World Ivf Day 2020: जानें क्या है इनफर्टिलिटी के कारण

मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है. लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है. दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है. इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है. इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे. परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं.

विश्व  आई  वी एफ दिवस  के अवसर पर, हम महिलाओं की इनफर्टिलिटी से संबंधित गलत धारणाओं को खत्म करने का उद्देश्य रखते हैं. असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) के क्षेत्र में हुई प्रगति के साथ, इनफर्टिलिटी से संबंधित कई समस्याओं का इलाज संभव है. इस प्रकार इलाज की मदद से अब कई महिलाएं संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं.

महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारण

  • पेल्विक पैथलॉजी (ओवरियन, ट्यूबल, गर्भाशय), यूट्रीन फाइब्रॉयड, एडिनोमायोसिस, कंजेनिटल यूट्रीन एनमेलीज़, यूट्रीन अढ़ेशन, यूट्रीन पॉलिप्स, क्रोनिक एंडोमेट्रैटिस, ट्यूबल ब्लॉकेज, ओव्युलेट्री डिस्फंक्शन, पीसीओएस आदि बीमारयां.
  • अधिक उम्र होने पर महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता खराब होने लगती है.
  • कामकाजी महिलाएं गर्भधारण को टालती रहती हैं लेकिन लोग उसे बांझ समझने लगते हैं.
  • जीवनशैली बदलाव जैसे कि धूम्रपान, शराब, तंबाकू का सेवन, शारीरिक गतिविधियों में कमी, नींद की कमी, खराब डाइट, मोटापा और तनाव आदि इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देते हैं.
  • प्रदूषण और व्यावसायिक खतरा
  • आनुवांशिक विकार- क्रोमोसोमल असामान्यताएं, अपरिचित इनफर्टिलिटी, पुरुषों में समस्या, इनफर्टिलिटी का पारिवारिक इतिहास, असामान्य समस्याएं आदि.

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एआरटी- इनफर्टिलिटी वाली कई महिलाओं के लिए वरदान

एआरटी तकनीक आईवीएफ यानी इन विटरो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अण्डों व शुक्राणुओं को लैब में फर्टिलाइज किया जाता है. लैब में महिला के स्वस्थ्य अंडे को उसके पति के स्पर्म के साथ मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है, जिसे तैयार होने में कम से कम 3-4 दिनों का समय लगता है. भ्रूण तैयार होने के बाद उसे महिला के गर्भ में इंप्लान्ट कर दिया जाता है. कुछ ही दिनों में महिला प्रेग्नेंट हो जाती है. इस तकनीक को आईसीएसआई (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन), ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, लेज़र असिस्टेड हैचिंग, टीईएसई (टेस्टीकुलर स्पर्म एक्सट्रेक्शन) आदि के साथ पूरा किया जाता है.

आईवीएफ बंद ट्यूब को खोलने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे कमज़ोर ओवरी, पीसीओसी, पीओआई, एंडोमेट्रियोसिस, यूट्रीन फाइब्रॉयड्स, एडीनोमायोसिस, खराब सीमेन, प्रार्थमिक या माध्यमिक इनफर्टिलिटी, अपरिचित फर्टिलिटी आदि वाले लोगों को भी फायदा मिलता है.

इनफर्टिलिटी के लिए केवल महिला जिम्मेदार नहीं होती

लोगों में एक धारणा बनी हुई है कि यदि कोई कपल कंसीव नहीं कर पा रहा है तो समस्या महिला में है. जबकि असल में देखा जाए तो 40-50% मामलों में कंसीव न करने पाने का जिम्मेदार पुरुष पार्टनर होता है. अक्सर इस बात का पता तब चलता है जब जांच के बाद महिला में कोई कमी नहीं दिखती है. जब डॉक्टर पुरुष पार्टनर को टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं तो समस्या पुरुष पार्टनर में निकलती है.

जब कोई महिला पहली बार जांच के लिए जाती है तो या तो वह अकेली होती है या उसके साथ परिवार का कोई अन्य सदस्य होता है. दुर्भाग्य से पुरुष पार्टनर जांच के लिए उसके साथ नहीं जाता है. वहीं यह भी देखा गया है कि पुरुष अपने सीमेन का सैंपल चुपचाप अकेले में देने जाता है जिससे वह इस बात को अन्य लोगों से छिपा सके.

