दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी, जानिए कब और क्यों की जाती है घोषणा ?

आपातकाल (इमरजेंसी)  का जिक्र जैसे होता है हमारी रूह कांप जाती है. भारतीय संविधान में तीन प्रकार की इमरजेंसी का जिक्र  है. राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी), राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी) और आर्थिक आपातकाल (इकनौमिक इमरजेंसी). लेकिन यहां मैं एक चौथी इमरजेंसी का बात कर रहा हूं जोकि कोर्ट ने लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ईपीसीए (EPCA) ने दिल्ली में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की है. ये इस कारण से किया गया क्योंकि दिल्ली की हवा दम घोंटने वाली हो गई है.लोगों को सांस लेने में भारी तकलीफ हो रही है. स्कूलों को बंद कर दिया गया है. भारत बनाम बांग्लादेश पहला टी-20 मैच भी दिल्ली के अरूण जेटली स्टेडियम में होना है. बांग्लादेश के खिलाड़ी मास्क पहनकर प्रैक्टिस करते नजर आए. वहां के कोच की तो तबियत ही खराब हो गई.

राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ही दिल्ली को गैस-चैंबर बता चुके हैं. इसके साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वे जितना कम हो सके बाहर रहें. ज़्यादा से ज़्यादा घर के अंदर ही रहें. लोगों को निजी वाहनों का कम इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है और साथ ही कचरा जलाने से भी मना किया गया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकार ये बताए कि पराली कब तक जलाई जाएगी. केजरीवाल इस प्रदूषण की प्रमुख वजह पराली को ही मान रहे हैं. उनका कहना कि लोगों ने इस बार दीवाली में पटाखे कम जलाए हैं इसलिए ये सारा प्रदूषण पराली का ही है.

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EPCA के चेयरमैन भूरे लाल ने उत्तर प्रदेश , हरियाणा और दिल्ली के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता की ख़राब स्थिति पर चिंता व्यक्त की. इससे इस बात का अंदाज़ा तो हो जाता है कि स्थिति कितनी ख़राब है. बदनसीबी से इस गंभीर मामले पर भी सियासतदान राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे पूरी तरह पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली का असर बता रहे हैं वहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि हरियाणा और पंजाब को इस स्थिति के लिए दोष देना बंद करके अगर आपस में मिलकर इस समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश की जाती तो संभव है स्थिति बेहतर होती.

वायु प्रदूषण हर साल इन्हीं महीनों में ज्यादा खराब होती हैं. इसका कारण केवल पराली नहीं बल्कि मौसम का बदलता रूख भी है. साथ ही ऐसे कई अन्य हानिकारक तत्व हैं जो गाड़ियों और उद्योगों से आते हैं जैसे कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और ओजोन जैसी गैसें. हवा की गुणवत्ता को एयर क्वालिटी इंडेक्स पर मापा जाता है. अगर एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच में यह संतोषजनक होता है, 101-200 के बीच में औसत, 201-300 के बीच में बुरा, 301-400 के बीच में हो तो बहुत बुरा और अगर यह 401 से 500 के बीच हो तो इसे गंभीर माना जाता है.

दिल्ली में कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 500 के पार दर्ज किया गया. पीएम 2.5 हवा में तैरने वाले वाले वो महीन कण हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं. लेकिन सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. वायुमंडल में इनकी मात्रा जितनी कम होती है, हवा उतनी ही साफ़ होती है. इसका हवा में सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम है. इसके अलावा पीएम 10 भी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. इस गंभीर स्थिति को ही ध्यान में रखते हुए पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की गई है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 के एक अध्ययन में राजधानी के हर 10 में से चार बच्चे ‘फेफड़े की गंभीर समस्याओं’ से पीड़ित हैं. इसके अलावा भारत साल 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामले में 188 देशों की सूची में पांचवें स्थान पर था. प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल, द लांसेट में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़, दक्षिण पूर्व एशिया में साल 2015 में 32 लाख मौतें हुईं. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के इस आंकड़े में भारत भी शामिल है.

दुनियाभर में हुई क़रीब 90 लाख मौतों में से 28 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं. यानी यह आंकड़ा 25 लाख से ज़्यादा रहा. एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 360 के ऊपर होने का मतलब है 20 से 25 सिगरेट पीना. इस आधार पर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली में कोई भी नौन-स्मोकर नहीं बचा है.

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हेल्थ इमरजेंसी हमारे आपके लिए नया शब्द हो सकता है लेकिन दुनिया के लिए ये शब्द पुराना है. साल 2012 में चीन में हेल्थ इमरजेंसी लगाई गई थी जब वहां प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया था. भारत में तो इसे लगाने में काफ़ी वक़्त लिया गया जबकि दुनिया के दूसरे देशों में यह बहुत ही शुरुआती स्तर पर घोषित कर दी जाती है.

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