हम हैं राही प्यार के : विकास से क्यों करनी पड़ी प्रेमा को शादी

उससमय आंध्र प्रदेश अविभाजित था. हैदराबाद के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में श्रीराम और प्रेमा पढ़ रहे थे. श्रीराम आंध्र प्रदेश से था जबकि प्रेमा बिहार के पटना शहर से थी. दोनों ही कंप्यूटर साइंस फाइनल ईयर की परीक्षा दे चुके थे और दोनों को कैंपस से जौब मिल चुकी थी. मगर दोनों का एमबीए करने का इरादा था जिस के लिए उन्होंने जी मैट और जी आर ई टैस्ट भी दिए थे. दोनों का चयन हैदराबाद के ‘इंडियन स्कूल औफ बिजनैस’ के लिए हो चुका था.

कालेज में फर्स्ट ईयर के दिनों में दोनों में कोईर् खास जानपहचान नहीं थी. दोनों एक ही सैक्शन में थे बस इतना जानते थे. सैकंड ईयर से प्रेमा और श्रीराम दोनों लैब के एक ही ग्रुप में थे और प्रोजैक्ट्स में भी दोनों का एक ही ग्रुप था. प्रेमा को तेलुगु का कोई ज्ञान नहीं था, जबकि श्रीराम अच्छी हिंदी बोल लेता था. दोनों में अच्छी दोस्ती हुई. प्रेमा ने धीरेधीरे तेलुगु के कुछ शब्द सीख लिए थे. फिर दोनों कैंपस के बाहर एकसाथ जाने लगे. कभी लंच, कभी डिनर या कभी मूवी भी. दोस्ती प्यार का रूप लेने लगी तो दोनों ने मैनेजमैंट करने के बाद शादी का निर्णय लिया.

श्रीराम को प्रेमा श्री पुकारती थी. श्री हैदराबाद के अमीर परिवार से था. उस के पापा पुलिस में उच्च पद पर थे. श्री अकसर कार से कालेज आता था. प्रेमा मध्यवर्गीय परिवार से थी. पर इस फासले से उन के प्यार में कोई फर्कनहीं पड़ने वाला था. अपनी पढ़ाई के लिए प्रेमा ने बैंक से कर्ज लिया था. फाइनल ईयर में जातेजाते श्री ने प्रेमा को भी ड्राइविंग सिखा दी और फिर उसे लाइसैंस भी मिल गया था.

प्रेमा के मातापिता को बेटी और श्रीराम की लव मैरिज पर आपत्ति नहीं थी, पर श्रीराम के मातापिता उस की शादी किसी तेलुगु लड़की से ही करना चाहते थे. शुरू में उन्होंने इस का विरोध किया पर बेटे की जिद के सामने एक न चली. हैदराबाद का बिजनैस स्कूल पूर्णतया रैजिडैंशियल था, इसलिए प्रेमा के पिता चाहते थे कि दोनों की शादी मैनेजमैंट स्कूल में जाने से पहले हो जाए, पर श्रीराम के मातापिता इस के खिलाफ थे. तय हुआ कि कम से कम उन की सगाई कर दी जाए.

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श्री और प्रेमा की सगाई हो गई. दोनों बहुत खुश थे. उसी दिन शाम को कालेज में फाइनल ईयर के छात्रों का बिदाई समारोह था. प्रेमा श्री

के साथ उस की कार में कालेज आई थी. उस अवसर पर सभी लड़कों और लड़कियों से कहा गया कि अपने मन की कोई बात बोर्ड पर आ कर लिखें.

सभी 1-1 कर बोर्ड पर आते और अपने मन की कोई बात लिख जाते. जब श्री की बारी आई तो उस ने प्रेमा की ओर इशारा करते हुए लिखा ‘‘हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए, जो भी राह में मिला हम उसी के हो लिए…’’

पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, पर प्रेमा ने शर्म से सिर झुका लिया. कुछ देर के बाद प्रेमा की बारी आई तो उस ने बोर्ड पर लिखा, ‘‘कुछ मैं ने कसम ली, कुछ तुम ने कसम ली, नहीं होंगे जुदा हम…’’

एक बार फिर हाल तालियों से गूंज उठा.

अंत में जिस लड़के की बारी आई वह विकास था. विकास भी बिहार के किसी शहर का रहने वाला था, पर वह काफी शर्मीला और अंतर्मुखी था. दरअसल, विकास और प्रेमा बिहारी स्टूडैंट्स गैटटुगैदर में मिलते तो दोनों में बातें होती थीं. इस के अलावा वे शायद ही कभी मिलते थे.

विकास का ब्रांच मैकेनिकल था. कभी किसी लैब ग्रुप या प्रोजैक्ट में साथ काम करने

का मौका भी न मिला था. पर साल में कम से कम 2 बार उन का गैटटुगैदर होता था. एक साल के पहले दिन और दूसरा 22 मार्च बिहार डे के अवसर पर. दोनों मिलते थे और कुछ बातें होती थीं. विकास मन ही मन प्रेमा को चाहता था, पर एक तो अपने स्वभाव और दूसरे श्री से प्रेमा की नजदीकियों के चलते कुछ कह नहीं सका था.

विकास धीरेधीरे चल कर बोर्ड तक गया और बड़े इतमीनान से बोर्ड पर लिखा, ‘‘हम भी थे राही प्यार के, पर किसी को क्या मिला यह अपने हिस्से की बात है…’’

इस बार हाल लगभग खामोश था सिवा इक्कादुक्का तालियों के. सभी की सवालिया निगाहें उसी पर टिकी थीं. वह धीरेधीरे चल कर वापस अपनी सीट पर जा बैठा. उस की बात किसी की समझ में नहीं आई.

इस घटना के 2 दिन बाद श्री और प्रेमा दोनों हैदराबाद के निकट मशहूर रामोजी

फिल्मसिटी जा रहे थे. श्री की कार थी और वह खुद चला रहा था. रास्ते में दोनों ने कोमपल्ली के पास रनवे 9 में रुक कर गो कार्टिंग का मजा लेने की सोची. वहां दोनों ने 1-1 कार्ट लिया और अपनाअपना हैलमेट और जैकेट पहनी. वहां के सुपरवाइजर ने उन के कार्ट्स में तेल भरा और दोनों अपनी गाड़ी रनवे पर दौड़ाने लगे. एकदूसरे को चीयर करते हुए वे भरपूर आनंद ले रहे थे.

रनवे से निकल कर श्री ने कहा, ‘‘अब रामोजी तक कार तुम चलाओ. हम शहर से निकल चुके हैं और सड़क काफी अच्छी है.’’

प्रेमा ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं चलाती हूं पर स्पीड 50 किलोमीटर से ज्यादा नहीं रखूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है. इतने पर भी हम समय पर पहुंच जाएंगे.’’

थोड़ी दूर जाने के बाद दूसरी तरफ से एक बस तेज रफ्तार से आ रही थी. एक औटो को ओवरटेक करने के दौरान बस कार से टकरा गई. उन की कार पलट कर हाईवे के नीचे एक खड्ड में जा गिरी. प्रेमा को काफी चोटें आईं और वह बेहोश हो गई. कुछ चोटें श्री को भी आई थीं पर वह कार से निकलने में सफल हो गया. उस ने अपने पापा को फोन किया.

कुछ ही देर में पुलिस की 2 गाडि़यां आईं. उस के पापा भी आए थे. श्री को एक गाड़ी में बैठा कर अस्पताल में लाया गया. प्रेमा अभी भी बेहोश थी. उसे कार से निकालने में काफी दिक्कत हुई. उस की हालत गंभीर देख कर उसे ऐंबुलैंस में अस्पताल भेजा गया. प्रेमा के मातापिता को फोन पर दुर्घटना की सूचना दी गई.

