझ से नौकरी करवाना चाहते हैं, मै क्या करूं?

Family Issue : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे विवाह को 2 वर्ष हो चुके हैं. मेरे पति मुझ से नौकरी करवाना चाहते हैं जबकि मैं संतानोत्पत्ति चाहती हूं. मेरे पति की उम्र 38 वर्ष हो चुकी है, इसलिए यदि हम ने अभी से इस विषय में नहीं सोचा तो दिक्कत होगी. मैं भी इस वर्ष 30 की हो गई हूं. कृपया बताएं कि हमें क्या करना चाहिए?

जवाब
आप की उम्र 30 वर्ष हो चुकी है. अधिक विलंब करने से गर्भधारण करने और संतानोत्पत्ति में दिक्कत होगी, इसलिए आप को समय रहते संतानोत्पत्ति के लिए प्रयास करना चाहिए. आप के पति दिनोंदिन बढ़ती महंगाई के कारण चाहते होंगे कि आप नौकरी करें. यदि पति की आमदनी संतोषजनक नहीं है, तो आप घर पर रह कर ट्यूशन आदि कार्य कर के भी उन्हें आर्थिक सहयोग दे सकती हैं.

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आज लड़कियां ऊंची डिगरियां हासिल कर रही हैं. शादी से पूर्व ही वे जौब करने लगती हैं. शादी के बाद भी वे जौब जारी रखना चाहती हैं. पति या ससुराल के अन्य लोगों को भी इस में कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि आज लड़के भी कामकाजी पत्नी चाहते हैं ताकि दोनों की आमदनी से अपनी गृहस्थी को चला सकें. लेकिन उन की लाइफ में नया मोड़ तब आता है जब उन के बच्चा होता है. जब तक वह स्कूल जाने नहीं लगता तब तक उसे अपनी मां की जरूरत होती है. ऐसे में उसे अपने बच्चे की परवरिश के लिए जौब छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि उस के पास 2 ही विकल्प होते हैं कि या तो वह जौब कर ले या फिर बच्चे की परवरिश. वह शिशु की परवरिश की खातिर जौब छोड़ने का विकल्प चुनती है.

बच्चा मां पर निर्भर

आजकल एकाकी परिवारों का जमाना है. ऐसे में सासससुर या देवरानीजेठानी साथ नहीं रहतीं. प्रसव के बाद यदि प्रसूता अपनी मां या सास को बुलाती भी है तो वे कुछ दिन रह कर वापस चली जाती हैं. वे 4-5 साल तक साथ नहीं रह सकतीं. पति को भी अपने काम से इतना समय नहीं मिलता कि वह बच्चे की परवरिश में अपनी पत्नी का हाथ बंटाए. फिर वैसे भी बच्चे को पिता से ज्यादा मां की जरूरत होती है. मां की गोद में आ कर ही उसे सुरक्षा का एहसास होता है. कुछ बच्चे तो मां के बगैर 1 घंटा भी नहीं रहते. मां थोड़ी देर भी न दिखे तो रोरो कर बुरा हाल कर लेते हैं.

यद्यपि कामकाजी महिलाओं को प्रसव अवकाश मिलता है, लेकिन उस की भी एक सीमा है. कुछ महिलाएं गर्भावस्था में ही मातृत्व अवकाश लेना शुरू कर देती हैं, जो प्रसव के बाद समाप्त हो जाता है. जन्म के बाद शिशु पूरी तरह अपनी मां के दूध पर निर्भर करता है. शुरू के 6 महीने तक तो वह मां के दूध के अलावा पानी तक नहीं पीता. इस के बाद ही वह मां का दूध छोड़ कर अन्य खाद्य ग्रहण करने लगता है. शिशु स्तनपान की जरूरत को पूरा करने के लिए मां का घर पर रहना जरूरी है. इसलिए भी वह जौब छोड़ देती है.

