बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने के 6 टिप्स

2 साल के अस्मित ने अभी नया नया ही चलना सीखा है पर जैसे ही वह खुद चलने की कोशिश करता है तो उसके गिरने के डर से मां मीता उसे गोद में उठा लेती है या फिर हाथ पकड़ कर चलाती है…इससे अस्मित भी धीरे धीरे चलने से डरने लगा है.

5 वर्षीया अनाया जब भी खुद से खाना खाने या अपना बैग लगाने की कोशिश करती है तो मां रीना यह कहकर उसे रोक देती है कि रहने दो तुम नहीं कर पाओगी इससे अनाया को भी अब लगने लगा है कि वह नहीं कर पायेगी क्योंकि अब वह स्वयं कोशिश करने की अपेक्षा पहले ही बैग लगाने के लिए आवाज लगाती है.

बच्चा जन्म के समय बिल्कुल गीली मिट्टी अथवा आटे के समान होता है आप जैसा उसे बनाते हैं वह वैसा ही बन जाता है. वर्तमान में परिवार में आमतौर पर एक या दो बच्चे ही होते हैं जिन्हें अभिभावक बड़े लाड़ प्यार से पालते हैं परन्तु कई बार उनका यह अति लाड़ प्यार धीरे धीरे उनके आत्मविश्वास को कम करने लगता है जिससे उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास ही नहीं हो पाता जो बड़े होने पर उसके लिए ही नुकसानदेह साबित होता है. प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिनका ध्यान रखकर आप अपने बच्चे में आत्मविश्वास की वृद्धि कर सकते हैं-

 -प्रशंसा करें

रीमा ने जैसे ही ऑफिस से आकर घर में प्रवेश किया तो देखा कि रोज की अपेक्षा आज घर बड़ा ही व्यवस्थित नजर आ रहा है ….उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसकी 5 वर्षीया बेटी ने किया है उसने अपनी बेटी को गले लगाकर शाबासी दी जिससे बेटी हर रोज ही कोई न कोई कार्य करने का प्रयास करती है. बच्चा जब भी कोई कार्य करे भले ही वह उस कार्य को करने में असफल हो जाये आप उसके प्रयास की सराहना अवश्य करें ताकि भविष्य में वह कार्य को करने से डरे नहीं. आपके द्वारा की गई तारीफ उसके उत्साह में वृध्दि करेगी जिससे वह नए कार्य को करने में भी हिचकिचएगा नहीं.

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-आदर्श प्रस्तुत करें

बच्चों के लिए माता पिता सबसे बड़े उदाहरण होते हैं क्योंकि बच्चे का सबसे पहला स्कूल घर होता है और वे जैसा व्यवहार अपने माता पिता को करते हुए देखते हैं वैसा ही सीखते हैं. जिन घरों में माता पिता एक दूसरे के कार्यों में परस्पर मदद करते हैं वहां बच्चे भी अभिभावकों के साथ मिलजुलकर घर बाहर के कार्यों को करते हैं जो निस्संदेह उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होते हैं.

-दें छोटी छोटी जिम्मेदारियां

बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार अपने खिलौनों , किताबों को व्यवस्थित रखना अथवा अपनी शेल्फ को जमाने जैसे कार्य करने को दें इससे उनमें अपने कार्य को स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास होगा. कई बार माताएं काम फैल जाने के डर से बच्चों को काम नहीं करने देतीं परन्तु हर समय उन्हें सब कुछ रेडी करके देने से उनके मेहनत करने की आदत का विकास हो ही नहीं पाता जो उनके ही भविष्य के लिए अत्यंत घातक होता है क्योंकि जिंदगी में बिना परिश्रम के कुछ भी हासिल नहीं होता.

– निर्णय को तरजीह दें

आजकल 5-6 वर्ष की आयु के बच्चे भी अपनी पसन्द की ड्रेस पहनना पसंद करते हैं परन्तु अक्सर अभिभावक उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपनी इच्छा उन पर थोपते हैं परन्तु इससे उनके आत्मविश्वास में कमी होने लगती है. बच्चे का कोई भी कार्य यदि आपको नापसन्द है तो उसे अनुभव से सीखने दें और फिर उसे तर्क सहित अपनी बात बेहद प्यार से समझाएं.

-बात बात पर न टोकें

छोटी छोटी बातों पर हरदम टोकने की अपेक्षा सप्ताह में एक बार बच्चे को अपने पास बैठाकर प्यार से अपनी बात समझाएं. जहां तक सम्भव हो अपनी बात को सीधे कहने की अपेक्षा उदाहरण देकर अप्रत्यक्ष रूप से समझाने का प्रयास करें.

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-तुलना न करें

बच्चे की कभी भी उसके भाई बहन या दोस्तों से तुलना न करें क्योंकि संसार में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी खूबियां और खामियां होती हैं. दूसरे से तुलना करने पर बच्चे का स्वाभिमान आहत होता है जिससे धीरे धीरे उसके अंदर हीन भावना का जन्म होने लगता है.

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