जब सहेली हो सैक्सी

आजकल के युवाओं में सैक्सी दिखने का ट्रैंड हिट है. वे सोचते हैं कि जो शौर्ट कपड़े पहनते हैं, स्लिमट्रिम होते हैं वे ही सैक्सी हैं और जो सैक्सी हैं वे ही इंटैलिजैंट हैं. इस कारण सब उसी से दोस्ती करना पसंद करते हैं. यही नहीं कुछ युवा तो सैक्सी लुक के पीछे इस कदर पागल हो जाते हैं कि वे अपनी खुद की पर्सनैलिटी ही भूल जाते हैं और इस चक्कर में सामने वाले से नफरत भी करने लगते हैं. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि जलन के बजाय आप को अपनी पर्सनैलिटी में स्मार्टनैस लाने की जरूरत है.

आइए, जानते हैं कि दोस्त के सैक्सी होने पर हम करते क्या हैं जबकि हमें करना क्या चाहिए:

हम क्या करते हैं

जलन की भावना: जब हमारी दोस्त हम से कही ज्यादा सैक्सी दिखती है, खुद को सेक्सी बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती है, जिस कारण हर लड़का उस का दीवाना होने लगता है तो हमारे मन में उस के लिए जलन की भावना पैदा होने लगती है. इस कारण हमें उस की सही बात भी गलत लगती है, हम उस से अच्छा रिलेशन होने के बावजूद उस से दूरी बनाना शुरू कर देते हैं, उस के बारे में दूसरों से गलत बात कहने में भी नहीं कतराते हैं क्योंकि हमें लगता है कि उस के ज्यादा सैक्सी होने की वजह से लड़के हमें नजरअंदाज करने लगे हैं, जो जरा भी गवारा नहीं होता है.

धीरेधीरे यही जलन की भावना दोनों के रिश्ते में दरार डालने के साथसाथ एकदूसरे का दुश्मन तक बना डालती है.

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हर बात लगती है गलत: लड़कों ने रिया के सैक्सी लुक की तारीफ क्या करनी शुरू कर दी कि अब तो प्रिया की आंखों में रिया इस कदर खटकने लगी कि उस की सही बात भी गलत लगने लगी क्योंकि प्रिया से उस का सैक्सी लुक जो बरदाश्त नहीं हो रहा था.

एक बार जब रिया ने उस के ऐग्जाम्स के लिए उसे सलाह दी तो उस ने मन में ईर्ष्या के कारण उस की बात को गलत ठहरा कर नहीं माना, जिस का नतीजा उस के लिए गंभीर साबित हुआ क्योंकि जब हमारे मन में किसी के लिए ईर्ष्या का भाव आने लगता है खासकर के लड़कियों में एकदूसरे के लुक को लेकर तो वे उसे किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं कर पाती हैं. उस की हर बात को सही जानते हुए भी गलत ठहरा कर खुद को सुकून पहुंचाने की कोशिश करती हैं, जो सही नहीं होता है.

करैक्टर को करते हैं जज: जब कोई लड़की खुद को सैक्सी दिखाने लगती है तो उस की फ्रैंड्स उस की तारीफ करने के बजाय उस के लुक से जलने लगती हैं. फिर इस जलन को व्यक्त करने के लिए वे दूसरे लोगों के सामने यह कहने से भी नहीं कतरातीं कि यार यह अपने सैक्सी लुक से लड़कों को अट्रैक्ट करने की कोशिश कर रही है, तभी तो आजकल इस का चालचलन इतना बदल सा गया है.

इस का करैक्टर ही खराब है, इसलिए हमें भी इस से दोस्ती नहीं रखनी चाहिए. ये लड़कों को अपना दीवाना बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. दोस्त की जबान पर ये शब्द अपनी फ्रैंड के सैक्सी लुक के कारण मन में पैदा हुई जलन के कारण ही आए हैं. उस के कारण फ्रैंड उसे करेक्टरलैस भी लगने लगी है.