कुछ दशक पहले तक जब महिलाएं कामकाजी नहीं होती थीं, बच्चे की परवरिश के लिए उन का जौब छोड़ने का प्रश्न ही नहीं था, लेकिन अब जबकि वे कामकाजी हैं, लगीलगाई जौब को छोड़ना उन्हें अखरता है. एक बार जौब छोड़ने के बाद यदि लंबा अंतराल हो जाता है, तो फिर न तो पुन: जौब करने का मन होता है और न ही जौब आसानी से मिलती है. जौब छोड़ने से उन की आर्थिक स्थिति यानी आमदनी पर प्रभाव पड़ता है. परेशानी यह है कि बच्चा होने से खर्च बढ़ते हैं और जौब छोड़ने से आय घटती है. ऐसे में आमदनी और खर्च के बीच तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाता है.

बच्चे की खातिर जब जौब छोड़नी पड़ती है तो उन की पढ़ाईलिखाई बेकार चली जाती है. उन्हें इस बात का मलाल होता है. इसलिए यदि आप भी अपने बच्चे की खातिर नौकरी छोड़ रही हैं तो किसी तरह का मलाल नहीं पालें और न ही पछताएं. याद रहे, जौब के लिए तो सारी उम्र पड़ी है, लेकिन अभी आप की जिम्मेदारी अपने बच्चे के प्रति है, जिसे आप ने अपनी कोख से जन्म दिया है.

प्राथमिकता समझें

नौकर या आया के भरोसे बच्चे पल सकते हैं, लेकिन उन में वे संस्कार कहां से आएंगे जो आप दे सकती हैं? यदि आप अपनी मां, बहन, भाभी को बुला कर उन के भरोसे बच्चे को छोड़ कर जौब पर जाती हैं तो यह भी गलत है. उन का अपना घरपरिवार है, जिस के प्रति उन की जिम्मेदारी है. उन्हें परेशानी में डाल कर आप जौब पर चली जाएं, यह कोई बात नहीं हुई.

यदि आप किसी भी कीमत पर जौब छोड़ना नहीं चाहती थीं तो आप को संयुक्त परिवार में शादी करनी चाहिए थी. वहां इतने लोग होते हैं कि बच्चे को मां की जरूरत केवल स्तनपान के समय ही पड़ती है. उस की परवरिश के लिए दादादादी, चाचा, ताऊ, चाची, ताई, बूआ आदि होते ही हैं. ऐसे में आप कुछ महीनों का मातृत्व अवकाश ले कर फिर से जौब पर जा सकती हैं.

मातृत्व अवकाश के बाद काम पर लौटने या न लौटने का फैसला आप को सोचसमझ कर लेना चाहिए. हालांकि इसे ले कर आप दुविधा में हो सकती हैं. पर निर्णय तो लेना ही होगा. यदि आप नौकरी छोड़ने का निर्णय लेती हैं तो इस बात पर भी विचार कर लें कि आप सक्रिय कैसे रहेंगी, क्योंकि जैसेजैसे बच्चा बड़ा होने लगता है उसे आप की जरूरत कम होती जाती है. इसलिए आप नौकरी भले ही छोड़ दें, पर अपनेआप को व्यस्त रखने का कोई उपाय अवश्य ढूंढ़ लें ताकि आप की बुद्धि, योग्यता और प्रतिभा कुंठित न हो.

यदि आप के पति की आमदनी बहुत कम है तो फिर आप को नौकरी न छोड़ने का फैसला लेना पड़ेगा. इस के लिए कुछ समय तक अवैतनिक अवकाश भी लेना पड़े तो लें. हालांकि इस का असर प्रमोशन और कुल सेवा अवधि की गणना पर पड़ेगा, पर नौकरी तो कायम रहेगी.

आपको नौकरी जारी रखने, छोड़ने या ब्रेक लेने का फैसला पति और परिजनों की सहमति से ही लेना चाहिए अन्यथा वे दोष आप को ही देंगे. यदि नौकरी छोड़ती हैं तो क्यों छोड़ी और यदि नहीं छोड़ती हैं, तो क्यों नहीं छोड़ी, के ताने आप को ही सुनने पड़ेंगे. इसलिए इस का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लें. इस के दूरगामी परिणाम होते हैं.

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Family Issue : मैं जेठानी और सास के सास बहू के सीरियल से परेशान हूं, मैं क्या करूं?

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सवाल-

मैं 29 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. सासससुर के अलावा घर में जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे व मेरे पति सहित कुल 8 सदस्य रहते हैं. ससुर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. मुख्य समस्या घर में सासूमां और जेठानी के धारावाहिक प्रेम को ले कर है. वे सासबहू टाइप धारावाहिकों, जिन में अतार्किक, अंधविश्वास भरी बातें होती हैं, को घंटों देखती रहती हैं और वास्तविक दुनिया में भी हम से यही उम्मीद रखती हैं. इस से घर में कभीकभी अनावश्यक तनाव का माहौल पैदा हो जाता है.

इन की बातचीत और बहस में भी वही सासबहू टाइप धारावाहिकों के पात्रों का जिक्र होता है, जिसे सुनसुन कर मैं बोर होती रहती हूं. कई बार मन करता है कि पति से कह कर अलग फ्लैट ले लूं पर पति की इच्छा और अपने मातापिता के प्रति उन का आदर और प्रेम देख कर चुप रह जाती हूं. सम  झ नहीं आता, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू पर आधारित धारावाहिक टीवी चैनलों पर खूब दिखाए जाते हैं. बेसिरपैर की काल्पनिक कहानियों और सासबहू के रिश्तों को इन धारावाहिकों में अव्यावहारिक तरीके से दिखाया जाता है.

पिछले कई शोधों व सर्वेक्षणों में यह प्रमाणित हो चुका है कि परिवारों में तनाव का कारण सासबहू के बीच का रिश्ता भी होता है और इस में आग में घी डालने का काम इस टाइप के धारावाहिक कर रहे हैं. ये धारावाहिक न सिर्फ परिवार में तनाव को बढ़ा रहे हैं, बल्कि भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, डायन जैसे अंधविश्वास को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

काल्पनिक दुनिया व अंधविश्वास में यकीन रखने वाले लोगों में एक तरह का मनोविकार भी देखा गया है, जो इन चीजों को देखसुन कर ही इन्हें सही मानने लगते हैं. ऐसे लोगों की मानसिकता बदलना टेढ़ी खीर होता है. अलबत्ता, इस के लिए आप को धीरेधीरे प्रयास जरूर करना चाहिए.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों व अंधविश्वासों के खिलाफ शुरू से मुहिम चलाती आई हैं और अब महिलाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों का विरोध करने लगी हैं.

फिलहाल आप खाली समय में उपयुक्त वक्त देख कर सास और जेठानी को इस के गलत प्रभावों के बारे में बता सकती हैं. आप को उन के मन में यह बात बैठानी होगी कि इस से घर में तनाव का माहौल रहता है और इस का सब से ज्यादा गलत प्रभाव बच्चों और उन के भविष्य पर पड़ता है और वे वैज्ञानिक सोच से भटक कर तथ्यहीन और बेकार की चीजों को सही मान कर भटक सकते हैं. आप अपने ससुर से भी इस में दखल करने को कह सकती हैं.

बेहतर होगा कि खाली समय को ऊर्जावान कार्यों की तरफ लगाएं और उन्हें भी इस के लिए प्रेरित करें. उन्हें पत्रपत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ने को दें. कुप्रथाओं, परंपराओं, अंधविश्वास के गलत प्रभावों को तार्किक ढंग से बताएं ताकि उन की आंखों की पट्टी खुल जाए और वे इस टाइप के धारावाहिकों को देखना बंद कर दें.

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मेरे बौयफ्रेंड की शादी हो चुकी है लेकिन अब वो मुझसे दोबारा मिलना चाहता है क्या करूं?

सवाल

मैं 33 साल की विवाहिता हूं. पति और 2 बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रही हूं. शादी से पहले मेरी जिंदगी में एक युवक आया थाजिस से मैं प्यार करती थीपर किन्हीं वजहों से हमारी शादी नहीं हो पाई थी. अब उस का भी अपना परिवारपत्नी व बच्चे हैं. इधर कुछ दिनों पहले फेसबुक पर हम दोनों मिले. मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अब हम घंटों बातचीतचैटिंग करते हैं. वह मु?ा से मिलना चाहता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वह आप का अतीत था. अब आप दोनों के ही रास्ते अलग हैं. पतिपरिवारबच्चे व सुखद जीवन है. पुरानी यादों को ताजा कर आप दोनों की नजदीकियां दोनों ही परिवारों की खुशियों पर ग्रहण लगा सकती हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि इस रिश्ते को अब आगे न बढ़ाया जाए.

