family story in hindi

family story in hindi
लेखिका- छाया श्रीवास्तव
‘‘यह तो ठीक है पापा. परंतु आप मुकेश भैया से सब हाल तो सुन लो,’’ वह संकोच से बोला.
‘‘नहींनहीं, रहने दें. हम यहीं से दूसरे खरीद कर रख देंगे. आप अभी रस्म तो पूरी होने दें, यह जरूर है कि इतने भारी न ले पाएंगे, क्षमा चाहते हैं हम इस के लिए.’’
‘‘परंतु मैं चाहता हूं कि आप वह सब इन सब को भी सुना दें, जो मधु भाभी के बारे में मु झे बतलाया है. आप लोगों ने जानबू झ कर तो नहीं बताया, मेरे खुद पूछने पर ही तो बताया है,’’ संजय बोला.
सहसा निखिल का मुंह अपमान की भावना से तमतमा गया. उसे मन ही मन मधु की दानशीलता पर क्रोध आ रहा था. क्यों मान ली सब ने उस की बात? यदि सारा सामान इन लोगों ने लेने से इनकार कर दिया तो कितनी थूथू होगी. यही अखिल, मुकेश, पिताजी व साथ आए लोग सोच रहे थे. फिर संजय के बहुत जोर डालने पर मुकेश ने पिछली घटना सुना दी, जो सच थी कि कैसे वह इस संबंध को टाल रहे थे और कैसे मधु ने अपना सारा दहेज ननद विभा को दे कर रिश्ता पक्का कराया, आदि.
‘‘तो क्या हुआ, दे तो रहे हैं सब सामान. किस का है, इस से हमें क्या. हम ने भी तो तेरी बड़ी बहन को कुछ सामान तेरे बड़े भाई के दहेज का दिया था. नाम से क्या, कौन देखेगा नाम? थाल तो आए और रखे गए. कौन रोजरोज इस्तेमाल करता है, इतने बड़े बरतन,’’ पिताजी बोले तथा अन्य व्यक्तियों ने भी इस का अनुमोदन किया.
‘‘परंतु मु झे नहीं चाहिए यह सब,’’ ये शब्द संजय के मुंह से सुन कर सब के मुंह सफेद पड़ गए.
‘‘बेवकूफ है क्या?’’ बड़ा भाई अजय चिल्ला कर बोला.
‘‘तू सब हंसीखेल सम झता है. सामान लाना, खरीदना, ये लोग क्या इतना ले कर चले होंगे? चुपचाप बैठ कर दस्तूर होने दे. आप लोग चिंता न करें, यह तो ऐसा ही हठी है. पंडितजी, दस्तूर कराइए.’’
‘‘नहीं भैया, जब तक ये थाल नहीं चले जाएंगे, मैं कुछ नहीं कराऊंगा. आप अपने भीतर से थाल मंगाइए न,’’ वह अड़ गया.
‘‘तो ठहरिए साहब, हम बाजार से दूसरे ले कर आते हैं, तब तक ठहरना होगा,’’ मुकेश उठता हुआ बोला.
‘‘नहीं, भाईसाहब. आप बैठिए, अंदर से तो आ रहे हैं थाल.’’
‘‘अरे, ये सब तो शगुन के थाल आदि लड़की वाले के यहां से ही आते हैं, थोड़ा रुक लेते हैं.’’
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‘‘नहीं भैया, मैं यह सब अब न ले सकूंगा. जो लिस्ट आप लोगों ने बना कर भेजी थी और जो ये लोग देने वाले हैं. आप जानते ही हैं कि लड़कियों को अपने मायके की एकएक चीज कितनी प्यारी होती है, परंतु जिस घर में ऐसी उदारमना स्त्री हो जो खुशी से अपना सारा दहेज खुद दान कर रही हो उसे ले कर मैं उस उदार स्त्री से छोटा नहीं बन सकता. इस से मैं इन कपड़ों आदि के अलावा अब कोई कोई चीज स्वीकार नहीं करूंगा. मैं अब इस के अलावा आगे कुछ नहीं लूंगा. बिना दहेज के ही उस घर की बेटी ब्याह कर लाऊंगा.
