रिश्तों के अस्तित्व पर संकट!

आज के समय में आधुनिकता का बढ़ता प्रचलन, पारिवारिक रिश्तों से बढ़ती दूरियां, आधुनिक जीवनशैली में एक-दूसरे के लिए समय का अभाव, बढ़ता संवादहीनता, अपनेपन की भावना का अभाव, माता-पिता की आपसी कलह, रूढिगत परंपराएं, संयुक्त परिवार का विखंडन, बच्चों को घर में दादा-दादी और नाना-नानी का प्यार न मिल पाना जैसे कई अन्य कारण आज के समय में परिवार के बिखरने के कारण होने के साथ-साथ सभी रिश्तो के अस्तित्व पर संकट का मूल कारण भी है. आज के आधुनिक समय में हर रोज कई परिवार टूटता है, तों कई रिश्ते अपना मूल अस्तित्व खो देते है. कभी पिता-पुत्री का संबंध सामने आता है, तो कभी अपने ही संतान द्वारा मारे जाने की खबर आती है , तों कभी सम्पति के लिए बेरहमी से बुजुर्गो का क़त्ल कर दिया जाता है. तों आईये आज हम पारिवारिक विघटन और रिश्तो के अस्तित्व पर संकट के मूल कारणों पर नजर डालती है- विनय सिंह के संग.

परिवार में आधुनिकता का बढ़ना

आधुनिकता नये अनुभवों, नई उपलब्धियों की ग्रहणशीलता और स्वीकार्यता है. प्यार की वेदना , वेदना का आनन्द तथा आनन्द की वेदना के आयाम की कोई समझ इन्हें नहीं होती. ये बस लेना ही जानते हैं , बाते शेयर करने के आनन्द की कोई ललक नहीं. आधुनिक विकास के साथ मनुष्य का मन बदलने लगा. त्याग और बलिदान के बदले जीवन में लोभ और भोग का व्यक्तिवादी वर्चस्व बढ़ने लगा. व्यक्तिवाद का दबाव जितना बढ़ता गया, व्यक्तित्व का प्रसार उतना ही घटता गया.

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ये स्नेह और भागीदारी की अनुभूति से परिचित ही नहीं हो पाते. उन्हें पता ही नहीं होता कि प्यार क्या होता है. आधुनिकता ने नारियों के सम्मुख अभूतपूर्व सुयोग की सम्भावनाओं का आह्वान प्रस्तुत कर दिया है. आधुनिक नारी के सामने चुनौती भी इसके साथ-साथ उभड़ी है. अगर वह नए दिगन्त को नम्रता और कृतज्ञता से अपना अर्घ्य देने को प्रस्तुत होगी, तभी वह कल्याणीया हो सकेगी.

समय का अभाव

आज कल भागदौड की जिंदगी में सभी इतना व्यस्त रहते है कि किसी के पास अपनों को समय देने का समय ही नही है. अब नवविवाहित दंपती शादी के एक महीने बाद ही मूल परिवार से अलग होने का निर्णय ले लेते है. अति-व्यस्तता और अचानक घर-गृहस्थी के बढते दबाव के बीच तालमेल न बिठा पाना नवविवाहित दंपतियो कों अलग होने के लिए उकसाते है. इस बात कों हवा देती है आज कल की आधुनिक नौकरिया (जैसे शिफ्ट डयूटी करने वाले कॉल सेंटर कर्मचारी हो या मीडिया कर्मचारी हो सभी अपने परिवार को अधिक समय नही दे पाते है). इस तरह भावनात्मक तौर पर असंतुलित बनता है और एक खुशहाल परिवार टूट जाता हैं.

पर्दों का असर

आज के समय में छोटे-बड़े पर्दे पर घर-घर की कहानी चल रही है,चाहे वह टीवी सीरियल हो या फ़िल्मी सीन सब में एक आधुनिक परिवार कों दिखाया जा रहा है. टीवी हर घर की जरूरत बन चुका है. छोटे पर्दे पर अश्लील और अनैतिक धारावाहिक या खबरें, फूहड हास्य और स्त्री की गलत छवि को पेश किया जा रहा है और इसका सीधा गलत असर परिवार के युवाओं पर पड़ता है. छोटे और बडे पर्दे पर सेक्स और पारिवारिक हिंसा के दश्य कों देख कर परिवार के नव युवको के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों में भी अनैतिक बदलाव आ रहा है. जो किसी भी सुखी परिवार के लिए दुखदायी है.