हांअगर वह एक दोस्त के नाते आप से मिलना चाहता हैतो इस में कोई बुराई नहीं. आप घर से बाहर किसी रेस्तरांपार्क आदि में उस से मिल सकती हैं. बुनियाद दोस्ती की हो तो मिलने में हरज नहींबशर्ते मुलाकात मर्यादित रहे. हद न पार की जाए.

सवाल

मैं 24 साल की युवती हूं. 3-4 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं ने अभी तक किसी के साथ सैक्स संबंध नहीं बनाए पर नियमित मास्टरबेशन करती हूं. मु?ो लगता है कि इस से प्राइवेट पार्ट की स्किन ढीली हो गई है. इस वजह से बहुत तनाव में रह रही हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

जिस तरह सैक्स करने से प्राइवेट पार्ट की स्किन लूज नहीं होतीउसी तरह मास्टरबेशन से भी स्किन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह ढीली भी नहीं होती है. यह आप का एक भ्रम है.

हकीकत तो यह है कि किसी अंग के कम उपयोग से ही उस में शिथिलता आती है न कि नियमित उपयोग से. आप अपनी शादी की तैयारियां जोरशोर से करें और मन में व्याप्त भय को पूरी तरह निकाल दें. आप की वैवाहिक जिंदगी पर इस का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

सास-बहू के झगड़े

सासबहूओं के झगड़ों में ज्यादा झगड़े इस बात को ले कर होते हैं कि सास ने बहू के मैके में जा कर क्या बोल दिया या किसी और की शादी के दौरान उस ने जमी मंडली से बहू या उस ने पीहर वालों के बारे में कोई कमेंट क्यों कर दिया. इस पर बड़ा हंगामा खड़ा हो जाता है. बहू भी आसान पट्टी ले कर पड़ जाती है और उस के पीहर वाले भी घर पर आ कर खरीखोटी सुनाने लगते हैं कि ऐसावैसा कहा क्यों गया.

यही काम पौराणिक धारावाहियों से ज्ञान प्राप्त करे सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के लोग संसद में कर रहे हैं. राहुल गांधी ने लंदन में कुछ भाषणों में सवाल पूछ जाने पर कह डाला था कि भारत का लोकतंत्र डांवाडोल है और इस का असर दुनिया के सभी लोकतंत्रों पर पड़ सकता है, राहुल गांधी ने यह भी कह दिया था कि संसद में माइक बंद कर के विपक्षी नेताओं का भाषण ही बंद करा दिया गया है.

भारतीय जनता पार्टी को इस तरह के व्यक्तव्यों पर गहरी आपत्ति है. उस की नाराजगी यह नहीं है कि झूठ बोला गया है. उस की नाराजगी है कि यह सच लंदन में जा कर क्यों बोला गया. वे इस जिद पर अड़े हैं कि जब तक राहुल गांधी माफी नहीं मांगेगे सदन नहीं चलने दिया जाएगा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी परोल रूप से इस मांग का समर्थन कर रहे हैं. सासबहू के से झगड़े में संसद नहीं चल रही, घर में कलह मची हुई है.

सासबहू के इस तरह के झगड़े कि तुम ने उस से क्यों ऐसा कहा बहुत आम हैं, अगर बात घर के पैसे को ले कर हो, खाने की चीजों को ले कर हो, दहेज पर हो, सपत्ति के बंटवारे को ले कर हो तो समझा जा सकता है कि मतभेद होंगे पर सिर्फ बोल देने से घर की या देश की प्रतिष्ठïा धूल में मिल गई, यह बात समझ नहीं आती.

भारत की आजकल विश्व घटना पर 2 खासियतें हैं एक तो ये सब से बड़ी आबादी  वाला देश है. दूसरी जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से उस की अर्थव्यवस्था बड़ी है और विश्वभर के उत्पादकों के लिए अच्छाखासा व्यापार है, क्या ह्यूमन राइटस ले लें, हंगर इंडैक्स तो लें, फ्रीडम इंडैक्स ले लें, हैप्पीनैंस इंडैक्स ले लें, हंगर इंडैक्स ले ले, फ्रीडम इंडैक्स ले लें, हैप्नीनैस इंडैक्स ले ले सब में भारत नीचे से 5-10 देशों में नजर आएगा. ऐसा कुछ नहीं राहुल गांधी ने कहा तो पश्चिमी देशों को मालूम नहीं था. वह कोई ऐसे सीक्रेट नहीं बता कर आया. न ही उस के लहजे में शिकायत थी, न यह कि दूसरे देश दखल दें. उस से पूछा गया, उस ने साफसाफ कह दिया. सासबहू के झगड़ों की तरह भाजपा सांसद अब इसी बात को ले कर हल्ला मचाए जा रहे हैं उन के लिए यह मौका भी ठीक है क्योंकि अगर संसद चलेगी तो अडानी गु्रप का मसला उठाया जाएगा जो भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती कि संसद में उठे.

जब तक यह शब्द आप तक पहुंचेंगे, मामला ठंडा पड़ चुका होगा पर यह निशानी छोड़ जाएगा कि राजनीति सासबहू की लड़ाई की तरह होती है जिस में कभी सास शेरनी होती है तो कभी बहू. इसीलिए स्मृति ईरानी जो सास भी कभी बहू थी धारावाही से प्रसिद्ध हुई थी, इस लड़ाई की संसद में भारतीय जनता पार्टी ही ओर से मुख्य सूत्रधार है.

एकल परिवार में जब एक हो जाए बीमार, तो क्या करें?

आधुनिकीकरण ने परिवार नामक इकाई का ढांचा बदल दिया है. अब पहले की तरह संयुक्त परिवार नहीं होते. लोगों ने वैस्टर्न कल्चर के तहत एकल परिवार में रहना शुरू कर दिया है. लेकिन परिवार के इस ढांचे के कुछ फायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी. खासतौर पर जब ऐसे परिवार में कोई गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाए.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के नेफरोलौजिस्ट डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि न्यूक्लियर फैमिली का ट्रैंड तो भारत में आ गया, लेकिन इस टै्रंड को अपनाने वालों को यह नहीं पता कि वैस्टर्न कंट्रीज में न्यूक्लियर फैमिली में रहने वाले वृद्ध और बच्चों की जिम्मेदारी वहां की सरकार की होती है. वही उन्हें हर तरह की सुरक्षा और सुविधा मुहैया कराती है. यहां तक कि वहां पर ऐसे संसाधन हैं कि वृद्ध हो, युवा या फिर बच्चा किसी को भी विपरीत परिस्थितियों से निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं होती.

डा. जितेंद्र आगे कहते हैं कि उन देशें में जब भी कोई बीमार पड़ता है और अगर उसे तत्काल चिकित्सा की जरूरत पड़ जाती है तब उसे ऐंबुलैंस के आने का इंतजार नहीं करना पड़ता, बल्कि ऐसे समय के लिए विशेष वाहन होते हैं जो बिना रुकावट सड़कों पर सरपट दौड़ सकते हैं और इन से मरीज को अस्पताल तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है. लेकिन भारत में ट्रैफिक की हालत इतनी खराब है कि ऐंबुलैंस को ही मरीज तक पहुंचने में वक्त लग जाता है.

एकल परिवार में हर किसी को बीमारी से उबरने और उस से जुड़े सभी जरूरी काम स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए. बीमारी के समय भी इस तरह आत्मनिर्भरता को कायम रखा जा सकता है: बीमारी के लक्षण को गंभीरता से लें: रोज की अपेक्षा कमजोरी महसूस कर रहे हों या फिर हलका सा भी बुखार हो तो उस के प्रति लापरवाही अच्छी नहीं. हो सकता है जिसे आप मामूली बुखार या कमजोरी समझ रहे हों वह किसी बड़ी बीमारी का संकेत हो. अपने फैमिली डाक्टर से इस बारे में चर्चा जरूर करें. फैमिली डाक्टर के पास जाने में अधिक समय न लगाएं. इस बात का इंतजार न करें कि घर का कोई दूसरा सदस्य आप को डाक्टर के पास ले जाएगा.

