Best Hindi Stories : माही ने अपने दोस्त पीयूष के गले में हाथ डाल लिया था और पीयूस ने भी उस के गले में हाथ डाल लिया था. दोनों के गाल एकदूसरे के गाल से स्पर्श करने लगे थे. अब माही ने अपने मोबाइल से सैल्फी ली. दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. हलकी सी हंसी सामने बैठे माही के पति प्रशांत के चेहरे पर भी तैर गई पर उस का चेहरा ही बता रहा था कि उस की इस हंसी के पीछे एक गुस्सा भी था. वे तो आज होटल में खाना खाने आए थे. पीयूष ने ही होटल में खाना खाने के लिए आमंत्रित किया था. हालांकि उस का आमंत्रण तो केवल माही के लिए ही था. यह बात माही भी जानती थी पर वह अपने पति को छोड़ कर नहीं जा सकती थी. एक तो इसलिए कि उसे पति के लिए खाना बनाना ही पड़ेगा और दूसरे इसलिए भी कि कहीं पति नाराज न हो जाए. वैसे वह जानती थी कि पति नाराज हो भी जागा तो अपनी नाराजी व्यक्त नहीं करेगा और यह कोई पहला अवसर तो है नहीं. गाहेबगाहे माही अपने दोस्तों के साथ ऐसी पार्टियां करती रहती है.
प्रशांत कई बार नहीं भी जाता तो माही और भी स्वच्छंदता के साथ अपने दोस्तों के साथ हंसीमजाक करती. कहती, ‘‘अरे, यह मस्ती है, इस में गलत क्या है? ये मेरे दोस्त हैं तो हंसीमजाक तो चलेगा ही,’’ और उस के चेहरे पर खिलखिलाहट दौड़ पड़ती.
पीयूष अपनी पत्नी को ले कर नहीं गया था. वह जानता था कि उस की पत्नी को माही की ये हरकतें पसंद नहीं है और पत्नी को ही क्यों किसी को भी माही का यह इतना बोल्ड हो कर खुलना पसंद नहीं आ सकता. होटल में भीड़ थी. रात्रि में ज्यादातर होटलों में भीड़ होती है. माही और पीयूष की खिलखिलाहट होटल के चारों ओर गूंज रही थी. जब माही ने पीयूष के साथ सैल्फी ली तो सारे लोग उन की ओर देखने लगे. माही को इन सब की कोई चिंता नहीं थी. वह अब भी पीयूष के गले में हाथ डाले बैठी थी और दूसरे हाथ से 1-1 कौर बना कर पीयूष को खिला रही थी.
पीयूष अब सकुचा रहा था. उसे लग रहा था कि वहां बैठे सारे लोगों की नजरें उन के ऊपर ही लगी हुई हैं. उस ने हौले से माही को अपने से अलग किया. माही तो उस से अलग होना ही नहीं चाहती थी पर जब पीयूष ने जबरदस्ती उसे अपने से अलग किया तो उस ने उस के गालों पर किस कर दिया. पीयूष का चेहरा शर्म से लाल हो गया. उस ने चारों ओर नजरें घुमाईं. सभी लोग उस की ओर ही देख रहे थे. माही मुसकराती हुई टेबल के दूसरी ओर आ कर अपने पति के बाजू में बैठ गई. प्रशांत का चेहरा भी मलिन पड़ चुका था. हर बार माही ऐसी ही हरकतें किया करती थी.
प्रशांत कुछ बोलता तो माही उस पर भड़क पड़ती, ‘‘इस में गलत क्या है? वह मेरा मित्र है तो मित्रों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है. इस में गलत क्या है?’’ माही का टका सा जवाब सुन कर प्रशांत चुप हो जाता.
माही बहुत चंचल स्वभाव की लड़की थी और हमेशा आत्मविश्वास से भरी रहती थी. वह बेधड़क हो कर बात करती और अपरिचित को भी छेड़ देती. छेड़ कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ती. मुसकान उस के होंठों पर होती तो कोई भी व्यक्ति उस की ओर सहज ही आकर्षित हो जाता.
माही गाना भी बहुत अच्छा गाती थी. उस की आवाज में गजब की मिठास थी. गाने का चयन उस का ऐसा होता कि गाते समय पांव थिरक ही जाते. वह अकसर कहती, ‘‘उदास गाने मु?ो पसंद नहीं हैं. जिंदगी को जिंदादिली से जीओ.’’
