बीज: कैसी थी सीमा की जिंदगी

‘‘ज्यादा बकबक मत कर और चुपचाप नाश्ता करने बाहर आ जा,’’ सीमा ने अपनी आवाज और ऊंची कर के उसे डांटा, ‘‘मेरे आराम और सुखचैन की भी कभी फिक्र कर लिया करो तुम लोग. अभी नहाने से पहले मुझे कपड़े धोने की मशीन लगानी है. ओ नेहा की बच्ची, अब तो बाहर आ जा. आज घर की साफसफाई तुझे ही करनी है. 6 दिन औफिस की ड्यूटी निभाओ

और इतवार को घर में नौकरानी की तरह से काम करो. आप इन दोनों आलसियों को डांटते क्यों नहीं हो?’’

यह आखिरी वाक्य सीमा ने अपने पति मनोज को संबोधित कर के कहा जिन्होंने नाश्ता कर के अखबार के पन्ने पलटने शुरू ही किए थे. उन्होंने अखबार मोड़ कर मेज पर रखा और उठते हुए धीमे स्वर में बोले, ‘‘तुम नाश्ता मेज पर रख दो. जिसे जब खाना होगा खा लेगा.’’

‘‘इन दोनों को तुम ने ही बिगाड़ा हुआ है. मैं चिल्लाचिल्ला कर पागल हो जाऊं पर तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. आज तक तुम ने इन को सम?ाया कि मां की बात एक बार में मान…’’

‘‘इतना परेशान मत होओ. मशीन मैं लगा रहा हूं. तुम कोई और काम निबटा लो,’’ मनोज बालकनी की तरफ चल पड़े जहां वाशिंग मशीन रखी हुई थी.

सीमा ने कुछ पलों तक  उन की पीठ को गुस्से से घूरा और फिर से चिल्ला पड़ी, ‘‘मशीन मैं ही लगा लूंगी. तुम मंडी से हफ्तेभर की सब्जीफल ले आओ. मेरे बस का नहीं है वहां की भीड़ और गंदगी में धक्के खाना.’’

‘‘जो लाना है उस की लिस्ट बना दो. औनलाइन और्डर कर देता हूं,’’ कह वे बैडरूम की तरफ चल पड़े.

‘‘नेहा, जरा पैन और कागज दे जा. समीर, तू 2 मिनट में बाहर आ जा, नहीं तो मैं तेरे ऊपर पानी डालने आ रही हूं,’’ एक बार फिर से ऊंचा बोल कर सीमा थकीहारी सी सोफे पर बैठ अपने सिर का दर्द दूर करने को हाथों से कनपटियां मसलने लगी.

कुछ मिनट बाद नेहा ने उन के सामने पेपर व पैन रखा और फिर चिड़ी सी बोली, ‘‘आप ने आज नाश्ता जल्दी क्यों बनाया है? इतवार के दिन कौन घड़ी के हिसाब से चलता है?’’

‘‘जिस के सिर पर काम करने की जिम्मेदारी हो वह जरूर समय का ध्यान रखता है, राजकुमारीजी,’’ सिर को दबाना भूल सीमा फौरन अपनी बेटी के साथ उल?ाने को तैयार हो गई.

‘‘पूरे सप्ताह में सिर्फ एक रविवार का दिन मिलता है हम सब को इकट्ठे बैठ कर

हंसनेखाने का और आप उस दिन भी अपने हिसाब से चलती हो. शोर मचामचा कर घर की सुखशांति भंग करने से नहीं चूकती हो.’’

‘‘मुझे लैक्चर देने के बजाय घर की साफसफाई में जुट जा.’’

‘‘साफसफाई मैं परीक्षाओं के बाद करूंगी,’’ नेहा पैर पटकती अपने कमरे की तरफ लौट गई.

‘‘तू ने घर के कामों से बचने के लिए पढ़ाई का अच्छा बहाना पकड़ रखा है,’’ सीमा शोर मचाती रही तो कुछ देर बाद समीर भी आंखें मलता अपने कमरे से बाहर आ गया.

जब समीर ने अपने पिता को मोबाइल पर उल?ाते देखा तो उस ने फौरन खुद मोबाइल ले कर औनलाइन ग्रौसरी और्डर कर दी.

मनोज ने उसे रोकना चाहा तो उस ने जवाब दिया, ‘‘ठंड बहुत हो रही है और आप ऐसे मौसम में जल्दी बीमार पड़ जाते हो. मैं मोटरसाइकिल से मंडी चला जाता हूं.’’

बहुत देर बाद नेहा और समीर दोनों ने अपने कमरे में नाश्ता किया. आखिरी में जब सीमा नाश्ता करने बैठी तो उसे ठंडे परांठे खाने में मजा नहीं आया और चाय भी गरम नहीं रही थी.

‘‘नेहा, 1 कप चाय तो बना दे,’’ सीमा ने आवाज ऊंची कर के अपनी इच्छा बताई.

‘‘मैं पढ़ रही,’’ नेहा ने अपने कमरे में बैठेबैठे टका सा जवाब

दे दिया.

‘‘तू मेरे काम से बहुत बचती है,’’ सीमा को तेज गुस्सा आ गया.

‘‘तू पढ़ती रह. तेरी मां को चाय मैं पिला रहा हूं,’’ मनोज ने नेहा को बाहर आने से मना किया और खुद रसोई की तरफ चल पड़े.

‘‘ये दोनों आप के बिगाड़े

हुए हैं. मजाल है जो मेरी तरफ से बोलते हुए आप ने कभी इन्हें कुछ कहा हो.’’

‘‘तुम जरा प्यार से बोला करो. फिर देखना ये कैसे भागभाग कर तुम्हारे काम करने लगेंगे.’’

‘‘मैं इन की सेवा करतेकरते मर

भी जाऊं तो भी मु?ो वह दिन देखने को

नहीं मिलेगा जब मेरी औलाद भागभाग कर मेरा काम करेगी.’’

सीमा को अपने मन की शिकायतें कहने का और मौका नहीं मिला क्योंकि तभी उस की पड़ोसिन सहेली निशा की बेटी प्रिया उन के घर आ गई.

‘‘आंटी, हमारी मिक्सी खराब हो गई है

और मैं घर में सब को डोसा बना कर खिलाना चाहती हूं. आप की मिक्सी में ये दाल और

चावल पीसने आई हूं,’’ प्रिया ने अपने आने का कारण बताया.

‘‘हांहां, जरूर पीस ले पर डोसा हम सब को भी खिलाना पड़ेगा,’’ सीमा ने मजाक किया.

‘‘श्योर आंटी. आप सब भी डोसा खाने घर आ जाओ.’’

‘‘थैंक यू बेटी, पर मु?ो इतवार के दिन तो मरने की भी फुरसत नहीं होती है.’’

‘‘नेहा और समीर कहां हैं?’’

‘‘नेहा पढ़ रही है और समीर लाट साहब सो रहे हैं. इन दोनों का मु?ो रत्तीभर सहयोग नहीं मिलता है. पता नहीं मेरी जिंदगी में वह दिन कब आएगा जब मेरी बेटी मु?ो अपने हाथ से बना गरमगरम डोसा खिलाएगी.’’

‘‘डोसे बनाना मुश्किल काम नहीं है, आंटी.’’

‘‘उस के लिए तो मुश्किल ही है जो अगर ब्रैड भी सेंके, तो जला दे,’’ सीमा ऊंची आवाज में बोल रही थी ताकि अपने कमरे में बैठी नेहा भी उस की बातें सुन ले.

सीमा ने रसोई में घुसते ही मनोज से नेहा की शिकायत करी, ‘‘यह प्रिया आज अपने मातापिता को डोसे बना कर खिला रही है.

तुम्हारी बात तो दोनों बच्चे सुनते हैं. अपनी लाडली बेटी को सम?ाओ कि वह घरगृहस्थी के कुछ काम तो सीख ले, नहीं तो ससुराल में जा कर बहुत दुख पाएगी.’’

‘‘धीरेधीरे नेहा को भी सब आ जाएगा,’’ मनोज ने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और सीमा को ज्यादा नाराजगी जाहिर करने का मौका न देने के लिए रसोई से बाहर आ गए.

प्रिया के जाते ही समीर और नेहा अपनेअपने कमरे से बाहर आए और सीमा से

?ागड़ने लगे.

‘‘क्या जरूरत थी आप को उस के सामने मेरी इतनी सारी बुराइयां करने की,’’ नेहा बहुत खफा नजर आ रही थी.

‘‘मैं ने उसे असलियत ही बताई है. तुझे

बुरा लगा है और तू चाहती है कि मैं आएगए के सामने तेरी तारीफ करूं, तो अपनेआप को बदल न,’’ सीमा अपनी बेटी के बोलने के ढंग से चिड़ गई थी.

‘‘नेहा, तू इन से मत उल?ा क्योंकि ये तेरीमेरी भावनाओं को समझने की कभी कोशिश ही नहीं करती हैं. कभीकभी तो मुझे लगता है कि ये हम दोनों से मन ही मन नफरत करती हैं,’’ समीर गुस्से में अपनी बात कह कर वापस अपने कमरे में घुस गया.

समीर के इस आरोप को सुन सीमा बहुत जोर से भड़क उठी, ‘‘मैं तुम से नफरत करती तो बसों में धक्के खा कर रोज नौकरी करने न जाती. ये जो तुम दोनों बढि़या कपड़े पहनते हो, अच्छा खाते हो और अच्छे स्कूल में पढ़ते हो, इसीलिए संभव है क्योंकि तुम्हारी मां डबल मेहनत कर रही है. मेरे ऊपर काम का इतना बोझ है कि अब कमर का दर्द मेरा पीछा नहीं छोड़ता है. शर्म नहीं आई तुझो यह कहते हुए कि मैं तुम दोनों से नफरत करती हूं?’’

‘‘सारा दिन बोलबोल कर तुम्हारी जीभ क्यों नहीं दुखती है?’’ नेहा ने व्यंग्य किया और फिर सीमा के तीखे शब्दों की बौछार से बचने के लिए अपने कमरे में घुस गई.

‘‘यह दिनबदिन कितनी ज्यादा बदतमीज होती जा रही है. आप इसे डांटते क्यों नहीं हो?’’ सीमा मनोज पर गुस्सा हो उठी.

‘‘कमर का दर्द कम करने वाली गोली

ला कर दूं?’’ मनोज ने विषय बदलने की

कोशिश करी.

‘‘गोली मारो दर्द की गोली को. यों ही भागतेदौड़ते एक दिन मेरे प्राण निकल जाएंगे पर धन्यवाद शब्द मु?ो कभी सुनने को नहीं मिलेगा.’’

‘‘आप अपना गुणगान करने से रुको तो ही कोई दूसरा आप को धन्यवाद दे पाएगा न,’’ समीर अपने कमरे में से ही चिल्ला कर बोला.

‘‘पापा आप का हर काम में बराबर हाथ बंटाते हैं. क्या आप ने कभी उन्हें धन्यवाद दिया है?’’ नेहा ने अपने कमरे में से चुभते लहजे

में पूछा.

‘‘कितनी बेइज्जती होने लगी है मेरी इस

घर में. कैसे आदमी हो आप… इन दोनों के

2-2 तमाचे लगा कर आप इन्हें मेरी इज्जत करना नहीं सिखा सकते हो?’’ सीमा मनोज से उलझने को तैयार हो गई तो वे उस के पास से उठ कर अपने कमरे में चले गए.

इस के बाद सीमा घर में सारा दिन मुंह सुजाए घूमती रही. नेहा और समीर भी उस के सामने पड़ने से बचते रहे. मनोज ने खामोश रह कर उस के हर काम में हाथ बंटाया, पर सीमा का मूड नहीं सुधरा.