पीठ पीछे बुराई

यार वह कैसे कपड़े पहनती है, बालों का स्टाइल तो देखो, चाल भी किसी हीरोइन से कम नहीं है, लड़कों को अपने आगेपीछे घुमाने के लिए चेहरे पर हमेशा मेकअप ही थोपे रखती है ताकि अपने सैक्सी लुक से सब की तारीफ बटोर कर बौयफ्रैंड की लाइन मार सके. चाहे इस का कितना ही सैक्सी लुक क्यों न हो, लेकिन बोलने की जरा भी अक्ल नहीं है. कुछ आताजाता है नहीं, तभी तो अपने सैक्सी लुक से ही फेम कमाने की कोशिश कर रही है.

अपने फ्रैंड के सैक्सी लुक को देख कर लड़कियां जलन के मारे पीठ पीछे उसे नीचा दिखाने के लिए उस की झठी बुराई करने में भी पीछे नहीं रहती हैं. इस से उन के मन की भड़ास जो दूर होती है, जबकि ऐसा कर के वे खुद की नजरों में ही गिरती हैं.

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मजाक बनाने में भी पीछे नहीं

स्नेहा बहुत ही सैक्सी व अट्रैक्टिव लग रही थी. जैसे ही उस ने फ्रैंड्स के बीच ऐंट्री मारी तो सब की नजरें उस पर ही टिकी रह गईं. लड़कों के मुंह से वाउ, वाट ए लुक, तुम जैसा सैक्सी कोई नहीं जैसे शब्दों को सुन कर प्रियांशा के दिल में मानो इतने कांटे चुभे कि इसे शब्दों में भी बयां नहीं किया जा सकता. उसे गवारा नहीं हो रहा था कि सब का ध्यान  स्नेहा ने अपने सैक्सी लुक से अपनी ओर खींच लिया.

इस कारण उस ने अपने इस गुब्बार को मन में नहीं रखा और कुछ ही देर में उस की किसी बात का इतना मजाक बनाना शुरू कि स्नेहा की आंखों से आंसू नहीं रुके. उस का मजाक बनाने में कर दिया स्नेहा ने अपने बाकी फ्रैंड्स को भी शामिल कर लिया जो बिलकुल ठीक नहीं था.

यंगिस्तान: कही आप यूज तो नहीं हो रहे है!  

लॉक डाउन का समय चल रहा है , दिल दिमाग में नए -पुराने यादों के बीच महानता को ले कर संघर्ष चल रहा है. वही इस बदलते ज़माने के साथ रिश्ते नाते, दोस्ती और प्यार में आ रहे बदलाव का भी मूल्यांकन हो रहा है. इन सबके बीच कई बातें उभर कर सामने आ रही है. गिरती मानसिकता और बढ़ता स्वार्थ यंगिस्तान के एक बड़े समूह को मानसिक पतन को ओर अग्रसर कर रहा है. अपने पास खर्च के पैसे नही होते , लेकिन अगर उनके सबसे नजदीक साथी या उनका प्यार किसी चीज की मांग करे तो वह हर कीमत पर उसे पूरा करने में लग जाते है.

अपने मोबाईल में बैलेंस नहीं होता, लेकिन उनका रिचार्ज की उन्हें चिंता होती है. घरवालो को कभी फईनेसली मदद करे ना करे, लेकिन अपने खास दोस्त और प्यार के लिए पैसा जुटा कर उन्हें देना इनके लिए कोई बड़ा काम नही है . यंगिस्तान का एक बड़ा तबका भावनाओ में डूबा हुआ,आधुनिक रिश्ते नाते और प्यार में यह समझ ही नही पा रहा है ,कि कहा किसने उनका जम कर यूज किया. तो आइये 09 विन्दु के माध्यम से समझते है कही आप को कोई यूज तो नहीं कर रहा है.

1. किसी को आर्थिक रूप से दो या तीन बार सहायता करना बुरा नहीं है और वह भी ऐसा खास को जिसे आप पसंद करते हैं, जिसके साथ आपके मजबूत रोमांटिक संबंध हैं या जिसे आप अपने लिए सबसे खास सबसे अलग मानते है.लेकिन इस तरह की सहायता की भी सीमा होती है. अगर आप सीमा को नही समझ पा रहे है, और हर मांग को अपना खास मान कर पूरा करते जा रहे है, तो यह आपके लिए भारी पड़ सकता है.

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2. सहायता किसी भी आर्थिक मदद के रूप में हो सकती है.अगर आपका साथी बार-बार और बहुत कम अंतराल में आपसे पैसों की डिमांड करता है और वह उन पैसों को वापस लौटाता भी नहीं है तो इसकी पूरी संभावना है कि वह पैसों के लिए आपको यूज कर रहा है. ऐसे में आप उसके मांग पर धीरे धीरे पैसे या सामान देना बंद कर दें, फिर देखें कि क्या वह तब भी आपके साथ है या नही ?