लोग उस के इस व्यवहार का अर्थ अपने हिसाब से लगा लेते.
प्रशांत और माही की शादी को ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. माही की जब शादी हुई तब वह महज 20 साल की ही थी. वह तो दूसरे शहर के कालेज में डिप्लोमा कर रही थी. उसे पता ही नहीं था कि उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी है. हालांकि उसे इस बात का अंदाजा तो था कि कुछ महीने पहले जब वह अपने घर गई थी तो कोई उसे देखने आया था और उस से उन्होंने बातें भी की थीं. उस ने अपने अल्हड़पन से ही उन बातों का उत्तर भी दिया था. उसे इस बात का एहसास तक नहीं था कि अभी ही उस की शादी तय भी हो जाएगी. वैसे भी उसे तो अभी आगे पढ़ना था. उस ने फैशन डिजाइनिंग कोर्स करने का मन बना लिया था. वह नौकरी करना चाहती थी. पर एक दिन अचानक पापा का फोन आया, ‘‘सुनो माही… मैं ने तुम्हारी शादी तय कर दी है… तुम घर आ जाओ…’’
पापा की कड़क आवाज से माही चौंक गई. वैसे तो पापा उसे बहुत प्यार करते थे पर बात जब भी करते कड़क आवाज में ही करते. वह अपने पापा से बहुत भय भी खाती थी.
‘‘पर पापा… मैं अभी शादी नहीं करना चाहती… मुझे पढ़ना है…’’
‘‘ये सब छोड़ो तुम अपना सामान समेटो और घर लौट आओ… अगले महीने तुम्हारी शादी है,’’ कह कर पापा ने उस का उत्तर सुने बगैर फोन रख दिया.
माही बहुत देर तक अपने हाथों में रिसीवर पकड़े बैठी रही. वह जानती थी कि उस के पापा का निर्णय अब नहीं बदलेगा. मम्मी से भी कुछ कहने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मम्मी भी पापा की बात को काट नहीं सकती थीं.
माही की शादी हो ही गई. माही शादीब्याह का मतलब तो जानती थी पर वह अपनी किशोरावस्था के अल्हड़पन से दूर नहीं हो पा रही थी. वैसे तो उस के पति प्रशांत की उम्र भी ज्यादा नहीं थी. पतिपत्नी युक्त परिपक्वता दोनों में नहीं थी. ससुराल में
उसे बहू बन कर रहना कठिन समझ में आने लगा. दोनों अपने वैवाहिक जीवन को स्वतंत्रता के साथ जीना चाहते थे पर ससुराल में यह संभव नहीं था. प्रशांत की माताजी अपने पुराने विचारों को तिलांजलि दे नहीं सकती थीं और माही इस कैद में रह नहीं पा रही थी. माही को ससुराल में बहू बन कर रहना पसंद नहीं आ
रहा था. वह स्वतंत्र विचारों वाली थी और ससुराल वाले अब भी पुराने विचारों को ही अपनाए हुए थे. उस की सास उसे टोकती रहतीं, ‘‘बहू यह मायका नहीं है, ससुराल है. यहां सूट नहीं साड़ी पहनी जाती है और हां सिर पर पल्ला भी रहना चाहिए.’’
माही को इन सब की आदत नहीं थी. प्रशांत की भी नईनई नौकरी लगी थी, शादी के ख्वाब उस ने भी देखे थे. वह अपनी पत्नी के साथ अपनी जवानी का आनंद लेना चाहता था
जो उस के घर में तो संभव था ही नहीं. परिणामतया प्रशांत ने अपना ट्रांसफर करा लेना ही बेहतर समझ.
प्रशांत ने अपना ट्रासंफर अपनी ससुराल यानी माही के शहर में करा लिया. माही की सलाह पर ही उस के मातापिता के घर के ठीक सामने एक किराए का मकान ले लिया और दोनों रहने लगे. अपने मातापिता का संरक्षण को पा कर माही का अल्हड़पन सबाव पर आ गया. वह लगभग यह भूलती चली गई कि वह एक शादीशुदा स्त्री बन चुकी है.
एक पढ़ने वाले स्टूडैंट जैसा उस का स्वभाव था. वह एक बड़े शहर में रह कर पढ़ रही थी. वैसे तो वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी इस कारण से भी आजाद खयालों को पूरा करने में कोई दिक्कत महसूस नहीं करती थी. कालेज के दोस्तों के साथ मस्ती करना उस की आदत में था. वैसे तो वह संस्कार वाली लड़की थी पर कालेज में रहते हुए उस ने अपनेआप को इतने आजाद खयाल में ढाल लिया था कि उसे लगता था कि मस्ती करना ही जीवन है. वह मस्ती करने में कोई बुराई सम?ाती भी नहीं थी. उस के लिए लड़की और लड़का एकजैसे थे. जब वह मस्ती करने पर उतर आती तो यह भूल जाती कि उसे लड़कों के साथ एक दूरी बना कर बात करना चाहिए.
प्रशांत अपने औफिस चला जाता और माही मकान बंद कर अपनी मां के यहां पहुंच जाती. मायके में रहने के कारण उसे अपन आजाद स्वभाव को पूर्णता प्रदान करने में कोई परेशानी थी भी नहीं. वह अपने पुराने दोस्तों के साथ मस्ती करती रहती और कभीकभार कालेज के दिनों के दोस्तों से मिलने के लिए बाहर भी
चली जाती. शुरूशुरू में तो प्रशांत इस सब को अनदेखा करता रहा पर जब बात बढ़ने लगी तो उस ने माही को टोकना शुरू कर दिया. प्रशांत का यों टोकना माही को बुरा लगा. माही ने इस की शिकायत अपने पिताजी से की तो उन्होंने ने रौद्र रूप दिखा दिया. प्रशांत भय के मारे कुछ नहीं बोला.
अवकाश का दिन था. प्रशांत के औफिस की आज छुट्टी थी इसलिए वह अपने घर में ही था. माही उसे खाना खिला कर मां के घर जा चुकी थी. माही जब यकायक दोपहर को घर आ गई तो उसे प्रशांत के कमरे से जोरजोर से बातें करने की आवाज आ रही थी. माही को लगा जैसे उस के कमरे में कोई है. उस ने उत्सुकतावश कमरे का दरवाजा खोल दिया. प्रशांत फोन पर किसी से बात कर रहा था जिस से बात कर रहा था वह कोई महिला ही थी उस की बातों से तो साफ समझ में आ रहा था. प्रशांत बातें करने में इतना मशगूल था कि उसे माही के अंदर आ जाने का पता ही नहीं चला. वह अब भी वैसे ही बातें कर रहा था, ‘‘हां तो फिर कब मिल रही हो…’’ माही को दूसरी ओर का उत्तर सुनाई नहीं दिया.
‘‘अच्छा ठीक है… मैं टाकीज पहुंच जाऊंगा… बाय…’’
प्रशांत ने फोन रखा तो उसे अपने सामने माही खड़ी दिखाई दी. माही के चेहरे पर गुस्सा था. प्रशांत सकपका गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस ने कुछ नहीं बोला. बोला तो माही ने भी कुछ नहीं केवल फड़फड़ाती हुई अपने मायके चली गई.
माही अपने मातापिता के साथ कुछ ही देर में लौट आई. अब वह तेज स्वर में प्रशांत से बातें कर रही थी. उस ने उस अनजानी महिला के साथ उस के संबंध होने का आरोप लगा दिया. इस में माही के मातापिता ने भी उस का ही साथ दिया और प्रशांत को बुराभला कहा. प्रशांत अपनी सफाई देता रहा पर उस की कोई बात किसी ने नहीं सुनी. बात निकल कर महल्लापड़ोस तक जा पहुंची. प्रशांत ने इज्जत के भय से वह मकान छोड़ दिया. वैसे भी इस घटना के बाद माही ने प्रशांत के साथ रहने से मना कर दिया.
प्रशांत अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा था. उस ने माही की कितनी ही हरकतों को अनदेखा किया. यह ही गलती शायद उस से हुई थी यदि वह पहले ही उस को रोक देता तो बात इतनी आगे नहीं बढ़ती. वह तो अपना अच्छाभला घर छोड़ कर केवल माही के लिए ही यहां रहने आया था. वह जानता था कि माही गलत नहीं है पर इस के बाद भी उस की हरकतें उचित नहीं हैं. उस दिन वह गलत नहीं था पर माही ने जानबूझ कर उस को आरोपों के घेरे में ले लिया. तो क्या माही उस से अलग होना ही चाह रही थी? उस के दिलदिमाग में कई प्रश्न थे.
