सिनेमा में न्यूडिटी पर रितिका ने क्या कहा?

बाल कलाकार के रूप में अपने कैरियर को शुरू करने वाली रितिका श्रोत्री महाराष्ट्र के पुणे की हैं. बचपन से ही उन्हें अभिनय की इच्छा थी और इसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. 6 साल की उम्र से उन्होंने मराठी नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था. इसके अलावा उन्होंने मराठी धारावाहिक और फिल्मों में काम किया है. अभिनय के साथ-साथ वो अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं. उन्हें हर नया काम प्रेरित करता है और हर नयी भूमिका में वह अपना सौ प्रतिशत वचनबद्धता रखती हैं. यही वजह है कि उन्हें कई बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला हैस, इनमें मृणाल कुलकर्णी और माधुरी दीक्षित भी हैं. रितिका अपनी नई फिल्म ‘हृदयी वसंत फुलताना’ क साथ बड़े पर्दे पर आने वाली हैं. जिसके प्रमोशन को लेकर वो काफी उत्सुक हैं. फिल्म में वो गांव की एक एक मौडर्न लड़की की भूमिका में नजर आएंगी. हमने उनसे बात चीत की. पेश है हमारी बातचीत का कुछ अंश.

प्र. इस फिल्म में आपकी भूमिका क्या है?

इस फिल्म में मेरा नाम मीनाक्षी है, जो एक गांव की लड़की है. वह गांव की तरह बैकवार्ड विचारों की नहीं है. शहर की लड़की की तरह मौडर्न विचार रखती है. असल में आज के यूथ सोशल मीडिया पर अधिक जागरूक है, कई बार वे इसका गलत इस्तेमाल कर लेते है, जिसका प्रभाव उनपर पड़ता है. ये एक मनोरंजक फिल्म है. इस फिल्म के जरिये आज की युवाओं को संदेश देने की कोशिश की गयी है.

प्र. ये भूमिका आपके पिछले किरदार से कितना अलग है?

अब तक मैंने सिर्फ ग्लैमरस भूमिका निभाई थी, जिसमें इंग्लिश में बात करना, वैसे पोशाक पहनना था. इसमें मैंने टिपिकल गांव की लड़की की भूमिका नहीं निभाई, इसलिए ये चरित्र मेरे लिए चटपटा और चुनौतीपूर्ण रही है. असल में आज के यूथ किसी संदेश को सुनना नहीं चाहता. ऐसे में इसे मजेदार ढंग से दिखाने की कोशिश की गयी है, ताकि दर्शक इसे देखने आएं.

प्र. आपको अभिनय क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मुझे बचपन से अभिनय का शौक था. मैंने 6 साल की उम्र से मराठी नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था. इसके बाद मराठी धारावाहिक में काम करने का मौका मिला. उससे मेरी पहचान बनी और फिल्मों में काम मिलने लगा.

प्र. पहली फिल्म का मिलना कैसे संभव हुआ?

मेरी पहली मराठी फिल्म ‘स्लैम बुक’ थी, जिसमें मैंने मुख्य भूमिका निभाई थी. उस समय मैं मराठी धारावाहिक में काम कर रही थी. जिसमें मेरे अभिनय को फिल्म के निर्देशक ऋतुराज ढालगरे ने देखा और उन्हें मेरा काम बहुत पसंद आया. कई बार औडिशन हुए और अंत में मैं चुनी गयी और फिल्म सफल रही. इसके बाद मुझे फिल्म ‘बकेट लिस्ट’ भी मिली जिसमें मैंने माधुरी दीक्षित की बेटी की भूमिका निभाई थी. मुझे हर तरह की भूमिका निभाना पसंद है.

प्र. काम के साथ-साथ पढ़ाई को कैसे पूरा करती हैं?

मुझे अभिनय के अलावा स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशक बनना पसंद है और उसी तरह से मैंने विषय भी लिए है. मैं एग्जाम से पहले पढ़ती हूं. अभी मैं कौलेज में पढ़ रही हूं. मैं पुणे में रहती हूं और शूटिंग के समय मुंबई आती हूं.

प्र. अब तक का सबसे बेस्ट कोम्प्लिमेट्स क्या मिला?