एकल परिवार का प्रचलन

भारत में तेजी से एकल परिवार की अवधरणा बढ़ती जा रही है खासकर बड़े शहरों और मेट्रों शहरों. मेट्रो शहर का यह परिवार धीरे-धीरे गाँव और शहर में भी फ़ैल रहा है, जहां वहीं एकल परिवार का प्रचलन.  यह हमारे देश और संस्कृति के खिलाफ है. फिर भी पश्चिम देशी की नकल एवं आधुनिकता के दिखाए ने इस तरह के परिवार कों बढ़ावा दे रहा है. एक ऐसा परिवार जहाँ पति-पत्नी और सिर्फ उनके बच्चे होते है, इस परिवार में दादा-दादी व नाना-नानी का स्थान कही नहीं होता है.

टूटते सयुक्त परिवार

आधुनिकवाद और भौतिकवाद के आपा धापी में दिन प्रतिदिन सयुक्त परिवार के टूटने की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

संयुक्त परिवार के विघटन का सबसे बड़ा दुष्परिणाम नैतिकगुणों के हृास और असंवेदनशीलता के रूप में सामने आया है. सामंजस्य, संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व जैसे गुण संयुक्त परिवार में उपजते और विकसित होते हैं. यहाँ बच्चे ऐसे गुणों को अपने बालपन से ही देखते, समझते और स्वीकार करते हैं. संयुक्त परिवारों में खास तौर पर दादा-दादी और नाना-नानी का सानिध्य मिला होता हैं , उनमें से अधिकांश संस्कारित देखे गए हैं.  माता-पिता का कठोर अनुशासन निश्चित रूप से दादी की गोद में शीतलता का अहसास कराता है और दादा की अंगुली पकड़कर घुमने का अपना अलग ही मज्जा होता है. जो सुख और सुरक्षा का कवच संयुक्त परिवार में मिलता है वह एकल परिवारों में असंभव है.

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परिवार में बढ़ता अकेलापन

आज के बदलते ज़माने में परिवार के  बच्‍चे, जवान एवं  बुजुर्ग सभी किसी ना किसी समय अपने परिवार में ही आप कों अकेला महसूस करते हैं. बढ़ते आधुनिकता, तकनीक का परिवार पर हावी होना और मनोरंजन साधनों में लगातार वृद्धि हमें अपनों से दूर ले जा रही हैं. शादी के बाद कई लोगो के पास परिवार के लिए समय ही नही है, तों कई लोग पैसे कमाने के होड़ में कई दिनों तक अपने बच्चो से भी नही मिल पाते है. जिससे इन लोगो के पारिवारिक रिश्तो पर संकट का बादल छा जाता है.

भाई की धौंस सहें कब तक

मुरादाबाद के एक युवक ने अपनी बहन को इतना मारा कि उस की मौत हो गई. फरीना नाम की यह लड़की अपने दादाजी और पापा के साथ रहती थी. फरीना का भाई असलम नौकरी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था. ईद के मौके पर असलम गांव आ गया था. एक दिन असलम ने अपनी बहन को किसी से फोन पर देर तक बात करते सुना. जब असलम ने जानने की कोशिश की तो फरीना ने बताने से इनकार कर दिया. यह बात असलम के दिमाग में घूमने लगी.

एक दिन असलम ने फिर फरीना को फोन पर बात करते देखा. उस दिन असलम ने उस के हाथ से फोन छीन लिया और लड़के की आवाज सुन ली. इस पर असलम और फरीना की तीखी बहस हुई. लेकिन कुछ दिनों बाद फरीना का फोन पर बात करने का सिलसिला रुकता न देख असलम ने फरीना की डंडे से पिटाई कर दी और उस का फोन छीन कर उसे एक कमरे में बंद कर दिया. अगले दिन जब असलम के पिता ने कमरे का दरवाजा खोला तब फरीना को अचेत हालत में पाया. अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने फरीना को मृत घोषित कर दिया.

ऐसी ही एक कहानी है नूर की, जो अपने शौक, अपने सपनों को जीना चाहती थी, लेकिन उस के भाई के आगे उस के सारे सपने मानो दफन हो गए.

शाम को 6 बज गए थे और नूर अभी तक घर नहीं आई थी. अम्मी गुस्से में बारबार बड़बड़ा रही थीं, ‘‘अंधेरा होने वाला है… कमबख्त यह लड़की अभी तक नहीं लौटी.’’

‘‘अरे, तुम क्यों चिंता कर रही हो. आ जाएगी नूर. अभी तो 6 बज कर 10 मिनट ही हुए हैं,’’ नूर के अब्बू अम्मी को सम झाने की कोशिश कर ही रहे थे कि नूर आ गई.

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उसे देखते ही अम्मी शुरू हो गईं, ‘‘बहुत दिनों से देख रही हूं, तुम्हारा घर लौटने का समय बदलता जा रहा है. तुम्हारे भाईजान को पता चला न, तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

नूर ने अम्मी को सम झाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आज कालेज की आखिरी क्लास

4:30 बजे खत्म हुई थी और बस में भी बहुत भीड़ थी. मैं चढ़ ही नहीं पाई. इसलिए थोड़ी देर हो गई. आप भाईजान से कुछ मत कहना. अब ऐसा नहीं होगा.’’

नूर की अम्मी थोड़ी सख्तमिजाज थीं और नूर के अब्बू उतने ही शांत, जबकि नूर का भाई साहिल हमेशा नूर पर अपनी धौंस दिखाता रहता था. अगर नूर ज्यादा देर किसी लड़की से ही फोन पर बात कर ले तो वह उसे सुनाने में कमी नहीं रखता था. हर समय रोकटोक. कभीकभी नूर को लगता था कि वह इंसान नहीं कठपुतली है जिसे अपने हिसाब से जिंदगी जीने का कोई हक नहीं.

साहिल अम्मी का लाड़ला था और घर में अब्बू से ज्यादा साहिल की चलती थी. साहिल ने अगर कुछ बोल दिया तो वह उसे करवा कर ही मानता था. अगर अब्बू न होते तो नूर 12वीं के बाद ही घर में बैठ जाती. अब्बू बारबार नूर को सम झाते, ‘‘देखो नूर, तुम्हारी अम्मी और भाई दोनों चाहते हैं कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द हो जाए. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम पढ़ो, ग्रेजुएशन पूरा होते ही किसी अच्छे लड़के से तुम्हारा निकाह करवा दूंगा.’’

यों तो सब अपनी बात नूर के सामने रख कर चले जाते लेकिन नूर की ख्वाहिश, उस के सपनों के बारे में कोई नहीं पूछता.

2 दिनों से नूर समय पर घर आ रही थी, इसलिए अम्मी का मिजाज थोड़ा ठंडा था. लेकिन, आज पता नहीं साहिल को क्या हुआ था. गुस्से में चिल्लाता हुआ घर में दाखिल हुआ और सीधा नूर के कमरे में जा कर चिल्लाने लगा.

‘‘अरे क्या हो गया? क्यों चिल्ला रहे हो इस पर?’’ अम्मी ने परेशान होते हुए साहिल से पूछा.

‘‘इसी से पूछो न. मैं बता रहा हूं यह हाथ से निकलती जा रही है.’’

‘‘लेकिन इस ने किया क्या है?’’

‘‘अम्मी, यह लड़कों के साथ दोस्ती रखती है. मेरा दोस्त शराफत है न, उस के छोटे भाई ने इस के साथ फेसबुक पर फोटो लगा रखी है. यह कालेज पढ़ने जाती है या फोटो खिंचवाने जाती है?’’