माही ने उस से किसी भी किस्म का रिश्ता रखने से मना कर दिया. उस का मन अब इस शहर में नहीं लग रहा था. उस ने ट्रांसफर के लिए आवेदन दे दिया. पर जब तक ट्रांसफर नहीं हो जाता उसे तो यहां नौकरी करते ही रहना है. दूर एक कालोनी में कमरा किराए पर ले लिया. हालांकि, वह यहां कम ही रुकता था. वह तो अपडाउन करने लगा था.
एक दिन दोपहर में वह बाजार में होटल से खाना खा कर निकल रहा था तभी उसे माही किसी के साथ बाइक पर बैठी दिखाई दी. माही अपनी आदत के अनुसार ही उस के साथ सट कर बैठी थी. उस का एक हाथ उस की पीठ पर था. बाइक चलाने वाला हैलमेट लगाए था तो वह उसे पहचान नहीं पाया. माही ने प्रशांत को नहीं देखा पर प्रशांत ने माही को देख लिया.
उस का खून खौल उठा पर वह कुछ बोल नहीं सकता था. अत: चुपचाप औफिस लौट आया. उस ने तय कर लिया कि अब वह माही से कोई रिश्ता नहीं रखेगा.
प्रशांत का ट्रांसफर एक ग्रामीण क्षेत्र में हो गया था. ग्रामीण क्षेत्र उस ने जानबूझ कर ही चुना था. उसे अब शांति चाहिए थी. वह किसी भी मोड़ पर माही के सामने नहीं पड़ना चाह रहा था. उस के दिमाग में इतनी नफरत भरा चुकी थी कि माही का स्मरण होते ही गुस्से के मारे उस के हाथपांव कांपने लगते थे. उस ने 1-2 बार माही से तलाक ले लेने तक का विचार किया पर पारिवारिक कारणों से उस ने इस विचार को त्याग दिया. इधर माही अपने मातापिता की शह पा कर स्वच्छंदतापूर्वक रह रही थी. प्रशांत से दूर होने का दर्द उसे बिलकुल नहीं था.
समय अबाध गति से आगे बढ़ रहा था. लगभग 1 साल गुजर चुका था.
इस 1 साल में न तो माही ने और न ही माही के मातापिता ने उस से कोई संपर्क किया. संपर्क तो प्रशांत ने भी नहीं किया पर उस की माता का मन नहीं मान रहा था तो गाहेबगाहे माही से बात कर लेती थीं. माही हर बार प्रशांत को ही कठघरे में खड़ा कर देती. प्रशांत की मां के दिमाग में भी यह बात जम चुकी थी कि माही तो बहुत अच्छी पर प्रशांत की हरकतों के कारण ही वह उसे छोड़ कर गई है. वे हर बार माही को फिर से प्रशांत की जिंदगी में आ जाने का न्योता देतीं और माही हर बार मना कर देती. इन सारी बातों से प्रशांत अनजान था.
प्रशांत को तो बहुत देर में पता चला कि माही का ऐक्सीडैंट हो गया है पर उस की मां तक यह खबर पहले ही पहुंच गई थी. मां न ही उसे बताया कि बहू का ऐक्सीडैंट हो गया है और वह इसी शहर के अस्पताल में भरती है. मां ने उसे सु?ाव भी दिया कि उसे माही का हालचाल लेने अस्पताल जाना चाहिए जिसे प्रशांत ने सिरे से खारिज कर दिया. पर मां नहीं मानीं. वे खुद ही प्रशांत के छोटे भाई को साथ ले कर माही को देखने अस्पताल चली गईं.
प्रशांत जब शाम को औफिस से लौटा तो मां ने उसे बताया कि माही जीवनमत्यु से संघर्ष कर रही है. ऐसे में उसे सामाजिक तौर पर ही सही अस्पताल देखने जाना चाहिए.
माही सीरियस है यह जान कर पहली बार प्रशांत को दुख महसूस हुआ. उस ने कपड़े भी नहीं बदले और सीधा अस्पताल पहुंच गया.
