Top 10 Prerak Kahaniyan: प्रेरक कहानियां हिंदी में

Top 10 Prerak Kahaniyan:  दिल्ली प्रैस की फेमस पत्रिका गृहशोभा डिजिटल लेकर आया प्रेरक कहानियां, अगर आपको भी पसंद है ऐसी कहानियां जो आपको सफल बनाएं. पढ़िए  Prerak Kahaniyan जो एक से बढ़कर एक कहानियां है.

  1. हौसले बुलंद हैं: समाज की परवाह किए बिना सुहानी ने क्या किया

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एक मुसलिम युवक से शादी करने पर जितने तमाशे हो सकते थे, लोगों ने कर डाले. मगर सुहानी और समीर इन सब की परवाह न कर अपनी जिंदगी में मस्त थे. मगर तभी एक दिन…

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2. वो लम्हे: ट्रिप पर क्या हुआ था श्वेता के साथ

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स्कूल ट्रिप के दौरान घटी एक घटना को श्वेता क्यों सालों बाद भी नहीं भूल पाई थी. आखिर क्या हुआ था उस दिन..

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3. बाजारीकरण: नीला ने क्यों रखी किराए पर कोख

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नीला ने अपनी बेटी निशा को इंजीनियरिंग में दाखिला दिलाने के लिए खुद की कोख किराए पर दे दी थी. मगर फिर ऐसा क्या हुआ कि उसे अपने इस फैसले पर पछतावा होने लगा.

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4. ग्रहों की शांति: रामचरण कैसे अंधविश्वास से निकला?

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पंडित की बातों पर रामचरणजी आंख मूंद कर विश्वास करते थे. मगर एक दिन जब छोटी बहू ने सचाई से रूबरू कराया तो उन की आंखें खुली की खुली रह गईं.

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5. सलाहकार

बचपन से ही शुचिता के मन में अंधविश्वास की जड़ें जमा दी थीं उस की दादी ने और युवा होतेहोते ये जड़ें और गहरी हो गई थीं, जिस का फायदा उठाया उस के अपनों ने.

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6. प्रोफाइल पिक्चर: जब मैट्रोमोनियल साइट पर मिली दुल्हन!

कौन थी वह लड़की जो मैट्रोमोनियल साइट पर प्रोफाइल देख कर मुझ से शादी करना चाहती थी? आश्चर्य तो यह कि वह सीधे मुझ से मिल कर बात करना चाहती थी और जब मैं उस के बताए पते पर पहुंचा तो वहां सिर्फ एक लाल गुलाब रखा था.

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7. कर्तव्य: जब छूटा आदिल के पिता का साथ

आदिल ने एक नजर बैंच पर लेटे अपने अब्बू पर डाली, जो उस की ओर ही देख रहे थे. उस की मनोदशा को वे अच्छी तरह से समझ रहे थे.

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8. सासुजी हों तो हमारी जैसी: कैसे उलटपुलट गई पति-पत्नी की जिंदगी

सासुजी के आने से हमारा मुंह भले ही सूज जाता हो लेकिन पत्नीजी का खिल जाता है. खैर, सासुजी इस बार आईं तो ऐसेऐसे करामात किए कि हमारी दुनिया ही उलटपुलट हो गई.

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9. चैटिंग: क्या हुआ जब शादी से पहले प्रज्ञा से मिलने पहुंची?

निभा ऐसा क्या जानती थी अपनी दोस्त प्रज्ञा के होने वाले पति के बारे में, जिसे बताने के लिए वह प्रज्ञा से मिलना चाहती थी?

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10. पैंसठ पार का सफर: क्या कम हुआ सुरभि का डर

सुरभि के बच्चे कैरियर बनाने के लिए विदेश क्या गए, वहीं के हो कर रह गए, जबकि दूसरी ओर पति की मौत और आएदिन महानगरों में होने वाले हादसों ने सुरभि को और भी डरा दिया था.

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फैसला: पत्नी से क्या छुपा रहा था समीर

नीरजा और रोहित थोड़ी देर बाद हमारे घर डिनर करने के लिए आने वाले हैं. शिखा ने बड़े उत्साह से उन के लिए खाना बनाया है. वह सुबह से ही बहुत खुश है जबकि मेरा मन अजीब सी खिन्नता और चिड़ का शिकार बना हुआ है. ‘‘खाना खाने के बाद आइसक्रीम खाने बाहर चलें या आप बड़ी वाली ब्रिक घर लाओगे?’’ बैडरूम में तैयार हो रही शिखा ने ऊंची आवाज कर के मुझसे पूछा.

‘‘मैं ब्रिक ले आता हूं. खाना खाने के बाद कौन बाहर जाने के झंझट में पड़ेगा. कौन सी आइसक्रीम लाऊं,’’ मेरे मन की खीज मेरी आवाज में साफ ?झलक रही थी.

‘‘आप नीरजा के साथ कालेज में पढ़े हो. क्या आप को याद नहीं कि उसे कौन सी आइसक्रीम पसंद है?’’

‘‘4 साल बाद ऐसी बातें कहां याद रहती हैं,’’ मैं ने झुझंलाए लहजे में जवाब दिया. ‘‘तो जो आप का मन करे, वही फ्लेवर ले आना. अब जल्दी जाओ और जल्दी आओ. उन लोगों के आने का समय हो रहा है.’’ ‘‘मैं जा रहा हूं. तुम आ कर दरवाजा बंद कर लो,’’ मैं सोफे से उठ कर दरवाजे की दिशा में चल पड़ा.

कालेज छोड़े 4 साल बीत चुके हैं पर मैं न नीरजा को भूला हूं, न रितु को. मुझे अच्छी तरह याद है कि नीरजा हमेशा मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम खाती थी. मैं मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम बिलकुल नहीं लाऊंगा. मैं नीरजा को खुश होने का कोई मौका नहीं देना चाहता हूं.

करीब 2 महीने पहले नीरजा और रोहित पहली बार हमें बाजार में अचानक मिल गए थे. नीरजा को बातों से किसी का दिल जीतने की कला हमेशा से आती है. बहुत जल्द ही उस ने शिखा के साथ अच्छी दोस्ती की नींव डाल दी थी.

शिखा बहुत भोली और सीधीसादी है. उस ने नीरजा और रोहित को उस पहली मुलाकात के समय ही अगले रविवार को घर पर खाने के लिए बुला लिया था. एकदूसरे के घर आनेजाने का उस दिन से शुरू हुआ सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था. इन मुलाकातों ने नीरजा के लिए मेरे मन में बसे नापसंदगी व चिड़ के भावों को और ज्यादा बढ़ाया ही है. मैं बिलकुल नहीं चाहता हूं कि वह मेरी बहुत अच्छी तरह से चल रही घरगृहस्थी की खुशियों व सुखशांति को नष्ट करने का कारण बने. मैं ने आइसक्रीम खरीदने के बजाय जानबूझ कर रसमलाई खरीदी जोकि नीरजा को कभी अच्छी नहीं लगती थी. मेरे बाजार से लौटने के साथसाथ ही रोहित और नीरजा भी आ पहुंचे.

वे लोग गुलदस्ता ले कर आए थे और फूल शिखा को बहुत पसंद हैं. नीरजा से इस भेंट को स्वीकार करने के बाद शिखा बड़े अपनेपन के साथ उस के गले लग गई. जब शिखा रसोई में जाने लगी तो नीरजा भी उस के साथ जाने को उठ खड़ी हुई. मैं रोहित के साथ आस्ट्रेलिया और भारत के बीच चल रहे एक दिवसीय मैचों की शृंखला की चर्चा करने लगा.

रोहित मुझे पहली मुलाकात से ही हंसमुख और समझदार इंसान लगा है. हम दोनों के बीच बहुत अच्छी दोस्ती हो सकती है पर बीच में नीरजा के होने के कारण मैं अपना हाथ उस के साथ दोस्ती के लिए नहीं बढ़ा सकता हूं.

आज भी जबजब मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों के बीच वार्त्तालाप खुल कर हो रहा है, मैं ने जानबूझ कर बोलना कम कर दिया. फिर बीचबीच में मैं अपने कम बोलने के निर्णय को भूल जाता तो हम दोनों के ठहाकों से कमरा गूंज उठता. बिना कारण किसी खुशमिजाज इंसान को नापसंद करने का नाटक करना सचमुच कठिन काम है. उन के आने के करीब आधे घंटे बाद हम चारों खाना खाने डाइनिंग टेबल पर बैठ गए. शिखा ने सचमुच दिल से खाना बनाया था. रोहित ने जब खाने की तारीफ करी तो मुझे अच्छा लगा, पर जब नीरजा ने ऐसा किया तो मैं मन ही मन चिढ़ उठा.

‘‘समीर, तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा हुआ है? क्या खाना तुम्हारी पसंद का नहीं बना है?’’ नीरजा ने अचानक यह सवाल पूछ कर मुझे रोहित और शिखा की नजरों का केंद्र बना दिया.

‘‘मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है कि इन का मूड सुबह से खराब क्यों बना हुआ है, पर कोई न कोई बात है जरूर,’’ शिखा ने यह बात यों तो मुसकरा कर कही पर मैं ने उस की आंखों में हलकी चिंता के भाव पढ़ लिए थे.

‘‘मेरा मूड ठीक ही है रोहित, तुम पनीर की सब्जी और लो न,’’ मैं ने वार्त्तालाप की दिशा बदलने की कोशिश करी.

‘‘समीर, कभीकभी मुझे लगता है कि…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात पूरी नहीं करी और मेरी तरफ शरारती भाव से देखने लगी.

‘‘क्या लगता है,’’ मैं ने इस अपेक्षित सवाल को पूछते हुए अपने स्वर में दिलचस्पी के भाव पैदा नहीं होने दिए.

‘‘मुझे कभीकभी ऐसा लगता है कि तुम अब भी रितु को नहीं भुला पाए हो,’’ उस ने मेरी टांग खींचने की कोशिश शुरू कर दी.

‘‘तुम बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हो, नीरजा. शिखा जैसी समझदार, सुंदर और सुशील पत्नी को पाने के बाद कोई अपनी पुरानी प्रेमिका को भला क्यों याद करेगा?’’ मैं ने मुसकराने के बजाय संजीदा लहजे में जवाब दिया.

‘‘याद तो नहीं रखना चाहिए, पर तुम आदमी जरा अक्ल से पैदल होते हो. अब रोहित को ही लो. इन्हें मैं ने अंजु के जन्मदिन पर… अंजु इन की कालेज की प्रेमिका का नाम है. उस के जन्मदिन पर मैं ने इन्हें आंखों में आंसू भरे हर साल पकड़ा है. क्या मैं गलत कह रही हूं, रोहित?’’

“नहीं डियर,’’ रोहित ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘पहले प्यार को भुला पाना संभव नहीं होता है. पुरानी यादें आंखों में आंसू भर जाती हैं, पर वह कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं क्योंकि अब तुम्हारे अलावा मेरे दिल में कोई दूसरी औरत नहीं बसती है.’’

नीरजा के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने आवेश भरे लहजे में कहा, ‘‘रोहित भाई, इन दूसरी औरतों की ताकत को कभी कम कर के मत आंकना. बड़ी चालाकी से वे अपने रूपजाल में अपने शिकार को फंसाती हैं. मेरा तो यह मानना है कि समझदार आदमी को ऐसी खूबसूरत नागिनों से किसी तरह का रिश्ता बनने ही नहीं देना चाहिए. अगर कोई आदमी पहले से होशियार नहीं रहे तो बाद में उजड़ी हुई अपनी घरगृहस्थी और आजीवन पीड़ा देने वाले दिल के जख्मों के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता है.’’

‘‘तुम्हारे गुस्से को देख कर लगता है कि अतीत में किसी दूसरी औरत ने तुम्हें अपने जाल में फंसाने की कोशिश की है, समीर,’’ रोहित ने मुझे छेड़ा तो शिखा और नीरजा खुल कर हंस पड़ीं. ‘‘तुम्हें कैसे पता लगा?’’ मैं ने हैरान दिखने का बढि़या नाटक किया तो पूरा घर हम सब के सम्मिलित ठहाकों की आवाज से गूंज उठा. मैं ने नोट किया कि इस पल के बाद से नीरजा चुपचुप सी हो गई थी. उस के दिल को चोट पहुंचाने में मैं सफल रहा हूं, ऐसा सोच कर मेरा मन खुशी महसूस कर रहा था और इस कारण मैं ज्यादा खुल कर रोहित से गपशप करने लगा. खाना खत्म होने के बाद जब शिखा रसमलाई लाई तो नीरजा ने शिकायत करी, ‘‘समीर, यह रसमलाई क्यों मंगवा ली?’’ तुम्हें तो याद होना चाहिए कि मैं रसमलाई बिलकुल नहीं पसंद करती हूं.’’

‘‘सौरी नीरजा, पर मुझे बिलकुल याद नहीं कि तुम रसमलाई पसंद नहीं करती हो. मैं ने रोहित को बड़े स्वाद से रसमलाई खाते देखा हुआ है और यह शिखा को भी बहुत अच्छी लगती है. सौरी, अब आगे से याद रखूंगा,’’ मेरी आवाज में अफसोस के भाव किसी को ढूंढ़े से भी नहीं मिलते.

‘‘मेरा तो आइसक्रीम खाने का मन कर रहा है,’’ वह किसी छोटी बच्ची की तरह मचल उठी.

‘‘तो तुम्हें आइसक्रीम खिलवा देते हैं. रोहित और आप बाजार से आइसक्रीम ले आओ, प्लीज,’’ शिखा ने मुझसे ऐसी प्रार्थना करी तो मैं मन ही मन जोर से किलस उठा.

‘‘थैंक यू, शिखा. समीर, तुम्हें तो याद नहीं रहा होगा इसलिए मैं बता देती हूं कि मुझे मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम ही पसंद है,’’ नीरजा का अपनी पसंद बताते हुए मुसकराना मेरा खून फूंक गया. मुझे मजबूरन रोहित के साथ आइसक्रीम लेने जाना पड़ा. रास्ते भर अधिकतर रोहित ही कुछकुछ सुनाता रहा. मैं ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि मेरा मूड खराब हो रहा.

नीरजा ने छक कर आइसक्रीम खाई. वह मुझ से सहज हो कर हंसबोल रही थी पर मुझे उस की तरफ देखना भारी लग रहा था. जब विदा लेने को वे दोनों उठ खड़े हुए तब ही मैं ने मन ही मन बहुत राहत महसूस करी.

‘‘अगले संडे को तुम दोनों हमारे घर डोसा खाने आ रहे हो?’’ नीरजा ने हमें अपने घर आने को आमंत्रित किया.

‘‘शायद हम संडे को शिखा के भाई के घर जाएं, इसलिए शनिवार की सुबह को तुम्हारे यहां आने का प्रोग्राम पक्का करते हैं,’’ मैं ने उन के यहां पहुंचने को जानबूझ कर हामी नहीं भरी.

‘‘तब शनिवार की रात छोलेभठूरे की दावत कर देती हूं.’’

‘‘अभी कोई कार्यक्रम नहीं बनाओ. हम बाद में फोन पर बात कर के कुछ तय करेंगे.’’

मैं ने नोट किया कि विदा के समय नीरजा सोच में डूबी सी नजर आ रही थी. मुझे उस के खराब मूड की कोई परवाह नहीं हुई क्योंकि मैं उस से अच्छे संबंध बनने का इच्छुक ही नहीं था. सोने से पहले शिखा ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर अचानक संजीदा लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘समीर, मुझे आज पता लग गया है कि तुम नीरजा को क्यों पसंद नहीं करते हो. जब तुम रोहित के साथ आइसक्रीम लाने गए हुए थे, तब नीरजा ने मुझे तुम्हारी नापसंदगी का कारण बता दिया.’’

‘‘क्या बताया उस ने?’’ मैं ने माथे में बल डाल कर तीखे लहजे में पूछा.

‘‘यही कि रितु और तुम्हारे बीच गलतफहमी की जड़ में उस का तुम्हारे साथ खुल कर हंसनाबोलना था. जो हुआ उस का उसे आज तक अफसोस है क्योंकि वह रितु और तुम्हें बहुत पसंद करती थी.’’

‘‘मैं पुरानी बातों को याद नहीं करना चाहता हूं. मुझे रोहित से कोई शिकायत नहीं पर नीरजा से मिलनाजुलना अच्छा नहीं लगता है. इसीलिए हम उन के घर अगले संडे को नहीं जाएंगे,’’ अपना फैसला बताते हुए मैं चिढ़ सा उठा.

‘‘समीर, रोहित तुम्हें अपना बहुत दोस्त समझाने लगा है. तुम तो जानते ही हो कि वह आजकल बहुत तनाव में जी रहा है. अपने कुछ नजदीकी दोस्तों के हाथों उस ने बिजनैस में तगड़ा धोखा खाया है. नीरजा का मानना है कि रोहित को डिप्रैशन में जाने से बचाने में तुम से हुई दोस्ती बहुत अहम भूमिका निभा रही है. इस के लिए उस ने मेरे हाथ तुम्हें दिल से धन्यवाद भिजवाया है,’’ शिखा अपनी सहेली की तरफदारी करने की भरपूर कोशिश कर रही थी.

‘‘वह सब ठीक है, पर मुझे इन लोगों से कैसे भी संबंध नहीं रखने हैं,’’ मैं ने अपना फैसला फिर से दोहरा दिया.

‘‘लेकिन ऐसा करना तो गलत बात होगी समीर,’’ वह भावुक हो उठी, ‘‘मुझे एक बात सचसच बताओगे.’’

‘‘पूछो,’’ मैं तनाव से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं नीरजा का हमारे यहां आनाजाना और तुम्हारे साथ खूब खुल कर हंसनाबोलना हमारे बीच गलतफहमी न पैदा करा दे.’’

‘‘क्या ऐसा होना तुम्हें नामुमकिन लगता है?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बिलकुल नामुमकिन लगता है. अरे, मुझे तुम्हारे ऊपर पूरा विश्वास है. हमारे बीच प्यार की नींव इतनी कमजोर नहीं है जो नीरजा के तुम्हारे साथ हंसीमजाक करने से डगमगा जाएगी. तुम इस डर को अपने मन से निकाल दो. मैं कभी रितु की तरह गलतफहमी का शिकार नहीं बनूंगी,’’ उस ने मुझे आश्वस्त करना चाहा.

मैं ने शिखा की आंखों में गहराई से झंका. वहां मुझे अपने लिए प्यार का समुद्र लहराता नजर आया. एक बार को तो मेरा मन डगमगाया पर फिर मैं ने अपना फैसला बदलने का विचार झटके से त्याग दिया.

‘‘मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लूंगा, शिखा. हम नीरजा और रोेहित से अच्छे संबंध नहीं बनाएंगे और इस मामले में मैं किसी तरह की दलील नहीं सुनना चाहता हूं,’’ अपना फैसला एक बार फिर से दोहराने के बाद मैं उठा और बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में चला आया.

मुझे मालूम है कि शिखा को इस मामले में मेरा अडि़यल रुख बिलकुल समझ में नहीं आ रहा होगा, पर मैं ने यह फैसला बहुत सोचसमझ कर किया है. शिखा को यह असलियत बताने की हिम्मत मेरे अंदर नहीं है कि वर्षों पहले रितु से मेरा प्रेम संबंध मेरी गलती के कारण टूटा था. नीरजा के साथ अपने खुल कर हंसनेबोलने का रितु ने नहीं बल्कि मैं ने गलत अर्थ लगाया था. मैं ने रितु को प्यार में धोखा दे कर नीरजा का प्रेमी बनने की कोशिश करी थी क्योंकि वह रितु से ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक थी.

सच यही है कि नीरजा के प्रति मेरा दिल आज भी वैसा ही जबरदस्त आकर्षण महसूस करता है. मुझे पता है कि अगर हम भविष्य में मिलते रहे तो मैं फिर से फिसल जाऊंगा और उस स्थिति की कल्पना कर के ही मेरा मन कांप उठता है. अपनी भूल को दोहरा कर मैं शिखा की नजरों में गिर कर उस के प्यार को कभी नहीं खोना चाहूंगा.

मुझे मालूम है कि नीरजा और रोहित की दोस्ती को ठुकरा कर मैं ने सही कदम उठाया है. बाद में बुरी तरह पछताने के बजाय यह बेहतर है कि मैं अभी इस मसले में अडि़यल रुख अपना कर शिखा, रोहित व नीरजा की नजरों में बुरा बन जाऊं.

चैटिंग: क्या हुआ जब शादी से पहले प्रज्ञा से मिलने पहुंची?

प्रज्ञा आज बहुत खुश थी. उसे अमित ने एक स्पैशल ट्रीट के लिए अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया था. प्रज्ञा ने हलके गुलाबी रंग का सूट पहना. बालों को कर्ल किया और अमित की पसंद का परफ्यूम लगा कर उस से मिलने चल दी.

प्रज्ञा और अमित 4 सालों से दोस्त हैं. कुछ दिनों से उन के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो चला था. प्रज्ञा कहीं न कहीं अमित में अपना जीवनसाथी देखने लगी थी. अमित भी उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगा था, मगर कभी इस बात का इजहार नहीं किया था. आज वह इसी मकसद से प्रज्ञा से मिलने वाला था. वह अच्छी जौब करता था. प्रज्ञा ने भी अपनी फाइनैंशियल कंसलटैंसी खोल रखी थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. अमित के मांबाप ने भी इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी थी. जाहिर है अब अमित को इस बात का पूरा विश्वास था कि प्रज्ञा हमेशा के लिए उस की बन जाएगी. बस प्यार का इजहार करने की देरी थी.

सही समय पर प्रज्ञा रैस्टोरैंट पहुंची. अमित ने कोने वाली एक बड़ी टेबल बुक करा रखी थी. स्पैशल ट्रीट की पूरी तैयारी थी. अमित ने पहले प्रज्ञा को एक खूबसूरत बुके गिफ्ट किया. फिर खाने का और्डर कर दिया.

प्रज्ञा अमित की नजरों में  झांकती हुई बोली, ‘‘इतना सबकुछ क्यों. आज कोई खास दिन है या कोई खास बात?’’

‘‘खास दिन भी है और खास बात भी. तुम्हें याद है 4 साल पहले जब हम ने एमबीए की पढ़ाई शुरू की थी तो सब से पहले आज के दिन ही हमारी मुलाकात हुई थी. हम उसी दिन अच्छे दोस्त बन गए थे और वह दोस्ती आज तक चली आ रही है.

‘‘इस दोस्ती ने मु झे जिंदगी के खूबसूरत पलों से आबाद किया है और मैं चाहता हूं कि यह दोस्ती किसी खास रिश्ते में बदल जाए. मैं तुम्हारे दिल की बात पूरी तरह नहीं जानता मगर अपने पूरे दिल से तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा रखता हूं. अगर तुम्हारी हां हो तो हम आगे का प्लान बनाएं,’’ अमित ने अपने दिल की बात रखी.

प्रज्ञा उसे देखती रह गई. अमित ने सबकुछ इतनी सादगी और सहजता से कह दिया कि प्रज्ञा के पास सिवा हां कहने के कुछ बचा ही नहीं था. वह शरमाती हुई बोली, ‘‘आई लव यू. जैसा तुम चाहो. मैं तो हमेशा से तुम्हारी ही हूं. मैं तैयार हूं इस रिश्ते को एक नाम देने के लिए.’’

अमित का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस ने प्रज्ञा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है इस महीने की 25 तारीख को हम सगाई कर लेते हैं और अगले महीने शादी.’’

‘‘ओके डन.’’

जल्द ही दोनों की सगाई का दिन आ गया. प्रज्ञा की बचपन की सहेली निभा जो मुंबई में रहती थी सगाई में नहीं आ सकी. मगर वह शादी से 2-3 दिन पहले आने वाली थी. उसे प्रज्ञा का फैसला जल्दबाजी में किया हुआ लगा.

सगाई के बाद उस ने प्रज्ञा से फोन पर बात की और पाया कि प्रज्ञा अपनी शादी को ले कर बहुत उत्साहित है. मगर निभा के मन में कुछ और ही चल रहा था.

शादी से करीब 3 दिन पहले वह प्रज्ञा के घर पहुंची. उस दिन मेहंदी की रसम चल रही थी. इसलिए निभा प्रज्ञा से ज्यादा बात नहीं कर सकी. मगर दोनों सहेलियों ने मिल कर इस रस्म को यादगार बना लिया. प्रज्ञा की दूसरी कई सहेलियां भी आई हुई थीं. सब के जाने के बाद अगले दिन निभा कुछ देर प्रज्ञा से बात करने उस के कमरे में चली आई.

उस ने प्रज्ञा से पूछा, ‘‘क्या तु झे नहीं लगता कि जीवन का इतना बड़ा फैसला तूने बहुत जल्दी में ले लिया.’’

‘‘जल्दी में कहां निभा, पिछले 4 साल से हम एकदूसरे को जानते हैं,’’ प्रज्ञा ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘जानते हो मगर क्या सम झते भी हो?’’

‘‘हां यार काफी हद तक,’’ प्रज्ञा ने साफ स्वर में कहा.

‘‘मगर पूरी तरह नहीं न प्रज्ञा. यही गलती मैं ने भी की थी और उस की सजा आज तक भुगत रही हूं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ भी वैसा कुछ हो जो मेरे साथ हुआ.’’

‘‘यह क्या कह रही है निभा, तेरे साथ क्या हुआ? तू क्या मनीष के साथ खुश नहीं? कालेज में तुम दोनों भी तो एकदूसरे के काफी करीब थे?’’

