Hidden Truth : पत्नी और वो

Hidden Truth : एक नाव में सवार व्यक्ति पतवार खेता हुआ झंझटों और संकटों से जू?ाता यदि कोई भयानक दुर्घटना न हो तो अंतत: किनारे पर पहुंच ही जाता है. मगर उस का क्या जो 2 नावों में सवार हो? कहीं न कहीं, कभी न कभी उस के जीवन का संतुलन बिगड़ना तय है. वह कभी एक नाव को संभालता है, कभी दूसरी को. इसी कशमकश में कभी न कभी धोखा लगता है और संतुलन बिगड़ जाता है. नावें तो बह जाती हैं लेकिन ऐसे आदमी को किनारा नहीं मिलता, उस की नियति पानी में डूब जाना है.

रामप्रसाद कोई बहुत बड़ा नहीं तो छोटा आदमी भी नहीं था. उस का काम बहुत बढि़या नहीं तो खराब भी नहीं कहा जा सकता था. कभीकभार दोस्तों की महफिल जमती तो 2 पैग भी लगा लेता. मन हुआ तो सिगरेट के कश भी लगा लेता, लेकिन मीटमच्छी से दूर ही रहता. मनमौजी. अपने काम की परवाह करने वाला. अपने परिवार की चिंता करने वाला. 2 बेटियों का अच्छा पिता. एक छोटे से गिफ्ट सैंटर, ‘सलोनी गिफ्ट सैंटर’ का अच्छा मालिक और संचालक. अपनी पत्नी देवयानी का खूब खयाल रखने वाला पति. इस से अच्छा एक आम आदमी और क्या हो सकता है?

एक भारतीय नारी की तरह देवयानी घर को संभालती. घर का सारा काम खुद करती. रामप्रसाद ने कई बार कहा, ‘‘देवयानी, तुम घर का सारा काम करतेकरते थक जाती होगी, कोई झाड़ूपोंछा करने वाली लगा ही लो.’’

‘‘नहीं, जब तक इन हाथपैरों में जान है मैं कामवाली को पैसे न देने वाली. तुम्हारे पास पैसे ज्यादा आ रहे हों तो मुझे ही कामवाली समझ कर दे दिया करो.’’

‘‘देवयानी, कैसीकैसी बातें करती हो? तुम घर की मालकिन हो, तुम्हें कामवाली क्यों समझूंगा भला? ऐसी बातें कभी मुंह से गलती से भी मत निकालना.’’

‘‘अच्छा, गलती हो गई. क्षमा करो देवताजी. मैं ने तो बस 4 पैसे बचाने की सोच कर यह बात कह दी थी.’’

इस तरह से रामप्रसाद का परिवार खुशहाल था. दोनों बेटियां बड़ी मलोनी 12वीं कक्षा में और छोटी सलोनी 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी. दोनों अपने मम्मीपापा की आज्ञाकारी बेटियां थीं.

फिर एक दिन, ‘‘क्या 15 साल के बेटे के जन्मदिन के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट होगा?’’ एक आकर्षक महिला ने बड़ी मधुर आवाज में रामप्रसाद से पूछा.

रामप्रसाद एक पल उसे निहारता रह गया. फिर बोला, ‘‘हां, है न. बैठिए, अभी दिखाता हूं,’’ कहते हुए रामप्रसाद ने 3-4 गिफ्ट उस महिला को दिखा दिए.

‘‘और दिखा सकते हैं, प्लीज?’’ उस महिला ने बड़े प्यार से निवेदन किया.

रामप्रसाद छोटी सीढ़ी लगा कर छत से लगी सैल्फ से कुछ और गिफ्ट के पैकेट उतार कर उस महिला को दिखाने लगा. वह महिला गिफ्ट देख रही थी और रामप्रसाद उस महिला के आकर्षक चेहरे को. वह महिला रामप्रसाद की इस कमजोरी को ताड़ गई. उस ने एक गिफ्ट पसंद कर लिया.

‘‘क्या कीमत है इस की? ’’ उस महिला ने बेवजह मुसकराते हुए पूछा.

रामप्रसाद तो जैसे उस की मुसकान पर मोहित हो गया हो. उस ने भी उसी अंदाज में मुसकराते हुए कहा, ‘‘वैसे तो इस की कीमत 1,500 रुपए है लेकिन आप के लिए 1,400 रुपए का.’’

अपने नयनों से वार करते हुए उस महिला ने मादक अंदाज में कहा, ‘‘ऐसी मेहरबानी क्यों जनाब और मैं तो इस के 1,200 रुपए से ज्यादा देने वाली नहीं?’’

‘‘अरे मैडम, आप फ्री में ले जाएं, सब आप का ही तो है, ‘‘रामप्रसाद ने उस महिला के सामने लगभग समर्पण करते हुए कहा.

कुदरत ने महिलाओं का दिल और दिमाग ऐसा बनाया है कि वे मर्दों की महिलाओं के प्रति इश्क की कमजोरी को सरलता से ताड़ लेती हैं. वह महिला जान गई कि रामप्रसाद फिसल रहा है. उस ने अपने गुलाबी पर्स में से 1,200 रुपए निकाले और काउंटर पर रख दिए.

रामप्रसाद का मन तो उस महिला से एक पैसा लेने को भी नहीं हो रहा था लेकिन पैसे तो उठाने ही थे. उस ने पैसे उठाते हुए और उस महिला को गिफ्ट पकड़ाते हुए नशीले अंदाज में धीमे से कहा, ‘‘फिर आना.’’

‘‘अब तो आनाजाना लगा ही रहेगा. आप हो ही इतने दिलकश जनाब,’’ उस महिला ने ऐसे अंदाज में कहा कि रामप्रसाद के दिल पर इश्क की तेज छुरी चल गई. वह उस महिला को एकटक तब तक जाते देखता रहा जब तक वह आंखों से ओ?ाल नहीं हो गई.

उस दिन रामप्रसाद अलग ही दुनिया में चला गया. उस रोमानी दुनिया में जो वास्तविकता से बिलकुल अलग होती है. उस के पैर आज जमीं पर नहीं थे. उस का दिल आज उस के काबू में नहीं था. उस का दिल कबूतर की तरह गुटरगूं कर रहा था. रामप्रसाद बेवजह मुसकरा रहा था. यह कमबख्त इश्क होता ही ऐसा है जो इंसान को बदल कर रख देता है.

अगली ही मुलाकात में रामप्रसाद ने उस महिला के परिचय का बहीखाता तैयार कर लिया. उस का नाम अरुणा था. वह पारस लोक कालोनी में रहती थी. वह शादीशुदा थी. उस का पति बैंक में क्लर्क था. उस की बेटी बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा थी जबकि बेटा 9वीं क्लास में पढ़ता था.

अरुणा को यह विश्वास नहीं था कि रामप्रसाद इश्क के दरिया में इतनी जल्दी फिसल जाएगा. वह इस क्षेत्र की माहिर खिलाड़ी थी. उस ने परिवार वाले मर्दों को कम ही और मुश्किल से ही इश्क के दरिया में फिसलते देखा था. आवास, अनाड़ी और लफंगे नवयुवक तो एक ही इशारे में इश्क के दरिया में छलांग लगाने को तैयार हो जाते थे. लेकिन इन अनाडि़यों से संबंध बनाने में हमेशा खतरा रहता है. एक तो ये अपनी मित्रमंडली में सारी बात खोल देते हैं जिस से बदनामी का डर हमेशा रहता है, दूसरे इन में उतावलापन ज्यादा रहता है. इन से बदले में कुछ ज्यादा मिलता भी नहीं.

परिवार वाला शादीशुदा आदमी अपने इश्क का ढिंढोरा पीटता नहीं घूमता. उसे खुद भी अपनी बदनामी का डर होता है और पोल खुलने पर परिवार के टूटने का भी. वह संयम से काम लेता है, उतावलेपन से नहीं. उस से गिफ्ट लेने और शौपिंग के बहाने कमाई भी अच्छी हो जाती है.

यही सब सोच कर अरुणा ने जल्द ही रामप्रसाद से जिस्मानी संबंध बना लिए.

उस ने गिफ्ट आदि के नाम पर रामप्रसाद से उगाही भी शुरू कर दी. वह अच्छी तरह जानती थी मर्दों से उगाही कैसे की जाती है. कभी रामप्रसाद ने उस के चंगुल से निकलने की कोशिश की तो अरुणा ने उसे भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर के संबंधों को और प्रगाढ़ बना लिया.

एक बानगी-

‘‘रामप्रसाद, मैं ने तुम्हारे इश्क में अंधी हो कर अपना सबकुछ लुटा दिया. अपनी इज्जतआबरू सब तुम्हें सौंप दी. अब तुम मुझे मंझधार में छोड़ना चाह रहे हो. मैंने तो तुम्हें ऐसा न समझ था. तुम तो उस बेवफा भौंरे की तरह निकले जो कली का रस पी कर उड़ जाता है.’’

अरुणा की आंखों में आंसू देखते ही रामप्रसाद पिघल जाता और अपने सच्चे इश्क के वादे करने लगता. उस का पहले से ज्यादा खयाल रखने लगता.

अरुणा उस से और ज्यादा उगाही करने लगती. दूसरी नाव की सवारी ऐसी हो गई कि रामप्रसाद उसे छोड़ नहीं पा रहा था. पहली नाव में तो वह सवार था ही, उसे तो वह छोड़ ही नहीं सकता था.

रामप्रसाद अरुणा के फेंके दांव में ऐसा फंसा कि उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अरुणा नागिन की तरह उस के दिलोदिमाग को जकड़ती जा रही थी. वह रामप्रसाद को बारबार यही जताती कि वह उस के लिए उस की बीवी से कम नहीं है. इसलिए रामप्रसाद की आमदनी में उस का बराबर का हिस्सा बनता है. यदि वह इसे नहीं देता तो उस के साथ नाइंसाफी होगी. ऐसा होने पर वह हंगामा करेगी और रामप्रसाद के बीवीबच्चों को सब बात बता देगी.

अरुणा रामप्रसाद के लिए गले में फंसी ऐसी हड्डी बन गई जो न निगलते बनती थी और न उगलते.

उधर देवयानी को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि रामप्रसाद को क्या होता जा रहा है. वह हर समय परेशान क्यों रहता है? परिवार से भी कटाकटा क्यों रहता है?

एक दिन देवयानी ने उस से पूछा, ‘‘क्योंजी, क्या बात है आप मुझे परेशान से दिखाई

पड़ते हो? कोई बात हो गई है क्या?’’

‘‘नहींनहीं देवयानी, कोई बात नहीं हुई.

बस कभीकभी मूड ऐसा ही हो जाता है. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘नहींजी, कोई बात तो है. आप का मूड तो रोज ही खराब सा रहता है. चलो, किसी डाक्टर को दिखाएं.’’

‘‘नहीं, देवयानी. इस में डाक्टर क्या करेगा? जाओ तुम, मुझे ज्यादा परेशान मत करो,’’ कह कर रामप्रसाद ने चादर ओढ़ ली.

देवयानी को लगा कोई तो बात है जो रामप्रसाद उस से छिपा रहा है. दाल में तो कुछ काला है. गिफ्ट सैंटर की आमदनी भी कम होती जा रही है? कहीं उधारी में पैसा तो नहीं डूब गया या फिर कहीं किसी औरतवौरत का चक्कर तो नहीं? नहींनहीं, मेरा रामप्रसाद ऐसा नहीं. ऐसे ही कई सवाल देवयानी के मन में उमड़घुमड़ रहे थे. वह इन सब के जवाब चाहती थी. इसलिए समय निकाल कर गिफ्ट सैंटर पर बैठने लगी.

देवयानी के गिफ्ट सैंटर पर बैठने से रामप्रसाद और अरुणा दोनों को परेशानी थी. फिर भी दोनों ने इस बात को मैनेज किया. अब रामप्रसाद देवयानी से कोई न कोई बहाना बना कर अरुणा से मिलने चला जाता. पहले अरुणा उस से मिलने आया करती थी. लेकिन इस का एक फायदा यह हुआ कि गिफ्ट सैंटर पर बैठने से देवयानी को दुकानदारी आ गई.

हर संभव कोशिश करने पर भी देवयानी को रामप्रसाद की परेशानी का कारण सम?ा में नहीं आया. फिर एक दिन अलग ही कहानी हो गई.

अरुणा की बेटी ऊषा एक दिन कालेज से अचानक घर आ गई. उस ने घर से बाहर रामप्रसाद की मोटरसाइकिल खड़ी देखी. रामप्रसाद पहले भी उन के घर आया था और इसलिए वह उस को पहचानती भी थी. वह कोई छोटी बच्ची नहीं थी जो कुछ न समझती हो. उसे पहले से ही रामप्रसाद और अपनी मां के संबंधों पर शक था. उन्हें आज रंगे हाथ पकड़ने का ऊषा को मौका मिल गया.

उस ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ने की एक युक्ति सोची. उस ने अपने घर की डोरबैल नहीं बजाई बल्कि पड़ोसी के घर से अपने घर में दाखिल हुई. उस समय तक वे दोनों अपना काम निबटा कर फारिग हो चुके थे.

ऊषा को सामने देख कर दोनों चौंक गए. चोर की दाढ़ी में तिनका. ऊषा को देखते ही रामप्रसाद वहां से भागा. ऊषा ने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वह ऊषा को धक्का दे कर गेट की तरफ भागा.

ऊषा फर्श पर गिर पड़ी. उसे उठ कर संभलने में 2 पल लगे. ये 2 पल रामप्रसाद के लिए काफी थे. वह गेट से बाहर आया और अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर वहां से भाग खड़ा हुआ.

ऊषा शिकार को हाथ से निकलते देख गुस्से से हांफ रही थी. उस ने अपने गुस्से को पहले तो अपनी मां को खरीखोटी सुना कर उस पर उतारा लेकिन अभी भी उस के अंदर गुस्से का ज्वालामुखी फूट रहा था. वह पैदल ही झपटते हुए रामप्रसाद की दुकान की तरफ बढ़ चली. दुकान मात्र 500 मीटर दूर थी.

रामप्रसाद हड़बड़ाता हुआ अपने गिफ्ट सैंटर पहुंचा था. उस की ऐसी हालत देख कर देवयानी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतने हांफ क्यों रहे हो? ’’

रामप्रसाद को एकदम से कुछ समझ में नहीं आया कि क्या कहे? फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘ऐक्सीडैंट, देवयानी, ऐक्सीडैंट. मैं बालबाल बचा. पानी… पानी पिलाओ.’’

देवयानी ने फुरती से पानी की बोतल उठा कर रामप्रसाद को दी. रामप्रसाद अभी बोतल से पानी पी ही रहा था तभी उस की नजर गुस्से से लालपीली और तेजी से झपटती आ रही ऊषा पर पड़ी.

ऊषा को देख कर वह लगभग चीख पड़ा, ‘‘देवयानी… ऐक्सीडैंट.’’

देवयानी भौचक्की सी इधरउधर देखने लगी. उसे लगा कि रामप्रसाद अभीअभी ऐक्सीडैंट से बच कर आ रहा है. इसलिए उस के दिमाग में ऐक्सीडैंट का फुतुर अभी भी घुसा हुआ है. रामप्रसाद की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे काटो तो खून नहीं, बिलकुल बेजान.

