गाजर का हलवा: दो बहनो की जलन की कहानी

‘‘हां…हैलो…’’ ‘‘हां बोल… बहरी नहीं हूं सुनाई दे रहा है.’’ ‘‘हां, मैं अमरावती ऐक्सप्रैस में बैठ गई हूं 5:30 तक नागपुर पहुंच जाऊंगी.’’ ‘‘अरे बेवकूफ तु झे आजाद हिंद पकड़?ने को बोला था न. उस ट्रेन में इतनी भीड़ होगी कि तु झे बैठने की जगह भी नहीं मिलने वाली… उस के टौयलेट भी गंदे मिलेंगे, ऊपर से हमेशा लेट चलती है…’’ यह थी मेरी बड़ी बहन राशि जो एक मैडिकल स्टूडैंट है. पिछले 3 सालों से रायपुर टू नागपुर अपडाउन कर अपनेआप को रेलवे की इनसाइक्लोपीडिया सम झने लगी है. उसे जहां जब मौका मिले अपना ज्ञान झाड़ने का मौका नहीं छोड़ती… ‘‘मगर मेरा तो रिजर्वेशन है और बस 6 घंटे का रास्ता है काट लूंगी.’’ ‘‘तेरी सीट कन्फर्म है उस के लिए तु झे पदमश्री अवार्ड मिलना चाहिए… जो करना है कर, मैं अभी कालेज के लिए निकल रही हूं. तेरे उतरने से पहले प्लेटफौर्म में खड़ी मिलूंगी… न आई तो वापस चली जाना बाय.’’ ‘‘बाय.’’ ‘ये बड़ी बहनें होती ही ऐसी हैं. उन का कहा मान लिया तो ठीक, नहीं तो हर काम में गलतियां निकल कर बहस करने की रस्ता निकालती बैठती हैं. अरे, भई अब ट्रेन में भीड़ नहीं होगी तो कहां होगी और भीड़ है तो बाथरूम गंदे होंगे ही… लगता है पागलों के बीच में रहती है.’’

आज मैं बहुत ऐक्साइटेड हूं क्योंकि मेरी ट्वैल्थ बोर्ड में अच्छी परसैंटेज आई है और यह मेरी लाइफ का पहली सोलो ट्रैवलिंग ट्रिप है. हम दोनों की छुट्टियां साथ चालू हो रही हैं इसलिए उस के होस्टल में रह कर खूब मौजमस्ती करने का शानदार प्रोग्राम बना रखा है. ‘‘भाई वाह क्या खुशबू है. कहीं से अचार तो कहीं से पूरियां, तरहतरह का तड़का लगी सब्जियां सूंघसूंघ कर मु झे भी भूख लगने लगी.’’ ‘‘खाना अपना भी पूरी टक्कर का बना है मेरे दोस्त, आलू, भिंडी की लजीज सब्जी, परांठे और छोटे से डब्बे में रखा राशि का पसंदीदा गाजर का हलवा.’’ ‘‘चलो भई खाना तो भरपूर हो गया अब थोड़े बाहर के नजारे देख लिए जाएं.’’ मैं अपनी गरदन सीट पर टिकते हुए अपने चेहरे पर खिड़की से आतीजाती हवा के झोंकों को महसूस करते हुए कभी खाली खेत, तो कभी रोड पर दौड़ती बड़ीबड़ी गाडि़यां देखते सोचने लगी कि क्या यही लोग, यही नजारे मु झे फिर से देखने को मिलेंगे? नहीं हमारी नियति में बस ये कुछ सैकंड्स का मिलना लिखा है.

‘‘काफी देर देखनादिखाना हो गया अब थोड़ा सो लिया जाए.’’ पूरे 2 घंटे बाद मेरी नींद अचानक चायचाय के शोर से टूटी. मेरे पास नागपुर पहुंचने का अभी भी 1 घंटा बचा था. सब को चाय पीते हुए देख मैं ने भी सोचा चलो मैं भी चाय पी लेती हूं. चाय वाला मु झे एक पतले से डिस्पोजेबल प्लास्टिक कप में चाय के नाम पर मीठा गरम पानी थमा कर चला गया. बताइए शराफत का तो जमाना ही नहीं रहा वह भी पूरे 20 रुपए का. अब तो 5:45 बज गए. मैं ने पैंट्री स्टाफ से पूछा, ‘‘नागपुर स्टेशन कब आने वाला है?’’ ‘‘ट्रेन आधा घंटा लेट है,’’ उस ने जवाब दिया और हवा के झोंके की तरह ओ झल हो गया. आउटर में 10 मिनट और रुकने के बाद आखिरकार ट्रेन स्टेशन पहुंची. मैं ट्रेन से उतरी नहीं कि राशि किसी को अपने साथ लिए हुए मेरे सामने प्रकट हुई. हम एकदूसरे के पास मुसकराते हुए पहुंचीं, ‘‘निशी इन से मिली ये हमारी सीनियर हिना मैम हैं.’’

‘‘हैलो दीदी.’’ ‘‘हैलो, आर यू रैडी फौर फन राइड?’’ उन्होंने पूरी मस्ती के साथ मु झ से पूछा. ‘‘यस श्योर,’’ राशि ने पहले भी इन के बारे में बताया था. इन की पीठ पीछे लोग इन्हें ‘कोशिश एक आशा’ के नाम से चिढ़ाते हैं क्योंकि पिछले 2 सालों से इन के कई सब्जैक्ट में बैक लग गया है. हर साल की तरह इस बार भी उन्होंने बहुत मेहनत की है. अब देखना यह है कि इस साल इन की कोशिश क्या रंग लाती है. ‘‘राशि 15 मिनट हो गए. दीदी क्या कर रही हैं अंदर?’’ ‘‘उन का हर बार का यही नाटक है. पार्किंग वाले को मेरी गाड़ी में यहां कैसे स्क्रैच आया, वहां कैसे स्क्रैच आया, दिखादिखा कर अपने पार्किंग के पैसे बचाने का उन का मास्टर प्लान रहता है. ‘‘चुप रह आ रही है वह.’’ ‘‘साले को कोर्ट जाने की धमकी दी तब जा कर क्व25 में माना. आओ बैठो.’’ ‘‘तू तो बोल रही थी दीदी ने नई गाड़ी खरीदी है. मु झे तो कहीं से उन की स्कूटी ब्रैंड न्यू नहीं लग रही?’’ मैं ने राशि के कान में फुसफुसाया.

‘‘पागल उन्होंने सैकंड हैंड नई गाड़ी खरीदी है.’’ मेरा सामान फुट्रेस्ट में रख कर उन दोनों ने मु झे बीच में सैंडविच की तरह दबा कर बैठा दिया. दीदी ने मु झे पलट कर कहा, ‘‘कस कर पकड़ लेना.’’ दीदी ने अपनी स्कूटी को फर्राटेदार बाइक जैसे चलाना शुरू किया, हर कटिंग के साथ वे अपने फैवरिट हीरो जौन अब्राहिम के गाने ‘धूम मचाले…’ की धुन के साथ फुल औन अपने हौर्न को दबादबा कर गाने लगी ‘‘ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… ता… धूम मचा ले धूम मचा ले धूम…’’ मैं भीतर से सोचने लगी कि यह चल क्या रहा है? देखा जाए तो यह दूसरों की नजरों में भले पागलपन होगा मगर मजा बड़ा आया. ठहाके मारते हुए हम होस्टल के सामने पहुंच गए, ‘‘गुड ईवनिंग राशि मैम. आप की सिस्टर तो बिलकुल आप के जैसी दिखती है.’’ ‘‘मैम मु झे तो लगा था कि आप दोनों ट्विन सिस्टर हैं.’’ ‘‘चलो अब जाने दो थक गई होगी, कल बात करेंगे.’’ राशि का अपने होस्टल में रुतबा बहुत है, सब जूनियर आगेपीछे घूमते रहते हैं. हो क्यों न एक तो सीनियर है ऊपर से होस्टल में मौजूद इकलौती सुपर सीनियर हिना दीदी की एक मात्र फ्रैंड. मैं अब उस के रूम में आ चुकी थी.

वह अपनी रूममेट के साथ किचन में जा कर कुछ बनाने लगी. ‘‘चल ले खा,’’ राशि ने एक प्लेट थमाते हुए कहा. ‘‘यह क्या है? 2 ब्रैड के बीच में मैगी? मैं नहीं खाऊंगी.’’ ‘‘चुपचाप खा ले नहीं तो भूखे पेट सो.’’ मैं ने जैसेतैसे खाया. सच में इन की जिंदगी इतनी भी आसान नहीं होती. ‘‘राशि में नहा कर आती हूं,’’ उस की रूममेट जैसे ही बाहर गई राशि ने तपाक से कहा. ‘‘मेरा गाजर का हलवा कहां है जल्दी दे नहीं तो वह आ जाएगी और उसे भी देना पड़ेगा.’’ मैं ने जल्दी से अपने सामान के बीच में से एक बड़ा सा डब्बा निकाला, जिस में मेरी मम्मी ने गले तक ठूंसठूंस कर हलवा भरा था. इस हलवे के लिए मैं ने अपनी मम्मी को पिछले 2 दिनों से गाजर खरीदते, छीलते, कसते, दूध में घंटों चकाते और न ही मु झे ज्यादा मात्रा में खाने के लिए देते हुए साफसाफ देखा था. राशि को एक के बाद 1 चम्मच भरभर कर हलवे का निवाला अपने मुंह में भरते हुए देख मु झे लगा जैसेकि आज के बाद इसे कभी हलवा खाने को नहीं मिलने वाला या तो आज उस के जीने का आखिरी दिन है. ‘‘क्या देख रही है? तू तो खा कर आई होगी न और फिर मम्मी तो तेरे लिए कभी भी बना सकती हैं.’’ ‘‘नहीं तू खा. वैसे भी मु झे हलवा उतना पसंद नहीं है.’’

‘‘दुनिया की तू अकेली होगी जिसे गाजर का हलवा पसंद नहीं है… पागल.’’ अब हम तीनों अपनेअपने सिंगल बैड में लेट गए थे. कोने में एक टेबल है जिसे ये लोग किचन बोलते हैं, एक पंखा है जिस की हाईएस्ट स्पीड 3 है और हां एक खिड़की में पतली सी रस्सी बंधी हुई है. जितनी उस की ताकत नहीं उस से ज्यादा उस में कपड़े सूख रहे हैं. ‘‘आधी रात में कौन झगड़ रहा है?’’ ‘‘अभी 7 बजे हैं वापस सो जा. यहां यह सब रोज होता रहता है,’’ वह अपने टाइम से पहले बाथरूम यूज करने चली थी. ‘‘अच्छा,’’ मैं ने अपनी आंखें मलते राशि को देखते हुए कहा जो इतनी सुबह नहाधो कर तैयार हो रही थी. अपना सफेद कोट पहनते हुए उस ने मुझ से आगे कहा, ‘‘अब ध्यान से सुन. 9 बजे बिस्तर छोड़ देना. 9:30 बजे मैस में नाश्ता कर लेना नहीं तो सब खत्म हो जाएगा. वापस आ कर नहा लेना, कपड़े धो कर कमरे में सुखाना,’’ उस ने एक बालटी की ओर इशारा किया जिस में 1 मग, 1 साबुन और शैंपू की सब से छोटी बोतल रखी थी. फिर खूब सारी किताबें पकड़ीं और कहा, ‘‘मैं 2 बजे तक आ जाऊंगी. तब तक किसी से बात मत करना, बालकनी में मत जाना, कमरे में ही रहना.’’ सब चीज उस के कहे हिसाब से हो गई और राशि आते ही अपनी डायरी निकाल कर उस में कुछ लिखने लगी, ‘‘तो सुन कल पिक्चर, परसों वाटर पार्क, लास्ट डे शौपिंग.’’ ‘‘शकीरा आई है जल्दी चल,’’ हिना दीदी ने बिना सांस रोके कहा और हम उन के साथ दौड़ पड़े.

‘‘यह शकीरा कौन है?’’ ‘‘दूसरे कालेज की है और बहुत अच्छा डांस करती है देखना.’’ हमारे कानों पर फुल वौल्यूम में ‘हिप्स डौट लाई…’ गाना सुनाई पड़ा और हम तेजी से वहां पहुंचे. कमरा लड़कियों से खचाखच भरा था लेकिन राशि मैम के लिए बिस्तर पर वीआईपी सीट पहले से खाली कर के रखी थी. पलभर में होस्टल का माहौल पूरी तरीके से रंगीन होने लगा. हमारे बीच एक सुंदर सी दीदी और उन की मनमोहक अदा. वाह, उन्होंने मेरा दिन वाकई बना दिया. चूंकि पूरा होस्टल तब मौजूद था. राशि ने मु झे सभी से मिलवाया. वे अपनेअपने कमरे में आने के लिए कहने लगीं और मैं ऐक्साइटेड हो कर हरेक के कमरे को ध्यान से देखने लगी और मैं ने पाया कि विभिन्न चेहरे, कदकाठी की नारियां, कुछ खेलप्रेमी, तो किसी को पसंद बालियां, कुछ प्यार में लिप्त, तो कई इन के खिलाफ, कोई किताबों में चूर, किसी को पसंद सैरसपाट. ये कोमल कलियां कभी लड़ती झगड़ती तो कभी एकदूसरे का हौसला बढ़ातीं त्योहारों में, तो कभी मां के बने उस स्वाद में बेबस हो बदलती रहती है करवटें रातों में सुबह जब कभी मां पूछे, ‘‘बेटा नाश्ता कर लिया?’’ खाली पेट, बे िझ झक वे कहती हैं, ‘‘हां मां मैं ने खा लिया.’’

घरों से दूर, अपना भविष्य संवारने वे रहतीं साथ, अनेक प्रश्नों के जाल में… अगले दिन पिक्चर ने पूरा दिन अपने नाम कर लिया और हम अगली सुबह वाटर पार्क पहुंच गए. ‘‘हिना दीदी नहीं दिख रहीं?’’ ‘‘उसे क्लोरीन पानी से ऐलर्जी है,’’ मेरी बहन ने मु झे आंखों से आगे और कुछ न बोलने का इशारा किया. ‘‘उस मरी हुई छिपकली को ऐलर्जी. पूरा दिन अपनी स्कूटी में घूमती रहेगी मगर पानी के मजे के लिए कौन पैसा बरबाद करे? मक्खी चूस,’’ एक नए किरदार पूजा दीदी ने चिढ़ कर जवाब दिया. ‘‘अरे तू जाने दे न. मूड मत खराब कर.’’ मु झे हजार खरीखोटी सुनाने के बाद पता चला कि पूजा और हीना दीदी अभिन्न सगे दुश्मन हैं. कैसे मेरी बहन दोनों ओर से दोस्ती निभा रही है, मानना पड़ेगा. ‘‘सनस्क्रीन नहीं लाई. ओह तुम कैसे भूल सकती हो? अब जलो सब,’’ निराश राशि ने पूजा दीदी को झल्लाते हुए कहा. ‘‘यह मेरे बैग में ही तो था. यह ऐसे कैसे गायब हो गया?’’ वह अपने बैग को बहुत देर तक खंगालती रही. काले शौर्ट्स और स्लीवलैस पहने हुए हम पानी के पूल में लगभग 5 घंटे की गरमाहट में बिना सनस्क्रीन के अंदर थे. लेकिन मेरे जीवन का वह सब से मजेदार दिन था. अगले दिन रोड वाली शौपिंग. राशि ने मु झे खासतौर से कहा, ‘‘अगर तु झे कोई चीज पसंद आए तो सीधा मु झे बोलना न कि हीना को… वह दुकानदार से इतना मोलभाव करेगी कि वह बेचने से खुद मना कर देगा.’’

मैं ने अब अपना जाने का बैग बांध लिया. आज फिर उसी डायरी में राशि कुछ लिख रही थी. स्टेशन निकलने से पहले उस ने हिसाब की एक परची मु झे सौंप कर यह कहते हुए नहाने चली गई, ‘‘तु मु झे क्व1,870 देगी. चल बस क्व1,500 ही दे देना.’’ यह हमारे लिए नया नहीं था. हम हमेशा ऐसा करते आए हैं. उस के जाने के बाद मैं ने झटपट वह डायरी खोल कर पढ़नी चाही और उसे पढ़ कर मैं हैरान रह गई. राशि जिस साल, महीने और दिन से घर से दूर रहने लगी उस दिन से उस ने अपना सारा खर्च लिखा हुआ था और सब से बड़ी बात तो यह है कि मेरे पापा ने आज तक उस से कभी नहीं पूछा कि बेटी मेरे भेजे हुए पैसों का तूने क्या किया? हम शायद अब बड़े हो गए थे इसलिए बचपन जैसा प्यार धीरेधीरे बदलने लगा था, मगर न जाने क्यों आज उस से अलग होते हुए मैं उस के गले लग गई और उस की आंखों में आंसू क्यों आए? यही ट्रेन में बैठी सोचतीसोचती मैं वापस घर पहुंच गई. नई ऊर्जा और जोश के साथ मैं अपनी मम्मी से राशि और उस की क्रेजी सहेलियों के बारे में घंटों बतियाती रही. अब आप से क्या छिपाना. आप को भले मेरी बात बहुत छोटी सी लगे, आप की नजर में ऐसा मानना भी सही होगा कि इतनी सी बात में 2 बहनों और एक मां और बेटी के बीच में दूरियां लाने वाली इस में ऐसी कोई बात नहीं थी. मगर ऐसा मेरे साथ हुआ और वह मु झे भीतर तक सालोंसाल आघात करते चला गया.

मैं हमेशा उन दोनों के बीच उस विशेष लाडप्यार से बहुत जलन महसूस करती थी खासतौर से तब जब मम्मी उस के लिए दिनरात मेहनत कर के गाजर का हलवा बनाती थी न कि मेरे कहने पर. हलवा मु झे भी सब से प्रिय था, मैं महीनो बोलती रहूं, मम्मी मु झे यहांवहां के काम गिनाने लगती और जब कभी राशि घर आने वाली हो या कोई नागपुर जा रहा हो तो उस के बिना कहने पर वह अपनेआप उस के लिए हलवा बनाना शुरू कर देती. हलवा मु झे तभी मिलता जब उस के लिए बनता हो और वह भी धीरेधीरे मात्रा में कम होता गया. इस बात को ले कर मैं इतनी हताश हुई कि मैं ने हलवा खाना ही छोड़ दिया. मगर अब मैं सम झ सकती हूं कि उस के लिए मम्मी का प्यार इतना अलग क्यों है? मेरे पास तो हर सुखसुविधा है और वहां राशि को देखो हम से मीलों दूर हो कर खुद कपड़े धो रही है, कभीकभी उसे भूखे पेट भी सोना पड़ता है. इतने साल मेरी उन से जो दूरियां थीं वे इन 3 दिनों में नजदीकियों में बदल गईं. मु झे अब उन से कोई शिकायत नहीं थी. अगली सुबह जब मैं नहा कर बाहर आई तो मेरी आंखें पूरे शरीर में हुए स्किन बर्न को देख कर चौंक गईं. हो न हो वाटर पार्क में हुई एक गलती का ही यह नतीजा है. मगर अपनेआप को ऐसे देखते हुए मु झे बिलकुल गुस्सा नहीं आया. उसे देख कर में महीनों इतराती रही क्योंकि यह मु झे उन खूबसूरत पलों की याद दिलाते रहे, जो मैं ने अपनी प्यारी सी बहन के साथ गुजारे थे.

हर विभाजन दर्द देता है

हमारे यहां संयुक्त परिवार की बड़ी महत्ता गाई जाती है. ज्यादातर हिंदी धारावाही जौइंट फैमिली के किरदारों के चारों ओर घूमते हैं जिन में 1 सास, 2-3 बहुएं, ननदें, ननदोई, देवरदेवरानियां और कहींकहीं ताड़का समान एक विधवा बूआ या चाचीताई भी होती है. इन धारावाहियों में ही नहीं, असल जीवन में भी औरतों का ज्यादा समय इस तथाकथित जौइंट फैमिली को तोड़ने में लगता है. हम शायद जौइंट परिवार को तोड़ने की प्रक्रिया का एक अर्थ सम?ाते हैं और जब यह जौइंट परिवार टूट जाता है, दीवारें खड़ी हो जाती हैं, नजदीकी रिश्तों में अनबोला हो जाता है तो ही सुखी परिवार बनता है.

