प्यार : संजय को क्यों हो गया था कस्तूरी से प्यार

‘‘अरे संजय… चल यार, आज मजा करेंगे,’’ बार से बाहर निकलते समय उमेश संजय से बोला. दिनेश भी उन के साथ था.

संजय ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही बहुत ज्यादा शराब पी ली है और अब मैं इस हालत में नहीं हूं कि कहीं जा सकूं.’’

उमेश और दिनेश ने संजय की बात नहीं सुनी और उसे पकड़ कर जबरदस्ती कार में बिठाया और एक होटल में जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उमेश और दिनेश ने एक कमरा ले लिया. उन दोनों ने पहले ही फोन पर इंतजाम कर लिया था, तो होटल का एक मुलाजिम उन के कमरे में एक लड़की को लाया.

उमेश ने उस मुलाजिम को पैसे दिए. वह लड़की को वहीं छोड़ कर चला गया.

वह एक साधारण लड़की थी. लगता था कि वह पहली बार इस तरह का काम कर रही थी, क्योंकि उस के चेहरे पर घबराहट के भाव थे. उस के कपड़े भी साधारण थे और कई जगह से फटे हुए थे.

संजय उस लड़की के चेहरे को एकटक देख रहा था. उसे उस में मासूमियत और घबराहट के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे, जबकि उमेश और दिनेश उस को केवल हवस की नजर से देखे जा रहे थे.

तभी उमेश लड़खड़ाता हुआ उठा और उस ने दिनेश व संजय को बाहर जाने के लिए कहा. वे दोनों बाहर आ गए.

अब कमरे में केवल वह लड़की और उमेश थे. उमेश ने अंदर से कमरा बंद कर लिया. संजय को यह सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उमेश और दिनेश ने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी कि उन्हें होश ही न था कि वे क्या कर रहे हैं.

काफी देर हो गई, तो संजय ने दिनेश को कमरे में जा कर देखने को कहा.

दिनेश शराब के नशे में चूर था. लड़खड़ाता हुआ कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर उसे खटखटाने लगा. काफी देर बाद लड़की ने दरवाजा खोला.

उस लड़की ने दिनेश से कहा कि उस का दोस्त सो गया है, उसे उठा लो. नशे की हालत में चूर दिनेश उस लड़की की बात सुनने के बजाय पकड़ कर उसे अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया.

संजय दूर बरामदे में बैठा यह सब देख रहा था. दिनेश को भी कमरे में गए काफी देर हो गई, तो संजय ने दरवाजा खड़काया.

इस बार भी उसी लड़की ने दरवाजा खोला. वह अब परेशान दिख रही थी. उस ने संजय की तरफ देखा और कहा, ‘‘ बाबू, ये लोग कुछ कर भी नहीं कर रहे और मेरा पैसा भी नहीं दे रहे हैं.

मुझे पैसे की जरूरत है और जल्दी घर भी जाना है,’’ कहते हुए उस लड़की का गला बैठ सा गया.

संजय ने लड़की को अंदर चलने को कहा और थोड़ी देर में उसे उसी होटल के दूसरे कमरे में ले गया. उस ने जाते हुए देखा कि उमेश और दिनेश शराब में चूर बिस्तर पर पड़े थे.

संजय ने दूसरे कमरे में उस लड़की को बैठने को कहा. लड़की घबराते हुए बैठ गई. वह थोड़ा जल्दी में लग रही थी. संजय ने उसे पास रखा पानी पीने को दिया, जिसे वह एक सांस में ही पी गई.

पानी पीने के बाद वह लड़की खड़ी हुई और संजय से बोली, ‘‘बाबू, अब जो करना है जल्दी करो, मुझे पैसे ले कर जल्दी घर पहुंचना है.’’

संजय को उस की मासूम बातों पर हंसी आ रही थी. उस ने उसे पैसे दे दिए तो उस ने पैसे रख लिए और संजय को पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और अपने कपड़े उतारने लगी.

संजय ने उस का हाथ पकड़ा और कपड़े खोलने को मना किया. लड़की बोली, ‘‘नहीं बाबू, कस्तूरी ऐसी लड़की नहीं है, जो बिना काम के किसी से भी पैसे ले ले. मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन भीख नहीं लूंगी.’’

संजय अब बोल नहीं पा रहा था. तभी कस्तूरी ने संजय का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर ले गई, यह सब इतना जल्दी में हुआ कि संजय कुछ कर नहीं पाया.

कस्तूरी ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और संजय के भी कपड़े उतारने लगी. अब कस्तूरी संजय के इतने नजदीक थी कि उस के मासूम चेहरे को वह बड़े प्यार से देख रहा था. वह कस्तूरी की किसी बात का विरोध नहीं कर पा रहा था. उस के मासूम हावभाव व चेहरे से संजय की नजर हटती, तब तक कस्तूरी वह सब कर चुकी थी, जो पतिपत्नी करते हैं.

कस्तूरी ने जल्दी से कपड़े पहने और होटल के कमरे से बाहर निकल गई. संजय अभी भी कस्तूरी के खयालों में खोया हुआ था.

समय बीतता गया, लेकिन संजय के दिमाग से कस्तूरी निकल नहीं पा रही थी.

एक दिन संजय बाजार में सामान खरीद रहा था. उस ने देखा कि कस्तूरी भी उस के पास की ही एक दुकान से सामान खरीद रही थी.

संजय उस को देख कर खुश हुआ. उस ने कस्तूरी को आवाज दी तो कस्तूरी ने मुड़ कर देखा और फिर दुकानदार से सामान लेने में जुट गई.

संजय उस के पास पहुंचा. कस्तूरी ने संजय की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. कस्तूरी ने सामान खरीदा और दुकान से बाहर निकल गई.

संजय उसे पीछे से आवाज देता रहा, लेकिन उस ने अनसुना कर दिया.

कुछ दिन बाद संजय को कस्तूरी फिर दिखाई दी. उस दिन संजय ने कस्तूरी का हाथ पकड़ा और उसे भीड़ से दूर खींच कर ले गया और उस से उस की पिछली बार की हरकत के बारे में पूछना चाहा, तो संजय के पैरों की जमीन खिसक गई. उस ने देखा, कस्तूरी का चेहरा पीला पड़ चुका था और वह बहुत कमजोर हो गई थी. उस ने अपनी फटी चुनरी से अपना पेट छिपा रखा था, जो कुछ बाहर दिख रहा था.

कस्तूरी वहां से जाने के लिए संजय से जोरआजमाइश कर रही थी. संजय ने किसी तरह उसे शांत किया और भीड़ से दूर एक चाय की दुकान पर बिठाया.

संजय ने गौर से कस्तूरी के चेहरे की तरफ देखा, तो उस का दिल बैठ गया. कस्तूरी सचमुच बहुत कमजोर थी. संजय ने कस्तूरी से उस की इस हालत के बारे में पूछा, तो पहले तो कुछ नहीं बोली, लेकिन संजय ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह रोने लगी.

संजय कुछ समझ नहीं पा रहा था. कस्तूरी ने अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘बाबू, मेरी यह हालत उसी दिन से है, जिस दिन आप और आप के दोस्त मुझे होटल में मिले थे.’’

संजय ने उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा, तो वह फिर बोली, ‘‘बाबू, मैं कोई धंधेवाली नहीं हूं. मैं उस गंदे नाले के पास वाली कच्ची झोंपड़पट्टी में रहती हूं. उस दिन पुलिस मेरे भाई को पकड़ कर ले गई थी, क्योंकि वह गली में चरसगांजा बेच रहा था. उसे जमानत पर छुड़ाना था और मेरे मांबाप के पास पैसा नहीं था. अब मुझे ही कुछ करना था.

‘‘मैं ने अपने पड़ोस में सब से पैसा मांगा, लेकिन किसी ने नहीं दिया. थकहार कर मैं बैठ गई तो मेरी एक मौसी बोली कि इस बेरहम जमाने में कोई मुफ्त में पैसा नहीं देता.

‘‘मौसी की यह बात मेरी समझ में आई और मैं आप और आप के दोस्तों तक पहुंच गई.’’

कस्तूरी चुप हुई, तो संजय ने अपने चेहरे के दर्द को छिपाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’’

कस्तूरी ने कहा, ‘‘बाबू, यह जान कर आप क्या करोगे? यह तो मेरी किस्मत है.’’

संजय ने फिर जोर दिया, तो कस्तूरी बोली, ‘‘बाबू, उस दिन आप के दिए गए पैसे से मैं अपने भाई को हवालात से छुड़ा लाई, तो भाई ने पूछा कि पैसे कहां से आए. मैं ने झूठ बोल दिया कि किसी से उधार लिए हैं.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर बोली, ‘‘बाबू, सब ने पैसा देखा, लेकिन मैं ने जो जिस्म बेच कर एक जान को अपने शरीर में आने दिया, तो उसे सब नाजायज कहने लगे और जिस भाई को मैं ने बचाया था, वह मुझे धंधेवाली कहने लगा और मुझे मारने लगा. वह मुझे रोज ही मारता है.’’

यह सुन कर संजय के कलेजे का खून सूख गया. इस सब के लिए वह खुद को भी कुसूरवार मानने लगा. उस की आंखों में भी आंसू छलक आए थे.

कस्तूरी ने यह देखा तो वह बोली, ‘‘बाबू, इस में आप का कोई कुसूर नहीं है. अगर मैं उस रात आप को जिस्म नहीं बेचती तो किसी और को बेचती. लेकिन बाबू, उस दिन के बाद से मैं ने अपना जिस्म किसी को नहीं बेचा,’’ यह कहते हुए वह चुप हुई और कुछ सोच कर बोली, ‘‘बाबू, उस रात आप के अच्छे बरताव को देख कर मैं ने फैसला किया था कि मैं आप की इस प्यार की निशानी को दुनिया में लाऊंगी और उसी के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी, क्योंकि हम जैसी गरीब लड़कियों को कहां कोई प्यार करने वाला जीवनसाथी मिलता है.’’

इतना कह कर कस्तूरी का गला भर आया. वह आगे बोली, ‘‘बाबू, यह आप की निशानी है और मैं इसे दुनिया में लाऊंगी, चाहे इस के लिए मुझे मरना ही क्यों न पड़े,’’ इतना कह कर वह तेजी से उठी और अपने घर की तरफ चल दी.

यह सुन कर संजय जैसे जम गया था. वह कह कर भी कुछ नहीं कह पाया. उस ने फैसला किया कि कल वह कस्तूरी के घर जा कर उस से शादी की बात करेगा.

वह रात संजय को लंबी लग रही थी. सुबह संजय जल्दी उठा और बदहवास सा कस्तूरी के घर की तरफ चल दिया. वह उस के महल्ले के पास पहुंचा तो एक जगह बहुत भीड़ जमा थी. वह किसी अनहोनी के डर को दिल में लिए भीड़ को चीर कर पहुंचा, तो उस ने जो देखा तो जैसे उस का दिल बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो.

कस्तूरी जमीन पर पड़ी थी. उस की आंखें खुली थीं और चेहरे पर वही मासूम मुसकराहट थी.

संजय ने जल्दी से पूछा कि क्या हुआ है तो किसी ने बताया कि कस्तूरी के भाई ने उसे चाकू से मार दिया है, क्योंकि सब कस्तूरी के पेट में पल रहे बच्चे की वजह से उसे बेइज्जत करते थे.

संजय पीछे हटने लगा, अब उसे लगने लगा था कि वह गिर जाएगा. तभी पुलिस का सायरन बजने लगा तो भीड़ छंटने लगी.