यह सुनते ही अम्मी ने नूर को बहुत बुराभला सुनाया. ऊपर से साहिल ने उस का फोन भी ले लिया और बंद कर के अम्मी को दे दिया.

नूर मन ही मन सोच रही थी कि एक फोटो ही तो खिंचवाई थी, वह भी अकेले नहीं सब के साथ. भाईजान तो खुद ही रोज लड़कियों के साथ फोटो लगाते हैं, घूमते हैं. फिर खुद को क्यों नहीं देखते?

अगले दिन नूर कालेज गई लेकिन उस ने किसी भी लड़के से बात नहीं की. कालेज से घर के लिए भी समय पर निकल गई थी, लेकिन घर फिर देर से पहुंची.

जब वह शाम 6:45 पर घर पहुंची तो सब घर पर ही थे. जैसे ही नूर आई, साहिल उस से सवाल पर सवाल करने लगा. ‘‘क्लास कब खत्म हुई थी तेरी?’’, ‘‘कालेज से कब निकली थी तू?’’, ‘‘इतनी देर कैसे हुई?’’ ‘‘कहां गई थी?’’

नूर सहम गई थी. डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘भाईजान, वो… वो… मैं कालेज से निकली तो समय पर थी लेकिन आधे रास्ते आ कर याद आया मैं अपनी प्रोजैक्ट फाइल क्लास में ही भूल गई हूं. उसे लेने मु झे वापस जाना पड़ा. इसलिए देरी हुई.’’

आज नूर ने फिर से  झूठ बोला. दरअसल, नूर को गाने का बहुत शौक था. नूर की आवाज सच में बहुत अच्छी थी और गाती भी बहुत अच्छा थी. यह बात उस के घर में सब को पता थी. लेकिन, उस का भाई उस की डोर हमेशा खींच लेता था.

कालेज के बाद नूर एक म्यूजिक अकादमी में जाया करती थी. वहां वह छोटे बच्चों को संगीत सिखाती थी. घर में यह बात किसी को पता नहीं थी. हर बार  झूठ का सहारा ले कर नूर खुद को बचा लेती थी, लेकिन एक दिन नूर का  झूठ  झूठ ही रह गया. रोजरोज देरी से घर आने की बात साहिल के दिमाग में घूम रही थी. एक दिन साहिल उस के कालेज ही चला गया. जैसे ही नूर कालेज से निकली वह उस का पीछा करने लगा. जब उस ने देखा वह म्यूजिक अकादमी में जा रही है तो उसे बहुत गुस्सा आया.

नूर आज फिर देरी से पहुंची. आज साहिल ने बहुत आराम से नूर से बात की. ‘‘क्या हुआ नूर, तुम आज फिर देर से आईं? आज भी कुछ भूल गई थीं क्या?’’

‘‘नहीं… नहीं भाईजान,’’ नूर आगे कुछ बोलती कि साहिल ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘गाना गा कर तुम्हारा गला बहुत थक गया होगा न?’’

नूर यह सुनते ही कांप गई. अम्मी शाम की चाय बना रही थीं और अब्बू बाहर बाजार गए हुए थे. साहिल नूर को हमेशा घर में ही देखना चाहता था. उस ने चूल्हे से गरम कोयला निकाल कर नूर की जबान पर रख दिया.

नूर के सारे शौक, सारे सपने उस कोयले के साथ ही जल गए. वह बुरी तरह घायल हो चुकी थी. सपने धराशायी हो चुके थे और पंख उड़ने से पहले ही कट चुके थे. नूर अंदर तक बुरी तरह टूट चुकी थी.

कह सकते हैं कि अभी भी ऐसे कई घरपरिवार हैं जहां बहनें अपने भाइयों की धौंस सहती रहती हैं.

आखिर क्यों भाई अपनी बहनों पर इतनी धौंस दिखाते हैं. इस की वजह क्या है? इतना मातापिता नहीं करते जितना कि एक भाई अपनी बहन पर रोकटोक करता है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अधिकतर ऐसे केस देखने को मिलते हैं. जहां भाई अपनी बहन को मौत के घाट तक उतार देता है. लेकिन, यह बात सिर्फ उत्तर प्रदेश, हरियाणा की ही नहीं बल्कि पूरे देश की है. अगर परदा हटाया जाए तो हर राज्य और हर घर में यह धौंसपंती देखने को मिलेगी.