माही के सारे शरीर में पट्टियां बंधी थीं. वह जिस बाइक के पीछे बैठी थी उस बाइक को कार ने टक्कर मारी थी. माही को तो वह कार कुछ दूर तक घसीटते हुए ले गई थी. उस का सारा शरीर छिल गया था. सिर पर गहरी चोट थी. माही ने प्रशांत को गहरी नजरों से देखा, उस की नजरों में दर्द दिखाई दे रहा था. प्रशांत उस के बैड के पास आ कर खड़ा हो गया. उस ने अपने कांपते हाथों से उस के चेहरे को छूआ. माही की आखों से आंसू बह निकले. प्रशांत बहुत देर तक अस्पताल में रुका रहा.
अस्पताल से लौटने के बाद भी प्रशांत का मन अशांत ही रहा. दूसरे दिन वह औफिस तो गया पर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. औफिस से लौटने के बाद वह अस्पताल चला गया और बहुत देर तक माही के पास गुमसुम सा बैठा रहा. माही की स्थिति में सुधार हो रहा था. माही की मां प्रशांत को कृतज्ञता भरी नजरों से देख रही थीं.
माही पूरी तरह स्वस्थ हो कर अपने घर जा चुकी थी. अब प्रशांत का मन माही के बगैर नहीं लग रहा था. इतने दिनों में वह रोज माही से मिलता रहा था. उस की नाराजगी भी दूर होती चली गई थी. प्रशांत को लग रहा था कि माही के बगैर उस की जिंदगी अधूरी सी है. आज वह औफिस नहीं गया सीधे माही के घर चला गया. माही जैसे उस का ही इंतजार कर रही थी.
माही के मां ने भी उस का स्वागत दामाद जैसा ही किया. वह दिनभर माही के पास ही बैठा रहा. शाम को जब वह घर लौट रहा था तो माही की आंखें भीग रही थीं.
प्रशांत और माही के बीच समझौता हो चुका था. अब दोनों फिर से साथ रहने लगे थे. प्रशांत ने अपना घर बनाने के लिए प्लाट खरीद लिया था और उस पर घर बनाने का काम भी शुरू हो गया था. माही के पिताजी ने मकान बनवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी. कुछ ही महीनों में माही और प्रशांत अपने नए घर में रहने लगे. दोनों के बीच अब तनाव महसूस नहीं हो रहा था. प्रशांत ने माही को नई ऐक्टिवा दिला दी थी.
‘‘तुम्हारी मां का घर दूर है न तो इस से चली जाया करो वैसे भी दिनभर अकेले घर में रह कर बोर ही हो जाओगी.’’
माही ने कृतज्ञताभरी नजरों से उस की ओर देखा. माही को अब आनेजाने के लिए साधन मिल चुका था. वह दिन में अपना काम निबटा कर निकल जाती और कोशिश करती कि शाम को प्रशांत के आने के पहले घर लौट आए पर कई बार वह ऐसा कर नहीं पाती तो भी प्रशांत उस से कुछ नहीं बोलता था. सप्ताह में एकाध बार वे होटल में खाना खाने जाते. कई बार माही अपने दोस्तों के साथ भी बाहर खाना खाने चली जाती तो भी प्रशांत उसे रोकताटोकता नहीं.
माही एक बार फिर अपने पुराने रंगढंग में ढलने लगी थी. वह पहले की तरह ही अपने मित्रों के साथ मस्ती करती. उस के मित्रों के गु्रप में मस्ती भरे मैसेजों का आदानप्रदान होता. वह देर रात तक कभी फोन पर तो कभी मैसेजों में व्यस्त रहती. देर रात तक जागती तो सुबह देर से उठती. दोपहर को वह कोई न कोई बहाना निकाल कर घर से निकल जाती. कभीकभी तो वह देर रात को ही घर लौटती. प्रशांत तो समय पर घर आ जाता और लेट जाता. माही जब घर लौटती तब खाना बनाती. प्रशांत को गुस्सा तो आता पर वह सब्र किए रहता. उसे उस का अपने पुरुष मित्रों के साथ बेतकल्लुफ होना जरा भी नहीं सुहाता था.
आज प्रशांत शाम को जब घर लौटा तो उसे घर का गेट खुला मिला. अंदर से माही के खिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. उस के कदम ठिठक गए. पर वह
दिन भर का थकाहारा था तो उसे घर के अंदर तो जाना ही था. ड्रांइगरूम में माही किसी पुरुष की बगल में बैठ कर मोबाइल पर कुछ देख रही थी. इस व्यक्ति को प्रशांत ने पहली बार देखा. वह चौंक गया, ‘‘कौन है यह?’’