‘‘मैं तो पहले ही भैया, जीजाजी से अनुरोध कर रहा था कि इतना लंबाचौड़ा दहेज मांग कर कन्यापक्ष को आफत में न डालें. अब जो हुआ सो हुआ, आगे कोई मु झे विवश न करे. बस, ये लोग साथ गए बरातियों का अच्छा स्वागत कर दें, वही काफी होगा.’’ पिताजी, बड़े भाई और बहनोई ने यह सुना तो सन्न रह गए. परिवार के अन्य सदस्य भी दौड़े आए. हर प्रकार सम झाया, परंतु संजय अपनी प्रतिज्ञा से नहीं डिगा. घर वालों को कोपभाजन बनने पर उस ने धमकी दे दी कि वे यदि तंग करेंगे तो वह कोर्टमैरिज कर सब की छुट्टी कर देगा. विवशता में उन सब को पीछे हट कर अपनी स्वीकृति देनी पड़ी.
‘‘क्यों निखिल भैया, आप की कोई साली कुंआरी है,’’ संजय के इस प्रश्न पर निखिल सहित सब चौंक गए. निखिल हंस कर बोला, ‘‘भई, क्या इरादे हैं?’’
‘‘इरादे तो नेक हैं, यदि हो तो मेरी बूआ के एकमात्र बेटे हैं ये, सुधीर, सबइंजीनियर, इन के लिए मधु भाभी सी लड़की चाहिए,’’ निखिल का चेहरा खुशी से दमक उठा.
‘‘है तो पर सगी नहीं, चचेरी है.’’
‘‘चचेरी. पता नहीं कैसी हो.’’
‘‘मधु से बढ़ कर. मधु अपनी मां से अधिक चाची को मानती है. संयुक्त परिवार होते हुए भी सब एक थाल में खाने वाले हैं. दोनों परिवारों में बहू व दामाद आ गए हैं, परंतु जैसे उस चोखे रंग में रंग कर एकाकार हो गए हैं. पता नहीं कौन सी ममता और अपनेपन की बूटी खाते हैं उस घर के लोग और वही मधु के साथ अपनेपन की बूटी हमारे घर चली आई है,’’ वह हंस कर बोला.
‘‘ठीक है. यदि लड़की पसंद आ गई तो वह अपनेपन की बूटी हमारी बूआ के घर भी आ जाएगी, शादी में तो आएगी ही वह.’’
‘‘हां, क्यों नहीं? पूरा परिवार आएगा. लड़की स्नातक, गोरीचिट्टी, सुंदर है. नापसंद का तो सवाल ही नहीं उठता.’’
‘‘तब सब से पहली पसंद मेरी होगी वह, है न सुधीर.’’
सुधीर झेंप कर मुसकरा दिया.पहले निखिल मधु की अक्ल पर मन ही मन भरा बैठा था, परंतु उसे अब लग रहा था कि कब वह उड़ कर अपने घर पहुंचे और मधु को बांहों में भर कर नचा डाले और कहे कि बता तो, कौन सी बूटी की घुट्टी पी कर आई है कि सब को इतनी सरलता से उंगलियों पर नचा देती है. यदि वह कल्पवृक्ष उस के मायके के आंगन में लगा है तो वह उसे तोड़ कर पूरे परिवार को घोट कर पिला दे.
उस ने अपने भाइयों और पिताजी की ओर निहार कर देखा जो सभी प्रशंसक नजरों से उसे देख कर मुसकरा रहे थे. उस ने शरम से मुंह घुमा लिया.
दूसरे दिन जब वे गृहनगर पहुंचे तो सुबह हो गई थी. पूरा घर जाग उठा था. सब उन के आसपास एकत्र हो गए. सभी यह जानने को आतुर थे कि तिलक समारोह कैसा रहा.
‘‘मधु कहां है?’’ पिताजी ने उसे न देख कर पूछा.
‘‘होगी कहां, चायनाश्ते की तैयारी में जुटी होगी,’’ मांजी बोलीं. अभी बात भी पूरी नहीं कर पाईं कि वह चाय की ट्रे ले कर बैठक में चली आई. ट्रे मेज पर रख कर उस ने सब के चरण छुए, फिर उन के शब्द सुन कर मूर्ति की तरह खड़ी हो गई.
‘‘बाबूजी, मु झ से कुछ बड़ी गलती हो गई क्या. क्या हुआ मेरे कारण? कृपया बतलाइए न?’’
‘‘हां, बहुत बड़ी गलती हो गई रे. तू ने जो अपने मायके के थाल दिए थे न उन के कारण. ले उठा यहां से अपने थाल और रख आ उन्हें जहां से उठा लाई थी.’’
‘‘हे दाता, क्या उन्हें ये थाल पसंद नहीं आए थे?’’ वह भय से बोली.
