Mother’s Day Special: जीवन पर हावी तो नहीं बांझपन

कुछ महिलाओं में अचानक प्रैगनैंसी जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं जैसे माहवारी चक्र का बाधित होना, स्तनों में दूध बनना, कामेच्छा कम होना आदि. असल में इस का संबंध एक ऐसी स्थिति से होता है, जिसे हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया कहा जाता है. इस में खून में प्रोलैक्टिन हारमोन का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है. ऐस्ट्रोजन के प्रोडक्शन में बड़े स्तर पर हस्तक्षेप होने से माहवारी चक्र में बदलाव आने लगता है.

प्रोलैक्टिन का मुख्य काम गर्भावस्था के दौरान स्तनों को और विकसित करने, दूध पिलाने के लिए उन्हें उभारने और दूध बनाने का होता है. वैसे किसी महिला के प्रैगनैंट न होने के दौरान भी यह हारमोन कम मात्रा में खून में घुला रहता है. लेकिन प्रैगनैंसी खासतौर से बच्चे के जन्म के बाद इस का स्तर काफी बढ़ जाता है. इस स्थिति में 75% से ज्यादा महिलाएं प्रैगनैंट न होने के बावजूद दूध उत्पन्न करने लगती हैं.

पुरुषों में भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से कामवासना में कमी, नपुंसकता, लिंग में पर्याप्त तनाव न आना और स्तनों का आकार बढ़ना जैसी समस्याएं सामने आने लगती हैं. टेस्टोस्टेरौन का स्तर कम होना भी इसी स्थिति के बाद का एक परिणाम है. अगर ऐसी स्थिति में इलाज न कराया जाए, तो शुक्राणुओं की गुणवत्ता घटने लगती है और वे ज्यादा देर जीवित भी नहीं रह पाते हैं. इस के चलते उन के निर्माण में गड़बड़ी भी आने लगती है.

प्रसव या गर्भधारण करने की उम्र में महिलाओं में यह ज्यादा प्रचलित है. हालांकि इस में महिलाओं की प्रासंगिक स्थिति सामान्य ही बनी रहती है. ऐसी महिलाएं, जिन का ओवेरियन रिजर्व अच्छा हो, उन्हें भी माहवारी में अनियमितता का सामना करना पड़ सकता है और यह एक तरह से इस डिसऔर्डर के आगमन का संकेत होता है.

बांझपन का कारण

खून में प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. इस में या तो पिट्यूटरी स्टाक कंप्रैस हो जाती है या फिर डोपामाइन का स्तर घट जाता है अथवा प्रोलैक्टिनोमा (पिट्यूटरी ऐडीनोमा का एक प्रकार) का जरूरत से ज्यादा प्रोडक्शन होने लगता है, जो हाइपोथैलेमस से गोनाडोट्रोपिन को रिलीज करने वाले हरमोरन (जीएनआरएच) के स्राव को रोकता है.

गोनाडोट्रोपिन को रिलीज करने वाले हरमोन (जीएनआरएच) के स्तर में कमी आने की वजह से ल्यूटीनाइजिंग हारमोन (एलएच) और फौलिकल स्टिम्युलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्राव में भी कमी आने लगती है. परिणामस्वरूप बां झपन का सामना करना पड़ता है.

बांझपन की स्थिति

एक बार जब प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ जाता है, तो महिलाओं में माहवारी कम होने लगती है और खून में ऐस्ट्रोजन का स्तर घटने से अनियमितता के साथसाथ बां झपन की स्थिति भी पैदा होने लगती है. कुछ मामलों में माहवारी के प्रवाह में बदलाव इमेनोरिया के रूप में भी देखने को मिलता है, जिस में प्रजनन क्षमता वाली उम्र में भी माहवारी कम होने लगती है. कई बार तो प्रैगनैंट न होने या किसी मैडिकल हिस्ट्री की वजह से भी स्तनों में दूध बनाने लगता है और उन में दर्द भी महसूस होता है क्योंकि प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने और कामेच्छा की कमी होने के साथ ही योनी में सूखापन आने से स्तनों के टिशू भी चेंज होने लगते हैं.

महिलाओं के उलट पुरुषों में माहवारी जैसा कोई भरोसेमंद लक्षण नजर नहीं आने की वजह से इस के वास्तविक कारण का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है. उन में धीरेधीरे कामेच्छा की कमी आने, लिंग में पर्याप्त तनाव न आने, प्रजनन क्षमता में कमी आने और स्तनों का आकार बढ़ने जैसे लक्षण जरूर नजर आ सकते हैं. मगर कई बार ये कारक भी आसानी से नजर नहीं आते और उस की वजह से वास्तविक कारणों की पहचान नहीं हो पाती है.

महिलाओं में इस के संबंधित परिणाम

इस स्थिति में जैसे ही अंडाशय से ऐस्ट्रोजन का प्रोडक्शन प्रभावित होता है, बां झपन की संभावना बढ़ने के साथ ही ऐस्ट्रोजन की कमी के कारण बोन मिनरल डैंसिटी बीएमडी भी घटने लगती है और ओस्टियोपोरोसिस होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐस्ट्रोजन हार्ट को बीमारियों से बचाने में भी बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए इस के स्तर में असंतुलन पैदा होने से आगे चल कर हार्ट से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा भी पैदा हो जाता है. पिट्यूटरी ट्यूमर की वजह से प्रोलैक्टिन का जरूरत से ज्यादा प्रोडक्शन होने के कारण सिर में तेज दर्द और नजर कमजोर होने के साथसाथ अन्य हारमोंस के प्रोडक्शन में भी कमी आ जाती है, जिस के चलते हाइपरथायरोडिज्म हो सकता है, जो बां झपन के एक और कारण के रूप में सामने आता है.

कैसे करें डायग्नोज

इस कंडीशन को डाइग्नोज करने के लिए सब से पहले तो मरीज की मैडिकल हिस्ट्री देख कर यह पता लगाया जाता है कि कहीं उसे पहले से ही अस्पष्ट कारणों के चलते स्तनों से दूध का स्राव होने या स्तनों का आकार बढ़ने की समस्या तो नहीं रही है या फिर अनियमित माहवारी अथवा बां झपन की समस्या पहले से तो नहीं रहती है.

पुरुषों में यह पता लगाना जरूरी होता है कि उन की सैक्सुअल फंक्शनिंग कहीं पहले से तो खराब नहीं रही है और स्तनों से दूध का स्राव होने की समस्या कहीं पहले से तो नहीं है. अगर मैडिकल हिस्ट्री से हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के होने का पता चलता है, तो सब से पहले ब्लड टैस्ट के जरीए यह पता लगाया जाता है कि सीरम प्रोलैक्टिन का स्तर कितना है. इस में खाली पेट खून की जांच कराने को प्राथमिकता दी जाती है. अगर सीरम प्रोलैक्टिन का स्तर ज्यादा है, तो फिर आगे अन्य जरूरी टैस्ट करवाए जाते हैं.

आमतौर पर माहवारी न होने की स्थिति में सब से पहले प्रैगनैंसी टैस्ट कराया जाता है. इस के अलावा थायराइड हारमोन के स्तर का पता लगाने के लिए थायराइड के टैस्ट करवाए जाते हैं ताकि यह साफ हो जाए कि मरीज को हाइपरथायरोडिज्म तो नहीं है. अगर प्रोलैक्टिन का स्तर बहुत ज्यादा है, तो उस की वजह से ट्यूमर होने की आशंका भी पैदा हो जाती है. ऐसे में ब्रेन और पीयूष ग्रंथियों का एमआरआई कराने की सलाह भी दी जाती है, जिस में हाई फ्रीक्वैंसी रेडियो तरंगों के जरीए टिशू की इमेज ली जाती है और ट्यूमर के आकार का पता लगाया जाता है.

क्या इलाज संभव है

इलाज का पहला कदम उन प्रमुख कारणों का पता लगाना है, जिन के चलते यह स्थिति पैदा हुई. ये कारण शारीरिक भी हो सकते हैं. कुछ विशेष प्रकार की दवा लेने की वजह से भी ऐसा हो सकता है. इस के अलावा थायराइड या हाइपोथैलिमिक डिसऔर्डर या पिट्यूटरी ट्यूमर या फिर किसी सिस्टेमिक डिजीज की वजह से भी ऐसा हो सकता है.

एक बार जब बीमारी की वास्तविक वजह का पता चल जाता है और किसी ट्यूमर के होने की संभावना खत्म हो जाती है, तो ऐसी दवा के जरीए उपचार शुरू किया जाता है, जो शरीर में प्रोलैक्टिन के स्तर में कमी लाती है. इस से एफएसएच, एलएच और ऐस्ट्रोजन का स्तर फिर से सामान्य होने लगता है. नतीजतन प्रजनन क्षमता फिर से पहले की तरह कायम हो जाती है और माहवारी भी नियमित रूप से होने लगती है.

   -डा. तनु बत्रा

आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, जयपुर. 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें