हवाई जहाज दुर्घटना: क्या हुआ था आकृति के साथ

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हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 2- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

सहचालिका इंदरजीत कौर को बेहोश होते देख पहले तो आकृति को लगा कि ऐसी विकट परिस्थितियों में जो काम सहचालिका का होता है, वो काम वह कैसे कर पाएगी? और इतना ही नहीं, अब दोनों का काम उसे ही करना पड़ेगा.

इंजन में आग लगने की परिस्थिति में जांच सूची निकालना सहचालक का काम होता है. लेकिन इंदरजीत कौर को निश्चेत पा कर आकृति ने खुद ही जांच सूची निकाली.

किसी भी विमान में किसी भी प्रकार की खराबी आ जाने पर विमान के चालक को इस सूची के निर्देशों के अनुसार जाना पड़ता है. इंजन में आग लगने से अपने अंदर की बढ़ती दहशत को दबाने के लिए आकृति ने इस जांच सूची पर अपना ध्यान केंद्रित करना उचित समझा और इस सूची में से वह भाग निकाला, जिस में इंजन में आग लगने पर चालक को क्या करना चाहिए, इस के बारे में लिखा था.

आकृति ने वही किया, जो इस में लिखा था. उस ने बाईं ओर के इंजन की तरफ जाने वाले ईंधन को बंद कर दिया और बाईं इंजन की तरफ जाने वाली बिजली की कटौती कर दी. लेकिन इस से विमान बेतुकेपन से उड़ते हुए तीव्रता से मुड़ने लगा.

विमान के चालक स्थान में लगे कांच में से नजर आने वाला शाम का आसमान अब बगल की खिड़की से नजर आने लगा था. आकृति विमान को सीधा करने के लिए जूझती रही. किसी भी तरह से विमान को सीधा कर के उसे मार्ग पर लाना था. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई.

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विमान को उडाना आकृति के लिए लगभग असंभव हो गया था. विमान एक तरफ की ओर झूलने लगा था, और जब आकृति ने उसे केंद्र में लाने की कोशिश की तो वह दूसरी ओर झुकने लगा.

आकृति को ऐसा लगा कि वह वातावरण के साथ कुश्ती खेल रही है और इस कुश्ती में काफी दम लग रहा था और उस की ताकत की खपत हो रही थी. और फिर उस के दिल की धड़कन थोडा रुक सी गई, जब उसे महसूस हुआ कि शायद विमान का इंजन बंद हो गया है और विमान रुक गया है.

विमान का ‘स्टौल’ एक ऐसी अवस्था होती है, जिस में ऐसा प्रतीत होता है कि विमान रुक सा गया है और शायद अब आसमान से नीचे गिर जाएगा. जब विमान उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर की हवा कम दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर खींचती है, और पंखों के नीचे की हवा उच्च दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर धकेलती है. दोनों का नतीजा यह होता है कि विमान ऊपर की ओर उड़ने लगता है. जब विमान सीधा उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर और नीचे की यह हवा विमान के पूरे वजन को ऊपर उठा कर रखने में सक्षम रहती है और पंखों पर से हवा का प्रवाह सहज बना रहता है.

आकृति ने पूरी कोशिश की थी कि विमान की यह समतल उड़ान बनी रहे. लेकिन लाल बत्तियों की अफरातफरी में उसे शायद महसूस ही नहीं हुआ था कि विमान की नाक वाला भाग ऊपर उठ गया है और पीछे की तरफ का भाग नीचे झुक गया है.

जैसेजैसे विमान के सामने का भाग ऊपर की ओर उठ रहा था, वैसेवैसे विमान में उस के वजन और बाहर की हवा के दबाव का संतुलन बिगड़ रहा था. वजन और दबाव का संतुलन बिगड़ने से विमान अस्थिर होता जा रहा था.

चेतावनी देती घंटियों के शोर में आकृति को इस बात का पता देर से चला. विमान के सामने की ओर का नाक का भाग शायद इतना ऊपर उठ गया था कि विमान ‘स्टौल’ की खतरनाक अवस्था में पहुंच गया था.

आकृति ने मन ही मन कहा कि ऐसा ना हो, ‘स्टौल’ की अवस्था में उस के विमान के बाहर की हवा का दबाव इतना कम हो जाने के आसार थे कि वह विमान के भार को आसमान में बनाए रखने में नाकाम हो जाए.