संजय पीछे हटते हुए कस्तूरी को देख रहा था. उस का एक हाथ अपने पेट पर था और शायद वह अपने प्यार को मरते हुए भी बचाना चाहती थी. उस के चेहरे पर मुसकराहट ऐसी थी, जैसे उन खुली आंखों से संजय को कहना चाहती हो, ‘बाबू, यह तुम्हारे प्यार की निशानी है, पर इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है.’

संजय पीछे मुड़ा और अपने घर पहुंच कर रोने लगा. वह अपनेआप को माफ नहीं कर पा रहा था, क्योंकि अगर वह कल ही उस से शादी की बात कर लेता तो शायद कस्तूरी जिंदा होती.

बारिश होने लगी थी. बादल जोर से गरज रहे थे. वे भी कस्तूरी के प्यार के लिए रो रहे थे.

शक का संक्रमण: आखिर किस वजह से दूर हो गए कृति और वैभव

‘‘मैं मैं इस घर में एक भी दिन नहीं रह सकती. मुझे बस तलाक चाहिए,’’ कृति के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वकील ने मौन साध लिया.

जवाब न सुन कृति का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘आप बोल क्यों नहीं रहे वकील साहब? देखिए मुझे नहीं पता कि कोरोना की क्या गाइडलाइंस हैं. आप ने कहा था कि 1 महीना पूरा होते ही मेरी अर्जी पर कोर्ट फैसला दे देगा,’’ कृति के चेहरे पर परेशानी उभर आई.

‘‘देखिए कृतिजी. कोर्ट बंद हैं और अभी खुलने के आसार भी नहीं तो केस की सुनवाई तो अभी नहीं हो सकती और मैं जज नहीं जो डिसीजन दे कर आप के तलाक को मंजूर कर दूं,’’ वकील ने समझते हुए कहा.

‘‘पर मैं यहां से जाना चाहती हूं. 1 महीने के चक्कर में फंस गई हूं मैं. मुझ से उस आदमी की शक्ल नहीं देखी जा रही जिस ने मुझे धोखा दिया. मैं नहीं रह सकती वैभव के साथ.’’

कृति के शब्दों की झंझलाहट और मन में छिपे दर्द को वकील ने साफ महसूस किया. 2 पल की खामोशी के बाद वह फिर बोला, ‘‘आप अपनी मां के घर चली जाएं.’’

‘‘अरे नहीं जा सकती. इस इलाके को कारोना जोन घोषित कर दिया है. यहां से निकली तो 40 दिन के लिए क्वारंटीन कर दी जाऊंगी,’’ कृति ने हांफते हुए कहा.

‘‘तो बताओ मैं क्या कर सकता हूं?’’ वकील ने कहा.

‘‘आप बस इतना करें कि इस लौकडाउन के बाद मुझे तलाक दिला दें,’’ और कृति ने फोन काट दिया. फिर किचन की ओर मुड़ गई. उस के गले में हलका दर्द था और सिर भारी हो रहा था. एक कप चाय बनाने के लिए जैसे ही उस ने किचन के दरवाजे पर कदम रखा वैभव को अंदर देख कृति के सिर पर गुस्से का बादल जैसे फट पड़ा. पैर पटकते वापस बैडरूम में आ कर लेट गई.

छत पर घूमते पंखे के साथ पिछली यादें उस की आंखों के सामने तैरने लगीं…

दीयाबाती के नाम से मशहूर वैभव और कृति अपने कालेज की सब से हाट जोड़ी थी. दोनों के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर न जाने कितने दिल जल कर खाक हुए जाते थे.

कृति के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए वैभव रोज नए ट्रिक्स अपनाता. दोनों की दीवानगी कोई वक्ती न थी. अपने कैरियर के मुकाम पर पहुंच वैभव और कृति परिवार की रजामंदी से विवाह के बंधन में बंध गए.

सबकुछ बेहद खूबसूरत चल रहा था लेकिन वह एक शाम दोनों की जिंदगी में बिजली बन कर कौंध गई. प्रेम की मजबूत दीवार पर शक के हथौड़े का वार गहरा पड़ा. वैभव ने लाख सफाई दी कि उस का मेघना के साथ सिर्फ मित्रता का संबंध है लेकिन शक की आग में जलती कृति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. 15 दिन बाद दोनों की शादी को 2 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन कृति उस से पहले ही वैभव से तलाक चाहती थी. कोर्ट ने एक बार दोबारा विचार करने के लिए दोनों को कुछ समय साथ रहने का फैसला सुनाया था.

वैभव के लाख प्रयासों के बाद भी कृति का मन नहीं बदला बल्कि वैभव की हर कोशिश उसे सफाई नजर आती. नफरत और गुस्से से वह वैभव को शब्दबाणों से घायल करती रहती. वैभव का संयम अभी टूटा नहीं था इसलिए उस ने मौन ओढ़ लिया. केस की अगली सुनवाई तक दोनों को साथ ही रहना था इसलिए मजबूरन कृति वैभव को बरदाश्त कर रही थी.

समय बीत रहा था लेकिन अचानक आए कोरोना के वायरस ने जिंदगी की रफ्तार को जैसे थाम लिया. लौकडाउन लग चुका था. चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था. कृति अपने मायके जाना चाहती थी लेकिन उन की सोसायटी सील कर दी गई थी क्योंकि उस में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे थे. मन मार कर एक ही छत के नीचे रहती कृति अंदर ही अंदर घुल रही थी.

कृति अपने खयालों में खोई कमरे में चहलकदमी कर रही थी कि ऐंबुलैंस की तेज आवाज से उस का ध्यान भटका. वह भाग कर बालकनी की ओर भागी. सामने वाली बिल्डिंग

के नीचे ऐंबुलैंस खड़ी थी. उस के आसपास पीपीई किट पहने 4 लोग खड़े थे. कृति ने ध्यान दिया तो उसे सामने वाली बिल्डिंग के 4 नंबर फ्लैट की बालकनी में सुधा आंटी रोती नजर आई. ऐंबुलैंस के अंदर एक बौडी को डाला जा रहा था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस सायरन बजाते निकल गई. सुधा आंटी के रोने की आवाज अब साफ नजर आ रही थीं.

ऐंबुलैंस में उन के एकलौते बेटे रजत को ले जाया गया था.

‘‘रजत नहीं रहा,’’ बगल की बालकनी में मुंह लपेटे पारुल खड़ी थी. उस की बात सुन कर कृति का दिल धक से रह गया.

‘‘क्या बोल रही हो पारुल. यार एक ही बेटा था आंटी का… कोई नहीं है उन के पास तो… कैसे बरदाश्त करेंगी वे यह दुख,’’ कृति दुखी स्वर में बोली.

‘‘कारोना जाने कितनों को अपने साथ ले जाएगा. तुम ने मास्क नहीं पहना और तुम बाहर खड़ी हो. इतनी लापरवाही ठीक नहीं कृति,’’

कह कर पारुल अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. घबराई कृति कमरे में आ कर अपने चेहरे और हाथों को साबुन से रगड़ने लगी. सुधा आंटी का विलाप चारों तरफ फैले सन्नाटे में डर पैदा कर रहा था. कृति अपने कमरे को सैनिटाइज कर बिस्तर पर लेट गई. सिर में दर्द और गले की खराश मन में भय की तरंगें बनाने लगी. नाक से बहता पानी मस्तिष्क को बारबार झंझड़ रहा था. लेकिन आंटी और रजत के बारे में सोचतेसोचते उसे गहरी नींद आ गई.

कृति को कमरे से बाहर न निकलते देख वैभव को चिंता हो रही थी. कृति कभी इतनी देर नहीं सोती. रात के 8 बज रहे थे और कृति 4 बजे से कमरे के अंदर थी. रजत के जाने का दुख वैभव को अंदर तक हिला गया. उस पर कृति का कमरे में बंद होना वैभव के मन में हजार आशंकाओं को जन्म दे रहा था. घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी. 9 बज चुके थे. अब वैभव उस के कमरे के दरवाजे के पर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘कृति, तुम ठीक हो न? कृतिकृति,’’ दरवाजे को थपथपा कर वह बोला. लेकिन कृति की कोई आवाज नहीं आई. वैभव ने दरवाजे को हलके से धकेला तो कृति को बिस्तर पर बेसुध पाया. उस ने करीब जा कर उस के माथे को छूआ माथा तप रहा था.

‘‘कृतिकृति उठो आंखें खोलो,’’ वैभव उसे झंझड़ कर बोला.

कृति ने अपनी आंखें खोलने की कोशिश की लेकिन खोल नहीं पाई. वैभव तुरंत अपना मास्क चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी का कटोरा ले कर उस के सिरहाने बैठ गया. ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रख उस की हथेलियां रगड़ने लगा.

कृति को कुछ होश आया. आंखें खोलीं तो वैभव सामने था. कृति की आंखें लाल थीं. वैभव उसे होश में आया देख तुरंत पैरासिटामोल ले आया और सहारा दे कर दवा उस के मुंह में डाल दी.

कृति को अपना शरीर बिलकुल निष्क्रिय लग रहा था. वह उठ नहीं पा रही थी.

कोरोना उस के शरीर को जकड़ चुका था लेकिन वैभव उस के करीब खड़ा था. यह देख कृति बोली, ‘‘तुम दूर रहो वैभव, मुझे कारोना… तुम भी बीमार हो जाओ,’’ और फिर खांसने लगी. उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई.

‘‘तुम शांत रहो. मुझे कुछ नहीं होगा. मैं ने मास्क और दस्ताने पहने हैं और तुम्हें बस वायरल बुखार है कारोना नहीं. घबराओ नहीं. मैं चाय लाता हूं,’’ कह वैभव रसोई में चला गया. थोड़ी देर में चाय और स्टीमर उस के साथ था. कृति को चाय दे कर वैभव ने स्टीमर का प्लग लगाया और उसे गरम करने लगा. कृति चाय पी कर स्टीम लेने लगी. वैभव वहीं खड़ा था.

‘‘तुम जाओ बीमार हो जाओगे. जाओ प्लीज,’’ कृति ने जोर दे कर कहा.

‘‘मैं ठीक हूं. सुबह कोरोना का टैस्ट होगा हमारा. तुम रिलैक्स रहना कृति,’’ वैभव उसे समझते हुए बोला.

कृति ने हां में सिर हिलाया. थोड़ी देर में वह फिर सो गई. कोरोना के लक्षण अभी इतने नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन वैभव डर गया. कृति के मायके फोन कर खबर देने के बाद वैभव ने सारे घर को सैनिटाइज किया. चाय का कप ले कर कृति के कमरे के बाहर ही बैठ गया.

कृति बीचबीच में खांस रही थी और बेचैनी से अपने सीने को रगड़ रही थी. अस्पताल ले जाना खतरनाक था क्योंकि अस्पताल से आती मौत की खबरों ने दहशत फैला रखी थी. वैभव की आंखों में नींद नहीं थी. वह एकटक कृति को देख रहा था. कृति बारबार अपनी गरदन पर हाथ फेर रही थी. बाहर फैला सन्नाटा कोरोना के साथ मिल कर सब के दिलों से खेल रहा था जैसे.

‘‘पा… पानी,’’ कृति के होंठ बुदबुदाए.

वैभव ने भाग कर कुनकुना पानी ला कर कृति के होंठों से लगा दिया. लिटा कर टेम्प्रेचर लेता है. बुखार कुछ कम हुआ था, लेकिन अब भी 102 पर अटका था.

रात भी जाने कितनी लंबी थी जो सरक ही नहीं रही थी. वह कृति के कमरे के बाहर दरवाजे पर टेक लगाए बैठा था. बीचबीच में पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई देती.