क्यों करता है भाई ऐसा

समय बदल रहा है लेकिन समाज नहीं. आज लड़कियां आगे बढ़ रही हैं, पढ़लिख रही हैं, लेकिन इन सब के साथ उन पर तीखी नजर रखी जाती है. यह नजर क्यों है? अकसर हम देखते हैं बहनें अगर घर थोड़ी देरी से आएं तो भाइयों के सवाल पर सवाल शुरू हो जाते हैं.

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पड़ोस में किसी ने भाई के सामने कुछ कह दिया तो घर जा कर भाई बहनों को ही सुनाता है. इस में गलती किस की है? हमारे समाज ने महिलाओं पर हुकूमत चलाने की डोर पुरुषों के हाथ में दे दी है लेकिन पुरुषों पर महिलाओं का कोई जोर नहीं चलता.

आखिर भाई ऐसा करता क्यों है? इस मुद्दे पर जब बात एक 16 साल की लड़की शिवानी से की तो उस का जवाब था, ’’मेरे भैया मु झ से 4 साल बड़े हैं. वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं लेकिन मैं ने पिछले कुछ सालों में उन के व्यवहार में बदलाव देखा है. पहले मैं शाम को बाहर दोस्तों के साथ खेला करती थी, लेकिन एक दिन भैया ने आ कर कहा कि शाम को बाहर खेलने की जरूरत नहीं है. मैं ने उस वक्त कुछ नहीं कहा. लेकिन धीरेधीरे भैया ज्यादा ही रोकटोक करने लगे. ट्यूशन जाते वक्त बोलते हैं सिंपल बन कर जाया कर. फोन इस्तेमाल करती हूं तो अचानक आ कर हाथ से छीन लेते हैं. मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगता यह सब. लेकिन हद तो तब हुई जब भैया ने मु झे किसी और की वजह से घर से 3-4 दिन निकलने नहीं दिया और मेरी ट्यूशन भी बंद करवा दी.

‘‘दरअसल, मेरी ट्यूशन में एक लड़का मु झे पसंद करने लगा था. मेरी कभीकभी उस से बात हो जाती थी. एक दिन ट्यूशन के बाद वह मेरे साथ आधे रास्ते तक आया. यह बात पता नहीं कैसे भैया को मालूम हो गई. उस दिन उन्होंने मु झे बहुत बुराभला सुनाया. अब मैं जल्दी किसी से बात भी नहीं करती. एक अजीब सा डर रहता है.’’

क्या यहां भाई को अपनी बहन की ट्यूशन बंद करवानी चाहिए थी? अपनी बहन पर धौंस दिखाने से पहले, उसे सुनाने से पहले यदि वह उस को सहीगलत सम झाता, समाज के बारे में बताता, तो शायद उस के अंदर का वह डर खत्म हो जाता जो आज उसे किसी भी लड़के से बात करने में लगता है. ऐसी धौंस दिखाना ही क्यों जिस से रिश्तों में दरार आ जाए.

कई बार मातापिता को लगता है कि बेटा जो कर रहा है वह सही है. यदि वह बहन को डांट रहा है तो उस की भलाई के लिए. हां, कह सकते हैं भाई अगर डांट रहा है तो उस में भलाई भी शामिल हो सकती है लेकिन वह अगर बहन की आजादी पर रोक लगा रहा है तो क्या इसे भलाई कहेंगे?

सामाजिक मानसिकता का असर

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अनामिका कहती हैं, ‘‘बचपन से ही सिखाया जाता है कि बेटियों को दहलीज के भीतर रहना है पर बेटों को इस पर कोई रोक नहीं होती. ऐसे में यह एक मानसिक धारणा बन जाती है लड़कों के मन में कि उन्हें तो पूर्णरूप से सभी चीजों के लिए आजादी मिल रखी है. वे कुछ भी करें, सब सही है. लेकिन घर की बेटियां वही सब करने की इच्छा रखती हैं या कर रही हैं तो बात इज्जत, प्रतिष्ठा पर आ जाती है.

