15 अगस्त स्पेशल: छुट्टी- बलवंत सिंह ने क्या कहा था

पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों  यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है.  हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी

पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे  कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है  अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.

बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के

3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा

15 अगस्त स्पेशल: जवाबी हमला- क्या है सेना की असल भूमिका

लाइन औफ कंट्रोल के पास राजपूताना राइफल का हैडक्वार्टर. रैजिमैंट के सारे अफसर मीटिंगरूम में  थे. कमांडिंग अफसर कर्नल अमरीक सिंह समेत सभी के चेहरों पर आक्रोश और गुस्सा था. कुछ देर कर्नल साहब चुप रहे, फिर बोले, स्वर में अत्यंत तीखापन था, ‘‘आप सब जानते हैं, दुश्मन ने हमारे 2 जवानों के साथ क्या किया. एक का गला काट दिया, दूसरे का गला काट कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘हां साहबजी, इस का जवाब दिया जाना चाहिए,’’ सूबेदार मेजर सुमेर सिंह गुस्से और आक्रोश के कारण आगे और कुछ बोल नहीं पाए.

‘‘हां, सूबेदार मेजर साहब, जवाब दिया जाना चाहिए, जवाब देना होगा. दुश्मनदेश को प्यार और शब्दों की भाषा समझ नहीं आती है. जो वह कर सकता है, उसे हम और भी अच्छे ढंग से कर सकते हैं. जान का बदला जान और सिर का बदला सिर,’’ सैकंड इन कमांड लैफ्टिनैंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा.

‘‘हां सर, जान का बदला जान, सिर का बदला सिर. दुश्मन शायद यही भाषा समझता है. कैसी हैरानी है, सर, एक आतंकवादी मारा जाता है तो सारे मानवाधिकार वाले, एनजीओ और सरकार तक सेना के खिलाफ बोलने लगते हैं. जवानों के गले काटे जा रहे हैं, वे शहीद हो रहे हैं. कोई मानवाधिकार वाला नहीं बोलता.

‘‘पत्थरबाज हमारे जवानों को थप्पड़ मारते हैं. हाथ में राइफल और गोलियां होते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उन को कुछ न करने का आदेश होता है. उन को आत्मरक्षा में भी गोली चलाने का हुक्म नहीं होता. क्यों? तब ये मानवाधिकार वाले कहां मर जाते हैं? कहां मर जाते हैं एनजीओ वाले और सरकार? और एक अफसर किसी पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर 10 सिविलियन को बचा ले जाता है तो उस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘बस सर, हमें जवाब देना है. हमें आदेश चाहिए.’’

‘‘हां, साहबजी, अंजाम चाहे जो भी हो, हमें जवाब देना होगा,’’ तकरीबन सभी ने एकसाथ कहा.

‘‘ठीक है, हम जवाब जरूर देंगे, चाहे इस की गूंज हमें दिल्ली और इसलामाबाद तक सुनाई दे. पर, हमारी सेना ऐसी अमानवीयता के लिए मशहूर नहीं है. हमारी सेना अनुशासनप्रियता और आदेशों पर कार्यवाही के लिए विश्वभर में जानी जाती है. अपनी जानों की बाजी लगा कर भी हम ने सेना की इस परंपरा का पालन किया है, परंतु दुश्मन सेना इसे हमारी कमजोरी समझे, यह हमें बरदाश्त नहीं है. इस के लिए हमें उन के छोटे हमले का इंतजार करना होगा. तभी हमें उस का जवाब देना है और ऐसा समय बहुत जल्दी आएगा क्योंकि वह हमेशा ऐसा ही करता रहा है,’’ कर्नल साहब ने सब के चेहरों को बड़े गौर से देखा, फिर आगे कहा, ‘‘योजना इस प्रकार रहेगी, हमारी 2 प्लाटूनें जाएंगी. भयानक बर्फबारी की रात में चुपचाप जाएंगी और कार्यवाही को अंजाम देंगी. कार्यवाही इतनी चुपचाप और जबरदस्त होनी चाहिए कि दुश्मन को कुछ भी सोचने का मौका न मिले. उन्होंने हमारे 2 जवानों का गला काटा है, हम उन के 20 जवानों का गला काट कर आएंगे. एक जवान के बदले 10 जवानों का गला. ध्यान रहे, अपनी किसी भी कैजुअलिटी को वहां छोड़ कर नहीं आएंगे. अटैक सुबह मुंहअंधेरे होगा. मैं खुद लीड करूंगा.’’