मैंने पुणे में एक नाटक ‘द लाइट कैचर’ में 9 अलग-अलग भूमिका निभाई है जिसे सभी ने पसंद किया है. ये नाटक कई फेस्टिवल में अवार्ड भी जीत चुकी है. इसमें मेरे काम को सभी ने सराहा है. इस नाटक का राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंचन हो रहा है.

प्र. क्या कभी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा?

नहीं, मुझे हमेशा काम का अच्छा माहौल मिला है. छोटी-छोटी कुछ घटनाओं के अलावा मुझे कुछ समस्या नहीं आई. मैं भी क्या सही या क्या गलत है, उसकी परख करना जानती हूं.

प्र. समय मिलने पर क्या करना पसंद करती हैं?

समय मिलने पर लिखती हूं.मैं एक डांसर भी हूं. मैंने भरतनाट्यम, लैटिन और सालसा सिखा है.

प्र. आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता का कितना सहयोग रहा है?

उन्होंने हमेशा ही सहयोग दिया है. जब मैं 6 साल की थी ,तबसे अभिनय कर रही हूं. उन्होंने हमेशा मेरे काम की सराहना की है और प्रोत्साहन दिया है. मुझे मुंबई छोड़ने हमेशा मेरे पिता आते थे और मेरी मां मेरे साथ शूटिंग तक रहती है. बड़ा भाई निहार भी मेरे काम से बहुत खुश है.

प्र. कितना संघर्ष रहा है?

मुझे धारावाहिक में काम आसानी से मिल गया था. इससे मुझे मराठी अच्छी फिल्में मिली और एक पहचान बनी. मैं सिर्फ मराठी ही नहीं,  अलग-अलग भाषा की फिल्मों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर करना चाहती हूं. इसमें संघर्ष कई प्रकार के है, पर मैं इसे एन्जौय करती हूं.

प्र. फिल्म में अन्तरंग दृश्यों को करने में कितनी सहज हैं?

मुझे न्यूडिटी बिल्कुल पसंद नहीं. कभी ‘वल्गर’ दिखना नहीं चाहती. मुझे अच्छी और मनोरंजक फिल्म करने की इच्छा है, लेकिन अगर स्क्रिप्ट की डिमांड है, तो रोमांटिक दृश्य करने में कोई असहजता नहीं.

प्र. आप कितनी फैशनेबल और फूडी हैं?

फैशन मेरे लिए आरामदायक कपड़ों से है. मुझे अधिक कपड़े खरीदने का शौक नहीं. मेरी एक स्टाइलिस्ट है, उसके अनुसार कपड़े पहनती हूं.

मैं बहुत फूडी हूं. नौनवेज बहुत पसंद है. मेरे पिता और भाई दोनों ही बहुत अच्छा नौनवेज बनाते हैं.

हाथियों के अवैध शिकार पर बनी फिल्म ‘जंगली’

हर 15 मिनट में एक हाथी का शिकार उसके दांतों के लिए होता है, इसलिए हाथी दांत से बने सामानों का प्रयोग न करने की सलाह देती फिल्म ‘जंगली’ को अमेरिकन फिल्म मेकर और निर्देशक चक रसेल ने ‘जंगली प्रोडक्शन हाउस’ के तहत एक्शन पैक्ड मनोरंजक फिल्म बनायी. ये सही भी है कि जानवरों का अवैधशिकार विश्व में सभी स्थानों पर होता आया है और इसमें सुरक्षा अधिकारी से लेकर सभी शामिल होते हैं और ऐसे में उन्हें पकड़ना किसी भी सरकार या संस्था के लिए मुमकिन नहीं. ये कहानी कोई नयी नहीं, पर इसमें हाथियों की सुरक्षा जरुरी है, इसे स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए अभिनेता विद्युत् जामवाल ने अपने उम्दा और भावनात्मक अभिनय को जानवरों की भावना से जोड़ने की कोशिश की है. जो काबिले तारीफ है. विद्युत जामवाल से अधिक कोई भी अभिनेता इस किरदार में फिट नहीं बैठ सकता था.