‘‘हमारे समाज में बताया जाता है घर की इज्जत बेटियों के हाथ में होती है. अगर वे कुछ अपने मन का करना चाहती हैं तो उस विषय पर काफी सोचविचार किया जाता है. हालांकि, लड़कों के मामले में ऐसा बहुत कम होता है. ऐसे में बहनों का घर से देर तक बाहर रहना, किसी से ज्यादा बात करना भाइयों को सुहाता नहीं है.’’

क्या करें जब भाई की धौंस बढ़ती जाए

-अपने मातापिता के टच में रहें और अपनी परेशानी उन से सा झा करें.

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-भाई से दोस्ताना व्यवहार रखें और उस से कुछ छिपाएं नहीं.

-भाई अगर ज्यादा रोकटोक कर रहा है तो परिवार के सामने अपनी बात रखें. मातापिता को सम झाएं कि जो आप कर रहे हैं उस में कोई बुराई नहीं है.

-अगर भाई आप के साथ बाहर जाने की जिद कर रहा है तो उसे जल्दी मना नहीं करें. एकदो बार जाने के बाद वह खुद नहीं जाएगा.

-यदि आप किसी लड़के को अपना दोस्त बनाती हैं तो घरवालों को इस की जानकारी जरूर दें. इस से घरवाले ज्यादा सवाल नहीं करेंगे.

आधुनिकता के पैमाने पर छलकते जाम

आज भूमि की शादी की पहली सालगिरह थी और अपने पति कार्तिक के इसरार पर उस ने पहली बार बियर का स्वाद चखा था. अब कार्तिक का साथ देने के लिए वह भी कभीकभी ले लेती थी और एक दिन जब कार्तिक कहीं बाहर गया हुआ था तो भूमि ने अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर ली पर उस के बाद भूमि अपने को रोक नहीं पाई और आए दिन ऐसी मदिरापान की पार्टियां उन के यहां आयोजित होने लगीं. भूमि और कार्तिक अपने इस शौक को हाई क्लास सोसाइटी में उठनेबैठने का एक अनिवार्य अंग मानते हैं. यह अलग बात है कि जहां कार्तिक शराब के अत्यधिक सेवन के कारण इतनी कम आयु में ही हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो गया है वहीं भूमि की प्रजनन क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है और वह मां नहीं बन पा रही है.

आज राजेश खन्नाजी बड़ी बेचैनी से चहलकदमी कर रहे थे. उन की बेटी तन्वी अब तक घर नहीं लौटी थी. दरवाजे की घंटी बजी और शराब के नशे में झूमती हुई तन्वी दरवाजे पर खड़ी थी. राजेशजी को तो काटो खून नहीं, उन्हें समझ नहीं आया कि उन की परवरिश में क्या गलती रह गई थी. अगले दिन जब तन्वी का कोर्टमार्शल हुआ तो तन्वी ने पापा से कहा, ‘‘पापा औफिस की पार्टीज में ये सब चलता है और फिर रोशन भैया भी तो पीते हैं.’’

राजेशजी गुस्से में बोले, ‘‘वह कुएं में कूदेगा तो तू भी कूदेगी, लड़कों की बराबरी करनी है तो बेटा अच्छी आदतों की करो.’’

आजकल की भागतीदौड़ती जिंदगी में सभी लोगों पर अत्यधिक तनाव है पर जहां पहले पुरुष ही तनाव से लड़ने के लिए मदिरापान का सेवन करते थे वहीं अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ इस मोर्चे पर डट कर खड़ी हैं. क्यों न हो आखिर यह इक्कीसवीं सदी है. महिलाएं और पुरुष  हर कार्य में बराबरी के भागीदार हैं. जब से मल्टीनैशनल कंपनी और कौलसैंटर की बाढ़ भारत में आई है, तभी से शराब और सिगरेट के सेवन में भी आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई है. यहां पर काम करने की समयावधि, देर रात तक चलने वाली पार्टीज और कभी न खत्म होने वाले कामों के कारण, यहां के कर्मचारियों में  एक अजीब किस्म का तनाव व्याप्त रहता है. इस का निवारण वे मुख्यत: शराब के सेवन से करते हैं.

