जिंदगी के हर दौर में महिलाओं के लिए हेल्थ इंश्योरेंस है जरूरी

मैटरनिटी एक महिला के जीवन में सबसे खूबसुरत पलों में से एक होता है. हालांकि, यह अपने साथ भावनात्मक और वित्तीय जिम्मेदारी लेकर आता है. जीवन बदलने वाले इस फैसले को लेने से पहले, मैटरनिटी के साथ आने वाली जिम्मेदारियों के लिए वित्तीय रूप से तैयार होना बहुत ही जरूरी है. इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान या बाद में किसी भी मेडिकल इमरजेंसी का सामना करने के लिए एक सही हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का होना भी उतना ही जरूरी है.

अमित छाबड़ा, हेड-हेल्थ एंड ट्रेवल इंश्योरेंस, पॉलिसीबाज़ार.कॉम का कहना है, “स्वास्थ्य देखभाल की लागत तेजी से बढ़ने के साथ, अस्पताल में भर्ती होने के दौरान कवरेज मिलना बहुत ही महत्वपूर्ण है. खासतौर से उन महिलाओं के लिए जिन्हें अपने आश्रितों की देखभाल करनी होती है, उनके लिए जीवन के हर चरण में पर्याप्त कवरेज होना आवश्यक है. और जिस तरह मैटरनिटी के दौरान उनकी चिकित्सीय ज़रूरतें विकसित होती हैं, उसी तरह उनका इंश्योरेंस कवरेज भी होना चाहिए. अलग-अलग राइडर्स का उपयोग करके, महिलाएं अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को जीवन के प्रत्येक चरण के मुताबिक तैयार कर सही लाभ प्राप्त कर सकती हैं. साथ ही सभी महिलाओं को अपनी फाइनेन्शियल प्लानिंग करते समय उनकी बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए क्योंके वे गर्भावस्था से लेकर बुढ़ापे तक विभिन्न चरणों से गुजरती हैं”.

होने वाली मां: जिस समय आप अपने परिवार का आगे बढ़ाने की योजना बनाते है, एक मां बनने का सफर वहीं से शुरू हो जाती है, और इसी के साथ फाइनेन्शियल प्लानिंग भी शुरू हो जाती है. गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की परेशानी न हो इसके लिए, होने वाली मां को शुरू से ही चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है. यहीं पर मैटरनिटी बेनिफिट वाली हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी सामने आती है. इस तरह की इंश्योरेंस पॉलिसी एक निश्चित अवधि तक बच्चे के जन्म से संबंधित सभी खर्चों को कवर करती है – जिसमें गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के बाद दोनों समय का खर्च शामिल होता है। वास्तव में, अब ऐसी योजनाएं हैं जो गर्भ धारण करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए आईवीएफ लागत को भी कवर करती हैं.

आम तौर पर मैटरनिटी बेनिफिट प्राप्त करने से पहले पॉलिसी के आधार पर दो से चार साल का वेटिंग पीरियड होता है. हालांकि, अब ऐसी पॉलिसी भी उपलब्ध हैं जिन्होंने इस वेटिंग पीरियड को घटाकर एक साल कर दिया है. इसलिए, मैटरनिटी बेनिफिट के साथ हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी जल्दी ही लेनी चाहिए क्योंकि मौजूदा गर्भावस्था को मैटरनिटी बेनिफिट के तहत कवर नहीं किया जाएगा.
गर्भावस्था से पहले और बाद की देखभाल के अलावा, डिलीवरी के दौरान होने वाला खर्च बहुत ज्यादा होता है जो कुछ लाख तक हो सकता है, खासकर सर्जिकल डिलीवरी में। इस खर्च को कवर करने वाली इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदना यह सुनिश्चित करता है कि आप अपने शहर में उपलब्ध अच्छी से अच्छी मेडिकल सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। इससे न केवल नई मां के लिए बल्कि उसके बच्चे के लिए भी उचित देखभाल मिल पाएगी.