कपल को यह समझना चाहिए कि जांच के लिए उन दोनों का मौजूद होना जरूरी है विशेषकर आइवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान. आईवीएफ केवल जरूरी जांचों को महत्व देता है जिससे यह तकनीक लोगों को मंहगी न लगे और वे आसानी से इसका लाभ उठा सकें.

आवीएफ में की गई जांचे इनफर्टिलिटी के कारण की पहचान करती हैं जिसकी मदद से डॉक्टर एक उचित इलाज का चयन कर पाता है. इसके लिए ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड की मदद से ओवरी की जांच की जाती है, यूट्रीन की जांच अल्ट्रासाउंड और हिस्टीरोस्कोपी से की जाती है और सीमेन की जांच की जाती है.

इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल के आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ.सागरिका अग्रवाल.

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इलैक्ट्रौनिक डिवाइस बन रहे इन्फर्टिलिटी का कारण

शादी के 4 साल तक भी जब गुप्ता दंपती के घर किलकारियां नहीं गूंजी तो उन्होंने आईवीएफ एक्सपर्ट से सलाह लेने का निर्णय लिया. वहां चिकित्सकों द्वारा न सिर्फ प्रजनन क्षमता की जांच की गई, बल्कि उनके डेली लाइफस्टाइल को भी जाना गया. इस में सामने आया कि पुरुष पार्टनर काफी व्यस्त रहता है और नाइट शिफ्ट में काम करता है. फिर चिकित्सक द्वारा लंबी जांच के बाद पता चला कि करीब 1 साल तक नाइट शिफ्ट में काम करने के कारण उन में कई बदलाव हुए, जिस का नतीजा रहा कि उस के शुक्राणुओं की संख्या और क्वालिटी का स्तर गिर गया.

वहीं महिला पार्टनर एक विज्ञापन एजेंसी और डिजिटल मार्केटिंग कंपनी में काम करती है. जिस का ज्यादातर काम डिजिटल मीडिया से जुड़ा है. उन की जांच में पाया गया कि उस के मैलाटोनिन हारमोन का स्तर घट गया है. मैलाटोनिन नींद आने के लिए जिम्मेदार होता है. अन्य परिणामों में सामने आया कि लगातार तनाव और अनिद्रा होने के कारण शरीर की कार्यशैली प्रभावित हुई जिस से कंसीव करने में दिक्कत आई. कई शोधों से पता चला है कि दरअसल कृत्रिम रोशनी प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित करती है. शोधकर्त्ताओं के अनुसार हाई लैवल का कृत्रिम प्रकाश शाम के समय खासकर शिफ्ट बदलने के दौरान सब से ज्यादा नींद को प्रभावित करता है, जिस से शरीर का बौडी क्लौक प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में दिमाग मैलाटोनिन कम स्रावित करता है.

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आजकल कृत्रिम प्रकाश का बड़ा स्रोत इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स है. ये लाइट्स मस्तिष्क में सिगनल दे कर निर्माण होने वाले हारमोन मैलाटोनिन को अव्यवस्थित कर देती हैं. शरीर में मैलाटोनिन कम बनने के कारण बौडी क्लौक अव्यवस्थित हो जाती है और इस से खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. सुप्राचियासमैटिक न्यूक्लियस (एससीएन) दिमाग का वह हिस्सा है जो बौडी क्लौक को नियंत्रित करता है. इस का पता ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं समेत कई और शोधार्थी लगा चुके हैं. ‘जापान साइंस ऐंड टैक्नोलौजी एजेंसी’ भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिकचक्र भी प्रभावित होता है.

मैलाटोनिन का महत्त्व

‘फर्टिलिटी ऐंड स्टेरिलिटी जर्नल’ में प्रकाशित शोध के अनुसार कृत्रिम प्रकाश रात में शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर. ऐसी रोशनी से महिला दूर रहे तो फर्टिलिटी और प्रैगनैंसी के दौरान भ्रूण में बेहतर विकास के साथसाथ सकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं. जब अंधेरा होता है तब हमारे शरीर में मैलाटोनिन हारमोन में पीनियल ग्लैंड से स्वत: रिलीज होता रहता है. इसीलिए यह नींद आने में भी मददगार होता है. अंडोत्सर्ग के दौरान मैलाटोनिन अंडों को सुरक्षा देता है और उन्हें क्षतिग्रस्त होने से बचाता है. इस के अलावा यह शरीर से फ्री रैडिकल्स को भी बाहर निकालता है. ऐसी महिलाएं जो कंसीव करना चाहती हैं वे कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें और अंधेरे में ही सोएं ताकि मैलाटोनिन हारमोन का निर्माण हो सके और शरीर की बायोलौजिकल क्लौक डिस्टर्ब न हो.