डाक्टर से बात करने में न हिचकें: अपने डाक्टर से खुल कर बात करें. आप क्या महसूस कर रहे हैं और आप को क्या तकलीफ है, इस के बारे में अपने डाक्टर को जरूर बताएं. फिर डाक्टर जो भी पूछे उस का सोचसमझ कर जवाब दें. बढ़ाचढ़ा कर भी कुछ न बताएं क्योंकि डाक्टर इस से भ्रमित हो जाता है. मरीज इस बात का ध्यान रखे कि वह अब आधुनिक समय में जी रहा है, जहां हर बीमारी का इलाज है. फिर चाहे वह कैंसर हो, टयूबरक्लोसिस हो या फिर जौंडिस. बीमारी पर खुल कर बात करने में डरने की क्या जरूरत?

प्रैस्क्रिप्शन को सहेज कर रखें: डाक्टर जो प्रैस्क्रिप्शन लिख कर दें उसे हमेशा संभाल कर रखें. हो सकता है कोई शारीरिक समस्या आप को बारबार रिपीट हो रही हो. इस परिस्थिति में आप डाक्टर को पुराना प्रैस्क्रिप्शन दिखा कर याद दिला सकते हैं कि पिछली बार भी आप को यही समस्या हुई थी. बारबार होने वाली बीमारी गंभीर रूप भी ले सकती है. यदि आप के डाक्टर को यह पता चल जाएगा तो वह इस की रोकथाम के लिए पहले ही आप को सतर्क कर देगा. सही डाक्टर चुनें: अकसर देखा गया है कि लोगों को तकलीफ शरीर के किसी भी हिस्से में क्यों न हो, लेकिन वे जाते जनरल फिजिशियन के पास ही हैं. जबकि जनरल फिजिशियन आप को सिर्फ राय दे सकता है. यदि आप को दांतों की तकलीफ है तो डैंटिस्ट के पास जाएं. हो सकता है कि आप को दांतों से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी हो.

बीमारी टालें नहीं: अकसर लोग बीमारी के सिमटम्स नजरअंदाज कर देते हैं. मसलन, शरीर के किसी अंग में गांठ होना, बलगम में खून आना या फिर कहीं पस पड़ जाना. ये सभी बड़ी बीमारियों के संकेत होते हैं. लेकिन लोग इन्हें महीनों नजरअंदाज करते हैं. वे सोचते हैं कि कुछ समय बाद उन की तकलीफ खुदबखुद खत्म हो जाएगी. लेकिन तकलीफ जब बढ़ती है तब उन्हें डाक्टर की याद आती है. तब तक देर हो चुकी होती है. जिस बीमारी पर पहले लगाम कसी जा सकती थी वह बेलगाम हो जाती है इसलिए तकलीफ छोटी हो या बड़ी डाक्टर से एक बार सलाह जरूर लें. मैडिकल कार्ड अपने साथ रखें: यदि आप को कोई गंभीर बीमारी है, तो आप अपना मैडिकल कार्ड और डायरी अपने पास रखें. डाक्टर जितेंद्र कहते हैं कि किसी को सड़क पर चलतेचलते अचानक चक्कर आ जाए या दौरा पड़ जाए तो राहगीर सब से पहले मरीज की जेब की तलाशी लेते हैं ताकि मरीज से जुड़ी कोई परिचय सामग्री मिल जाए. यदि मैडिकल कार्ड रखा जाए तो किसी को भी पता चल जाएगा कि आप को क्या बीमारी है और बेहोश होने की स्थिति में आप को क्या ट्रीटमैंट दिया जाना चाहिए. यदि इस मैडिकल कार्ड में आप का पता और आप के परिचितों का नंबर होगा तो राहगीरों को उन से संपर्क करने में भी आसानी होगी. इस तरह समय रहते आप का इलाज हो सकेगा और परिचित लोग आप के पास हो सकेंगे.