शाम को दोनों बच्चे बाजार घूमने जाना चाहते थे.

सीमा ने तबीयत ठीक न होने का बहना बना कर साथ चलने से इनकार कर दिया.

वह चाहती थी कि दोनों बच्चे उसे मनाएं, अपने खराब व्यवहार के लिए माफी मांगें, पर नेहा और समीर ने ऐसा करने के बजाय बाजार जाने का कार्यक्रम ही कैंसिल कर दिया तो सीमा का मुंह और ज्यादा सूज गया.

सीमा ने रात का खाना बनाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं ली तो समीर बाजार से छोलेभठूरे ले आया. सीमा को भूख लगी थी, पर उस ने नाराजगी दिखाने के लिए एक टुकड़ा तक नहीं खाया. उन तीनों ने चुपचुप खाना खाया और फिर सीमा को टीवी के सामने बैठा छोड़ छत पर घूमने चले गए.

रात को अपने मनपसंद सीरियल देखने के बाद सीमा शयनकक्ष के पास पहुंची तो अंदर से आ रही उन तीनों की आवाजें सुन दरवाजे के पास ठिठक कर रुक गई.

‘‘पापा, मुझे मैथ की ट्यूशन लेनी पड़ेगी,’’ नेहा की आवाज में चिंता के भाव ?ालक रहे थे.

‘‘कितना खर्चा आएगा?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘2000 हर महीने देने पड़ेंगे.’’

‘‘अगर जरूरी है तो ट्यूशन ले लो.’’

‘‘जब मां को पता लगेगा तो वे ताने मारमार कर मेरा जीना मुश्किल कर देंगी.’’

‘‘तुम उन की बातों का बुरा न माना करो.’’

इस के बाद समीर ने अपनी समस्या बताई, ‘‘पापा, कुछ दूर भागने पर मेरी सांस फूल जाती है सारा दिन थकाथका सा भी रहता हूं.’’

‘‘कल शाम को डाक्टर उमेश से तुम्हारा चैकअप करा लेते हैं. तुम सुबह पार्क में घूमने जाना भी शुरू कर दो. बाहर का खाना खाने से भी बचो,’’ मनोज ने सलाह दी.

‘‘आप कितनी शांति से हमारी बात सुनते हो. आप की जगह मम्मी होतीं तो भैया को अब तक न जाने कितनी डांट पड़ चुकी होती,’’ नेहा की आवाज में अपने पिता के लिए बहुत प्यार ?ालक रहा था.

उन के बीच चल रही सुखदुख की चर्चा और आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि सीमा कमरे में घुस आईर् थी. जब उस ने देखा कि समीर अपने पिता के पैर दबा रहा है और नेहा उन के सिर की मालिश कर रही है, तो वह ताना मारने से नहीं चूंकी, ‘‘पिता की कैसी बढि़या सेवा चल रही है. अरे, कभी अपनी मां को भी खुश कर दिया करो. मैं मानती हूं कि मु?ो में सिर्फ बुराइयां ही बुराइयां हैं, पर बच्चों से सेवा कराने का सुख पाने को मेरा भी मन करता है.’’

‘‘मेरा कल ऐग्जाम है. समीर कर देगा आप की सेवा,’’ नेहा फौरन पलंग से उतर कर खड़ी

हो गई.

‘‘मुझे तो बहुत जोर से नींद आ रही है,’’ समीर भी अपने कमरे में जाने को तैयार हो गया.

‘‘तुम दोनों ही एहसानफरामोश हो,’’ अपने दोनों बच्चों को कमरे से बाहर जाने को तत्पर देख सीमा गुस्से से फट पड़ी.

‘‘मां, आप का सारा दिन तो गुस्सा करतेकरते बीत गया है. अब सोने के टाइम तो प्लीज शांत हो जाओ,’’ समीर अचानक भावुक

हो उठा.