‘‘हां यार हम दोनों ने 2-3 साल डेटिंग की थी. हमें लगता था कि हम एकदूसरे को अच्छी तरह सम झते हैं और एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच हैं. मगर शादी के बाद पता चला कि वह जिंदगी बहुत अलग होती है. शादी के बाद बहुत कुछ मैनेज करना होता है. आप इतनी आसानी से किसी के हो जाते हो मगर जब जिम्मेदारियों का बो झ सिर पर आता है तो आप का रवैया ही बदल जाता है. आज हमारे बीच रोज किसी न किसी बात को ले कर  झगड़े होते हैं. अकसर हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात नहीं करते. फिर एकसाथ हमारे अंदर का लावा फूट पड़ता है. मेरी लव मैरिज आज तलाक के कगार पर पहुंच गई है. इसलिए तु झे सावधान रहने को कह रही हूं,’’ निभा ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘मगर तुम्हारे  झगड़ों की वजह क्या है? क्या सासननद की दखलंदाजी या

मनीष शराब पीता है या फिर कोई और है तुम दोनों के बीच?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हमारे बीच न सास है, न दारू और न लड़की. हमारे बीच हमारा ईगो है. हम छोटीछोटी बातों पर लड़ते हैं. शादी के बाद ऐक्सपैक्टेशंस बहुत बढ़ जाती हैं. वे पूरी न हों तो दिल दुखता है और यह अंजाम होता है. इसलिए शादी से पहले ही छोटीछोटी बातें भी डिस्कस कर लेनी चाहिए ताकि एकदूसरे का असली स्वभाव पता चल सके और बाद में कोई लफड़ा न हो,’’ निभा ने सम झाया.

‘‘तो फिर अब मु झे क्या करना चाहिए?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘मेरे खयाल से तुम अभी इसी वक्त इस दुविधा से निकल सकती हो. ऐसा करो तुम अपने हस्बैंड से किस तरह की ऐक्सपैक्टेशन रखती हो, लाइफ में क्या चाहती हो यह सब अभी डिस्कस करो. अपने मन की बातें करो ताकि शादी के बाद पछताना न पड़े.’’

‘‘ओके. मैं करती हूं बात,’’ प्रज्ञा ने फोन निकाला और अमित को मैसेज किया, ‘‘यार क्या कर रहे हो. मु झे कुछ जरूरी बातें करनी थीं तुम से. आर यू फ्री?’’

‘‘आप के लिए तो यह बंदा हमेशा फ्री है मेरे ख्वाबों की मलिका.’’

‘‘अब इतना भी मस्का मत लगाओ.’’

‘‘ओके बताओ क्या कह रही थीं?’’

‘‘तुम्हें याद है मैं ने कल तुम्हें अपनी सहेली से मिलवाया था जो मुंबई में रहती है.’’

‘‘हां याद है मु झे. तुम निभा की बात कर रही हो न जिस का जिक्र पहले भी तुम कभीकभी करती रहती थीं.’’

‘‘हां यार कल जब वह आई तो मु झे उस की जिंदगी के एक बड़े सच के बारे में पता चला. जानते हो उस का अपने पति से  झगड़ा चल रहे है और वह कभी भी तलाक ले सकती है.’’

‘‘मगर क्यों? उन की आपस में क्यों नहीं बनती?’’

‘‘क्योंकि वह निभा को समय नहीं देता है. उस की ऐक्सपैक्टेशंस को पूरा नहीं करता है. दोनों छोटीछोटी बातों पर  झगड़ते हैं. अगर निभा किसी बात पर रूठ जाती है तो वह अपने ईगो के कारण कई कई दिनों तक उस से बात नहीं करता. उस की परवाह नहीं करता. तुम तो ऐसा नहीं करोगे न अमित?’’ प्रज्ञा ने सवाल किया.

‘‘नहीं यार, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. अगर गलती मेरी होगी तो तुम्हें जरूर मनाऊंगा,’’ अमित ने आश्वस्त किया.

‘‘और अगर तुम्हारे अनुसार गलती मेरी होगी तो क्या तुम अपने ईगो को ले कर बैठे रहोगे? मु झ से बात नहीं करोगे? मु झे मनाओगे नहीं?’’

‘‘ओफ्कौर्स मैं तुम्हें मनाऊंगा. हमारे बीच एक दिन भी खामोशी नहीं रह सकती. भले ही कितना भी  झगड़ा हो जाए पर मैं तुम्हारी परवाह करना कभी नहीं छोड़ सकता क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ अमित ने अपना प्यार दिखाया.

‘‘सो स्वीट वैसे तुम्हारा असली रूप तो शादी के बाद ही दिखेगा,’’ मुसकराते हुए प्रज्ञा ने मैसेज किया.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लड़कियों का असली रूप भी शादी के बाद ही दिखता है. तुम्हें पता है नीरज की पत्नी क्या करती है? हर दूसरे दिन मायके चली जाती है. तब नीरज को खुद ही खाना बनाना पड़ता है.’’

‘‘तो क्या हो गया. क्या तुम शादी के बाद खाना बनाने में मेरी हैल्प नहीं करोगे?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हैल्प जरूर करूंगा मगर कई दफा इंसान बिजी होता है तो हैल्प नहीं कर पाता,’’ अमित ने अपनी बात रखी.

‘‘वह तो ठीक है मगर यह बताओ कि तुम शादी के बाद इतने व्यस्त तो नहीं हो जाओगे कि वीकैंड पर भी मु झे समय नहीं दोगे या मु झे शौपिंग के लिए नहीं ले जाओगे?’’

‘‘देखो मैं तुम्हें वीकैंड पर घुमाने जरूर ले जाऊंगा और शौपिंग भी कराऊंगा, मगर हो सकता है कभी मेरे पास समय नहीं हो तब तुम मुंह फुला कर तो नहीं बैठ जाओगी? मेरा साथ तो दोगी न.’’

‘‘हां बिलकुल. मगर तुम कभी मु झ पर चिल्लाओगे तो नहीं, हमेशा प्यार से बात करोगे न?’’

‘‘बिलकुल यार मैं प्यार से ही बात करता हूं. अच्छा याद है मैं ने तुम्हें एक बार अपनी बूआजी की कहानी सुनाई थी न? उन्होंने फूफाजी को 2-3 बार किसी महिला से बातें करते देख लिया था और बस फुजूल का शक कर के अपनी जिंदगी खराब कर ली. आज उम्र के इस मोड़ पर दोनों अकेले जिंदगी जी रहे हैं.’’

‘‘तुम एक क्या कई लड़कियों से बात कर लो मु झे फर्क नहीं पड़ने वाला. बस मेरा बर्थडे और ऐनिवर्सरी हमेशा याद रखना.’’

‘‘वह सब तो मु झे याद रहता ही है. अच्छा एक बात और तुम्हें मेरी मां और बहन को अपनी मां और बहन सम झना होगा,’’ अमित ने मन की बात कही.

‘‘ठीक है लेकिन तुम्हें भी मेरे मायके वालों का पूरा सम्मान करना होगा,’’ प्रज्ञा ने भी शर्त रख दी.

‘‘औफकोर्स यार वैसे भी मु झे तुम्हारी बहन बहुत पसंद है,’’ अमित ने चुहलबाजी की.

‘‘देखा अभी से शुरू हो गए. तुम कहो तो अपनी बहन से ही तुम्हारी शादी करा दूं,’’ प्रज्ञा न चिढ़ कर लिखा.

‘‘क्या यार मैं तो उसे अपनी छोटी बहन जैसा मानता हूं,’’ अमित ने स्पष्ट किया, ‘‘यही नहीं मैं तो तुम्हारी मौम को अपना सा और डैड को अपने डैड जैसा मानता हूं.’’

‘‘मैं भी मजाक ही कर रही थी और मेरे मौमडैड के बारे में तुम से सुन कर खुशी

हुई. उन्होंने तो अब बहुत सी बातों में मेरा सुनना भी बंद कर दिया है और कहते हैं कि अमित से पूछ कर करेंगे,’’ प्रज्ञा ने भी बात साफ की, ‘‘मगर चिंता न करो मैं ने अपनी और तुम्हारी मां से तुम्हारी शिकायत कर दी है कि मेरी अब मेरे घर में ही कोई पूछ नहीं रही.’’

अमित बोला, ‘‘तो मेरी मां ने क्या कहा?’’

‘‘कहना क्या था, यही कि तुम्हारी अब तुम्हारे घर में कौन सी चलती है. इसीलिए तो हम दोनों कल तुम्हारे लिए तुम्हारे बिना कपड़े खरीदने जा रहे हैं. कह दूं. खबरदार हमारी पसंद पर कोई मुंह बनाया,’’ प्रज्ञा ने खिलखिलाते हुए कहा.

‘हुजूर मेरी जुर्रत कि मैं कुछ कहूं. बस मेरे दोस्तों से यह बात सीक्रेट रखना वरना मजाक उड़ाएंगे.  वैसे मैं ने सुना है लड़कियां बहुत सी बातें सीक्रेट रखती हैं. क्या तुम भी मु झ से कुछ राज छिपा कर रखोगी?’’

‘‘नहीं. हम दोनों के बीच कोई राज नहीं रहना चाहिए. हमारी जिंदगी एकदूसरे के लिए खुली किताब होगी. पर मेरी तुम्हारी मां और पापा से जो बातें होंगी वे सीक्रेट रहेंगी,’’ प्रज्ञा हंसते हुए बोली.

‘‘ओके डन,’’ अमित ने हार्ट की स्माइली भेजी तो प्रज्ञा ने भी प्यारी सी स्माइली भेजते हुए चैटिंग बंद की.

जब प्रज्ञा निभा की तरफ मुखातिब हुई तो वह हंसती हुई बोली, ‘‘वैरी नाइस. यह चैटिंग बहुत काम आएगी. शादी के बाद जब  झगड़ा हो तो तुम दोनों अपनी यह चैटिंग पढ़ लेना. जिंदगी प्यार से गुजरेगी. अगर तुम दोनों से यह चैट खो भी जाए  तो भी तुम्हें याद रहेगा कि क्या करना है क्या नहीं.’’

प्रज्ञा ने मुसकरा कर अपनी दोस्त को गले से लगा लिया. उस की आंखों में सुनहरी जिंदगी के ख्वाब सज रहे थे.

देर से जगे: आखिर बुआ जी से क्या गलती हो गई?

ताला खोलते ही खिड़कियों के परदे सरकाते हुए मेरी नजर आयरन बोर्ड पर पड़ गई. ‘ओह, आज क्या हो जाता अगर आयरन आटोमैटिक न होती या फिर स्टैंड पर खड़ी कर के न रखी होती. इतने सारे प्रैस के कपड़े पास ही कुरसी पर रखे हुए थे. अगर यह आग खिड़की के परदों में लगती, फिर इसी तरह और कपड़ों में, सारा कमरा धूधू कर के… पीछे वाले कमरे में रामदुलारी सो रही थी. जब तक वह शोर मचाती, लोग आते, तब तक न जाने क्या हो जाता. लाचार व बेसहारा दुलारी कुछ कर भी नहीं पाती. उस का बेटा श्यामू तो रात को ही वापस आता. तब तक न जाने क्याक्या हो जाता…’ मैं बड़बड़ा रही थी.

‘‘क्या हुआ, मां?’’  रीतू, मीनू ने घबरा कर पूछा.

‘‘क्या बात है, बूआजी?’’  दीपाली ने कहा.

‘‘सब ठीकठाक तो है न. चलो, खैर मनाओ कुछ हुआ नहीं,’’ साहिल ने कहा.

‘‘सौरी बूआजी, मैं ने अपना सूट प्रैस किया था. मैं ही जल्दी में स्विच औफ करना भूल गई थी,’’ दीपाली अपनी गलती पर पछता रही थी.

‘‘चलो, कोई बात नहीं,’’ कह कर मैं मन ही मन कुछ सोचने लगी.

‘‘1 कप चाय मिलेगी गरीब को,’’ साहिल ने चाय मांगने का रटारटाया नुसखा आजमाया.

चाय बनाने मैं रसोई में आ गई. नीली लपटों से चाय के पानी में उबाल के साथसाथ मेरे विचारों में भी उबाल आ रहे थे. मैं यादों के गलियारे में पहुंच गई. जब दीपाली मुश्किल से 8-9 महीने की होगी. उसे गोद में ले कर कुछ न कुछ खेल उस के साथ मैं खेलती थी. रजाईगद्दे के बक्से के ऊपर एक छोटा बक्सा रखा रहता था, जहां प्रैस रखी रहती थी. दीपाली जब कभी रोती या किसी चीज को पाने का हठ करती तो मैं उसे बक्से पर खड़ा कर के आयरन का स्विच औनऔफ कराती. इस औनऔफ के खेल को देख कर भाभी ने दबी जबान से कहा भी था, ‘‘अगर भूल से कभी स्विच औन रह गया तो?’’

‘‘हुंह ऐसे कैसे भूल हो जाएगी?’’ मैं ने टका सा जवाब दे कर भाभी को चुप करा दिया था.

