शादी के लिए मेरे घरवाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 27 साल की हूं शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें.

फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझाएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

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सोनिया 20 साल की हुई नहीं कि उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी. लेकिन सोनिया ने तो ठान लिया है कि वह पहले पढ़ाई पूरी करेगी, फिर नौकरी करेगी और तब महसूस हुआ तो शादी करेगी वरना नहीं. सोनिया की इस घोषणा की जानकारी मिलते ही परिवार में हलचल मच गई. सभी सोनिया से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे तो वह फट पड़ी, ‘‘बताओ भला, शादी में रखा ही क्या है? एक तो अपना घर छोड़ो, दूसरे पराए घर जा कर सब की जीहुजूरी करो. अरे, शादी से पतियों को होता आराम, लेकिन हमारा तो होता है जीना हराम. पति तो बस बैठेबैठे पत्नियों पर हुक्म चलाते हैं. खटना तो बेचारी पत्नियों को पड़ता है. कुदरत ने भी पत्नियों के सिर मां बनने का बोझ डाल कर नाइंसाफी की है. उस के बाद बच्चे के जन्म से ले कर खानेपीने, पढ़ानेलिखाने की जिम्मेदारी भी पत्नी की ही होती है. पतियों का क्या? शाम को दफ्तर से लौट कर बच्चों को मन हुआ पुचकार लिया वरना डांटडपट कर दूसरे कमरे में भेज आराम फरमा लिया.’’

यह बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ सोनिया का ही कहना है. पिछले दिनों अंजु, रचना, मधु, स्मृति से मिलना हुआ तो पता लगा अंजु इसलिए शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि उस की बहन को उस के पति ने दहेज के लिए बेहद तंग कर के वापस घर भेज दिया. रचना को लगता है कि शादी एक सुनहरा पिंजरा है, जिस की रचना लड़कियों की आजादी को छीनने के लिए की गई है. स्मृति को शादीशुदा जीवन के नाम से ही डर लगता है. उस का कहना है कि यह क्या बात हुई. जिस इज्जत को ले कर मांबाप 20 साल तक बेहद चिंतित रहते हैं, उसे पराए लड़के के हाथों निस्संकोच सौंप देते हैं. उन की बातें सुन कर मन में यही खयाल आया कि क्या शादी करना जरूरी है. उत्तर मिला, हां, जरूरी है, क्योंकि पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है. शादी करने से घर और जिंदगी को संभालने वाला विश्वसनीय साथी मिल जाता है. व्यावहारिकता में शादी निजी जरूरत है, क्योंकि पति/पत्नी जैसा दोस्त मिल ही नहीं सकता.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या जरूरी है शादी करना

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विवाह लड़कियों की इच्छा से नहीं, सामाजिक दबाव से होते है 

एक अच्छे कंपनी में कार्यरत मिताली की शादी घरवालों ने अपनी मर्जी से करवाया. जबकि वह किसी दूसरे लड़के से करीब 10 साल से प्यार करती थी. जब उसने अपने माता-पिता से अफेयर की बात कही, तो उसके पेरेंट्स गुस्से में आ गए और मिताली को डांटने लगे. मिताली जिद पर आ गयी और उसने पेरेंट्स के आगे कह दिया कि वह उस लड़के के सिवा किसी दूसरे लड़के से विवाह नहीं कर सकती. भले ही उसे घर छोड़ना पड़े. उसकी माँ अंजलि ने उसे बहुत समझाया कि वह लड़का उनके बराबरी का नहीं है और परिवार वाले भी भला – बुरा कहेंगे. घर की बड़ी होने की वजह से उसका विवाह ऐसे परिवार में होने से उसकी छोटी बहन की शादी होने में समस्या आएगी. इतना ही नहीं उस लड़के का परिवार छोटे दो कमरे वाले घर में रहता है और लड़के की आमदनी भी अच्छी नहीं, उसका पिता घर-घर अखबार बांटता है, ऐसे परिवार और छोटे कमरे वाले घर में मिताली का रहना संभव नहीं, ऐसी कई बातें बार-बार माँ के समझाने पर मिताली ने उस लड़के से रिश्ता तोड़ दिया और 6 महीने बाद उसकी शादी उसके माता-पिता के अनुसार सम्भ्रांत परिवार में हो गई. माता-पिता और परिवार जन उसकी इस शादी से खुश थे, पर मिताली का मन उस परिवार में नहीं लगा. वह अपने पति और ससुराल वालों को अपना नहीं पायी. मिताली काम के बाद जब भी घर आती, हमेशा उदास रहने लगी, इसे देख उसका पति बार-बार कारण पूछता, पर वह कुछ नहीं बताती. एक दिन उसके पति ने मिताली को फ़ोन पर ये कहते सुन लिया कि मैं कैसी भी रहूं, आप और पापा खुश है न? 