श्री को प्राथमिक उपचार के बाद मरहमपट्टी कर अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कुछ देर बाद वह भी प्रेमा से मिलने गया. दूसरे दिन प्रेमा के मातापिता भी आए. प्रेमा की हालत देख कर वे काफी दुखी हुए.

डाक्टर ने उन से कहा, ‘‘अगले 48 घंटे इन के लिए नाजुक हैं. इन्हें मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ है. हम ने कुछ टैस्ट्स कराने के लिए भेजे हैं और कुछ इंजैक्शंस इन्हें दिए हैं. बाकी रिपोर्ट आने पर सही अंदाजा लगा सकते हैं. हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं. आप धीरज रखें.’’

अगले दिन प्रेमा की टैस्ट रिपोर्ट्स मिलीं. वह अभी भी बेहोश थी और उसे औक्सीजन लगी थी.

डाक्टर ने कहा, ‘‘इन्हें सीरियस इंजरीज हैं. इन के शोल्डर और कौलर बोंस के अलावा रिब केज में भी फ्रैक्चर है. रीढ़ की हड्डी में भी काफी चोट लगी है. इसी कारण इन के लिवर और लंग्स पर बुरा असर पड़ा है. रीढ़ की हड्डी में चोट आने से हमें लकवा का भी संदेह है. पर इन का ब्रेन ठीक काम कर रहा है. उम्मीद है इन्हें जल्दी होश आ जाएगा.’’

प्रेमा के पापा ने पूछा, ‘‘इस के ठीक होने की उम्मीद तो है? प्रेमा कब तक ठीक हो जाएगी?’’

‘‘अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.

इन की जान को कोई खतरा तो नहीं दिखा रहा है, पर चलनेफिरने लायक होने में इन्हें महीनों लग सकते हैं. हमें शक है कि इन के नीचे के अंग लकवाग्रस्त हों, इन्हें होश आने दीजिए तब

लकवे का असर ठीक से पता चलेगा. आप लोग हौसला रखें.’’

अगले दिन प्रेमा ने आंखें खोलीं. सामने श्री और मातापिता को देखा. उस दिन विकास भी उस से मिलने आया था. प्रेमा के होंठ फड़फड़ाए. टूटीफूटी आवाज में बोली, ‘‘मैं अपने पैर नहीं हिला पा रही हूं.’’

प्रेमा की आंखों में आंसू थे. श्री की ओर देख कर उस ने कहा, ‘‘हम ने क्याक्या सपने देखे थे. मैनेजमैंट के बाद हम अपनी कंपनी खोलेंगे. मैं ने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा. फिर भी मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?’’

‘‘धीरज रखो,’’ श्री ने कहा.

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प्रेमा को अस्पताल के बैड पर पड़ेपड़े कुछ हफ्ते बीत गए.

कुछ दिन तक तो श्री आता रहा और उस का हालचाल पूछता रहा पर फिर धीरेधीरे उस का आना कम हो गया. उस के बरताव में अब काफी परिवर्तन आ गया था. एक तरह से बेरुखी थी. श्री के रवैए पर वह दुखी थी.

कालेज के दिनों में प्रेमा गूगल कंपनी को ‘गूगल मैप’ ऐप पर अपना सुझाव भेजती थी. गूगल ने अपने मैप पर उस के सुझाव से मैप में सुधार कर उसे बेहतर बनाया. कंपनी ने उस की प्रशंसा करते हुए एक प्रमाणपत्र और पुरस्कार दिया था. उसे गूगल कंपनी से औफर भी मिला था, पर प्रेमा ने पहले एमबीए करना चाहा था.

धीरेधीरे प्रेमा ने अपनी हालत से समझौता कर लिया था. करीब 2 महीने बीत गए. तब उस ने डाक्टर से एक दिन कहा, ‘‘डाक्टर, मैं ऐसे कब तक पड़ी रहूंगी? मैं कुछ काम करना चाहती हूं. क्या मैं अपने लैपटौप से यहीं बैड पर लेटे कुछ कर सकती हूं?’’