मगर एक दिन वही हुआ, जिस का डर भाभी को हमेशा रहता था. जिस बक्से पर प्रैस औन रखी थी, उस बक्से की चादर और बिछा हुआ कंबल झुलस कर काले हो गए थे. बक्से में रखे हम दोनों बहनों के सूट प्रैस की गरमी से धीरेधीरे सुलगते रहे और जब उन्हें परदे की रौड से निकाला गया, वे जले कागज की तरह बिखर गए थे. जो कपड़े जलने से बच भी गए थे, वे भी पहनने के काबिल नहीं रहे थे. तह की तह काली हो रही थी. कोई भी सूट पूरा इस हालत में नहीं था कि पहना जा सके.

घर की माली हालत भी उन दिनों अच्छी नहीं चल रही थी. कुछ महीने पहले दीदी की शादी हुई थी. दीपाली का जन्म भी सीजेरियन से हुआ था. 1-1 कर के खर्चे बढ़ रहे थे. ऐसे में इतना बड़ा नुकसान. अंदर ही अंदर मुझे कुछ कचोट रहा था.

अगले दिन हम लोगों के कई सूट बाजार से आए थे. कितनी मुश्किल हुई होगी भैयाभाभी को, क्या हम लोग इस बात से अनभिज्ञ थे? पिताजी के गुजरने के बाद सारी जिम्मेदारी भैया पर ही आ गई थी. भैया अंदर ही अंदर मन मसोस कर रह गए थे. शायद भाभी ने ही उन्हें कुछ भी कहने से मना कर दिया हो. कुछ ही दिनों में बात आईगई हो गई. हां, भाभी आयरन का प्लग निकाल कर रखने लगी थीं. ‘‘तुम चाय बना रही हो या काढ़ा?’’ साहिल ने हंस कर गुहार लगाई. ‘‘ओह,’’ कहते हुए मैं ने देखा, चाय का पानी सूख कर जरा सा रह गया था.

जल्दीजल्दी दोबारा चाय बना कर टे्र लेकर मैं अंदर आई और बच्चों को आवाज दी. ‘‘आज मेरी गलती से बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था,’’ दीपाली बारबार अपनी बात दोहरा कर दुखी हो रही थी. डाकपत्थर और राजाजी नैशनल पार्क घूम कर वापस आते समय चहक रही थी. लेकिन अब कितनी उदास है, पछता रही है. ‘‘अच्छा बताओ, दीपाली, तुम्हें देहरादून कैसा लगा?’’ साहिल ने माहौल बदलने की कोशिश की. ‘‘सौरी फूफाजी, आप ने मुझे इतना घुमाया और मैं ने…’’ ‘‘अब कोई बात नहीं होगी इस बारे में,’’ साहिल ने दीपाली की बात काटते हुए कहा. लेकिन आज से 22 वर्ष पहले दीपाली को गोद में ले कर आयरन का स्विच औन छोड़ कर जो गलती मैं ने की थी, उस के लिए मैं ने अफसोस करना तो दूर, एक बार भी भैयाभाभी से माफी तक नहीं मांगी थी.

आज मेरे घर होने वाले नुकसान की कल्पना मात्र से दीपाली इतनी उद्विग्न हो रही है. तब इतने नुकसान के बाद भी हम लोगों के चेहरों पर कोई शिकन तक नहीं आई थी.सच, कितने नाशुके्र थे हम लोग. सोचसोच कर आज मुझे अपराधबोध हो रहा था. इतने बरस बाद भाभी से माफी मांगने के लिए मैं ने रिसीवर उठा कर फोन नंबर मिलाना शुरू कर दिया.

दूसरा रास्ता: नलिनी ने क्या निर्णय लिया

बेटी को स्कूल भेज कर नलिनी जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. साड़ी को अच्छी तरह से पिनअप कर वह लिपस्टिक लगाने के लिए डै्रसिंग टेबल के करीब आई तो शीशे में अपने पीछे खड़ी मां पर उस की नजर पड़ी. एक बार पलट कर उस ने मां की तरफ देखा, फिर होंठों पर करीने से लिपस्टिक लगाने लगी. उस का संतुलित व्यवहार, आत्मविश्वास से लबरेज उस की भावभंगिमा देख कर सावित्री ठगी सी खड़ी रह गईं.

आज उन की बेटी कोर्ट में तलाक लेने जा रही है. पिछले लगभग डेढ़ साल से तलाक के लिए कोर्ट में केस चल रहा था. आज फैसला होना है. 9 साल पहले उन की बेटी जिस बंधन में अपनी इच्छा से बंधी थी आज उसी बंधन से अपनी इच्छा से हमेशाहमेशा के लिए आजाद हो जाएगी. कितने दुख की बात है. पति से संबंध विच्छेद होना एक पत्नी के लिए पीड़ा की बात है. सावित्री सारी रात सो नहीं पाई थीं और अब बेटी को देख कर उन की अक्ल काम नहीं कर रही थी. कितनी आश्वस्त और संतुलित दिख रही थी नलिनी. इतनी खुश तो वह पति से रिश्ता जोड़ने पर भी नहीं थी, शायद जितना आज रिश्ता टूटने की उम्मीद से दिख रही है. डेढ़ साल पहले जब नलिनी अपनी 7 साल की बेटी का हाथ पकड़ कर उन के घर आई थी तो वे बहुत खुश  थीं. नौकरी और घरपरिवार के चलते महानगरों में रहने वाले उन के तीनों बच्चे जैसे अब सपना हो गए थे उन के लिए. पिछले हफ्ते जब नलिनी ने फोन पर अपने आने की सूचना दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. बहुत दिनों के बाद आ रही बेटी और नातिन के लिए उन्होेंने तरहतरह के पकवान बनाने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब नलिनी ने बताया कि वह हमेशा के लिए पति का घर छोड़ आई है तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘तू ने यह ठीक नहीं किया, बेटा.’’

‘‘नहीं मां, मेरे लिए अब राहुल को बरदाश्त करना इंपौसिबल हो गया है. मुझे पता है कि ये रिश्ते इतनी आसानी से नहीं तोड़े जाते, लेकिन पिछले 3 सालों से मैं ने जो सहा है, उसे शायद ही कोई और सह सकता था.’’

पिछले 3 सालों से राहुल का अपनी किसी कलीग के साथ अफेयर चल रहा था. नलिनी ने पहले उसे बहुत समझाया, अपनी बड़ी होती बेटी का वास्ता दिया. किसी स्त्री के लिए इस से अधिक अपमानजनक और पीड़ादायक क्या हो सकता है कि उसे प्यार करने वाला पति एक दिन उस की अस्मिता को सिरे से नकार दे. उस का अधिकार किसी दूसरी औरत को दे दे. ठीक है, वजह चाहे कोई भी हो, लेकिन पत्नी की गरिमा को तारतार करने के लिए इस तरह के संबंध ही काफी होते हैं. फिर भी नलिनी ने सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपनी बेटी के लिए. लेकिन जब राहुल उस औरत को ले कर घर पर आने लगा तो नलिनी का सब्र जवाब दे गया. क्या असर पड़ेगा उस की बेटी पर? छि: अब वह नहीं सह पाएगी.

सावित्री को तो जैसे काठ मार गया.

7 साल की इतनी प्यारी सी मासूम बेटी पर भी तरस नहीं आया इन लोगों को.

‘‘उस घिनौने माहौल में मैं अपनी बेटी की परवरिश कैसे कर पाऊंगी, मां?’’

‘‘लेकिन बेटी, पति से अलग, अकेली औरत के लिए भी तो अपनी संतान पालना आसान नहीं है. बिना बाप की परवरिश, लोगों के सौ तरह के सवालों का सामना कर पाएगी यह नन्ही सी जान?’’

‘‘वह सब मैं देख लूंगी, मां. नालायक बाप होने से बाप का न होना ही बच्चे के लिए अच्छा है. अभी यह छोटी है. मैं इसे अपनी तरह से संभाल लूंगी. मेरे यहां रहने पर तुम्हें कोई ओब्जेक्शन हो तो बता दो, मैं कहीं और इंतजाम कर लूंगी. वैसे मैं ने यहां की ब्रांच में ट्रांसफर के लिए अपनी कंपनी में एप्लीकेशन दे रखी है. मुझे कंपनी की तरफ से मकान भी मिल जाएगा. तुम चाहोगी तो कुछ दिन बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊंगी.’’

‘‘तू क्या कह रही है, नीलू. इतना बड़ा घर, मैं अकेली जान. तू मेरे पास रहेगी तो इस बुढ़ापे में कितना सहारा रहेगा, बेटी. तेरे पापा के जाने के बाद मैं कितनी अकेली हो गई हूं.’’

‘‘अकेले तो हम सभी हैं, मां. बस, कोई थोड़ा कम अकेला है, कोई ज्यादा अकेला है.’’

बेटी का दर्शन सावित्री के पल्ले नहीं पड़ रहा था. उन्हें तो बस, यही बात खाए जा रही थी कि बेटी तलाक की जिद पर अड़ी थी. अपनी कमाई की गरमी ने आजकल की लड़कियों का दिमाग खराब कर रखा है. माना उस की आमदनी पति से कम नहीं है लेकिन पत्नी का दर्जा तो पति से नीचे ही होता है. फिर ऐसा भी क्या गजब हो गया? मर्दों की तो फितरत ही ऐसी होती है. अभी जवानी का उबाल है, कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ जाएगा तो फिर वही बीवी, वही बच्चे. औरतों को तो बहुत कुछ सहना पड़ता है. अपने आपे से बाहर जाती हुई बेटी को समझाने की हिम्मत जुटाती सावित्री बोलीं, ‘‘फिर भी नीलू, मैं तो यही कहूंगी कि तू ने तलाक की बात सोच कर अच्छा नहीं किया, बेटी. दामादजी को एक और मौका तो देना चाहिए. तुझे भी थोड़ा इंतजार करना चाहिए. कभीकभी समय सब कुछ ठीक कर देता है.’’

‘‘मैं ने पूरे 3 साल तक इंतजार ही तो किया है, मां. तुम लोगों को कभी कुछ नहीं बताया. मेरी अपनी प्रौब्लम थी. इसलिए मैं ने दीदी और भैया से भी कभी प्रौब्लम शेयर नहीं की. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका है. और मां, एक छोटी सी जिंदगी मिली है. उसे सिर्फ उम्मीद और इंतजार के सहारे गुजार देना कम से कम मुझे तो गवारा नहीं.’’

बेटी का तमतमाया चेहरा देख कर सावित्री सहम गईं. आजकल का खून बड़ी जल्दी गरम हो जाता है. पर नीलू से अपने पापा के कारनामे भी तो छिपे नहीं हैं. हालांकि तब वह बहुत छोटी थी. लेकिन दोनों बड़े बच्चों ने तो अपनी मां को तिलतिल कर जलते देखा है. बड़े होने पर नीलू को सब पता चल गया था. लेकिन तब तक वे लकवे से पीडि़त हो कर बिस्तर पकड़ चुके थे. फिर कुछ दिन तक असहनीय यंत्रणा झेलने के बाद उन्हें मुक्ति मिल गई.

सावित्री ने इतने सालों तक जो दंश सहा उस की पीड़ा आज भी कम नहीं है. उस पर अब बेटी के ये तेवर. उसे अपनी जिद छोड़ने के लिए उन्होंने आखिरी पासा फेंका. नजरें चुराती सी बोलीं, ‘‘तुम्हारे पापा 25 सालों तक लाल कोठी की उस विधवा कश्मीरन के इशारों पर नाचते रहे. इतने सालों तक मैं ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपने तीनों बच्चों की खातिर. कितना अपमान, कितना तिरस्कार झेला मैं ने, फिर भी तुम लोगों को सीने से चिपकाए तुम्हारे पापा की चौखट पर पड़ी रही. अगर मैं भी तुम्हारी तरह धीरज खो देती, मानसम्मान के मुद्दे को ले कर घर छोड़ देती तो आज तुम सब बिखर गए होते. मैं ने सहन किया, त्याग किया तो सिर्फ अपने बच्चों की खातिर ही न. औरत को तो…’’

‘‘बस करो, मां, तुम जो अपने त्याग और सहनशीलता की दुहाई दे रही हो न वह सब सिर्फ एक छलावा है, जो तुम आज तक अपनेआप से करती आई हो. तुम ने पापा को इसलिए नहीं बरदाश्त किया कि तुम बहुत सहनशील थीं और तुम्हें अपने बच्चों की बहुत परवाह थी. तुम ने वह सब कुछ इसलिए सहा, क्योंकि तुम्हारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.’’

सावित्री को तो जैसे किसी ने अंगारों पर धकेल दिया. वह कड़वा सच, जिसे झुठला कर वे आज तक अपनेआप को धोखा देती आई थीं, उन की बेटी ने कितनी बेबाकी  से उगल दिया.