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एकल परिवारों में बढ़ती लत

ऐसा नहीं है कि पहले के जीवन में तनाव नहीं था पर पहले जहां परिवार के सदस्यों के साथ हम शाम को बैठ कर अपने दुखसुख साझा कर लेते थे. वहीं अब एकल परिवारों के चलन के कारण यह भूमिका मदिरा ने ले ली है.

मजे की बात यह है पहले जहां पत्नियां पति को शराब के सेवन को ले कर रोकटोक करती वहीं अब अगर पति इन नशों का आदी होता है तो उस को तनाव से लड़ने के लिए छोटी सी खुराक समझ कर चुप लगा जाती हैं. बहुत से घरों में तो यह भी देखने को मिलता है कि पत्नियां भी धीरेधीरे पति का साथ देने लगती हैं. बाद में पत्नियों का ये कभीकभी का शौक भी कब और कैसे लत में परिवर्तित हो जाता है वे खुद भी नहीं जान पाती हैं.

अखिल और प्रज्ञा मुंबई में रहते हैं. उन के घर में न पैसों की कोई कमी है और न ही आधुनिक संस्कारों की. दोनों खुद अपनी बेटी के सामने बैठ कर खुद ड्रिंक करते हैं बिना यह सोचे कि इस बात का उन की बेटी कायरा पर क्या असर होगा? हद तो तब हो गई जब एक दिन कायरा को स्कूल से निलंबित कर दिया गया क्योंकि वह पानी की बोतल में पिछले कई दिनों से शराब ले कर जा रही थी. बेटी को क्या समझाएं, यह वे खुद ही नहीं समझ पा रहे हैं. फिलहाल दोनों बेटी से आंखें चुरा रहे हैं और एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं.

इंस्टैंट का जमाना है

आजकल इंस्टैंट जमाना है. हर चीज चाहिए पर बहुत जल्दी और बिना मेहनत करे. अगर तनाव है तो उस से लड़ने का सब से आसान विकल्प लगता है मदिरापान करना. इस के दो फायदे हैं पहले तो कुछ देर के लिए ही सही आप तनावमुक्त तो हो जाओगे और दूसरा आप मौडर्न भी कहलाएंगे.

वहीं जब घर के बुजुर्गों को बच्चों की इस आदत के बारे में बात पता चलता है तो कुछ जुमले बोल कर ही वे लोग अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं.

‘‘कैसा जमाना आ गया है, आदमियों की तो बात जाने दो, आजकल तो औरतें भी शराब पीती हैं.’’

तंबाकू, सिगरेट और शराब, इन सारी चीजों का सेवन करना आजकल की युवा महिलाओं में एक आम बात सी हो गई है. पहले महिलाएं इन सब चीजों का सेवन मजे के लिए करती हैं और बाद में जब ये लत बन जाती है तो एक सजा जैसी हो जाती है. पहले जहां शराब या सिगरेट की दुकानों पर पुरुषों की भीड़ एक आम बात थी वहीं अब महिलाएं भी बिना किसी हिचक के उन दुकानों पर देखी जा सकती हैं.

गीतिका 28 वर्षीय युवती है और एक आधुनिक दफ्तर में काम करती है. जब मैं ने उस से इस बाबत बातचीत करी तो उस ने कहा, ‘‘दीदी, आजकल औफिस पार्टियों में शराब का सेवन अनिवार्य सा हो गया है. नौकरी तो करनी ही है न तो फिर शराब से कैसा परहेज.’’

मैं इस लेख के माध्यम से शराब या सिगरेट को बढ़ावा कदापि नहीं देना चाहती हूं पर मैं समाज के बदलते मापदंड की तरफ आप सब का ध्यान आकर्षित कराना चाहती हूं.