अगर ऐसा हुआ, तो ‘स्टौल’ के कारण विमान की ऊंचाई गिरती जाएगी. आकृति के दिमाग में यह बात सब से ऊपर थी कि ‘स्टौल’ होने पर विमान के पंखों पर चलने वाली हवा विमान को ऊपर उठाने में नाकाम हो जाएगी.

आकृति ने अपने अनुभव से अनुमान लगाया कि पंखों के ऊपर से हवा बहुत ही कम रफ्तार से जा रही थी. विमान की धातु का ढांचा चीखने और कराहने लगा. इस्पात की भयावह ध्वनि भयंकर संकट का संदेश थी.

आकृति ने सोचा, ‘अगर मुझे तुरंत विमान की गति बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिला तो विमान तेजी से गुरुत्वाकर्षण के कारण जमीन की ओर मुड़ जाएगा और नीचे शहर में गिर जाएगा.’

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आकृति की समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. जिस प्रकार दुपहिया वाहन में दाहिनी हथेली में वाहन की गति बढ़ाने का ‘थ्रौटल’ होता है, उसी प्रकार से विमान में उस की गति बढाने का ‘थ्रौटल’ होता है, जो किसी कार के गियर बदलने वाले हैंडल के जैसा ही होता है.

कार में यह हैंडल चालक के बाईं ओर होता है, जिस से वह अपने बाएं हाथ से गियर बदल सके, जबकि विमान में थ्रौटल विमान चालक के दाईं ओर होता है, ताकि चालक दाएं हाथ से थ्रौटल का इस्तेमाल कर सके.

आकृति थोडा असमंजस में थी कि थ्रौटल को उस ने खुद थोड़ा पीछे की ओर खींचा था, इसीलिए विमान की गति कम हो गई थी या स्टौल की खतरनाक स्थिति से गति कम हो गई थी.

जो भी कारण रहा हो, उस को लगा कि अब थ्रौटल को आगे की ओर धकेल कर विमान की गति बढ़ानी चाहिए. अगर वह थ्रौटल को आगे की ओर ठेल कर विमान की गति बढाने में कामयाब हो जाती है, तो वह विमान को ऊपर ले जाने में कामयाब हो जाएगी, और दौड़पथ के ऊपर हवा में एक चक्कर लगा कर, विमान को स्थिर कर, वापस नीचे उतारने का प्रयास कर सकती है.

उस के मन में आशंका जागी कि क्या विमान का एकमात्र बचा हुआ इंजन विमान की इस चढ़ाई को संभाल पाएगा या सिर्फ दाईं ओर के इंजन के तनाव के तहत विफल हो जाएगा.

एक और उपाय यह था कि गति बढ़ाने के अपने असफल प्रयास में आकृति विमान की उतराई को अधिक ढालू कर दे, जिस से विमान तेजी से नीचे की ओर जाने लगे. नीचे की ओर गोता लगाने की इस प्रक्रिया से उत्पन्न गिरता हुआ वेग शायद स्टौल की दशा को टाल दे और विमान को वापस अपने व्यवस्थित मार्ग पर लाए.

बेशक, इस का नतीजा यह हो सकता था कि विमान को समतल बनाने के बजाय आकृति अपने विमान को तेजी से आपदा की ओर धकेल रही हो. अगर विमान को तेजी से नीचे ले जाते समय वह वापस विमान का नियंत्रण हासिल नहीं कर पाई तो विमान कुंडलीदार चक्करों की चपेट में आ जाएगा. ऐसे गोल घूमने की स्थिति से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल इतना तीव्र हो जाएगा कि जमीन पर पहुंचाने से पहले ही विमान टूट कर बिखर जाएगा.

आकृति के लिए यह अनिर्णय का एक नारकीय क्षण था. घबराहट में पसीने से उस की आंखें तरबतर थीं. उस के हाथ डर के मारे कांप रहे थे. अपनी कनपटियों पर दस्तखत देती हुई खून की नब्ज अब उसे साधारण महसूस नहीं हो रही थी.

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हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 3- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी

नब्ज की धड़कन को महसूस करने के लिए अब उसे कनपटियों पर उंगलियां फिराने की जरूरत नहीं थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे खून की यह नाड़ी कनपटियों के बाहर आ गई हो. जैसेजैसे उस की बेचैनी बढ़ रही थी, वैसेवैसे नाड़ी की धड़कन बढ़ रही थी. उस के दिलों की धड़कन तो बढ़ ही गई थी, लेकिन अधिक दबाव के कारण कनपटियों की नाड़ी सिर में दर्द पैदा कर रही थी. आमतौर पर सौ से नीचे रहने वाली यह धड़कन अब शायद डेढ़ सौ तक पहुंच गई थी.