ऊषा ने आते ही रामप्रसाद की खोपड़ी पर तड़ातड़ चप्पलों की बरसात शुरू कर दी. वह चप्पल बरसा रही थी और जबानी आग उगल रही थी, ‘‘हरामजादे, मैं उतारूंगी तेरे बुढ़ापे का इश्क. बहुत आग उठ रही तुझे बुढ़ापे में, हरामखोर.’’

ऊषा उस पर तब तक चप्पलें बरसाती रही जब तक देवयानी और पासपड़ोस के दुकानदारों ने उसे काबू नहीं कर लिया. रामप्रसाद चुपचाप चप्पलें खा कर निढाल हो कर काउंटर के पीछे गश खा कर गिर गया.

ऊषा समुद्र के ज्वार की तरह आई थी और तबाही मचा कर भाटे की तरह यह कहती हुई चली गई, ‘‘हरामजादे, घर की तरफ फटक मत जाना, नहीं तो खून पी जाऊंगी, खून तेरा…’’

ऊषा को कुछ लोग पहचानते थे. कुछ को रामप्रसाद और अरुणा के संबंधों की भनक भी थी. अब उस के आखिरी शब्दों ने सबकुछ खोल कर रख दिया था, छिपाने को कुछ बचा नहीं था. आपस में खुसरफुसर शुरू हुई तो सब सबकुछ जान गए.

रामप्रसाद की ऐसी घनघोर बेइज्जती कभी नहीं हुई थी. यह जलालत उस की बरदाश्त से बाहर थी. वह बाहर वालों को तो छोडि़ए अपनी पत्नी और बच्चों को भी मुंह दिखाने लायक नहीं बचा था.

सुबह उस की लाश को पुलिस वाले पंखे से लटके फंदे से नीचे उतार रहे थे. जब उस की लाश बिजनौर के जिला अस्पताल को पोस्टमार्टम के लिए भेजी जा रही थी तो उस के बच्चे ‘पापा, पापा’ कर के दहाड़ें मार कर रो रहे थे लेकिन देवयानी की आंखें शुष्क हो चुकी थी.

कुछ दिनों के बाद दुनिया वैसी की वैसी हो गई. फर्क बस इतना था ‘सलोनी गिफ्ट सैंटर’ के काउंटर पर रामप्रसाद की जगह देवयानी बैठी थी. सच है, किसी के आनेजाने से इस दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

Marital Challenges : मेरे पति शादी से पहले किसी लड़की से प्यार करते थे, मैं क्या करूं?

Marital Challenges : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे विवाह को 6 महीने हो चुके हैं. पति मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उन्हें बेहद चाहती हूं. बावजूद इस के मेरा मन आशंकित रहता है. मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि विवाहपूर्व वे किसी लड़की से प्यार करते थे पर घर वाले शादी के लिए राजी नहीं हुए, इसलिए उसे छोड़ कर उन्हें मुझ से शादी करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि अब मैं ही उन के लिए सब कुछ हूं और वे उस लड़की को पूरी तरह भूल चुके हैं पर मेरे मन में गांठ पड़ गई है. डरती हूं कि यदि उन का सोया प्यार जाग गया और मुझे छोड़ कर वे उस के पास चले गए तो क्या होगा?

जवाब

आप के पति ने आप से संबंध बनाने से पहले अपने अतीत की बातें शेयर कीं तो आप को उन की ईमानदारी पर फख्र करना चाहिए. आप उन की ब्याहता हैं और आप मानती हैं कि वे आप से प्यार करते हैं तो आप को बेवजह उन पर शक नहीं करना चाहिए. उन्हें इतना प्यार दें कि उन्हें किसी और के बारे में सोचने की जरूरत ही न रहे. आप की नईनई शादी हुई है, इसलिए बातों को छोड़ कर वैवाहिक जीवन का आनंद लें.

आजकल रिश्तों में स्थिरता और एकदूसरे के लिए धैर्य खत्म होता जा रहा है, जिस के चलते विवाह के बाद पतिपत्नी एकदूसरे को समझने के बजाय छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. नतीजन बात अलगाव तक पहुंच जाती है. ऐसे में जरूरी है कि रिश्तों में अंतरंगता और उन्हें अटूट बनाए रखने के लिए शादी से पहले काउंसलिंग ली जाए. इस से दंपतियों को चीजों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी.

मैरिज काउंसलर आजकल प्रोफैशनल ऐक्सपर्ट भी होते हैं, जिन से नवविवाहित जोड़े और शादी करने वाली जोडि़यां मिल कर अपनी समस्याओं और शंकाओं के समाधान पा सकती हैं. कई बार पतिपत्नी का रिश्ता बेतुकी बातों के कारण टूटने के कगार पर पहुंच जाता है, क्योंकि उन्हें विवाह के बाद रिश्तों को कैसे निभाया जाए, इस बात की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

मशहूर साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर का इस बाबत कहना है, ‘‘हम भारतीय शादी पर लाखोंकरोड़ों रुपए तो खर्च कर देते हैं, लेकिन शादी को निभाने के लिए जरूरी काउंसलिंग पर पैसा नहीं खर्चते. इस की जरूरत ही नहीं समझते. तभी आजकल तलाक के कई ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जहां तलाक का कारण मात्र यह होता है कि हनीमून के अगले दिन पति ने गीला टौवेल बैड पर रख दिया, जो पत्नी को नागवार गुजरा.’’

मैरिज काउंसलिंग 2 बातों से जुड़ी होती है. पहली स्वास्थ्य से संबंधित तो दूसरी रिश्तों से संबंधित. काउंसलिंग के दौरान शादीशुदा जीवन में आने वाली सामान्य कठिनाइयों, उन से बचने के उपायों और शादी को सफल बनाने की जानकारी दी जाती है. जहां विवाह के बाद स्वास्थ्य संबंधी काउंसलिंग  वैवाहिक जीवन में काम आती है, वहीं रिश्तों से संबंधित जानकारी होने से नवविवाहित नए माहौल में खुद को आसानी से ऐडजस्ट कर लेते हैं.

फायदे काउंसलिंग के

शादी को ले कर लड़कालड़की दोनों के मन में शारीरिक के अलावा रिश्ता निभाने संबंधी भी अनेक सवाल होते हैं, पर उन के सही जवाब न दोस्तों के पास होते हैं और न ही परिवार वालों के पास. ऐसे में मैरिज काउंसलर ही एक ऐसा शख्स होता है, जो उन की शंकाओं का समाधान कर सकता है. मैरिज काउंसलिंग का फायदा यह भी होता है कि दोनों पार्टनर जो एकदूसरे से इन विषयों पर बात करने से झिझकते हैं, वे एकदूसरे से खुल जाते हैं और दोनों के बीच बेहतर संवाद स्थापित होता है.

शादी एक ऐसा टर्निंग पौइंट होता है जब आप का लाइफस्टाइल बिलकुल बदल जाता है, शादी से पहले की काउंसलिंग से वैवाहिक बंधन में बंधने वाले जोड़ों को आने वाले जीवन के लाइफस्टाइल को समझने और उस के हिसाब से खुद को ढालने में मदद मिलती है.

शादी के बाद प्रैक्टिकल तौर पर जब आप प्रेमीप्रेमिका से प्रतिपत्नी बनते हैं, तो घरेलू जिम्मेदारियों को ले कर एकदूसरे पर गलतियां थोपने से रिश्तों में दरार आ जाती है. ऐसे में दोनों में से कोईर् भी एक दूसरे की जिम्मेदारी उठाने से कतराने लगता है. ऐसे में जिम्मेदारियों को समझने और उन्हें सही तरह से निभाने के लिए मैरिज काउंसलिंग बहुत जरूरी होती है. शादी के परामर्श की मदद से दोनों साथी एकदूसरे की जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.

मैरिज काउंसलर्स कपल्स की मदद करते हैं ताकि वे वर्तमान के साथ ही भविष्य के बारे में भी प्लानिंग कर सकें जैसे फैमिली प्लानिंग, ससुराल के रिश्ते के साथ मैनेजमैंट, फाइनैंशियल प्लानिंग, क्योंकि एक सफल शादीशुदा रिश्ते के लिए प्यार ही नहीं, प्रैक्टिकल सोच की भी जरूरत होती है.

मैरिज काउंसलर कपल्स से सिर्फ पौजिटिव बातें ही नहीं करता, बल्कि वह ऐसे मुद्दों को भी उठाता है, जिन के बारे में लोग बात नहीं करना चाहते या करने से झिझकते हैं, जबकि शादी करने से पहले यह जानना जरूरी है कि क्या सचमुच आप एकदूसरे के लिए बने हैं? क्या एक इमोशनली, सैक्सुअली, फाइनैंशियली साथ निभा सकते हैं? क्या अपने रिश्ते को ले कर दोनों की सोच एकजैसी है? इन सवालों के जवाब से आप जान पाएंगे कि क्या सच में आप शादी के लिए तैयार हैं या नहीं.

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New Year 2025 : नया सवेरा

New Year 2025 : सावन का महीना, स्कूल-कालेज के बच्चे सुबह 8.30 बजे सड़क के किनारे चले जा रहे थे, इतने में घनघोर घटाओं के साथ जोर से पानी बरसने लगा और सभी लड़के, लड़कियाँ पेड़ के नीचे, दुकानों के शेड के नीचे खड़े हो गये थे. उन्हें सबसे ज्यादा डर किताब, कापी भीगने का था. उन्हीं बच्चों में एक लड़की जिसका नाम व्याख्या था और वह कक्षा-6 में पढ़ती थी, वह एक मोटे आम के तने से सटकर खड़ी थी. पेड़ का तना थोड़ा झुका हुआ था जिससे वह पानी से बच भी रही थी. लगभग दस मिनट बाद पानी बन्द हो गया और धूप भी निकल आई.

एक लड़का जिसका नाम आलोक था, वह भी कक्षा-6 में ही व्याख्या के साथ पढ़ता था. वहाँ पर कोई कन्या पाठशाला न होने के कारण लड़के और लड़कियाँ उसी सर्वोदय काॅलेज में पढ़ते थे. आलोक बहुत गोरा व सुगठित शरीर का था लेकिन व्याख्या बहुत सांवली थी, व्याख्या संगीत विषय लेकर पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक जादू था, जो उसकी एक पहचान बन गयी थी. काॅलेज के कार्यक्रमों में वह अपने मधुर स्वर के कारण सभी की प्रिय थी. इसी तरह समय धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और व्याख्या ने संगीत में कक्षा-10 तक काफी ख्याति प्राप्त कर ली थी.

आलोक उसी की कक्षा में था और वह व्याख्या को देखता रहता था. कभी भी कोई भी दिक्कत, परेशानी किसी भी प्रकार की होती थी, तो आलोक उसे हल कर देता था. दोपहर इन्टरवल में लड़कियों की महफिल अलग रहती और लड़कों की मंडली अलग रहती थी. लेकिन आलोक की नजर व्याख्या पर ही होती थी.

हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर व्याख्या कक्षा-11 में पहुंच गयी थी और आलोक भी कक्षा-10 उत्तीर्ण कर कक्षा-11 में पहुंच गया था. शाम 3 बजे से 4 बजे तक संगीत की क्लास चलती थी तथा सभी बच्चों में सबसे होशियार और मेहनती व्याख्या ही मानी जाती थी. कक्षा ग्यारह के बाद यानि कि छः वर्ष में व्याख्या ने संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल कर ली थी, जिससे शहर और अन्य शहरों में स्टेज कार्यक्रम के लिए आमंत्रित की जाने लगी. माँ वीणादायिनी ने व्याख्या को बहुत उम्दा स्वर प्रदान किये थे, जिसके कारण गायन में व्याख्या का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाना लगा. व्याख्या को कई सम्मानों से सम्मानित किया जाने लगा. अब तो जहाँ कहीं भी संगीत-सम्मेलन होता, सबसे पहले व्याख्या आहूत की जाती. यदि शहर में कार्यक्रम होता तो आलोक वहाँ व्याख्या को सुनने पहुँच जाता और व्याख्या कार्यक्रम देते समय एक नजर आलोक को जरूर देख लेती थी मगर उसका अधिक सांवलापन उसके जेहन को हमेशा झझकोरता रहता था.

धीरे-धीरे समय बीतता गया और व्याख्या ने संगीत की प्रवीण परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन इतना होने पर भी वह हर समय यही सोचती रहती थी कि मेरे माता-पिता इतने सुन्दर है फिर मैं काली कैसे पैदा हो गयी. उसका रूप-रंग ना जाने किस पर चला गया.

आज व्याख्या संगीत के चरम पर विराजमान थी. शास्त्रीय संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़ियाँ चढ़ती चली जा रही थी और संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी-मानी गायिका कहलाने लगी थी. उसे आज भी याद है कि…..

घर के बाहर खूबसूरत लाॅन में बैठी धीरे-धीरे ना जाने क्या सोचते-सोचते वह चाय का प्याला हाथ में लिए अपनी आरामवाली कुर्सी पर बैठी थी. ‘‘मेम साहब, आपका पत्र आया है ? ‘अरे आप ने तो चाय पी नहीं, अब तो यह बहुत ठंडी हो गयी होगी, लाइये दूसरी बना लाऊँ. ‘‘ बिना उत्तर की प्रतीक्षा करे हरि काका ने मेरे हाथ से प्याला लिया और पत्र मेज पर रखकर चले गये. मैंने देखा आलोक का पत्र था. ‘‘व्याख्या, तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ बहुत लड़ चुका हूँ मैं अपने अहं से. अब थक गया हूँ, हार चुका हूँ…….. मुझे नहीं मालूम कि मैं किसके लिए जी रहा हूँ,? मैं नहीं जानता कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं, पर तुम्हारे वापस आने की उम्मीद ही मेरे जीवन का मकसद रह गया है, बस उसी क्षण का इन्तजार है, ना जाने क्यों…………….? आओगी न,…………..

पत्र पढ़ने के बाद व्याख्या की भाव शून्य आंखों में एक भाव लहरा कर रह गया. पत्र तहा कर उसने लिफाफे में रख दिया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि आलोक जैसा जिद्दी, अभिमानी और कठोर दिल इंसान भी इस तरह की बातें कर सकता है. जरूर कोई मतलब होगा, मेज पर पड़ी किताब के पन्ने हवा के झोंके के कारण फड़फड़ाते हुये एक तरफ होने लगे. जिंदगी के पंद्रह वर्ष पीछे लौटना व्याख्या के लिए मुश्किल नहीं था क्योंकि उसके आज पर पन्द्रह वर्षों के यादों का अतीत कहीं न कहीं हावी हो जाता है.