नई माताएं: गर्भावस्था के दौरान ध्यान मां के स्वास्थ्य पर, और अजन्मे बच्चे पर होता है। हालांकि, जैसे ही बच्चा पैदा होता है, दुनिया फिर बच्चे के चारों ओर घूमती है। इस अवस्था में नवजात शिशु की इम्यूनिटी क्षमता कम होती है जिसकी वजह से शिशु संक्रमण और बीमारियों के प्रति बहुत ज्यादा सेसेंटिव होता है. साथ ही उसे समय-समय पर टीका लगवाने की भी जरूरत होती है, जिसम एक बड़ा खर्चा होता है.
मैटरनिटी कवरेज वाली कई हेल्थ इंश्येरंस पॉलिसी नवजात शिशु के लिए भी कवर प्रदान करती हैं, जो ऐसे समय में बहुत ही लाभदायक हो सकती है. हालांकि, यह कवरेज एक निश्चित समय तक ही रहता है. इसलिए एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी जो बच्चे को आधार योजना से जोड़ने की सुविधा प्रदान करती है, इस स्टेज में माताओं के लिए एक सही विकल्प है. इसके अलावा, लगभग सभी प्रमुख इंश्योरेंस कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की पेशकश करती हैं जो बच्चों के टीकाकरण को कवर करती हैं. अगर पॉलिसी के नियम और शर्तों को देखते हुए, युवा मां अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ नवजात की देखभाल के लिए अतिरिक्त ऐड-ऑन को विकल्प भी चुन सकती हैं.

हालांकि, इस स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल केवल बच्चे तक ही सीमित नहीं है. बच्चे के जन्म के बाद देखभाल के लिए मां को भी कवर करने की जरूरत है. इसके अलावा, जैसे-जैसे समय बीतता है, एक मां की इंश्योरेंस संबंधी ज़रूरतें मैटरनिटी से अलग भी विकसित होंगी और उसे अपने पूरे स्वास्थ्य को कवर करने की आवश्यकता होगी. इसलिए महिलाओं को स्तर कैंसर, गठिया, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों से सुरक्षा पर भी विचार करना चाहिए और उसके मुताबिक एक व्यापक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का चुनाव करना चाहिए.

सिंगल मदर: सभी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी सिंगल महिलाओं को उनकी मैटरिनिटी पॉलिसी में शामिल नहीं करती हैं, लेकिन बाजार में कुछ ऐसी योजनाएं भी उपलब्ध हैं जो सिगंल महिलाओं और सिंगल मदर्स को मैटरनिटी बेनिफिट प्रदान करती हैं. हालांकि, यहां सबसे महत्वपूर्ण कारक है वेटिंग पीरियड है. पॉलिसी के नियमों और शर्तों के अनुसार महिला द्वारा वेटिंग पीरियड को पूरा करने के बाद, वह अपनी वैवाहिक स्थिति के बावजूद पॉलिसी के मैटरनिटी बेनिफिट का क्लेम करने के लिए पात्र है.

वृद्ध माताएं: जैसे-जैसे समय बीतता है और बच्चा बड़ा होकर वयस्क बनता है, मां की भी उम्र बढ़ती है और उसकी स्वास्थ्य देखभाल और बीमा की ज़रूरतें और विकसित होती हैं. ऐसे समय में एक ऐसी योजना की आवश्यकता होगी जो गंभीर बीमारियों को कवर करे. उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गठिया और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी स्थितियों का खतरा ज्यादा होता है. इस स्तर पर इन गंभीर बीमारियों को कवर करने के लिए ऐड-ऑन कवर पर विचार करना ही बुद्धिमानी है.

अगर इस स्तर पर, वृद्ध मां अपनी बदली हुई परिस्थितियों के कारण पूरी तरह से एक नए हेल्थ कवर की तलाश कर रही है, तो उसे पहले दिन से ही पहले से मौजूद बीमारियों को कवर करने वाली पॉलिसी की तलाश करनी होगी. साथ ही सीनियर सिटीजन स्पेशल योजनाएं भी हैं जो 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों द्वारा किए गए मेडिकल खर्च को कवर करती हैं। चूंकि सीनियर सिटीजन को एक रेगुलर मेडिकल चेक-अप की आवश्यकता होगी, इसलिए ऐसी योजनाएं सहायक होती हैं क्योंकि वे ऐसे खर्चों के लिए कवर प्रदान करती हैं.

हेल्थ इंश्योरेंस के लिए अपनी आय का कितना हिस्सा खर्च करना चाहिए?

COVID-19 महामारी ने सभी को सिखाया है कि स्वास्थ्य को हर चीज से ऊपर प्राथमिकता देना बहुत ही जरूरी है। एक अच्छी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद में, एंबुलेंस खर्च और डे-केयर प्रक्रियाओं से लेकर आईसीयू और कमरे के किराए को कवर करती है और चुनी गई पॉलिसी के प्रकार के आधार पर कैशलेस हॉस्पिटलाइजेशन की सुविधा भी प्रदान करती है.
हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय वेतन का अनुपात 4-5% होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर आप 1,00,000 रुपये मासिक कमाते हैं, तो 4000-5000 रुपये के बीच हेल्थ इंश्योरेंस के खर्च को अलग रखने की सलाह दी जाती है. हालांकि, अगर आपके परिवार की पुरानी मेडिकल हिस्ट्री में कई समस्याएं रही है या परिवार के किसी सदस्य को कोमोरबिडिटी है,तो व्यक्ति को पहले से मौजूद बीमारियों को कवर करने वाला प्लान खरीदना चाहिए और इसे बेहतर सुरक्षा प्राप्त करने के लिए आवश्यकता के अनुसार उपलब्ध ऐड-ऑन्स का विकल्प भी चुनना चाहिए.

एक्सपर्ट से जानें लैप्स हो जाए इंश्योरेंस पौलिसी तो कैसे करें रिवाइव

अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए इंश्योरेंस प्लान बेहतर विकल्प होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह आपके न रहने पर परिजनों को सम एश्योर्ड दिलवाने का एक किफायती और सुरक्षित माध्यम है. इन प्लान्स के एनुअल प्रीमियम रेट्स काफी कम होते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप समय पर प्रीमियम का भुगतान करने से चूक जाते हैं तो पौलिसी का क्या हो सकता है? क्या इससे आपकी पौलिसी बंद कर दी जाएगी? हम अपनी इस खबर में आपके इन्हीं सवालों के ही जवाब देने जा रहे हैं.

कब लैप्स होती है इंश्योरेंस पौलिसी?

किसी भी तरह की इंश्योरेंस पौलिसी को खरीदने के बाद हर साल एक निश्चित अवधि तक इसके लिए प्रीमियम का भुगतान किया जाता है. अगर किसी कारणवश आप समय पर इसका भुगतान नहीं कर पाते हैं तो पौलिसी टर्मिनेट कर दी जाती है. इसे शुरु करवाने का कोई और विकल्प नहीं होता. ऐसे में नई पौलिसी खरीदने का औप्शन रह जाता है. यह पुरानी पौलिसी से महंगी पड़ती है क्योंकि इसमें आवेदक की उम्र ज्यादा हो जाती है.

एक्सपर्ट राय

फाइनेंशियल प्लानर्स का मानना है कि इंश्योरेंस पौलिसी लैप्स होने की स्थिति में एक निश्चित ब्याज के साथ प्रीमियम भुगतान कर पौलिसी को रिवाइव कराया जा सकता है. वहीं, अगर आप भुगतान नहीं करते हैं और यह एक ट्रैडिशनल पौलिसी है तो लैप्स पीरियड के खत्म होने पर यह पेड अप पौलिसी बन जाती है. पेड अप पौलिसी में सम एश्योर्ड घट जाता है. यह आपकी ओर से भुगतान किये गये प्रीमियम पर निर्भर करता है. साथ ही सम एश्योर्ड पौलिसी के मैच्यौर होने पर ही मिलता है.

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जानिए पौलिसी लैप्स होने की स्थिति में क्या करें

इस तरह करें लैप्स पौलिसी को रिवाइव

जब आप इंश्योरेंस प्रीमियम का भुगतान करने से चूक जाते हैं तो पौलिसी को ग्रेस पीरियड स्टेट में ट्रांस्फर कर दिया जाता है. इसके तहत इंश्योरेंस कंपनी की जिम्मेदारी बनती है कि पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद वह बेनिफिशयरी को सम एश्योर्ड का भुगतान करे. आमतौर पर इंश्योरर छमाही और एक साल की अवधि के प्रीमियम के लिए 30 दिन और मासिक भुगतान के लिए 15 दिनों का ग्रेस पीरियड देता है. हालांकि, यह हर कंपनी के लिए यह अवधि अलग-अलग हो सकती है. इस ग्रेस पीरियड के दौरान पौलिसीधारक प्रीमियम का भुगतान कर अपनी इंश्योरेंस पौलिसी को फिर से एक्टिव कर सकता है. जानकारी के लिए बता दें कि पौलिसी ग्रेस पीरियड के समाप्त होने के बाद लैप्स मानी जाती है.

पौलिसी लैप्स होने पर क्या होता है

अगर इंश्योरेंस कंपनी की ओर से दिया गया ग्रेस पीरियड खत्म हो जाता है और इसे एक्टिव करने के लिए किसी प्रीमियम का भुगतना नहीं किया जाता तो पौलिसी लैप्स हो जाएगी. ऐसे में बेनिफिशयरी को पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद सम एश्योरेड नहीं मिलेगा.

उदाहरण से समझें

अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है और वह टर्म प्लान के प्रीमियम भुगतान से चूक जाता है. ऐसे में अगर दुर्घटना ग्रेस पीरियड के दौरान हुई है तो परिवार के सदस्य क्लेम फाइल कर सकते हैं और इंश्योरेंस कंपनी को सम एश्योर्ड का भुगतना करना ही पड़ेगा. वहीं, अगर दुर्घटना पौलिसी के लैप्स हो जाने के बाद हुई है तो इंश्योरेंस कंपनी परिवार को किसी भी तरह के सम एश्योर्ड का भुगतान नहीं करेगी.

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हालांकि, लैप्स पौलिसी बिल्कुल बेकार नहीं होती. इसे एक्टिव भी कराया जा सकता है. इसके लिए पॉलिसीधारक को रीइंस्टेटमेंट प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. अधिकांश कंपनियां लैप्स पौलिसी को रिवाइव करने का विकल्प देती हैं. यह प्रकिया थोड़ी महंगी साबित हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें मेडिकल चेकअप या पेनल्टी देनी पड़ सकती है.

लैप्स हो चुकी पौलिसी को रिवाइव करने की प्रकिया को रीइंस्टेटमेंट कहा जाता है. इसका लाभ तभी उठाया जा सकता है जब ग्रेस पीरियड खत्म हो जाता है. लैप्स पौलिसी की रीइंस्टेटमेंट प्रक्रिया हर कंपनी की अलग होती है. साथ ही यह बीते हुए समय पर, प्रोडक्ट टाइप और इंश्योरेंस कौस्ट पर निर्भर करता है.

6 टिप्स: पैसा रखें नहीं, निवेश करें

मौजूदा दौर में पैसों को सैकंड गौड कहा जाता है. यानी, पैसा है तो आप के पास काफीकुछ है. सैकंड गौड और काफीकुछ होने के बावजूद इसे रखे न रहें, वरना घाटे में रहेंगे. इसे निवेश करेंगे, तो ही फायदे में रहेंगे.

पैसों के रखने से मतलब सिर्फ घर में रखने से नहीं है, बैंक आदि में भी रखे रहने से है. चौंकिए नहीं, बचत खाते में पैसों के जमा रहने का मतलब रखा रहना ही होता है जबकि निवेश का मतलब और.

निवेश या विनियोग यानी इन्वैस्टमैंट का मतलब होता है अपने पैसों को ऐसी जगह लगाना जिस से कि लगाए हुए पैसों से भविष्य में अधिक पैसे मिल सकें. इन्वैस्ट करने वाले को जितने पैसे अधिक मिलते हैं, उन्हें निवेश पर प्राप्त प्रौफिट यानी लाभ कहा जाता है. और जो निवेश करता है उसे निवेशक या इन्वैस्टर कहा जाता है.

आप के पास पैसा है, कमाया हुआ है, बचत किया हुआ है या कहीं से मिला है और उस को इन्वैस्ट करना चाहते हैं तो इस के कई विकल्प मौजूद हैं. यहां देश की श्रेष्ठ 6 निवेश योजनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है.

ये ऐसी योजनाएं हैं जो दीर्घकालिक निवेश व बेहतर लाभ के लिए अच्छी तरह जानी जाती हैं.

1. सुकन्या समृद्धि योजना (एसएसवाई) :

मातापिता को अपनी बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की गई. यह योजना वर्ष 2015 में देश के प्रधानमंत्री द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत शुरू की गई थी. यह योजना नाबालिग बालिकाओं की ओर लक्षित है.

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एसएसवाई खाता जन्म से ले कर 10 वर्ष की आयु से पहले किसी भी समय लड़की के नाम से खोला जा सकता है. इस योजना के लिए न्यूनतम निवेश राशि 1,000 रुपए से अधिकतम 1.5 लाख रुपए सालाना है. सुकन्या समृद्धि योजना 21 वर्षों तक संचालित होती है.

2. राष्ट्रीय पैंशन योजना (एनपीएस) :

केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण योजनाओं में से एक राष्ट्रीय पैंशन योजना या एनपीए है. यह सभी भारतीयों के लिए एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है, लेकिन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है. एनपीएस का उद्देश्य भारत के नागरिकों को सेवानिवृत्ति आय प्रदान करना है. 18 से 60 आयुवर्ग के भारतीय नागरिक और अनिवासी भारतीय इस योजना के लिए सदस्यता ले सकते हैं.

एनपीएस योजना के तहत आप अपने फंड को इक्विटी, कौर्पोरेट बौंड, सरकारी प्रतिभूतियों में आवंटित कर सकते हैं. 50,000 रुपए तक का निवेश आयकर कानून की धारा 80 सीसीडी (1 बी) के तहत कटौती के लिए उत्तरदायी हैं. आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1,50,000 रुपए तक का अतिरिक्त निवेश कटौतीयोग्य है.

3. सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) :

सरकार द्वारा शुरू की गईं सब से पुरानी योजनाओं में से एक सार्वजनिक भविष्य निधि या पीपीएफ है. इस योजना में निवेश की गई राशि, अर्जित ब्याज और निकाली गई राशि सभी को कर से छूट प्राप्त है. इस प्रकार, सार्वजनिक भविष्य निधि योजना न केवल सुरक्षित है, बल्कि एक ही समय में करों को बचाने में आप की मदद कर सकती है. योजना की मौजूदा ब्याजदर 7 फीसदी है. पीपीएफ में निवेश करने वाला कोई भी आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1,50,000 रुपए तक की कटौती का दावा कर सकता है.

4. राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) :

भारतीयों में बचत की आदत को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र या एनएससी को शुरू किया. इस योजना के लिए न्यूनतम निवेश राशि 100 रुपए है और अधिकतम निवेश राशि की सीमा नहीं है. एनएससी की ब्याजदर हर साल बदलती है. आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1.5 लाख रुपए की करकटौती का दावा किया जा सकता है. केवल भारत के निवासी इस योजना में निवेश करने के लिए पात्र हैं.

5. अटल पैंशन योजना (एपीवाई) :

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई अटल पैंशन योजना या एपीवाई एक सामाजिक सुरक्षा योजना है. एक वैध बैंकखाते के साथ 18-40 वर्ष की आयु का भारतीय नागरिक एपीवाई के लिए आवेदन करने के लिए पात्र है.

कमजोर वर्ग के व्यक्तियों को पैंशन का विकल्प देने को प्रोत्साहित करने के लिए अटल पैंशन योजना शुरू की गई है, जिस से उन्हें वृद्धावस्था के दौरान लाभ होगा. यह योजना किसी के द्वारा भी ली जा सकती है. यह स्वनियोजित है. कोई बैंक या डाकघर में एपीवाई के लिए नामांकन कर सकता है. हालांकि, इस योजना में एकमात्र शर्त यह है कि योगदान 60 वर्ष की आयु तक किया जाना चाहिए.

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6. प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) :

सौफीसदी देशवासियों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की. सरकार ने समाज के गरीब और जरूरतमंद वर्गों को बचत और जमा खाते, प्रेषण, बीमा, क्रेडिट, पैंशन जैसी वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच प्रदान करने का लक्ष्य रखा है.

नाबालिग के लिए इस योजना में न्यूनतम आयुसीमा 10 वर्ष है. अन्यथा, 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय निवासी इस खाते को खोलने के लिए पात्र है. एक व्यक्ति केवल 60 वर्ष की आयु तक पहुंचने के बाद इस योजना से बाहर निकल सकता है.

कुल मिला कर, निवेश आने वाले समय के लिए, भविष्य के लिए बहुत ही फलदायी होता है. आड़े वक्त में परिवार को इस से महत्त्वपूर्ण मदद मिलती है. निवेश कर के इंसान अपनी जरूरतों को खुद ही पूरी करने के साथसाथ अपने बुढ़ापे को सुरक्षित भी रख सकता है. सो, निवेश करना हरेक के लिए अनिवार्य है.

फाइनेंशियल जानकारी: लंबी अवधि+लगातार जमा= करोड़पति

21वीं सदी में लखपति बनने की तमन्ना नहीं. सभी की करोड़पति बनने की इच्छा है. थोड़े रुपयों को लंबे समय के लिए लगातार जमा कर कोई भी अपने इस लक्ष्य को पा सकता है. कई लोग सिर्फ इसलिए निवेश से करोड़ रुपए नहीं जुटा पाते क्योंकि उन्हें इस पर यकीन नहीं होता.

हां, यह जान लें कि पैसा जमा करने यानी निवेश करने में अनुशासन जरूरी है. फाइनेंशियल एडवाइजर यानी वित्तीय सलाहकार कहते हैं कि फाइनेंशियल प्लानिंग  में अनुशासन का मतलब यह है कि आप को नियमित अंतराल पर अपनी कमाई का एक हिस्सा निवेश करना होगा. नौकरीपेशा लोगों के मन में अकसर यह सवाल उठता है कि वे ऐसे कौन से निवेश विकल्प का चुनाव करें जहां उन का मामूली निवेश एक तय समय में मोटे फंड में बदल जाए.

यह सच है कि करोड़पति बनना मुश्किल नहीं है लेकिन, इस के लिए जरूरी है लगातार जमा या नियमित निवेश और अच्छा सेविंग सिस्टम. वहीं, ब्याज दरों में लगातार गिरावट के कारण  करोड़ रुपए का फंड बनाने के लिए अब पहले के मुकाबले अधिक समय लगेगा. सैलरी के जरिए कमाने वालों के पास एकसाथ निवेश करने के लिए बड़ी रकम नहीं होती. ऐसे में आप हर महीने एक तय रकम की बचत कर के करोड़पति बन सकते हैं.

एक्सपर्ट बताते हैं कि कोई भी नियमित रूप से निवेश कर के 20 वर्षों में करोड़पति बन सकता है. दरअसल, लंबे समय तक निवेश आप की पूंजी को कंपाउंडिंग ब्याज की ताकत से कई गुना कर देता है.

करोड़पति बनने के लिए यहां 3 निवेश विकल्पों का ज़िक्र किया जा रहा है, जिन में आप हर महीने 10 हजार रुपए का निवेश कर के करोड़पति बन सकते हैं, साथ ही, यह भी जानिए कि इन में से कौन सा औप्शन आप को जल्दी करोड़पति बना सकता है.

पब्लिक प्रोविडैंट फंड यानी पीपीएफ :

पब्लिक प्रोविडैंट फंड  या  लोक भविष्य निधि भारत में बचत एवं कर-बचत करने के लिए एक जमा योजना है.  बहुत से लोग इसे सेवानिवृत्ति के समय धनप्राप्ति का साधन भी मानते हैं. यह काफी लोकप्रिय निवेश औप्शन है. दरअसल, पूरी तरह से टैक्सफ्री होना इस की सब से बड़ी खासीयत है. पीपीएफ में आप को आयकर एक्ट की धारा 80 सी के तहत टैक्स छूट मिलती है. हालांकि, यह बेनिफिट पुराने टैक्स सिस्टम पर ही मिलता है.

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पीपीएफ खाता बैंक या डाकघर में खोला जा सकता है. इस समय पीपीएफ पर ब्याज दर 7.1 फीसदी है. यह मानते हुए कि निवेश की पूरी अवधि में 7.1 फीसदी की दर स्थिर रहेगी, अगर आप हर महीने 10 हजार रुपए का निवेश करें तो 28 सालों में एक करोड़ रुपए हासिल कर सकते हैं. 28 सालों में आप के 1.05 करोड़ रुपए हो जाएंगे  जिस में लगभग 72 फीसदी पैसा सिर्फ ब्याज का होगा. यानी, आप को 28 सालों में सिर्फ 33.60 लाख रुपए का ही निवेश करना होगा.

नेशनल पैंशन स्कीम यानी एनपीएस :

एनपीएस एक प्रकार की पैंशन कम इन्वैस्टमैंट स्कीम है जो कि बाजार आधारित रिटर्न की गारंटी देती है. एनपीएस में कर में छूट मिलती है जैसा कि कर्मचारी भविष्य निधि और लोक भविष्य निधि योजनाओं के मामले में है.
एनपीएस ने रिटायरमैंट बचत साधन के रूप में काफी लोकप्रियता हासिल की है. पहले यह केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू की गई थी, लेकिन 2009 से यह सभी के लिए खुली है. आप एनपीएस में हर महीने एक तय रकम का निवेश कर सकते हैं. एनपीएस योगदान का 50 फीसदी इक्विटी और 50 फीसदी ही सरकारी प्रतिभूतियों में आवंटित करें तो पिछले 10 वर्षों में एनपीएस फंड्स का औसत रिटर्न लगभग लगभग 10 फीसदी रहा है. इस तरह, लंबी अवधि के कंपाउंडिंग वार्षिक ग्रोथ रेट यानी सीएजीआर को 10 फीसदी मानते हुए आप हर महीने की शुरुआत में एनपीएस में 10  हजार रुपए का निवेश कर के 23 वर्षों में 1 करोड़ रुपए हासिल कर सकते हैं.

म्यूचुअल फंड यानी एमएफ :

म्यूचुअल फंड, जिसे हिंदी में पारस्परिक निधि कहते हैं,  लेकिन इस का इंग्लिश  नाम अधिक प्रचलित है, एक प्रकार का सामूहिक निवेश होता है. निवेशकों के समूह मिल कर स्टौक, अल्प अविधि के निवेश या अन्य प्रतिभूतियों मे निवेश करते हैं. म्यूचुअल फंड में कई निवेशकों का पैसा एक जगह जमा किया जाता है और इस फंड में से फिर बाज़ार में निवेश किया जाता है. म्यूचुअल फंड को एसेट मैनेजमैंट कंपनियों यानी एएमसी  द्वारा मैनेज किया जाता है. म्यूचुअल फंड में कोई भी निवेश कर सकता है.

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अगर शेयर बाजार के उतारचढ़ाव को झेल सकते हैं तो इक्विटी म्यूचुअल फंड को पैसा बनाने के लिए सब से अच्छा साधन माना जाता है. जोखिम वाले निवेशकों के लिए इंडेक्स म्यूचुअल फंड सब से उपयुक्त हैं क्योंकि वे कम अस्थिर होते हैं और लंबी अवधि में शानदार रिटर्न देते हैं.

आप इंडेक्स फंड में निवेश कर सकते हैं जो निफ्टी या सेंसेक्स को ट्रैक करते हैं. इन फंड्स में लंबी अवधि में लगभग 12 फीसदी सीएजीआर के रूप में रिटर्न देने की क्षमता है. 12 फीसदी के लंबे समय तक सीएजीआर को मानते हुए आप हर महीने 10 हजार रुपए का निवेश कर के 20 वर्षों में 1 करोड़ रुपए हासिल कर सकते हैं. यदि आप एसआईपी टौप-अप का उपयोग करते हैं तो आप इस लक्ष्य को और भी तेज़ी से प्राप्त कर सकते हैं.

लब्बोलुआब यह है कि 10 हजार रुपए की हर माह बचत को निवेश कर 20 से 28 वर्षों के बीच में कोई भी करोड़पति बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है. जाहिर है, अगर कोई इस से बड़ी रकम हर माह जमा कर सकता है तो वह 20 वर्षों से पहले ही करोड़पति का लक्ष्य हासिल कर लेगा. बस, शर्त यह है कि हर महीने समय पर निवेश की रकम जमा कराई जाती रहे.

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