‘‘नहीं सर, लीड मैं करूंगा, कार्यवाही आप की योजनानुसार होगी,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा.

कर्नल साहब ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘ठीक है, तैयारी शुरू करो. मैं ब्रिगेड कमांडर साहब से मिल कर आता हूं.’’ सभी चले गए.

थोड़ी देर बाद कर्नल साहब ब्रिगेडियर सतनाम सिंह साहब के सामने थे. वे सिख रैजिमैंट से हैं. उन की बहादुरी का एक लंबा इतिहास है. वे धीरगंभीर थे हमेशा की तरह. उन्होंने कर्नल साहब को बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर वे गहरी नजरों से देखते रहे, फिर कहा, ‘‘मुझे दुख है…’’

‘‘हां सर, दुख तो मुझे भी है पर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं जवानों के आक्रोश और गुस्से को कैसे सहन करूं. मैं उन 2 जवानों के मांबाप को, उन की पत्नी और बच्चों को क्या जवाब दूं जो पाकिस्तान की दरिंदगी का शिकार हुए हैं. वे अपने बेटे, पति और बाप के दर्शन तो करेंगे पर बिना सिर के. वे जीवनभर इसे भूल नहीं पाएंगे. जीवनभर इसी गम में डूबे रहेंगे और जब वे अपनी दुखी नजरों से मुझे देखेंगे तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगा. मैं उन को क्या जवाब दूंगा, मैं यही समझ नहीं पा रहा हूं. वे मुझे कायर ही समझेंगे.’’

‘‘कर्नल अमरीक सिंह, संभालो अपनेआप को. हमें जवाब देना होगा. हमारी ब्रिगेड और तुम्हारी रैजिमैंट उन की कुरबानी को वैस्ट नहीं होने देगी. दुश्मन को उन की इस कायरतापूर्ण कार्यवाही का जवाब देना है, उन के परिवारों को जवाब अपनेआप मिल जाएगा. जाओ, दुश्मन को ऐसा जवाब दो कि वह फिर ऐसा करने का दुस्साहस न कर सके. मुझ से जो मदद चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘राइट सर, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मैं जानता था, आप ऐसा ही कहेंगे.’’ कर्नल साहब अपने ब्रिगेड कमांडर साहब की सहमति पा कर जोश से भर उठे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे केवल आप की सहमति और आदेश चाहिए था, शेष मेरी रैजिमैंट के जवान करेंगे.’’ फिर उन्होंने दुश्मन पर होने वाली सारी कार्यवाही की योजना बताई. सब सुन कर कमांडर साहब ने कहा, ‘‘ध्यान रहे, कैजुअलिटी कम से कम हो. अगर होती है तो वहां कोई छूटनी नहीं चाहिए.’’

‘‘यस सर. पर सर, गुत्थमगुत्था की लड़ाई में कैजुअलिटी की कोई गारंटी नहीं होती. हां, यह गारंटी अवश्य है कैजुअलिटी वहां नहीं छूटेगी.’’

‘‘ओके फाइन, गो अहैड. गिव मी रिपोर्ट आफ्टर कंपलीशन. बेस्ट औफ लक कर्नल.’’