मैडिकल डायरी भी है जरूरी: गंभीर बीमारी होने पर मरीज को अपने पास एक मैडिकल डायरी भी रखनी चाहिए. इस डायरी में मरीज को अपने सभी जरूरी टैस्ट, दवाएं और खानेपीने का रूटीन लिख लेना चाहिए. डाक्टर जितेंद्र इस डायरी का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि मैडिकल डायरी में मरीज अपने होने वाले टैस्टों की तारीख, दवाओं के खाने का समय और उन के खत्म होने और लाने की तारीख लिख सकता है. कई बार बीमारी की वजह से उसे सब कुछ याद नहीं रहता. इसलिए रोजाना इस डायरी को एक बार पढ़ लेने पर उसे ज्ञात हो जाएगा कि कब उसे क्या करना है.

आधुनिक तकनीकों का हो ज्ञान: वैसे तो आधुनिक युग में प्रचलित तकनीकों का ज्ञान सभी को होना चाहिए. लेकिन यदि किसी, का कोई गंभीर रोग है तो उस के लिए तकनीकों को जानना अनिवार्य हो जाता है. जैसे आजकल स्मार्टफोन का जमाना है, तो स्मार्टफोन मरीज के पास होना चाहिए और उस का इस्तेमाल भी मरीज को आना चाहिए. आजकल स्मार्टफोन में बहुत से एप्स हैं जो काफी मददगार हैं. मसलन, कैब बुकिंग एप्स, डायट अलर्ट एप्स, चैटिंग एप्स और विभिन्न प्रकार के ऐसे एप्स जो मरीज को सुविधा और उसे नई जानकारियां देने में काफी मददगार हैं.

डाक्टर जितेंद्र की मानें तो चैटिंग एप्स ऐसे हैं जो मरीज और डाक्टर के बीच इंटरैक्शन को बाधित नहीं होने देते. यदि मरीज को कोई छोटीमोटी जानकारी लेनी है तो वह डाक्टर से इस के जरीए बात कर सकता है. कई बार मरीज अपने डाक्टर से काफी दूर पर होता है, तो उस के लिए डाक्टर से प्रत्यक्ष रूप से मिल पाना मुमकिन नहीं होता. तब वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के द्वारा मरीज अपने डाक्टर से परामर्श ले सकता है.नकद पैसा जरूर रखें: मरीज को घर में हमेशा कुछ नकद पैसा जरूर रखना चाहिए. यदि नकद पैसा रखने में असुरक्षा का एहसास हो तो मरीज अपने नाम से क्रेडिट या डेबिट कार्ड भी रख सकता है.

परिवार वालों का सहयोग भी जरूरी

एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार, यदि परिवार में किसी को भी गंभीर बीमारी हो जाए तो मरीज को घर के सदस्यों का मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार का सहयोग चाहिए होता है. खासतौर पर एकल परिवार में मरीज खुद को ज्यादा अकेला महसूस करता है. एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस में साइकोलौजिस्ट डाक्टर मीनाक्षी मानचंदा कहती हैं कि एकल परिवार में चुनिंदा लोग होते हैं, इसलिए सब की जिम्मेदारियां और काम बंटे होते हैं. घर में किसी के बीमार पड़ने से उन के लिए अतिरिक्त काम बढ़ जाता है. ऐसे में मरीज यदि अपनी छोटीमोटी चीजों का खुद ध्यान रख ले तब भी उस के परिवार के सदस्यों को ही करना होता है.

मरीज को बीमारी से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर कैसे मजबूत बनाया जा सकता है, आइए जानते हैं:

बीमारी कितनी भी गंभीर हो मरीज को इस बात का भरोसा दिलाएं कि उस का अच्छे से अच्छा इलाज कराया जाएगा और वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा.

मरीज को ऐसा न बनाएं कि वह आप पर निर्भर रहे. यदि वह डाक्टर के पास खुद जाना चाहे तो उसे अकेले ही जाने दें.

काम में कितने भी व्यस्त हों, लेकिन मरीज का दिन में 2 से 3 बार हालचाल जरूर पूछें. इस से मरीज को लगता है कि उस के अपने भी उस की चिंता कर रहे हैं.

यदि मरीज बीमारी से पूर्व औफिस जाता था तो उस का औफिस जाना बंद न कराएं. डाक्टर से सलाह लें कि मरीज औफिस जा सकता है या नहीं? मरीज को किसी भी छोटेमोटे काम में उलझा कर रखें, जिस से उसे मानसिक तनाव भी न  महसूस करे.

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