‘‘अपनी नहीं तो पापा की सेहत का खयाल करो, मां. आप घर में 24 घंटे जो टैंशन का माहौल बनाए रखती हो, उस कारण ही पापा का ब्लड प्रैशर हाई रहने लगा है,’’ चिढ़ी नजर आ रही नेहा अपनी मां का कड़वा जवाब सुनने को रुकी नहीं और कमरे से बाहर निकल गई.

‘‘यह लड़की आप की बिगाड़ी हुई है. इसे आप ने जोर से डांटा क्यों नहीं?’’ सीमा की आंखों में एकाएक आंसू भर आए.

‘‘तुम्हारा सिरदर्द कैसा है,’’ मनोज ने अपनी आदत के अनुरूप ?ागड़े की बात को बदलने की कोशिश करी.

‘‘सिर फटा जा रहा है दर्द के मारे.’’

‘‘लाओ, मैं आप का सिर दबा दूं,’’ समीर सिर दबाने को उन की तरफ खिसक गया.

‘‘मुझे नहीं चाहिए किसी की दया,’’ सीमा ने बहुत जोर से अपने बेटे का हाथ ?ाटक कर दूर कर दिया.

मां के खराब व्यवहार से समीर को पहले तेज ?ाटका लगा और वह एक शब्द भी बोले बगैर रोनी सूरत लिए कमरे से बाहर चला गया.

‘‘मैं नेहा की कुछ डाइग्राम बना कर सोऊंगा,’’ मनोज भी बच्चों को शांत करने के इरादे से उठ खड़े हुए.

‘‘ये बच्चे मेरी जो बातबात में बेइज्जती करते हैं, उस का कारण सिर्फ तुम हो,’’ सीमा खीज कर मनोज पर चिल्ला उठी.

‘‘आप बिलकुल गलत कह रही हो,’’ समीर जाते-जाते ठिठक कर रुका और मां को सुनाने लगा, ‘‘असली कारण है आप को पापा से ज्यादा पगार मिलने का घमंड है और आप घर में सब को दबा कर रखना चाहती हो. आप ही कहां हमें प्यार और इज्जत देती हो. जिंदगी में इंसान जैसा बोलता है वैसा ही…’’

‘‘समीर, एक शब्द भी आगे मत बोलना,’’ मनोज ने उसे शांत लहजे में हिदायत दी तो वह फौरन चुप हो गया.

‘‘अपनी मम्मी से सोरी बोलो.’’

‘‘सौरी, मम्मी,’’ समीर ने अपने पापा का कहा टाला नहीं और सीमा से माफी मांग कर कमरे से बाहर चला गया.

‘‘हमारे बच्चे बहुत अच्छे हैं, सीमा. उन की बातों का बुरा न माना करो,’’ मनोज ने सीमा को सम?ाने की कोशिश करी, पर उस की आंखों में गुस्से के भाव पढ़ कर वे आगे कुछ नहीं बोले और नेहा की फाइल पूरी करने चले गए.

कमरे में अकेली बची सीमा अचानक रोने लगी. वह इस वक्त अपने-आप को

बहुत गहरी उदासी और अकेलेपन का शिकार बना हुआ पा रही थी.

‘मैं ने इन सब के लिए इतना किया और बदले में मु?ो इस घर में किसी से न इज्जत मिली है न प्यार, न धन्यवाद के 2 मीठे बोल,’ यह विचार बारबार उस के मन में उठ कर उसे लगातार रुलाए जा रहा था.

कुछ देर बाद सीमा ने उठ कर सिरदर्द की गोली खाई और करवटें बदलती नींद आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर बाद दर्द कम होने के साथ उस के आंसू सूखने लगे और मन में अपने पति व बच्चों के लिए शिकायत और गुस्से के भाव पलपल बढ़ने लगे. अपने दुख के बीज वह खुद ही बोती है, यह सबक सीखने से वह आज भी वंचित रह गई.

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