अब मिताली के पति को भी लगने लगा कि मिताली उससे कुछ छुपा रही है और एक दिन उसने खुद ही मिताली की उदास रहने की वजह जान उससे अलग होने की बात सोच कुछ महीने बाद डिवोर्स दे दिया. अब मिताली पेरेंट्स से दूर अकेले अपने कर्मस्थल पर रह रही है और कभी भी किसी से शादी न करने की ठान ली है. 

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सोशल मीडिया है हावी 

ये सही है कि आज के परिवेश में किसी भी लड़की को चाहे वह कमाऊ हो या नहीं, उसकी मर्जी के बिना सामाजिक दबाव में शादी के लिए राजी करना संभव नहीं होता, लेकिन कुछ परिवार इसे समझ नहीं पाते और अपनी इच्छा को बेटी पर थोपते है, जिससे वह रिश्ता टूटता है, इस बारें में मुंबई की मैरिज काउंसलर आरती गुप्ता कहती है कि आज की न्यू और मॉडर्न इंडिया में बदलाव काफी है. यहाँ तक कि छोटे कस्बों में भी ऐसा कम ही देखने को मिलता है. सोशल मीडिया आज पावरफुल हो चुका है, हर किसी के हाथ में एक मोबाइल है और हर लड़की इन्टरनेट चलाना भी जानती है. इससे सबको एक एक्सपोजर मिलता है. डेली लाइफ से लेकर पोर्नोग्राफी हर चीज को ऑनलाइन देखी जा सकती है. अभी लड़कियां भी बाहर निकल रही है. पिछले 10 सालों में ये बदलाव की लहर तेजी से आई है. पहले लड़की की शादी माता-पिता और सामाजिक दबाव में अवश्य होता था, पर अब नहीं, क्योंकि आज की लडकियां चाहे गांव, कस्बे या शहर की हो, हर कोई पढ़ लिखकर कुछ करने की इच्छा रखती है, जो अच्छी बात है. इसके अलावा लड़कियों को मुफ्त शिक्षा भी कई जगहों पर होता है, इससे लड़कियों का स्कूल जाना संभव हुआ है, साथ ही मिडिया द्वारा समय-समय पर कामयाब लड़कियों को आगे लाना और उसके बारें में बताना भी जागरूकता को बढ़ाने की दिशा में अच्छा कदम है.

इसके आगे काउंसलर आरती का कहना है कि आज की लड़कियां वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो चुकी है, क्योंकि उनकी शिक्षा, जॉब की संतुष्टि, बैंक बैलेंस आदि उसे मजबूती देती है. ऐसे में लड़कियां किसी के आधीन रहना पसंद नहीं करती, क्योंकि वे भी खुद को किसी से कम नहीं समझती. हालाँकि ये बदलाव लड़कियों के लिए चुनौती भी है और वे इसे लेने से घबराती नहीं. पहले लडकियां आत्मनिर्भर नहीं थी. इसलिए वे परिवार और समाज के आगे दबती थी. दिनभर चक्की चलाती थी और किसी से कुछ कहने में असमर्थ थी.  सबको सहन करने के अलावा कोई चॉइस नहीं था. अब जमाना काफी बदला है. चॉइस खूब है, इसलिए अगर पति या ससुराल पक्ष से नहीं जमता, तो छोड़ देने में लड़कियां नहीं हिचकिचाती. कई घरों में लड़की की माँ खुद आगे आकर बेटी को ससुराल छोड़ देने के लिए कहती है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसके जैसे टॉक्सिक वातावरण में उसकी बेटी जीवन गुजारे. 

भुगतता है पूरा परिवार 

आगे मैरिज काउंसलर आरती का कहना है कि अगर विवाह लड़की के न चाहने पर होता है, तो उसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है, क्योंकि ऐसे रिश्तों को कोई निभाना नहीं चाहता, जिसमें दोनों की मर्ज़ी न हो. इसलिये दोनों में से एक भी व्यक्ति अगर मैच्योर है, तो उस रिश्ते को ठीक से निभाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन यहाँ ये कहना भी गलत नहीं होगा कि भारतीय समाज में सोशल प्रेशर दोनों तरफ से होता है. कई बार बोलकर तो कभी साइलेंट होता है. इसे लड़की न सहन कर पाने की स्थिति में या तो भाग जाती है, आत्महत्या कर लेती है या फिर डिवोर्स लेती है. इसके बाद माता-पिता को लड़की की पूरी जिम्मेदारी मरते दम तक उठानी पड़ती है, जिसमें, शारीरिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक आदि कुछ भी हो सकता है. 

लड़कियों ने बदली है परिवेश 

आज लड़कियां इन्टरनेट के द्वारा हर चीज की जानकारी जुटाकर परिवेश को बदल देती है. मेरे यहाँ एक काम करने वाली लड़की अपने पैसे जमाकर पढाई करती थी और अच्छे नंबरों से पास भी हुई और आगे भी पढाई जारी रखी. मेरे हिसाब से एक व्यक्ति अपने रास्ते बनाने के लिए खुद हमेशा काबिल होता है, अगर उसकी इच्छा कुछ करने की हो.

सामाजिक दबाव से कैसे निकले माता-पिता

अपने अनुभव के बारें में आरती कहती है कि मुंबई की एक लड़की को उसकी पेरेंट्स ने सामाजिक दबाव में कोलकाता के लड़के से शादी करवा दी. लड़की वहां जाकर नाखुश थी और डिप्रेशन में चली गयी थी. उस लड़की के पेरेंट्स और भाई उसको साथ लेकर आये थे. मैंने बातचीत की और उसे ससुराल न रहकर अपने पति के साथ जॉब ट्रांसफर लेकर दूसरी जगह रहने की सलाह दी. इससे दोनों के रिश्ते बेहतर हो जाने पर वे फिर परिवार के साथ रह सकते है. इसके अलावा एक लड़की को माँ नहीं बनना था और वह अकेले आजाद रहना चाहती थी, जिसे मैंने अकेले रहने के लिए सलाह दी, कुछ दिनों बाद वे फिर साथ रहने लगे.  

असल में इन चीजो की कोई फार्मूला नहीं है. हर व्यक्ति की सोच, घर परिवार के तौर-तरीके, खुद की मान्यताओं, सामाजिक दबाव आदि को समझने की जरुरत है, कुछ बातें जो माता-पिता को लड़की की सुख के लिए देखना जरुरी है,

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  • शादी करने वाले युवक की सोच, आगे बढ़ने की चाह, संस्कार को समझने की करें कोशिश,
  • लड़की से उसकी चॉइस को जानने के बाद उस परिवार से मिले, उनकी सोच, परिवेश, नीयत, आदि देंखे, 
  • खुद के आत्मविश्वास पर संदेह न करें और अपने दिल की सुने, आसपास और समाज की परवाह करना छोड़े, 
  • लड़की की ख़ुशी का ध्यान रखे,
  • लड़का किसी भी धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण या देश का हो, सबको प्यार ही चाहिए. सबमें खून लाल ही बहता है, इसलिए रिश्ते की मजबूती को देखे और आगे बढे. 
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