‘‘नहीं लिए, क्योंकि तुम उन में विराजी जो थीं,’’ पिताजी गंभीरता से बोले.
‘‘मैं विराजी थी. क्या कह रहे हैं आप?’’ वह आंखें फाड़ कर बोली.
‘‘यह देख, तेरे हर थाल में यह रही मधु, है न?’’
‘‘ओह, मैं तो डर ही गई. तो क्या हुआ, नाम ही तो है, इस से क्या.’’
‘‘इसी से तो नहीं लिए, और वह सब भी नहीं लेंगे जिस में तेरा नाम है.’’
‘‘सब में नाम थोड़े लिखा है,’’ वह रोंआसी हो गई.
‘‘अब क्या होगा? क्या शादी रद्द हो गई?’’
‘‘अरे पगली, अब वे दहेज लेंगे ही नहीं. तेरा गुणगान सुन कर संजय ने दहेज न लेने की सौगंध खाई है. कह रहा था जिस घर में ऐसी ममतामयी बहू हो, उस घर से दानदहेज लेना पाप है. हम ने तेरी सब बातें बतलाईं, तो लड़का द्रवित होता चला गया.’’
‘‘आप बना रहे हैं, बाबूजी,’’ उस की आंखें भर आईं.
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‘‘बैठ बेटी. तुम सब भी बैठो,’’ फिर उन्होंने शुरू से अंत तक सारा हाल बता दिया और मधु के सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘‘मधु, तु झे पा कर हम धन्य हुए. तेरी चचेरी बहन की शादी भी संजय की बूआ के लड़के से तय कर आए हैं. ऐसे परिवार की लड़की कौन पसंद नहीं करेगा जिस परिवार की हमारी मधु जैसी बहू हो. तेरे दोनों जेठ तेरी बड़ाई करते आए हैं, और निखिल तो वहां थालों के विवाद पर तमतमाया मुंह लिए खार खाए बैठा था. अब अपनेआप पानीपानी हो गया है. जा, वह कमरे में तेरी प्रतीक्षा कर रहा है.’’
मधु शरम से दोनों हाथों से मुंह छिपाए कमरे की ओर दौड़ती चली गई. सब ने उसे प्यारभरी नजरों से देख कर मुसकान बिखेर दी, मां तो जैसे धन्य हो गईं. मधु पास होती तो अवश्य उसे छाती से लगा कर रो पड़तीं.
लेखिका- छाया श्रीवास्तव
सुन कर मां का कलेजा करुणा से भर आया. उन्होंने अपनेअपने कमरों के दरवाजे पर खड़ी दोनों बड़ी बहुओं की ओर देख, फिर छोटी बहू की ओर आकंठ ममत्व में डूबे हुए वे कुछ कहने को होंठ खोल ही रही थीं कि मधु साड़ी के छोर से हाथ पोंछती बोली, ‘‘बाबूजी, एक बात कहनी थी, आज्ञा हो तो कहूं?’’
‘‘हां, हां, कह न बहू,’’ वे आर्द्र कंठ से बोले.
‘‘क्या मेरे मायके से जो रुपया नकद मिला था वह सब खर्च हो गया? यह न सोचें कि मु झे चाहिए. यदि जमा हो तो वह विभा के विवाह में लगा दें.’’
‘‘वह, वह तो निखिल ने आधा शायद तभी अपने खाते में जमा कर लिया था. वह तो…’’
निखिल वाशबेसिन में कुल्ला करते घूम कर खड़ा हो गया. उस ने घूर कर मधु की ओर देखा. मधु ने तुरंत उधर से पीठ घुमा ली. फिर वह बोली, ‘‘वह सब निकाल लें और सब लोग कम से कम 25-25 हजार रुपए दें, भरपाई हो जाएगी.’’
‘‘रुपए हुए तो इतना सामान कहां से आएगा बेटी?’’
‘‘वह मेरा सामान तो अभी नया ही सा है, वही सब दे दें. घर में 2-2 फ्रिजों का क्या करना है. न इतने टीवी ही चाहिए. बिजली का खर्च भी तो बचाना चाहिए. मु झे तो ढेरों सामान मिला था. कुछ आलतूफालतू बेच कर बड़ी चीजें ले लें. रंगीन टीवी, फ्रिज, कपड़े धोने की मशीन के बिना भी तो अब तक काम चल रहा था. वैसे ही फिर चल सकता है. आप को घरवर पसंद है तो यहीं संबंध करिए विभाजी का, यही घरबार ठीक है.’’