सूरज अपने समय पर उगा. खिड़की से आती सूरज की रोशनी कृति के चेहरे पर पड़ने लगी तो वह जाग गई. शरीर में टूटन थी. सहारा

ले बिस्तर से उठ कर बाथरूम में घुस गई. वैभव दरवाजे के पास ही जमीन पर बेखबर सो रहा था. बाथरूम से बाहर आकर कृति की नजर जमीन पर लेटे वैभव पर पड़ी. वह कसमसा कर रह गई.

2 कदम चलने की हिम्मत भी कृति की नहीं हो रही थी. सांस लेने में तकलीफ होने लगी.वह वैभव को बुलाना चाहती थी लेकिन खांसी के तेज उफान से यह नहीं हो सका. उस के खांसने की आवाज से वैभव की नींद टूट गई. वह हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि कृति बिस्तर पर सिकुड़ कर लेटी हुई है. वह अपना मास्क ठीक करता है और उस के पास जा कर उसे सीधा करता है. कृति गले में रुकावट का इशारा करती है. वैभव कुनकुना पानी उस के गले में उतार देता है. कृति को कुछ राहत महसूस होती है.

वैभव की घबराहट कृति के लिए बढ़ती जा रही थी. वह लगातार व्हाट्सऐप पर औक्सीजन सिलैंडर के इंतजाम के लिए मैसेज कर रहा था. औक्सीमीटर और्डर कर वैभव कोरोना हैल्पलाइन सैंटर में कौल कर कृति की स्थिति बताई. वहां से वैभव को कुछ निर्देश मिले. कोरोना टैस्ट के लिए पीपीई किट पहने 2 लोग आए और उन के सैंपल ले गए. मौत का भय कैसे मस्तिष्क को शून्य कर देता है यह वैभव और कृति महसूस कर रहे थे.

बिस्तर पर पड़ी कृति वैभव की उस के लिए चिंता साफ महसूस कर रही थी. प्यार जो स्याहीचूस की तरह कहीं सारी भावनाओं को चूस रहा था एक बार फिर वापस तरल होने लगा.

घर के काम और कृति की देखभाल में वैभव भूल गया था कि कृति उस के साथ बस कुछ दिनों के लिए है. औक्सीमीटर से रोज औक्सीजन नापने से ले कर कृति को नहलाने तक का काम वैभव कर रहा था और कृति उस के प्रेम को धीरेधीरे पी रही थी.

मन में अजीब सी ग्लानि महसूस कर कृति अकसर रो पड़ती. लेकिन वैभव के सामने सामान्य बनी रहती. कृति तकलीफ में थी. मन से भी और शरीर से भी. लेकिन उस के अपनों ने उस से दूरी ही रखी. शायद भय था कि कहीं

कृति उन से कोई मदद न मांग ले. वैभव कोरोना को ले कर औनलाइन सर्च करता रहता. कृति के इलाज के साथ सावधानी और उस की डाइट पर वैभव कोई लापरवाही नहीं करना चाहता था. दिन बीत रहे थे और कृति तेजी से रिकवर कर रही थी लेकिन कमजोरी इतनी थी कि वह खुद के काम करने में भी सक्षम महसूस नहीं कर रही थी. बालकनी में कुरसी पर बैठी कृति शहर के सन्नाटे को महसूस कर रही थी. आसपास के फ्लैट्स की बालकनियों के दरवाजे कस कर बंद पड़े थे शायद सब को उस का कोरोना पौजिटिव होना पता चल गया था. इंसानों के बीच आई यह दूरी कितनी पीड़ादायक थी.

कृति अपने खयालों में खोई थी कि रसोई से आती तेज आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. वह दीवार का सहारा ले कर कमरे से बाहर निकली. रसोई में वैभव अपना हाथ झटक रहा था. फर्श पर दूध का बरतन पड़ा था जिस में से भाप उठ रही थी. माजरा सम?ाते उसे देर न लगी.

कृति बेचैनी से चिल्लाई, ‘‘वैभव ठंडा पानी डालो हाथ पर… जल्दी करो वैभव.’’

‘‘ठीक है. लेकिन तुम जाओ आराम करो परेशान न हो,’’ वैभव ने फ्रिज खोलते हुए कहा.

‘‘मेरी चिंता न करो. मैं ठीक हूं. अपना हाथ दिखाओ,’’ वह चिल्लाई.

वैभव का हाथ लाल हो गया था.

‘‘क्या किया तुम ने यह क्या हाथ से बरतन उठा रहे थे? बरतन गरम है यह तो देख लेते?’’ कृति गुस्से से बोली.

‘‘मेरी चिंता मत करो. वैसे भी अकेले ही रहना है मुझे,’’ अपनी हथेली को कृति की हथेलियों से. छुड़ा कर वह बोला.

‘‘तो तुम क्यों चिंता कर रहे थे मेरी? रातदिन मेरे लिए दौड़ रहे थे… मेरे लिए अपनी नींद खो रहे थे… मरने देते मुझे,’’ कृति की आवाज में दर्द था.

‘‘प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूं,’’ वैभव न कहा.

‘‘तो क्यों नहीं मुझे रोक लेते?’’ सुबकते हुए कृति बोली.

‘‘मैं ने तो कभी तुम से दूर होने की कल्पना नहीं की. तुम ही मुझ से नफरत करती हो,’’ वैभव रसोई के फर्श पर बैठ गया.

‘‘नफरत. तुमतुम वह मेघना… मैं ने तुम्हें उस के साथ… तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया वैभव?’’ कृति तड़प उठी.

‘‘मैं तुम्हें धोखा देने की कल्पना भी नहीं कर सकता. उस रात मेघना को अस्थमा का अटैक आया था. मैं सिर्फ उसे गोद में उठा कर पार्किंग में कार में बैठा रहा था लेकिन तुमने सिर्फ यही देख मु?ा पर शक किया. मेघना को भी अपराधी बना दिया जबकि उस समय वह खतरे में थी,’’ वैभव एक सांस में बोल गया.

कृति खामोश हो नीचे बैठ गई. उस की आंखों से बहता पानी अपनी गलती का एहसास करा रहा था. वैभव उस के गालों पर आंसू देख परेशान हो गया.

‘‘तुम रो क्यों रही हो कृति? देखो अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं.

सांस लेने में दिक्कत हो जायेगी,’’ वैभव बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मुझे. इस कांरोना संक्रमण ने मेरे शक के संक्रमण को मार दिया है वैभव. मुझे माफ कर दो मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. तुम्हें किसी और के करीब देख मेरी चेतना शून्य हो गई थी. मैं जलन में गलती कर गई. तुम्हारा अपमान किया, तुम पर आरोप लगाए. मुझे माफ कर दो वैभव,’’ कृति हाथ जोड़ कर बिलखने लगी.

‘‘तुम्हारी आंखों में अपने लिए नफरत देख मैं कितना तड़पा हूं तुम नहीं समझ सकती. अब ऐसे रो कर मुझे और तड़पा रही हो. कैसे सोच लिया था तुम ने कि तुम्हारे बिना मैं जिंदा रह पाता. मर जाता मैं,’’ कह कर वैभव ने कृति को बांहों में भींच लिया. दोनों की आंखों से बहता पानी प्रेम के सागर को और गहरा करने लगा.

अगली तारीख पर अपना फैसला सुनाने के लिए कृति ने वैभव के सीने पर चुंबन अंकित कर दिया.

उजाले की ओर: क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

तुम्हारा जवाब नहीं: क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला पाया

अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’

‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.

‘‘क्या आप मुझे इशारे से यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि नीरज और कविता भाभी के बीच कोई चक्कर है?’’

‘‘मानसी, सच तो यह है कि मैं इस बारे में कुछ पक्का नहीं कह सकती. कविता के पति कपिल को इन के बीच के खुलेपन से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘तो आप साफसाफ यह क्यों नहीं कहतीं कि इन के बीच कोई गलत रिश्ता नहीं है?’’

‘‘स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स का आकर्षण नैसर्गिक है. यह देवरभाभी के पवित्र रिश्ते को भी दूषित कर सकता है. जल्द ही तुम्हारी कविता और कपिल से मुलाकात होगी. तब तुम खुद ही अंदाजा लगा लेना कि तुम्हारे साहब और उन की लाडली भाभी के बीच किस तरह के संबंध हैं.’’

‘‘यह बात मेरी समझ में आती है. थैंक यू भाभी,’’ मैं ने उन के गले से लग कर उन्हें धन्यवाद दिया और फिर उन्हें अच्छा सा नाश्ता कराने के काम में जुट गई.

पहले मैं अपने बारे में कुछ बता देती हूं. प्रकृति ने मुझे सुंदरता देने की कमी शायद जीने का भरपूर जोश व उत्साह दे कर पूरी की है. फिर होश संभालने के बाद 2 गुण मैं ने अपने अंदर खुद पैदा किए. पहला, मैं ने नए काम को सीखने में कभी आलस्य नहीं किया और दूसरा यह है कि मैं अपने मनोभाव संबंधित व्यक्ति को बताने में कभी देर नहीं लगाती हूं.

मेरा मानना है कि इस कारण रिश्तों में गलतफहमी पैदा होने की नौबत नहीं आती है. जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मेरे इन सिद्धांतों ने मेरा बहुत साथ दिया है. तभी वंदना भाभी की बातें सुनने के बावजूद कविता भाभी को ले कर मैं ने अपना मन साफ रखा था.

हम शिमला में सप्ताह भर का हनीमून मना कर कल ही तो वापस आए थे. मैं तो वहां से नीरज के प्रेम में पागल हो कर लौटी हूं. लोग कहते हैं कि ऐसा रंगीन समय जिंदगी में फिर कभी लौट कर नहीं आता. अत: मैं ने तय कर लिया कि इस मौजमस्ती को आजीवन अपने दांपत्य जीवन में जिंदा रखूंगी.

उसी दिन कपिल भैया ने नीरज को फोन कर के हमें अपने घर रात के खाने पर आने के लिए आमंत्रित किया था. वहां पहुंचने के आधे घंटे के अंदर ही मुझे एहसास हो गया कि इन तीनों के बीच दोस्ती के रिश्ते की जड़ें बड़ी मजबूत हैं. वे एकदूसरे की टांग खींचते हुए बातबात में ठहाके लगा रहे थे.

मुझे कपिल भैया का व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा. वे जोरू के गुलाम तो बिलकुल नहीं लगे पर कविता का जादू उन के भी सिर चढ़ कर बोलता था. मेरे मन में एकाएक यह भाव उठा कि यह इनसान मजबूत रिश्ता बनाने के लायक है. अत: मैं ने विदा लेने के समय भावुक हो कर उन से कह दिया, ‘‘मैं ने तो आप को आज से अपना बड़ा भाई बना लिया है. इस साल मैं आप को राखी बांधूंगी और आप से बढि़या सा गिफ्ट लूंगी.’’

‘‘श्योर,’’ मेरी बात सुन कर कपिल भैया के साथसाथ उन की मां की आंखें भी नम हो गई थीं. मुझे बाद में नीरज से पता चला कि उन की इकलौती छोटी बहन 8 साल की उम्र में दिमागी बुखार का शिकार हो चल बसी थी.

अगले दिन शाम को मैं ने फोन कर के नीरज से कहा कि वे कपिल भैया के साथ आफिस से सीधे कविता भाभी के घर आएं.

वे दोनों आफिस से लौटीं. कविता भाभी के पीछेपीछे घर में घुसे. यह देख कर उन सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं कि कविता भाभी का सारा घर जगमग कर रहा था. मैं ने कविता भाभी की सास के बहुत मना करने के बावजूद पूरा दिन मेहनत कर के सारे घर की सफाई कर दी थी.