सोचते-सोचते वह आज भी नहीं समझ पाई कि माँ-पापा तो खूबसूरत थे, पर उसकी शक्ल न जाने किस पर चली गयी, पर माँ उसे हमेशा हिम्मत बंधाती थी कि ‘‘कोई बात नहीं बेटी, ईश्वर ने तुझे रंग नहीं दिया तो क्या हुआ, तू अपने नाम को इतना विकसित कर ले कि सब तेरी व्याख्या करते ना थके.’’ बस व्याख्या ने सचमुच अपने नाम को एक पहचान देनी प्रारम्भ कर दी. उसने हुनर का कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा, साथ ही ईश्वर की दी गयी वो नियामत जिसे व्याख्या ने पायी थी., ‘सुरीली आवाज’ जिसके कारण वह संगीत की दुनिया में लगातार सीढ़िया चढ़ती गयी और शास्त्रीय संगीत की दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की एक जानी मानी गायिका कहलाने लगी.

उसे आज भी याद है कि अहमदाबाद का वो खचाखच भरा सभागार और सामने बैठे जादू संगीतज्ञ पं0 राम शरन पाठक जी. सितार पर उंगलिया थिरकते ही, सधी हुई आवाज का जादू लगातार डेढ़ घंटे तक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया. दर्शकों की तालियाँ और पं0 जी के वो वचन कि ‘‘बेटी तुम बहुत दूर तक जाओगी. शायद आज उनकी वो बात सच हो गयी लेकिन उन दर्शकों में एक हस्ती, जो नामी-गिरामी लोगों में जानी जाती थी, देवाशीस जी, उनका खत एक दिन पिता के नाम पहुँचा कि ‘‘हमें अपने बेटे के लिए आपकी सुपुत्री चाहिए जो साक्षात सरस्वती का ही रूप है. ‘‘एक अंधा क्या मांगे दो आंखे. मेरे पिताजी ने बगैर कुछ सोचे समझे हाँ कर दी. शादी के समय मंडप पर बैठे उन्हें देखा था, एक संुदर राजकुमार की तरह लग रहे थे. सभी परिवार के लोग मुझे मेरी किस्मत पर बधाई दे रहे थे. पर खुदा को कुछ और मंजूर था. आलोक जिन्हें मैं बिल्कुल पसन्द नहीं थी. शादी के बाद क्या, उसी दिन ही अपने पिताजी से लड़ना कि ‘‘कहाँ फसा दिया’’ इस बदसूरत लड़की के साथ. आलोक घर पर नहीं रूके और पूरे आग बबूला होकर घर छोड़कर चले गये. मेरे सास-ससुर ने सचमुच दिलासा दी. सुबह उठकर नहा धोकर बहू के सारे कर्तव्य निभाते हुये मैं भगवान भजन भी गाती रही. सास ससुर तो अपनी बहू की कोयल सी आवाज पर मंत्र मुग्ध थे, पर मैं कहीं न कहीं अपनी किस्मत को रो रही थी. आलोक पन्द्रह-बीस दिन में कभी-कभार आते थे, लेकिन मेरी तरफ रूख भी नहीं करते थे, बस अपनी जरूरत की चीजें लेकर तुरन्त निकल जाते थे, अब तो यह नियम सा बन गया था. मैं भी अपनी किस्मत को ही निर्णय मान लिया लेकिन कहीं न कही आलोक का इंतजार भी था.

एक दिन मुझे चुपचाप बैठे देख ससुर जी ने कहा-कि ‘‘मैं तो एक बढ़िया सी खुशखबरी लाया हूँ, वो यह कि एक संगीत आयोजन में विशेष  प्रस्तुति के लिए तुम्हारे नाम का आमंत्रण आया है, ‘‘पर बाबूजी मुझे तो दो साल हो गये हैं स्टेज शो किये हुए. अब डर लगता है, पता नहीं क्यों ? में आत्मविश्वास खो सा गया है. नहीं-नहीं मैं नहीं गा पाऊँगी‘‘व्याख्या ने कहा. तुम गा सकती हो, मेरी बेटी जरूर गायेगी और जायेगी, पिता जी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा. ‘‘बाबूजी के विश्वास से ही मैंने अपना रियाज शुरू कर दिया. बाबूजी घंटो मेरे साथ रियाज में मेरा साथ देते. वो दिन आ गया. खचाखच भरा वही सभागार, अचानक उसे याद आया कि उसी मंच से तो उसके जीवन में अंधेरा आया लेकिन आज इसी मंच से तो उसके जीवन का नया सवेरा होने वाला है. कार्यक्रम के बाद दर्शकों की बेजोड़ तालियों ने एक बार फिर मुझे वो आत्मविश्वास भर दिया जो सालों पहले कहीं खो गया था.

दूसरे दिन मैं अपनी तस्वीर अखबार में देख रहीं थी कि बाबूजी अचानक घबराते हुए आये और कहने लगे बेटी ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, आलोक का एक्सीडंेट हो गया.’’ व्याख्या के चेहरे पर कोई शिकन न उभरी लेकिन अचानक हाथ सर की मांग में भरे सिंदूर पर गया कि यह तो आलोक के नाम का है.

मैं बाबूजी के साथ गाड़ी में बैठ गयी. अस्पताल में शरीर पर कई जगह पर गहरी चोटों को लिए आलोक बुरी हाल में डाक्टरों की निगरानी में था. पुलिस ने मुझसे आकर पूछा कि-‘‘आप जानती हैं, इसके साथ कार में कौन था ?‘‘मैं समझ नहीं पाई कि किसकी बात हो रही है, फिर थोड़ी देर में पता चला कि आलोक के गाड़ी में जो मैडम थी, उनको नहीं बचाया जा सका. पूरे एक हफ्ते बाद जब आलोक को होश आया तो आंखें खुलते ही उसने पूछा-‘‘मेघा कहाँ है’’? डाॅक्टर साहब, वह ठीक तो है न ? वह मेरी पत्नी है.‘‘ पुलिस की पूछ-ताछ से पता चला कि उन दोनों का एक पाँच महीने का बेटा भी है जो अभी नानी के यहां है ? व्याख्या के सब्र का बांध टूट गया और उसमें इससे ज्यादा कुछ सुनने की शक्ति न बची. 6-7 महीने का कम्पलीट बेड रेस्ट बताया था डाॅक्टर ने. आलोक घर आ चुका था. व्याख्या आलोक का पूरा ध्यान रखती, खाने-पीने का, दवाई का. पूरी दिनचर्या के हर काम वह एक पत्नी की अहमियत से नहीं, इंसानियत के रिश्ते से कर रही थी. चेहरे पर पूरा इत्मीनान, कोमल आवाज, सेवा-श्रद्धा, धैर्य, शालीनता ना जाने और कितने ही गुणों से परिपूर्ण व्याख्या का वह रूप देखकर खुद अपने व्यवहार के प्रति मन आलोक का मन आत्मग्लानि से भर जाता. इतना होने पर भी वही भावशून्य व्यवहार.

कितनी बार मन करा कि वो मेरे पास बैठे और मैं उससे बाते करूँ, लेकिन वह सिर्फ काम से काम रखती, सेवा करती और मेरे पास बोलने की हिम्मत न होने के कारण शब्द मुंह में रह जाते. व्याख्या अपने कार्यक्रम के लिए बाबूजी के साथ भोपाल गयी थी. आलोक ने सोचा लौटने पर अपने दिल की बात जरूर व्याख्या से कह देगा और मांफी मांग लेगा. भोपाल से लौटने पर बाबूजी ने खबर दी कि-‘‘मेरी बहू का दो साल तक विदेशों में कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है, अब मेरी बहू विदेशों में भी अपने स्वर से सबको आनन्दित करेगी. ‘‘एक दिन जब व्याख्या सुबह नहाकर निकली तो आलोक ने कहा-‘‘ मैं अपनी सारी गलतियों को स्वीकारता हूँ. मैं गुनहगार हूँ तुम्हारा………………….मुझे माफ कर दो………..’’ कितना आसान होता है न मांफी मांगना. पर सब कुछ इससे नहीं लौट सकता ना, जो मैंने खोया है, जितनी पीड़ा मैने महसूस की है, जितने आंसू मैनें बहाए हैं, जितने कटाक्ष मैनें झेले हैं. क्या सच है उसकी बिसात और फिर आलोक जो आपने किया यदि मैं करती तो क्या मुझे स्वीकारते ? नहीं, कभी नहीं बल्कि मुझे बदचलन होने का तमगा और तलाक का तोहफा मिलता. व्याख्या ने बिना कुछ कहे मन में सोचा. व्याख्या के कुछ न कहने पर उस समय तो आलोक को मानो काठ मार गया. वो अपनी जिंदगी की असलियत पर  पड़ा परदा हटते देख रहा था कि वह कैसा था…‘‘इतने दिनों तक मैनें आपकी सेवा की, आपका एहसान उतारने के लिए. मैं वास्तव में एहसान मंद हूँ. आपने जितना अपमानित किया उतना ही अधिक अपने लक्ष्य के प्रति मेरा निश्चय दृढ हुआ है.‘‘ अचानक व्याख्या की आवाज से आलोक अपनी सोच से बाहर आया. व्याख्या एक आर्कषक अनुबंध के अंतर्गत विदेश यात्रा पर निकल गयी और अब जब कभी वह लौटती तो, प्रायोजकों के द्वारा भेंट किये गये किराये के बंगले पर ठहरती, लेकिन कभी-कभार बाबूजी से मिलने जरूर आती. एक-एक दिन करके महीने और अब तो कई साल गुजर गये, सभी अपने आप में मस्त हैं. संगीत के अलावा कुछ नहीं सूझता व्याख्या को. अब तो वही उसके लिए प्यार, वही जीवनसाथी. कार्यक्रमों की धूम, प्रशंसकों की भीड़ पूरे दिन व्यस्त रहती, मगर फिर एक रिक्तता थी, जीवन में. रह रहकर आलोक का ख्याल आता, दुर्घटना के पहले और बाद में आलोक के साथ बिताए एक-एक पल उसकी स्मृति में उमड़ने-घूमड़ने लगे. लेकिन आज आलोक की यह छोटी सी चिट्ठी. पर इतने छोटे से कागज पर, कम मगर कितने स्पष्ट शब्दों में बरसों की पीड़ा को सहजता से उकेर कर रख दिया है उसने, आखिर कब तक अकेली रहेगी वह? सब कुछ है उसके पास, मगर वह तो नहीं है जिसकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है. व्याख्या सोच में पड़ गयी. बाबूजी भी बीमार चल रहे हैं, मिलने जाना होगा.

अगले ही दिन व्याख्या ससुराल पहुँची, चेहरे पर टांको के निशानों के साथ आलोक बहुत दुबला प्रतीत हो रहा था. बाबूजी को देखने के पश्चात जैसे ही व्याख्या दरवाजे के बाहर निकली, आलोक ने उसका हाथ थाम लिया. बरसों पहले कहा गया वाक्य फिर से लड़खड़ाती जुबान से निकल पड़ा-‘‘व्याख्या, क्या हम नई जिंदगी की शुरूआत नहीं कर सकते? ‘‘क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती? व्याख्या की निगाहें आलोक के चेहरे पर टिक गयी. घबरा कर आलोक व्याख्या का हाथ छोड़ने ही वाला था कि व्याख्या मुस्करा उठी. मजबूती से आलोक ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए ‘‘अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा. ‘‘व्याख्या शरमा कर आलोक के सीने से लग गयी. आज उसके दीप्तिमान तेजोमय मुखमंडल पर जो मुस्कान आई उसे लगा वास्तव में आज ही उसकी संगीत का रियाज पूरा हुआ और आत्म संगीत की वर्षा हुई है. क्योंकि कल उसके जीवन का नया सवेरा जो आने वाला था.

लेखिका- डाॅ0 अनीता सहगल ‘वसुन्धरा’

Short Story- एक लड़की: जब पहली बार प्यार में मुसकराई शबनम

मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.

एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.

‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.

गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’

मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’

शबनम उसे लगातार डांट रही थी और वह खामोशी से शबनम को देखे जा रहा था. उस का दायां हाथ काफी जख्मी हो गया था. एक तरफ चेहरे और पैरों पर भी चोट लगी थी. माथे से भी खून बह रहा था.

बाजी बालटी में पानी भर लाईं और शबनम उस में रुई डुबाडुबा कर उस के घाव पोंछने लगी. फिर घाव पर डिटोल लगा कर पट्टी बांध दी और मुझ से बोली, ‘‘तू जरा इसे ठंडा पानी पिला दे, तब तक मैं इस के घर वालों को खबर कर देती हूं.’’

‘‘तू इसे पहले से जानती थी शबनम?’’ मैं ने पूछा तो वह मुसकराई.

‘‘अरे नहीं, मैं औफिस से आ रही थी, तो देखा यह लड़का जानबूझ कर गाड़ी के नीचे आ गया. इस के सिर पर चोट लगी थी, इसलिए यहां उठा लाई. अब घर वाले आ कर इसे अस्पताल ले जाएं या घर, उन की मरजी,’’ कह कर उस ने लड़के से उस के पिता का नंबर पूछा और उन्हें बुला लिया.

इधर मैं अपने कमरे में आ कर शबनम के बारे में सोचने लगी. आज कितना अलग रूप देखा था मैं ने उस का. उस लड़के के घाव पोंछते वक्त वह कितनी सहज थी. लड़कियां चाहे कुछ भी कहें, आज मैं ने महसूस किया था कि वह दिल की कितनी अच्छी है.

पूरे होस्टल में अक्खड़, मुंहफट और घमंडी कही जाने वाली शबनम की बुराई करने से कोई नहीं चूकता. लड़कियां हों या गार्ड या फिर कामवाली, हर किसी की यही शिकायत थी कि शबनम कभी सीधे मुंह बात नहीं करती है. अकड़ दिखाती है. टीवी देखने आती है तो जबरदस्ती वही चैनल लगाती है, जो उसे देखना हो. दूसरों की नहीं सुनती. वैसे ही उस की जिद रहती है कि काम वाली सुबह सब से पहले उस का कमरा साफ करे.

पहनावे में भी दूसरों से बिलकुल अलग दिखती थी वह. गरमी हो या सर्दी, हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहनती, जिस की नैक भी ऊपर तब बंद होती. उस की इस अटपटी ड्रैस की वजह से लड़कियां अकसर उस का मजाक उड़ाती थीं पर वह इस पर ध्यान नहीं देती थी.

देखने में वह खूबसूरत थी पर नाम के विपरीत चेहरे पर कोमलता नहीं सख्ती के भाव होते थे. डीलडौल भी काफी अच्छा था और आवाज काफी सख्त थी, जो उस की पर्सनैलिटी को दबंग बनाती थी और सामने वाला उस से पंगे लेने से बचता था.

वह मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में रहती थी, इसलिए मुझ से उस की थोड़ीबहुत बातचीत होती रहती थी. हम 1-2 दफा साथ घूमने भी गए थे, पर हमेशा ही मुझ वह ऐसी बंद किताब लगी जिसे चाह कर भी पढ़ना मुमकिन नहीं था.

8-10 दिन बाद की बात है, मैं ने देखा, शबनम ग्राउंड में बैंच पर बैठी किसी लड़के से बात कर रही है. उस वक्त शबनम की आवाज इतनी तेज थी कि लग रहा था, वह उस लड़के को डांट रही है. 2-3 लड़कियां उधर से शबनम का मजाक उड़ाती हुई आ रही थीं.