माही बेतकल्लुफ सी उस से सट कर बैठी थी. प्रशांत के आने की आहट उसे मिली तो उस ने केवल अपना चेहरा उठा कर प्रशांत की ओर देखा पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. उस व्यक्ति को जरूर कुछ संकोच हुआ तो उस ने माही से कुछ दूरी बनाने और मोबाइल को बंद करने की कोशिश की. प्रशांत अनमाने भाव से अपन बैडरूम की ओर बढ़ गया. उस के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था.
प्रशांत हाथपैर धो कर अपने बिस्तर पर पड़ा था. बाहर से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. उसे भूख लगी थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि माही ने खाना बनाया भी है या नहीं. वह तो अपने दोस्त में ही उलझ थी. प्रशांत के चेहरे पर गुस्सा उबाल लेता जा रहा था. गुस्से से तमतमाया प्रशांत जब बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस समय माही उस व्यक्ति की गोद में बैठ कर सैल्फी ले रही थी.
प्रशांत का गुस्सा बाहर निकलने लगा, ‘‘माही, क्या है यह? तुम्हें सम?ा में नहीं आता कि मैं दिनभर का थका घर आया हूं भूख लगी है.’’
‘‘तो ले लो अपने हाथों से खाना. किचन में रखा हुआ है.’’
माही अब भी उस दोस्त के साथ गले में बांहें डाले बैठी थी.
‘‘यह है कौन?’’
‘‘मेरा दोस्त. भोपाल से आया है. हम दोनों साथ कालेज में पढ़ते थे,’’ कहते हुए माही ने अपने दोस्त को अपनी बांहों में दबोच लिया.
प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा चुका था. उस ने गुस्से में माही का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘तो ऐसे चिपक कर बैठोगी क्या?’’
माही को प्रशांत के ऐसे गुस्से की उम्मीद नहीं थी. वह खींचे जाने से लड़खड़ा कर गिर पड़ी.
माही के दोस्त ने स्थिति को बिगड़ते हुए महसूस कर लिया. सो चुपचाप वहां से निकल गया.
माही अपने दोस्त के सामने प्रशांत द्वारा की गई बेइज्जती से बौखला गई. वह बिफर पड़ी, ‘‘यह क्या हरकत है? तुम ने मेरे दोस्त के सामने मेरी बइज्जती कर दी.’’
‘‘और तुम जो उस के साथ चिपक कर बैठी थी वह हरकत ठीक थी?’’
‘‘हम तो मस्ती कर रहे थे. बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया था तो इस में बुरा
क्या है?’’
‘‘एक अनजान व्यक्ति को अकेले घर में बुलाना और फिर उस के साथ…’’ प्रशांत ने जानबू?ा कर वाक्य पूरा नहीं किया. उस का गुस्सा अब भी उबल रहा था.
‘‘कौन अनजान, कहा न कि वह मेरा दोस्त है. कालेज के दिनों के समय का. फिर अनजान क्यों हुआ और हम तो कालेज के दिनों में इस से ज्यादा मस्ती करते थे. दोनों एकदूसरे के गले में बांहें डाल कर रातभर सोए भी रहते थे,’’ माही अपनी धुन में बोलती जा रही थी और गुस्से में थी तो और जोरजोर से बोल रही थी. उन की आवाजें उन के घर से निकल कर बाहर तक जाने लगी थीं.
‘‘तुम्हें शर्म भी नहीं आ रही ऐसी बातें मुझ से कहते हुए?’’
‘‘हम तो ऐसे ही हैं,’’ माही की आवाज और तेज हो चुकी थी.
महल्ले के लोग भी माही की हरकतों को स्वीकार नहीं करते थे, यह अलग बात थी कि उन्होंने कभी इस का विरोध भी नहीं किया कि अरे जब उस के पति को ही कोई ऐतराज नहीं है तो फिर हमें क्या पड़ी है. पर आज उन्होंने एक अनजान व्यक्ति को सुबह ही जब प्रशांत घर से निकला था तब ही आते देख लिया था पर उन्हें लगा कि
कोई रिश्तेदार होगा. माही के चिल्लाने की आवाज से महल्ले वालों को पता चला कि माही तो दिनभर से किसी अनजान व्यक्ति के साथ घर के अंदर है तो उन का गुस्सा भी बरसने लगा.