सच! अगर वे भी अपने दम पर अपने बच्चों की परवरिश करने के योग्य होतीं तो

क्या अपनी जिंदगी के खूबसूरत 25 साल उस नारकीय यंत्रणा को झेलने में गंवा देतीं. न जाने कितनी सूनी रातों में उन की पारंपरिक सोच विद्रोही बन कर उन्हें बरगलाती. लेकिन अपनी लाचारी उन्हें फिर लौट कर उसी चारदीवारी में कैद कर देती. अपनेआप को टटोलती हैं तो पाती हैं कि आत्मसम्मान और खुद्दारी उन में भी कम नहीं थी. तभी तो आज इस उम्र में भी अपने बच्चों के भरोसे न रह कर खुद अपने दम पर अकेली जिंदगी जी रही हैं. लेकिन तब उन के पास अगर कोई दूसरा विकल्प होता तो क्या वे 25 साल तक यों ही गीली लकड़ी की तरह सुलगतीं?

अचानक बेटी के स्पर्श से वे चौंकी. नीलू उन के पैरों पर झुकती हुई बोली, ‘‘आशीर्वाद दो, मां, तुम्हारी बेटी आज इस कैद से हमेशा के लिए आजाद हो जाए.’’

अपनी स्वाभिमानी बेटी के सिर पर हाथ रख कर सावित्री मन ही मन बोली, ‘जा बेटी, अपनी मां के अभिशापित जीवन की पुनरावृत्ति से भी तुझे मुक्ति मिले.

रंगोली: पति और करियर के बीच फंसी एक महिला

आज रंगोली का बर्थडे है और उसे पूरी उम्मीद थी कि उस के मम्मीपापा उसे अच्छा और महंगा गिफ्ट अवश्य देंगे. केक काटने से पहले रंगोली ने अपना गिफ्ट मांगा तो मोहित और  सुप्रिया ने उसे सुनहरे कागज में लिबटा पैकेट पकड़ा दिया.

पैकेट खोलते ही वीवो का फोन देख कर रंगोली ने नाक सिकोड़ ली. उस का मूड खराब हो गया. पैकेट को फेंकते हुए बोली, ‘‘आप दोनों ने  खुद तो आई फोन ले रखे हैं और मु झे यह दे रहे हैं.’’

इस से पहले मोहित और सुप्रिया कुछ बोलते, रंगोली दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. उस ने इतना भी नहीं सोचा कि मेहमान क्या सोच रहे होंगे. सुप्रिया खिसियाते हुए बोली, ‘‘आजकल के बच्चे भी न बस.’’

मोहित बोला, ‘‘चलो केक बाद में काटेंगे, पहले डिनर कर लेते हैं. तब तक मैं रंगोली को मना भी लूंगा.’’

17 वर्ष की रंगोली तूफान मेल थी. खुलता हुआ रंग जो गोरा कहा जा सकता था, बड़ीबड़ी शरबती आंखें, घने घुंघराले बाल जो रेशम की तरह मुलायम थे, मीडियम कद और भोली सी मुसकान. रंगोली का चेहरा उस के तेवरों से बिलकुल मेल नहीं खाता था और यही बात रंगोली को और अधिक आकर्षक बनाती थी. वह मोहित और सुप्रिया की इकलौती संतान थी.

रंगोली न सुनने की आदी नहीं थी. उसे हर चीज अपने हिसाब से चाहिए होती थी और इस बात के लिए वह किसी हद तक भी जा सकती थी.

बाहर मोहित दरवाजा खटखटा रहा था, ‘‘बेटा सब लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं. अच्छा बाबा तुम्हारी पसंद का मोबाइल दिला देंगे.’’

रंगोली ने  झट दरवाजा खोल दिया. अब उस ने शौर्ट और एक बहुत डीप नैक टौप पहन रखा था.

मोहित बोलतेबोलते रुक गया पर वह अपने से ही नजरें चुरा रहा था. उसे साफ दिख रहा था कि उस के दोस्त कामलोलुप नजरों से रंगोली को देख रहे हैं.

मेहमानों के जाने के बाद मोहित सुप्रिया से बोला, ‘‘तुम उस की मां हो, कम से कम उसे कपड़े पहनने का ढंग तो सिखा दो.’’

सुप्रिया चिढ़ते हुए बोली, ‘‘नजरें लोगों की गंदी हैं, रंगोली की गलती नहीं है.’’

सुप्रिया को खुद टिपटौप रहना पसंद था. वह खुद आधुनिक परिधान पहनना पसंद करती थी, इसलिए रंगोली को कुछ नहीं कहती थी.

आज रंगोली अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी. उस ने आज भी काफी खुले परिधान पहने हुए थे. पार्टी में कुछ नवयुवक रंगोली की तरफ ही देख रहे थे जो उस के बौयफ्रैंड कृष्णम को पसंद नहीं आ रहा था. देखते ही देखते बात बढ़ गई और मारपिटाई की नौबत आ गई. कृष्णम भी 17 वर्ष का ही था तो 22 वर्ष के युवकों का कैसे सामना कर पाता. मुश्किल से उन्हीं में से एक युवक जिस का नाम ईशान था ने कृष्णम को बचाया. रंगोली का मूड औफ हो गया था.

कृष्णम और रंगोली के बाकी दोस्त रंगोली की इस हरकत को देख कर स्तब्ध रह गए थे. रंगोली दनदनाती हुई उस जगह से बाहर निकली तो ईशान बोला, ‘‘क्या मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं?’’

ईशान की स्पोर्ट्स बाइक देख कर रंगोली ने हां कर दी. बाइक हवा से बातें करने लगी. ईशान ने जब बाइक को एक कैफे के सामने रोका तो रंगोली ने कोई आनाकानी नहीं की. दोनों खूब सारी बातें करते रहे. जहां ईशान को रंगोली का बोल्ड ऐंड ब्यूटीफुल अंदाज भाया था वहीं रंगोली को लगा कि ईशान जैसा ही बौयफ्रैंड होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर हैल्प तो कर सके. कृष्णम तो अभी खुद बच्चा है. रंगोली ने वहीं बैठेबैठे ईशान और अपनी सैल्फी सभी सोशल मीडिया साइट्स पर अपडेट कर दी. रंगोली ने आजकल के युवाओं की तरह अपनी जिंदगी में नए बौयफ्रैंड का ऐलान कर दिया था.

ईशान एक अमीर परिवार का युवक था. वह रंगोली पर खूब खर्चा करता था. रंगोली की मम्मी सुप्रिया अपनी सोशल लाइफ में इतनी बिजी थी कि उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि रंगोली ने अपने से बड़ी उम्र के लड़के के साथ दोस्ती कर ली हैं.

आजकल रंगोली के पांव घर पर नहीं टिकते थे. ईशान रंगोली को खूब घुमाताफिराता. उस के साथ रंगोली ने अपनी सारी हदें पार कर ली पर रंगोली को इस बात का कोई मलाल नहीं था.

जब से ईशान रंगोली की जिंदगी में आया था तब से उसे पैसों की कमी नहीं रही थी. अब उस ने अपने मम्मीपापा से पौकेट मनी के लिए भी कहना छोड़ दिया था.

मोहित और सुप्रिया को लग रहा था कि रंगोली सम झदार हो गई हैं परंतु उन्हें नहीं पता था कि अब वह अपनी जरूरतों के लिए उन पर निर्भर नहीं रही है.

मोहित और सुप्रिया की आंखें तब खुलीं जब एक दिन सुप्रिया की बड़ी बहन ने रंगोली को ईशान के साथ होटल से बाहर निकलते देखा. मोहित और सुप्रिया ने जब इस बारे में रंगोली से बात की तो उस ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘अब पहले आप लोगों की यह प्रौब्लम थी कि मैं आप लोगों का खर्चा कराती हूं. अब जब मैं कुछ मांग नहीं रही हूं तो भी प्रौब्लम है.’’

मोहित बोला, ‘‘यह कोई उम्र है कालेज के लड़कों के साथ घूमने की?’’

रंगोली फटाक से बोली, ‘‘जब आप लोगों की अब तक उम्र है इधरउधर घूमने की तो अगर मैं भी घूम रही हूं तो क्या गलत है?’’

मोहित और सुप्रिया आगे कुछ नहीं बोल पाए. दोनों की ही अपनीअपनी मित्रमंडली है. एकदूसरे से ऊब कर दोनों ने अपनी खुशियों के ठिकाने इधरउधर बना रखे हैं और यह बात रंगोली अच्छी तरह जानती थी.

ईशान धीरेधीरे रंगोली को प्यार करने लगा. रंगोली की खुशी के लिए वह उस की गलतियों को भी नजरअंदाज करने लगा था. जब रंगोली

20 वर्ष की हुई तो उस ने ईशान से अपने लिए एक स्पा पार्लर खोलने के लिए कहा.

ईशान बोला, ‘‘इस की क्या जरूरत है रंगोली?’’

रंगोली भोली मुसकान के साथ बोली, ‘‘मैं इंडिपैंडैंट बनना चाहती हूं.’’

ईशान को पता था कि अगर वह क्व25 लाख की रकम अपनी गर्लफ्रैंड के लिए मांगेगा तो उस के मातापिता कभी नही देंगे. इसलिए उस ने अपने मम्मीपापा को यह बोला कि उसे खुद बिजनैस के लिए चाहिए.ईशान प्यार में इतना दीवाना था कि उस ने पार्लर में बस रंगोली का ही नाम डाल दिया. रंगोली को जब ईशान ने स्पा के कागज पकड़ाए तो रंगोली भावुक हो कर ईशान के गले लग गई.

ईशान बोला, ‘‘अरे मैं और तुम अलग थोड़े ही हैं, जो तुम्हारा है वह मेरा भी है.’’

सुप्रिया और मोहित भी रंगोली के स्पा पार्लर के मुहूर्त में आए थे. दोनों ने ही बेटी की तरफ से आंखें मूंद ली थीं यह जानते हुए भी कि सारा पैसा ईशान का है. दोनों अपनी बेटी की काबिलीयत का गुणगान कर रहे थे. रंगोली का स्पा पार्लर धीरेधीरे मशहूर हो रहा था. उसे अपना काम निकलना बखूबी आता था और उस ने शहर के सारे पैसे वाले लोगों को अपना क्लाइंट बना लिया था.

1 साल के भीतर ही रंगोली का स्पा पार्लर नंबर 1 बन गया था. अब उसे पैसों के लिए ईशान की जरूरत नहीं रही थी. वह अब अपने जीवन में एक नया साथी चाहती थी. वह ईशान से बोर हो गई थी.

अब जब भी ईशान आता रंगोली उसे इग्नोर करने लगी थी. शुरूशुरू में तो ईशान को सम झ नहीं आया पर बाद में रंगोली के बदले तेवर देख कर उसे बहुत बुरा लगा. एक दिन उस ने रंगोली से सीधे पूछ लिया तो रंगोली ने भी साफ बोल दिया, ‘‘ईशान मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहती हूं. अब मेरी दिलचस्पी तुम में खत्म हो गई है.’’

ईशान व्यंग्य करते हुए बोला, ‘‘हां तुम्हारी दिलचस्पी मेरे पैसों में ही थी जो अब तुम्हारे पास भी हैं.’’ रंगोली बड़ी अदा से बाल  झटकते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी भी तो मेरी खूबसूरती में दिलचस्पी थी और रही बात तुम्हारे पैसों की तो उन्हें मैं तुम्हें लौटा दूंगी.’’

ईशान थके स्वर में बोला, ‘‘मेरा विश्वास कैसे लौटा पाओगी?’’ रंगोली बिना कुछ बोले अपने काम में लग गई. ईशान के जिंदगी से जाने के बाद रंगोली नित नए लड़कों के साथ समय बिताने लगी थी. वह अब किसी एक साथी के साथ नहीं बंधना चाहती थी. अपने नित नए बने संबंधों के सहारे कामयाबी की सीढि़यां चढ़ती चली गई. पर फिर भी खुश नहीं थी.

एक स्पा पार्लर की मालकिन के पास वह रुतबा नहीं होता है जिस की कभी रंगोली ने कामना करी थी. अपने नित नए बनते रिश्तों के कारण वह पहले ही काफी नाम कमा चुकी थी.

रंगोली के मम्मीपापा ने पहले तो उसे प्यार, फिर गुस्से से सम झाया और बाद में उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. रंगोली की शादी होने की संभावना धूमिल होती जा रही था. वह खुद किसी सामान्य व्यक्ति से शादी करने के लिए तैयार नहीं थी. दिन महीनों में और महीने सालों में परिवर्तित हो रहे थे.

रंगोली अब 27 वर्ष की हो चुकी थी. उस के नएपुराने आशिक विवाह होने के बाद पालतू बन गए थे. जो पहले रंगोली के साथ खुलेआम घूमते थे अब बस रात के अंधेरे में रंगोली का साथ चाहते थे. रंगोली जो भी करती थी खुलेआम करती थी. छिपछिप कर कुछ करना उसे कतई पसंद नहीं था इसलिए फिलहाल जिंदगी के इस मोड़ पर अकेली थी और अपनी जिंदगी से ऊब रही थी.