ऐसा लग रहा था कि कानों के पास का हिस्सा फट जाएगा. उस ने थोड़ा सोचने की कोशिश की, लेकिन सोचने का समय नहीं था. स्टौल की स्थिति गंभीर हो कर और खराब हो रही थी.

अचानक आकृति को एहसास हुआ कि यदि इस क्षण में वो किसी नतीजे पर पहुंच कर ठोस कदम नहीं उठाएगी, तो विमान आकाश से नीचे गिर जाएगा.

उस क्षण में आकृति ने अपना मन बना लिया. उस ने फैसला कर लिया कि विमान को बचाने के लिए वह उसे नीचे की ओर ले जाएगी. उस ने कार के स्टीयरिंग व्हील जैसे दिखने वाले जोत को सामने की ओर धकेला, जिस से विमान के सामने का नाक वाला हिस्सा नीचे की ओर झुक गया और विमान के पीछे का हिस्सा ऊपर उठ गया. इस से विमान अपनी नाक की सीध में नीचे की ओर जाने लगा.

आकृति ने मन ही मन कहा कि विमान की रफ्तार तेज हो जाए. तुरंत ही, विमान की रफ्तार तेज हो गई. लेकिन अब समस्या यह खड़ी हो गई कि विमानतल के दौड़पथ की तरफ जाने के बदले विमान शहर के इलाके में जा रहा था.

ऊंचाईसूचक यंत्र बता रहा था कि विमान की ऊंचाई तेजी से शून्य की ओर बढ़ रही है. मतलब, विमान तेजी से जमीन की ओर आ रहा था.

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जैसेजैसे इस यंत्र की सूई शून्य की तरफ झुक रही थी, वैसेवैसे शहर के इलाके में घुस कर विमान के तबाही मचा देने के आसार बढ़ रहे थे. लेकिन विमान के अतिरिक्त वेग का एक फायदा यह हुआ कि आकृति को विमान को समतल बनाने में अचानक ही आसानी हो गई.

जिस समय इंजन में आग लगी थी, उस समय से ले कर अब तक, पहली बार आकृति को प्रतीत हुआ कि विमान को नियंत्रण में ला कर उसे स्थिर रास्ते पर लाया जा सकता है.

वैसे तो विमान अभी भी किसी भारी पत्थर की तरह ही नीचे गिर रहा था, लेकिन आकृति उस को एक सीधी रेखा में रख काबू में रखने की कोशिश कर पा रही थी. उस ने तब तक इंतजार किया, जब तक विमान 2,000 फुट नीचे न गिर गया हो, उस के बाद उस ने जोत को पीछे की ओर खींचा.

जोत को पीछे की ओर खींचने से विमान की नाक नीचे की ओर से ऊपर आ कर सीधी हो गई और विमान आकाश में समतल हो गया.

इस के बाद आकृति ने थ्रौटल को आगे धकेला, जिस से विमान की गति बढ़ी. विमान की उड़ान में अभी भी ऊबड़खाबड़ मची हुई थी, लेकिन एक इंजन पर विमान को उस दिशा में घुमा पाना संभव हो गया था, जिस दिशा से वह भटक गया था. विमान की उतराई का मार्ग अब निशाने पर था.

आकृति ने अवतरण गियर को नीचे किया, जिस से वायुयान के पहिए अपनी सामान्य गति से विमान के बाहर आ गए. अपने सामने के वायुरोधक शीशे से उसे हवाईअड्डे का दौड़पथ नजर आ रहा था.

आकृति ने अपना ध्यान विमान को नियंत्रित रखने पर केंद्रित किया और दौड़पथ पर लगी बत्तियों को सामने के शीशे के बीचोंबीच रखने का प्रयास किया. उस ने ऊंचाईसूचक यंत्र की तरफ जल्दी से नजर डाली. यंत्र की सूई 500 फुट से गिर कर 400 फुट हुई, फिर 300 फुट, फिर 200 फुट, फिर 100 फुट.