ये फिल्म वाकई पारिवारिक फिल्म है. इसमें बच्चों को जानवरों के प्रति सहानुभूति, स्नेह और संवेदनशीलता को बनाये रखने की दिशा में सीख देती है. इसके अलावा फिल्म में पत्रकार के रूप में आशा भट्ट, महावती के रूप में मराठी एक्ट्रेस पूजा सावंत, मकरंद देशपांडे और अतुल कुलकर्णी ने काफी अच्छा काम किया है. कहानी इस प्रकार है,

राज नायर (विद्युत् जामवाल) मुंबई का रहने वाला एक वेटेनरी डौक्टर है और वह जानवरों की  मानसिकता को अच्छी तरह समझता है. अपनी मां की मौत के बाद वह शहर आ जाता है और 10 साल बाद वह ओड़िसा के ‘चन्द्रिका एलीफैंट सेंचुअरी’ जाता है. जहां उसका पिता और महावती के रूप में शंकरा (पूजा सावंत) हाथियों की देखभाल करते है. वहां टीवी जर्नलिस्ट मीरा ( आशा भट्ट) भी पहुंचती हैं, जो जंगल की पूरी कहानी को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं. राज वहां आने पर कुछ शिकारियों द्वारा हाथी दांत के लिए हाथियों के अवैध शिकार को देखकर मर्माहत होता है और उन्हें सजा देने की कसम खाता है. इसी तरह कहानी कई परिस्थितियों से गुजर कर अंजाम तक पहुंचती है.

इस फिल्म की शूटिंग थाईलैंड में की गयी है, जिसे सिनेमेटोग्राफर मार्क इरविन ने बहुत ही शानदार तरीके से जानवरों और कलाकारों के तालमेल, साथ ही कलरीपट्टू की भव्यता को अंजाम दिया है, पर फिल्म में एक्शन को थोड़ा कम कर जानवरों के भावनात्मक जुड़ाव को थोड़ा अधिक दिखाया जाता तो फिल्म शायद थोड़ी और अच्छी लगती. इसके अलावा निर्देशक ने हिंदी फिल्म को पहली बार भारतीय परिवेश में बनाते हुए आत्मशक्ति को बढाने के लिए गणपति का अचानक प्रकट होना,ऐसी फिल्म के लिए अजीब लगा. फिल्मके संगीत काहानी के अनुरूप है. बहरहाल फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य है. इसे थ्री स्टार दिया जा सकता है.

हिंदी की वो 10 फिल्में जिसे हर लड़की को देखनी चाहिए

‘सिनेमा समाज का आईना होता है’ ये एक प्रचलित कहावत है. अधिकतर फिल्मों में हिरोइन का अस्तित्व हीरो की वजह से होता है. यही सच्चाई है हमारे समाज की. पुरुष प्रधान इस समाज में महिलाओं के अस्तित्व को पुरुष ये इतर सोचा नहीं जाता. पर समय के साथ समाज बदला और फिल्में भी बदली. सही मायनो में कहे तो अब फिल्में समाज को राह दिखा रही हैं. समाज और फिल्मों का ये बदला हुआ ट्रेंड आज का नहीं है. इसकी शुरुआत को एक लंबा अरसा हो चुका है.

आज महिलाओं की जो बेहतर स्थिति है उसमें हमारी फिल्मों का भी अहम रोल है. कुछ फिल्मों  के सहारे हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे फिल्मों के बदलते संदेश, स्वरूप ने महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाया. कैसे दशकों पुरानी फिल्मों के असर को आज समाज के बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है.

तो आइए जाने उन 10 बड़ी फिल्मों के बारे में जिन्होंने महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया ही बदल दिया.

मदर इंडिया

10 must watch movies for girls

आजादी से ठीक 10 साल बाद 1957 में आई इस फिल्म ने देश की दशा को दुनिया के सामने ला दिया. फिल्म को औस्कर में नामांकन मिला. महमूद के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नरगिस, राज कुमार, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार ने मुख्य किरदार निभाया. पर फिल्म की कहानी नरगिस के इर्दगिर्द घूमती रही.  उनके उस किरदार ने महिला शक्ति को एक अलग ढंग से दुनिया के सामने परोसा. जिस दौर में महिला सशक्तिकरण की बहस तक मुख्यधारा में नहीं थी, उस बीच ऐसी फिल्म का बनना एक दूरदर्शी कदम समझा जा सकता है.