‘‘हां, बिलकुल कर सकती हो. नर्स को बोल कर बैड को सिर की तरफ थोड़ा ऊंचा करा कर तुम लैपटौप पर काम कर सकती हो, पर शुरू में लगातार देर तक काम नहीं करना.’’

साथ वाले दूसरे डाक्टर ने कहा, ‘‘तुम एक बहादुर लड़की हो. शायद हम तुम्हें पूरी तरह से ठीक न कर सकें, पर तुम व्हीलचेयर पर चल सकती हो.’’

‘‘ओके, थैंक्स डाक्टर.’’

प्रेमा ने फिर से गूगल के लिए स्वेच्छा से काम करना शुरू किया. गूगल भी उस के संपर्क में रहा. उस के काम से कंपनी काफी खुश थी. उस से यह भी कहा गया कि वह अपने स्वास्थ्य और अपनी क्षमता के अनुसार जितनी देर चाहे बैड से काम कर सकती है.

इस बीच और 2 महीने बीत गए. इस दौरान श्री एक बार भी उस से मिलने न आया. उस दिन प्रेमा अस्पताल से डिस्चार्ज होने वाली थी जिस की सूचना उस ने श्री को दे दी थी. वह अपने पापा के साथ आया था.

उस के पापा ने कहा ‘‘प्रेमा, हमें तुम से पूरी सहानुभूति है पर जैसा कि डाक्टर ने बताया है अब आजीवन तुम्हें व्हीलचेयर पर रहना होगा. और तुम्हारी चोटों के चलते मूत्र पर से तुम्हारा नियंत्रण जाता रहा है. आजीवन पेशाब का थैला तुम्हारे साथ चलेगा… तुम अब मां बनने योग्य भी नहीं रही.’’

प्रेमा के पिता भी वहीं थे. अभी तक श्री ने खुद कुछ भी नहीं कहा था. प्रेमा और उस के पिता उन के कहने का आशय समझ चुके थे. प्रेमा के पिता ने कहा, ‘‘ये सारी बातें मुझे और प्रेमा को पता हैं. यह मेरी संतान है. चाहे जैसी भी हो, जिस रूप में हो मेरी प्यारी बनी रहेगी. वैसे भी प्रेमा बहादुर बेटी है. अब आप बेझिझक अपनी बात कह सकते हैं.’’

श्री के पिता ने कहा, ‘‘आई एम सौरी. यकीनन आप को दुख तो होगा, पर हमें यह सगाई तोड़नी ही होगी. श्री मेरा इकलौता बेटा है.’’

यह सुन कर प्रेमा को बहुत दुख हुआ.

पर उसे उन की बात अप्रत्याशित नहीं लगी थी. खुद को संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘अंकल, आप ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं स्वयं श्री को आजाद कर देना चाहती थी. मुझे खुशी होगी श्री को अच्छा जीवनसाथी मिले और दोनों सदा खुश रहें.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद श्री की तरफ देख कर बोली, ‘‘मुबारक श्री. बैस्ट औफ लक.’’

श्री ने खुद तो कुछ नहीं कहा पर उस के पिता ने थैंक्स कह कर श्री से कहा, ‘‘अब

चलो श्रीराम.’’

वे लोग चले गए. प्रेमा ने पिता की आंखों में आंसू देख कर कहा, ‘‘पापा, आप ने सदा मेरा हौसला बढ़ाया है. प्लीज, मुझे कमजोर न करें.’’

उन्होंने आंखें पोंछ कर कहा, ‘‘मेरा बहादुर बेटा, दुख की घड़ी में ही अपनों की पहचान होती है. एक तरह से अच्छा ही हुआ जो यह सगाई

टूट गई.’’

प्रेमा अपने मातापिता के साथ पटना आ

गई. कुछ दिनों के बाद श्री की शादी हो गई.

प्रेमा ने अपनी तरफ से गुलदस्ते के साथ बधाई संदेश भेजा.