‘‘थैक्स सर.’’ कर्नल साहब थैंक्स कह कर उन के कमरे से बाहर आ गए. और उसी रात राजपूताना राइफल को अवसर मिला. दुश्मन की ओर से गोली आई और कर्नल अमरीक सिंह के जवानों ने तुरंत कार्यवाही की. दूसरे रोज कर्नल साहब ने अपने कमांडर को रिपोर्ट दी, ‘‘सर, टास्क कंपलीटिड. नो कैजुअलिटी. सर, दुश्मन के कम से कम 20 जवानों के सिर उसी प्रकार काट दिए गए थे जिस प्रकार उन्होंने हमारे 2 जवानों के काटे थे. हां, हम उन के सिरों को अपने साथ ले कर नहीं आए जैसे उन्होंने किया था. हम लड़ाई में भी अमानवीयता की हद पार नहीं करते.’’

‘‘गुड जौब कर्नल, भरतीय सेना और पाकिस्तान की सेना में यही अंतर है कि हम दुश्मनी भी मानवता के साथ निभाते हैं. इस का रिऐक्शन हमें बहुत जल्दी सुनने को मिलेगा, न केवल राजनीतिक स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी. शायद कुछ आर्मी कमांडर भी यह कह कर इस का विरोध करें कि पाकिस्तान और हम में क्या अंतर है. पर चिंता मत करो, हमें यह मानना ही नहीं है कि यह हम ने किया है. जैसे पाकिस्तान नहीं मानता. उन्हीं की बात हम उन के मुंह पर मारेंगे कि यह आप के अंदर की लड़ाई है. आप के किसी टैररिस्ट गु्रप का काम है, हमारा नहीं. ध्यान रहे, हमें इसी बात पर कायम रहना है.’’

‘‘यस सर. मैं आप की बात समझ गया हूं, सर. ऐसा ही होगा,’’ कर्नल साहब ने जवाब दिया.

दूसरे रोज बिग्रेड कमांडर साहब ने फोन कर के बताया, ‘‘वही हुआ, जो मैं ने कल कहा था. मुझे, आप को और डिव कमांडर को कमांड हैक्वार्टर में बुलाया गया है. हम वहां कमांडरों का मूड देख कर बात करेंगे.’’

‘‘राइट सर. हमें कब चलना होगा?’’

‘‘अब से 15 मिनट बाद. हैलिकौप्टर तैयार है, आप आ जाएं.’’

‘‘मैं आ रहा हूं, सर,’’ कर्नल साहब ने जवाब में कहा.

जब हम हैलिकौप्टर में बैठ रहे थे तो हमें सूचना मिली कि हमें जीओसी, जनरल औफिसर कमांडिंग लैफ्टिनैंट जनरल साहब के साथ दिल्ली सेनामुख्यालय में बुलाया गया है. हम ने एकदूसरे की ओर देखा. आंखों ही आंखों में अपनी बात पर दृढ़ रहने की दृढ़ता व्यक्त की.

कुछ समय बाद हम कमांड हैडक्वार्टर में थे. सूचना देने पर लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने हमें तुरंत अंदर बुलाया. वहां डीएमओ, डायरैक्टर मिलिटरी औपरेशन भी मौजूद थे. हमें देखते ही लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने कहा, ‘‘बिग्रेडियर साहब, गुड जौब. कर्नल साहब,

वैरी गुड.’’

हम दोनों भौचक्के रह गए. चाहे यह औपरेशन टौप सीके्रट था. किसी को हवा भी नहीं लगने दी गई थी तो भी कमांड हैडक्वार्टर में बैठे टौप औफिसर को पता चल गया था. यह मिलिटरी इंटैलिजैंस का कमाल था या जीओसी साहब और डीएमओ साहब का केवल अनुमान मात्र था, हम इसे बिलकुल समझ नहीं पाए. मन के भीतर यह शंका भी कुलबुला रही थी कि कहीं हमें बहकाने के लिए कोई जाल तो नहीं बुना जा रहा. हमें चुप देख कर जीओसी साहब ने आगे कहा, ‘‘चाहे इस अटैक के लिए आप दोनों इनकार करेंगे. हमें इनकार ही करना है. हमें किसी स्तर पर इस अटैक को मानना नहीं है पर मैं जानता हूं जिस सफाई से इस अटैक को अंजाम दिया गया है, वह हमारे ही बहादुर जवान कर सकते हैं. क्यों?’’

जीओसी साहब ने जब हमारी आंखों में आंखें डाल कर ‘क्यों,’ कहा तो हम उन की आंखों की निर्मलता को समझ गए.

‘‘जवानों के आक्रोश, गुस्से और मोरल सपोर्ट के लिए यह अटैक आवश्यक था, सर. दुश्मन हमें कमजोर न समझे, इसलिए भी. चाहे इस का अंजाम कुछ भी होता,’’ कर्नल अमरीक सिंह ने कहा.

‘‘और मैं जानता हूं, आप बिग्रेडियर सतनाम सिंह की मरजी के बिना इस अटैक को अंजाम नहीं दे सकते थे,’’ डीएमओ साहब ने कहा.

‘‘यस, सर.’’

‘‘गुड.’’

जीओसी साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘हमें सेनामुख्यालय में आर्मी चीफ ने बुलाया है. आप के डिव कमांडर भी आते होंगे. हम फर्स्ट लाइट में फ्लाई करेंगे. मैं नहीं जानता आर्मी चीफ इस के प्रति क्या देंगे. बधाई भी दे सकते हैं और नहीं भी. वे स्वयं एक मार्शल कौम से हैं, इस प्रकार की दरिंदगी बरदाश्त नहीं कर सकते. इसलिए आशा बधाई की है. आप सब जाएं. सुबह की तैयारी करें. डीएमओ साहब, हमारी मूवमैंट टौप सीक्रेट होनी चाहिए.’’

‘‘राइट सर,’’ कह कर हम बाहर आ गए. सुबह जब हैलिकौप्टर ने उड़ान भरी तो हम सब के चेहरों पर किसी प्रकार का तनाव नहीं था. हम सब बड़े हलके मूड में बातें कर रहे थे. कोई 2 घंटे बाद हमारे हैलिकौप्टर ने दिल्ली हवाई अड्डे पर लैंड किया. 2 कारों में सेनामुख्यालय पहुंचे. लंच का समय था. पहले हम से लंच करने के लिए कहा गया. बताया गया 3 बजे आर्मी चीफ के साथ हमारी मुलाकात तय है. 3 बजे हम आर्मी चीफ के समक्ष बैठे थे. इस मीटिंग में डीजीएमओ, डायरैक्टर जनरल मिलटरी औपरेशन उपस्थित थे.

चीफ साहब ने सभी के चेहरों को गहरी नजरों से देखा. शायद वे हमारे सपाट चेहरों से कुछ भी अनुमान नहीं लगा पाए. फिर कहा, ‘‘आप सब जानते हैं, मैं ने आप सब को यहां क्यों बुलाया है. आज सारे अखबार, टीवी चैनल, सरकार, सरहद पार की सरकार उन सिरकटे 20 पाकिस्तानी जवानों की बातें कर रहे हैं जो रात की कार्यवाही में मारे गए हैं.

‘‘मैं जानता हूं, कोई इसे माने या न माने पर यह कार्य हमारे जवानों का ही है. पर, हम इसे कभी नहीं मानेंगे कि यह हम ने किया है. मैं उस रैजिमैंट के कमांडिंग अफसर और जवानों को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने यह कार्यवाही इतनी सफाई से की.

‘‘मैं उस बिग्रेड कमांडर साहब को भी बधाई देना चाहता हूं जिस ने इस बहादुरीपूर्ण कार्य के लिए आदेश दिया. हम पाकिस्तान को यह संदेश दे पाने में समर्थ हुए हैं कि आप अगर हमारे एक जवान का गला काटेंगे तो हम आप के 10 जवानों का गला काटेंगे. राजनीतिक स्तर पर सरकारें आपस में क्या करती हैं, हमें इस से कोई मतलब नहीं है. हम सरहदों पर उन्हीं के आदेशों का पालन करते हैं, करते रहेंगे अर्थात हमारी सेना एलओसी पार नहीं करेगी, लेकिन चुपचाप जवाबी हमला करती रहेगी, जैसे कल किया गया है.

‘‘आप सब को मेरा यही आदेश है यदि वे एक मारते हैं तो आप 10 मारेंगे,’’ जनरल साहब थोड़ी देर के लिए रुके, फिर कहा, ‘‘डीजीएमओ, मैं आप को खा जाऊंगा यदि इस कमरे की मीटिंग की कोई भी बात बाहर गई.’’

‘‘राइट सर. मैं समझता हूं, सर.’’

‘‘गुड. आप सब अपनी ड्यूटी पर जाएं. मैं आज रात को प्रैस कौन्फ्रैंस करने जा रहा हूं. मैं जानता हूं, उस में मुझे क्या कहना है. आप सब भी जान जाएंगे.’’

रात को हम सब टीवी के सामने बैठ कर आर्मी चीफ की प्रैस कौन्फैं्रस सुन और देख रहे थे.

‘‘सर, कल रात जो सरहद पार 20 पाकिस्तानी जवानों के सिर कलम किए गए, यह हमारी सेना की कार्यवाही तो नहीं?’’

‘‘यह प्रश्न सरहद पार की सरकार और सेना से पूछा जाना चाहिए. मैं आप को बता दूं, हमारी सेना बिना आदेश के ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करती. ऐसा नहीं कर सकती.’’

‘‘सर, यह आप से इसलिए पूछा जा रहा है कि 2 दिनों पहले 2 जवानों के सिर कलम कर दिए गए थे. सो, इस कार्यवाही को हमारी सेना का जवाबी हमला समझा जा रहा है. क्या यह सही नहीं है?’’

‘‘देखिए, हमारी सेना बहुत ही अनुशासनप्रिय है. बिना आदेश के वह किसी भी कार्यवाही को अंजाम नहीं दे सकती, न ही देगी.’’

‘‘क्या इसे सेना की कमजोरी समझी जाए कि अपने जवानों को मरते देख कर भी जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती या नहीं करती?’’

‘‘भारतीय सेना क्या कर सकती है, यह सारी दुनिया जानती है. वर्ष 1965, 1971 और कारगिल की लड़ाई में आप सब भी जान चुके हैं. हम इस का जवाब जरूर देंगे परंतु अपने समय, स्थान निश्चित कर के.’’

‘‘क्या हमारी सरकार ऐसी किसी कार्यवाही में अड़चन नहीं डालती? क्या अपनेआप सेना तुरंत जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती?’’

‘‘अपने पहले प्रश्न का उत्तर आप को सरकार से पूछना चाहिए. दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए मैं आप को बता दूं, सेना को किसी भी कार्यवाही के लिए योजना बनानी पड़ती है, उस के लिए समय चाहिए होता है. आप को बहुत जल्दी इस का जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सर, क्या ये गीदड़ भभकियां नहीं हैं. जैसे पहले होता रहा है, हम ये करेंगे, वो करेंगे, बहुत शोर मचता है पर होता कुछ नहीं. क्या पाकिस्तान हमारी इस कमजोरी को जान नहीं गया है. तभी वह कभी आतंकवादी भेजता है, कभी 26/11 करवाता है?’’

प्रश्न बड़े तीखे थे. टीवी देख रहे कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, देखें जनरल साहब इस का क्या उत्तर देते हैं. उन्होंने बड़ी समझदारी से उत्तर दिए.

