ब्रेस्टफीडिंग को बढ़ाने के लिए खाएं ये फूड्स

भारत भर में कई महिलाओं को अक्सर दूध उत्पादन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. देश के कई हिस्सों में, नई माताओं को बच्चे के जन्म के बाद पहले चालीस दिनों के दौरान ताकत और पोषण प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है, और उसमें से एक प्रसिद्ध ‘गोंद का लड्डू’ है. खाने वाली गोंद, देसी घी, चीनी, किशमिश, नट्स और ड्राई फ्रूट्स इत्यादि से तैयार किया गया, गोंद का लड्डू, कैलोरी से भरपूर होता है और एक नई मां में आवश्यक अतिरिक्त कैलोरी को पूरा करना बहुत ही आवश्यक होता है, और वैसे में जबकि वह नए जन्मे बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराती है.

नई माताओं में लैक्टेशन को बढ़ावा देने वाले खाद्य और जड़ी-बूटियों को गैलेक्टोगोग्स कहा जाता है. ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां के आहार में बहुत सारे प्राकृतिक खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों, माताओं में प्राकृतिक दूध को प्रोत्साहित कर उसे बनाए रखा जा सकता है. तथा, बहुत ज़रूरी है कि जितनी भी नई माताओं को प्राकृतिक रूप से कम दूध आता है, वे अच्छी डाइट और कुछ ख़ास फूड्स का अवश्य सेवन करें.

फूड्स जो कि ब्रेस्टफीडिंग को बढ़ाते है:

1. मेथी: मेथी के बीज और पत्ते दोनों ही ब्रेस्टमिल्क उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए बेहद उपयोगी हैं. मेथी एक गैलेक्टागॉग साबित हुआ है जिसका अर्थ है कि इनके बीजों के सेवन से महिलाओं में लैक्टेशन ग्रंथियों को प्रोत्साहित करेगा, जिससे दूध की आपूर्ति बढ़ जाएगी. चूंकि इसका सेवन करना आसान है और इसे कई रूपों में खाया जा सकता है. मेथी के बीज, दूध की आपूर्ति के लिए संघर्ष कर रहे नए माताओं के लिए एक आशीर्वाद रहा है. ब्रेस्टफीड को बढ़ाने के लिए मेथी के बीज का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण रहा है.

2. पालक: यह आयरन का एक उत्कृष्ट स्रोत है. आयरन ऊर्जा को बहाल करने और एनीमिया और कमजोरी से लड़ने में मदद करता है. किसी भी संक्रमण से बचने के लिए, खासकर मानसून के दौरान, पालक को सेवन से पहले अच्छी तरह से उबाला जाना चाहिए.

3. सौंफ: सौंफ या सौंफ के बीज फाइबर युक्त होने के अलावा, यह पोटेशियम, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन बी -6 और फाइटोन्यूट्रिएंट से भी भरा हुआ है.साथ ही इनमें ओस्ट्रोजेनिक गुण होते हैं. इसीलिए सौंफ भी नई माताओं में दुग्ध उत्पादन में मदद करते हैं.

4. लौकी: यह सब्जी ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिला को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखने में मदद करती है. लौकी पानी से भरा है, जो आपके शरीर को हाइड्रेटेड रखता है. साथ ही विटामिन सी, ए और के का एक समृद्ध स्रोत भी है और सोडियम, कैल्शियम, आयरन, जिंक और मैग्नीशियम जैसे आवश्यक खनिजों में भी समृद्ध है. इसीलिए लौकी का सेवन भी नई माताओं में दुग्ध उत्पादन करने में मदद करते हैं.

5. नट्स: ये सेरोटोनिन का एक उत्कृष्ट स्रोत हैं, जो लैक्टेशन को बढ़ाने में मदद करता है. साथ ही ये विटामिन और स्वस्थ ओमेगा- 3 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं. ब्रेस्टफीडिंग के एक सत्र के बाद मुट्ठी भर काजू और बादाम को मिलाकर उसे बारीकी से पीसकर एक पाउडर बनाएं और स्मूदी और फ्रूट जूस में मिलाकर इसका सेवन करें.

6. लहसुन: यह ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए सबसे अच्छा खाद्य पदार्थों में से एक है. आहार में एक नया स्वाद प्रदान करने के अलावा, यह एक उत्कृष्ट पाचन के रूप में भी कार्य करता है.

लगभग 88% ब्रेस्टमिल्क पानी से बना होता है, एक ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां के लिए ज़रूरी है कि वह खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें. ब्रेस्टफीडिंग कराने के दौरान नई माताओं को बहुत अधिक भूख और प्यास लगना स्वाभाविक है. ऐसे कई युवा माताओं को इन समान चुनौतियों से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा होंगा. ऐसे में, इन सभी खाद्य पदार्थों का बारी-बारी से सेवन करते रहें और मातृत्व का आनंद उठाते रहें.

डौ. रीता बक्शी, स्त्री रोग विशेषज्ञ व आईवीएफ एक्सपर्ट, इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर

जानिए क्यों बच्चे के लिए जरुरी है मां का दूध

ब्रेस्टफीडिंग कराने की सलाह डौक्टर प्रत्येक महिला को देते हैं चाहे वे किसी भी धर्म और संस्कृति की क्यों न हों. ब्रेस्टफीडिंग से शिशु और मां दोनों को बहुत-से लाभ होते हैं. ब्रेस्टफीडिंग कराने के कई लाभों के बावजूद, ब्रेस्टफीडिंग संस्कृति धीरे-धीरे कम हो रही है और बोतल-फीडिंग संस्कृति द्वारा इसे खत्म किया जा रहा है. यह निम्नलिखित तरीकों से बच्चे को लाभान्वित करता है –

1. डाइजेशन के लिए है बेस्ट

कोलोस्ट्रम यानी दूध, जो ब्रेस्ट, शुरुआती दिनों में बनाते हैं, वे बच्चे के पाचनतंत्र को विकसित करने और उसके अनेक क्रिया-कलाप करने में सहायता करता है. यह भी देखा जाता है कि ब्रेस्टफीडिंग करने वाले शिशुओं को बोतल से दूध पिलाने वाले शिशुओं की तुलना में कम कब्ज और पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं.

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2. बेबी रहता है बीमारियों से दूर

ब्रेस्ट के दूध में मौजूद एंटी-बायोटिक बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता अर्थात बिमारी से लड़ने की क्षमता के निर्माण में मदद करता है जिससे बच्चे को संक्रमण, दस्त, अस्थमा, मोटापा, एलर्जी आदि होने का खतरा कम हो जाता है.

3. बेबी के विकास में करता है मदद

यह बच्चे के मस्तिष्क के प्रारंभिक विकास में भी मदद करता है. हालांकि, संज्ञानात्मक कौशल और इसके बाद के प्रभाव के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता.

4. SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम) का शिकार होने से बचते हैं बेबी

जिन शिशुओं को ब्रेस्टफीडिंग करवाई जाती है, उनमें SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम) का शिकार होने की कम संभावना रहती है. SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम), एक ऐसी स्थिति है जिसमें शिशु के पीड़ित होने के कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है लेकिन बिस्तर पर रखे जाने के बाद मृत पाया जाता है.

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इसके अतिरिक्त, ब्रेस्टफीडिंग कराने से मां को भी होता है लाभ –

5. बेबी के साथ गहरा होता है रिलेशन

यह मां और बच्चे के बीच एक अद्वितीय भावनात्मक बंधन बनाने में मदद करता है और प्रसव के बाद के अवसाद की घटनाओं को भी रोकता है. यह आपके ब्रेस्ट में हमेशा उपलब्ध है और बोतल के दूध की तुलना में सस्ता भी है और पोषक तत्वों से भरपूर है.

6. डिलीवरी के बाद कम होती है ब्लीडिंग

ब्रेस्ट का दूध औक्सीटोसिन नामक एक हार्मोन भी छोड़ता है जो गर्भाशय को सिकोड़ने में मदद करता है और अपनी पिछली स्थिति में तेजी से वापस लौटता है. इसके अतिरिक्त यह प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव को कम करने में भी मदद करता है.

7. मां भी बची रहती हैं बीमारियों से  

बढे हुए वजन को भी तेजी से कम करने में मदद करता है. यह गर्भाशय और डिम्बग्रंथि के कैंसर के साथ-साथ ब्रेस्ट कैंसर के विकास के जोखिम को भी कम करता है.

डॉ. रीता बक्शी, स्त्री रोग विशेषज्ञ व आईवीएफ एक्सपर्ट, इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर से की गई बातचीत पर आधारित

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