3. अगर आपका खास दोस्त या आपका प्यार आपसे हर बार मोबाईल बिल या रिचार्ज का बात कर आपका इमोशनल कर रही हो या कर रहा हो तो आप सावधान रहिए, हो सकता है आपका एक दो बार का मदद उसे आप पर निर्भर ना बना दे.

4. कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप अपने उस खास के पार्टी में जाते है और जाने से पहले भी प्रेशर होता है एक महँगी गिफ्ट का ,तो उस समय आपका वह महंगा नही जरुरी लगता है लेकिन यही गिफ्ट  उसे आपके महंगे गिफ्टो कि आदत डालती है.इस तरह अगर आप इमोशन में डूबते उनके हर मांग को पूरा करते जायेगे तो आप एक साकेट दे रहे हाई कि आप खुद यूज होने के लिए तैयार है.

5. समाजशास्त्री डाँ प्रीति आरोड़ा का कहना है कि अधिकतर युवाओ कोइस बात का अहसास ही नहीं होता कि अपने फायदे और केवल टाइम पास के लिए उनका खास दोस्त, उनका पार्टनर या ब्वॉयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड उनका यूज कर रहे होते है. सच्चाईतो यह है कि चाहे महिला हो या पुरुष, कोई भी किसी की स्वार्थपूर्ति के लिए यूज नहीं होना चाहता. लेकिन आज के युवाओ के बीच पनपी आधुनिक रिश्तो से एक दुसरे का समय पर उपयोग करने की प्रणाली बन गई है. यह अदृश्य प्रणाली हर साल ना जाने कितने युवाओ को सुनहरे रिश्ते और प्यार के बदले में धोका का जख्म दे रही है.

6. जब कोई केवल सेक्सुअल पर्पज के लिए किसी को यूज करता है तो उसमें पैसा, मौज-मस्ती और थोड़ी देर का साथ शामिल होता है. हालांकि यह बात आम है कि जब खुद के यूज होने की सच्चाई सामने आती है, तो लोग यूज करने वाले से किनारा काट लेते हैं, उससे विश्वास उठ जाता है.

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7. युवाओ को जन संचार की शिक्षा देने वाले संदीप दुबे का कहना है किअपनी आवश्यकताओं और स्वार्थ की पूर्ति के लिए साथी का मिसयूज करना कोई नई बात नहीं है. लेकिन आधुनिक दौर में यह बढ़ा है. जब यह सच्चाई जब सामने आती है तो बहुत दुख पहुंचाती है.

8. वही अपने खास प्यार के हाथो यूज होने के बाद इंजीनियरिंग छात्र सुनील कहते है कि पहले मैं इन बातो को नही मनाता था, लेकिन अब मनाता हूँ और किसी पर विश्वास करने से पहले दस दफा सोचता हूँ. जबकि 25 साल की सीमा का कहना है, कि यूज करने की बात तभी दमंग में आती है, जब हमारे रिश्तो में स्वार्थ  छिपा होता है और यूज होने के बाद किसी भी इंसान को जीवन का सबसे बड़ा दुःख होता है .

9. अगर आपको थोड़ा भी शक है कि आपको इस्तेमाल किया जा रहा है, तो आप जिस व्यक्ति के साथ रिलेशन में हैं, उसके साथ ज्यादा अलर्ट और ऑब्जव्रेट बने, साथ ही साथ उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां भी एकत्र करें. अगर आप फिर भी यूज होती हैं, तो जितनी जल्दी संभव हो, उस संबंध को तोड़ दें.

सहेलियां जब बन जाएं बेड़ियां

रंजना की आदतों से उस की बेटी अंजलि ही नहीं उस के पति रौनक भी कई सालों से परेशान हैं. रौनक तो उस दिन को कोसते हैं जब शादी के बाद वे रंजना को ले कर दिल्ली आए और एक ऐसी कालोनी में फ्लैट ले लिया, जहां हाई सोसाइटी की अमीर औरतें रहती हैं, जिन के पतियों को खूब ऊपर की कमाई होती है.