कविता भाभी की सास खुले दिल से मेरी तारीफ करते हुए उन सब को बारबार बता रही थीं, ‘‘तेरी बहू का जवाब नहीं है, नीरज. कितनी कामकाजी और खुशमिजाज है यह लड़की.’’

‘‘तुम अभी नई दुलहन हो और वैसे भी ये सब तुम्हें नहीं करना चाहिए था,’’ कविता भाभी कुछ परेशान और चिढ़ी सी प्रतीत हो रही थीं.

‘‘भाभी, मेरे भैया का घर मेरा मायका हुआ और नई दुलहन के लिए अपने मायके में काम करने की कोई मनाही नहीं होती है. अपनी कामकाजी भाभी का घर संवारने में क्या मैं हाथ नहीं बंटा सकती हूं?’’ उन का दिल जीतने के लिए मैं खुल कर मुसकराई थी.

‘‘थैंक यू मानसी. मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर औपचारिक से अंदाज में मेरी पीठ थपथपा कर वे रसोई की तरफ चली गईं.

मुझे एहसास हुआ कि उन की नाराजगी दूर करने में मैं असफल रही हूं. लेकिन मैं भी आसानी से हार मानने वालों में नहीं हूं. उन्हें नाराजगी से मुक्त करने के लिए मैं उन के पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई.

‘‘आप को मेरा ये सब काम करना

अच्छा नहीं लगा न?’’ मैं ने उन से भावुक हो कर पूछा.

‘‘घर की साफसफाई हो जाना मुझे क्यों अच्छा नहीं लगेगा?’’ उन्होंने जबरदस्ती मुसकराते हुए मुझ से उलटा सवाल पूछा.

‘‘मुझे आप की आवाज में नापसंदगी के भाव महसूस हुए, तभी तो मैं ने यह सवाल पूछा. आप नाराज हैं तो मुझे डांट लें, पर अगर जल्दी से मुसकराएंगी नहीं तो मुझे रोना आ जाएगा,’’ मैं किसी छोटी बच्ची की तरह से मचल उठी थी.

‘‘किसी इनसान के लिए इतना संवेदनशील होना ठीक नहीं है, मानसी. वैसे मैं नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने इस बार प्यार से मेरा गाल थपथपा दिया तो मैं खुशी जाहिर करते हुए उन से लिपट गई.

उन्हें मुसकराता हुआ छोड़ कर मैं ड्राइंगरूम में लौट आई. वे जब तक चाय बना कर लाईं, तब तक मैं ने कपिल भैया और नीरज को अगले दिन रविवार को पिकनिक पर चलने के लिए राजी कर लिया था.

रविवार के दिन हम सुबह 10 बजे घर से निकल कर नेहरू गार्डन पहुंच गए. मैं बैडमिंटन अच्छा खेलती हूं. उस खूबसूरत पार्क में मेरे साथ खेलते हुए भाभी की सांसें जल्दी फूल गईं तो मैं उन के मन में जगह बनाने का यह मौका चूकी नहीं थी, ‘‘भाभी, आप अपना स्टैमिना बढ़ाने व शरीर को लचीला बनाने के लिए योगा करना शुरू करो,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों ने नीरज और कपिल भैया का ध्यान भी आकर्षित कर लिया था.

‘‘क्या तुम मुझे योगा सिखाओगी?’’ भाभी ने उत्साहित लहजे में पूछा.

‘‘बिलकुल सिखाऊंगी.’’

‘‘कब से?’’

‘‘अभी से पहली क्लास शुरू करते हैं,’’ उन्हें इनकार करने का मौका दिए बगैर मैं ने कपिल भैया व नीरज को भी चादर पर योगा सीखने के लिए बैठा लिया था.

‘‘मुझे योगा भी आता है और एरोबिक डांस करना भी. मेरी शक्लसूरत ज्यादा अच्छी  नहीं थी, इसलिए मैं ने सजनासंवरना सीखने पर कम और फिटनेस बढ़ाने पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया,’’ शरीर में गरमाहट लाने के लिए मैं ने उन्हें कुछ एक्सरसाइज करवानी शुरू कर दीं.

‘‘तुम अपने रंगरूप को ले कर इतना टची क्यों रहती हो, मानसी?’’ कविता भाभी की आवाज में हलकी चिढ़ के भाव शायद सब ने ही महसूस किए होंगे.

मैं ने भावुक हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं टची नहीं हूं, बल्कि उलटा अपने साधारण रंगरूप को अपने लिए वरदान मानती हूं. सच तो यही है कि सुंदर न होने के कारण ही मैं अपने व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास कर पाई हूं. वरना शायद सिर्फ सुंदर गुडि़या बन कर ही रह जाती… सौरी भाभी, आप यह बिलकुल मत समझना कि मेरा इशारा आप की तरफ है. आप को तो मैं अपनी आइडल मानती हूं. काश, कुदरत ने मुझे आप की आधी सुंदरता दे दी होती, तो मैं आज अपने पति के दिल की रानी बन कर रह रही होती.’’

‘‘अरे, मुझे क्यों बीच में घसीट लिया और कौन कहता है कि तुम मेरे दिल की रानी नहीं हो?’’ नीरज का हड़बड़ा कर चौंकना हम सब को जोर से हंसा गया.

‘‘वह तो मैं ने यों ही डायलौग मारा है,’’ और मैं ने आगे बढ़ कर सब के सामने ही उन का हाथ चूम लिया.

वह मेरी इस हरकत के कारण शरमा गए तो कपिल भैया ठहाका मार कर हंस पड़े. हंसी से बदले माहौल में भाभी भी अपनी चिढ़ भुला कर मुसकराने लगी थीं.

कविता भाभी योगा सीखते हुए भी मुझे ज्यादा सहज व दिल से खुश नजर नहीं आ रही थीं. सब का ध्यान मेरी तरफ है, यह देख कर शायद कविता भाभी का मूड उखड़ सा रहा था. उन के मन की शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने तब कुछ देर के लिए अपना सारा ध्यान भाभी की बातें सुनने में लगा दिया. उन्होंने एक बार अपने आफिस व वहां की सहेलियों की बातें सुनानी शुरू कीं तो सुनाती ही चली गईं.

जल्द ही मैं उन के साथ काम करने वाले सहयोेगियों के नाम व उन के व्यक्तित्व की खासीयत की इतनी सारी जानकारी अपने दिमाग में बैठा चुकी थी कि उन के साथ भविष्य में कभी भी आसानी से गपशप कर सकती थी.

‘‘आप के पास बातों को मजेदार ढंग से सुनाने की कला है. आप किसी भी पार्टी की रौनक बड़ी आसानी से बन जाती होंगी,

कविता भाभी,’’ मेरे मुंह से निकली अपनी इस तारीफ को सुन कर भाभी का चेहरा फूल सा खिल उठा था.

उस रात को नीरज ने जब मुझे मस्ती भरे मूड में आ कर प्यार करना शुरू किया तब मैं ने भावुक हो कर पूछा, ‘‘मैं ज्यादा सुंदर नहीं हूं, इस बात का तुम्हें कितना अफसोस है?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ वह मस्ती से डूबी आवाज में बोले.

‘‘अगर मैं भाभी से अपनी तुलना करती हूं तो मेरा मन उदास हो जाता है.’’

‘‘पर तुम उन से अपनी तुलना करती ही क्यों हो?’’

‘‘आप के दोस्त की पत्नी इतनी सुंदर और आप की इतनी साधारण. मैं ही क्या, सारी दुनिया ऐसी तुलना करती होगी. आप भी जरूर करते होंगे.’’

‘‘तुलना करूं तो भी उन के मुकाबले तुम्हें इक्कीस ही पाता हूं, यह बात तुम हमेशा के लिए याद रख लो, डार्लिंग.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मैं शादी से पहले सोचती थी कि कहीं मैं अपने साधारण रंगरूप के कारण अपने पति के मन न चढ़ सकी तो अपनी जान दे दूंगी.’’

‘‘वैसा करने की नौबत कभी नहीं आएगी, क्योंकि तुम सचमुच मेरे दिल की रानी हो.’’

‘‘आप अगर कभी बदले तो पता है क्या होगा?’’

‘‘क्या होगा?’’

मैं ने तकिया उठाया और उन पर पिल पड़ी, ‘‘मैं तकिए से पीटपीट कर तुम्हारी जान ले लूंगी.’’

वह पहले तो मेरी हरकत पर जोर से चौंके पर फिर मुझे खिलखिला कर हंसता देख उन्होंने भी फौरन दूसरा तकिया उठा लिया.

हमारे बीच तकियों से करीब 10 मिनट तक लड़ाई चली. बाद में हम दोनों अगलबगल लेट कर लड़ने के कारण कम और हंसने के कारण ज्यादा हांफ रहे थे.

‘‘आज तो तुम ने बचपन याद करा दिया, स्वीट हार्ट, यू आर ग्रेट,’’ उन्होंने बड़े प्यार से मेरी आंखों में झांकते हुए मेरी तारीफ की.

‘‘तुम्हें बचपन की याद आ रही है और मेरे ऊपर जवानी की मस्ती छा गई है,’’ यह कह कर मैं उन के चेहरे पर जगहजगह छोटेछोटे चुंबन अंकित करने लगी. उन्हें जबरदस्त यौन सुख देने के लिए मैं उन की दिलचस्पी व इच्छाओं का ध्यान रख कर चल रही हूं. अपना तो यही फंडा है कि एलर्ट हो कर संवेदनशीलता से जिओ और नएनए गुण सीखते चलो.

मेरी आजीवन यही कोशिश रहेगी कि मैं अपने व्यक्तित्व का विकास करती रहूं ताकि हमारे दांपत्य में ताजगी व नवीनता सदा बनी रहे. उन का ध्यान कभी इस तरफ जाए ही नहीं कि उन की जीवनसंगिनी की शक्लसूरत बहुत साधारण सी है.

वे होंठों पर मुसकराहट, दिल में खुशी व आंखों में गहरे प्रेम के भाव भर कर हमेशा यही कहते रहें, ‘‘मानसी, तुम्हारा जवाब नहीं.’’

हमसफर: रोहित ने ऐसा क्या किया कि वह मानसी को फिर से प्यारा लगने लगा?

औफिस बंद होने के बाद मानसी समीर के साथ लौंग ड्राइव पर निकली थी. हमेशा की तरह उस का साथ उसे बहुत सुकून दे रहा था.

मानसी मन ही मन सोच रही थी, ‘एक ही छत के नीचे सोने के बाद भी रोहित मुझे बेगाना सा लगता है. अगर मुझे जिंदादिल समीर का साथ न मिला होता, तो मेरी जिंदगी बिलकुल मशीनी अंदाज में आगे बढ़ रही होती.’

करीब घंटे भर की ड्राइव का आनंद लेने के बाद समीर ने चाय पीने के लिए एक ढाबे के सामने कार रोक दी. उन्हें पता नहीं लगा कि कार से उतरते ही वे रोहित के एक दोस्त कपिल की नजरों में आ गए हैं. कुछ देर सोचविचार कर कपिल ने रोहित को फोन कर बता दिया कि उस ने मानसी को शहर से दूर किसी के साथ एक ढाबे में चाय पीते हुए देखा है.

उस रात रोहित जल्दी घर लौट आया था. मानसी ने साफ महसूस किया कि वह रहरह कर उसे अजीब ढंग से घूर रहा है. मन में चोर होने के कारण उसे यह सोच कर डर लगने लगा कि कहीं रोहित को समीर के बारे में पता न चल गया हो. फिर जब वह रसोई से निबट कर ड्राइंगरूम में आई तो रोहित ने उसे उसी अजीब अंदाज में घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम मुझ से अब प्यार नहीं करती हो न?’’