तभी उस की जिंन्दगी में अनिरुद्ध आया. अनिरुद्ध का स्थानीय राजनीतिक पार्टी में बड़ा दबदबा था. एक दिन भूलेभटके वह रंगोली के स्पा पार्लर में मसाज लेने आया था और न जाने उस मसाज ने क्या जादू किया कि अब अनिरुद्ध रोज आने लगा था.

अनिरुद्ध का रंगोली बहुत ध्यान रखती थी. उसे अनिरुद्ध से राजनीतिक बहस करने में और राजनीतिक गलियारों के बारे मे जानने में बड़ा मजा आता था. अनिरुद्ध शुरू में तो रंगोली को बस एक खूबसूरत महिला ही सम झता था पर बाद में रंगोली की प्रखर बुद्धि से बहुत प्रभावित हो गया.

बहुत सारे मामलों में रंगोली की सलाह अनिरुद्ध के बहुत काम आती थी. वह रंगोली का साथ अपनी जिंदगी में चाहता था परंतु वह 43 वर्ष का तलाकशुदा था. जब अनिरुद्ध ने रंगोली से इस बारे में बात करी तो मानो रंगोली को मन की मुराद मिल गई.

रंगोली के मम्मीपापा ने तो माथा पीट लिया था. रंगोली के पापा मोहित बोले, ‘‘रंगोली अब तक तू ने पूरी उम्र मनमानी करी है पर हम तु झे कुएं में कूदने नहीं देंगे. अनिरुद्ध तु झ से पूरे 16 वर्ष बड़ा है और वह बहुत बदनाम राजनीतिज्ञ है, उस के खिलाफ कितने ही केस चल रहे हैं.’’

रंगोली बोली, ‘‘मैं अपनी मरजी की मालिक और मेरे सपनों की उड़ान एक स्पा पार्लर पर समाप्त नहीं होती है. मैं अपनी उड़ान इस शहर तक नहीं सीमित रखना चाहती हूं. अनिरुद्ध का साथ मेरी उड़ान को नए आयाम देगा, पैसा बहुत कमा लिया है अब थोड़ा सी पावर भी चाहिए.’’

फिर रंगोली और अनिरुद्ध ने कोर्ट में विवाह कर लिया था. अनिरुद्ध से विवाह के पश्चात रंगोली ने राजनीतिक गलियारों में अपना दबदबा बनाना आरंभ कर दिया था. जल्द ही उस के नाम का डंका बजने लगा. रंगोली के मातापिता ने भी अब बेटी से बनाने में ही अपनी भलाई समझी.

रंगोली के वे रिश्तेदार जो उसे चालू और न जाने क्याक्या कहते थे अब वही रिश्तेदार घंटों रंगोली से मिलने के लिए प्रतीक्षा करते रहते थे.

रंगोली के बढ़ते कद से अब अनिरुद्ध को भी परेशानी होने लगी थी. वह अब रंगोली पर मां बनने के लिए दबाव डालने लगा था पर रंगोली आने वाले विधानसभा के चुनाव में लड़ना चाहती थी.

अनिरुद्ध ने रंगोली से कहा, ‘‘रंगोली मु झे अब मेरा वारिस चाहिए.’’

रंगोली ने व्यंग्य से कहा, ‘‘आप ने मु झ से विवाह क्या वारिस पैदा करने के लिए किया था? आप भूल रहे हैं कि आप के पहले विवाह से भी 2 बच्चे हैं जो आप के ही उत्तराधिकारी बनेंगे.’’ अब अनिरुद्ध रंगोली से बेजार सा हो गया था. वो उसे अपनी पत्नी कम प्रतिद्वंद्वी अधिक लगती थी. उसे अच्छे से पता था कि अगर रंगोली को एक बार सत्ता का स्वाद लग गया तो वह उसे भी दूध से मक्खी की तरह निकाल बाहर कर देगी. जब रंगोली को अनिरुद्ध की पार्टी से टिकट नहीं मिला तो वह विरोधी दल में जा कर मिल गई. वहां से उसे टिकट भी मिल गया और मजे की बात वह अपने पति अनिरुद्ध के खिलाफ ही खड़ी हो गई.

अनिरुद्ध विधानसभा के चुनाव के साथ अपनी पार्टी में अपनी साख भी हार चुका था. अब रंगोली और अनिरुद्ध पतिपत्नी थे मगर बस कागजों में रंगोली में जैसेजैसे नए रंग जुड़ रहे थे उस का समीकरण बदलता जा रहा था.

अब रंगोली प्रदेश की युवा नेत्री थी और मुख्यमंत्री की करीबी मानी जाती थी. रंगोली की नजर अब मंत्री के पद पर थी. रंगोली के रातबेरात घर से बाहर रहने के कारण अनिरुद्ध ने उसे अल्टीमेटम दे दिया था, ‘‘मु झ और सत्ता में से एक को चुन लो.’’

रंगोली ने मुसकराते हुए तलाक के कागज अनिरुद्ध को पकड़ा दिए और कहा, ‘‘नेताजी बिना किसी ऐलिमनी के डाइवोर्स दे रही हूं. अब सत्ता ही मेरा प्यार है क्योंकि यह मर्दों की तरह मु झे अपनी जागीर नहीं सम झती है बल्कि वह मु झे मानसम्मान दिलाती है जो कभी कोई भी साथी नहीं दिला पाया था.’’ रंगोली जिंदगी के सभी रंगों से गुजरती हुई अब पूरी होने की ओर अग्रसर थी

एहसास: शिखा की जिंदगी क्यों दांव पर लग चुकी थी

करीब 50 से ज्यादा मेहमान मेरी सहेली सीमा की शादी की दूसरी सालगिरह की पार्टी का पूरा आनंद उठा रहे थे. मैं ने फ्रैश होने की जरूरत महसूस करी तो हौल में बनी सीढि़यां चढ़ कर पहली मंजिल पर बने गैस्टरूम में आ गई.

मैं बाथरूम में घुस पाती उस से पहले ही रवि ने तेजी से कमरे में प्रवेश कर के मु झे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. मैं बड़ी कठिनाई से अपनी चीख दबा पाई.

‘‘बड़ी देर से इंतजार कर रहा था मैं इस मौके का स्वीटहार्ट. कितनी सुंदर हो तुम शिखा,’’ बड़ी गरमगरम सांसे छोड़ते हुए उस ने मेरी गरदन पर छोटेछोटे चुंबन अंकित करने शुरू कर दिए.

उस का स्पर्श बड़ा उत्तेजक था, पर अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखते हुए मैं ने उसे डपट दिया, ‘‘पागल हो गए हो क्या. कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा. छोड़ो मु झे.’’

‘‘वहां कब मिलोगी जहां कोई देखने वाला नहीं होगा, मेरी जान,’’ मेरे गाल का चुंबन लेने के बाद उस ने मु झे अपनी बांहों को कैद से तो आजाद कर दिया, पर मेरा हाथ पकड़े रखा.

‘‘तुम जाओ यहां से,’’ कुछ सहज हो कर मैं मुसकरा उठी.

‘‘पहले अकेले में मिलने का पक्का वादा करो.’’

‘‘ऐसी कोई जगह नहीं है जहां हम अकेले मिल सकें.’’

‘‘है, बिलकुल है.’’

‘‘कहां?’’ मेरे मुंह से अपनेआप निकल गया.

‘‘मेरे घर वाले परसों शहर से बाहर जा रहे हैं. पूरा दिन घर खाली रहेगा. तुम्हें किसी भी तरह मु झ से मिलने आना ही पड़ेगा, शिखा.’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी. अब तुम…’’

‘‘प्लीज, पक्का वादा करो.’’

‘‘ओके, बाबा. अब भागो यहां से.’’

कमरे से बाहर जाने से पहले रवि ने खींच कर मु झे एक बार फिर अपनी चौड़ी

छाती से चिपका लिया. मेरी आंखों और गालों को कई बार जल्दीजल्दी चूमने के बाद ही वह वहां से गया.

बाथरूम के अंदर अपनी उखड़ी गरम सांसों और दिल की बढ़ी धड़कनों को संतुलित करने में मु झे कुछ वक्त लगा. अगर मैं अपनी घर में होती तो रवि के स्पर्श सुख की कल्पना करते हुए जरूर ही फव्वारे के नीचे नहा लेती. इस वक्त वही मेरे दिलोदिमाग पर पूरी तरह से छाया हुआ था.

रवि सीमा का देवर है. उस से मेरी अकसर मुलाकात हो जाती है क्योंकि सीमा के यहां हमारा आनाजाना बहुत है. मेरे पति अजय भी सीमा के पति नीरज के अच्छे दोस्त बन गए हैं.

रवि के पास मनमोहक बातें करने की कला है. मैं बहुत सुंदर हूं. अकसर लोगों के मुंह से मैं अपनी प्रशंसा सुनती रहती हूं, लेकिन जिस खूबसूरत अंदाज में रवि मेरे रंगरूम की तारीफ करता है, वह मेरे मन को गुदगुदा जाता है.

करीब 3 महीने पहले सीमा के प्रकाश नर्सिंगहोम में बेटा हुआ था. वहां मैं रोज ही उस से मिलने जाती थी. एक  शाम को मैं रवि की किसी बात पर खुल कर हंस रही थी जब उस ने अचानक मेरा हाथ पकड़ कर चूमा और बड़े भावुक लहजे में बोला था, ‘‘शिखा, मैं ने हमेशा तुम जैसी सुंदर, हंसमुख लड़की की हमसफर के रूप में कल्पना करी है. तुम्हारी जोड़ी अजय भैया के नहीं, बल्कि मेरे साथ जमती है.

उस वक्त सीमा बाथरूम में थी. कमरे में हम दोनों के अलावा बस नन्हा शिशु ही था. रवि ने अजय का जिक्र कर के मु झे अंदर तक बेचैन कर दिया था. अजीब सी उल झन व घबराहट का शिकार बन कर मैं कुछ भी बोल नहीं पाई थी.

तब उस ने मौके का फायदा उठा कर मु झे जल्दी से अपनी बांहों में भरा और मेरे गाल का चुम्मा ले कर शरारती अंदाज में मुसकराता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

उस रात मैं बहुत बेचैन रही. अजय ने मु झे प्यार करना चाहा तो मैं ने तेज सिरदर्द का  झूठा बहाना बना कर उन्हें अपने से पहली बार दूर रखा. मु झे उस रात अजय का स्पर्श सुहा ही नहीं रहा था.

‘‘तुम्हारी जोड़ी अजय भैया के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ जमती है,’’ रवि के मुंह से निकला यह वाक्य बारबार मेरे मन में गूंज कर मेरे अंदर तनाव, बेचैनी और असंतोष के भाव गहराता जा रहा था.

यह सचाई ही है कि अजय शक्लसूरत और कदकाठी के हिसाब से मेरे लिए उपयुक्त जीवनसाथी नहीं है.

‘‘हूर की बगल में लंगूर. कौए की चोंच में अनार की कली जैसे वाक्य कई बार बाहर घूमते हुए हमारे कानों में पड़ते रहे हैं.

वरमाला के समय मैं ने अपनी सहेलियों की आंखों में जबरदस्त हैरानी व सहानुभूति के मिलेजुले भाव देखे थे. मेरी सब से अच्छी सहेली निशा ने तो अफसोस भरे लहजे में विदा होने से पहले कह भी दिया था, ‘‘शिखा, तु झे यहां शादी करने से इनकार कर देना चाहिए था.’’

वैसे उसे पता था कि मैं चाह कर भी शादी करने से इनकार नहीं कर सकती थी. अपने तानाशाह पिताजी की इच्छा और आदेश के खिलाफ चूं तक की आवाज निकालने की हिम्मत भी नहीं बल्कि घर में किसी की भी नहीं थी.

उन्हीं के डर के कारण मैं ने कभी किसी लड़के को अपने करीब नहीं आने दिया था. अनगिनत आकर्षक युवकों ने मेरा दिल जीतने की पहल करी थी, पर पापा के भय के चलते मैं ने किसी से भी निकटता बढ़ने नहीं दी थी.

कालेज की सब से खूबसूरत लड़की को वे सब हताश युवक लैस्बियन मानने लगे थे. मेरे सपने बड़े रोमांटिक होते, पर असलियत में किसी युवक के साथ अकेले में बात करते हुए मेरे हाथपैर पापा के गुस्से की कल्पना कर फूलने लगते थे.

अजय की नौकरी बहुत अच्छी थी. अपनी बेटी को इज्जतदार घर की बहू बनाने का फैसला पापा ने अकेले ही लिया था. अजय की शक्लसूरत को छोड़ कर सबकुछ बहुत अच्छा था. पापा के फैसले का विरोध कोई कर ही नहीं सकता था, सो 10 महीने पहले मैं अजय की दुलहन बन कर ससुराल आई थी.

अजय की आंखों में मैं ने सुहागरात के दिन अपने लिए गहरे प्यार के भाव देखे थे, ‘‘शिखा, तुम जैसी सुंदर लड़की का पति बनने की तो मैं ने सपने में भी कभी उम्मीद नहीं की थी. तुम्हें पा कर मैं संसार का सब से खुशहाल इंसान बन गया हूं.’’