बैंडिट क्वीन

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1994 में शेखर कपूर ने निर्देश में बनी ये फिल्म अपने वक्त की सबसे विवादित फिल्म थी. डाकू फूलन देवी के जीवन पर बनी इस फिल्म ने गरीबी, शोषण, महिलाओं की दयनीय स्थिति, जातिवादी व्यवस्था का भद्दा रूप सबके सामने लाया. फिल्म में फूलन देवी के डाकू वाली छवि से इतर, पितृसत्तात्मक समाज से लड़ाई लड़ने वाली एक लड़ाके के रूप में दिखाया गया. फिल्म ने लंबे समय से चले आ रहे महिला उत्थान,  समाजिक सुधार के बहस को और गर्मा दिया. दुनिया के सामने भारतीय ग्रामीण महिलाओं की एक सच्ची छवि रख दी. फिल्म का जबरदस्त विरोध हुआ.

मैरी कौम

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दुनियाभर में बौक्सिंग में देश का नाम रौशन करने वाली बौक्सर मैरी कौम लड़कियों के लिए किसी रोल मौडल कम नहीं हैं. 2014 में उनके संघर्ष, लड़ाई, मेहनत को बड़े पर्दे पर लाया निर्देशक ओमंग कुमार ने. फिल्म का बौक्स औफिस पर ठीकठाक प्रदर्शन रहा पर इसके संदेश ने महिलाओं की लड़ाई का एक चेहरा समाज के सामने लाया. फिल्म ने दिखाया कि अगर आपके पास जज्बा है, अगर आप जुनूनी हैं तो आपको आपकी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. महिला सश्क्तिकरण का मैरी कौम एक बेहतरीन उदाहरण हैं.

राजी

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2018 में आई इस फिल्म को स्पाई और इंटेलिजेंसी वाली फिक्शन फिल्मों से पुरुषों के एकाधिकार को खत्म करने वाली कुछ फिल्मों के तौर पर देखा जा सकता है. फिल्म में आलिया भट्ट के किरदार की खूब तारीफ हुई. फिल्म में विकी कैशल के बावजूद लीड रोल में आलिया रहीं, इसके बाद भी फिल्म को दर्शकों ने पसंद किया. ये दिखाता है कि वक्त बदल रहा है हीरो के बिना भी फिल्मों को स्वीकारा जाता है.

क्वीन

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हाल के कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण के लिए क्वीन से बेहतर कोई फिल्म नहीं बनी. ऐसा बोल कर हम बाकी फिल्मों को नकार नहीं रहे. बल्कि हमारे ये कहने के पीछे एक कारण है जो आगे आपको समझ आएगा.

इस फिल्म में कंगना एक बेहद साधारण सी शहरी लड़की के किरदार में थी. किरदार ऐसा कि एक बड़ी आबादी इसे खुद से जोड़ सके. किसी भी फिल्म के लिए इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती कि वो एक बड़ी आबादी से जुड़ जाए. ‘पुरुष के बिना महिला का जीवन संभव नहीं’ इस बात पर एक तंमाचा है ये फिल्म. मिडिल क्लास लड़की जिसकी कोई कहानी नहीं होती, वो भी कैसे अपनी कहानी कह सकती है, इस फिल्म ने बताया. देश में महिला सशक्तिकरण पर बनी फिल्मों की लिस्ट क्वीन के बिना अधूरी है.

वाटर

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रूढ़ीयां, कुरीतियां, धार्मिक जंजाल, पर एक करारा तमाचा है वाटर. फिल्म को बैन कर दिया गया था. इसका कंटेंट इसना सच्चा था कि समाज इसको अपनाने को तैयार ना हो सका. फिल्म ने दो मुद्दे प्रमुख रहें. एक बाल विवाह और दूसरा विधवाओं का जीवन. कैसे समाजिक कुरीतियां एक विधवा से खुश रहने की सारी वजहों को छीन लेता है, फिल्म में जबरदस्त अंदाज में दिखाया गया है.

पिंक

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मौडर्न लाइफस्टाइल में, खास कर के मेट्रो शहरों में महिलाओं की क्या स्थिति है. फिल्म में दिखाया गया कि कैसे तथाकथित मौडर्न सोसाइटी आज भी महिलाओं को केवल एक भोग की वस्तु के रूप में देखती है. इस फिल्म के माध्यम से महिलाओं के प्रति समाज की नजर, रवैये, धारणाएं, पूर्वानुमान आदि चीजों को एक सलीके से बड़े पर्दे पर उतारा गया.

इंगलिश विंगलिश

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श्रीदेवी की कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक है इंगलिश विंग्लिश. लेट एज अफेयर जैसे महत्वपूर्ण बिंदू को भी फिल्म में जगह दी गई. फिल्म से बच्चों का अपने मां बाप के प्रति नजरिए को भी प्रमुखता से दिखाया गया.

मौम

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श्रीदेवी की फिल्म मौम एक सौतेली बेटी और मां के बीच की कहानी है. अपनी बेटी का रेप हो जाने के बाद कैसे एक मां आरोपी को सजा दिलाने के लिए कुछ भी कर सकती है फिल्म में बखूबी ढंग से दिखाया गया. समाज में महिलाओं के कमजोर छवि को दूर करने में फिल्म अहम योगदान निभाती है.

बेगम जान

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बेगम जान बंगाली फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म में विद्या बालन एक तवाफ के किरदार में हैं. फिल्म में औरतों के आत्मसम्मान की लड़ाई को बेहतरीन अंदाज में दिखाया गया है.

पीरियड्स: एंड औफ सेंटेंस

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इसी साल आई इस डौक्यूमेंट्री फिल्म ने दुनिया को हौरान कर दिया. 26 मिनट की इस डौक्यूमेंट्री ने हरियाणा के एक छोटे से गांव के हालात को पर्दे पर बयां कर औस्कर में ‘बेस्ट डौक्यूमेंट्री औवर्ड’ अपने नाम किया. पीरियड को ले कर लोगों के मन में जो धारणा है उसपर ये फिल्म एक व्यंग है. महिलाओं की सुधरती स्थिति और जागरुकता के तमाम दावों को धता बताते हुए फिल्म ने समाज की नंगी तस्वीर सामने लाई. ये फिल्म भारतीय नहीं है. चूंकि इसकी पृष्ठभूमि भारतीय है, हमने इसे अपनी लिस्ट में जगह दी.

केन्द्र सरकार ने इन दवाइयों पर लगा दिया है प्रतिबंध, देखें आप भी

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में कई दवाइयों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन प्रतिबंधित दवाइयों में पेट दर्द, दस्त, ब्लड प्रेशर जोड़ो का दर्द, सर्दी जुकाम, बुखार समेत 80 जेनरिक एफडीसी दवाइयों पर रोक लगाई है. सूत्रों की माने तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने 80 नए जेनरिक एफडीसी पर रोक लगाई है. अब इनके मौन्यूफैक्चरिंग और बिक्री नहीं हो पाएगी. अपने इस कदम के पीछे केंद्र का कहना है कि ये दवाएं प्रयोग के लिए सुरक्षित नहीं हैं. आपको बता दें कि इन दवाइयों का कारोबार करीब 900 करोड़ रुपये का है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिन 80 जेनरिक FDC दवाओं को प्रतिबंधित किया है उसमें पेट दर्द, उल्टी,बल्ड प्रेशर, जोड़ों के दर्द, बुखार, सर्दी जुकाम,बुखार की दवाइयां शामिल हैं. फिक्सड डोज कौम्बिनेशन वाली इन दवाओं में अधिकतर एंटीबायोटिक दवाइयां हैं. इससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने 300 से अधिक FDCs को प्रतिबंधित किया था.
पुरानी सूची की वजह से Alkem, Microlabs, Abbott सिप्ला , ग्लेनमार्क इंटास फार्मा फाइजर वाकहार्ड और Lupin जैसे कंपनियों के कई ब्रांड प्रतिबंधित हुए थे. गौरतलब है कि पुरानी सूची से 6000 से अधिक ब्रांड बंद हुए थे.

फिल्म रिव्यू : बौम्बैरिया

रेटिंग : एक स्टार

गवाह की सुरक्षा के अहम मुद्दे पर अति कमजोर पटकथा व घटिया दृष्यों के संयोजन के चलते ‘बौम्बैरिया’ एक घटिया फिल्म बनकर उभरती है. बिखरी हुई कहानी, कहानी का कोई ठोस प्लौट न होना व कमजोर पटकथा के चलते ढेर सारे किरदार और कई प्रतिभाशाली कलाकार भी फिल्म ‘‘बौम्बैरिया को बेहतर फिल्म नहीं बना पाए.

फिल्म की शुरूआत होती है टीवी पर आ रहे समाचारनुमा चर्चा से होती है. चर्चा पुलिस अफसर डिमैलो के गवाह को सुरक्षा मुहैया कराने और अदालत में महत्वपूर्ण गवाह के पहुंचने की हो रही है.फिर सड़क पर मेघना (राधिका आप्टे) एक रिक्शे से जाते हुए नजर आती हैं. सड़के के एक चौराहे पर एक स्कूटर की उनके रिक्शे से टक्कर होती है और झगड़ा शुरू हो जाता है. इसी झगड़े के दौरान एक अपराधी मेघना का मोबाइल फोन लेकर भाग जाता है. और फिर एक साथ कई किरदार आते हैं. पता चलता है कि मेघना मशहूर फिल्म अभिनेता करण (रवि किशन) की पीआर हैं. उधर जेल में वीआईपी सुविधा भोग रहा एक नेता (आदिल हुसैन )अपने मोबाइल फोन के माध्यम से कई लोगों के संपर्क में बना हुआ है. वह नहीं चाहता कि महत्वपूर्ण गवाह अदालत पहुंचे. पुलिस विभाग में उसके कुछ लोग हैं, जिन्होने कुछ लोगों के फोन टेप करने रिक्शे किए है और इन सभी मोबाइल फोन के बीच आपस में होने वाली बात नेता जी को अपने मोबाइल पर साफ सुनाई देती रहती है. पुलिस कमिश्नर रमेश वाड़िया (अजिंक्य देव) को ही नहीं पता कि फेन टेप करने की इजाजत किसने दे दी. नेता ने अपनी तरफ से गुजराल (अमित सियाल) को सीआईडी आफिसर बनाकर मेघना व अन्य लेगों के खिलाफ लगा रखा है. अचानक पता चलता है कि फिल्म अभिनेता  करण की पत्नी मंत्री ईरा (शिल्पा शुक्ला) हैं और वह पुनः चुनाव लड़ने जा रही हैं, तो वहीं एक प्लास्टिक में लिपटा हुआ पार्सल की तलाश नेता व गुजराल सहित कईयों को है, यह पार्सल स्कूटर वाले भ्रमित कूरियर प्रेम (सिद्धांत कपूर) के पास है.तो वहीं एक रेडियो स्टेशन पर दो विजेता अभिनेता करण कपूर से मिलने के लिए बैठे है, पर अभिनेता करण कपूर झील में नाव की सैर कर रहे हैं. तो एक पात्र अभिषेक (अक्षय ओबेराय) का है, वह मेघना के साथ क्यों रहना चाहता है, समझ से परे हैं. कहानी इतनी बेतरीब तरीके से चलती है कि पूरी फिल्म खत्म होने के बाद भी फिल्म की कहानी समझ से परे ही रह जाती है. यह सभी पात्र मुंबई की चमत्कारिक सड़क पर चमत्कारिक ढंग से मिलते रहते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो नेता के किरदार में आदिल हुसैन को छोड़कर बाकी सभी कलाकार खुद को देहराते हुए नजर आए हैं.

पिया सुकन्या निर्देशित फिल्म ‘बौम्बैरिया’ में संवाद है कि : ‘मुंबई शहर संपत्ति के बढ़ते दामों और बेवकूफों की सबसे  बड़ी तादात वाला शहर है.’’शायद इसी सोच के साथ उन्होने एक अति बोर करने वाली फिल्म का निर्माण कर डाला. पिया सुकन्या की सोच यह है कि मुंबई शहर के लोगां के दिलां में अराजकता बसती है. पिया सुकन्या ने दर्शकों को एक थकाउ व डरावने खेल यानी कि ‘पजल’ को हल करने के लिए छोड़कर अपने फिल्मकार कर्म की इतिश्री समझ ली है.

एक घंटा अड़तालिस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बौम्बेरिया’ का निर्माण माइकल ई वार्ड ने किया है. फिल्म की निर्देशक पिया सुकन्या, पटकथा लेखक पिया सुकन्या, माइकल ईवार्ड और आरती बागड़ी, संगीतकार अमजद नदीम व अरको प्रावो मुखर्जी,कैमरामैन कार्तिक गणेश तथा इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- राधिका आप्टे, आदिल हुसैन, सिद्धांत कपूर, अक्षय ओबेराय, अजिंक्य देव, शिल्पा शुक्ला,रवि किशन व अन्य.

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