‘‘यह कैसा सवाल पूछ रहे हो?’’ मानसी का मन और ज्यादा बेचैन हो उठा.

‘‘तुम मुझे देख कर आजकल प्यार से मुसकराती नहीं हो. कभी मेरे साथ लौंग ड्राइव पर जाने की जिद नहीं करती हो. औफिस से देर से आने पर झगड़ा नहीं करती हो. क्या ये सब बातें यह जाहिर नहीं करती हैं कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार नहीं बचा है?’’

मानसी ने हिम्मत कर के शिकायती लहजे में जवाब दिया, ‘‘आप के पास वक्त ही कहां है, मुझे कहीं घुमा लाने का? रही बात आप के औफिस से देर से आने पर झगड़ा करने की, तो वह मैं ने बहुत कर के देख लिया… बेकार घर का माहौल खराब करने से क्या फायदा?’’

‘‘अगर तुम जल्दी आने को दबाव डालती रहतीं तो शायद मेरी आदत बदल जाती. तुम साथ घूमने की जिद करती रहतीं तो कभी न कभी हम घूमने निकल ही जाते. मुझे तो आज ऐसा लग रहा है मानो तुम ने अपने मनबहलाव के लिए किसी प्रेमी को ढूंढ़ लिया है.’’

‘‘ये कैसी बेकार की बातें मुंह से निकाल रहे हो?’’ मानसी की धड़कनें तेज हो गई थीं.

‘‘तब मुझे बताओ कि मेरी पत्नी होने के नाते तुम ने अपना हक मांगना क्यों छोड़ दिया है?’’

‘‘मेरे मांगने से क्या होगा? तुम्हारे पास मुझे देने को वक्त ही कहां है?’’

‘‘मैं निकालूंगा तुम्हारे लिए वक्त पर

एक बात तुम अच्छी तरह से समझ लो, मानसी,’’ बेहद संजीदा नजर आ रहे रोहित ने हाथ बढ़ा कर अचानक उस का गला पकड़ लिया, ‘‘मैं तुम्हारे लिए ज्यादा वक्त नहीं निकाल पाता हूं पर मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो प्यार है, उस में कोई कमी नहीं है. अगर तुम ने मुझ से दूर जाने की बात भी सोची तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’

मानसी ने उस की आंखों में देखा तो वहां भावनाओं का ऐसा तेज तूफान नजर आया कि वह डर गई. तभी रोहित ने अचानक उसे झटके से गोद में उठाया तो उस के मुंह से चीख ही निकल गई.

उस रात रोहित ने बहुत रफ तरीके से उसे प्यार किया था. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह अपने भीतर दबे आक्रोश को बाहर निकालने के लिए प्रेम का सहारा ले रहा था.

मानसी उस रात बहुत दिनों के बाद रोहित से लिपट कर गहरी और तृप्ति भरी नींद सोई. उसे न समीर का ध्यान आया और न ही अपनी विवाहित जिंदगी से कोई शिकायत महसूस हुई थी.

अगले दिन मानसी औफिस पहुंची तो बहुत रिलैक्स और खुश नजर आ रही थी. रोहित के होंठों से बने उस की गरदन पर नजर आ रहे लाल निशान को देख कर उस की सहयोगी किरण और ममता ने उस का बहुत मजाक उड़ाया था.

लंच के बाद उस के पास समीर का फोन आया. उस ने उत्साहित लहजे में मानसी से पूछा, ‘‘आज शाम बरिस्ता में कौफी पीने चलोगी?’’

‘‘आज नहीं,’’ मानसी की आवाज में न चाहते हुए भी रूखापन पैदा हो गया.

कौफी पीने की शौकीन मानसी के मुंह से इनकार सुन कर समीर हैरान होता हुआ बोला, ‘‘मुझे लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक

नहीं है.’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक है.’’

‘‘तो फिर मुझे तुम्हारा मूड क्यों खराब लग रहा है?’’

‘‘मेरा मूड भी ठीक है.’’

‘‘तब साफसाफ बता दो कि मेरे साथ कौफी पीने चलने के लिए रूखे अंदाज में क्यों इनकार कर रही हो?’’

मानसी ने उसे सच बता देना ही उचित समझा और बोली, ‘‘मुझे लगता है कि रोहित को मेरे ऊपर शक हो गया है.’’

‘‘उस ने तुम से कुछ कहा है?’’

‘‘हां, कल रात पूछ रहे थे कि मैं कभी उन के साथ लौंग ड्राइव पर जाने की जिद क्यों नहीं करती हूं.’’

‘‘मुझे लग रहा है कि तुम बेकार ही उस के इस सवाल से डर रही हो. उस के पास तुम्हारी खुशियों, भावनाओं व इच्छाओं का ध्यान रखने की फुरसत ही कहां है.’’

‘‘फिर भी मुझे सावधान रहना होगा. वे बहुत गुस्से वाले इनसान होने के साथसाथ भावुक भी बहुत हैं. मैं तुम्हारे साथ बाहर घूमने जाती हूं, अगर उन्हें इस बात का पता लग गया तो मेरी जान ही ले लेंगे.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ ऐसा कह कर नाराज समीर ने झटके से फोन काट दिया था.

उस शाम रोहित उसे लेने औफिस आ गया था. उस की कार गेट से कुछ दूरी पर खड़ी थी. मानसी यह कल्पना कर के कांप गई कि अगर उस ने समीर के साथ घूमने जाने को ‘हां’ कर दी होती तो आज गजब हो जाता.

रोहित बहुत खुश लग रहा था. दोनों ने पहले कौफी पी, फिर बाजार में देर तक घूम कर विंडो शौपिंग की. उस के बाद रोहित ने उसे उस का पसंदीदा साउथ इंडियन खाना खिलाया.

घर लौटते हुए कार चला रहे रोहित ने अचानक उस से पूछा, ‘‘तुम पहले तो इतना कम नहीं बोलती थीं? क्या मेरे साथ बात करने को तुम्हारे पास कोई टौपिक नहीं है?’’

‘‘जब भी बोलती हूं, मैं ही बोलती हूं, जनाब,’’ मानसी ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘फिर भी मुझे लगता है कि तुम पहले की तरह मुझ से खुल कर बात नहीं करती हो?’’

‘‘इस वक्त मैं बहुत खुश हूं, इसलिए यह बेकार का टौपिक शुरू कर के मूड मत खराब करो. वैसे कम बोलने की बीमारी आप को है, मुझे नहीं.’’

‘‘तो आज मैं बोलूं?’’

‘‘बिलकुल बोलो,’’ मानसी उसे ध्यान से देखने लगी.

घर पहुंच कर रोहित ने कार रोकी पर उतरने की कोई जल्दी नहीं दिखाई. वह बहुत भावुक अंदाज में मानसी की आंखों में देखे जा रहा था. फिर उस ने संजीदा स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने बचपन में बहुत गरीबी देखी थी, मानसी. मेरे ऊपर दौलतमंद बनने का जो भूत आज भी सवार रहता है, उस के पीछे बचपन के मेरे वह कड़वे अनुभव हैं जब ढंग से 2 वक्त की रोटी भी हमें नहीं मिल पाती थी.’’

‘‘सच तो यह है कि उन कड़वे अनुभवों के कारण मेरे अंदर हमेशा हीन भावना बनी रहती है. मानसी, तुम बहुत सुंदर हो और तुम्हारा व्यक्तित्व मुझ से ज्यादा आकर्षक है. उस हीन भावना के कारण मेरे मन में न जाने यह भाव कैसे पैदा हो गया कि अगर मैं ने तुम्हारे बहुत ज्यादा नाजनखरे उठाए तो तुम मुझ पर हावी हो जाओगी. अपनी इस नासमझी के चलते मैं तुम से कम बोलता रहा.

‘‘कल रात मुझे अचानक यह एहसास हुआ कि कहीं मेरी इस नासमझी के कारण तुम मुझ से बहुत दूर चली गईं तो मैं बिखर कर पूरी तरह से टूट जाऊंगा. तुम मुझ से कभी दूर न जाना, मानसी.’’

‘‘मैं कभी आप से दूर नहीं जाऊंगी,’’ कह कर मानसी उस के हाथ को बारबार चूम कर रोने लगी तो रोहित की पलकें भी भीग उठीं.

अपनी आंखों से बह रहे आंसुओं के साथ मानसी ने मन में रोहित के प्रति भरी सारी शिकायतें बहा डालीं.

समीर ने 2 दिन बाद मानसी को लौंग ड्राइव पर चलने के लिए आमंत्रित किया पर मानसी तैयार नहीं हुई.

‘‘मैं रोहित को नाराज होने का कोई मौका नहीं देना चाहती हूं.’’ समीर के जोर देने पर उस ने साथ न चलने का कारण साफसाफ बता दिया.

‘‘और मेरे नाराज होने की तुम्हें कोई चिंता नहीं है?’’ समीर ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘पति को पत्नी के चरित्र पर किसी पुरुष से दोस्ती के कारण शक होता हो तो पत्नी को उस दोस्ती को तोड़ देना चाहिए.’’

‘‘तुम यह क्यों भूल रही हो कि इसी पति के रूखे व्यवहार के कारण तुम कुछ दिन पहले जब दुखी रहती थीं, तब मैं ही तुम्हें उस अकेलेपन के एहसास से नजात दिलाता था. आज वह जरा प्यार से बोल रहा है, तो तुम मुझे दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंकने को तैयार हो गई हो.’’

‘‘मुझे इस विषय पर तुम से कोई बात नहीं करनी है.’’

‘‘तुम ने मेरी भावनाओं से खेल कर पहले अपना मनोरंजन किया और अब सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो,’’ समीर उसे अपमानित करने पर उतारू हो गया.

‘‘मुझ से ऐसी टोन में बात करने का तुम्हें कोई हक नहीं है,’’ मानसी को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘और तुम्हें मेरी भावनाओं से खेल कर मेरा दिल दुखाने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘ओह, शटअप.’’

‘‘तुम मुझे शटअप कह रही हो?’’ समीर गुस्से से फट पड़ा, ‘‘अगर तुम नहीं चाहती हो कि रोहित की बुराई करने वाली तुम्हारी सारी मेल मैं उसे दिखा दूं, तो जरा तमीज से बात करो मुझ से, मैडम.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते हो,’’ उस की धमकी सुन कर मानसी

डर गई.

‘‘मैं ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहता हूं. तुम क्यों मुझ से झगड़ा कर रही हो? मैं तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहता हूं, मानसी,’’ समीर ने फिर से उस के साथ अपने संबंध सुधारने की कोशिश शुरू कर दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद मानसी ने आवेश भरे लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज तुम्हारा असली चेहरा देख कर मुझे तुम से नफरत हो रही है. तुम्हारी मीठी बातों में आ कर मैं ने तुम्हें अपना दोस्त और सच्चा शुभचिंतक माना, यह मेरी बहुत बड़ी गलतफहमी थी.’’

‘‘तुम्हारी धमकी से डर कर मैं तुम्हारी जिद के सामने झुकूंगी नहीं, समीर. तुम्हें जो करना है कर लो, पर आगे से तुम ने मुझ से किसी भी तरह से संपर्क करने की कोशिश की तो फिर रोहित ही तुम्हारी खबर लेने आएंगे.’’

समीर को कुछ कहने का मौका दिए बगैर मानसी ने फोन काट कर स्विच औफ कर दिया.

उस रात मानसी रोहित की छाती से लग कर बोली, ‘‘आप दिल के बहुत अच्छे हो. मैं बेवकूफ ही आप को समझ नहीं पाई. मुझे माफ कर दो.’’