चलिए अब कुछ कारणों पर प्रकाश डालते हैं जिस कारण आजकल महिलाओं में शराब के सेवन की आदत बढ़ती जा रही है.

फैशन स्टेटमैंट: आजकल शराब या सिगरेट का सेवन भी एक तरह का फैशन स्टेटमैंट बन गया है. अगर आप शराब नहीं पीते हैं तो आप बाबा आदम के जमाने के हैं. आप कैसे अपने कैरियर में आगे बढ़ेंगे, अगर आप को आजकल के तौरतरीकों का पता नहीं है?

बराबरी की चाहत: आजकल की नारी जीवन के हर मोर्चे पर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. अगर पुरुषवर्ग मदिरापान करते हैं तो फिर आज की आधुनिका, श्रृंगारप्रिया कैसे पीछे रह सकती है. अधिकतर महिलाएं सबकुछ जानतेबूझते हुए भी बस बराबरी की चाहत में इस राह की तरफ मुड़ जाती हैं.

तनाव से राहत: तनाव से राहत एक तरफ कैरियर के दबाव, दूसरी तरफ बूढ़े मातापिता, बढ़ते बच्चों की जरूरतें, कभी न खत्म होने वाला काम, इन सब बातों से राहत पाने के लिए भी आजकल की महिलाएं शराब का सहारा लेने लगी हैं. कुछ देर के लिए ही सही उन्हें लगता है वह एक अलग दुनिया में चली गई हैं.

स्वीकार होने की चाह: आजकल अधिकतर लड़कियां नौकरी के कारण अपना घर छोड़ कर महानगरों में अकेले रहती हैं. नई जगह, नए दोस्त और उन दोस्तों में अपनी पहचान बनाने के लिए न चाहते हुए भी वे मदिरापान करने लगती हैं. नए रिश्ते बनते हैं तो सैलिब्रेशन में शराब का सेवन होता है और फिर जब रिश्ते टूटते हैं तो फिर शराब का सेवन गम गलत करने के लिए होता है.

शराब के सेवन से सेहत पर होने वाले बुरे असर से हम सब भलीभांति परिचित हैं. परंतु अगर हाल ही में हुए शोधों पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की सेहत पर शराब का दुष्प्रभाव अधिक होता है.

– शराब को पचाने के लिए लिवर से एक ऐंजाइम निकलता है जो शराब को पचाने में सहायक होता है. महिलाओं में ये ऐंजाइम कम निकलता है जिस के कारण उन के लिवर को पुरुषों के मुकाबले अधिक मेहनत करनी पड़ती है.

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– महिलाओं की शारीरिक संरचना पुरुषों से अलग है  इसलिए उन की सेहत पर शराब का दुष्प्रभाव अधिक देर तक और जल्दी होता है.

– शराब के सेवन से महिलाओं की प्रजनन शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और यदि गर्भावस्था में महिलाएं शराब का सेवन करती हैं तो होने वाले  शिशु पर भी प्रभाव पड़ता है.

घर के मुखिया या बड़े होने के नाते यदि आप अपने बच्चों की शराब के सेवन की आदत से परेशान हैं तो उन्हें अवश्य समझाएं. शराब के सेवन से होने वाली हानि के बारे में भी बताएं पर बेटा और बेटी या बहू सब को एक समान ही सलाह दें. शराब का सेवन करना एक गंदी आदत है. पर इस का आशय यह नहीं है कि उस का सेवन करने वाली महिलाओं का चरित्र खराब है. जो बात गलत है वह सब के लिए ही गलत है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, दोनों को सलाह देते समय एक ही पैमाना रखें, बेटी और बहू को पाप और बेटे को शौक के तराजू पर ना तौलें.

यह जरूर याद रखिए कमजोर महिला ही विपरीत परिस्थितियों में शराब की डगर पर फिसल जाती है. किसी भी प्रकार के नशे की जरूरत तभी पड़ती है, अगर आप के अंदर हौसले की चिंगारी न हो.

नशा हो जब तुम को हौसले की उड़ान का तो फिर क्या करोगी तुम शराब के जाम का.

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