अजय के प्यार ने उसी पल से मेरा दिल जीत लिया था. वे दिल के बड़े अच्छे इंसान निकले. मेरी इच्छाओं व खुशियों का हमेशा ध्यान रखते.

बस कभीकभी लोगों की बातें मन को दुखी व परेशान कर जातीं. जिस भी परिचित या रिश्तेदार को मौका मिलता, वह हंसीमजाक करने के बहाने हम दोनों के रंगरूम की तुलना करने से चूकता नहीं था.

इस का नतीजा यह रहा कि अजय का रंगरूम से आकर्षक न होने का सत्य मेरा मन भूल नहीं पाता था. यह बात फांस सी बन कर मेरे मन में चुभती ही रहती थी. उन के बाकी सब गुणों पर यही एक कमी कभीकभी भारी पड़ कर मु झे बहुत परेशान कर जाती थी.

दूसरी तरफ रवि किसी फिल्म स्टार सा सुंदर और आकर्षक था. उस की आंखों में अपने लिए मैं ने चाहत के भाव पढ़े, तो यह मेरे दिल को बहुत अच्छा लगा था.

न जाने कब मैं रवि के सपने देखने लगी थी. हमारे मिलनेजुलने पर कोई रोकटोक नहीं थी. मैं जब चाहे सीमा से मिलने के बहाने उस के घर जा सकती थी. उस के सासससुर व पति को कभी रत्तीभर शक हम दोनों पर नहीं हुआ था.

परसों वे सब नीरज की मौसी के घर मेरठ जा रहे थे. उन के पोते की पहली

सालगिरह का समारोह था. यह बात मु झे सीमा से पहले ही मालूम पड़ गई थी.

‘क्या मैं अकेले घर में परसों रवि से मिलने आऊंगी.’ अपने मन से मैं ने यह सवाल गुसलखाने में कई बार पूछा और मेरे मन की गुदगुदी व उत्तेजना से बढ़ी धड़कनों ने हर बार जवाब ‘हां’ में दिया.

हाथमुंह धोने के बाद मैं ने अपने बाल व लिपस्टिक ठीक की और रवि के स्पर्श को अब भी अपने बदन पर महसूस करती सीमा के गैस्टरूम के गुसलखाने से बाहर आ गई.

गुसलखाने का दरवाजा खोल कर मैं कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो अचानक मेरा ध्यान कमरे से जुड़ी बालकनी की तरफ गया.

जब मैं अंदर आई थी, तब भी बालकनी में खुलने वाला दरवाजा खुला था, यह मु झे याद आ गया, लेकिन इस बार मैं ने जब उस तरफ देखा, तो वहां बालकनी में अपने पति को खड़ा पाया.

अजय की पीठ मेरी तरफ थी. मु झे पता नहीं था कि वे कब से वहां मौजूद हैं. वैसे जब मैं हौल से यहां गैस्टरूम में करीब 10 मिनट पहले आई थी, तब मैं ने उन्हें हौल में नहीं देखा था.

‘क्या रवि और मु झे उन्होंने कमरे में साथसाथ देखा है?’ इस सवाल ने हथौड़े की

तरह से मेरे मन पर चोट करी और मैं बेहद डरीघबराई सी हौल की तरफ चलती चली गई. अपने पति का सामना करने की मेरी बिलकुल हिम्मत नहीं हुई.

पार्टी की सारी रौनक और मौजमस्ती इस पल के बाद मेरे लिए बिलकुल खत्म हो गई. रवि ने मेरी आंखों से आंखें मिलाने की कोशिश कई बार करी, पर इस वक्त तो वे मु झे जहर नजर आ रहा था.

‘अजय ने हमें साथसाथ देखा है या नहीं’ मेरे मन में तो बस यही एक सवाल हड़कंप सा मचाए जा रहा था.मेरी नजरें सीढि़यों की तरफ बारबार उठ जातीं. अजय के हावभाव देखने को मेरा मन बेचैन होने के साथसाथ अजीब सा डर भी महसूस कर रहा था. तभी रवि को अपनी तरफ बढ़ते देख कर मैं ने अपना मुंह फेर लिया.

उस ने पास आ कर मु झ से कुछ कहने को मुंह खोला ही था कि मैं ने दबे पर गुस्से से कांपते स्वर में कहा, ‘‘मु झ से दूर रहो तुम.’’

‘‘क्या हुआ है शिखा?’’ मेरी ऐसी प्रतिक्रिया देख वह जोर से चौंक पड़ा.

‘‘मर गई शिखा. बात मत करना तुम कभी मु झ से,’’ उसे यों चेतावनी दे कर मैं अपनी कुछ परिचित महिलाओं की तरफ  झटके से चल पड़ी.

‘अजय ने अगर मु झे रवि की बांहों में बंधे देख लिया होगा और हमारी बातें सुन ली होंगी, तो क्या होगा’ इस सवाल के मन में उठते ही मेरे ठंडे पसीने छूट जाते.

अजय को करीब 15 मिनट बाद मैं ने सीढि़यों से नीचे आते देखा. उन्होंने गरदन घुमा कर मु झे ढूंढ़ा और मेरी तरफ बढ़ चले.

वे मु झे देख कर मुसकराए नहीं, तो मेरा मन बैठ सा गया. अपराधबोध की एक तेज लहर मेरे अंदर उठ कर मु झे जबरदस्त डर और तनाव का शिकार बना गई.

‘‘तुम ने खाना खा लिया है?’’ अजय ने पास आ कर सुस्त से स्वर में पूछा.

‘‘नहीं,’’ मैं उन के मुर झाए चेहरे की तरफ बड़ी कठिनाई से ही देख पा रही थी.

‘‘तुम जल्दी से खाना खा लो. फिर घर चलेंगे.’’

‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ इस सवाल को पूछते हुए मेरी जान खूख हो रही थी.

‘‘सिर में तेज दर्द है. मैं कुछ नहीं खाऊंगा,’’ कह कर वे थके से मेरे पास से हटे और कोने में पड़ी एक कुरसी पर आंखें मूंद कर बैठ गए. मैं ने नाम के लिए अपनी प्लेट में थोड़ा सा खाना परोसा पर वह भी मेरे गले से नीचे नहीं उतरा. बारबार मेरी नजर अजय की तरफ उठ जाती. वे आंखें मूंदे ही बैठे रहे. उन के मन में क्या चल रहा है, यह जानने को मैं मरी जा रही थी, पर सवाल पूछ कर उन के मनोभावों को जानने की हिम्मत मुझ में बिलकुल नहीं थी.

हम दोनों करीब पौने घंटे बाद सीमा और नीरज से विदा ले कर घर लौट आए. मेरे खराब मूड को पहचान कर रवि मेरे निकट नहीं आया, तो मैं ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस करी. अजय कपड़े बदल कर पलंग पर लेट गए थे. कमरे की रोशनी भी उन्होंने बु झा रखी थी. उन के चेहरे के भावों को न देख पाने के कारण मेरे मन की उल झन, परेशानी और तनाव बढ़ता जा रहा था.

‘‘मैं सिर दबा दूं? बाम लगा दूं?’’ इन सवालों को अजय से पूछते हुए मु झे अपनी आवाज असहज और बनावटी सी लगी.

‘‘नहीं, मैं ने दर्द के लिए गोली खा ली है,’’ उन्होंने थके से स्वर में जवाब दिया और फिर तकिया मुंह पर रख आगे न बोलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी.

अजय ने रवि और मु झे साथसाथ गैस्टरूम में देखा था या नहीं यह सस्पैंस मु झे मारे जा रहा था. जब मन सोचता कि उन्होंने मु झे रवि के साथ देखा है, तो मैं अपराधबोध, आत्मग्लानि और शर्मिंदगी के भावों से खुद को जमीन में गड़ता सा महसूस करती.

उन्होंने कुछ नहीं देखा है, मन ऐेसे भी सोचता, लेकिन यह विचार ज्यादा देर रुकता नहीं था. अजय की खामोशी मेरे मन को सब बुराबुरा ही सोचने में सहायक हो रही थी. अजय को यों तेज सिरदर्द पहले भी हो जाता था. तब मैं बड़े अधिकार से उन का सिर दबा देती थी. उन से लिपट कर सोने की भी मु झे आदत है, लेकिन उस रात ऐसा कुछ भी करने की हिम्मत मु झ में पैदा नहीं हो सकी.

‘‘तुम धोखेबाज और चरित्रहीन स्त्री हो,’’ अजय के मुंह से ऐसे शब्दों को सुनने का भय मु झे उन के नजदीक आने से रोक रहा था.

वे तो कुछ देर बाद सो गए, पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी. मैं अपने को खूब कोस रही थी. बारबार रो पड़ने का दिल करता.

कभी अजय से माफी मांगने का दिल करता, पर फिर मैं खुद को रोक लेती. अगर उन्होंने कुछ देखा नहीं, तो बेकार रवि से अपने संबंध की जानकारी उन्हें देना मूर्खतापूर्ण होता.

वह सारी रात मैं ने करवटें बदलते हुए गुजारी. सुबह मेरे सिर में तेज दर्द हो रहा था. अजय मु झ से सहज हो कर वार्त्तालाप नहीं कर रहे थे. मैं अपने अंदर उन से आंखें मिला कर कुछ भी कहनेसुनने का साहस नहीं पैदा कर पा रही थी. औफिस जाते हुए उन्होंने हमेशा की तरह मु झे गले से नहीं लगाया, तो मेरा यह शक बड़ी हद तक विश्वास में बदल गया कि पिछली रात उन्होंने रवि और मु झे कमरे में बालकनी से जरूर देख लिया था.

उन्हें विदा कर मैं शयनकक्ष में आ कर पलंग पर गिर पड़ी. रातभर मेरे अंदर पैदा हुए अपराधबोध, तनाव, डर, अनिश्चितता जैसे भावों ने अचानक मु झ पर हावी हो मु झे रुला डाला.

मैं खुद से बेहद खफा थी. रवि की बातों के जाल में फंस कर मैं ने अपने अच्छेखासे विवाहित जीवन की खुशियां और सुखशांति नष्ट कर ली थी. अजय की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाने का एहसास मेरे मन को बुरी तरह कचोट रहा था.

शाम को अजय औफिस से लौटे, तो भी सुस्त और मुर झाए से दिख रहे थे. कुछ वार्त्तालाप हमारे बीच हुआ, पर उस में सहज आत्मीयता का अभाव मु झे साफ खल रहा था.

मैं चाहती हूं कि अब एक बार सारा मामला साफ हो जाए. उन्होंने रवि और मु झे साथसाथ देखा है, तो वे मु झे खूब डांटें, मारें और शर्मिंदा करें. दूसरी तरफ वे अगर बालकनी में बाद में आए थे, तो किसी तरह से यह बात मु झे मालूम पड़नी ही चाहिए. तब मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ उन के संग अपने संबंध सहज व प्रेमपूर्ण बना लूंगी.

इस मामले को ले कर बना सस्पैंस मु झे मारे जा रहा है. अजय की नजरों में मैं चरित्रहीन साबित हो चुकी हूं, इस बात का अंदेशा भी मु झे मारे शर्म के जमीन में गाड़े दे रहा था.

रवि जैसा प्रेमी मेरे जीवन में कभी नहीं आएगा, यह सबक मैं ने हमेशा के लिए सीख लिया है. ऐसा गलत कदम उठाना मेरे बस की बात नहीं है. मुझे एहसास हो चुका है कि अपने पति की नजरों में गिर कर जीना जीते जी नर्क भोगने जैसा है. खेलखेल में आपसी प्रेम व विश्वास को खो देने की नौबत मेरे जीवन में फिर कभी नहीं आएगी.

छंट गया कुहरा: विक्रांत के मोहपाश में बंधी जा रही थी माधुरी

विक्रांत को स्कूटर से अंतिम बार जाते हुए देखने के लिए माधुरी बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. विक्रांत के आंखों से ओझल होते ही उसे लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो. अब न किसी के आने का इंतजार रहेगा, न दिल की धड़कनें बढ़ेंगी और न ही उस के न आने से बेचैनी और मायूसी उस के मन को घरेगी. यह सोच कर वह बहुत ही सुकून महसूस कर रही थी.

जब किसी के चेहरे से मुखौटा उतर कर वास्तविक चेहरे से सामना होता है तो जितनी शिद्दत से हम उसे चाहते हैं उसी अनुपात में उस से नफरत भी हो जाती है, एक ही क्षण में दिल की भावनाएं उस के लिए बदल जाती हैं. ऐसा ही माधुरी के साथ हुआ था.

माधुरी के विवाह को 5 साल हो गए थे. विवाह के बाद दिल्ली की पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी माधुरी को उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर में रहने से और अपने पति मनोहर के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बहुत ऊब और अकेलापन लगने लगा था.

विक्रांत मनोहर के औफिस में ही काम करना था. अविवाहित होने के कारण अकसर वह मनोहर के साथ औफिस से उस के घर आ जाता था. माधुरी को भी उस का आना अच्छा लगता था. फिर वह अकसर खाना खा कर ही जाता था. खातेखाते वह खाने की बहुत तारीफ करता, जबकि अपने पति के मुंह से ऐसे बोल सुनने को माधुरी तरस जाती थी.

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उस के आते ही घर में रौनक सी हो जाती थी. माधुरी उस से किताबों, कहानियों, फिल्मों, सामाजिक गतिविधियों पर बात कर के बहुत संतुष्टि अनुभव करती थी. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंचती चली गई. जिस दिन वह नहीं आता तो उसे कुछ कमी सी लगती, मन उदास हो जाता. धीरेधीरे माधुरी को एहसास होने लगा कि इस तरह उस का विक्रांत की ओर आकर्षित होना मनोहर के प्रति अन्याय होगा, यह सोच कर वह मन से बेचैन रहने लगी. उसे लगने लगा कि जैसे वह कोई अपराध कर रही है, विवाहोपरांत किसी भी परपुरुष से एक सीमा तक ही अपनी चाहत रखना उचित है, उस के बाद तो वह शादीशुदा जिंदगी के लिए बरबादी का द्वार खोल देती है.

सबकुछ समझते हुए भी पता नहीं क्यों वह अपनेआप को उस से मिले बिना रोक नहीं पाती थी. जादू सा कर दिया था जैसे उस ने उस पर. अब तो यह हालत थी कि जिस दिन वह नहीं आता था तो वह अपने पति से उस के न आने का कारण पूछने लगी थी.

एक साथ काम करते हुए मनोहर को आभास होने लगा था कि विक्रांत कुछ रहस्यमय है. औफिस में 1-2 और लोगों से भी उस ने पारिवारिक संबंध बना रखे थे, जिन के घर भी अकसर वह जाया करता था.

धीरेधीरे मनोहर को भी माधुरी का विक्रांत के प्रति पागलपन अखरने लगा था. उस ने माधुरी को कई बार समझाया कि उस का विक्रांत के प्रति इतना आकर्षण ठीक नहीं है. वह अकेला है, पता नहीं क्यों विवाह नहीं करता. उसे तो अपना समय काटना है. लेकिन उस की समझ में नहीं आया और दिनप्रतिदिन उस का आकर्षण बढ़ता ही गया. उस की प्रशंसा भरी बातों में वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ अपराधभावना तो दूसरी ओर उसे न छोड़ने की विवशता. दोनों ने उसे मानसिक रोगी बना दिया था.

मनोहर जानता था कि माधुरी उस के लिए समर्पित है. विक्रांत ने ही अपनी बातों के जाल से उसे सम्मोहित कर रखा है और उस दिन को कोसता रहता था जब वह पहली बार उसे अपने घर लाया था. हर तरह से समझा कर वह थक गया.

धीरेधीरे माधुरी को विक्रांत से रिश्ता रखना तनाव अधिक खुशी कम देने लगा था. जिस रिश्ते का भविष्य सुरक्षित न हो, उस का यह परिणाम होना स्वाभाविक है, लेकिन वह उस से रिश्ता तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती थी. ऊहापोह में 3 साल बीत गए. इस बीच वह एक चांद सी बेटी की मां भी बन गई थी.

अचानक एक दिन माधुरी के साथ ऐसी घटना घटी जिस ने उस के पूरे वजूद को ही हिला कर रख दिया. मनोहर के औफिस जाते ही विक्रांत औफिस में ही काम करने वाले रमनजी की बेटी नेहा, उम्र यही कोई 20 वर्ष होगी को उस के घर ले कर आया. पूर्व परिचित थी और अकसर वह माधुरी के घर आती रहती थी.

विक्रांत का भी उस परिवार से घनिष्ठ संबंध था. विक्रांत आते ही बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘इस का गर्भपात करवाना है. इस के साथ बलात्कार हुआ है…’’

1 मिनट को माधुरी को लगा जैसे कमरे की दीवारें उस की आंखों के सामने घूम रही हैं. जब उस ने इस बात की पुष्टि की तब जा कर माधुरी को विश्वास हुआ. इस से पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विक्रांत जो कह रहा है वह सच है.

डाक्टर मित्र ने कहा, ‘‘10 दिन भी देर हो जाती तो गर्भपात नहीं हो सकता था… पर एक बार के बलात्कार से कोई लड़की गर्भवती नहीं होती, ये सब फिल्मों में ही होता है… इस के जरूर किसी से शारीरिक संबंध हैं.’’

यह सुन माधुरी का माथा ठनका कि अरे, जिस तरह विक्रांत को उस के चेहरे के हावभाव से नेहा के लिए परेशान देख रही हूं. वह सामान्य नहीं है. मैं तो सोच रही थी कि कितना भला है जो एक लड़की की मदद कर रहा है, पर अब डाक्टर के कहने पर मुझे कुछ शक हो रहा है कि यह क्यों नेहा को ले कर इतना परेशान है… तो क्या… उस ने मुझे अपनी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए मुहरा बनाया है… उसे पता है कि मेरी एक डाक्टर फ्रैंड भी है… और यह भी जानता है कि मैं उस की मदद के लिए हमेशा तत्पर हूं. वह मन ही मन बुदबुदाई और फिर गौर से नेहा और विक्रांत का चेहरा पढ़ने लगी.

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गर्भपात होते ही विक्रांत का तना चेहरा कितना रिलैक्स लग रहा था. उस के बाद वह माधुरी को साधिकार यह कह कर गायब हो गया था कि वह उसे उस के घर पहुंचा दे और किसी को कुछ न बताए. माधुरी का शक यकीन में बदल गया था.

माधुरी ने अपनी डाक्टर फ्रैंड की मदद से नेहा से हकीकत उगलवाने की ठान ली.

डाक्टर ने कड़े शब्दों में पूछा, ‘‘सच बता कि यह किस का बच्चा था?’’

उस ने पहले तो कुछ नहीं बताया. बस यह कहती रही कि कालेज के रास्ते में किसी ने उस के साथ बलात्कार किया था. लेकिन जब माधुरी ने उस से कहा कि सच बोलेगी तो वह उस की मदद करेगी नहीं तो उस की मां को सब बता देगी, तब वह धीरेधीरे कुछ रुकरुक कर बोली, ‘‘यह बच्चा विक्रांत अंकल का था. मैं उन की बातों से प्रभावित हो कर उन्हें चाहने लगी थी. उन्होंने मुझ से विवाह का वादा कर के मुझे समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया,’’ और वह रोने लगी.

‘‘उफ, अंकल के रिश्ते को ही विक्रांत ने दागदार कर दिया. कितना विश्वासघात किया उस ने उस परिवार के साथ, जिस ने उस पर विश्वास कर के अपने घर में प्रवेश करने की अनुमति दी. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ माधुरी यह अप्रत्याशित बात सुन कर बिलकुल सकते की हालत में थी. उस के दिमाग में विचारों का तूफान उठ रहा था. उस का मन विक्रांत के प्रति घृणा से भर उठा.

माधुरी का उतरा चेहरा देख कर उस की डाक्टर फ्रैंड थोड़ा मुसकराई और फिर बोली, ‘‘तू तो ऐसे परेशान है जैसे तेरे साथ ही कुछ गलत हुआ है?’’

‘‘तू सही सोच रही है…मेरा भी मानसिक बलात्कार उस ने किया है. अब मेरी आंखें खुल चुकी हैं. इतना गिरा हुआ इंसान कोई हो सकता है, मैं सोच भी नहीं सकती. मैं ने अपने जीवन के 3 साल उस के जाल में फंस कर बरबाद कर दिए.’’ माधुरी ने उसे भारी मन से बताया.

प्रतिक्रियास्वरूप उसे मुसकराते देख कर उसे अचंभा हुआ और फिर प्रश्नवाचक नजरों से उस की ओर देखने लगी तो वह बोली, ‘‘मैं सारी कहानी कल ही तुम तीनों के हावभाव देख कर समझ गई थी. आखिर इस लाइन में अनुभव भी कोई चीज है. तुझे पता है मेरे पति नील मनोवैज्ञानिक हैं. उन से मुझे बहुत जानकारी मिली है. ऐसे लोग बिल्ली की तरह रास्ता देख लेते हैं और वहीं शिकार के लिए मंडराते रहते हैं, शारीरिक शोषण के लिए कुंआरी लड़कियों को विवाह का झांसा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं…विवाहित से ऐसी आशा करना खतरनाक होता है, इसलिए उन्हें मानसिक रूप से सम्मोहित कर के अपने टाइम पास का अड्डा बना लेते हैं…

‘‘उन्हें पता होता है कि स्त्रियां अपनी प्रशंसा की भूखी होती हैं, इसलिए इस अस्त्र का सहारा लेते हैं. ऐसे रिश्ते दलदल के समान होते हैं. जिस से अगर कोई समय रहते नहीं ऊबरे तो धंसता ही चला जाता है. शुक्र है जल्दी सचाई सामने आ गई, वरना….’’ माधुरी अवाक उस की बातें सुनती रही और उस की बात पूरी होने से पहले ही उस के गले से लिपट कर रोने लगी.

माधुरी ने थोड़ा संयत हो कर अपनी आवाज को नम्र कर के नेहा से पूछा, ‘‘जब इतना कुछ हो गया है तो तुम्हारा विवाह उस से करवा देते हैं. तुम्हारी मां से बात करती हूं.’’

‘‘नहीं…मैं उन से नफरत करती हूं, उन्होंने नाटक कर के मुझे फंसाया है. उन के और लड़कियों से भी संबंध हैं…उन्होंने मुझे खुद बताया है, प्लीज आप किसी को मत बताइएगा. उन्होंने कहा है कि यदि मैं किसी को बताऊंगी तो वे मेरे फोटो दिखा कर मुझे बदनाम कर देंगे,’’ और उस ने रोते हुए हाथ जोड़ दिए.

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा,’’ माधुरी ने उसे सांत्वना दी.

अस्पताल से माधुरी नेहा को अपने घर ले आई, उस के आराम का पूरा ध्यान रखा. फिर उसे समझाते हुए बोली, ‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, मैं हूं न. तुम्हें अपनी मां को सबकुछ बता देना चाहिए ताकि उस का तुम्हारे घर आना बंद हो जाए. नहीं तो वह हमेशा तुम्हें ब्लैममेल करता रहेगा. वह तुम्हारे फोटो दिखाएगा तो उस का भी तो नाम आएगा. फिर उस की नौकरी चली जाएगी, इसलिए वह कदापि ऐसा कदम नहीं उठा सकता. सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हें धमका रहा है. तुम अपनी मां से बात नहीं कर सकती तो मैं करती हूं.’’ माधुरी से अधिक उस की पीड़ा को और कौन समझ सकता था.

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माधुरी की बात सुन कर नेहा को बहुत हिम्मत मिली. वह उस से लिपट कर देर तक रोती रही.

माधुरी ने नेहा की मां को फोन कर के अपने घर बुलाया और फिर सारी बात बता दी. पूरी बात सुन कर उस की मां की क्या हालत हुई यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है. माधुरी के समझाने पर उन्होंने नेहा को कुछ नहीं कहा पर उन को क्या पता कि जब वह खुद ही उस की बातों के जाल में फंस गई तो नेहा की क्या बात…

वे रोते हुए बोलीं, ‘‘आप प्लीज किसी को मत बताइएगा, नहीं तो इस से शादी कौन करेगा? आप का एहसान मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगी.

अब मेरे घर के दरवाजे उस के लिए हमेशा के लिए बंद.’’

माधुरी ने उन्हें आश्वस्त कर के बिदा किया. उन के जाने के बाद वह पलंग पर लेट कर फूटफूट कर बच्चों की तरह रोने लगी. पूरे दिन का गुबार आंसुओं में बह गया. अब वह बहुत हलका महसूस करने लगी. उसे लगा कि उस के जीवन पर छाया कुहरा छंट गया है, सूर्य की किरणें उस के लिए नया सबेरा ले कर आई हैं.

अब माधुरी शाम को अपने पति मनोहर के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. पति के आते ही उस ने सारी बात बताते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, मैं भटक गई थी.’’

‘‘तुम्हारी इस में कोई गलती नहीं. मैं जानता था देरसबेर तुम्हारी आंखें जरूर खुलेंगी. देखो विवाह को एक समझौता समझ कर चलने में ही भलाई है. हर चीज चाही हुई किसी को नहीं मिलती. मुझे भी तो तुम्हारी यह मोटी नाक नहीं अच्छी लगती तो क्या मैं सुंदर नाक वाली ढूंढ़ूं…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर पति के गले से लिपट कर खुद को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी. अगले दिन विक्रांत मनोहर के साथ आया. माधुरी उस के सामने नहीं आई तो वह सारी स्थिति समझ थोड़ी देर बाद लौट गया.

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सुबह 10 बजे- मेघा की मां क्यों थी शादी के खिलाफ

मेघा आज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’ पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी. मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

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उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’ मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

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तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’ मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी. करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां,

1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’ सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

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दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर

दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

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