सब जैसे चकित रह गए. दोनों जेठजेठानियां मुंहबाए अचरज से देख रहे थे और निखिल तो जैसे पहले उबल रहा था, परंतु फिर लगा वह बिलकुल शांत हो गया पत्नी के सामने. पहले उस के मन में आया कि कहीं मधु उस की ससुराल में मिले नए स्कूटर के लिए न कह दे, परंतु अब वह जैसे पिघल रहा था. उस ने पिता से लड़ झगड़ कर विवाह के बाद ससुराल से मिले आधे रुपए झटक कर बैंक बैलेंस बना लिया था. यह बात उस ने मधु से कभी नहीं कही थी. आज जैसे वह पूरे परिवार की नजरों में गिर गया था. रुपयों की बात पर वह बौखला कर कुछ कहने के शब्द संजो रहा था कि मधु की दानशीलता ने उसे गहराई तक गौण बना दिया.
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‘‘मांजी, मेरे पास जेवर भी कई जोड़ी हैं. मैं सब से छोटी हूं न मायके में. इस से बड़े दोनों भाईभाभी व चाचाचाची तथा दोनों बेटेबहुओं ने भी काफी कुछ दिया है. चाची की तो मैं बहुत दुलारी हूं. उन्होंने अलग से कई जेवर दिए हैं, उन्हें बेच कर समस्या हल हो जाएगी. आप लोग चिंता न करें. बाबूजी रिटायर हो गए हैं तो अब यह भार उन का नहीं, उन के तीनों बेटेबहुओं का है. कोई तानाठेना क्यों देगा. क्या कोई पराया है. बहन उन की ननद हमारी, आप तो कुछ शर्तों पर हेरफेर कर हां कर दो. सब ठीक हो जाएगा. कुछ अच्छा काम हम लोग भी तो कर लें.’’
सुन कर बहुत रोकने पर भी नेत्र बरस पड़े. वे भर्राए कंठ से किसी प्रकार बोले, ‘‘छोटी बहू, क्या कहूं? तेरी जैसी तो कहीं मिसाल नहीं है रे, कहां से पाया तू ने ऐसा ज्ञान, उदारता. तू कहां से आ गई इस घर में.’’
‘‘न, न बाबूजी और कुछ नहीं. मैं सह नहीं सकूंगी,’’ कह कर वह आगे बढ़ी उन के मुख पर हाथ रखने को तो उन्होंने उसे कंधे से लगा लिया और फिर उस के सिर पर हाथ रख कर जैसे मन की सारी ममता लुटाने को आतुर हो उठे.
‘‘पता नहीं कौन से कर्म किए थे हम ने कि इस साधारण घर में बहू बन कर चली आई. अरे, धन्य हैं इस के मातापिता और परिवार वाले जो उन्होंने इस मणि को हमारी झोली में डाल दिया. अरे, आ तो मधु. मैं तु झे छाती से लगा कर कलेजा ठंडा कर लूं. अरे, ऐसा तो मैं अपनी औलाद को भी न ढाल पाई.’’
मांजी ने उसे खींच कर कलेजे से लगा लिया. मधु ने लज्जा से अपना मुंह मांजी के आंचल में छिपा लिया. मुकेश, अखिलेश अपनी नम आंखें पोंछ कर उठ खड़े हुए. निखिल वहां से चल कर अपने कमरे में दरवाजे पर खड़ा हो कर मुड़ा और बोला, ‘‘बाबूजी, आप विभा के यहां मंजूरी का पत्र लिख दें, और हां, मेरा स्कूटर मेरा बहनोई चलाएगा. अब थोड़ी साफसफाई हो जाएगी, बस,’’ कह कर वह अंदर घुस गया.
पिता ने बड़े ही आश्चर्य से हठीलेजोशीले बेटे की ओर देखा, ‘क्या यही है 6 माह पूर्व का निखिल, जो ससुराल से मिले रुपयों के लिए कई दिन झगड़ता रहा था और ले कर ही माना था.’
‘‘बाबूजी, जैसे आप की बहू ने आज्ञा दी है, हम सब वहीं विभा की शादी को तैयार हैं. हम दोनों भी जीपीएफ आदि निकाल लेंगे. शादी वहीं होगी,’’ दोनों ने अपना निर्णय सुनाया. तभी दोनों जेठानियां आगे आईं.
‘‘मांजी, हमारे मायके के जो भारी बरतन हों, आप उन्हें साफ कर विभा को दे सकती हैं. कुछ न कुछ हम दोनों के पास भी है.’’
‘‘नहीं, बड़ी दीदी. आप की बेटी शैली बड़ी हो रही है. आप बरतनभांडे कुछ नहीं देंगी. बड़े दादा रुपए भर देंगे. रुपए तो तब तक हम शैली के लिए जोड़ ही लेंगे. अभी जो समय की मांग है वही चाहिए, बस.’’
जो काम पूरे परिवार को पहाड़ काटने सा प्रतीत हो रहा था वह जैसे पलभर में सुल झ गया.
तभी विभा के कमरे से सिसकियों के स्वर बाहर तक गूंजते चले गए. सब उधर दौड़ते चले गए. देखा, विभा पड़ी सिसक रही है. मधु ने घबरा कर उस का सिर गोद में रख लिया. वह अपने पलंग पर पड़ी सिसक रही थी. ‘‘क्या हुआ विभा, क्या हुआ,’’ सब उसे घेर कर खड़े हो गए, विभा थी कि रोए जा रही थी.
‘‘बोल न विभा,’’ मां ने हिला कर पूछा.
‘‘मां, ये भाभियां क्या अभी से वैरागिनी बन जाएंगी? क्या इन का सब सामान संजो कर मैं सुखी हो पाऊंगी?’’ वह रो कर बोली.
‘‘पगली, इतनी सी बात पर ऐसे बिलख रही है, जैसे कुबेर का खजाना लुट गया हो. अरे, यह तो फिर जुड़ जाएगा. मैं नौकरी कर लूं तो क्या फिर न जुड़ पाएगा. फिर अभी कौन कंगाल है, सब चीजें हैं तो घर में, तू सब चिंता छोड़,’’ मधु ने उसे सम झाया.
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‘‘मधु ठीक कहती है, विभा. अभी जो है उसे तो स्वीकार करना ही पड़ेगा. सामान तो हम फिर जोड़ लेंगे. छोटी भाभी की तू चिंता मत कर, वह तो जब से आई है वैरागिनी सी ही तो रहती है. इसी से तो वह राजरानी से बढ़ कर है घरभर के लिए,’’ मुकेश ने उसे सम झाया. तब वह बड़ी कठिनाई से शांत हुई.
फिर बाबूजी ने देर नहीं की. उन्होंने रकम कम करने की प्रार्थना के साथ उन की कुछ ऊंची मांग स्वीकार कर ली थी. कुछ के लिए अगली विदा पर देने की प्रार्थना भी की थी. उन्हें जैसे पूरा विश्वास था कि वे लोग कुछ हद तक मान जाएंगे, क्योंकि उन लोगों को भी लड़की सहित उन का मध्यवर्गीय परिवार पसंद था.
हुआ भी यही. एक माह पश्चात सब शर्तों के साथ शादी तय भी हो गई. रकम भी कम कर दी गई. सामान तो सारा मिल ही रहा था, सब प्रसन्न हो उठे.
तब तक विभा की परीक्षाएं भी हो गईं. फिर सगाई की रस्म हुई. विवाह की तिथि भी निश्चित हो गई. तब गई लग्न. पूरे 7 थाल भर कर गए. साड़ी, सूट, बच्चों के कपड़े व फल, मेवे, मिठाई, अच्छे बड़ेबड़े थाल देख कर घरभर खुश हो उठा. तभी मुकेश द्वारा हाथ पर थाल रखे जाने पर वर संजय की निगाह थाल पर लिखे नाम पर पड़ी जो मशीन द्वारा लिखा गया था. फिर उस ने सब थालों पर नजर डाली तो मन न जाने कैसा हो गया.
थालों पर नाम किस का लिखा है? वह पूछ बैठा.’’
‘‘छोटी बहू, मधु का. ये सब उसी के मायके के थाल हैं.’’
‘‘परंतु आप की बहन का नाम तो विभा है न?’’
‘‘हां, विभा ही तो है.’’
‘‘तो क्या यह उचित लगा आप लोगों को कि किसी के मायके की भेंट किसी को दी जाए?’’ वह थोड़ी तेज आवाज में बोला.
‘‘प्लीज, धीरे बोलिए, असल बात यह है कि 2 वर्र्ष पूर्व ही हम एक बहन के विवाह से निबटे हैं, फिर छोटे भाई निखिल का विवाह किया. लड़के के विवाह में भी तो पैसा लगता है.
‘‘आप के विवाह में भी लग रहा होगा, हम अभी ऐसी परिस्थिति में नहीं थे कि आप लोगों की सारी मांगें पूरी कर सकते. इसलिए ये सब लाना पड़ा. अब तक जितने भी संबंध आए, हम सब को और विभा को आप व आप का पूरा परिवार ही अच्छा लगा. और एक बात और बतलाऊं, छोटी बहू मधु ने ही खुशी से अपना बहुत सा सामान देने की हठ की है, वरना हम लोग तो यह रिश्ता शायद करने का साहस ही न कर पाते,’’ फिर उन्होंने जो घर पर घटित हुआ था, सारा कह सुनाया.
और आखिर में कहा, ‘‘और आप विश्वास करें तब से यह सब दहेज ऐसे ही रखा है, सिवा टीवी और स्कूटर के, सब नया ही है.’’
लड़का लगन की चौक पर बैठा था. घराती और मेहमान सब एक ओर और मुकेश आदि सहित सब दूसरी ओर. वर के निकट सामान के पास कुछ दबेदबे स्वर सुन कर सब पास आ गए. पिता चिंतित हो उठे, मन में कहा, ‘कुछ गड़बड़ हो गई लगती है,’ वे पास आ कर बैठ गए. अखिल और निखिल भी सरक आए, ‘‘क्या बात है, मुकेश?’’
मुकेश ने दबे शब्दों में सब कह दिया. तब तक वर के पिता, भाई तथा अन्य नातेदार भी आ जुटे.
‘‘क्या बात है, संजय?’’
‘‘पापा, ये देख रहे हैं थाल आदि, ये हैं तो नए परंतु इन की पत्नी मधु का नाम गुदा है इन में,’’ उस ने निखिल की ओर इशारा कर के कहा.
‘‘तो इस में क्या हुआ, ऐसा तो चलता ही है, इधर का उधर दहेज का आदानप्रदान. तू तो पागल है बिलकुल.’’
आगे पढ़ें- सहसा निखिल का मुंह अपमान की भावना से…
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लेखिका- छाया श्रीवास्तव
छोटी ननद की शादी की बात वैसे तो कई जगह चल रही थी, किंतु एक जगह की बात व संबंध सभी को पसंद आई. लड़की देख ली गई और पसंद भी कर ली गई. परंतु लेनदेन पर आ कर बात अटक गई. नकदी की लंबीचौड़ी राशि मांगी गई और महंगी वस्तुओं की फरमाइश ने तो जैसे छक्के छुड़ा दिए. घर पर कई दिनों से इसी बात पर बहस छिड़ी हुई थी. सब परेशान से बैठे थे. पिता सहित तीनों भाई, दोनों भाभियां तरहतरह के आरोपों से जैसे व्यंग्य कस रहे थे.
लड़का कोई बड़ा अधिकारी भी नहीं था. उन्हीं लोगों के समान मध्यम श्रेणी का विक्रय कर लिपिक था, परंतु मांग इतनी जैसे कहीं का उच्चायुक्त हो. कई लाख रुपए नकद, साथ ही सारा सामान, जैसे स्कूटर, फ्रिज, वाश्ंिग मशीन, रंगीन टैलीविजन, गैस चूल्हा, मशीन, वीसीआर और न जाने क्या क्या.
‘‘बाबूजी, यह संबंध छोडि़ए, कहीं और देखिए,’’ बड़े बेटे मुकेश ने तो साफ बात कह दी. बड़ी बहू ने भी इनकार ही में राय दी. म झले अखिलेश व उस की पत्नी ने भी यही कहा. छोटा निखिलेश तो जैसे तिलमिला ही गया. वह बोला, ‘‘ऐसे लालचियों के यहां लड़की नहीं देनी चाहिए. अपनी विभा किस बात में कम है. हम ने भी तो उस की शिक्षा में पैसे लगाए हैं. शुरू से अंत तक प्रथम आ रही है परीक्षाओं में, और देखना, एमएससी में टौप करेगी, तो क्या वह नौकरी नहीं कर सकेगी कहीं?’’
‘‘ये सब तो बाद की बातें हैं निखिल. अभी तो जो है उस पर गौर करो. कहीं भी बात चलाओ, मांग में कमी होगी क्या. एक यही घर तो सब को सही लगा है. और जगह बात कर लो, मांग तो होगी ही. आजकल नौकरीपेशा लड़के के जैसे सुरखाब के पर निकल आते हैं. यह लड़का सुंदर है, विभा के साथ जोड़ी जंचेगी. परिवार छोटा है, 2 भाईबहन, बहन का विवाह हो गया. बड़ा भाई भी विवाहित है. छोटा होने से छोटे पर अधिक दायित्वभार नहीं होगा. बहन सुखी रहेगी तुम्हारी,’’ पिताजी दृढ़ स्वर में बोले.
‘‘यह तो ठीक है बाबूजी. 2 लाख रुपए नकद, फिर इतना साजोसामान हम कहां से दे सकेंगे. आभा के विवाह से निबटे 2 ही बरस तो हुए हैं, वहां इतनी मांग भी नहीं थी,’’ अनिल बोला.
‘‘अब सब एक से तो नहीं हो सकते. 2 बरस में समय का अंतर तो आ ही गया है. सामान कम कर दें, तो शायद बात बन जाए. रुपए भी एक लाख तक दे सकते हैं. यदि सामान खरीदना न पड़े तो कुछ निखिल की ससुराल का नया रखा है. अभी 6 माह ही तो विवाह को हुए हैं,’’ बाबूजी बोले.
‘‘तो क्या छोटी बहू को बुरा नहीं लगेगा कि उस के मायके का सामान कैसे दे रहे हैं? कई स्त्रियों को मायके का एक तिनका भी प्रिय होता है,’’ बड़ा बेटा मुकेश बोला.
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‘‘नहीं.’’ ‘‘बिलकुल नहीं, बाबूजी, फालतू का तनाव न पैदा करें. बहुओं में बड़ी और म झली क्या दे देगी अपना कुछ सामान. कोई नहीं देने वाला है, जानते तो हैं आप, जब छोटी का दहेज देंगे तो क्या वह नहीं चाहेगी कि ये दोनों भी कुछ दें, अपने मायके का कौन देगा, टीवी, फ्रिज, अन्य सामान?’’ अखिल बोला.
‘‘न भैया, मैं खुद नहीं चाहता कि मधु के मायके का सामान दें. जब हमें मिला है तो हम कैसे न उस का उपयोग कर पाएं, यह कहां की शराफत की बात हुई? फिर बड़ी व म झली भाभियों का नया सामान है कहां कि वह दिया जा सके,’’ निखिल उत्तेजित हो खीझ कर बोला.
‘‘रहने दो भैया. कोई कुछ मत दो. मना कर दो कि हम इतने बड़े रईस नहीं हैं, न धन्ना सेठ कि उन की इतनी लंबीचौड़ी फरमाइश पूरी कर सकें. हमें नहीं देनी ऐसी कोई चीज जो बहुओं के मायके की हो. कौन सुनेगा जनमभर ताने और ठेने? इसी से आभा को किसी का कुछ नहीं दिया,’’ मां सरोज बोलीं.
‘‘तब और बात थी. मुकेश की मां, अब रिटायर हो चुका हूं मैं. बेटी क्या, बेटोें के विवाह में भी तो लगती है रकम, और लागत लगाई तो है मैं ने. तीनों बेटों के विवाह में हम ने इतना बड़ा दानदहेज कब मांगा था, बेटों की ससुराल वालों से? अपने बेटे भी तो नौकरचाकर थे. हां, छोटे निखिल के समय अवश्य थोड़ाबहुत मुंह खोला था, परंतु इतना नहीं कि सुन कर देने वाले की कमर ही टूट जाए,’’ बाबूजी गर्व से बोले.
‘‘तो ऐसा करो, छोड़ो सर्विस वाला लड़का, कोई बिजनैस वाला ढूंढ़ो, जो इतना मुंह न फाड़े कि हम पैसे दे न सकें,’’ मां बोलीं.
‘‘लो, अभी तक कहती थीं कि लड़का नौकरीपेशा चाहिए. अब कहती हो कि व्यापारी ढूंढ़ो. लड़की की उम्र 21 बरस पार कर गई है. व्यापारी या कैसा भी ढूंढ़तेढूंढ़ते अधिया जाएगी. समय जाते देर लगती है क्या?’’
‘‘तो कर्ज ले लो कहीं से.’’
बाबूजी खिसिया कर बोले, ‘‘कर्ज ले लो. कौन चुकाएगा कर्ज? तुम चुकाओगी?’’
‘‘मैं चुकाऊंगी, क्या भीख मांगूंगी,’’ वे रोंआसी हो कर बोलीं.
‘‘तुम लोग कितनाकितना दे पाओगे तीनों,’’ वे तीनों बेटों की ओर देख कर बोले.
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‘‘बाबूजी, आप जानते तो हैं कि क्लर्क, शिक्षकों की तनख्वाह होती कितनी है. तीनों ही भाईर् लगभग एक ही श्रेणी में तो हैं, वादा क्या करें. निखिल को छोड़ तीनों पर 3-3 बच्चों का भार है. पढ़ाईलिखाई आदि से ले कर क्या बचता है, आप जानते तो हैं क्या दे पाएंगे. हिसाब लगाया कहां है. पर जितना बन पड़ेगा देंगे ही. आप अभी तो उन्हीं को साफ लिख दें कि हम केवल 50 हजार नकद और यह सामान दे सकेंगे, यदि उन्हें मंजूर है तो ठीक, वरना मजबूरी है. एक लाख तो नकद किसी प्रकार नहीं दे पाएंगे, न इतना सामान ही,’’ मुकेश ने कहा तो जैसे दोनों भाइयों ने सहमति से सिर हिला दिया. बड़ी व म झली बहू कब से कमरे में घुसी खुसरफुसर कर रही थीं. छोटी मधु रसोई में थी, चारों जनों को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिला रही थी. 6 माह हुए जब वह ब्याह कर आई थी. तब से वह रसोई की जैसे इंचार्ज बन गई थी. बच्चों सहित पूरे घर को परोस कर खिलाने में उसे न जाने कितना सुख मिलता था.
उस से छोटी हमउम्र विभा जैसे उस की सगी छोटी बहन सी ही थी. गहरा लगाव था दोनों में. विभा विज्ञान ले कर इस बरस स्नातक होने जा रही थी. घर वालों की अनुमति ले कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, जो विषय उस का था पहले वही ननद विभा का था. इस से वह उसे खुद पढ़ाती, बताती रहती. पूरा घर उस पर जैसे जान छिड़कता.
जब से वह आई थी, बड़ी और म झली की झड़पें कम हो गईर् थीं. सासननद का मानसम्मान जैसे बढ़ गया था. बातबात पर उत्तेजित होने वाले तीनों भाई शांत पड़ चले थे. रोब गांठने वाले ससुरजी का स्वर धीमा पड़ गया था. सासुमां की ममता बहुओं पर बेटियों के समान लहरालहरा उठती. कटु वाक्यों के शब्द अतीत में खोते चले जा रहे थे. क्रोध तो जैसे उफन चुके दूध सा बैठ गया था.
‘‘छोटी बहू, यह बाबूजी की दूधरोटी का कटोरा लगता है, मेरे आगे भूल से रख गई हो, यह रखा है.’’
‘‘अरे, मेरे पास तो रखा है, शायद भूल गई.’’
तभी मधु गरम रोटी सेंक कर म झले जेठ के लिए लाई, बोली, ‘‘बड़े दादा, यह दूधरोटी आप ही के लिए है.’’
‘‘परंतु मेरे तो अभी पूरे दांत हैं, बहू.’’
‘‘तो क्या हुआ, बिना दांत वाले ही दूधरोटी खा सकते हैं. देखते नहीं हैं, आप कितने दुबले होते जा रहे हैं. अब तो रोज बाबूजी की ही भांति खाना पड़ेगा. तभी तो आप बाबूजी जैसे हो पाएंगे और देखिए न, बाल कैसे सफेद हो चले हैं अभी से.’’
वे जोर से हंसते चले गए. फिर स्नेह से छलके आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘पगली कहीं की. यह किस ने कहा कि दूधरोटी खाने से मोटे होते हैं व बाल सफेद नहीं होते.’’
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‘‘बाबूजी को देखिए न. उन के तो न बाल इतने सफेद हैं न वे आप जैसे दुबले ही हैं.’’
‘‘तब तो मधु, मु झे भी दूधरोटी देनी होगी. बाल तो मेरे भी सफेद हो रहे हैं,’’ म झला अखिल बोला.
‘‘म झले भैया, आप को कुछ साल बाद दूंगी.’’
‘‘पर छोटी बहू, बच्चों को तो पूरा नहीं पड़ता, तू मु झे देगी तो वहां कटौती
न होगी.’’
‘‘नहीं, बड़े भैया. मैं चाय में से बचा कर दूंगी आप को. अब केवल 2 बार चाय बना करेगी. पहले हम सब दोपहर में पीते थे. फिर शाम को आप सब के साथ. अब हम सब की भी साथ ही बनेगी और आप चुपचाप रोज बाबूजी की तरह ही खाएंगे.’’
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