आजकल मोबाइल सभी इस्तेमाल करते हैं. देर रात तक इस के इस्तेमाल से नींद प्रभावित होती है और फिर अनिद्रा की समस्या हो जाती है. इस कारण तनाव का स्तर बढ़ता है और इन्फर्टिलिटी की समस्या होती है. कृत्रिम रोशनी सब से ज्यादा मैलाटोनिन के निर्माण को प्रभावित करती है, जिस के कारण नींद में बाधा आने की दिक्कत आती है. जहां महिलाओं में मासिकधर्म नियमित न होना, प्रेग्नैंसी में बाधा आना, भ्रम की स्थिति बनना और बर्थ में दिक्कत होना जैसी समस्याएं सामने आती हैं, वहीं पुरुषों में कृत्रिम रोशनी के कारण शुक्राणुओं की क्वालिटी का स्तर गिरता है.

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गर्भवती महिलाएं भी होतीं प्रभावित

इसके अलावा इलैक्ट्रौनिक डिवाइस से निकलने वाली नीली रोशनी का प्रैगनैंट महिलाओं और उन के बच्चे पर भी बुरा असर पड़ता है. अंधेरे में कम से कम 8 घंटे की नींद भ्रूण के विकास के लिए बेहद जरूरी है. अगर भ्रूण को एक तय मात्रा में मां से मैलाटोनिन हारमोन नहीं मिलता है, तो बच्चे में कुछ रोगों जैसे एडीएचडी और औटिज्म की आशंका होती है. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि 8 घंटे की नींद और हैल्दी डाइट ली जाए, साथ ही कृत्रिम रोशनी से दूर रहा जाए खासकर रात में ताकि फर्टिलिटी को बेहतर रखा जा सके.

जब शुक्राणु हो जाए कम

शुक्राणु (10-15 मि/एमएल): विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 मि/एमएल से ज्यादा शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य है. अगर किसी दंपती में शुक्राणुओं की मात्रा 10 मि/एमएल से ज्यादा हो तो वे आईयूआई प्रक्रिया करवा करते हैं. आईयूआई प्रक्रिया में पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर एक पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ दिए जाते हैं. यह तकनीक प्राकृतिक गर्भधारण जैसी ही है.

शुक्राणु (1-5 मि/एमएल): यदि1-5 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ की अत्याधुनिक पद्धति आईसीएसआई (इक्सी) करवा सकते हैं. आईसीएसआई पद्धति में पत्नी का अंडा शरीर से बाहर निकाला जाता है. पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर लैब में इक्सी मशीन के जरीए 1 अंडे को पकड़ उस में एक शुक्राणु को इंजैक्ट किया जाता है. 2-3 दिन के अंडे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं. भ्रूण वैज्ञानिक इन में से अच्छे भ्रूण का चयन कर पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ देते हैं.

शुक्राणु (5-10 मि/एमएल): 10 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ पद्धति के लिए जा सकते हैं. आईवीएफ पद्धति में पत्नी का अंडा शरीर से बाहर निकाला जाता है, पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग करलैबमें अंडे व शुक्राणु का निषेचन किया जाता है. 2-3 दिन में अंडे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं. भ्रूण वैज्ञानिक इन में से अच्छे भ्रूण का चयन कर पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ मेंछोड़ देते हैं.

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शून्य शुक्राणु होने पुरुषों में टेस्टिक्युलर बायोप्सी (टीईएसई) की जाती है. इस में जहां स्पर्म बनते हैं, वहां से एक टुकड़ा ले कर लैब में टिशू की जांच कर उस में स्पर्म की उपस्थिति का पता लगाया जाता है. अगर उस टिशू में स्पर्म उपलब्ध होते हैं तो इक्सी प्रक्रिया के माध्यम से इन स्पर्म से महिला के अंडाणुओं को फर्टिलाइज्ड कर भ्रूण बनाया जा सकता है. इस तरह से अपने ही शुक्राणुओं से पिता बन सकते हैं. अगर टिशू में स्पर्म नहीं मिलते हैं, तो डोनर स्पर्म की सहायता से भी पिता बन सकते हैं.

डा. आरिफा आदिल

गाइनोकोलौजिस्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली

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