एक कह रही थी, ‘‘लो आ गई उस लड़के की शामत. उसे नहीं पता कि किस लड़की से पाला पड़ा है उस का.’’

दूसरी ने कमैंट किया, ‘‘लड़का कह रहा होगा, मुझ पर करो न यों सितम…’’

मैं ने गौर से देखा, यह तो वही लड़का था, जिस की उस दिन शबनम ने मरहमपट्टी की थी. लड़का अब काफी हद तक ठीक हो चुका था पर माथे और हाथ पर अभी भी पट्टी बंधी थी.

बाद में जब मैं ने शबनम से उस के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘धन्यवाद कहने आया था और हिम्मत तो देखो, मुझ से दोस्ती करना चाहता था. कह रहा था, फिर मिलने आऊंगा.’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘अरे, मुझे क्या कहना था, अच्छी तरह समझा दिया कि मैं दोस्तीवोस्ती के चक्कर में नहीं पड़ने वाली. रोजरोज मेरा दिमाग खाने के लिए आने की जरूरत नहीं. लड़कों की फितरत अच्छी तरह समझती हूं मैं.’’

आगे उस लड़के का हश्र क्या होगा, यह मैं अच्छी तरह समझ सकती थी, इसलिए शबनम को और न छेड़ते हुए मैं मुसकराती हुई अपने कमरे में चली आई.

उस दिन के बाद 2-3 बार और भी मैं ने उस लड़के को शबनम से बातें करते देखा और हमेशा शबनम उसे झिड़कती हुई ही दिखी. एक दिन उस ने बताया कि वह लड़का हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन भी करने लगा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं. अरे यार, बदतमीजी की भी हद होती है. घाव पर मरहम क्या लगाया, वह तो हाथ पकड़ने पर आमादा हो गया है.

‘‘तो इस में बुराई क्या है यार. वह तुझे इतना चाहता है, देखने में भी हैंडसम है. अच्छा कमाता है, घरपरिवार भी अच्छा है, तू ने ही बताया है. तो तू मना क्यों कर रही है? क्या कोई और है तेरी जिंदगी में?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, कोई और नहीं है. जरूरत भी नहीं है मुझे. और वह जैसा भी है उस से मुझे क्या लेनादेना? आज पीछे पड़ा है, तो हो सकता है कल देखना भी न चाहे, अजनबी बन जाए. हजारों कमियां निकाले मुझ में. इतना ही अच्छा है तो ढूंढ़ ले न कोई अच्छी लड़की. मैं ने क्या मना किया है? मैं क्यों अपनी खुशियां किसी और के आसरे छोड़ूं? जैसी भी हूं, ठीक हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो उठीं.

‘‘शबनम, प्यार बहुत खूबसूरत होता है. वह वीरान जिंदगी में खुशियों की बहार ले कर आता है. किसी से हो जाए तो सूरत, उम्र, जाति कुछ नहीं दिखता. इंसान इस प्यार को पाने के लिए हर कुरबानी देने को तैयार रहता है.’’ मैं ने समझना चाहा.

पर वह अकड़ती हुई बोली, ‘‘बहुत देखे हैं प्यार करने वाले. मैं इन झमेलों से दूर सही…’’ और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन वह लड़का मुझ होस्टल के गेट पर मिल गया. मुझ से विनती करता हुआ बोला, ‘‘प्लीज नेहाजी, आप ही समझओ न शबनमजी को. वे मुझ से मिलना नहीं चाहतीं.’’

‘‘तुम प्यार करते हो उस से?’’ में ने सीधा प्रश्न किया तो चकित नजरों से उस ने मेरी तरफ देखा फिर सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. जिंदगी में पहली दफा ऐसी लड़की देखी. खुद पर निर्भर, दूसरों के लिए लड़ने वाली, आत्मविश्वास से भरपूर. उस ने मुझे जीना सिखाया है. मुश्किलों से हार मानने के बजाय लड़ने का जज्बा पैदा किया है. मैं ने तो औरतों को सिर्फ पति के इशारों पर चलते, रोतेसुबकते और घरेलू काम करते देखा था. पर वह बहुत अलग है. जितना ही उसे देखता हूं, उसे पाने की तमन्ना बढ़ती जाती है. प्लीज, आप मेरी मदद करें. मेरे मन की बातें उस तक पहुंचा दें.’’

‘‘मैं कोशिश करती हूं,’’ मैं ने कहा तो उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मुझे नमस्ते कर के वह चला गया.

रात को मैं फिर से शबनम के कमरे में दाखिल हुई. वह अकेली थी. ‘‘आज वह गेट पर मिला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानती हूं. मुझे बाहर बुला रहा था लेकिन मैं नहीं गई.’’

मैं ने उसे कुरेदा, ‘‘तू प्यार से भाग क्यों रही है? जानती है, प्यार हर दर्द मिटा देता है?’’

वह हंसी, ‘‘प्यार दर्द मिटाता नहीं, नए जख्म पैदा करता है. बहुत स्वार्थी होता है प्यार.’’

‘‘मैं आज वजह जान कर रहूंगी कि आखिर क्यों भागती है तू प्यार से? या तो मुझे हकीकत बता दे या फिर उस लड़के को अपना ले जो सिर्फ तेरी राह देख रहा है.’’

‘‘मैं ने भी देखी थी किसी की राह पर उस ने…,’’ कहते हुए अचानक उस की आंखें भीग गईं.

मैं ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘शबनम, अपने दिल का दर्द बाहर निकाल. तभी तू खुश रह सकेगी. मुझे सबकुछ बता दे. मैं जानती हूं, तू दिल की बहुत अच्छी है. पर कुछ तो ऐसा है जो तेरे दिल को तड़पाता है. यह पीड़ा तुझे सामान्य नहीं रहने देती. तेरे चेहरे, तेरे व्यवहार में झलकने लगती है. यकीन रख, तू जो भी बताएगी, वह सिर्फ मुझ तक रहेगा. पर मुझ से कुछ मत छिपा. किस ने चोट पहुंचाई है तुझे?’’

वह थोड़ी नौर्मल हुई तो बिस्तर पर पीठ टिका कर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘नेहा,

4 साल पहले तक मैं भी एक ऐसी लड़की थी जिस का दिल किसी के लिए धड़कता था. मैं भी प्यार को बहुत खूबसूरत मानती थी. मेरी भी तमन्नाएं थीं, कुछ सपने थे. दूसरों से प्रेम से बातें करना, मिल कर रहना अच्छा लगता था मुझे. जिसे प्यार किया, उसी के साथ पूरी उम्र गुजारना चाहती थी और उस की यानी विक्रम की भी यही मरजी थी. उस ने मुझे हमेशा ऐतबार दिलाया था कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे साथ घर बसाना चाहता है. हमारी जोड़ी कालेज में भी मशहूर थी. पर वक्त की चोट ने उस की असलियत मेरे सामने ला कर रख दी.’’

‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी बांह और पीठ पर सफेद निशान हो गए हैं. मैं घबरा गई. डाक्टरों के चक्कर लगाने लगी पर दाग बढ़ते ही गए. जब मैं ने यह राज विक्रम के आगे खोला तो उस के चेहरे के भाव ही बदल गए और 2-4 दिनों के अंदर ही उस का व्यवहार भी बदलने लगा. अब वह मुझसे दूर रहने की कोशिश करता. हालांकि 1-2 दफा मेरे कहने पर वह मेरे साथ डाक्टर के यहां भी गया पर कुछ अनमना सा रहता था. धीरेधीरे वह मिलने से भी कतराने लगा.

‘‘उधर हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और पापा को मेरी शादी की फिक्र होने लगी. मैं ने विक्रम से इस बारे में चर्चा की तो वह शादी से बिलकुल मुकर गया. मैं तड़प उठी. उस के आगे रोई, गिड़गिड़ाई पर सिर्फ इस सफेद दाग की वजह से वह मुझ से जुड़ने को तैयार नहीं हुआ.’’ कहते हुए उस ने अपने कुरते की बाजू ऊपर उठाई. उस की बांह पर कई जगह सफेद दाग थे.

शून्य की तरफ देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आज भी उसे भुला नहीं सकी पर

कहां जानती थी कि उस का प्यार सिर्फ मेरे शरीर से जुड़ा था. शरीर में दोष उत्पन्न हुआ तो उस ने राहें बदल लीं. किसी और से शादी कर ली. तभी मैं ने समझा कितना स्वार्थी, कितना संकीर्ण होता है यह प्यार.

‘‘मैं ने तो विक्रम की शक्ल नहीं देखी थी. देखने में बिलकुल ऐवरेज था. सांवला, मोटा. मैं उस से बहुत खूबसूरत थी. मैं चाहती तो उस की कमियां गिना कर उसे ठुकरा सकती थी. पर मैं ने तो प्यार किया था और उस ने ऐसी चोट दी कि सारे जज्बात ही खत्म कर डाले. तभी से मुझ में एक तरह की जिद आ गई. मैं समझ गई कि जिंदगी में मांगने पर कुछ नहीं मिलता. मुझे जो चाहिए होता वह जबरदस्ती दूसरों से छीनने लगी. खुद को कमजोर महसूस नहीं कर सकती मैं. किसी की सहानुभूति भरी नजरें भी नहीं चाहिए. न ही किसी का इनकार सह पाती हूं. यही जिद मेरे व्यवहार में नजर आने लगा है. और शायद यही वजह है कि मैं 35 की हो गई पर शादी के नाम से दूर भागती हूं.’’

‘‘यह सब बहुत ही स्वाभाविक है शबनम. पर सच तो यह है कि विक्रम का प्यार मैच्योर नहीं था. वह दिल से तुझ से जुड़ ही नहीं सका था, इसीलिए तुम्हारे रिश्ते का धागा बहुत कमजोर था. वह हलकी सी चोट भी सह नहीं सका. पर अर्पण की आंखों में देखा है मैं ने, वाकई उस के दिल में सिर्फ तुम हो, क्योंकि उस ने सूरत देख कर नहीं, तुम्हारे गुण देख कर तुम्हें चाहा है. इसलिए वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. किसी स्वार्थी इंसान की वजह से खुद को खुशियों से बेजार रखना कहां की अक्लमंदी है?

‘‘शबनम, यदि ठंडी हवा के झोंके सा अर्पण का प्यार तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगा सकता है, तो दिल की खिड़कियां बंद कर लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं कैसे मान लूं कि अर्पण का प्यार सच्चा है, स्वार्थी नहीं.’’

‘‘ऐसा कर, उसे हर बात बता दे. फिर देख, वह क्या कहता है. मैं जानती हूं, उस का जवाब निश्चित रूप से हां होगा.’’

शबनम ने उसी वक्त फोन उठाया और बोली, ‘‘ठीक है, यह भी कर के देख लेती हूं. अभी तेरे सामने बताती हूं उसे सब कुछ.’’

फिर उस ने फोन मिलाया और स्पीकर औन कर बोली, ‘‘अर्पण, मैं तुम से बात

करना चाहती हूं अभी, इसी वक्त. समय है तुम्हारे पास?’’

‘‘बिलकुल, आप कहिए तो,’’ अर्पण ने जवाब दिया.

‘‘अर्पण, तुम्हारे दिल की बात नेहा ने मुझ तक पहुंचा दी है. अब मैं अपनी जिंदगी की असलियत तुम तक पहुंचाना चाहती हूं. बस एक हकीकत, जिसे सुन कर तुम्हारा सारा प्यार काफूर हो जाएगा…’’

‘‘ऐसा क्या है शबनमजी?’’

‘‘बात यह है कि मेरे पूरे शरीर पर सफेद दाग हैं, जो ठीक नहीं हो सकते. गले पर, पीठ पर, बांहों पर और आगे… हर जगह. अब बताओ, क्या है तुम्हारा फैसला?’’

‘‘फैसला क्यों बदलेगा शबनमजी? और दूसरी बात यह कि किस ने कहा दाग ठीक नहीं हो सकते? मेरे अंकल डाक्टर हैं, उन्हें दिखाएंगे हम. वक्त लगता है, पर ऐेसे दाग ठीक हो जाते हैं. मान लीजिए, ठीक न हुए तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं आप को चाहता हूं. कमियां तो मुझ में भी हैं, पर उस से क्या? एकदूसरे को अपनाने का मतलब एकदूसरे की खूबियों और कमियों को स्वीकारना ही तो होता है. कल को मेरे शरीर पर कुछ हो जाए या मुझे कोई बीमारी हो जाए तो क्या आप मुझे छोड़ देंगी? नहीं न शबनमजी, बताइए? मेरी मम्मी पास ही बैठी हैं, उन्होंने सब कुछ सुन लिया है और उन की तरफ से भी हां है. आप बस मेरा साथ दीजिए. आप नहीं जानतीं, मैं ने बहुत कुछ सीखा है आप से. आप मेरे साथ रहेंगी तो मैं खुद को बेहतर ढंग से पहचान सकूंगा. जी सकूंगा अपनी जिंदगी. आई लव यू…’’

शबनम ने मेरी तरफ देखा. मैं ने उस से हां कहने का इशारा किया तो

वह धीरे से बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू…’’

फिर शबनम ने तुरंत फोन काट दिया और मेरे गले लग कर रोने लगी. मैं जानती थी. आज उस की आंखें भले ही रो रही हों पर दिल पहली दफा पूरी तरह प्यार में डूबा मुसकरा रहा था.

Popular Hindi Story- कुछकुछ होता रहेगा: खतरनाक निकली रोहन की सचाई

‘‘हाय,   यह कितना हैंडसम है, यार. इस की किलर स्माइल. कोई लड़का इतना अच्छा कैसे हो सकता है. कहीं किसी दिन इसे देख कर ही मेरा हार्ट फेल न हो जाए. अगर कहीं मैं कालेज में ही इसे घूरते हुए अपनी जान दे दूं, तो मेरे घर वालों को बता देना कि आप की लड़की एक बेमुरव्व्त के इश्क में शहीद हो गई.’’

मैं ने शायद आज थोड़ा ज्यादा ही नौटंकी कर दी थी. मेरी बैस्टी पूजा ने मुझे पीठ में जोर से एक धौल जमाते हुए कहा, ‘‘कितनी बकवास करती है तू. अच्छाभला शरीफ सा लड़का है रोहन. कितना सोबर है, देख, तू सुधर जा.’’

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं ने उसी रौ में कहा, ‘‘कुछकुछ होता है पूजा, तुम नहीं समझोगी.’’

‘‘मूवीज कम देखा कर, सारे डायलौग हमें सुनने पड़ते हैं.’’

‘‘क्या करूं यार,’’ कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘‘उसे न देखूं तो चैन मुझे आता नहीं है, एक उस के सिवा दिल को कोई भाता नहीं है, कहीं मुझे प्यार हुआ तो नहीं है…’’

अब तक हमारे साथ चुप बैठी अनीता ने अपने कानों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘यार, इस का नशा कैसे उतारें. रोहन को तो पता ही नहीं होगा कि उस के प्यार में हम कैसेकैसे नाटक देख रहे. सुन सोनिका, तू जा रोहन के पास, उसे अपने दिल का हाल बता दे, फिर तू जाने या वह जाने,’’ कह, ‘‘हम बोर हो चुके सनम…’’ उस ने भी गुनगुनाया. हम तीनों अकसर गानों में जवाब देते हैं एकदूसरे को.

रोहन इस समय अपने दोस्त शिविन के साथ कैंटीन में बैठा चाय पी रहा था और मैं अपनी सहेलियों पूजा और अनीता के साथ एक कोने में बैठी समोसे खा रही थी. हम इस कालेज में बीए के फ्रैशर्स थे और रोहन हम से 1 साल सीनियर. वैसे तो हम लोगों की बीचबीच में थोड़ी रैगिंग होती रहती थी, सीनियर्स कभी भी अचानक आ जाते. ज्यादा नहीं, इंट्रोडक्शन लेने के लिए आए हैं, कहते तो यही पर हम से बहुत कुछ करवाया जाता. 2-3 दिन में ही जब सीनियर्स हम से मिलने आए, तो रोहन भी उन में था. बस, मैं ने उसे क्या देखा, मर मिटी उस पर. तब से सहेलियों की गालियां खा रही हूं, पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

नयानया जोश है, गर्ल्स कालेज से सीधे कोऐजुकेशन में आए हैं. लड़के

दिखते हैं कालेज में, जरा अच्छा लगता है. अभी तो 12वीं तक स्कूल यूनिफौर्म में घूम रहे थे, अब जरा लाइफ लाइफ जैसी लगती है. वरना तो कभी स्कूल के लिए तैयार होते समय में ऐक्ससाइटमैंट नहीं हुआ. पता होता कि जो यूनिफौर्म रात में प्रैस की है, वही पहननी है. अब तो रोज कभी कुछ पहना जाता है, कभी कुछ. मजा तो अब आ रहा है. रोहन को क्या देखा, सारे हीरो दिनभर याद आते.

कभी उस का साइड फेस ऋ तिक की तरह लगता, कभी नाक वरुण धवन जैसी लगती, कभी बाल जौन अब्राहम जैसे लगते.

पूजा और अनीता को कभीकभी मुझ पर तरस भी आता, कहतीं, ‘‘हाय, अच्छीभली थी बेचारी गर्ल्स कालेज में, जब से यहां आई है सटक गई है.’’

कभी कहतीं, ‘‘सोनिका, कहीं तू रोहन की मुहब्बत में बदनाम न हो जाना, तेरी आंखें चुगली करने लगी हैं.’’

वे मुझ से कम फिल्में थोड़े ही देखती थीं. भरपूर फिल्मी स्टाइल में ज्ञान देतीं. फिल्मों के मारे तो हम तीनों ही थे. हम बचपन की एक गली में रहने वाली सहेलियां थीं. मैं सीने पर हाथ रख कर ठंडी सांस लेती कहती, ‘‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा.’’

दोनों सिर पकड़ लेतीं, फिर कहतीं, ‘‘तुम वैसे हो ही गर्ल्स कालेज में पढ़ने लायक. यहां आते ही लड़केबाजी शुरू कर दी. बेचारा शरीफ लड़का है, तुम्हें नजर उठा कर भी नहीं देखता और तुम जैसे उसे आंखों में ही गटक जाओगी किसी दिन, ऐसे देखती हो.’’

‘‘हाय, वह शराफत छोड़ दे थोड़ी तो मजा आ जाए.’’

इतने में हम ने देखा कि रोहन और शिविन कैंटीन से जाने के लिए उठ गए. फिर मेरा मन कैंटीन से उचट गया. मैं ने कहा, ‘‘उठो, हो गए समोसे.’’

दोनों मुझे घूरती हुई खड़ी हो गईं. हम जैसे ही अपनी क्लास में गए, पता चला प्रोफैसर नहीं आए हैं. यह हमारा हिंदी का पीरियड था. देखा तो सीनियर्स चले आ रहे थे. पूजा की हालत उन्हें देख कर खराब होती थी.

मुझे रोहन भी पीछे आता दिखा तो मैं ने पूजा से धीरे से कहा,’’ अरे देखो, पलाश भी है, बस उस पर ध्यान दो डर नहीं लगेगा.’’

पूजा ने चिढ़ कर मुझे इतनी जोर से चिकोटी काटी कि मेरी सीईई की आवाज जोर से निकली. सीनियर्स का ध्यान इस सी पर जाना ही था. उन में एक लड़की भी थी. बोली, ‘‘क्यों भई, किसे देख कर सीसी कर रही हो?’’

मन हुआ कह दूं, यह जो तुम्हारे पीछे खड़ा है, बस इसे देख कर सीसी करती हूं आजकल. पर मैं इतना ही बोली, ‘‘चोट लग गई थी मुझे.’’

रोहन ने पूछ लिया, ‘‘कैसे? कहां? आप ठीक तो हैं?’’

हाय, रोहन ने पूछा मुझ से सब के सामने. मैं ने अचानक विजयीभाव से पूजा और अनीता को देखा. उन्हें तो जैसे करंट लगा था. मुझ लगा, बस सब गायब हो जाएं और मैं और रोहन किसी फिल्मी सीन की तरह एकदूसरे की आंखों में आंखें डालते हुए गाते रहें, ‘‘आंखों की गुस्ताखियां माफ हो…’’

वह सीनियर लड़की फिर बोली, ‘‘अरे, क्या हुआ तुझे?’’

मैं ने कहा, ‘‘अब ठीक हूं,’’ कहतेकहते मैं ने रोहन को देखा, वह शिविन के कान में कुछ कह रहा था, मुझे लगा काश, वह उसे यह बता रहा हो कि यह सोनिका मुझे बहुत अच्छी लगती है. काश, काश, यही कह रहा हो.

सीनियर्स हम से गाना सुनते रहे. एक लड़की अंजू को डांस करने के लिए कह दिया. सीनियर्स को क्या पता था कि अंजू तो सड़क पर बरात में भी शुरू से आखिर तक नाचती चलती है. वह तो शादियों में जाती ही डांस करने के लिए है. वह तो खुद गाने भी लगी, ‘‘मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा…’ और नागिन बन कर एक कोने में ऐसी लहराई कि सीनियर्स घबरा गए, ‘‘बोले, रुक जा बहन,’’ और क्लास से चले गए. हम सब हंसहंस कर पागल ही हो गए.

‘‘अंजू, आज तेरे नागिन डांस ने बाकियों को बचा लिया. अंजू, तू ऐसे ही नागिन बन कर लहराती रह.’’

इस पूरे ऐपिसोड में जैसे मेरी एक आंख रोहन पर रही, दूसरी अपनी नागिन पर. रोहन को अंजू का नागिन डांस देख कर घबराहट हुई थी. उस ने फिर शिविन के कान में कुछ कहा था. मुझे लगा, काश यही कहा हो यह सोनिका कितनी सोबर है, मुझे तो ऐसे डांस करने वाली लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं. काश, यही कहा हो रोहन ने. मेरी एक बार इस बीच नजर भी मिली थी रोहन से. मैं ने मुसकराने में एक पल की देरी भी नहीं की और जब वह भी मुसकरा दिया तो मुझे एक आशा दिखी कि हां, फ्यूचर में हमारा बहुत कुछ हो सकता है.

सीनियर्स के जाने के बाद मैं ने कहा, ‘‘अनीता, तुम्हें पता है रोहन मुझे देख कर अभी मुसकराया था और तुम ने सुना न कि उस ने यह भी पूछ लिया कि मुझे चोट लगी है क्या. मुझे लग रहा है कि मुझे देख कर उसे भी कुछकुछ होने लगा है.’’

अनीता गुर्राई, ‘‘सपने देखना बंद कर दे, लड़की. ऐसी कोई बड़ी बात नहीं पूछ ली उस ने.’’

‘‘जलकुकड़ी है तू,’’ कह कर मैं ने गुनगुनाया, ‘‘कुछ कुछ होता है…’’

पूजा और अनीता ने अपने कानों पर हाथ रख लिए.  धीरेधीरे पढ़ाई शुरू हो चुकी थी. सीनियर्स अब किसी न किसी प्रोग्राम में नजर आते रहते. मुझे पता चला कि रोहन कालेज की कल्चरल कमेटी का हिस्सा है. मैं ने भी झट अपना नाम लिखवा दिया.

मैं ने उस के ग्रुप में शामिल होने के लिए अपनी जीजान लगा दी. अब तो कालेज के किसी भी प्रोग्राम की तैयारी में मैं उस के आगेपीछे ही डोलती दिखती तो पूजा और अनीता मुझे बारबार डांटते, ‘‘पढ़ाई भी कर लिया कर कुछ, रोहन की रैंक हमेशा फर्स्ट आती है कालेज में हर चीज में. फेल मत हो जाना.’’

मेरा दिमाग तेज था. मैं जितनी भी देर पढ़ने बैठती, झट निबटा लेती अपना काम ताकि पढ़ाई से जल्दी फ्री हो कर रोहन के बारे में सोच सकूं.

मैं ने एक दिन पूजा से कहा, ‘‘देख पूजा, शरीफ लड़के भी तो शरमाते हैं प्रेम का इजहार करने से. मैं ही रोहन को एक दिन आई लव यू  बोल दूं?’’

इस बार शायद अनीता और पूजा को मेरी शकल देख कर तरस आ गया, बोलीं, ‘‘ठीक है, वैलेंटाइनडे आ रहा है, बोल देना.’’

चालाक हैं दोनों. वैलेंटाइनडे आने में 2 महीने थे, मुझे हंसी आ गई, ‘‘कुछ ज्यादा टाइम नहीं सोचा तुम ने. जितना लेट हो सके, उतना लेट करवा रही हैं न.’’

हम तीनों खूब हंसे. मैं ने कहा, ‘‘यार, मेरा मन करता है, मैं इस का दोस्त शिविन होती, काश मैं लड़का होती. जिस तरह यह अपने दोस्तों के कंधे पर हाथ रख कर बात करता है, उनके गले में हाथ डालता है, मेरा मन करता है, मैं भी एक लड़का हो जाऊं और इस के आसपास ही रहूं.’’

दोनों ने अपनाअपना सिर पीट लिया. इस बार की ठंड मुझे कुछ अलग ही लग रही थी, मीठीमीठी, प्यारीप्यारी सी. कुहरे के दिन थे, हम तीनों कालेज पैदल आतेजाते. कुहरे में रोहन का चेहरा जैसे मेरे साथसाथ चलता. एक मीठामीठा सा खयाल दिनभर घेरे रहता. वैलेंटाइनडे से पहले की शाम तो जैसे मुझे एक बेचैनी से भर गई.

मेरी तैयारियां देख कर मम्मीपापा और भैया ने मुझे घूर कर देखा, मम्मी ने जब कहा कि कल अगर पढ़ाई न होने वाली हो तो छुट्टी कर लो तो मैं मन ही मन जल गई जैसे कहा कि न मम्मी, पढ़ाई क्यों नहीं होगी. बाकी चीजें एक तरफ, ये सब एक तरफ चलता रहता है. ऐग्जाम्स आने वाले हैं, मैं एक भी पीरियड मिस नहीं कर सकती और मैं उसी समय अपने इअर रिंग्स जिन्हें कल पहनने वाली थी. छिपाते हुए पढ़ने बैठ गई.

मैं अलग ही तरह से तैयार हो कर जब पूजा और अनीता के साथ कालेज के लिए निकली तो वे दोनों बस मुझे देखदेख कर हंसती ही रहीं. चौराहे पर रोहन के ग्रुप की सीनियर लड़की रेखा भी हमारे साथ हो ली. वह खूब बातूनी थी. मुझे लगा इस से रोहन के बारे में यों ही चलतेचलते जानकारी निकलवाई जा सकती है. दरअसल, मेरा मन करता रहता कि बस कोई मुझ से रोहन की बात करता रहे. मैं ने ही बात छेड़ी, ‘‘रेखा, मुझ आप का ग्रुप बहुत अच्छा लगता है, आप लोग पढ़ाई के साथ बाकी चीजों में भी कितने ऐक्टिव रहते हैं.’’

‘‘अरे, सब रोहन और शिविन की मेहनत होती है.’’

मेरा दिल इस नाम पर धड़कधड़क गया. कहा, ‘‘हां, अच्छे दोस्त हैं दोनों.’’

रेखा ने कहा, ‘‘हां भई, दोस्त क्या, बहुत कुछ हैं दोनों. खूब प्यारे हैं. 7वीं क्लास से दोनों साथ हैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘अच्छा. इतने पुराने दोस्त हैं?’’

‘‘हां, तुम लोगों को पता नहीं क्या कि दोनों पार्टनर्स हैं, गे हैं, अब तो इन के घर वालों ने, कालेज के साथियों ने यह बात स्वीकार कर ही ली है कि दोनों का साथ छूट नहीं सकता. शुरूशुरू में काफी बवाल हुआ, अब सब थक गए, हम तो दोनों को खूब प्यार करते हैं. तुम तीनों को कैसे किसी की खबर होगी, तुम लोग तो अपने में ही मस्त रहते हो.’’

मेरा दिल जैसे रुकने को हुआ. यह शिविन तो मेरी ही सौत निकला. हाय, सच में काश मैं लड़का ही होती. यह क्या हो गया. पूजा और अनीता ने मुझे देखा. मैं ने नजरें चुरा लीं पर मैं ने कनखियों से देख लिया. दोनों अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रही थीं. उस दिन कालेज का रास्ता बहुत लंबा लगा.

कालेज पहुंच कर रेखा अपने दोस्तों के पास चली गई, मैं सीधी कैंटीन जा कर एक कोने में बैठ गई. ये दोनों भी मेरे पीछेपीछे भागती सी चल रही थीं.

मैं ने इन दोनों के चेहरों पर एक खा जाने वाली नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हें बड़ी हंसी आ रही थी. मेरा दिल टूट गया और तुम हंस रही थीं.’’

दोनों बेशर्म सचमुच जोर से हंसी, ‘‘यार, तुम्हारी शकल देखने वाली थी.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यार सोनू, तू दुखी मत हो.’’

मैं ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दुखी होने की बात नहीं है क्या? इतनी छोटी लव स्टोरी किस की होती है?’’

इतने में रोहन अपने दोस्तों के साथ आया और कुछ दूर बैठ गया. उन सब ने हमें देख कर हाथ भी हिलाए. हम ने भी हाथ हिला दिए.

अनीता ने मुझे छेड़ा, ‘‘सोनू, क्या रोहन को देख कर अब भी कुछकुछ हो रहा है?’’

‘‘यह मुहब्बत है जानी. कुछकुछ होता रहेगा, ‘‘वो प्यार है किसी और का, उसे चाहता कोई और है…,’’ मैं ने गुनगुनाया तो दोनों ने फिर अपने कानों पर हाथ रख लिए.

Online Hindi Story- टीसता जख्म : क्या उमा के चरित्र को दागदार कर पाया अनवर

अचानक उमा की आंखें खुलती हैं. ऊपर छत की तरफ देखती हुई वह गहरी सांस लेती है. वह आहिस्ता से उठती है. सिरहाने रखी पानी की बोतल से कुछ घूंट अपने सूखे गले में डालती है. आंखें बंद कर वह पानी को गले से ऐसे नीचे उतारती है जैसे उन सब बातों को अपने अंदर समा लेना चाहती है. पर, यह हो नहीं पा रहा. हर बार वह दिन उबकाई की तरह उस के पेट से निकल कर उस के मुंह में भर आता है जिस की दुर्गंध से उस की सारी ज्ञानेंद्रियां कांप उठती हैं.

पानी अपने हलक से नीचे उतार कर वह अपना मोबाइल देखती है. रात के डेढ़ बजे हैं. वह तकिए को बिस्तर के ऊंचे उठे सिराहने से टिका कर उस पर सिर रख लेट जाती है.

एक चंदन का सूखा वृक्ष खड़ा है. उस के आसपास मद्धिम रोशनी है. मोटे तने से होते हुए 2 सूखी शाखाएं ऊपर की ओर जा रही हैं, जैसे कि कोई दोनों हाथ ऊपर उठाए खड़ा हो. बीच में एक शाखा चेहरे सी उठी हुई है और तना तन लग रहा है. धीरेधीरे वह सूखा चंदन का पेड़ साफ दिखने लगता है. रोशनी उस पर तेज हो गई है. बहुत करीब है अब… वह एक स्त्री की आकृति है. यह बहुत ही सुंदर किसी अप्सरा सी, नर्तकी सी भावभंगिमाएं नाक, आंख, होंठ, गरदन, कमर की लचक, लहराते सुंदर बाजू सब साफ दिख रहे हैं.

चंदन की खुशबू से वहां खुशनुमा माहौल बन रहा है कि तभी उस सूखे पेड़ पर उस उकेरी हुई अप्सरा पर एक विशाल सांप लिपटा हुआ दिखने लगता है. बेहद विशाल, गहरा चमकीला नीला, हरा, काला रंग उस के ऊपर चमक रहा है. सारे रंग किसी लहर की तरह लहरा रहे हैं. आंखों के चारों ओर सफेद चमकीला रंग है. और सफेद चमकीले उस रंग से घिरी गोल आंख उस अप्सरा की पूरी काया को अपने में समा लेने की हवस लिए हुए है. रक्त सा लाल, किसी कौंधती बिजली से कटे उस के अंग उस काया पर लपलपा रहे हैं.

वह विशाल सांप अपनी जकड़ को घूमघूम कर इतना ज्यादा कस रहा है कि वह उस पेड़ को मसल कर धूल ही बना देना चाह रहा है. तभी वह काया जीवित हो जाती है. सांप उस से दूर गिर पड़ता है. वह एक सुंदर सी अप्सरा बन खड़ी हो जाती है और सांप की तरफ अपनी दृष्टि में ठहराव, शांति, आत्मविश्वास और आत्मशक्ति से ज्यों ही नजर डालती है वह सांप गायब हो जाता है और उमा जाग जाती है. सपने को दोबारा सोच कर उमा फिर बोतल से पानी की घूंट अपने हलक से उतारती है. अब उसे नींद नहीं आ रही.

भारतीय वन सेवा के बड़े ओहदे पर है उमा. उमा को मिला यह बड़ा सा घर और रहने के लिए वह अकेली. 3 तो सोने के ही कमरे हैं जो लगभग बंद ही रहते हैं. एक में वह सोती है. उमा उठ कर बाहर के कमरे में आ जाती है. बड़ी सी पूरे शीशे की खिड़की पर से परदा सरका देती है. दूरदूर तक अंधेरा. आईजीएनएफए, देहरादून के अहाते में रोशनी करते बल्ब से बाहर दृश्य धुंधला सा दिख रहा था. अभीअभी बारिश रुकी थी. चिनार के ढलाव से नुकीले पत्तों पर लटकती बूंदों पर नजर गड़ाए वह उस बीते एक दिन में चली जाती है…

उन दिनों वह अपनी पीएचडी के अध्ययन के सिलसिले में अपने शहर रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (कांके) आई हुई थी. पूरा बचपन तो यहीं बीता उस का. झारखंड के जंगलों में अवैध खनन व अवैध जंगल के पेड़ काटने पर रोक व अध्ययन के लिए जिला स्तर की कमेटी थी. आज उमा ने उस कमेटी के लोगों को बातचीत के लिए बुलाया था. उसे जरा भी पता नहीं था, उस के जीवन में कौन सा सवाल उठ खड़ा होने वाला है.

मीटिंग खत्म हुई. सारे लोग चाय के लिए उठ गए. उमा अपने लैपटौप पर जरूरी टिप्पणियां लिखने लग गई. तभी उसे लगा कोई उस के पास खड़ा है. उस ने नजर ऊपर की. एक नजर उस के चेहरे पर गड़ी हुई थी. आप ने मुझे पहचाना नहीं?

उमा ने कहा, ‘सौरी, नहीं पहचान पाई.’ ‘हम स्कूल में साथ थे,’ उस शख्स ने कहा.

‘क्षमा करें मेरी याददाश्त कमजोर हो गई है. स्कूल की बातें याद नहीं हैं,’ उमा ने जवाब दिया.

‘मैं अनवर हूं. याद आ रहा है?’

अनवर नाम तो सुनासुना सा लग रहा है. एक लड़का था दुबलापतला, शैतान. शैतान नहीं था मैं, बेहद चंचल था,’ वह बोला था.

उमा गौर से देखती है. कुछ याद करने की कोशिश करती है…और अनवर स्कूल के अन्य दोस्तों के नाम व कई घटनाएं बनाता जाता है. उमा को लगा जैसे उस का बचपन कहीं खोया झांकने लगा है. पता नहीं कब वह अनवर के साथ सहज हो गई, हंसने लगी, स्कूल की यादों में डूबने लगी.

अनवर की हिम्मत बढ़ी, उस ने कह डाला, ‘मैं तुम्हें नहीं भूल पाया. मैं साइलेंट लवर हूं तुम्हारा. मैं तुम से अब भी बेहद प्यार करता हूं.’

‘यह क्या बकवास है? पागल हो गए हो क्या? स्कूल में ही रुक गए हो क्या?’ उमा अक्रोशित हो गई.

‘हां, कहो पागल मुझे. मैं उस समय तुम्हें अपने प्यार के बारे में न बता सका, पर आज मैं इस मिले मौके को नहीं गंवाना चाहता. आइ लव यू उमा. तुम पहले भी सुंदर थीं, अब बला की खूबसूरत हो गई हो.’

उमा झट वहां से उठ जाती है और अपनी गाड़ी से अपने आवास की ओर निकल लेती है. आई लव यू उस के कानों में, मस्तिष्क में रहरह गूंज रहा था. कभी यह एहसास अच्छा लगता तो कभी वह इसे परे झटक देती.

फोन की घंटी से उस की नींद खुलती है. अनवर का फोन है. वह उस पर ध्यान नहीं देती. फिर घड़ी की तरफ देखती है, सुबह के 6 बज गए हैं. इतनी सुबह अनवर ने रिंग किया? उमा उठ कर बैठ जाती है. चेहरा धो कर चाय बनाती है. अपने फोन पर जरूरी मैसेज, कौल, ईमेल देखने में लग जाती है. तभी फिर फोन की घंटी बज उठती है. फिर अनवर का फोन है.

‘हैलो, हां, हैलो उठ गई क्या? गुडमौर्निंग,’ अनवर की आवाज थी.

‘इतने सवेरे रिंग कर दिया,’ उमा बोली.

‘हां, क्या करूं, रात को मुझे नींद ही नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा,’ अनवर बोला.

‘मुझे अभी बहुत काम है, बाद में बात करती हूं,’ उमा ने फोन काट दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया.

‘अरे, मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’

‘नहींनहीं, मुझे नहीं मिलना है. मुझे बहुत काम है,’ और उस ने फोन जल्दी से रख दिया.

आधे घंटे बाद फिर अनवर का फोन आया और वह बोला, ‘सुनो, फोन काटना मत. बस, एक बार मिलना चाहता हूं, फिर मैं कभी नहीं मिलूंगा.’

‘ठीक है, लंच के बाद आ जाओ,’ उमा ने अनवर से कहा.

लंच के समय कमरे की घंटी बजती है. उमा दरवाजा खोलती है. सामने अनवर खड़ा है. अनवर बेखौफ दरवाजे के अंदर घुस जाता है.

‘ओह, आज बला की खूबसूरत लग रही हो, उमा. मेरे इंतजार में थी न? तुम ने अपनेआप को मेरे लिए तैयार किया है न?’

उमा बोली, ‘ऐसी कोई बात नहीं है? मैं अपने साधारण लिबास में हूं. मैं ने कुछ भी खास नहीं पहना.’

अनवर डाइनिंग रूम में लगी कुरसी पर ढीठ की तरह बैठ गया. उमा के अंदर बेहद हलचल मची हुई है पर वह अपनेआप को सहज रखने की भरपूर कोशिश में है. वह भी दूसरे कोने में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. अनवर 2 बार राष्ट्रीय स्तर की मुख्य राजनीतिक पार्टी से चुनाव लड़ चुका था, लेकिन दोनों बार चुनाव हार गया था. अब वह अपने नेता होने व दिल्ली तक पहुंच होने को छोटेमोटे कार्यों के  लिए भुनाता है. उस के पास कई ठेके के काम हैं. बातचीत व हुलिया देख कर लग रहा था कि वह अमीरी की जिंदगी जी रहा है. अनवर की पूरी शख्सियत से उमा डरी हुई थी.

‘उमा, मैं तुम से बहुत सी बातें करना चाहता हूं. मैं तुम से अपने दिल की सारी बातें बताना चाहता हूं. आओ न, थोड़ा करीब तो बैठो प्लीज,’ अनवर अपनी कुरसी उस के करीब सरका कर कहता है, ‘तुम भरपूर औरत हो.’

अचानक उमा का बदन जैसे सिहर उठा. अनवर ने उस का हाथ दबा लिया था. अनवर की आंखें गिद्ध की तरह उमा के चेहरे को टटोलने की कोशिश कर रही थीं. उमा ने झटके से अपना हाथ खींच लिया.

‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’ कह कर उमा उठने को हुई तो अनवर बोल उठा.

‘नहींनहीं, तुम यहीं बैठो न.’

उमा पास रखी इलैक्ट्रिक केतली में चाय तैयार करने लगी. तभी उमा को अपने गले पर गरम सांसों का एहसास हुआ. वह थोड़ी दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘क्या हुआ? तुम ने शादी नहीं की पर तुम्हें चाहत तो होती होगी न,’ अनवर ने जानना चाहा.

‘कैसी बकवास कर रहे हो तुम,’ उमा खीझ कर बोली.

‘हम कोई बच्चे थोड़े हैं अब. बकवास तो तुम कर रही हो,’ अनवर भी चुप नहीं हुआ और उस के होंठ उमा के अंगों को छूने लगे. उमा फिर दूर चली गई.

‘अनवर, बहुत हुआ, बस करो. मुझे यह सब पसंद नहीं है,’ उमा ने संजीगदी से कहा.

‘एक मौका दो मुझे उमा, क्या हो गया तुम्हें, अच्छा नहीं लगा क्या?  मैं तुम से प्यार करता हूं. सुनो तो, तुम खुल कर मेरे साथ आओ,’ उस ने उमा को गोद में उठा लिया. अनवर की गोद में कुछ पल के लिए उस की आंखें बंद हो गईं. अनवर ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उस पर हावी होने लगा. तभी बिजली के झटके की तरह उमा उसे छिटक कर दूर खड़ी हो गई.

‘अभी निकलो यहां से,’ उमा बोल उठी. अनवर हारे हुए शिकारी सा उसे देखता रह गया. उमा बोली, ‘मैं कह रही हूं, तुम अभी जाओ यहां से.’

अनवर न कुछ बोला और न वहां से गया तो उमा ने कहा, ‘मैं यहां किसी तरह का हंगामा नहीं करना चाहती. तुम बस, यहां से चले जाओ.’

अनवर ने अपना रुमाल निकाला और चेहरे पर आए पसीने को पोंछता हुआ कुछ कहे बिना वहां से निकल गया. उमा दरवाजा बंद कर डर से कांप उठी. सारे आंसू गले में अटक कर रह गए. अपने अंदर छिपी इस कमजोरी को उस ने पहली बार इस तरह सामने आते देखा. उसे बहुत मुश्किल से उस रात नींद आई.

फोन की घंटी से उस की नींद खुली. फोन अनवर का था.

‘मैं बहुत बेचैन हूं. मुझे माफ कर दो.’

उमा ने फोन काट कर उस का नंबर ब्लौक कर दिया. फिर दोबारा एक अनजान नंबर से फोन आया. यह भी अनवर की ही आवाज थी.

‘मुझे माफ कर दो उमा. मैं तुम्हारी दोस्ती नहीं खोना चाहता.’

उमा ने फिर फोन काट दिया. वह बहुत डर गई थी. उमा ने सोचा कि उस के वापस जाने में 2 दिन बाकी हैं. वह बेचैन हो गई. किसी तरह वह खुद को संयत कर पाई.

कई महीने बीत गए. वह अपने कामों में इतनी व्यस्त रही कि एक बार भी उसे कुछ याद नहीं आया. हलकी याद भी आई तो यही कि वह जंग जीत गई है.

‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग
चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग.’

एक दिन अचानक एक फोन आया. उस तरफ अनवर था, ‘सुनो, मेरा फोन मत काटना और न ही ब्लौक करना. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पा रहा है. बताओ न तुम कहां हो? मैं तुम से मिलना चाहता हूं. मैं मर रहा हूं, मुझे बचा लो.’

‘यह किस तरह का पागलपन है. मैं तुम से न तो बात करना चाहती हूं और न ही मिलना चाहती हूं,’ उमा ने साफ कहा.

‘अरे, जाने दो, भाव दिखा रही है. अकेली औरत. शादी क्यों नहीं की, मुझे नहीं पता क्या? नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को. मजे लेले कर अब मेरे सामने सतीसावित्री बनती हो. तुम्हें क्या चाहिए मैं सब देने को तैयार हूं,’ अनवर अपनी औकात पर उतर आया था.

ऐसा लगा जैसे किसी ने खौलता लावा उमा के कानों में उडे़ल दिया हो. उस ने फोन काट दिया और इस नंबर को भी ब्लौक कर दिया. यह परिणाम बस उस एक पल का था जब वह पहली बार में ही कड़ा कदम न उठा सकी थी.

इस बात को बीते 4 साल हो गए हैं. अनवर का फोन फिर कभी नहीं आया. उमा ने अपना नंबर बदल लिया था. पर आज भी यह सपना कहीं न कहीं घाव रिसता है. दर्द होता है. कहते हैं समय हर घाव भर देता है पर उमा देख रही है कि उस के जख्म रहरह कर टीस उठते हैं.

Love Story- उजाले की ओर: क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

Romantic Story- लौंग डिस्टैंस रिश्ते: क्यों अभय को बेईमान मानने को तैयार नहीं थी रीवा ?

‘‘हैलो,कैसी हो? तबीयत तो ठीक रहती है न? किसी बात की टैंशन मत लेना. यहां सब ठीक है,’’ फोन पर अभय की आवाज सुनते ही रीवा का चेहरा खिल उठा. अगर सुबहशाम दोनों वक्त अभय का फोन न आए तो उसे बेचैनी होने लगती है.

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, तुम कैसे हो? काम कैसा चल रहा है? सिंगापुर में तो इस समय दोपहर होगी. तुम ने लंच ले लिया? अच्छा इंडिया आने का कब प्लान है? करीब 10 महीने हो गए हैं तुम्हें यहां आए. देखो अब मुझे तुम्हारे बिना रहना अच्छा नहीं लगता है. मुझे यह लौंग डिस्टैंस मैरिज पसंद नहीं है,’’ एक ही सांस में रीवा सब कुछ कह गई.

बेशक उन दोनों की रोज बातें होती हैं, फिर भी रीवा के पास कहने को इतना कुछ होता है कि फोन आने के बाद वह जैसे चुप ही नहीं होना चाहती है. वह भी क्या करे, उन की शादी हुए अभी 2 साल ही तो हुए हैं और शादी के 2 महीने बाद ही सिंगापुर की एक कंपनी में अभय की नौकरी लग गई थी. वह पहले वहां सैटल हो कर ही रीवा को बुलाना चाहता था, पर अभी भी वह इतना सक्षम नहीं हुआ था कि अपना फ्लैट खरीद सके. ऊपर से वहां के लाइफस्टाइल को मैंटेन करना भी आसान नहीं था. कुछ पैसा उसे इंडिया भी भेजना पड़ता था, इसलिए वह न चाहते हुए भी रीवा से दूर रहने को मजबूर था.

‘‘बस कुछ दिन और सब्र कर लो, फिर यह दूरी नहीं सहनी पड़ेगी. जल्द ही सब ठीक हो जाएगा. मैं ने काफी तरक्की कर ली है और थोड़ाबहुत पैसा भी जमा कर लिया है. मैं बहुत जल्दी तुम्हें यहां बुला लूंगा.’’

अभय से फोन पर बात कर कुछ पल तो रीवा को तसल्ली हो जाती कि अब वह जल्दी अभय के साथ होगी. पर फिर मायूस हो जाती. इंतजार करतेकरते ही तो इतना समय बीत गया था. बस यही सोच कर खुश रहती कि चलो अभय उस से रोज फोन पर बात तो करता है. बातें भी बहुत लंबीलंबी होती थीं वरना एक अनजाना भय उसे घेरे रहता था कि कहीं वह वहां एक अलग गृहस्थी न बसा ले. इसीलिए वह उस के साथ रहने को बेचैन थी. वैसे भी जब लोग उस से पूछते कि अभय उसे साथ क्यों नहीं ले गया, तो वह उदास हो जाती. दूर रहने के लिए तो शादी नहीं की जाती. उस की फ्रैंड्स अकसर उसे लौंग डिस्टैंस कपल कह कर छेड़तीं तो उस की आंखें नम हो जातीं.

‘‘रीवा, तुम्हारे लिए खुशी की बात है. मेरे पास अब इतने पैसे हो गए हैं कि मैं तुम्हें यहां बुला सकूं. तुम आने की तैयारी करना शुरू कर दो. जल्द ही मैं औनलाइन टिकट बुक करा दूंगा. फिर हम घूमने चलेंगे. बोलो कहां जाना चाहती हो? मलयेशिया चलोगी?’’

यह सुनते ही रीवा रो पड़ी, ‘‘जहां तुम ले जाना चाहोगे, चल दूंगी. मुझे तो सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘तो फिर हम आस्ट्रेलिया चलेंगे, बहुत ही खूबसूरत देश है.’’

अभय से बात करने के बाद रीवा का मन कई सपने संजोने लगा. अब जा कर उस का सही मानों में वैवाहिक जीवन शुरू होगा. वह खरीदारी और पैकिंग करने में जुट गई. रात को भी अभय से बात हुई तो उस ने फिर बात दोहराई. अभय के फोन आने का एक निश्चित समय था, इसलिए रीवा फोन के पास आ कर बैठ जाती थी. लैंडलाइन पर ही वह फोन करता था.

उस दिन भी सुबह से रीवा अभय के फोन का इंतजार कर रही थी. लेकिन समय बीतता गया और फोन नहीं आया. ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि फोन न आए. सोचा कि बिजी होगा, शायद बाद में फोन करे. पर उस दिन क्या, उस के बाद तो 1 दिन बीता, 2 दिन बीते और धीरेधीरे

10 दिन बीत गए, पर अभय की न तो कोई खबर आई और न ही फोन. पहले तो उसे लगा कि शायद अभय का सरप्राइज देने का यह कोई तरीका हो, पर वक्त गुजरने के साथ उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे कि कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई. उस के मोबाइल पर फोन किया तो स्विचऔफ मिला. कंपनी के नंबर पर किया तो किसी ने ठीक से जवाब नहीं दिया.

सिंगापुर में अभय एक फ्रौड के केस में फंस गया था. 10 दिनों से वह जेल में बंद था. उसे लगा कि अगर रीवा को यह बात पता चलेगी तो न जाने वह कैसे रिऐक्ट करे. कहीं वह उसे गलत न समझे और यह सच मान ले कि उस ने फ्रौड किया है. कंपनी ने भी उसे आश्वासन दिया था कि वह उसे जेल से बाहर निकाल कर केस क्लोज करा देगी. इसलिए अभय ने सोचा कि बेकार रीवा को क्यों बताए. जब केस क्लोज हो जाएगा तो वह इस बात को यहीं दफन कर देगा. इस से रीवा के मन में किसी तरह की शंका पैदा नहीं होगी कि उस का पति बेईमान है.

असल में अभय जिस कंपनी में फाइनैंशियल ऐडवाइजर था, उस के एक क्लाइंट ने उस पर 30 हजार डौलर की गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था. क्लाइंट का कहना था कि उस ने सैंट्रल प्रौविडैंट फंड में अच्छा रिटर्न देने का लालच दे कर उस का विश्वास जीता और बाद में उस के अकाउंट में गड़बड़ी कर यह फ्रौड किया. असल में यह अकाउंट में हुई गलती थी. डेटा खो जाने यानी गलती से डिलीट हो जाने की वजह से यह सारी परेशानी खड़ी हुई थी. लेकिन पुलिस ने अभय को ही इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए फ्रौड करने के लिए कंपनी के हिसाबकिताब में गड़बड़ी और कंपनी के डौक्यूमैंट्स के साथ छेड़छाड़ करने के जुर्म में जेल में डाल दिया था और फाइन भी लगाया था. उसे अपनी बात कहने या प्रमाण पेश करने तक का अवसर नहीं दिया गया. वहां पर एक इंडियन पुलिस अफसर ही उस का केस हैंडल कर रहा था और वह इस बात से नाराज था कि भारतीय हर जगह बेईमानी करते हैं.

‘‘आप यकीन मानिए सर, मैं ने कोई अपराध नहीं किया है,’’ अभय की बात सुन पुलिस अफसर करण बोला, ‘‘यहां का कानून बहुत सख्त है, पकड़े गए हो तो अपने को बेगुनाह साबित करने में बरसों भी लग सकते हैं और यह भी हो सकता है कि 2-3 दिन में छूट जाओ.’’

‘‘करण साहब, अभय बेगुनाह हैं यह बात तो उन की कंपनी भी कह रही है. केवल क्लाइंट का आरोप है कि उन्होंने 30 हजार डौलर का फ्रौड किया है. कंपनी तो सारी डिटेल चैक कर क्लाइंट को एक निश्चित समय पर पैसा भी देने को तैयार है, हालांकि उस के लिए अभय को भी पैसे भरने पड़ेंगे. बस 1-2 दिन में मैं इन्हें यहां से निकाल लूंगा,’’ अभय के वकील ने कहा.

‘‘अगर ऐसा है तो अच्छा ही है. मैं भी चाहता हूं कि हमारे देशवासी बदनाम न हों.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी वाइफ को हम क्या उत्तर दें? वह बारबार हमें फोन कर रही है. उस ने तो पुलिस को इन्फौर्म करने को भी कहा है,’’ अपनी टूटीफूटी हिंदी में कंपनी के मालिक जोन ने पूछा.

‘‘सर, आप प्लीज उसे कुछ न बताएं. मैं नहीं चाहता कि मेरी वाइफ मुझे बेईमान समझे. वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी. हो सकता है वह मेरे जेल में होने की बात सुन डाइवोर्स ही ले ले. नो, नो, सर, डौंट टैल हर ऐनीथिंग ऐंड ट्राई टू अवौइड हर फोन काल्स. मैं उस की नजरों में गिरना नहीं चाहता हूं.’’

‘‘पर वह तो यहां आने की बात कर रही थी. हम उसे कैसे रोक सकते हैं?’’

जोन की बात सुन कर अभय के चेहरे पर पसीने की बूंदें झिलमिला उठीं. वह जानता था कि अपने को निर्दोष साबित करने के लिए पहले उसे डिलीट हुए डेटा को कैसे भी दोबारा जैनरेट करना होगा और वह करना इतना आसान नहीं था. 30 हजार डौलर उस के पास नहीं थे, जो वह चुका पाता. कंपनी भी इसी शर्त पर चुकाने वाली थी कि हर महीने उस की सैलरी से अमाउंट काटा जाएगा. वह जानता था कि वह इस समय चारों ओर से घिर चुका है. कंपनी वाले बेशक उस के साथ थे और वकील भी पूरी कोशिश कर रहा था, पर उसे रीवा की बहुत फिक्र हो रही थी. इतने दिनों से उस ने कोई फोन नहीं किया था, इसलिए वह तो अवश्य घबरा रही होगी. हालांकि अभय की कुलीग का कहना था कि उसे रीवा को सब कुछ बता देना चाहिए. इस से उसे कम से कम अभय के ठीकठाक होने की खबर तो मिल जाएगी. हो सकता है वही कोई रास्ता निकाल ले.

मगर अभय इसी बात को ले कर भयभीत था कि कहीं रीवा उसे गलत न समझ बैठे. जितना आदरसम्मान और प्यार वह उसे करती है, वह कहीं खत्म न हो जाए. वह भी रीवा से इतना प्यार करता है कि किसी भी हालत में उसे खोना नहीं चाहता. इंडिया में बैठी रीवा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अभय की खोजखबर कैसे ले. इस बारे में उस ने अपने मौसा से बात की. वे आईएफएस में थे और इस समय अमेरिका में पोस्टेड थे. उन्होंने सलाह दी कि रीवा को सिंगापुर जाना चाहिए.

सिंगापुर पहुंच कर रीवा ने जब कंपनी में कौंटैक्ट किया तो सच का पता चला. बहुत बार चक्कर लगाने और जोन से मिलने पर ही वह इस सच को जान पाई. सचाई जानने के बाद उस के पांव तले की जैसे जमीन खिसक गई. अभय को बेईमान मानने को उस का दिल तैयार नहीं था, पर पल भर को तो उसे भी लगा कि जैसे अभय ने उसे धोखा दिया है. अपने मौसा को उस ने सारी जानकारी दी और कहा कि वही इंडियन हाई कमीशन को इस मामले में डाल कर अभय को छुड़वाएं.

रीवा को अपने सामने खड़ा देख अभय सकपका गया, ‘‘तुम यहां कैसे…? कब आईं… मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था, इसलिए कुछ नहीं बताया… मेरा यकीन मानो रीवा मैं बेईमान नहीं हूं… तुम नहीं जानतीं कि मैं यहां कितना अकेला पड़ गया था…’’ घबराहट में अभय से ठीक से बोला तक नहीं जा रहा था.

‘‘मुझे तुम पर यकीन है अभय. चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.’’

रीवा के मौसा के इन्फ्लुअंस और इंडियन हाई कमीशन के दखल से अगले 2 दिनों में अभय जेल से बाहर आ गया.

‘‘रीवा, आई ऐम रियली सौरी. पर मैं डर गया था कि कहीं तुम मुझे छोड़ कर न चली जाओ.’’

‘‘सब भूल जाओ अभय… मैं ने तुम्हारा हाथ छोड़ने के लिए नहीं थामा है. लेकिन अब तुम सिंगापुर में नहीं रहोगे. इंडिया चलो, वहीं कोई नौकरी ढूंढ़ लेना. हम कम में गुजारा कर लेंगे, पर रहेंगे साथ. कंपनी के पैसे कंपनी से हिसाब लेने पर चुका देंगे. कम पड़ेंगे तो कहीं और से प्रबंध कर लेंगे. लेकिन अब मैं तुम्हें यहां अकेले नहीं रहने दूंगी. दूसरे देश में पैसा कमाने से तो अच्छा है कि अपने देश में 2 सूखी रोटियां खा कर रहना. कम से कम वहां अपने तो होते हैं. इस पराए देश में तुम कितने अकेले पड़ गए थे. जितनी जल्दी हो यहां से चलने की तैयारी करो.’’

रीवा के हाथ को मजबूती से थामते हुए अभय ने जैसे अपनी सहमति दे दी. वह खुद भी इस लौंग डिस्टैंस रिश्ते से निकल रीवा के साथ रहना चाहता था.

Romantic Story : जबजब वह मुसकराए

लेखक- विनयचंद्र मौर्या

Romantic Story: मेरी डेटिंग को अभी 2 साल ही हुए हैं परंतु लगता है कि  पता नहीं कितनी पुरानी बात हो गई है. बौयफ्रैंड बनने से पहले की निश्चित जिंदगी के बारे में सोचने के लिए जब दिमाग पर जोर डालता हूं, तभी गर्लफ्रैंड का गुस्से से भरा डांटताफटकारता चेहरा सामने घूमने लगता है. इस के अलावा तो अब कुछ भी याद नहीं आता. पता नहीं किस वजह से मैं ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट फेसबुक पर भेज दी और मैं ने क्यों मान ली. हम दोनों एक ही शहर के थे इसलिए रीयल बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड बन गए. न शायद उसे और कोई घास डाल रहा था, न मुझे.

मगर फिर भी जिस तरह कांटों में रहने वाले लोग लगातार वहां रहतेरहते कांटों में सुख का अनुभव करने लगते हैं, उसी तरह मैं भी उस के रूखे चेहरे को देखने का इतना अभ्यस्त हो चुका हूं कि मु?ो उस के इसी रूप में असीम शांति तथा तसल्ली मिलती है. वह भी शायद अपने घर में कम मुसकराने का प्रण कर पैदा हुई थी. फिर भी वह जबजब मुसकराई है, तबतब मेरा बंटाधार ही हुआ है. उस की यदाकदा मुसकराहटों को भी बड़ी मुश्किल से झेल सका हूं.

पहली बार वह तब मुसकराई थी जब दूसरी रेस्तरां में मिले थे. वह सब से महंगी मुसकराहट साबित हुई क्योंकि गदगद हो कर उसी वक्त मैं उसे गर्लफ्रैंड बनने को प्रपोज कर बैठा, जिस की सजा आज तक भुगत रहा हूं और उस की पहली मुसकराहट मेरी फूल सी लहलहाती जिंदगी पर तुषारापात कर गई.