100 फुट के बाद आकृति ने विमान को दौड़पथ की रोशनियों के सहारे विमान को बिलकुल बीच में लाने का प्रयास किया. यंत्र की सूई 50 फुट तक आई, फिर 25, फिर 10 और फिर विमान तीव्रता से दौड़पथ से आ कर मिला. एक गतिरोधक के ऊपर से गुजरने वाली वेदना के साथ विमान ठोस धरती से टकराया और दौड़पथ पर दौड़ने लगा.

विमान की उतरान बदसूरत थी. आकृति ने जोर से ब्रेक दबाए. उस ने तेज गति से और झटके से विमान को मोड़ा, ताकि विमान के पंख अपने निर्धारित दौड़पथ की रेखाओं के अंदर आ जाएं. अगर उतरने के बाद भी विमान को काबू में न रखा गया तो वह आसपास के दौड़पथ पर जा कर दूसरी चीजों से टकरा सकता था.

विमान सुरक्षित तो नीचे उतर गया था, लेकिन उतरने के बाद जोर से ब्रेक लगने और झटके से मुड़ने के कारण वह दौड़पथ पर अस्थिर रूप से इधरउधर दौड़ रहा था.

आकृति ने अपना हौसला नहीं खोया. इंजन में आग लग जाने के बावजूद भी वह विमान को सुरक्षित तरीके से नीचे ले आने में कामयाब हो पाई थी, इस बात से उस का आत्मविश्वास अब काफी हद तक बढ़ गया था. उस ने जोत को कस कर पकड़ लिया और उसे एकदम सीधे मजबूती से पकड़ कर रखा. इस से विमान की लहरदार चाल पर लगाम लग गई और विमान धीरेधीरे कर के दौड़पथ के बीच की रेखा में सीधा आ गया.

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जोर से ब्रेक लगाने के कारण विमान ने दौड़पथ पर अपनी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं किया और दौड़पथ खत्म होने से पहले ही अपनी दौड़ को विराम दिया.

जब विमान पूरी तरह से स्थिर हो कर खड़ा हो गया तो आकृति ने अपने हाथ जोत पर से हटाए, अपने माथे को जोर से रगड़ा और दो पल के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाया.

आज की अविश्वसनीय घटना आकृति ने दूसरों से होती हुई सुनी थी, लेकिन जिंदगी में कभी भी यह नहीं सोचा था कि किसी दिन उस के साथ भी ऐसा होगा.

विमान के बाहर अग्निशामक दस्ते दौड़ते हुए विमान की तरफ आ रहे थे. मई की भीषण गरमी में बदन को झुलसाती इस विमान में लगी आग… विमान के अंदर, एक कोरोना से बचने के लिए मास्क काफी नहीं था, यात्रियों को ऊपर से गिरा औक्सीजन का मास्क भी पहनना पड़ा था.

विमान के इंजन में आग लगते ही औक्सीजन के मास्क नीचे आ गए थे और एयर होस्टेस ने यात्रियों की मदद की थी औक्सीजन मास्क पहनने में, हालांकि यात्रियों से थोड़ा सा दूर रह कर. जब एक के ऊपर एक आपदाएं आती हैं, तो उन सब से एकसाथ निबटने के लिए नए आयामों को ईजाद करना पड़ता है.

यात्रियों ने विमान के जमीन पर उतरते ही एक नए जीवन को अपने भीतर जाते हुए महसूस किया. विमान के पूरी तरह से स्थिर हो जाने के बाद भी तब तक खतरा बना हुआ था, जब तक सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाल लिया जाता. एक तरफ आग को काबू में लाने के लिए पानी की बौछारें बरसाई जा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए सीढ़ियां पीछे के दरवाजे पर लगाई जा रही थीं.

आकृति अपना सिर नीचे झुकाए बैठी थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. वह अपनेआप को ही इस विपदा का कारण समझने लगी थी, ‘मेरी ही गलत सोच थी यह, जिस ने ऐसी परिस्थितियों को पैदा किया, जिस से विमान के इंजन में आग लग गई. अगर मेरी सोच सकारात्मक होती तो विमान के इंजन में आग कभी नहीं लगती,’ यही सोच आकृति को खाए जा रही थी. वह यह भूल गई कि अगर उस की जगह कोई और होता तो शायद विमान उसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो गया होता, जैसे 2 दिन पहले कराची में हुआ था.

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हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 1- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

आकृति अपने टीवी सेट से गढ़ी हुई थी. खबर थी, लाहौर से कराची जाने वाला विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

उसी की खबर को हर चैनल पर दिखाया जा रहा था.