‘‘और तुम मुझे मेरी नासमझियों के लिए माफ कर दो. अपने रूखे व्यवहार से मैं ने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है,’’ रोहित ने प्यार से उस का माथा चूम कर जवाब दिया.

‘‘मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं.’’

‘‘पर मुझे कुछ सुनना नहीं है, मानसी. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहा जाता. मैं तो बस इतना चाहता हूं कि आगे से हम अपने दिलों की बातें खुल कर एकदूसरे से कहें और सच्चे माने में एकदूसरे के हमसफर बनें.’’

मानसी भावविभोर हो रोहित की छाती से लग गई. उस ने समीर के बारे में कुछ भी सुनने से इनकार कर के उसे अपनी नजरों में गिरने से बचा लिया था. रोहित के प्यार, विश्वास व संवेदनशील व्यवहार के कारण उस का कद उस की नजरों में बहुत ऊंचा हो गया था.

ईस्टर्न डिलाइट: आखिर क्यों उड़े समीर के होश?

सीमा रविवार की सुबह देर तक सोना चाहती थी, लेकिन उस के दोनों बच्चों ने उस की यह इच्छा पूरी नहीं होने दी.

‘‘आज हम सब घूमने चल रहे हैं. मुझे तो याद ही नहीं आता कि हम सब ने छुट्टी का कोई दिन कब एकसाथ गुजारा था,’’ उस के बेटे समीर ने ऊंची आवाज में शिकायत की.

‘‘बच्चो, इतवार आराम करने के लिए बना है और…’’

‘‘और बच्चो, हमें घूमनेफिरने के लिए अपने मम्मी पापा को औफिस से छुट्टी दिलानी चाहिए,’’ शिखा ने अपने पिता राकेशजी की आवाज की बढि़या नकल उतारी तो तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘पापा, आप भी एक नंबर के आलसी हो. मम्मी और हम सब को घुमा कर लाने की पहल आप को ही करनी चाहिए. क्या आप को पता नहीं कि जिस परिवार के सदस्य मिल कर मनोरंजन में हिस्सा नहीं लेते, वह परिवार टूट कर बिखर भी सकता है,’’ समीर ने अपने पिता को यह चेतावनी मजाकिया लहजे में दी.

‘‘यार, तू जो कहना चाहता है, साफसाफ कह. हम में से कौन टूट कर परिवार से अलग हो रहा है?’’ राकेशजी ने माथे पर बल डाल कर सवाल किया.

‘‘मैं ने तो अपने कहे में वजन पैदा करने के लिए यों ही एक बात कही है. चलो, आज मैं आप को मम्मी से ज्यादा स्मार्ट ढंग से तैयार करवाता हूं,’’ समीर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन के शयनकक्ष की तरफ चल पड़ा.

सीमा को आकर्षक ढंग से तैयार करने में शिखा ने बहुत मेहनत की थी. समीर ने अपने पिता के पीछे पड़ कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से तैयार कराया मानो किसी दावत में जाने की तैयारी हो.

‘‘आज खूब जम रही है आप दोनों की जोड़ी,’’ शिखा ने उन्हें साथसाथ खड़ा देख कर कहा और फिर किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो कर तालियां बजाईं.

‘‘तुम्हारी मां तो सचमुच बहुत सुंदर लग रही है,’’ राकेशजी ने अपनी पत्नी की तरफ प्यार भरी नजरों से देखा.

‘‘अगर ढंग से कपड़े पहनना शुरू कर दो तो आप भी इतना ही जंचो. अब गले में मफलर मत लपेट लेना,’’ सीमा की इस टिप्पणी को सुन कर राकेशजी ही सब से ज्यादा जोर से हंसे थे.

कार में बैठने के बाद सीमा ने पूछा, ‘‘हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘पहले लंच होगा और फिर फिल्म देखने के बाद शौपिंग करेंगे,’’ समीर ने प्रसन्न लहजे में उन्हें जानकारी दी.

‘‘हम सागर रत्ना में चल रहे हैं न?’’ दक्षिण भारतीय खाने के शौकीन राकेशजी ने आंखों में चमक ला कर पूछा.

‘‘नो पापा, आज हम मम्मी की पसंद का चाइनीज खाने जा रहे हैं,’’ समीर ने अपनी मां की तरफ मुसकराते हुए देखा.

‘‘बहुत अच्छा, किस रेस्तरां में चल रहे हो?’’ सीमा एकदम से प्रसन्न हो गई.

‘‘नए रेस्तरां ईस्टर्न डिलाइट में.’’

‘‘वह तो बहुत दूर है,’’ सीमा झटके में उन्हें यह जानकारी दे तो गई, पर फौरन ही उसे यों मुंह खोलने का अफसोस भी हुआ.

‘‘तो क्या हुआ? मम्मी, आप को खुश रखने के लिए हम कितनी भी दूर चल सकते हैं.’’

‘‘तुम कब हो आईं इस रेस्तरां में?’’ राकेशजी ने उस से पूछा.

‘‘मेरे औफिस में कोई बता रहा था कि रेस्तरां अच्छा तो है, पर बहुत दूर भी है,’’ यों झूठ बोलते हुए सीमा के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

‘‘वहां खाना ज्यादा महंगा तो नहीं होगा?’’ राकेशजी का स्वर चिंता से भर उठा था.

‘‘पापा, हमारी खुशियों और मनोरंजन की खातिर आप खर्च करने से हमेशा बचते हैं, लेकिन अब यह नहीं चलेगा,’’ समीर ने अपने दिल की बात साफसाफ कह दी.

‘‘भैया ठीक कह रहे हैं. हम लोग साथसाथ कहीं घूमने जाते ही कहां हैं,’’ शिखा एकदम से भावुक हो उठी, ‘‘आप दोनों हफ्ते में 6 दिन औफिस जाते हो और हम कालेज. पर अब हम भाईबहन ने फैसला कर लिया है कि हर संडे हम सब इकट्ठे कहीं न कहीं घूमनेफिरने जरूर जाया करेंगे. अगर हम ने ऐसा करना नहीं शुरू किया तो एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी से हो जाएंगे.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम सब समझते क्यों नहीं हो कि यों बेकार की बातों पर ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है. अभी तुम दोनों की पढ़ाई बाकी है. फिर शादीब्याह भी होने हैं. इंसान को पैसा बचा कर रखना चाहिए,’’ राकेशजी ने कुछ नाराजगी भरे अंदाज में उन्हें समझाने की कोशिश की.

‘‘पापा, ज्यादा मन मार कर जीना भी ठीक नहीं है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, मम्मी?’’ समीर बोला.

‘‘ये बातें तुम्हारे पापा को कभी समझ में नहीं आएंगी और न ही वे अपनी कंजूसी की आदत बदलेंगे,’’ सीमा ने शिकायत की और फिर इस चर्चा में हिस्सा न लेने का भाव दर्शाने के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘प्यार से समझाने पर इंसान जरूर बदल जाता है, मौम. हम बदलेंगे पापा को,’’ समीर ने उन को आश्वस्त करना चाहा.

‘‘बस, आप हमारी हैल्प करती रहोगी तो देखना कितनी जल्दी हमारे घर का माहौल हंसीखुशी और मौजमस्ती से भर जाएगा,’’ शिखा भावुक हो कर अपनी मां की छाती से लग गई.

‘‘अरे, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं, जो तुम सब मुझे बदलने की बातें मेरे ही सामने कर रहे हो?’’ राकेशजी नाराज हो उठे.

‘‘पापा, आप घर में सब से बड़े हो पर अब हम छोटों की बातें आप को जरूर माननी पड़ेंगी. भैया और मैं चाहते हैं कि हमारे बीच प्यार का रिश्ता बहुतबहुत मजबूत हो जाए.’’

‘‘यह बात कुछकुछ मेरी समझ में आ रही है. मेरी गुडि़या, मुझे बता कि ऐसा करने के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

उन के इस सकारात्मक नजरिए को देख कर शिखा ने अपने पापा का हाथ प्यार से पकड़ कर चूम लिया.

इस पल के बाद सीमा तो कुछ चुपचुप सी रही पर वे तीनों खूब खुल कर हंसनेबोलने लगे थे. ईस्टर्न डिलाइट में समीर ने कोने की टेबल को बैठने के लिए चुना. अगर कोई वहां बैठी सीमा के चेहरे के भावों को पढ़ सकता, तो जरूर ही उस के मन की बेचैनी को भांप जाता.

वेटर के आने पर समीर ने सब के लिए और्डर दे दिया, ‘‘हम सब के लिए पहले चिकन कौर्न सूप ले आओ, फिर मंचूरियन और फिर फ्राइड राइस लाना. मम्मी, हैं न ये आप की पसंद की चीजें?’’

‘‘हांहां, तुम ने जो और्डर दे दिया, वह ठीक है,’’ सीमा ने परेशान से अंदाज में अपनी रजामंदी व्यक्त की और फिर इधरउधर देखने लगी.

सीमा ने भी सब की तरह भरपेट खाना खाया, लेकिन उस ने महसूस किया कि वह जबरदस्ती व नकली ढंग से मुसकरा रही थी और यह बात उसे देर तक चुभती रही.

रेस्तरां से बाहर आए तो समीर ने मुसकराते हुए सब को बताया, ‘‘आप सब को याद होगा कि फिल्म ‘ब्लैक’ मम्मी को बहुत पसंद आई थी. इन के मुंह से इसे दोबारा देखने की बात मैं ने कई बार सुनी तो इसी फिल्म के टिकट कल शाम मैं ने अपने दोस्त मयंक से मंगवा लिए, जो यहां घूमने आया हुआ था. मम्मी, आप यह फिल्म दोबारा देख लेंगी न?’’

‘‘हांहां, जरूर देख लूंगी. यह फिल्म है भी बहुत बढि़या,’’ अपने मन की बेचैनी व तनाव को छिपाने के लिए सीमा को अब बहुत कोशिश करनी पड़ रही थी.

फिल्म देखते हुए अगर सीमा चाहती तो लगभग हर आने वाले सीन की जानकारी उन्हें पहले से दे सकती थी. अगर कोई 24 घंटों के अंदर किसी फिल्म को फिर से देखे तो उसे सारी फिल्म अच्छी तरह से याद तो रहती ही है.

फिल्म देख लेने के बाद वे सब बाजार में घूमने निकले. सब ने आइसक्रीम खाई, लेकिन सीमा ने इनकार कर दिया. उस का अब घूमने में मन नहीं लग रहा था.

‘‘चलो, अब घर चलते हैं. मेरे सिर में अचानक दर्द होने लगा है,’’ उस ने कई बार ऐसी इच्छा प्रकट की पर कोई इतनी जल्दी घर लौटने को तैयार नहीं था.

समीर और शिखा ने अपने पापा के ऊपर दबाव बनाया और उन से सीमा को उस का मनपसंद सैंट, लिपस्टिक और नेलपौलिश दिलवाए.

घर पहुंचने तक चिंतित नजर आ रही सीमा का सिर दर्द से फटने लगा था. उस ने कपड़े बदले और सिर पर चुन्नी बांध कर पलंग पर लेट गई. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इस के लिए उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

उसे पता भी नहीं लगा कि कब उस की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर अचानक ही उस की रुलाई फूट पड़ी और वह तकिए में मुंह छिपा कर रोने लगी.