‘‘मुझे नहीं पता ये गीदड़ भभकियां हैं या नहीं, यह आप सरकार से पूछें. मैं आप को बता दूं, आज तक भारतीय सेना के किसी जनरल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के ऐसी बातें नहीं कहीं. केवल आप प्रतीक्षा करें और देखें. हम पाकिस्तान को जवाब जरूर देंगे.’’

कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, जनरल साहब ने बहुत समझदारी से सारी बातें सरकार पर डाल दी थीं पर अभी भी अनेक प्रश्न हैं जिन के उत्तर मिलने बाकी हैं. क्यों हम पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी माकूल कार्यवाही नहीं कर पाए कि वह ऐसी कार्यवाहियां करने की हिम्मत न करे? क्यों हम आज तक अपने देश में हो रही घुसपैठ को रोक नहीं पाए? क्यों पाकिस्तान 26/11 जैसे हमले करने में सफल हो रहा है?

हम कहां कमजोर पड़ रहे हैं? क्यों हम इन कमजोरियों को दूर नहीं कर पाते? इस के लिए सेना कहां दोषी है? और इस दोष को क्यों सेना दूर नहीं कर पाती? क्या इस में सरकार बाधक है? अगर है, तो सेना इस का विरोध क्यों नहीं करती? और अगर करती है तो क्यों इस का आज तक हल नहीं मिला? मैं जानता हूं, इन प्रश्नों के उत्तर शायद किसी सैनिक अधिकारी और जवान के पास नहीं हैं. अगर हैं, तो कोई क्यों इसे खुल कर नहीं कहना चाहता. क्यों…आखिर क्यों?

15 अगस्त स्पेशल: फैमिली के लिए बनाएं पनीर कटलेट

कटलेट का नाम लेते हा मुंह में पानी आ जाता है. आपने आलू का कटलेट तो खाया ही होगा, लेकिन इस बार मानसून और फेस्टिव सीजन में खाइए पनीर का कटलेट. इस रेसिपी के साथ लीजिए मानसून का मजा.

सामग्री

1. 300 ग्राम पिसा हुआ पनीर

2. तीन ब्रेड स्‍लाइस

3. डेढ चम्मच अदरक-लहसुन पेस्‍ट

4. दो-तीन हरी मिर्च

5. एक कटी हुई प्‍याज

6. एक चम्मच हल्‍दी पाउडर

7. डेढ़ चम्‍मच चाट मसाला

8. एक चम्‍मच मिर्च पाउडर

9. तीन चम्‍मच पुदीना पत्‍ती

10. एक कप ब्रेड का चूरा

11. दो चम्मच मैदा

12. स्‍वादानुसार नमक

13. तेल- तलने के लिए

14. पानी आवश्यकतानुसार

ऐसे बनाएं

सबसे पहले एक बाउल में थोड़े से मैदे में पानी डाल कर रख लें, साथ ही दूसरे ओर एक प्लेट में ब्रेड का चूरा रख लें. अब बनातें है कटलेट.

– सबसे पहले ब्रेड के स्‍लाइस को एक मिनट के लिए पानी में डालकर निकाल लें और एक बाउल में पनीर डालें और उसमें गीली ब्रेड, अदरक-लहसुन पेस्‍ट, प्‍याज, हरी मिर्च, हल्‍दी, चाट मसाला, नमक और पुदीने की पत्‍ती को डालकर अच्छी तरह मिलाए.

– जब यह मिश्रण मिल जाए तब इसकी कटलेट के आकार का शेप दीजिए. इसके बाद पहले से मिले रखें मैदा में इसे डिप करा कर इसे ब्रेड का चूरा में लपेटिए.

– अब एक कढ़ाई में तेल गर्म करें. गर्म हो जाने के बाद कटलेट को डालकर डीप फ्राई करें. फ्राई होने के बाद इसे निकाल लें. अब इन्हें आप गरमा-गरम सर्व करें.

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