अलविदा जुम्मा… ईद से पहले का जुम्मा… उस पर ऐसा कहर बरपा था कुदरत ने… जैसे वायरस का प्रकोप कम पड़ गया हो प्रकृति को कहर ढाने के लिए.

कराची हवाईअड्डे के पास ही में एक कालोनी पर दुर्घटनाग्रस्त हो कर विमान गिर गया था. काले धुएं का भयंकर गुबार उठ रहा था. कोरोना वायरस के कारण लौकडाउन होने के बावजूद लोग ईद मनाने के लिए अपने रिश्तेदारों के घर आजा रहे थे.

हवाईअड्डे के पास की छोटी तंग गलियों के इलाके में मकानों के ऊपर यह हवाईजहाज गिर गया था. एंबुलेंस वहां आ रही थीं. अग्निशामक दस्ते पानी के बड़े फव्वारों को टूटे हुए विमान के जलते हुए टुकड़ों पर डाल कर ठंडा कर रहे थे.

वहां लोगों की भारी भीड़ खडी हो कर अविश्वसनीय आंखों से यह दृश्य देख रही थी. बहुत से लोग मलबे से लाशों को निकालने में जुटे हुए थे.

एक चैनल पर विमान चालक के साधारण से शब्द सुनाए जा रहे थे, “मे डे, मे डे, मे डे … पकिस्तान 8303.” इस का मतलब था कि पाकिस्तान की हवाई उड़ान पी-आई-ए संख्या 8303 इतनी खतरे में पहुंच गई थी कि उस का बच पाना लगभग नामुमकिन था.

हवाईजहाज के दोनों इंजनों में आग लग गई थी. 3 बार रनवे का चक्कर काटने के बावजूद हवाईजहाज रनवे पर उतर ही नहीं सका, जबकि टावर से उस के विमान तल पर उतरने के लिए दोनों रनवे खाली करवा दिए गए थे.

2 यात्री घायल हो गए, मगर उन की जान बच गई. विमान में मौजूद बाकी सारे यात्री, विमान के स्टाफ समेत सभी मौत की नींद सो गए.

आकृति बेहद विचलित थी. पिछले महीने ही उस ने गर्भपात कराया था, अपने कैरियर को ध्यान में रखते हुए. पहले से ही वह तनावपूर्ण अवस्था में थी. उस पर यह विमान दुर्घटना.

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आकृति ने अपने माथे को जोर से पकड़ लिया. सोमवार 25 मई, 2020 को उड़ान भरने वाले चालकों की सूची में उस का भी नाम था. 2 महीने लौकडाउन में रहने के बाद घरेलू उड़ानें उड़ने के लिए तैयार हो रही थीं. दिल्ली से नागपुर जाने वाली उड़ान में उस का नाम चालिका के रूप में था. उस की सहचालिका इंदरजीत कौर थी.

आकृति बेहद तनाव में आ गई. रातभर उसे नींद नहीं आई. हर बार आंख लगने पर उसी दुर्घटनाग्रस्त विमान का उन 10 बिल्डिंगों पर गिर कर उन को नष्ट कर देने की तसवीरें. मलबे में दबे हुए लोगों की निकाली जा रही लाशें. रिश्तेदारों के रोनेबिलखने की तसवीरें. हवाईजहाज की धीमी उतराव की तसवीरें और उस के बाद सब खत्म.

कुछ लोगों का यह मानना है कि हमारी सोच ही हमारा निर्माण करती है. हमारे व्यक्तित्व का तो वो निर्माण करती ही है, लेकिन हमारे आसपास की परिस्थितियों का भी वो निर्माण करती है. हमारी सोच ही हमारे आसपास ऐसी परिस्थितियां बना देती है, जो हमारी सोच के अनुकूल हो. जरूरी नहीं कि हमारी सोच सकारात्मक हो. नकारात्मक सोच नकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण करने में सक्षम होती है. ऐसी धारणा है.

पता नहीं, यह कहां तक सच है. अगर किसी के मन में किसी बीमारी को ले कर डर बना हुआ है और वो लगातार इस बीमारी के बारे में सोचता जा रहा है, जो मनोविज्ञान के जटिल सिद्धांतों के अनुसार, उस व्यक्ति के इसी बीमारी से रोगी होने के पूरेपूरे आसार हैं.