तभी बाहर से समीर ने दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘मम्मी, आप कुछ देर जरूर आराम कर लो. शिखा पुलाव बना रही है, तैयार हो जाने पर मैं आप को बुलाने आ जाऊंगा,’’ समीर ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मैं सो जाऊं तो मुझे उठाना मत,’’ सीमा ने उसे रोआंसी आवाज में हिदायत दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद समीर का जवाब सीमा के कानों तक पहुंचा, ‘‘मम्मी, हम सब आप को बहुत प्यार करते हैं. पापा में लाख कमियां होंगी पर यह भी सच है कि उन्हें आप के सुखदुख की पूरी फिक्र रहती है. मैं आप को यह विश्वास भी दिलाता हूं कि हम कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिस के कारण आप का मन दुखे या कभी आप को शर्म से आंखें झुका कर समाज में जीना पड़े. अब आप कुछ देर आराम कर लो पर भूखे पेट सोना ठीक नहीं. मैं कुछ देर बाद आप को जगाने जरूर आऊंगा.’’

‘तू ने मुझे जगा तो दिया ही है, मेरे लाल,’ उस के दूर जा रहे कदमों की आवाज सुनते हुए सीमा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई और फिर उस ने झटके से उठ कर उसी वक्त मोबाइल फोन निकाल कर अपने सहयोगी नीरज का नंबर मिलाया.

‘‘स्वीटहार्ट, इस वक्त मुझे कैसे याद किया है?’’ नीरज चहकती आवाज में बोला.

‘‘तुम से इसी समय एक जरूरी बात कहनी है,’’ सीमा ने संजीदा लहजे में कहा.

‘‘कहो.’’

‘‘समीर को उस के दोस्त मयंक से पता लग गया है कि कल दिन में मैं तुम्हारे साथ घूमने गई थी.’’

‘‘ओह.’’

‘‘आज वह हमें उसी रेस्तरां में ले कर गया, जहां कल हम गए थे और खाने में वही चीजें मंगवाईं, जो कल तुम ने मंगवाई थीं. वही फिल्म दिखाई, जो हम ने देखी थी और उसी दुकान से वही चीजें खरीदवाईं, जो कल दिन में तुम ने मेरे लिए खरीदवाई थीं.’’

‘‘क्या उस ने तुम से इस बात को ले कर झगड़ा किया है?’’

‘‘नहीं, बल्कि आज तो सब ने मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश की है.’’

‘‘तुम कोई बहाना सोच कर उस के सवालों के जवाब देने की तैयारी कर लो, स्वीटहार्ट. हम आगे से कहीं भी साथसाथ घूमने जाने में और ज्यादा एहतियात बरतेंगे.’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद सीमा ने गहरी सांस खींची और फिर दृढ़ लहजे में बोली, ‘‘नीरज, मैं अकेले में काफी देर रोने के बाद तुम्हें फोन कर रही हूं. जिस पल से आज मुझे एहसास हुआ है कि समीर को हमारे प्रेम संबंध के बारे में मालूम पड़ गया है, उसी पल से मैं अपनेआप को शर्म के मारे जमीन में गड़ता हुआ महसूस कर रही हूं.

‘‘मैं अपने बेटे से आंखें नहीं मिला पा रही हूं. मुझे हंसनाबोलना, खानापीना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है. बारबार यह सोच कर मन कांप उठता है कि अगर तुम्हारे साथ मेरे प्रेम संबंध होने की बात मेरी बेटी और पति को भी मालूम पड़ गई, तो मुझे जिंदगी भर के लिए सब के सामने शर्मिंदा हो कर जीना पड़ेगा.

‘‘आज एक झटके में ही मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ आ गई है कि अपने बड़े होते बच्चों की नजरों में गिर कर जीने से और दुखद बात मेरे लिए क्या हो सकती है नीरज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मेरे गलत, अनैतिक व्यवहार के कारण वे समाज में शर्मिंदा हो कर जिएं.

‘‘यह सोचसोच कर मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है कि जब समीर के दोस्त मयंक ने उसे यह बताया होगा कि उस की मां किसी गैरमर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाती घूम रही थी, तो वह कितना शर्मिंदा हुआ होगा. नहीं, अपने बड़े हो रहे बच्चों के मानसम्मान की खातिर आज से मेरे और तुम्हारे बीच चल रहे अवैध प्रेम संबंधों को मैं हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर रही हूं.’’

‘‘मेरी बात तो…’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है, क्योंकि मैं ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला तुम्हें बता दिया है,’’ सीमा ने यह फैसला सुना कर झटके से फोन का स्विच औफकर दिया.

सीमा का परेशान मन उसे और ज्यादा रुलाना चाहता था, पर उस ने एक गहरी सांस खींची और फ्रैश होने के लिए गुसलखाने में घुस गई.

हाथमुंह धो कर वह समीर के कमरे में गई. अपने बेटे के सामने वह मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाल पाई. बस, अपने समझदार बेटे की छाती से लग कर खूब रोई. इन आंसुओं के साथ सीमा के मन का सारा अपराधबोध और दुखदर्द बह गया.

जब रो कर मन कुछ हलका हो गया, तो उस ने समीर का माथा प्यार से चूमा और सहज मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘देखूं, शिखा रसोई में क्या कर रही है… मैं तेरे पापा के लिए चाय बना देती हूं. मेरे हाथों की बनी चाय हम दोनों को एकसाथ पिए एक जमाना बीत गया है.’’

‘‘जो बीत गया सो बीत गया, मम्मी. अब हम सब को अपनेआप से यह वादा जरूर करना है कि एकदूसरे के साथ प्यार का मजबूत रिश्ता बनाने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे,’’ समीर ने उन का माथा प्यार से चूम कर अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘हां, जब सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं,’’ सीमा ने मजबूत स्वर में उस की बात का समर्थन किया और फिर अपने पति के साथ अपने संबंध सुधारने का मजबूत इरादा मन में लिए ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

मुखौटे: माधव ने शादी से इनकार क्यों किया

‘‘अभीअभी खबर मिली है रुकि…’’

‘‘क्या खबर?’’ रुकि ने बीच में ही सवाल जड़ दिया.

‘‘तुम्हारे ही काम की खबर है. हमारे स्कूल में एक नए रंगमंच शिक्षक आ रहे हैं.’’

‘‘अच्छा सच?’’ रुकि अपने कला के कक्ष में थी. उस ने एक मुखौटे को सजाते हुए प्रतिक्रिया दी. एक के बाद दूसरा मुखौटा सजाती हुई रुकि अपने ही काम में मगन दिखाई दी, तो उसे यह सूचना देने वाली अध्यापिका सरला भी अपना काम करने वहां से चली गई.

सरला के जाते ही रुकि ने मुखौटा एक तरफ रखा और खुश हो कर जोर से ताली बजाई और फिर नाचने लगी थी. 2 दिन तक यही हाल रहा रुकि का. वह सब के सामने तो काम करती पर एकांत ही कमर मटका कर नाचने लगती.

तीसरे दिन प्रार्थनासभा में प्राचार्य ने एक नए महोदय को माला पहना कर उन का स्वागत किया और फिर एक घोषणा करते हुए कहा, ‘‘प्यारे बच्चो, आज हमारे विद्यालय परिवार में शामिल हो रहे हैं माधव सर. ये रंगमंच के कलाकार हैं. इन्होंने सैकड़ों नाटक लिखे हैं. ये आज से ही हमारे विद्यालय के रंगमंच विभाग में शामिल हो रहे हैं.’’

यह खबर सब के लिए सुखद थी. स्कूल में यह एक नया ही प्रयोग होने जा रहा था. सब फुसफुसाने लगे पर आज भी रुकि का चेहरा एकदम सामान्य था. वह एकदम निर्विकार भाव से तालियां बजा रही थी. पूरा विद्यालय बारबार माधवजी के पास जा कर उन से मिल रहा था पर एक रुकि ही थी जो बस अपने कक्ष में मुखौटे ही ठीक किए जा रही थी.

अगले दिन दोपहर बाद जब कक्षा का खेल पीरियड था तो उस समय मौका पा कर माधव लपक कर रुकि के पास जा पहुंचा.

‘‘ओह रुकि,’’ कह कर उस ने जैसे ही उसे बाहों में लिया रुकि के हाथ से मुखौटा गिर गया.

वह एकदम संयत हुई और बोली, ‘‘माधव, हाथ हटाओ, शाम 6 बजे मिलते हैं. मैं फोन पर लोकेशन भेज दूंगी,’’ और फिर वह फटाफट कक्ष से बाहर निकल आई.

माधव ने हंस कर मुखौटा अपने चेहरे पर पहन लिया. शाम को दोनों एकदूसरे के पास बैठे थे.

माधव बोला, ‘‘अच्छा, पगली वहां तो बंद कमरा था… मैं आया था मिलने पर तुम डर कर भाग गई पर यह जगह जहां सबकुछ खुलाखुला है निडरता से मेरे इतने करीब बैठी हो.

रुकि ने उस की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘तुम भी न माधव कमाल के दुस्साहसी हो. तुम ने तो आते ही दिनदहाड़े रोमांचकारी कदम उठा लिया. हद है.’’

मगर माधव को तो रुकि से चुहल करने में मजा आ रहा था. वह चहकते हुए बोला, ‘‘अच्छा, हद तो तुम्हारी है रुकि. मैं तो एक फक्कड़ रंगकर्मी था पर यहां आया बस तुम्हारे लिए… तुम्हें उदासी से बचाने के लिए.’’

रुकि सब चुपचाप सुन रही थी.

माधव बोला, ‘‘तुम ने मुझे महीनों पहले ही स्कूल प्रशासन की यह मंशा कि एक रंगकर्मी की जरूरत है और वीडियो भेज कर इस स्कूल के चप्पेचप्पे से इतना वाकिफ करा दिया था कि फोन पर जब मेरा साक्षात्कार हुआ तो पता है प्राचार्य तक सकते में आ गए कि मुझे कैसे पता है कि स्कूल के खुले मंच के दोनों तरफ बोगनबेलिया लगा है.’’

‘‘ओह, माधव फिर?’’ यह सुना तो रुकि की तो सांस ही रुक गई थी.

‘‘फिर क्या था मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि मैं ने एक न्यूज चैनल में सालाना जलसे की रिपोर्ट देखी थी.’’

यह सुन कर रुकि की जान में जान आई. बोली, ‘‘माधव तुम सचमुच योग्य थे, इसीलिए तुम्हें चुना गया, अब अलविदा. आज की मुलाकात बस इतनी ही. अब चलती हूं. कल स्कूल में मिलते,है,’’ कह कर रुकि ने अपना बैग लिया, चप्पलें पहनीं और फटाफट चली गई.

अब वे इसी तरह मिलने लगे. एक दिन ऐसी ही शाम को दोनों साथ थे तो माधव बोला, ‘‘रुकि मैं और तुम तो इकदूजे के लिए बने थे न और तुम हमेशा कहती थी कि माधव कालेज में साथसाथ पढ़ते हैं अब जीवन भी साथसाथ गुजार देंगे. जब हम दोनों को एकदूसरे से बेहद प्यार था, तो तुम ने शादी क्यों कर ली रुकि?’’

‘‘तो फिर क्या करती माधव बोलो न. तुम तो बस्तियों में, नुक्कड़ में, चौराहे पर नाटक मंडली ले कर धूल और माटी से खेलते थे. मैं क्या करती?’’

माधव ने फट से कहा, ‘‘रुकि, तुम मेरा इंतजार करतीं.’’

अच्छा, चोरी और सीनाजोरी, मेरे बुद्धू माधव जरा याद करो. मैं ने सौ बार कहा था कि मेरी एक छोटी बहन है. मेरे बाद ही उस का घर बसेगा. मातापिता भी ताऊजी की दया पर निर्भर हैं. मु?ो विवाह करना है. तुम गृहस्थी बसाना चाहते हो तो चलो आज पिताजी से बात करते हैं माताजी से मिलते हैं, पर तुम ने याद है मुझे क्या जवाब दिया था?’’