प्रेमा को अब बैंक के लोन की किश्तें देनी थीं. वह गूगल के लिए घर से ही कुछ काम करती थी. गूगल ने उस का सारा लोन एक किश्त में ही चुका दिया. फिलहाल प्रेमा प्रतिदिन 2-3 घंटे घर से काम करती थी. वह गूगल के भिन्न ऐप्स और टूल्स में सुधार के लिए अपने टिप्स और सुझाव देती और साथ में उन के प्रोडक्ट्स के लिए मार्केट सर्वे करती थी. बाद में उस ने गूगल कार के निर्माण में भी अपना योगदान दिया.

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इस बीच विकास एक प्राइवेट कार कंपनी जौइन कर चुका था. वह कंपनी की डिजाइन यूनिट में था. कार के पुरजे आदि की समीक्षा करता और समयानुसार उन में सुधार लाने का सुझाव देता था. करीब 2 साल बाद वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया. किसी मशीन का निरीक्षण करते समय उस का दायां हाथ मशीन में फंस गया और फिर हाथ काटना पड़ा. वह फैक्टरी में काम करने लायक नहीं रहा. कंपनी ने समुचित मुआवजा दे कर उस की छुट्टी कर दी.

विकास ने हिम्मत नहीं हारी. 1 साल के अंदर ही उस ने बाएं हाथ से लैपटौप पर डिजाइन का काम घर बैठे शुरू कर दिया. उस ने दिव्यांग लोगों के लिए एक विशेष व्हीलचेयर डिजाइन की. यह चेयर आम व्हीलचेयर्स की तुलना में काफी सुविधाजनक थी और बैटरी से चलती थी. इस के सहारे दिव्यांग आसानी से कार में चेयर के साथ प्रवेश कर सकते और निकल सकते थे. इस डिजाइन को उस ने अपनी पुरानी कंपनी को भेजा. उस कंपनी ने भी अपनी कार में कुछ परिवर्तन कर इसे दिव्यांगों के योग्य बनाया.

एक दिन कंपनी ने विकास को डैमो के लिए आमंत्रित किया था. उस दिन विकास कंपनी के दफ्तर पहुंचा. डैमो के दौरान ही प्रेमा की भी वीडियो कौन्फ्रैंस थी. विकास ने प्रेमा को एक अरसे के बाद देखा. दोनों ने आपस में बातें की. कंपनी ने दोनों के योगदान की प्रशंसा की. इस के कुछ ही दिनों के बाद विकास प्रेमा से मिलने उस के घर गया.

विकास प्रेमा के मातापिता के साथ बैठा था. करीब 10 मिनट के बाद प्रेमा भी व्हीलचेयर पर वहां आई. वह उठ कर प्रेमा के समीप आया और बोला, ‘‘शाबाश प्रेमा, तुम सचमुच एक जांबाज लड़की हो. इतनी विषम परिस्थितियों से निकल कर तुम ने अपनी अलग पहचान बनाई है.’’

‘‘थैंक्स विकास. तुम कैसे हो? मुझे तुम्हारे ऐक्सीडैंट की जानकारी नहीं थी. ये सब कैसे हुआ?’’ प्रेमा बोली.

‘‘तुम्हारे ऐक्सीडैंट के मुकाबले मेरा ऐक्सीडैंट तो कुछ भी नहीं. तुम तो मौत के मुंह से निकल कर आई हो और तुम ने संघर्ष करते हुए एक नया मुकाम पाया है.’’

दोनों में कुछ देर अपनेअपने काम के बारे में और कुछ निजी बातें हुईं. इस के बाद से विकास अकसर प्रेमा से मिलने आने लगा. वह अब पहले की अपेक्षा ज्यादा फ्रैंक हो गया था.

एक दिन विकास प्रेमा के घर आया. वह उस के मातापिता के साथ बैठा था. प्रेमा के पिता ने कहा, ‘‘वैसे तो प्रेमा बहुत बोल्ड और आत्मनिर्भर लड़की है. जब तक हम लोग जिंदा

हैं उसे कोई दिक्कत नहीं होने देंगे पर हम

लोगों के बाद उस का क्या होगा, सोच कर डर लगता है.’’

तब तक प्रेमा आ चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘अभी से इतनी दूर की सोच कर चिंता करने या डरने की कोई बात नहीं है. आप ने मुझ में इतनी हिम्मत भरी है कि मैं अकेले भी रह लूंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, अकेलापन अपनेआप में एक खतरनाक बीमारी है. यह अभी तुझे समझ में

नहीं आएगा.’’

‘‘अंकल, आप चिंता न करें. मैं भी

आता रहूंगा.’’

‘‘हां बेटा, आते रहना.’’

विकास का सोया प्यार फिर से जगने लगा था. जो बात वह कालेज के

दिनों में प्रेमा से नहीं कह सका था वह उस की जबान तक आ कर थम गईर् थी. अपनी अपंगता और स्वभाव के चलते अभी तक कुछ कह नहीं सका था. प्रेमा की प्रतिक्रिया का भी उसे अंदाजा नहीं था.

एक दिन अचानक प्रेमा के पिता ने

विकास से पूछ लिया, ‘‘बेटे, अब तो तुम

दोनों अच्छे दोस्त हो, एकदूसरे को भलीभांति समझने लगे हो. क्यों नहीं दोनों जीवनसाथी बन जाते हो?’’

‘‘अंकल, सच कहता हूं. आप ने मेरे मन की बात कह दी. मैं बहुत दिनों से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.’’

तभी प्रेमा के अप्रत्याशित सवाल से सभी उस की तरफ देखने लगे. उस ने कहा, ‘‘कहीं आप दया या सहानुभूति के नाते तो ये सब नहीं कर रहे हैं?’’

‘‘दया का पात्र तो मैं हूं प्रेमा. मेरा दायां

हाथ नहीं है. मैं ने सोचा कि तुम्हारा साथ मिलने से मुझे अपना दाहिना हाथ मिल जाएगा,’’

विकास बोला.

प्रेमा सीरियस थी. उस ने कुछ देर बाद कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि न तो मैं तुम्हें पत्नी सुख दे सकती हूं और न ही मैं कभी मां बन सकती हूं.’’

‘‘इस के अलावा भी तो अन्य सुख और खुशी की बातें हैं जो मैं तुम में देखता हूं. तुम मेरी अर्धांगिनी होगी और मेरी बैटर हाफ. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं प्रेमा.’’

‘‘पर संतान सुख से वंचित रहोगे.’’

‘‘गलत. हमारे देश में हजारों बच्चे अनाथ हैं, जिन के मातापिता नहीं है. हम अपनी मरजी से बच्चा गोद लेंगे. वही हमारी संतान होगी…’’

प्रेमा के पिता ने बीच ही में कहा, ‘‘हां, तुम लोग एक लड़का और एक लड़की 2 बच्चों

को गोद ले सकते हो. बेटा और बेटी दोनों का सुख मिलेगा.’’

‘‘नहीं पापा हम 2 बेटियों को ही गोद लेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ विकास ने पूछा.

‘‘लड़कियां अभी भी समाज में कमजोर समझी जाती हैं. हम उन्हें पालपोस कर इतना सशक्त बनाएंगे कि समाज को उन पर गर्व होगा.’’

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कुछ दिनों के बाद प्रेमा और विकास विवाह बंधन में बंध गए. उसी रात प्रेमा ने विकास को कालेज के फेयरवैल के दिन की

याद दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें याद है तुम ने बोर्ड पर क्या लिखा था? हम थे राही प्यार के… इस का क्या मतलब था? शायद कोईर् भी नहीं समझ सका था.’’

‘‘मतलब तो साफ था. इशारा तुम्हारी तरफ था. अपने पास उस समय तुम नहीं थीं, पर आज से तो हम भी राही प्यार के हो गए.’’

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