पतियों के पैसे पर ऐश करने वाली एक मुहतरमा रमा रंजना की पड़ोसिन है. उस के यहां रंजना किट्टी पार्टी के लिए जाती है. उस के साथ मौर्निंग वाक करती है, उस के गु्रप के साथ पिकनिक मनाती है, व्हाट्सऐप चैट करती है, शौपिंग करती है, फिल्में देखती है.

रौनक एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हैं. वे किसी छोटे शहर में रहते तो जितनी सैलरी उन्हें कंपनी से मिलती है, उसे देखते हुए वे उस शहर के अमीरों में शुमार होते, लेकिन दिल्ली की पौश कालोनी में रह कर इस तनख्वाह में सबकुछ मैंटेन करना मुश्किल लगता है. उस पर रंजना की अपनी पड़ोसिन रमा से इस कदर दोस्ती ने उन की मुसीबतें बढ़ा रखी हैं.

अगर रमा ने नई वाशिंग मशीन खरीदी है तो रंजना को भी उसी तरह की वाशिंग मशीन चाहिए. वह उस के लिए जिद्द पकड़ लेती है, भले ही घर में पहले से ही वाशिंग मशीन हो और अच्छी चल रही हो, लेकिन रमा ने नई खरीदी है तो उस में जरूर कुछ नए और बेहतर फीचर्स होंगे वरना वह क्यों पुरानी मशीन सिर्फ डेढ़ हजार में अपनी कामवाली को देती? उस की भी तो पुरानी मशीन काम कर ही रही थी.

रंजना के तर्क सुन कर रौनक अपना सिर थाम लेते हैं. कुछ दिन पहले ही रंजना ड्राइंगरूम के लिए नए परदे ले आई थी, जो काफी महंगे लग रहे थे. उन परदों से ड्राइंगरूम के लुक में खासा बदलाव आ गया, लेकिन नए और इतने महंगे परदों की क्या जरूरत थी, जब पुराने वाले अभी बिलकुल ठीक थे, खूबसूरत लगते थे और उन को लिए चंद महीने ही हुए थे? जब रौनक ने यह सवाल पूछा तो बेटी अंजलि तुनक कर बोली, ‘‘ऊपर रमा आंटी ने नए परदे लिए हैं, तो मम्मी कैसे पीछे रहतीं? जा कर उसी शोरूम से उसी तरह के परदे ले आईं.’’ रौनक ने यह सुना तो सिर धुन लिया.

सहेलियों की नकल

रंजना जैसी बहुत औरतें हैं, जो हर वक्त अपनी सहेलियों की नकल करती हैं. सहेली ने नई साड़ी ली है, तो मुझे भी वैसी ही साड़ी चाहिए. सहेली ने घर के लिए कोई लग्जरी आइटम ज्वैलरी, कौस्मैटिक्स की नई रेंज ली है, सैंडल लिए हैं, कोई पालतू जानवर लिया है, तो मुझे भी चाहिए. ऐसी औरतें उच्चवर्ग, मध्यवर्ग व निम्नवर्ग तीनों में ही मिल जाएंगी, जिन के लिए सहेलियां बेडि़यां बन चुकी होती हैं. वे इन बेडि़यों से खुद को मुक्त नहीं करना चाहती हैं. नकल और दिखावा उन की रगों में खून के साथ बहने लगा है. सहेलियां जब बेडि़यां बन जाएं तो उस से घर वालों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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हर वर्ग में यह दिक्कत

सहलियों की गिरफ्त में फंसी ये आरतें हर आयुवर्ग और आयवर्ग की होती हैं. अब निशा को ही देख लीजिए. इंटरमीडिएट में उस के सब से ज्यादा अंक बायलौजी में आए थे, लेकिन अपनी सहेली कोमल की देखादेखी उस ने बीएससी में एडमिशन न ले कर बीकौम करने की ठानी. उस के मातापिता समझाते रह गए कि जिस सब्जैक्ट में तुम सब से बेहतर हो, उसी में आगे की पढ़ाई करो, लेकिन सुननी तो सहेली की ही थी, लिहाजा कौमर्स की लाइन पकड़ ली और फर्स्ट ईयर में ही फेल हो कर बैठ गई. किसी तरह 4 साल में बीकौम पूरा किया और वह भी थर्ड डिविजन में. अब निशा का कौमर्स से मन हट चुका है और आगे क्या करना है, वह तय ही नहीं कर पा रही है.

शेफाली के लिए भी उस की 2 सहेलियां बेडि़यां बन गई हैं, पहली कक्षा से ग्रैजुऐशन तक तीनों साथ रहीं. साथ खातीपीती थीं, साथ शौपिंग करती थीं, साथ ही घूमने जाती थीं. शेफाली आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं थी, जितनी उस की दोनों सहेलियां थीं, लिहाजा शेफाली के हिस्से का खर्च भी कभीकभी वे दोनों ही उठा लेती थीं, लेकिन ग्रैजुएशन के बाद जब शेफाली की नौकरी लग गई, तो दोनों चाहने लगीं कि अब शेफाली भी उन्हें खिलाएपिलाए या फिल्म दिखाए. उन का मानना है कि स्कूल टाइम में या कालेज के दिनों में जब शेफाली के पास पैसे नहीं होते थे, तो वे दोनों उस के लिए खर्च करती थीं, अब शेफाली कमा रही है तो वह भी कभीकभी उन पर खर्च कर सकती है. दोनों आएदिन उस के सामने कोई न कोई फरमाइश रख देती हैं.

शेफाली के लिए अब यह दोस्ती महंगी पड़ रही है, क्योंकि उस के पिता रिटायर हो चुके हैं. उन की थोड़ी सी पैंशन घर खर्च में ही खत्म हो जाती है. ऐसे में शेफाली की कमाई का बड़ा हिस्सा उस के छोटे भाई की ट्रेनिंग के लिए जा रहा है. बचाखुचा ही वह अपने पर खर्च करती है. ऐसे में सहेलियों को घुमानेफिराने या पिक्चर दिखाने पर वह कहां से पैसे खर्च करे. शेफाली के लिए दोनों सहेलियां बेडि़यां बन गई हैं, जिन से वह मुक्त होना चाहती है. मगर कैसे, यह उसे समझ में नहीं आ रहा है.

दोस्ती का नाजायज फायदा

हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग होते हैं, जिन्हें हम अपना दोस्त बनाते हैं और जिन से हम अपने राज शेयर करते हैं, लेकिन जब ये लोग हमारा नाजायज फायदा उठाने लगें या जानेअनजाने में यूज करने लगें तो फिर यह रिश्ता बोझ बन जाता है. कई बार जब ऐसे रिश्ते मजबूरीवश टूटते हैं तो हमारा नुकसान भी करते हैं.

नेहा ने जब सुमन से दोस्ती तोड़ी तो नेहा के शादी से पहले के जीवन से जुड़े कुछ गहरे राज नेहा के पति को मालूम पड़ गए. किसी ने उन्हें फोन पर नेहा की तमाम बातें बता दीं. इन फोन कौल्स ने नेहा की जिंदगी बरबाद कर दी. आज वह तलाक के मुहाने पर खड़ी है. दोस्ती की बेड़ी तोड़ने की सजा भुगत रही है. उसे यकीन है कि उस की बीती जिंदगी से जुड़े प्रेमप्रसंग उस के पति को सुमन के द्वारा ही पता चले हैं, लेकिन अब वह क्या कर सकती है.

ध्यान रखें सहेलियां बनाएं, लेकिन उन्हें अपने जीवन में इतनी ज्यादा घुसपैठ न करने दें कि वे आप के और आप के परिवार के लिए मुसीबत बन जाएं. दोस्ती में इन बातों का खयाल रखना बहुत जरूरी है:

– सहेली से जीवन के राज शेयर न करें. कभी न कभी, कहीं न कहीं आप की बात उजागर हो ही जाएगी. अगर आप चाहती हैं कि आप की गुप्त बातें आप के साथ ही खत्म हों तो भूल कर भी उन्हें अपने मुंह से बाहर न आने दें, फिर चाहे आप के सामने आप की बचपन की पक्की सहेली ही क्यों न हो.

– सहेली के जीवन जीने के ढंग की नकल न करें. आप अपनी चादर देख कर ही अपने पैर फैलाएं. हर परिवार की अपनी आर्थिक स्थिति और जरूरतें होती हैं. इसलिए दूसरे की चीजों को देख कर अपनी आर्थिक स्थिति को डांवांडोल करना कोई समझदारी नहीं है.