माधव बेहद प्यार से बोला, ‘‘ओहो, बोलो न, तुम ही बोलो रुकि मैं तो सब भूल गया हूं,’’

‘‘अच्छा तो सुनो तुम ने कहा था कि रुकि यह घरबारपरिवार सब ढकोसला है. मैं आजाद रहना चाहता हूं और उस के 2 दिन बाद तुम 1 महीने की नाट्य यात्रा पर आसाम, मेघालय, मणिपुर चले गए. माधव तुम मुझे मजाक में लेने लगे थे.’’

‘‘रुकि वह समय ऐसा ही था. तब मैं 21 साल का था.’’

‘‘बिलकुल और मैं 20 साल की… मैं ने घर वालों के सामने हथियार डाल दिए. विवाह हो गया,’’ रुकि उदास हो कर बोली.

‘‘हां तो, गबरू जवान फौजी की बीवी बन कर तो मजा आया होगा न रुकि.’’

तुम माधव बारबार यही सवाल किसलिए पूछते हो? हजारों बार तो बताया है कि वे जम्मू में रहते हैं. मैं यहां इस कसबे में निजी स्कूल में कला की शिक्षा देती हूं,’’ रुकि की आवाज में बेहद दर्द भर आया था.

कुछ देर रुक कर रुकि आगे बोली, ‘‘मैं ने 2 साल तक मुंह में दही जमा कर सबकुछ सहा. परिवार, बंधन, जिम्मेदारी, संस्कार, तीजत्योहार सारे नाटक सबकुछ… मगर तब भी मेरे पति मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो मैं ने भी एक मानसिक करार सा कर लिया.’’

‘‘मानसिक करार, मैं समझ नहीं रुकि?’’ माधव को अजीब लगा कि आज 30 साल की रुकि ये कैसी बहकीबहकी बातें कर रही है.

‘‘हां माधव करार नहीं तो और क्या. यह एक करार है कि मैं उन की संतान का पालन कर रही हूं. मगर अपनी आजादी के साथ. वे जो रुपए देते हैं अब मैं उन में से एक धेला भी खुद पर खर्च नहीं करती हूं. सारे बच्चों की पढ़ाई में लगा कर रसीद उन के बाप को कुरियर कर देती हूं. ताकि…’’

‘‘ताकि क्या रुकि?’’ माधव ने पूछा.

‘‘ताकि माधव सनद रहे कि रुकि उन के दिए पैसों पर नहीं पल रही. मैं अपनी कमाई खाती हूं… अपने वेतन से कपड़ा खरीद कर पहनती हूं,’’ कहतीकहती रुकि एकदम खामोश हो गई तो माधव ने उस का हाथ थाम लिया.

‘‘ओह माधव,’’ रुकि के पूरे बदन में सनसनाहट सी होने लगी.

‘‘अरेअरे क्या रुकि कोई देख लेगा.’’

‘‘अरे नहीं, माधव. यही तो एक पूरी तरह से सुरक्षित जगह है. इधर हमारा कोई भी परिचित नहीं आ सकता,’’ कह कर वह भी भावुक हो गई और माधव से लिपट गई.

कुछ पल तक दोनों ऐसे ही खामोश रहे और अचानक रुकि बोली, ‘‘अब चलती हूं. मेरी छोटी बिटिया केवल 7 साल की है. वह मुझे देख रही होगी.’’

समय इसी तरह गुजरता रहा. माधव को लगभग 3 महीने हो गए थे. उस ने इस दौरान बच्चों को रंगमंच के अच्छे गुर भी सिखा दिए थे. माधव ने इतना बढि़या प्रशिक्षण दिया था कि स्कूल के सीनियर छात्र अब खुद ही नाटक लिख कर तैयार करने लगे थे. स्कूल में तो हरकोई माधव को पसंद करने लगा था. हरकोई माधव को अपने घर बुलाना चाहता, उस के साथ समय बिताना चाहता, पर इस माधव का मन एक जगह कभी टिकता ही नहीं था.

एक दिन रुकि ने पूछ ही लिया, ‘‘माधव एक निजी स्कूल में पहली बार काम कर रहे हो. तुम ने अभी तक बताया नहीं कि कैसा लग रहा है? वैसे प्रिंसिपल सर ने तुम्हें अपने बंगले के साथ लगा कमरा मुफ्त में रहने को दे दिया है तो ऐसी तंगी तो शायद रहती नहीं होगी न?’’

‘‘ओहो रुकि, यह भी कोई सवाल हुआ? मुझे धनदौलत से भला कैसा लगाव और इस निजी स्कूल की नौकरी की ही बात की है तुम ने तो रुकि मेरी जान, अरे मैं तो बस तुम्हारी गुहार पर ही यहां आया हूं.’’

‘‘पर माधव तुम ने यह सब कैसा जीवन कर लिया. न रुपया न पैसा. बस सारा समय नाटक लिखना और मंचन करना यह कैसा जीवन है?’’

‘‘रुकि मेरी बात समझने के लिए तुम्हें एक घटना सुननी होगी.’’

‘‘तो सुनाओ न,’’ रुकि बैचैन हो कर बोली.

‘‘मैं तो सुनाने और सुनने के ही लिए आया पर तुम बीच में ही उठ कर चली जाओगी कि घर पर बच्चे अकेले हैं.’’

‘‘अरे नहीं तुम आज की शाम एकदम बिंदास हो कर सुनाओ.’’

‘‘आज तुम ने घर नहीं जाना?’’

‘‘जाना है पर बच्चों की कोई चिंता नहीं है. वे दोनों आज एक जन्मदिन समारोह में गए हैं. खाना खा कर ही वापस आएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर माधव को बेहद सुकून मिला. बोला, ‘‘रुकि, मैं जब 7 साल का था न तब से नानाजी के गांव जरूर जाता था. मेरे नानाजी के पास सौ बीघा खेत और 2 बीघे का एक बगीचा था. कुल मिला कर नानाजी के पास दौलत ही दौलत थी.’’

‘‘अच्छा,’’ रुकि बीच में बोल ली.

‘‘एक बार गांव में भयंकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात हो गए. जो जहां था वहीं रह गया. मैं भी तब नानाजी के गांव गया था. सड़क जाम हो गई थी. 2 बसें भर कर कुछ कलाकार मदद की गुहार लगाते हुए हमारे गांव आ गए. वे सब फंस गए थे. आगे जा नहीं सकते थे. उन की बात सुन कर नानाजी तथा उन के कुछ दोस्तों ने उन्हें रहने की जगह दे दी. वे अपना भोजन बनाते थे और दोपहर में रियाज करते थे. इस तरह जब तक सड़क ठीक नहीं हुई यानी 7 दिन तक वह नाटक मंडली गांव में रही. तब मैं ने देखा कि नानाजी उन कलाकारों में ही रमे रहते थे. नानाजी उन के साथ तबला बजाते थे, ढोल बजाते थे, नाचते थे, गाते थे.

‘‘रकि ने अपने नानाजी को इतना खुश पहले कभी देखा ही नहीं था. जब मंडली चली गई तो मैं भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगा. मैं, नानाजी के कमरे में उन से यही बात करने गया तो पता है नानाजी अपनेआप से बातें कर रहे थे. इतनी दौलत है. इस का मैं आखिर करूंगा क्या. मैं तो कलाकार हूं. मैं ने अपने भीतर का कलाकार दबा कर रख दिया. मैं यह सुन कर ठिठक गया. वहीं खड़ा रहा और लौट गया. उस दिन मेरे दिल में एक बात आई कि धन और विलासिता सब बेकार है. अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए.’’

‘‘हूं तो इसीलिए तुम रंगकर्मी बन गए. मगर जीने के लिए तो रुपए चाहिए न माधव,’’ रुकि ने अपनी बात रखी.

‘‘अरे, बिलकुल,’’ माधव ने रुकि की हां में हां मिलाई.

‘‘तो माधव तुम अपने लिए न सही मातापिता के लिए तो कमाओ.’’

‘‘पर रुकि उन के पास बैंकों में भरभर कर रुपया है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘अरे मेरी मां मेरे नानाजी की अकेली औलाद तो सब खेतबगीचे मेरी माताजी के और अब मेरे बडे़ भाई ने डेयरी और खोल ली है. बडे़ भाई के बच्चे भी खेतखलिहान पसंद करते हैं. इस तरह मेरे मातापिता को न अकेलापन सताता है और न पैसे की कोई तंगी है.’’

‘‘तो इसीलिए तुम अपने मातापिता की तरफ से लापरवाह हो कर ऐसे खानाबदोश बने हो. है न?’’ रुकि ने उसे उलाहना दिया.

‘‘नहींनहीं रुकि, मुझे नाट्य विधा पसंद है और मैं सड़क का आदमी ही बनना चाहता हूं. मैं जरा से वेतन पर बेहद खुश हूं.’’

‘‘अच्छा माधव तुम भी न मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ 3 साल तक पढ़ती रही पर तुम्हें समझ ही नहीं सकी. जब मैं ने रिश्ते की बात कही थी तब तुम ने कहा कि मैं तो फकीर आदमी हूं. यह नानाजी के खेतखलिहान और धनदौलत की बात तब ही बता देते तो मैं अपने मातापिता को समझ कर मना लेती,’’ रुकि को अफसोस हो रहा था.

‘‘यह तो और भी गलत होता रुकि. तब तुम्हें सब की गुलामी करनी होती, जबकि तुम तो खुद भी आजाद रहना चाहती हो.’’

‘‘हां यह तो सही है माधव. पर मैं अपने प्रेमी माधव के लिए शायद यह कर लेती.’’

‘‘शायद का तो कोई पकका मतलब होता नहीं रुकि कह कर माधव खड़ा हो गया.

‘‘अरे… माधव आज तो तुम अलविदा कह रहे हो.’’

‘‘ओह रुकि, अब चलता हूं अलविदा,’’ कह कर माधव ने अपनी चप्पलें पहन लीं और दोनों अलगअलग दिशा में चल दिए.

अगले दिन रुकि स्कूल आई तो एक सनसनीखेज खबर सुनने को मिली कि माधव सर सुबह ही दक्षिण भारत की तरफ रवाना हो गए हैं. वे अपना इस्तीफा भी सौंप गए हैं.

‘‘हैं, रुकि को सदमा लगा. उस ने खुद को सामान्य किया, जबकि सारा दिन स्कूल में यही चर्चा का विषय रहा. हरकोई माधव सर का फैन बन गया था. रुकि जानती थी कि यह फक्कड़ एक जगह नहीं रुकता. स्कूल की छुटटी के बाद घर लौटते हुए रुकि ने माधव को फोन लगाया.

‘‘अरे रुकि मैं बस में बैठा हूं. अभी दिल्ली जा रहा हूं. रात को केरल के लिए रवानगी.’’

‘‘तुम तो अब एक थप्पड़ खाने वाले हो माधव… कल रात तक मेरे साथ थे और बताया भी नहीं.’’

‘‘अगर बताता तो बस एक उसी बात पर अटक जाते हम दोनों और कोई बात हो ही नहीं पाती रुकि. बाकी तुम अब वह पुरानी रुकि तो रही नहीं. तुम एक मजबूत औरत, एक बेहतरीन माता और एक सजग प्रेमिका हो गई हो… तुम और मैं जीवनभर प्रेमी रहने वाले हैं. यह वादा है. कल फोन करता हूं,’’ कह कर माधव ने फोन बंद कर दिया.

रुकि को उस पर प्यार और गुस्सा दोनों एकसाथ आ रहे थे.

गांठ खुल गई: क्या कभी जुड़ पाया गौतम का टूटा दिल

फिर वही शून्य: क्या शादी के बाद पहले प्यार को भुला पाई सौम्या

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें