Latest Hindi Stories : इंटरनैट – क्या कावेरी अपने फैसले से खुश थी?

Latest Hindi Stories : लैंडलाइनपर जय के फोन से शाम 4 बजे नितिन और कावेरी की नींद खुली. फोन और लैंडलाइन पर, वे हैरान हुए. आजकल तो लैंडलाइन पर कभीकभार ही भूलेभटके किसी का फोन आता था. आज शनिवार था, दोनों की औफिस की छुट्टी थी तो लंच कर के गहरी नींद में सोए थे. घंटी बजती जा रही थी, दोनों ने एकदूसरे को शरारती नजरों से देखा और उठने का इशारा किया.

कावेरी ने न में सिर हिलाया तो नितिन ही उठा, ‘‘हैलो,’’ कहते ही उस की आवाज में जोश भर आया. कावेरी को उस की बातें सुनाई दे रही थीं.

कब? बहुत बढि़या आ जा.

‘‘हां, बिलकुल, बहुत मजा आएगा, यार. कितने साल हो गए. पता व्हाट्सऐप कर दूं? उफ, फिर लिख ले.’’

नितिन फोन पर पता लिखवा कर फोन रख कर कावेरी के पास आ कर लेट गया और कहने लगा, ‘‘गेस करो डियर, कौन आ रहा है?’’

‘‘तुम्हीं बता दो.’’

‘‘अरे थोड़ा तो गेस करो.’’

‘‘कोई पुरानी जानपहचान लग रही है जिस के पास हमारा लैंडलाइन नंबर भी है.’’

‘‘जय मुंबई आया है अभी, एक मीटिंग है उस की, डिनर पर आएगा, फिर वापस आज ही चला जाएगा, रात की ही फ्लाइट से.’’

कावेरी भी उत्साह से भर कर खुश हो गई. बोली, ‘‘अरे वाह, करीब 5 साल तो हो ही गए होंगे मिले हुए. आज तो खूब मजा आएगा जब बैठेंगे 3 यार, तुम वो और मैं. चलो बताओ, क्याबनाएं डिनर में? वैसे तो मेड आजकल छुट्टी पर है, घर में सब्जी वगैरह भी नहीं है, मैं सारा सामान शनिवार को ही तो लाती हूं. अब पहले कुछ सामान ले आएं?’’

‘‘पर तुम तो कह रही थी आज तुम्हें चाइना बिस्ट्रो का खाना खाना है, तुम्हारा बहुत दिन से मन था, वहीं से खाना और्डर कर लें? जय को भी वहां का चाइनीज खाना बहुत पसंद आएगा. तुम कहां इस समय किचन में घुसोगी. आराम करो, खाना और्डर कर लेंगे.’’

‘‘वाह, क्या आइडिया है. ऐसा पति सब को मिले.’’

नितिन ने शरारत से पूछा, ‘‘इस आइडिया की फीस पता है न?’’

कावेरी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, जाननी भी नहीं है.’’

‘‘पर मैं तो बता कर रहूंगा,’’ कहतेकहते नितिन ने कावेरी को अपनी तरफ खींच लिया.

सहारनपुर की एक गली में ही नितिन, कावेरी और जय के घर थे. बचपन से ही तीनों की दोस्ती बहुत पक्की थी. बड़े होने पर कावेरी और नितिन की दोस्ती प्यार में बदल गई थी जिस पर दोनों के परिवार वालों ने खुशीखुशी मुहर लगा दी थी. जय दिल्ली में कार्यरत था. अपनी फैमिली के साथ वहीं रहता था तो 5 सालों से मिलना ही नहीं हो पाया था.

अचानक कावेरी को याद आया. पूछा, ‘‘अरे, यह बताओ जय ने लैंडलाइन पर फोन क्यों किया? उस के पास तो हमारे मोबाइल नंबर भी हैं. बात होती तो रहती है.’’

‘‘वह बहुत देर से मोबाइल फोन ही ट्राई कर रहा था. इंटरनैट ही नहीं था शायद और ज्यादा सब्र उस में है भी नहीं, जानती हो न?’’

कावेरी हंस पड़ी, ‘‘हां, यह तो है. सब्र नहीं उस में.’’

दोनों पुरानी बातें याद कर हंसते रहे. दोनों ही उस के आने से बहुत खुश थे. दोनों नहा धो कर अच्छी तरह तैयार हो गए. पूरा हफ्ता बिजी रहने के बाद दोनों ही वीकैंड में पूरी तरह से रिलैक्स करते. कावेरी सुंदर साड़ी पहन कर सजसंवर गई. सुंदर वह थी ही, इस समय और खूबसूरत लग रही थी. दोनों ने यह नियम बना रखा था कि जब साथ होंगे, फोन कम ही देखेंगे.

अब 7 बजे दोनों ने अपनाअपना फोन उठाया. कावेरी ने कहा, ‘‘चलो, बढि़या डिनर और्डर करते हैं.’’

जैसे ही दोनों ने अपनाअपना फोन देखा, इंटरनैट गायब था. थोड़ी देर तक बारबार वाईफाई रीस्टार्ट किया. फिर चिंता होने लगी. नितिन ने कहा, ‘‘लैंडलाइन से और्डर कर देते हैं, आओ.’’

लैंडलाइन से फोन करने पर उधर घंटी जाती रही, पर फोन नहीं उठाया गया. अब तक 8 बज गए थे. अब दोनों को चिंता होने लगी.

नितिन ने कहा, ‘‘कार भी सर्विसिंग के लिए दे रखी है. कोरोना के केसेज फिर दोबारा बहुत बढ़ गए हैं. औटो से जा कर खाना लाना भी सेफ नहीं है. औटो में तो बैठने का मन भी नहीं करता है आजकल. क्या करें यार.’’

कावेरी के चेहरे पर अब पसीने की बूंदें झलकने लगीं. बोली, ‘‘अब तो यही समझ आ रहा है कि जो भी घर में है जल्दी से बना लूं. हमारा दोस्त इतने टाइम बाद हम से मिलने आ रहा है. उस से बैठ कर बातें भी तो करनी हैं,’’ कह कर कावेरी ने साड़ी का पल्ला अपनी कमर में खोंसा और किचन की तरफ चल दी.

नितिन भी उस के पीछेपीछे चलते हुए बोला, ‘‘मैं भी हैल्प करता हूं. मिल कर बनाते हैं यार के लिए कुछ.’’

कावेरी को नितिन पर प्यार आ गया. रुक कर उस के गाल चूम लिए. दोनों ने एकदूसरे को प्यार किया और ‘साथी हाथ बढ़ाना…’ गाते हुए  खाना बनाने में जुट गए. दोनों ने बड़े मन से खाना बनाया. घर में रखे आलू, फ्रोजन मटर और पनीर की स्टफिंग तैयार कर कावेरी ने मिक्स्ड वैज परांठे बनाए. दही तो था ही. नितिन लगातार इंटरनैट भी चैक करता रहा और आलू छीलने में, बाकी चीजों में उस ने पूरी हैल्प की. बीच में कहा, ‘‘यार, बड़ी प्यारी लग रही हो, कमर में साड़ी का पल्ला खोंसे. मेरी मां तो बहू के इस रूप पर फिदा हो जाएंगी. रुको, तुम्हारा वीडियो बना कर उन्हें भेजता हूं.’’

कावेरी जोर से हंस पड़ी और फिर सचमुच अपना वीडियो बनाने में नितिन को पूरा सहयोग करने लगी. साथसाथ कमैंट्री भी करती जा रही थी, ‘‘अब आप कभी भी इन परांठों को अपनी सासूमां को बना कर खिला सकते हैं. वे खुश होंगी तो आप भी चैन से जीएंगी. मैं अपना यह पहला वीडियो अपनी प्यारी सासूमां को समर्पित करता हूं.’’

यों ही हंसतेखेलते काम निबटा लिया गया. 9 बज रहे थे. नितिन ने कहा, ‘‘वह कहां रह गया? आया नहीं अभी तक,’’ कह उस ने फोन उठाया और अपना सिर पकड़ लिया, ‘‘यार, नैट नहीं है, तुम देखना.’’

‘‘हां, नो नैटवर्क.’’

‘‘मैं तो उस का कोई कौंटैक्ट नंबर भी लेना भूल गया, अब कैसे पता करें?’’

थोड़ी देर होटल के ही लैंडलाइन से जय ने फोन किया, ‘‘यार, यह तुम्हारा कैसा शहर है… यहां नेटवर्क ही नहीं है. क्या मुसीबत हुई है आज. कितने जरूरी काम थे. इतनी देर से उबेर या ओला बुक करने की कोशिश कर रहा हूं. कुछ भी नहीं हो रहा है. मैं नहीं आने वाला अब जल्दी तुम्हारे शहर में.’’

‘‘कल्पना बंद करो और आने की कोशिश करो, यार. मेरी कार भी सर्विसिंग के लिए गई हुई है वरना कोई प्रौब्लम ही नहीं थी.’’

‘‘देख, मैं यहां इस ट्रैफिक टाइम में औटो से तो बिलकुल नहीं आने वाला. अब मैं आ ही नहीं रहा हूं. बहुत लेट हो गया हूं. मैं यहीं से वापस चला जाऊंगा. शायद अगली बार मिल पाएं. क्या बकवास शहर है.’’

‘‘हां, जैसे तुम्हारे शहर में तो कभी नैट जाता ही नहीं.’’

अब फोन स्पीकर पर था. कावेरी भी शामिल हो गई थी. थोड़ीबहुत बातें हुईं, फिर  यह समझ आ गया कि इस बार मिलना हो नहीं पाएगा. फिर फोन रख कर नितिन ने कहा, ‘‘यार, खाना तो बहुत बढि़या तैयार हो गया था. बना भी कुछ ज्यादा ही है…’’

नितिन की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि उन के फ्लैट की डोरबैल बजी.

सामने वाले फ्लैट में रहने वाले दंपती सुमित और रेखा थे. इन दोनों से कभी नितिन और कावेरी की ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी. वे दोनों भी वर्किंग थे. सालभर पहले ही इस फ्लैट में आए थे. यों ही आतेजाते लिफ्ट में बस एक स्माइल और हैलो का आदानप्रदान ही हुआ था.

नितिन ने जैसे ही दरवाजा खोला, सुमित ने झेंपते हुए कहा, ‘‘हम लोग कई दिनों से बाहर गए हुए थे. अभी आए हैं. इंटरनैट ही नहीं चल रहा है. फोन काम ही नहीं कर रहा है. एक कप दूध मिलेगा?’’

‘‘अरे, क्यों नहीं. ऐसे क्यों नहीं करते कि आप फ्रैश हो कर यहीं आ जाओ. चाय भी पी लें और कुछ खाना भी खा लें.’’

सुमित और उस के पीछे खड़ी रेखा संकोच से भर उठी. कहा, ‘‘नहींनहीं, बस आप एक कप दूध दे दीजिए.’’

‘‘अरे, सिर्फ दूध से कैसे काम चलेगा? आज कुछ भी और्डर नहीं कर पाएंगे.’’

नितिन और कावेरी के स्वर में इतना अपनापन और सरलता थी कि दोनों फिर तैयार हो ही गए. बोले, ‘‘ठीक है, हम फ्रैश हो कर आते हैं.’’

नितिन ने दरवाजा बंद कर कावेरी से कहा, ‘‘ठीक किया, इन के साथ ही आज डिनर करते  हैं. ये दोनों हमेशा मुझे अच्छे लगे हैं. वैसे भी यहां किसी को भी कभी इतनी फुरसत नहीं होती कि मिल कर कभी किसी के साथ बैठ पाएं. आज खाना तो है ही. चलो, फिर एक बार साबित हो गया कि दानेदाने पर खाने वाला का नाम लिखा होता है.’’

‘‘हां, मुझे भी खुशी हो रही है. आज पहली बार कोई पड़ोसी हमारे घर आएगा.’’

20 मिनट बाद ही सुमित और रेखा आ गए. पहली बार आए थे. थोड़ा तो संकोच स्वाभाविक था, पर नितिन और कावेरी खुले दिल के सरल स्वभाव के इंसान थे तो थोड़ी देर में ही सुमित और रेखा खुलने लगे. उन्होंने घर के इंटीरियर की खुले दिल से तारीफ की. फिर अपने हाथ में पकड़ा पैकेट कावेरी को देते हुए रेखा ने कहा, ‘‘हम दोनों मेरे मम्मीपापा से मिलने गए हुए थे.  मम्मी ने आते हुए यह पूरनपोली बना कर दी है. आप के लिए भी ले आई. यह महाराष्ट्र की फेमस चीज है.’’

‘‘अरे, वाह. हां, औफिस में कोई लाता है तो मैं जरूर खाती हूं. मुझे बहुत पसंद है, थैंक्स,’’ कहते हए कावेरी ने खुशी से वह पैकेट ले लिया. फिर उन लोगों के लिए चाय ले आई. अब तक सब सहज रूप से बातें करने लगे थे.

खाना जब लगा तो रेखा ने बहुत तारीफ करते हुए खाया. हंस कर कहा, ‘‘औफिस में भी नौर्थ इंडियंस अकसर परांठे लाते हैं तो मैं अपनी रोटी उन्हें दे कर उन के परांठे ले लेती हूं.’’

आजकल सब के दिल में अपने काम में व्यस्त रहने के चलने एक खालीपन भरता ही जा रहा है. मशीनी जीवन से दूर यह आज की शाम चारों को एक नया अपनापन दे रही थी. अब यह लग ही नहीं रहा था कि चारों आज पहली बार ही मिले हैं. हंसीमजाक शुरू हो गया था जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था.

सुमित ने कहा, ‘‘आज तो दिल खुश हो गया. अब तो हर वीकैंड का कोई प्रोग्राम रहना ही चाहिए. हर वीकैंड पर मूवी देख लो, बाहर खाना खा आओ बस यही करते हैं. ऐसी शाम बारबार आती रहनी चाहिए नितिन.’’

चारों हमउम्र ही थे. अब सब एकदूसरे का नाम ही ले रहे थे.

एक बात सुनो, ‘‘हमारी एक आंटी का अलीबाग में फार्महाउस है. कोरोना टाइम में कहीं और आनाजाना तो हो नहीं रहा, वहां कोई नहीं रहता है. एक हाउस हैल्प है बस. क्यों न वहां 1-2 रातें घूमने चला जाए?’’ सुमित बोला,

जवाब कावेरी ने दिया, ‘‘हम तैयार हैं.’’

‘‘यार, आज तो मन खुश हो गया. तुम लोगों के साथ तो सफर की थकान भी उतर गई. यह तो कभी सोचा नहीं था कि हमारे पड़ोसी इतने अच्छे हैं. एक दिन अचानक हम एक शाम में ही इतने अच्छे दोस्त बन जाएंगे,’’ रेखा ने बहुत प्यार से कहा तो कावेरी मुसकरा दी.

सब बैठ कर अपने घर, परिवार, औफिस की बातें करते रहे. 12 कब बज गए, पता ही नहीं चला.फिर सुमित ने कहा, ‘‘चलो, अब सोया जाए, अब तो मिलते ही रहेंगे. थैंक यू, दोस्तो.’’

नितिन ने कहा, ‘‘हमें थैंक्स मत कहो, इंटरनैट को कहो कि थैंक यू, इंटरनैट. अच्छा हुआ तुम चले गए. तभी तो हम मिले वरना तो तुम लोगों ने फोन कर के दूध और खाना मंगा लिया होता.’’

‘‘हां, फिर हमें इतने अच्छे परांठे न मिलते.’’

‘‘और मुझे पूरनपोली, नहीं तो तुम ने अकेले खा ली होती,’’ कहतेकहते कावेरी ने मुंह बनाया तो सब जोर से हंस पड़े.

उन के जाने के बाद नितिन और कावेरी ने खुशी से कहा, ‘‘कितना अच्छा लगा, यार. कितना जरूरी होता है दोस्तयारों का साथ. आज तो इंटरनैट के जमाने ने कमाल कर दिया. भाई साहब गए तो अच्छे दोस्तों से मिलना हो गया. एक दोस्त से नहीं मिल पाए तो 2 दोस्त और मिल गए, जय से तो अब अगली बार मिल ही लेंगे पर आज दिल खुश हो गया.’’

नितिन ने सहमति में सिर हिला दिया. दोनों सारा सामान समेटते हुए फिर गा रहे थे, ‘‘जहां चार यार मिल जाएं, वहीं रात हो गुलजार…’’

बच्चों को परिवार से जोड़ना है तो रखें इंटरनैट से दूर

कुछ वर्षों से सोशल मीडिया यानी सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में एक खास जगह तो बना ली है परंतु इस का काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है. इस में कोई शक नहीं कि डिजिटल युग में इंटरनैट के प्रयोग ने लोगों की दिनचर्या को काफी आसान बना दिया है. पर इस का जो नकारात्मक रूप सामने आ रहा है वह दिल दहलाने वाला है.

जानकारों का कहना है कि इंटरनैट और सोशल मीडिया की लत से लोग इस कदर प्रभावित हैं कि अब उन के पास अपना व्यक्तिगत जीवन जीने का समय नहीं रहा.

सोशल मीडिया की लत रिश्तों पर भारी पड़ने लगी है. बढ़ते तलाक के मामलों में तो इस का कारण माना ही जाता है, इस से भी खतरनाक स्थिति ब्लूव्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे गेम्स की है. नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की वजह हाईस्कूल गैंगस्टर गेम बताया गया है. जानलेवा साबित हो रहे इन खेलों से खुद के अलावा समाज को भी खतरा है. अभिभावकों का कहना है कि परिजनों के समक्ष बच्चों को वास्तविक दुनिया के साथ इंटरनैट से सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है. इस का समाधान रिश्तों की मजबूत डोर से संभव है. वही इस आभासी दुनिया के खतरों से बचा सकती है.

पहला केस : दिल्ली के साउथ कैंपस इलाके के नामी स्कूल में एक विदेशी नाबालिग छात्र ने अपने नाबालिग विदेशी सहपाठी पर कुकर्म का आरोप लगाया. दोनों ही 5वीं क्लास में पढ़ते हैं.

दूसरा केस : 9वीं क्लास के एक छात्र ने हाईस्कूल गैंगस्टर गेम डाउनलोड किया. 3-4 दिनों बाद जब यह बात उस के एक सहपाठी को पता चली तो उस ने शिक्षकों और परिजनों तक मामला पहुंचा दिया. परिजनों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि बच्चे के व्यवहार में काफी दिनों से उन्हें परिवर्तन दिखाई दे रहा था. समय रहते सचेत होने पर अभिभावक और शिक्षकों ने मिल कर बच्चे की मनोस्थिति को समझा और उसे इस स्थिति से बाहर निकाला.

तीसरा केस : 12वीं कक्षा के एक छात्र की पिटाई 11वीं में पढ़ रहे 2 छात्रों ने इसलिए की क्योंकि वह उन की बहन का अच्छा दोस्त था. यही नहीं, उसे पीटने वाले दोनों भाई विशाल और विक्की उसे जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे और ऐसा उन्होंने इंटरनैट से प्रेरित हो कर किया.

चौथा केस : 7वीं कक्षा की एक छात्रा ने मोबाइल पर ब्लूव्हेल गेम डाउनलोड कर लिया. उस में दिए गए निर्देश के मुताबिक उस ने अपने हाथ पर कट लगा लिया. उस की साथी छात्रा ने उसे देख लिया और शिक्षकों को पूरी बात बता दी. कहने के बावजूद छात्रा अपने परिजनों को स्कूल नहीं आने दे रही थी. दबाव पड़ने पर जब परिजनों को स्कूल बुलाया गया तो पता चला कि घर पर भी उस का स्वभाव आक्रामक रहता है. इस के बाद काउंसलिंग कर के उस को गलती का एहसास कराया गया.

एक छात्रा के अनुसार, ‘‘पढ़ाई के लिए हमें इंटरनैट की जरूरत पड़ती है. लगातार वैब सर्फिंग करने से कई तरह की साइट्स आती रहती हैं. यदि हमारे मातापिता साथ होंगे तो हमें अच्छेबुरे का आभास करा सकते हैं. इसलिए हम जैसे बच्चों के पास पापामम्मी या दादादादी का होना जरूरी है.’’

एक अभिभावक का कहना है, ‘‘डिजिटल युग में अब ज्यादातर पढ़ाई इंटरनैट पर ही निर्भर होने लगी है. छोटेछोटे बच्चों के प्रोजैक्ट इंटरनैट के माध्यम से ही संभव हैं. आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मोबाइल फोन दिलाना पड़ता है. बहुत सी बातों की तो आप और हमें जानकारी भी नहीं होती. कब वह गलत साइट खोल दे, यह मातापिता के लिए पता करना बड़ा मुश्किल होता है.’’

एक स्कूल प्रिंसिपल का कहना है,  ‘‘एकल परिवार की वजह से बच्चों का आभासी दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. यदि बच्चे संयुक्त परिवार में रहते तो वे विचारों को साझा कर लेते. अभिभावकों को उन की गतिविधियों और व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए. हम ने अपने स्कूल में एक सीक्रेट टीम बनाई है जो बच्चों पर नजर रखती है. 14-15 साल के बच्चों में भ्रमित होने के आसार ज्यादा रहते हैं.’’

अपराध और गेम्स

इंटरनैट पर इन दिनों कई ऐसे खतरनाक गेम्स मौजूद हैं जिन्हें खेलने की वजह से बच्चे अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं. इस का सब से ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. साइबर सैल की मानें तो विदेशों में बैठे नकारात्मक मानसिकता के लोग ऐसे गेम्स बनाते हैं. इस के बाद वे इंटरनैट के माध्यम से सोशल मीडिया पर गेम्स का प्रचारप्रसार कर बच्चों को इस का निशाना बनाते हैं.

साइबर सैल में कार्यरत एक साइबर ऐक्सपर्ट ने बताया कि हाईस्कूल गैंगस्टर और ब्लूव्हेल जैसे गेम्स से 13 से 18 साल के बच्चों को सब से ज्यादा खतरा है. इस उम्र में बच्चे अपरिपक्व होते हैं. इन को दुनियाभर के बच्चों में स्पैशल होने का एहसास कराने का लालच दे कर गेम खेलने के लिए मजबूर किया जाता है. गेम खेलने के दौरान बच्चों से खतरनाक टास्क पूरा करने के लिए कहा जाता है. अपरिपक्व होने के कारण बच्चे शौकशौक में टास्क पूरा करने को तैयार हो जाते हैं. वे अपना मुकाबला गेम खेलने के दौरान दुनिया के अलगअलग देशों के बच्चों से मान रहे होते हैं. गेम खेलने के दौरान वे सहीगलत की पहचान नहीं कर पाते. गेम के दौरान बच्चों में जीत का जनून भर कर उन से अपराध करवाया जाता है.

एक सर्वेक्षण में शामिल 79 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि इंटरनैट पर उन का अनुभव बहुत बार नकारात्मक रहा है. 10 में से 6 बच्चों का कहना था कि इंटरनैट पर उन्हें अजनबियों ने गंदी तसवीरें भेजीं, किसी ने उन्हें चिढ़ाया इसलिए वे साइबर क्राइम के शिकार हुए.

इन औनलाइन घटनाओं का वास्तविक जीवन में भी गहरा प्रभाव पड़ता है. इंटरनैट पर दी गई व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग होना, किसी विज्ञापन के चक्कर में धन गंवाना आदि बालमन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.

मानसिक विकारों के शिकार

सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपना खाता खोलने वाले 84 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उन के साथ अकसर ऐसी अनचाही घटनाएं होती रहती हैं जबकि सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय न रहने वाले बच्चों में से 58 फीसदी इस के शिकार होते हैं.

बाल मनोविज्ञान के जानकारों के अनुसार, आज के बच्चे बहुत पहले ही अपनी औनलाइन पहचान बना चुके होते हैं. इस समय इन की सोच का दायरा बहुत छोटा रहता है और इन में खतरा भांपने की शक्ति नहीं रहती. उन का कहना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को अपने अभिभावक, शिक्षक या अन्य आदर्श व्यक्तित्व की जरूरत होती है जो उन्हें यह समझाने में मदद करें कि उन्हें जाना कहां है, क्या कहना है, क्या करना और कैसे करना है. लेकिन इस से भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए.

सोशल नैटवर्किंग साइट्स का एक और कुप्रभाव बच्चों का शिक्षक के प्रति बदले नजरिए में दिखता है. कई बार बच्चों के झूठ बोलने की शिकायत मिलती है. 14 साल के बच्चों द्वारा चोरी की भी कई शिकायतें बराबर मिल रही हैं. मुरादाबाद के संप्रेषण गृह के अधीक्षक सर्वेश कुमार ने बताया, ‘‘पिछले 2 वर्षों के दौरान मुरादाबाद और उस के आसपास के इलाकों से लगभग 350 नाबालिगों को गिरफ्तार कर संप्रेषण गृह भेजा गया है. इन में से ज्यादा नाबालिग जमानत पर बाहर हैं लेकिन 181 बच्चे अभी संप्रेषण में हैं.’’

आक्रामक होते बच्चे

मनोचिकित्सक डाक्टर अनंत राणा के अनुसार, पहले मातापिता 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को काउंसलिंग के लिए लाते थे, लेकिन आज के दौर में

8 साल की उम्र के बच्चों की भी काउंसलिंग की जा रही है. अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे ज्यादातर एकल परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे परिवारों में मातापिता से बच्चों की संवादहीनता बढ़ रही है, जिस वजह से बच्चे मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में वे अपने पर भी हमला कर लेते हैं. काउंसलिंग के दौरान बच्चे बताते हैं कि परिजन अपनी इच्छाओं को उन पर मढ़ देते हैं. इस के बाद जब बच्चे ठीक परफौर्मेंस नहीं दे पाते तो उन्हें परिजनों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है. ऐसे हालात में ये आक्रामक हो जाते हैं.

8 से 12 साल के बच्चों की काउंसलिंग के दौरान ज्यादातर परिजन बताते हैं कि उन के बच्चों को अवसाद की बीमारी है. उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता. टोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं और इस से अधिक उम्र के बच्चे तो सिर्फ अपनी दुनिया में ही खोए रहते हैं.

साइबर सैल की मदद लें

आप का बच्चा किसी खतरनाक गेम को खेल रहा है या उस की गतिविधियां मोबाइल पर मौजूद इस तरह के गेम की वजह से संदिग्ध लग रही हैं, तो तुरंत साइबर विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं. फोन पर भी आप साइबर सैल की टीम से संपर्क कर सकते हैं. इस के लिए गूगल एरिया के साइबर सैल औफिस के बारे में जानकारी लें. वहां साइबर सैल विशेषज्ञ के नंबर भी मिल जाएंगे.

ध्यान दें परिजन

–      परिजन बच्चों को समय दें और उन से भावनात्मक रूप से मजबूत रिश्ता बनाएं.

–      बच्चे की मांग अनसुनी करने से पहले उस की वजह जानें.

–      बच्चों के दोस्तों से भी मिलें ताकि बच्चे की परेशानी की जानकारी हो सके.

–      बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराएं.

–      बच्चों को व्यायाम के लिए भी उकसाएं.

–      बच्चों से अपनी अपेक्षाएं पूरी करने के बजाय उन की काबिलीयत के आधार पर उन से उम्मीद रखें.

 

रिश्तों में दरार डालता इंटरनैट

ऋतु के घर पार्टी थी. 20-25 लोगों को बुलाया था. पार्टी की 2 वजहें थीं, पहली पति को प्रमोशन मिली थी और दूसरी बेटे का पीएमटी में सिलैक्शन हो गया था. पार्टी में ऋ तु ने कुछ पड़ोसी, कुछ करीबी रिश्तेदार, कुछ सहेलियों और बेटे के दोस्तों को आमंत्रित किया था.

तय समय पर सारे उपस्थित थे, मगर हाल में शोरशराबा, हंसीमजाक या बातचीत की जगह एक अजीब सी खामोशी थी. ज्यादातर लोग अपने मोबाइल फोन पर ही बिजी थे. अंदर आए, मेजबान से हायहैलो की, बधाई दी और फिर एक कोना पकड़ मोबाइल में आंखें गड़ा कर बैठ गए. यहां तक कि ऋ तु की सहेलियां जो पहले इकट्ठा होती थीं तो क्या हंगामा बरपाती थीं, चुगली, शिकायत, ताने, हंसीठिठोली थमती ही न थी.

एकदूसरे की साड़ी, गहनों पर उन की नजर रहती थी, पर अब वे नजरें भी मोबाइल में ही अटकी हैं. कोई वीडियो देख रही है, कोई यूट्यूब तो कोई फोन पर बात करने में मशगूल है.

एक कोने में बेटे के 2 दोस्त एकदूसरे से सिर सटाए मोबाइल पर फुटबाल मैच देख रहे हैं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले डिबेट शो में मगन है तो कोई न्यूज बुलेटिन देख रहा है. आपस में बातचीत के लिए तो जैसे किसी के पास न वक्त है न जरूरत. हकीकत की दुनिया से दूर सब आभासी दुनिया के मनोरंजन में डूबे हैं.

बदलती जीवनशैली

पहले दोपहर का भोजन बनाने और चौका समेटने के बाद गृहिणियां पड़ोस में जा कर बैठती थीं. एकदूसरे का दुखसुख बांटती थीं. जाड़ों के दिनों में जिधर देखो 5-6 औरतों का जमावड़ा लगा होता था. बुनाई के नएनए डिजाइनें सिखाई जाती थीं. नईनई रैसिपीज बातोंबातों में सीख ली जाती थीं. अचार, मुरब्बा, पापड़ एकसाथ मिल कर बनाए जाते थे. मगर अब दोपहर का खाना बनाने के बाद गृहिणी पड़ोस में ?ांकती तक नहीं. बस मोबाइल फोन ले कर बैठ जाती है.

व्हाट्सऐप, फेसबुक, यूट्यूब में जिंदगी के अनमोल क्षण कैसे एकाकी बीते जा रहे हैं. स्मार्ट फोन और इंटरनैट ने तो घर के सदस्यों के बीच भी एक चुप्पी बिखेर दी है. खाली वक्त में अब कोई किसी से बात नहीं करता, बल्कि अपना मोबाइल फोन ले कर बैठ जाता है. चाय की खाने की मेज पर बस हम हैं और हमारा मोबाइल फोन है. आसपास कौन बैठा है इस की हमें परवाह नहीं.

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बेटा शाम को औफिस से घर आ कर मांबाप के पास नहीं बैठता. नहीं पूछता कि उन का सारा दिन कैसा बीता. उन्होंने क्याक्या किया. नहीं बताता कि औफिस में उस का दिन कैसा रहा. वह आता है और लैपटौप खोल कर बैठ जाता है.

नहीं रही रिश्तों में मिठास

बहुएं अब सास से नहीं पूछतीं कि अमुक अचार में कौनकौन से मसाले पड़ते हैं. अब अचार बनाने की सारी विधियां यूट्यूब पर मिल जाती हैं. सास के अनुभव धरे के धरे रह जाते हैं. अचार की खटास रिश्तों में जो मिठास घोलती उस से बहुएं वंचित रह जाती हैं.

जी हां, हम सब का आजकल यही हाल है. न वक्त है, न ही फुरसत क्योंकि जिंदगी ने जो रफ्तार पकड़ ली है, उसे धीमा करना अब मुमकिन नहीं. इस रफ्तार के बीच जो कभीकभार कुछ पल मिलते थे, वे भी छिन चुके हैं क्योंकि हमारे हाथों में, हमारे कमरे में और हमारे खाने की मेज पर एक चीज हम से हमेशा चिपकी रहती है और वह है इंटरनैट.

हालांकि इंटरनैट किसी वरदान से कम नहीं है. आजकल तो सारे काम इसी के भरोसे चलते हैं. जहां यह रुका, वहां लगता है मानो सांसें ही रुक गई हों. कभी जरूरी मेल भेजना होता है, तो कभी किसी सोशल साइट पर कोई स्टेटस या पिक्चर अपडेट करनी होती है. कभी वाट्सएप कौल करनी है, कभी कोई वीडियो देखना है.

इंटरनैट के बिना जहां जीना मुश्किल सा हो गया है वहीं यह इंटरनैट हमारे निजी पलों को हम से छीन रहा है. हमारे फुरसत के क्षणों को हम से दूर कर रहा है., हमारे रिश्तों को प्रभावित कर रहा है, अपनों के बीच दूरियां बढ़ा रहा है. इस की वजह से बहुत बड़ा कम्युनिकेशन गैप पैदा हो रहा है.

छिन गए हैं फुरसत के पल

चाहे औफिस हो या स्कूलकालेज, पहले अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद का जो भी समय हुआ करता था, वह अपनों के बीच, अपनों के साथ बीतता था. आज का दिन कैसा रहा, किस ने क्या कहा, किस से क्या बहस हुई जैसी तमाम बातें हम घर पर अपनों से शेयर करते थे, जिस से हमारा स्ट्रैस रिलीज हो जाता था. लेकिन अब समय मिलने पर अपनों से बात करना या उन के साथ समय बिताना भी हमें वेस्ट औफ टाइम लगता है. हम जल्द से जल्द अपना मोबाइल या लैपटौप लपक लेते हैं कि देखें डिजिटल वर्ल्ड में क्या चल रहा है.

कहीं कोई हम से ज्यादा पौपुलर तो नहीं हो गया है, कहीं किसी की पिक्चर को हमारी पिक्चर से ज्यादा कमैंट्स या लाइक्स तो नहीं मिल गए हैं, हम इन्हीं चक्करों में अपना वक्त जाया कर रहे हैं और अगर ऐसा हो जाता है, तो हम प्रतियोगिता पर उतर आते हैं. हम कोशिशों में जुट जाते हैं फिर कोई ऐसा धमाका करने की, जिस से हमें इस डिजिटल वर्ल्ड में लोग और फौलो करें.

भले ही हमारे निजी रिश्ते कितने ही दूर क्यों न हो रहे हों, हम उन्हें ठीक करने पर उतना ध्यान नहीं देते, जितना डिजिटल वर्र्ल्ड के रिश्तों को संजोने पर देते हैं.

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आउटडेटेड हो गया है औफलाइन मोड

–  आजकल हम औनलाइन मोड पर ही ज्यादा जीते हैं, औफलाइन मोड जैसे आउटडेटेड सा हो गया है.

–  यह सही है कि इंटरनैट की बदौलत ही हम सोशल साइट्स से जुड़ पाए और उन के जरीए अपने वर्षों पुराने दोस्तों व रिश्तेदारों से फिर से कनैक्ट हो पाए, लेकिन कहीं न कहीं यह भी

सच है कि इन सब के बीच हम ने निजी रिश्तों और फुरसत के पलों को खो दिया है.

–  शायद ही आप को याद आता हो कि आखिरी बार आप ने अपनी मां के साथ बैठ कर चाय पीते हुए सिर्फ इधरउधर की बातें कब की थीं या अपने छोटे भाईबहन के साथ यों ही टहलते हुए मार्केट से सब्जी लाने आप कब गए थे?

–  बिना मोबाइल के आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ कब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे?

–  अपनी पत्नी के साथ बैडरूम में बिना लैपटाप के बिना ईमेल चैक करते हुए कब यों ही शरारतभरी बातें की थीं?

–  अपने बच्चे के लिए घोड़ा बन कर उसे हंसाने का जो मजा है वह शायद इस जैनरेशन और अगली जैनरशन के पिता जान भी नहीं पाएंगे.

–  आजकल सिर्फ पिता ही नहीं, मांएं भी इंटरनैट के बोझ तले दबी हैं. वर्किंग वूमन के लिए  भी अपने घर पर टाइम देना और फुरसत में परिवार के साथ समय बिताना नामुमकिन सा हो गया है.

–  युवा तो पूरी तरह इंटरनैट की गिरफ्त में हैं और वहां से बाहर निकलना भी नहीं चाहते. आजकल जिन लोगों के पास इंटरनैट कनैक्शन नहीं होता या फिर जो लोग सोशल साइट्स पर नहीं होते, उन पर लोग हंसते हैं और उन्हें आउटडेटेड व बोरिंग समझ जाता है.

स्वास्थ्य के लिए जहर बनता इंटरनैट

–  डाक्टर की मानें तो सोशल साइट्स पर बहुत ज्यादा समय बिताना एक तरह का एडिक्शन है. यह ऐडिक्शन ब्रेन के उस हिस्से को एक्टिवेट करता है, जो कोकीन जैसे नशीले पदार्थ के एडिक्शन पर होता है.

–  ‘यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन’ की एक स्टडी के मुताबिक, जो लोग सोशल साइट्स पर अधिक समय बिताते हैं, वे अधिक अकेलापन और अवसादग्रस्त महसूस करते हैं क्योंकि जितना अधिक वे औनलाइन इंटरैक्शन करते हैं, उतना ही उन का फेस टु फेस संपर्क लोगों से कम होता जाता है.

–  इंटरनैट का अधिक इस्तेमाल करने वालों में स्ट्रैस, निराशा, डिप्रैशन और चिड़चिड़ापन पनपने लगता है. उन की नींद भी डिस्टर्ब रहती है. वे अधिक थकेथके रहते हैं.

–  इन सब के बीच आजकल सैल्फी भी एक क्रेज बन गया है, जिस के चलते सब से ज्यादा मौतें भारत में ही होने लगी हैं.

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–  लोग यदि परिवार के साथ कहीं घूमने भी जाते हैं, तो उस जगह का मजा लेने के बजाय पिक्चर्स क्लिक करने के लिए बैकड्रौप्स ढूंढ़ने में ज्यादा समय बिताते हैं. एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम गुजारने की जगह सैल्फी क्लिक करने पर ही सब का ध्यान रहता है, जिस से ये फुरसत के पल बो?िल हो कर गुजर जाते हैं और हमें लगता है कि इतने घूमने के बाद भी रिलैक्स्ड फील नहीं कर रहे हैं.

–  मूवी देखने या डिनर पर जाते हैं, तो सोशल साइट्स के चैकइन्स पर ही हमारा ध्यान ज्यादा रहता है.

–  सार्वजनिक जगहों पर भी लोग एकदूसरे को देख कर अब मुसकराते नहीं क्योंकि सब की नजरें अपने मोबाइल फोन पर ही टिकी रहती हैं. रास्ते में चलते हुए या मौल में जहां तक भी नजर दौड़ाएंगे, लोगों की ?ाकी गरदनें ही पाएंगे. इसी के चलते कई ऐक्सीडैंट भी होते हैं.

  इंटरनैट से बढ़ते अपराध 

–  इंटरनैट ने साइबर अपराधों को इस कदर बढ़ा दिया है कि अब हर जिले में साइबर सैल बनाने जरूरी हो गए हैं. बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग साइबर अपराधों की चपेट में सब से ज्यादा हैं.

–  इंटरनैट पर आजकल आसानी से पोर्न वीडियो देखे जा सकते हैं. चाहे आप किसी भी उम्र के हों, अगर आप के हाथ में स्मार्ट फोन है तो आप पोर्न वीडियो देख सकते हैं. इंटरनैट के घटते रेट्स ने इन साइट्स की डिमांड और बढ़ा दी है. बच्चों पर जहां इस तरह की साइट्स बुरा असर डालती हैं, वहीं बड़े भी इन की गिरफ्त में आते ही अपनी सैक्स व पर्सनल लाइफ को रिस्क पर ला देते हैं. इस की लत ऐसी लगती है कि वे रियल लाइफ में भी अपने पार्टनर से यही सब उम्मीद करने लगते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इन वीडियोज को किस तरह से बनाया जाता है. इन में गलत जानकारी दी जाती है, जिस का उपयोग निजी जीवन में संभव नहीं है.

–  अकसर ऐक्स्ट्रामैरिटल अफेयर्स भी औनलाइन ही होने लगे हैं. चैटिंग कल्चर लोगों को इतना भा रहा है कि अपने पार्टनर को चीट करने से भी वे हिचकिचाते नहीं हैं. इस से रिश्ते टूट रहे हैं, दूरियां बढ़ रही हैं.

–  कुछ युवतियां अधिक पैसा कमाने के चक्कर में गलत साइट्स के मायाजाल में फंस जाती हैं. बाद में उन्हें ब्लैकमेल कर के ऐसे काम करवाए जाते हैं, जिन से बाहर निकलना उन के लिए संभव नहीं होता है.

–  इंटरनैट बैंकिंग फ्रौड के केसेज भी अब आम हो गए हैं. आप की बैंक डिटेल पता कर के अपराधी आप के अकाउंट से सारा पैसा औनलाइन ही अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर लेता है और आप देखते रह जाते हैं. ये तमाम बातें स्पष्ट करती हैं कि इंटरनैट सुविधा की जगह मुसीबत ज्यादा बन गया है. इस ने हम से हमारे रिश्ते छीन लिए हैं, हमारी सुरक्षा छीन ली है, हमारे फुरसत के क्षण छीन लिए हैं और हमें अपनों के बीच अकेला कर दिया है.

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नैटिकेट्स का रखें ध्यान

नैटिकेट्स शब्द नैट और ऐटिकेट्स से मिल कर बना है और इस का मतलब है औनलाइन बिहेवियर के नियमों का पालन करना. जैसे रियल लाइफ में ऐटिकेट्स का पालन करना जरूरी होता है वैसे ही नैटिकेट्स, औनलाइन शिष्टाचार का पालन न करने से भी आप परेशानी में पड़ सकते हैं. इन नियमों का पालन करने से आप अपना औनलाइन टाइम ज्यादा अच्छी तरह ऐंजौय कर सकते हैं.

हाल ही की एक डिजिटल रिपोर्ट के अनुसार हम रोज लगभग 6 घंटे 42 मिनट औनलाइन बिताते हैं. हम अपने स्मार्टफोन, लैपटौप में चैटिंग, गेम्स, फोटो लेने, उन्हें शेयर करने और भी बहुत कुछ करने में व्यस्त रहते हैं. इतना औनलाइन रहने पर हमारा औनलाइन बातों में व्यस्त रहना स्वाभाविक है. हो सकता है ऐसे बहुत से लोग हों जो नैटिकेट्स न जानते हों और कई गलतियां कर रहे हों. उन्हीं के लिए हैं ये टिप्स:

– जब आप औनलाइन बात कर रहे हों तो अपनी भाषा का ध्यान रखें. यह न सोेचें कि आप को कोई देख नहीं रहा है तो आप कैसी भी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं.

– बात को लंबा न खींचें. मतलब कि जरूरी बात करें. बेकार की लंबी, बोरिंग बातचीत से बचें.

– ईमेल, चैट, टैक्स्ट या सोशल मीडिया पोस्ट के कमैंट्स हों, सैंड बटन दबाने से पहले एक  बार हर चीज अच्छी तरह पढ़ें.\

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– टाइप करते हुए कैपिटल्स यूज न करें. इस से चिल्लाने की फीलिंग आती है. जैसे आप को अगर नेवर लिखना हो तो आप उसे कैपिटल में न लिखें. इस से जोर से बोलने वाली फीलिंग आती है और वह इन्सल्टिंग लगता है. आप किसी पर नैट पर चिल्लाएं या रियल लाइफ में सामने बैठ कर उसे अच्छा नहीं लगेगा.

– ईमल भेजते हुए सब्जैक्ट लाइन चैक कर लें. यह काम से संबंधित मेल्स के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर आप सब्जैक्ट लाइन में हाय लिखती हैं तो हो सकता है उसे अर्जेंट न सम झा जाए और बाद में देखने के लिए छोड़ दिया जाए.

– न तो किसी के प्राइवेट फोटो या बातचीत शेयर करें और न ही पोस्ट. इस से किसी के साथ आप के रिश्ते खराब हो सकते हैं.

– औनलाइन दुनिया में स्पीड का ध्यान रखें. ईमेल्स और मैसेज का जवाब टाइम से दें, भले ही टौपिक अर्जेंट न हो, पर हफ्ते के अंदर जवाब जरूर दे दें. इग्नोर न करें.

– किसी को लगातार मेल्स न भेजें. किसी से अपने मेल्स पढ़वाने के लिए जबरदस्ती न करें. यह अशिष्टता है.

– शेयरिंग करें पर अपनी पर्सनल लाइफ की हर छोटी डिटेल शेयर करने से बचें.

– गौसिप न करें, जिन बातों पर आप को पूरी तरह विश्वास न हो कि वे सच हैं, उन की कहानियां न सुनाएं और कई बार अगर कोई सच बात आप को पता भी हो तो जरूरी नहीं होता कि आप शेयर करें ही.

– आप को कितनी भी जरूरत हो आप वैब से फोटो न चुराएं. हो सकता है उन का कौपीराइट हो और किसी ने इस पर बहुत मेहनत और टाइम लगाया हो. परमिशन लें और क्रैडिट भी दें.

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– कमैंट्स छोटे रखें, औनलाइन डिस्कशन के समय अपनी बात साफसाफ रखते हुए पोस्ट करें.

– किसी की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले अच्छी तरह सोच लें. फ्रैंड लिस्ट में ऐड करने के बाद अनफ्रैंड करना इन्सल्टिंग होता है.

जब तक रिश्ता बहुत खराब न हो जाए, अनफ्रैंड न करें.

इंटरनेट के अत्याधिक इस्तेमाल से बढ़ रहा डिप्रेशन का खतरा

इंटरनेट आज लोगों की जरूरत बन चुकी है. एक ओर जहां इससे बहुत से फायदे होते हैं, वहीं हमारी मानसिक सेहत पर इसका काफी बुरा असर हो रहा है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में पहली बार दावा किया गया कि इसकी वजह से किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

एक निजी समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार पहले के अध्ययनों में यह पता नहीं लगाया जा सका था कि इंटरनेट पर कितने घंटे काम करने से अवसाद का खतरा पैदा हो सकता है.

चीन में 15 वर्ष आयुवर्ग वाले 1,000 किशोरों पर अवसाद और चिंता का अध्ययन किया गया. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि इंटरनेट की लत का शिकार बन चुके किशोरों में अवसाद करीब ढाई गुना ज्यादा खतरा रहता है.

औस्ट्रेलिया में सिडनी के स्कूल औफ मेडिसिन के लॉरेंस लाम और चीन में शिक्षा मंत्रालय के जी-वेन पेंग व गुआंगजोउ विश्वविद्यालय के सन यात-सेन ने इस अध्ययन का संचालन किया.

करीब छह फीसदी या 62 किशोरों को ऐसी श्रेणी में रखा गया जो इंटरनेट के उपयोग के चलते मामूली रूप से प्रभावित हैं जबकि 0.2 फीसदी या दो किशोरों में इससे गंभीर खतरा देखा गया.

नौ महीने बाद इनमें अवसाद और चिंता का दोबारा परीक्षण किया गया. आठ फीसदी से ज्यादा या 87 किशोर अवसाद की चपेट में आ गए थे.

लाम ने कहा, “इस निष्कर्ष से साफ है कि ऐसे किशोर जिन्हे मानसिक रूप से कोई शिकायत नहीं है, यदि इंटरनेट की लत का शिकार हो जाते हैं तो उनमें बाद में ये समस्याएं पैदा हो सकती हैं.”

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