माही अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी या उस का स्वभाव ही ऐसा बन गया था, यह प्रशांत नहीं सम?ा पा रहा था. एक दिन कुछ ऐसा घटा जिस ने माही को सोचने पर मजबूर कर दिया. उस दिन माही को विजय बहुत दिनों बाद दिखाई दिया था, आज उस के साथ कोई लड़की थी जिसे माही पहचानती नहीं थी. माही ने उस लड़की को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और सीधे जा कर विजय के कंधे पर हाथ मार कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘कहां थे जनाब इतने दिनों से?’’
विजय को माही के ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी सो वह असहज हो गया.
‘‘अरे शरमा तो ऐसे रहे हो जैसे मैं ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाल दिया हो,’’ इतना कह कर माही खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी.
विजय के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव उभर आए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या उत्तर दे. विजय के साथ साक्षी थी. वह यह नजारा देख रही थी.
साक्षी और विजय लंबे समय से ‘कभी जुदा न होंगे हम…’ वाली पोजीशन में रह रहे थे इस बात को सभी जानते थे और दोनों इसे छिपाते भी नहीं थे. साक्षी माही की हरकतों को सहन नहीं कर पा रही थी.
‘‘आप कौन? आप को किसी से बात करने की तमीज नहीं है क्या?’’ साक्षी गुस्सा नहीं दबा पाई और चिल्ला पड़ी.
माही कुछ देर तक तो असमंजस में रही फिर अपनी झेंप मिटाते हुए बोली, ‘‘ओह, लगता है आप को मेरा विजय को छूना पसंद नहीं आया,’’ कहते हुए जानबूझ कर विजय के गले में बांहें डाल दीं.
यह देख कर साक्षी तमतमा गई. उस ने आव देखा न ताव माही के गाल पर यह कहते हुए जोर से तमाचा मार दिया, ‘‘तुम बहुत बेशर्म लड़की हो, तुम जैसी लड़कियां ही महिलाओं को बदनाम करती हैं.’’
माही सहम गई. साक्षी का गुस्सा अभी भी बना हुआ था, ‘‘बेवकूफ लड़की अपने मांबाप से संस्कार सीख लेती कुछ.’’
माही की आंखों से अब आंसू बहने लगे थे. वह तेजतेज कदमों से वहां से चली गई.
माही को जाते देख कर भी साक्षी का गुस्सा शांत नहीं हुआ, ‘‘यही आवारगी कहलाती है… अपनेआप को सुधार लो नहीं तो बदनाम हो जाओगी.’’
माही ने सुना पर अपने कदमों को रोका नहीं. उसे भी शायद एहसास हो रहा था
कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. उसे एहसास हो रहा था कि उस ने वाकई कोई तो गलती की है. हर उम्र का व्यवहार अपनी उम्र में अच्छा लगता है. वह घर आ कर सोफे पर बैठीबैठी सुबकती रही. लगभग आधी रात को मजबूत इरादों के साथ वह उस कमरे की तरफ बढ़ी जहां प्रशांत सो रहा था. वैसे तो प्रशांत को भी नींद कहां आ रही थी.
1-1 घटनाक्रम उस की आंखों के सामने चलचित्र की भांति गुजर रहा था.
‘‘आखिर यह तो होना ही था,’’ उस ने गहरी सांस ली. उसे कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस के पैरों के पास माही खड़ी थी. उस का चेहरा आंसुओं से भरा था.
प्रशांत ने प्रश्नवाचक नजरों से माही की ओर देखा. वह उसे ही देख रही थी.
‘‘सौरी…’’ माही की आवज धीमी थी पर आवाज में नमी थी.
प्रशांत ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने करवट बदल कर अपने सिर को दूसरी ओर घुमा लिया.
अब की बार माही ने प्रशांत के पैरों को पकड़ लिया, ‘‘सौरी, अब कभी गलती नहीं होगी,’’ और वह फफकफफक कर रोने लगी. उस के आंसुओं से प्रशांत के पैर नम होते जा रहे थे.
प्रशांत कुछ देर तक यों ही मौन लेटा रहा. वह माही को रो लेने देना चाह रहा था. कुछ देर बाद प्रशांत उठा और उस ने माही को अपनी बांहों में भर लिया.
‘‘सौरी प्रशांत अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ माही अभी भी रो रही थी. उस की सिसकियां कमरे में गूंज रही थीं.