– सहेली के विचारों को खुद पर कभी हावी न होने दें. आप सहेलियों से खूब बतियाएं, उन की सुनें, लेकिन अपनी बातों पर दृढ़ रहें. उन का कोई विचार अच्छा लगे तो अवश्य अपनाएं, लेकिन वे हमेशा ठीक बोलती हैं या उन की सारी बातें सही होती हैं, ऐसा सोचना गलत होगा. ऐसा सोच कर आप अपनी अहमियत को कम कर रही हैं, अपने कद को घटा रही हैं.

– सहेलियां टाइम पास करने के लिए होती हैं. जगह बदलते ही सहेलियां बदल जाती हैं, लेकिन परिवार जीवनभर साथ चलता है, इसलिए सहेलियों की संगत में ऐसा कोई

कदम न उठाएं, जिस से परिवार के लोगों को आघात पहुंचे.

– यदि सहेलियां अंधविश्वासी, किसी बाबा की भक्त, धार्मिक आयोजन करने वाली हैं तो उन से दूरी बना कर रखें, क्योंकि ये सहेलियां सुनसुन कर बहुत वाकपटु हो जाती हैं और आसपास सब को अपने बाबा या मंदिर का ग्राहक बनाने में लग जाती हैं. ये घरों तक को तुड़वा डालती हैं और फिर दोष भाग्य या कर्मों को देने लगती हैं.

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अगर दोस्ती नहीं खोना चाहते तो भूलकर भी अपने यहां दोस्त को न लगवाएं नौकरी

कई महीनों की अथक मेहनत के बाद रवि शंकर जिस वेब पोर्टल में काम कर रहे थे, वह चल निकला था. अब पोर्टल को ठीकठाक विज्ञापन मिलने लगे थे और ज्यादा से ज्यादा तथा अच्छे कंटेंट की मांग भी होने लगी थी. ऐसे में एक दिन रवि को उनके एडिटर ने अपने केबिन में बुलाया और बोले-

‘रवि तुम्हारी नजर में कोई ठीकठाक कंटेंट राइटर हो तो उसे बुलाओ. अपने को एक दो और कंटेंट राइटर चाहिए होंगे.’

रवि संपादक जी के कहने पर एक मिनट को कुछ सोचने लगा और फिर बोला-

‘सर, मेरे एक दोस्त हैं, एक अखबार में फीचर पेज देखते थे. अच्छा लिख लेते हैं. कई विषयों पर पकड़ है और अनुभवी भी हैं. लेकिन…’

‘लेकिन क्या?’

संपादक जी ने रवि के इस तरह चुप हो जाने पर पूछा. इस पर रवि ने कहा-

‘सर, वो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा मांगेंगे.’

अगर तुम कह रहे हों कि वह योग्य हैं और कई विषयों पर लिख लेते हैं तो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा दे देंगे. आखिर काम भी अच्छा होगा.

‘हां, सर ये तो है.’

‘तो फिर उन्हें बुला लो.’

‘ठीक है सर, कब बुला लूं.’

‘कल बुला लो.’

‘ओके’

यह कहकर रवि अपनी वर्किंग डेस्क पर आ गया और वहीं से ललित वत्स को फोन किया और बोला, ‘कल मेरे दफ्तर आ जाओ, हमें एक सीनियर कंटेंट राइटर की जरूरत है. मेरी बाॅस से बात हो चुकी है, शायद तुम्हारा काम हो जायेगा.’ ललित ने अपने पुराने दोस्त रवि का धन्यवाद किया और अगले दिन दोपहर में वह उसके दफ्तर मंे पहुंच गया. ललित का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, विषयों की समझ ठीक थी और उन्हें व्यक्त करने का तरीका भी वह अच्छा जानता था. कुल मिलाकर पहली मुलाकात में ही रवि के संपादक जी उससे प्रभावित हुए और तीसरे दिन से रवि व ललित सहकर्मी हो चुके थे.