फ्रैंड बनने के 4 दिन बाद वह फिर मुसकराई और बोली, ‘‘एके, ….. वैकेशन मनाने ऊटी चलेंगे?’’

मेरे शांत हृदय में तूफान मचाने के लिए इतना काफी था. मैं हतप्रभ तथा ठगाठगा सा उस की मुसकराहट में बह गया. होंठ कुछ बोलने से पहले ही सिल गए. चुपचाप उलटे पैर अपने अजीज दोस्त के घर गया और उस के पैर पकड़ लिए. तब तक पैर नहीं छोड़े जब तक बतौर कर्ज 25 हजार रुपए नहीं ले लिए. होश तो अब आया जब 3 दिन में ही मुसकराहट का सारा नशा खत्म हो गया. मालूम पड़ा जैसे आसमान से सीधा दलदल में गिरा हूं. गनीमत थी कि वैकेशन के 4 दिनों के दौरान फ्रैंड एक दिन भी नहीं मुसकराई.

2 सप्ताह बाद एक बार मौल में इस के साथ घूम रहा था. मौसम कुछ आशिकाना था. मौल में रोमांटिक गाने की धुन बज रही था कि अचानक वह मुसकराई. तब तक मैं पुरानी मुसकराहट का हश्र कुछकुछ भूल चुका था, इसलिए अनजाने में फिर बह गया. उस का इशारा ड्रैस की दुकान की तरफ था. मैं सम्मोहित सा उस के पीछेपीछे था. कुछ होश ही नहीं था कि वह क्या ले रही है. पता नहीं मैं किस मदहोशी में डूबा था और वह साडि़यों पर साडि़यां पलटती जा रही थी.

थोड़ी देर बाद उस ने लाल रंग की एक औफशोल्डर ड्रैस मुझे दिखाई. मैं ने पता नहीं किस मूड में गरदन हिला दी. बस, फिर क्या था? ड्रैस पैक हो कर आ गई. मैं सब बातों से बेखबर फ्रैंड को एकटक देखे जा रहा था कि जालिम दुकानदार ने लाइन काट दी. मेरी तंद्रा उस समय टूटी जब देखा कि वह फ्रैंड का बिल मुझे दे रहा है. मेरा दिमाग ठनका. बिल देखते ही पसीना छूटने लगा. दुकानदार शादीशुदा था, सारा माजरा समझ गया. वह तुरंत भागता हुआ एक गिलास ठंडा पानी ले आया. पानी पी कर मैं थोड़ा संयत हुआ. फिर बिल देखा, पूरे क्व7 हजार रुपए का था. फ्रैंड की तरफ देखा, चेहरे से मुसकराहट गायब थी. जेब में हाथ डाला क्रैडिट कार्ड निकाला. उस ने स्काइप किया तो डिकलाइन हो गया. वह तो भला हो उस दुकानदार का, जो परिचित निकला. किसी तरह इज्जत बच गई और अगले दिन भुगतान कर आया पर क्व1 हजार महीने की ईएमआई आज भी चुका रहा हूं.

इसी तरह 2 या 4 सप्ताह में वह कभीकभार मुसकरा कर मुझ पर वज्रपात करती रही, मेरी कमर टूटती रही. अब हालत यह है कि मुझे उस की मुसकराहट से बड़ा खौफ सा लगता है. फ्रैंड की मुसकराहट झेलने का बूता अब मुझ में नहीं बचा है. जब भी किसी बाग या रेस्तरां में मिलते हैं चोरों की तरह दबे पांव पीछे से झांक कर यह तसल्ली कर लेता हूं कि कहीं वह मुसकराने के मूड में तो नहीं है. फिर अचानक गर्लफ्रैंड का तमतमाया तथा गुस्से से फूला चेहरा देख कर काफी तसल्ली और शांति के साथ उस से गले मिलन करता हूं कुछ जलीकटी सुनने को. वह सुनाती है, मैं सुनता रहता हूं. वाह, क्या आनंद है. गर्लफ्रैंड की गालियां भी फेसबुक पोस्ट पर लाइक्स लगती हैं.

किंतु यह आनंदमय जीवन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका. इस में एक भयंकर तूफान आ गया. हुआ यह कि मैं एक दिन औफिस से बदहवास सा बाइक पर घर जा रहा था कि दूर चौराहे से देखा कि मेरी फ्रैंड एक बस स्टैंड पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही है. मैं चौंका, ‘अरे यह नया करिश्मा कैसा?’ चश्मे की धूल कमीज से पोेंछते हुए फिर देखा. फ्रैंड ही थी परंतु जान नहीं पाया कि किस मूड में है. अनिष्ट की आशंका से दिल डूबने सा लगा. तय नहीं कर सका कि उस तरफ बढ़ूं या कहीं भाग जाऊं. काफी देर पसोपेश में खड़ा सोचता रहा. वह फ्रैंड थी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. दिल को मजबूत, सांत्वना तथा दिलासा दे कर संभाला. किसी तरह मन को झूठी तसल्ली दे कर उस की तरफ बढ़ने का फैसला कर लिया. दिल रहरह कर धड़क उठता था. किंतु मैं था कि वीरों की तरह मौत की तरफ बढ़ता जा रहा था.

बस स्टैंड गेट आ गया था परंतु गर्लफ्रैंड की तरफ मुंह उठा कर देखने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. अभी सिर्फ सिर झुका कर बाइक को स्टैंड पर खड़ा किया ही था कि जिस का डर था वही हो गया. निगाहें न चाहते हुए भी उस के चेहरे की तरफ उठ गई थीं. फिर जो देखा उसे शब्दों में बयां करना मेरे लिए संभव नहीं है. मेरा तनबदन कांपने लगा. बदहवासी में हैंडल हाथ से छूट गया, ब्रीफकेस जमीन पर एक ओर गिर पड़ा, वह मुसकरा रही थी.

मैं जड़वत जहां का तहां खड़ा रह गया. पैर बढ़ाने की हिम्मत नहीं बटोर पा रहा था. दिल में अजीब से विचार उठ रहे थे. उस तरफ बड़ी ही कातर दृष्टि से देखा. वह अभी भी मुसकरा रही थी. उफ, आज क्या होग? मेरे मुंह से अनायास निकल गया. इतनी लंबी मुसकान किस कदर कहर बरपाएगी इस का अंदाज मु?ो लगने लगा था. वह शायद मेरी दयनीय दशा को भांप गई थी, सो एक प्यारी सी मुसकान बिखेरती हुई स्टैंड पर लगी बैंच पर बैठ गई. थोड़ा संयत होने पर मैं सामान बटोरने में लग गया.

धड़कते दिल से स्टैंड के अंदर घुसा. कदम फूंकफूंक कर रख ही रहा था कि अचानक  जोर की आवाज के साथ मैं इतनी जोर से चौंका कि गिरतेगिरते बचा. देखा कि स्टैंड पर 2 बच्चे बैठे थे. मैं कुछ समझ पाता इस से पहले बच्चों की एक फौज कमरे में घुस आई. मालूम हुआ कि मेरी गर्लफ्रैंड की शादीशुदा बहनें अपने 2-2 बच्चों के साथ 1 महीने की छुट्टियां मनाने आई हैं. अब मैं फ्रैंड की मुसकराहट का रहस्य समझ गया था. मुझे उन बच्चों और उन की मांओं की खातिरदारी 4 दिन फ्रैंड का साथ देना था.

4 दिनभर की मेहमाननवाजी ने किन विषम तथा संकटपूर्ण आर्थिक समस्याओं के सम्मुख खड़ा कर दिया, इस का ब्योरा देना तो मुश्किल है पर इतना जरूर बताऊंगा कि इजराइली सेना ने इतनी निर्ममता से फिलिस्तिनियों को नहीं कुचला होगा, जितना कि बच्चों ने कूच करने से पहले मेरे पास, मेरी बाइक और मेरी नींद को कुचला. शायद यह सेना मेरा एकएक सामान (जो कुछ भी था) जब्त करने का लक्ष्य बना कर ही आई थी. उसे उस ने बड़ी आसानी से कर भी दिखाया. मैं बेबस और असहाय सा सब देखता रह गया. मेरा मोबाइल गया. मेरा आई पैड गया. मेरी हैल्थ वाच गई, पारकर का पैन गया. गौगल्स गए.

फिर भी कभीकभी सोचता हूं कि गनीमत है जो कुदरत ने असीम कृपा कर मुझे कम मुसकराने वाली फ्रैंड दी वरना मैं क्व3 हजार महीना कमाने वाला क्लर्क आज चौराहे पर बड़ा सा कटोरा लिए घूम रहा होता. भविष्य के बारे में तो कुछ कह नहीं सकता, पर अभी तक ऐसी नौबत नहीं आ पाई है.

रिश्ते की धूल : सीमा और सौरभ के रिश्ते की क्या थी सच्चाई

प्रियांक औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहे थे कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक एक मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’

‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’

‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’

‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. आज मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’

सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाए, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’

प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’

उस ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.

सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.

सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.

प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.

आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई. सौरभ ने हाथ उठा कर अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’

‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’

‘‘सीमा ये है सौरभ. पहले ये और मैं एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब ये भी इसी शहर में आ गए हैं और हां सौरभ ये हैं मेरी पत्नी सीमा.’’

दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें करने लगे.

तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’

‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’

‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’

सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुसकरा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा.’’

प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गए. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.

काफी रात हो गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर बातें करते.

प्रियांक कम बोलने वाले सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे. उन के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करते और प्रियांक उन की बातें सुनते रहते. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.

एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गए. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार उधार मिल सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’

‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ एक कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई

‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ कह कर सीमा 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठ कर बातें करने लगे.

‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’

‘‘हरकोई मु?ो देख कर ऐसा ही कहता है.’’

‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’

‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती है,’’ सीमा हंस कर बोली.

‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’

‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘यह लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’

‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.

अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोले. सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी है. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने को करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करो? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.

एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस के हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया.

सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ उस के पीछेपीछे वहां आ गए. उसे देखते ही अनजान बनते हुए वे बोले, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’

‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’

‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’

‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए,’’ उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.

सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.

सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों सामने होटल में आ गए.

सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया था. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’

सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मु?ो ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’

‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’

‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’

‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.

‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’

बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.

सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में थे. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोले, ‘‘आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’

मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’

‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’

‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर ये आप के भी और मेरे परिवार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’

‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोले.

तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’

सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई  कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया. वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा था जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.

वह इस समस्या का तोड़ ढूंढ रही थी जो अचानक ही उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी  इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वे उलटा उसे ही दोष देने लगेंगे, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’

1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मार्डन लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.

दोपहर में सीमा का फोन देख कर उस ने पूछा, ‘‘दी आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी इस समय?’’

‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं? कोई मिस्टर परफैक्ट मिला या नहीं?’’

‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’

‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’

‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मुझे भी पसंद आ जाए,’’ रीमा हंस कर बोली.

‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’

‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’

सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बात करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी.

दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गए, ‘‘रीमा तुम अचानक यहां?’’

‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.

‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.

सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की होगी.

‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकता वश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वे चौंक गए. उस ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं?’’

‘‘आप को कैसा पता चला?’’

‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मु?ो लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’

उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.

‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’ रीमा के आग्रह पर वे वहीं सोफे पर बैठ गए.

‘‘मैं प्रियांक से  मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’

‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही गई हैं.’’

‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं,’’ लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोकलाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.

‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.

कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही

अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आए?’’

‘‘आते ही होंगे. आप दोनों बातें कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.

‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं  हुआ है.’’

‘‘हां, मैं कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’

‘‘आप की फैमिली?’’

‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’

‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. कम को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’

‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’

बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा बहुत ध्यान से सौरभ को देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई.

रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.

कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गए. सौरभ को देख कर वे चौंक गए और फिर उन के साथ बातों में शामिल हो गए.

प्रियांक बोले, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’

‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’

प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया. सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आए.

प्रयांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए सौरभ ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चले आया.

रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’

‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’

‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’

‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोले. लगा जैसे उन के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और मन की मुराद मिल गई. वे औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चले आए. रीमा उन का इंतजार कर रही थी. उन्हें देखते ही वह बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’

‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’

आज भी सौरभ की आशा के विपरीत उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर आ गई.

‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’

‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.

सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अचंभित थे. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने वाली और बे?ि?ाक बोलने वाली सीमा उन की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उन की हर बात में नजर ?ाका लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वे सम?ा गए कि वह भी उन्हें उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में यही ?ि?ाक उन के बीच आ रही है.

अब उन के सामने एक ही समस्या थी वह यह कि वे सीमा की झिझक को कैसे दूर करें? उन्हें तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी.मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उन्हें सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वे चाहते थे कि वे सीमा से ढेर सारी बातें करें पर वह उन के सामने बहुत ही कम आ रही थी.

सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करते रहे. तभी प्रियांक आ गए. उन दोनों को बातें करते देख कर वे बड़े आश्वस्त लगे.

रात हो गई थी. सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’

‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’

‘‘आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’

रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगे. सीमा

की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उन के लिए बहुत था. वैसे उन्हें अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं. रीमा ने डाइनिंग टेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया था. वे सब वहां पर बैठ कर खाना खा लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहे थे. वह सिर झुकाए चुपचाप खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती. सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.

रीमा को यहां आए हफ्ते भर से ज्यादा समय हो गया था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी. आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’

‘‘कोई खास काम था?’’

‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में

ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं

मिल जाएंगे.’’

सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वे समय से पहले ही मौल पहुंच गए. तभी देखा कि रीमा अकेली ही आ रही है.

‘‘प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’

‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मुझे लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं. आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’

‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.

सौरभ का मन थोड़ा उदास हो गया था लेकिन वे रीमा को यह सब नहीं जताना चाहते थे. वे ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का?’’

‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे पिक्चर हौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वे यह भी जानते थे कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर सौरभ ने सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगे. समय कब बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को छोड़ने सीमा के घर आ गए. सामने प्रियांक दिखाई दे गए.

‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने नहीं आए?’’

‘‘अचानक मेरी सिर में बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’

‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोले. सौरभ ने चारों ओर अपनी नजरें दौड़ाईं पर उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वे रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गए.

अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.

इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था. एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’

‘‘इंसान तो अच्छा है.’’

‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’

‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.

रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.

1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा सौरभ के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.

सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.

एक दिन सौरभ ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’

‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’

रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गए. उन्हें लगा कभी सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की है. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’

‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी

कोई जंचा ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने

का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैं ने अपने दिल की बात

कह दी.’’

सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोले.

थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी.

उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’

उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने 1 नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवनभर भुगतता रहे.

रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गई सीमा ने पहली बार सौरभ को

फोन मिलाया. उस का फोन देख कर सौरभ चौंक गए. किसी तरह अपने को संयत किया और बोले, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’

‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’

‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?

‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती का सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’

‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बो?ा उतार दिया है. यह सब आप की सम?ादारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’

‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’

‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां मजाक. अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़े. उन की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.

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