कहीं आप फ्रोजन शोल्डर के शिकार तो नहीं, डॉक्टर की राय जानें यहां

मुंबई की एक पॉश एरिया में रहने वाले 40 वर्षीय मोहन के बाई हाथ और कंधों  में बहुत दर्द रहता था, उन्हें लगा कि ये हार्ट की कोई बीमारी है, उन्होंने कई डॉक्टर को कंसल्ट किया, सारे टेस्ट करवा डाले, लेकिन कुछ नहीं निकला. अंत में जब वे ओर्थोपेडिक सर्जन के पास गए, तो उन्होंने उनके लाइफस्टाइल के बारें में बात की और पता चला कि उनके बायें हाथ का दर्द उनकी गलत सोने की पोस्चर की वजह से है. वे अपने सिर के नीचे हाथ रखकर सोते है और लगातार ऐसा करने की वजह से उन्हें फ्रोजन शोल्डर की शिकायत हो चुकी है, जिसकी वजह से उनके बाए हाथ और कंधों में दर्द रहता है. डॉक्टर ने उन्हें कुछ एक्सरसाइज और सोने की आदत को बदलने के लिए कहा, जिससे उनके फ्रोजन शोल्डर की शिकायत और हाथ दर्द ठीक हो गया.

इस बारें में एमीकेयर हॉस्पिटल के जॉइंट स्पेशलिस्ट और ओर्थोपेडिक सर्जन डॉ. हिमांशु गुप्ता कहते है कि कंधे के जोड़ों में जकडन यानी फ्रोजन शोल्डर, जिसे एडहेसिव कैप्सूलाइटिस भी कहा जाता है. यह स्थिति मधुमेह ग्रस्त और उन लोगों में अधिक होती है जो अपनी बाहों को अधिक अवधि के लिए एक स्थान पर स्थिर रखते हैं. समय रहते इसका ध्यान देने पर आसानी से इसका इलाज हो सकता है. इसकी शुरूआती लक्षण, जाँच और इलाज की जानकारी होने की जरुरत होती है. वैसे तो इसका इलाज नॉन-सर्जिकल ही होता है, लेकिन कई बार सर्जिकल भी करना पड़ता है. इसके लक्षण निम्न है,

जानें वजह

हालांकि फ्रोजन शोल्डर के स्पष्ट कारणो के सन्दर्भ में कुछ कहा नहीं जा सकता परन्तु इसकी शुरुआत अक्सर कुछ विशेष कारकों से जुड़ी होती है.40 से 60 वर्ष की आयु के व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं में इसके विकसित होने की संभावना अधिक होती है. मधुमेह, थायरॉयड और हृदय रोग जैसे शारीरिक स्थितियों में इसके होने की संभावना बढ़ सकती है. किसी चोट या सर्जरी के बाद लंबे समय तक स्थिर रहने से ऑटोइम्यून विकारों और हार्मोनल असंतुलन के साथ-साथ कंधे जम जाते हैं, जिसका दर्द नीचे हाथ तक आ सकता है.

क्या है लक्षण

फ्रोजन शोल्डर के लक्षणों को तीन अलग-अलग स्टेज में देखा जा सकता है, प्रत्येक की पहचान विशेष संकेतों से होती है,

  1. फ्रीज़िंग स्टेज

इसके शुरूआती दौर में दर्द और अकड़न बढ़ जाती है, जिससे कंधे की गति सीमित हो जाती है. बालों में कंघी करना या कपड़े पहनना जैसे साधारण कार्यों में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं.

2. फ्रोजन स्टेज

इसमें दर्द कुछ हद तक कम रह सकता है, लेकिन जकड़न बनी रहती है. कंधे की गतिशीलता काफी कम हो जाती है, जिससे दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ प्रभावित होने लगती है.

3. थाइंग स्टेज

इस स्टेज में व्यायाम से सुधार होता है, दर्द थोडा कम हो जाता है, और अधिकतर मरीज़ फिर से अपने कंधे का प्रयोग कर पाते हैं.

क्या है इलाज

फ्रोजन शोल्डर के सही इलाज के लिए रोगी के मेडिकल हिस्ट्री,  उनका संपूर्ण शारीरिक परीक्षण और कभी-कभी, एक्स-रे या एमआरआई स्कैन जैसी अन्य इमेजिंग तकनीकों के संयोजन की जरुरत होती है. सही इलाज के लिए फ्रोजन शोल्डर के लक्षणों को बारीकी से देखना पड़ता है, ताकि इसकी शिकायत को जल्दी कम किया जा सकें.

बिना सर्जरी के इलाज प्रक्रिया में दर्द को कम करना और कंधे की कार्यप्रणाली को वापस शुरु करना शामिल होता है. इसमें दवा के साथ कई बार फिजियोथिरेपिस्ट की सहायता लेनी  सकती है.

फिजियोंथिरेपिस्ट द्वारा बताए गए व्यायाम और स्ट्रेच कंधे की गतिशीलता को बनाए रखने और सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

दर्द और सूजन को कम करने के लिए नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) और कॉर्टिकोस्टेरॉइड इंजेक्शन का सही तरीके से उपयोग किया जा सकता है.

इसके इलाज में थर्मल थेरेपी काफी कारगर होती है. गर्मी या ठंडे पैक का इस्तेमाल परेशानी को कम कर सकता है और मांसपेशियों की जकड़न में ये प्रक्रियां आराम दे सकता है.

जब पारंपरिक तरीके काम नही आते हैं और मरीज का जीवन स्तर लगातार प्रभावित होता रहता है, तो सर्जिकल इलाज एकलौता विकल्प बच जाता हैं:

मैनीपुलेशन अंडर एनेस्थीसिया (MUA) में, मरीज एनेस्थीसिया के तहत होता है तो ओर्थोपेडिक सर्जन कंधे को विभिन्न गतियों से घुमाता है, जिससे स्थिर टिश्यू में गति आ जाती है.

आर्थ्रोस्कोपिक रिलीज़ भी एक प्रकार की न्यूनतम इनवेसिव सर्जिकल है. इस तरीके की इलाज में कंधे के जोड़ के अन्दर बारीक़ टिश्यू को सही करना पड़ता है.

सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल तरीकों के बीच का निर्णय फ्रोजन शोल्डर की गंभीरता और दैनिक गतिविधियों पर इसके असर पर निर्भर करता है. शुरुआत में, व्यायाम और दवाओं के साथ नॉन-सर्जिकल तरीकों से इलाज की कोशिश की जाती है, जबकि कुछ जटिल मामलों में सर्जरी द्वारा इसका इलाज किया जाता है जब पारंपरिक  तरीकों से इलाज के बावजूद दर्द और परेशानियां बनी रहती है.

सावधानियां

  • उपचार के साथ-साथ, डॉक्टर्स द्वारा बताये गए निर्देशों का पालन करना और उनका सलाह लेना आवश्यक है.
  • नियमित निर्देश के अनुसार व्यायाम करें, जिसमे हल्के स्ट्रेच और व्यायाम को जारी रखना आवश्यक है, ताकि लचीलेपन को बढाने और स्वास्थ्य के सुधार में सहायता मिले.
  • अत्यधिक तनाव से बचने की हमेशा कोशिश करें, कंधे का अधिक से अधिक प्रयोग करने से बचें, ताकि उस पर अधिक दबाव न पड़ें.
  • अपने पोस्चर सही रखने की हमेशा कोशिश करें, अगर आप एक स्थान पर बैठकर लैपटॉप या मोबाइल पर अधिक समय तक काम करते हो तो समय- समय पर उठकर थोड़ी टहल लें, इससे कंधे के जोड़ को राहत मिलती है और दर्द में भी कमी आती है.
  • इलाज को कारगर बनाने के लिए तय दवाईओं और नियमों का पालन करना जरूरी होता है, इससे दर्द से बहुत हद तक राहत मिलती है.

इस प्रकार फ्रोजन शोल्डर शरीर में उत्पन्न एक विशेष डिसऑर्डर है, जिसके सभी लेवेल्स, लक्षणों और उपचार के तरीके की जानकारी आवशयक है. सर्जरी या नॉन सर्जरी के माध्यम से इलाज संभव होता है, ताकि दर्द कम हो और दैनिक जीवन में व्यक्ति की गतिशीलता लगातार बनी रहे.

13 Baby Health tips: Monsoon बेबी स्किन केयर

बारिश का मौसम बहुत सुहावना होता है, मगर इस मौसम बच्चों से लेकर बड़ों तक को अपनी सेहत की खास देखभाल की जरूरत होती है. दरअसल, बारिश में मच्छरों और गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारियों से इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. वैसे बरसात के खूबसूरत मौसम को बच्चे बहुत ऐंजौय करते हैं क्योंकि यह उन के लिए बहुत रोमांचक और मजेदार होती है. लेकिन मौनसून में बेबीज की स्किन को खास देखभाल की जरूरत होती है. उन की स्किन काफी नाजुक होती है.

ऐसे में जरा सी लापरवाही से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इस मौसम में कई बार बच्चे बारिश के पानी में भीग जाते हैं, जिस कारण उन की स्किन में खुजली, रैशेज और त्वचा पर दानों की समस्या हो सकती है. इसलिए उन की स्किन की स्पैशल केयर बहुत जरूरी है.

  1. मौइस्चराइजिंग लोशन का प्रयोग करें

बच्चों की स्किन बहुत ही मुलायम और सैंसिटिव होती है. जब मौसम में अधिक ह्यूमिडिटी बढ़ जाती है तो बच्चों को अधिक खुजली और रैशेज की समस्या होने लगती है. इस से उन्हें राहत दिलाने के लिए आप एक मौइस्चराइजिंग लोशन का प्रयोग कर सकती हैं जो उन की स्किन को इस मौसम में ड्राई होने से और रैशेज आने से बचा सकता है. कुछ अच्छे मौइस्चराइजिंग लोशन ये हैं:

बेबी हग डेली मौइस्चराइजिंग लोशन, सेटाफिल बेबी डेली लोशन विद शीया बटर, हिमालया हर्बल बेबी लोशन, अवीनो बेबी डेली मौइस्चराइजिंग लोशन, मामाअर्थ मौइस्चराइजिंग डेली लोशन व्हाइट, चिकू बेबी मोमैंट्स बौडी लोशन, बेबी डव लोशन मौइस्चर, जौनसन बैबी लोशन फौर न्यू बोर्न आदि.

2. डायपर गीला न छोड़ें

बेबी को सूखा रखने के लिए उसे डायपर पहनाया जाता है, लेकिन कई बार इसे चैक न करने पर बेबी कई घंटों तक गीले डायपर में ही पड़ा रहता है. इसलिए कुछ अंतराल पर उस की नैपी को जरूर चैक करती रहें. बारिश में वातावरण में नमी बढ़ने से शिशुओं को भी डायपर रैशेज होने का खतरा रहता है.

इसलिए अपने बच्चे के डायपर को समयसमय पर बदलती रहें. उसे कुछ देर तक डायपर मुक्त रखें, साथ ही हवा की आवाजाही के लिए कौटन डायपर का प्रयोग करें. कुछ अच्छे डायपर ब्रैंड्स हैं: हिमालया बेबी डायपर, मैमीपोको पैंट, लिटिल ऐंजल डायपर, मीमी बेबी डायपर, सुपर बौटम्स नैप्पीज, पैंपर्स ऐक्टिव बेबी डायपर, पैंपर प्रीमियम केयर डायपर पैंट, हग्गीज वंडर पैंट्स डायपर आदि.

3. उपयोग किए जाने वाले प्रोडक्ट्स को जांचें

बेबीज के लिए मार्केट में मिलने वाले प्रोडक्ट्स ध्यान से खरीदें. आमतौर पर शिशुओं के कौस्मैटिक उत्पादों में पाया जाने वाला फेनोक्सीथेनौल बच्चे की त्वचा में ऐलर्जी पैदा कर सकता है. इसलिए किसी भी प्रोडक्ट में मौजूद इनग्रीडिऐंट्स जरूर पढ़ें और सुरक्षित प्रोडक्ट्स ही लें. हमेशा प्रोडक्ट के लेबल को देखें और पैराबेन, अल्कोहल आर्टिफिशियल कलर, सुगंध और डाई वाले उत्पादों से भी बचें.

4. मच्छरों से बचाएं

बारिश के मौसम में मच्छरों की संख्या भी अधिक बढ़ जाती है. इसलिए बच्चे को मौनसून में मच्छरों के काटने से बचाएं. उन की कोमल त्वचा पर जब मच्छर काटता है तो उन्हें बहुत तेज दर्द अनुभव होता है. उन की स्किन पर लाल निशान या सूजन भी हो सकती है.

इस मौसम में डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां फैल जाती हैं. इन से बचाने के लिए आप को अपने बच्चों को मच्छरों से दूर रखना होगा. जब भी आप अपने बच्चे को सुलाती हैं तो यह ध्यान करें कि उस के बैड पर मच्छर का नैट जरूर लगा कर रखें.

बच्चों की स्किन पर कोई ऐसा डेलिकेट गैरविषैले और डीईईटी मुक्त मच्छर प्रतिरोधी लगाएं जो उन्हें मच्छरों से बचा सकें और घर में साफसफाई का भी ध्यान रखें ताकि घर में अधिक मच्छर न पनप सकें. बच्चों को शाम के वक्त घर के बाहर न ले कर जाएं. अगर ले कर जाना जरूरी हो तो पूरे कपड़े पहनाएं ताकि बच्चे मच्छर से बच सकें.

5. शरीर की मालिश

बरसात के मौसम में नहाने से पहले अपने बच्चे की मालिश जरूर करें. जैतून का तेल या बादाम का तेल सर्दियों में शिशु की मालिश के दौरान त्वचा के लिए फायदेमंद होता है खासकर जैतून का तेल एक बहुत ही समृद्ध मौइस्चराइजर है और ओमेगा 3, 6 और 9 का एक अच्छा स्रोत है जो त्वचा को हाइड्रेट करता है और त्वचा की प्राकृतिक नमी को सील करता है.

चाहें तो बच्चे की त्वचा की मालिश अच्छे प्राकृतिक तेलों जैसे कि वर्जिन कोकोनट औयल बेस्ड बेबी औयल से करें. इस में कई पोषक तत्त्व होते हैं जो आप के बच्चे की स्किन को आवश्यक और सुरक्षित पोषण प्रदान करते हैं.

6. हाथों की सफाई भी जरूरी

अपने बेबी के नाखूनों को हमेशा छोटा रखें. हाथों की गंदगी से बच्चों की सेहत पर भी असर पड़ सकता है. पेरैंट्स भी अपने हाथों को अच्छे हैंड वाश से धोते रहें और बच्चों को भी ऐसा ही सिखाएं खासकर खाने से पहले उन्हें हाथ धोने को जरूर कहें.

7. स्किन को ड्राई रखें

मौनसून के मौसम में उमस काफी ज्यादा रहती है, जिस कारण पसीना आता रहता है और कई बार बारिश में भीगने के कारण भी स्किन भीग जाती है. ऐसे में कोशिश करें कि स्किन को पहले साफ पानी से वाश करें, फिर सूखा टौवेल ले कर बच्चों की स्किन को साफ करें. स्किन को ड्राई रखने की कोशिश करें.

8. कौटन के कपड़े पहनाएं

मौनसून के मौसम में बच्चों को कौटन के कपड़े ही पहनाएं क्योंकि इस तरह के कपड़े आसानी से पसीने को सोख लेते हैं और स्किन भी सांस ले पाती है. बच्चों को इस मौसम में टाइट कपड़े पहनाने से बचें क्योंकि टाइट कपड़े पहनाने से उन की स्किन पर रैशेज हो सकते हैं.

9. बेबी का सामान शेयर न करें

इस मौसम में जरा सी लापरवाही के कारण बेबी की स्किन पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. बेबी को साफसुथरा रखने के साथसाथ उस के पर्सनल सामान की भी नियमित सफाई करती रहें. बेबी के तौलिए, कपड़े और कंघी को किसी को भी देने से बचें.

10. ऐंटीफंगल पाउडर का प्रयोग करें

बच्चों की स्किन की देखभाल के लिए ऐंटीफंगल पाउडर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस पाउडर को लगाने से स्किन पर बैक्टीरिया का विकास नहीं होगा, साथ ही बच्चों को नहलाने के समय पानी में ऐंटीसैप्टिक लिक्विड का भी इस्तेमाल करें.

11. क्लींजर का इस्तेमाल करें

मौनसून में उमस के कारण बच्चों की स्किन ड्राई हो सकती है. ऐसे में उन की स्किन पर साबुन का इस्तेमाल न करें क्योंकि यह बच्चों की स्किन को और अधिक ड्राई कर सकता है. बच्चों की स्किन का पीएच बैलेंस बनाए रखने के लिए औयल फ्री क्लींजर का इस्तेमाल करें.

12. बच्चों के कपड़े सूखे रखें

अगर बच्चे बारिश के मौसम में भीग जाते हैं या कपड़े धोने के बाद वे अच्छे से सूख नहीं पाते हैं तो आप को उन्हें ऐसे ही अलमारी में नहीं रख देना चाहिए. आप को बच्चों के कपड़ों को अच्छी तरह से सुखाना चाहिए और अगर सूख नहीं रहे हैं तो प्रैस कर सुखा लें क्योंकि अगर वे गीले कपड़े पहनेंगे तो इन के शरीर पर खुजली और रैशेज आदि की समस्या देखने को मिल सकती है.

13. स्वस्थ आहार

मौनसून में बच्चों को स्वस्थ और संतुलित आहार देना बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस मौसम में खांसी, जुकाम और बुखार जल्दी हो जाता है. बच्चों को विटामिन सी और जीवाणुरोधी खाद्यपदार्थ जैसे अमरूद, आंवला, नारंगी, पपीता आदि का सेवन कराना चाहिए. बच्चों को फल और गरम सूप दें. पानी को उबाल कर देना एक अच्छा तरीका है. पानी को उबालने पर उस के अंदर के कीटाणु भी मर जाते हैं.

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