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जैसा कि रवि को आभास भी था, जल्द ही ललित के काम करने की प्रभावशाली शैली तथा अच्छी जानकारियों के चलते वह दफ्तर में ‘नेक्स्ट टू बाॅस’ हो गया. रवि को हालांकि इससे कोई खास दिक्कत नहीं थी, फिर भी थोड़ी ईष्र्या तो होती ही है. शायद वह इस ईष्र्या को भी दबा लेता, लेकिन दफ्तर में दूसरे नंबर की हैसियत में आते ही ललित ने अपने पुराने दोस्त को न सिर्फ यह जताने की कोशिश की कि दफ्तर में वह उसके मातहत है बल्कि उसके काम पर अकसर मीनमेख निकालने लगा. हद तो तब हो गई, जब वह उस छोटे से दफ्तर में सार्वजनिक रूप से रवि के लिखने के ढंग की ही आलोचना नहीं करने लगा बल्कि एक दो बार तो सबके सामने ही उसकी स्टोरी को इस तरह रिजेक्ट कर दिया, जैसे वह अभी ट्रेनी राइटर हो. जल्द ही रवि के लिए दफ्तर में स्थितियां इतनी बुरी हो गईं कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. दरअसल अब बाॅस को भी लगने लगा था कि ललित न सिर्फ बेहतर लेखक है बल्कि वह अच्छी तरह से आॅफिस भी संभाल सकता है तो उन्होंने रवि के जाने की परवाह नहीं की.

एच आर विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने किसी दोस्त को अपने यहां नौकरी देकर परेशानी मोल नहीं लेनी चाहिए. अगर आपके हाथ में हो तो किसी अजनबी को भले अपने दफ्तर में साथ काम करने का मौका दे दें, लेकिन दोस्त को न दें. क्योंकि अजनबी को संभालना भी आसान होता है और निकलना तो और भी ज्यादा आसान होता है. चाहे आप बाॅस हों या फिर एक साधारण कर्मचारी अपने कार्यस्थल में किसी पुराने दोस्त के साथ होना हमेशा नुकसानदेह होता है. खासकर तब, जब दोस्त ईष्र्यालु हो, कार्यस्थल के प्रोटोकाॅल का पालन न करता हो और महत्वाकांक्षी हो. वास्तव मंे दोस्त अगर कार्यस्थल साझा करते हों तो अकसर सिरदर्द बन जाते हैं.

मान लीजिए सब कुछ ठीक है लेकिन दोस्त महत्वाकांक्षी है, वह आपसे आगे जाना चाहता है. सवाल है क्या आप यह स्थिति स्वीकार कर लेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा. क्योंकि उसके आगे जाने का रास्ता आपको पीछे धकेलकर जा सकता है. अगर ऐसा कुछ भी न हो और आपके दोस्त का परफोर्मेंस उम्मीद से कम हो तो कंपनी से इसके लिए आपको बातें सुननी पड़ सकती हैं और अगर बेहतर हो तो उसके साथ आपकी पसंद न आने वाली तुलना की जा सकती है, ताकि आपको डाउन किया जा सके. कई बार यदि दफ्तर मंे आपके द्वारा लाया गया आपका दोस्त कामचोर है तो प्रबंधन आपसे उम्मीद करता है कि आप उस पर दबाव बनाएं, उसे समझाएं. अगर आप ऐसा करते हैं तो संभव है आपका दोस्त आपको अपना सिरदर्द मानने लगे और ऐसा नहीं करते तो हो सकता है कंपनी प्रबंधन आप पर दोष मढ़ने लगे कि आपने कैसा कर्मचारी ला दिया है.

लब्बोलुआब यह कि अपने कार्यस्थल में दोस्त को प्रवेश दिलाकर आप परेशानियां ही परेशानियां मोल लेंगे. मान लीजिए आपके दोस्त में तमाम सारी खूबियां हैं, वह आपके कार्यस्थल में आते ही छा जाता है. हर कोई उसकी तारीफ करने लगता है और दफ्तर की महिला कर्मचारी तो मानो उस पर फिदा ही हो जाती हैं, तब क्या होगा? निश्चित ही उसका प्रभामंडल आपको अच्छा नहीं लगेगा. आप बेहद ईष्र्यालु हो जाएंगे, आपको खुद पर गुस्सा आयेगा और सोचेंगे पता नहीं वह कौन सी घड़ी थी, जब मेरी मति मारी गई और मैंने अपने ही दफ्तर में अपने आपका डिमोशन कर लिया. ऐसी सैकड़ों परेशानियों का एक ही हल है कि कभी भी अपने किसी दोस्त को अपनी कंपनी में नौकरी न लगवाइये अगर आपको उसके साथ दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए रखनी है.

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बदलती जीवनशैली में हर उम्र की महिलाओं को चाहिए पुरुष दोस्त

..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.

दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.

सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.

पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.

समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.

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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.

यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.

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क्या आप की दोस्ती खतरे में है

संभव है कि किन्हीं कारणों से आप की दोस्ती अब पहले जैसी नहीं रह गई हो. आप के दोस्त के बरताव में आप कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं या आप में उस की दिलचस्पी अब न रही हो या कम हो गई हो. कुछ संकेतों से आप पता लगा सकते हैं कि अब यह दोस्ती ज्यादा दिन निभने वाली नहीं है और बेहतर है कि इस दोस्ती को भूल जाएं.

1. दोस्ती एकतरफा रह गई है

दोस्ती नौर्मल हो, प्लुटोनिक या रोमांटिक, किसी तरह की भी दोस्ती एकतरफा नहीं निभ सकती है. अगर आप का पार्टनर आप की दोस्ती का उत्तर नहीं दे रहा है तो इस का मतलब है कि उस की दिलचस्पी आप में नहीं रही. इस दोस्त को गुड बाय कहें.

2. आप के राज को राज न रखता हो

आप अपने फ्रैंड पर पूरा भरोसा कर उस से सभी बातें शेयर करते हों और उस से यह अपेक्षा करते हों कि वह आप के राज को किसी और को नहीं बताए पर यदि वह आप के राज को राज न रहने दे तो ऐसी दोस्ती से तोबा करें.

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3. विश्वासघात

विश्वास मित्रता का स्तंभ है. कभी दोस्त की छोटीमोटी विश्वासघात की घटनाओं से आप आहत हो सकते हैं पर उसे विश्वास प्राप्त करने का एक और मौका दे सकते हैं. पर यदि वह जानबूझ कर चोरी करे, आप के निकटतम संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका के मन में आप के विरुद्ध झूठी बातों से घृणा पैदा करे तो समझ लें अब और नहीं, बस, बहुत हुआ.

4. लंबी जुदाई

कभी आप घनिष्ठ मित्र रहे होंगे. ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से आप का दोस्त बहुत दूर चला गया है और संभव है कि आप दोनों में पहले वाली समानता न रही हो. आप के प्रयास के बावजूद आप को समुचित उत्तर न मिले तो समझ लें अब वह आप में दिलचस्पी नहीं रखता है. उसे अलविदा कहने का समय आ गया है.

5. अगर वह आप के न कहने से आक्रामक हो

कभी ऐसा भी मौका आ सकता है जब आप उस की किसी बात या मांग से सहमत न हों और उसे ठुकरा दें. जैसे किसी झूठे मुकदमे में आप को अपने पक्ष से सहमत होने को कहे या झूठी गवाही देने को कहे और आप न कह दें. ऐसे में अगर वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक रुख अपनाता है तो समझ लें कि इस दोस्ती से ब्रेक का समय आ गया है.

6. आपसी भावनाओं का सम्मान

मित्रता बनी रहे. इस के लिए जरूरी है कि दोनों भावनाओं का सम्मान करें. अगर आप की भावनाओं का सम्मान दूसरा मित्र न करे या आप की भावनाओं का निरादर कर लोगों के बीच उस का मजाक बनाए या अवांछित सीन पैदा करे तो समझ लें कि अब यह दोस्ती निभने वाली नहीं है.

7. जब आप की चिंता की अनदेखी करे

दोस्ती में जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की चिंताओं या समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों और उन के समाधान में अपने पार्टनर की सहायता करें. अगर आप की मित्रता में ऐसी बात नहीं है तो फिर यह अच्छा संकेत नहीं है.

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8. आप को नीचा दिखाने की कोशिश न हो 

कभी अन्य लोगों के बीच अगर आप का दोस्त आप को नीचा दिखा कर आप में हीनभावना पैदा करे या करने की कोशिश करे तो यह दोस्त दोस्ती के लायक नहीं रहा.

9. दोस्त से मिल कर कहीं आप नाखुश तो नहीं हैं

अकसर आप दोस्तों से मिल कर खुश होते हैं. अगर किसी दोस्त से मिलने के बाद आप प्रसन्न न हों और बारबार दुखी हो कर लौटते हैं, तो कट इट आउट.

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