कराची विमान दुर्घटना ने भी ऐसी ही बीमारी का रूप आकृति के मन में धर लिया. वैसे तो हादसे हजारों होते हैं. विमान से संबंधित हादसे भी कई होते हैं, लेकिन मन में डर तब बैठ जाता है, जब मन में चोर छिपा हो.

नियम के अनुसार, आकृति को अपने गर्भपात के बारे में विमान कंपनी को बता देना चाहिए था. लेकिन इतना समय यों ही घर में बैठे रहने या वापस अपने काम पर जाने की चाह से, आकृति ने किसी को कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. कंपनी नियम के इस उल्लंघन ने उस के मन में चोर की भावना पैदा कर दी.

जाहिर है, गर्भपात के बाद कंपनी आकृति को 2-3 महीने और घर में बिठा कर रखती, और आकृति किसी भी दृष्टि से अपनेआप को हवाईजहाज उड़ाने में नाकाबिल नहीं समझ रही थी. गर्भपात कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी. लेकिन कंपनी वालों के लिए यह मनोवैज्ञानिक असंतुलन की बात थी. हवाई यात्रियों की सुरक्षा, कंपनी वालों की हर सूची में सब से ऊपर थी.

उड़ान के दिन, मास्क और ग्लब्स पहने हुए यात्रियों के जनसमुदाय ने दिल्ली से नागपुर जाने वाले आकृति के विमान में अपनीअपनी जगहें लीं. निश्चित समय पर विमान अपने गंतव्य स्थान की ओर उड़ चला.

उड़ान के दौरान आकृति की नजरों के आगे दुर्घटनाग्रस्त विमान के हजारों टुकड़े रहरह कर आ रहे थे.

एक बात से आकृति और भी ज्यादा व्यथित हो गई थी. उस का विमान भी एयरबस 320 था. ठीक वही विमान, जो कराची में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था.

वैसे तो एयरबस 320 का खुद का सुरक्षा रिकार्ड बहुत ही उम्दा था, लेकिन मस्तिष्क पर भय के हौवे के आगे बड़ी से बड़ी सुरक्षा में भी भेद ढूंढ़ पाना आसान था.

आकृति के दिमाग में रहरह कर यही बात आ रही थी कि 2 दिन पहले की दुर्घटना में हवाईजहाज में मौजूद सभी स्टाफ की मौत हो गई थी. चालक, सहचालक और कर्मी दल मिला कर 8 स्टाफ के लोग थे. आठों की मृत्यु हो गई थी. और उस से भी बड़ा इत्तिफाक यह था कि दुर्घटनाग्रस्त विमान भी लाहौर से एक बजे निकल कर कराची ढाई बजे पहुंचने वाला था, और आकृति की उड़ान भी दिल्ली से एक बजे निकल कर पौने 3 बजे नागपुर पहुंचने वाली थी. इतने बड़े संयोग एकसाथ हो रहे थे. इन्हीं के चलते आकृति के दिल की धडकनें तेज हो गई थीं.

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पता नहीं, वह कैसा संयोग था या आकृति के मस्तिष्क की किरणों से उत्पन्न नकारात्मक परिस्थिति कि जब आकृति अपने विमान को नागपुर के बाबासाहेब अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के एकदम पास ले कर आ गई तो विमान के बाईं ओर के इंजन में आग लग गई.

विमान 7,000 फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, दौड़पथ बिलकुल सामने था, शहर की इमारतें कुछ दूरी पर टिमटिमा रही थीं. कुछ ही सैकंडों में वायुयान के चालक स्थान में घंटियां बजने लगीं.

ये घंटियां विमान की अलगअलग प्रणालियों की विफलताओं की चेतावनी दे रही थीं. चालक स्थान लाल बत्तियों से चमक उठा था. हर लाल बत्ती किसी न किसी प्रणाली के खराब होने का संकेत था.

दुर्भाग्यवश, जिस समय विमान के इंजन को आग लगी और विमान को तेज झटका लगा, ठीक उसी समय विमान में आकृति की सहचालिका इंदरजीत कौर अपनी सहचालक की सीट से उठी, शायद टायलेट जाने के लिए. जैसे ही वह उठी, विमान को जोर का झटका लगा. इंदरजीत अपना संतुलन खो बैठी और अपनी ऊंचाई की वजह से उस का सिर कौकपिट की एकदम कम ऊंचाई वाली छत से टकरा गया. उस के सिर पर चोट आ गई और इंदरजीत वहीं बेहोश हो गई.

 

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