यह आम परिवार की ही कहानी नहीं, यह पूरे देश की कहानी है. इस देश की पौराणिक कहानियों को लें या उस इतिहास को लें जो अंगरेजों के बाद बौद्ध व मुसलिम लेखकों द्वारा लिखा गया और उन पांडुलिपियों के आधार पर तैयार किया गया जो सदियों से भारत भूमि से बाहर के मठों, मसजिदों में थीं. उन में भी हमारे यहां निरंतर तोड़ने की प्रक्रिया का दर्शन होता है.

अब यह रुक गया है क्या? टूटने की प्रक्रिया प्राकृतिक है. हर पेड़ टूटता है पर वह अपने टूटने से पहले कई नए पेड़ों को जन्म दे देता है. हमारे यहां टूटने के बाद अंत हो जाता है. रामायणकाल की कथा परिवार के टूटने के बाद खत्म हो जाती है. महाभारत में अंत में सब खास लोग युद्ध में मारे जाते हैं या फिर पहाड़ों में जा कर मर जाते हैं.

दोनों कथाओं में पारिवारिक विघटन ही केंद्र में है. उस युग की कोई चीज विरासत में हमें मिली है तो वह परिपार्टी है जिस में समय से पहले तोड़ने, पार्टीशन करने और पार्टीशन से पहले लंबे दुखदायी संघर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है.

8 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली पर एक धार्मिक आधार पर टूटन के बाद. मुगलों ने बहुत बड़े इलाके को एकसाथ रखा और तब व्यापार बढ़ा, सड़कें बनीं, किले और दीवारदार शहर बसे. अंगरेजों ने देश को सड़कों, रेलों, टैलीग्राफ और बाद में टैलीफोन व रेडियो से जोड़ा. इन का ईजाद हमारे यहां नहीं हुआ हो पर अंगरेजों ने यहां के लोगों को उपहार में दे दिया ताकि हम जुड़े रहें. उन के पहले कोलकाता? से फिर दिल्ली से चलने वाले केंद्रीय शासन ने एक देश की कल्पना को साकार किया.

आज हम क्या कर रहे हैं? आज धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर तोड़ने को महिमामंडित किया जा रहा है. देशभर में तोड़ने पर आमादा लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है और वे कोई न कोई बहाना बना रहे हैं. पहले की बनी इमारतों, सोच और हकों को तोड़ रहे हैं. सरकार कहती है कि वह देश को ऐक्सप्रैसवे से जोड़ रही है, हवाईजहाजों से जोड़ रही है, वंदे भारत ट्रेनों से जोड़ रही है पर यह जोड़ना उन खास लोगों तक सीमित है जो जाति, सत्ता या पैसे के शिखर पर बैठे हैं. जब 85 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना दिया जा रहा हो तो क्या उन्हें उन से जुड़ा मानना चाहिए जो हवाईजहाजों और स्पैशल ट्रेनों में तोड़ने की प्रक्रिया के महान उत्सव में पहुंचे थे?

यह तोड़ना देश की रगरग में है. यह हमारा ही देश है जहां हर पौलिटिकल पार्टी टूटती है. भारतीय जनता पार्टी का भी एक बार बड़ा विभाजन हुआ था जब पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने अपनी पार्टी बनाई थी. हर मठ के कई हिस्से हो जाते हैं. मंदिरों में पुजारियों के विवाद अदालतों में चलते रहते हैं.

औद्योगिक घरानों की टूट तो जगजाहिर है. हर बड़ा घर टूट चुका है. जिन्होंने बड़े विशाल मंदिर बनाए थे, उन के भी. बड़ी बात है कि हर टूट के बाद बाजेगाजे से उत्सव मनता है. गलियों में लालाओं की बड़ी दुकान के 2 हिस्से होते हैं तो दोनों अपने हिस्से बड़े आयोजन से शुरू करते हैं. पूरे परिवार को बुलाया जाता है. कईकई दक्षिणा लेने वाले पहुंचते हैं, मुहूर्त देखे जाते हैं, मिठाइयां बंटती हैं. अफसोस नहीं होता कि यह अप्राकृतिक विभाजन हुआ क्यों.

हर विभाजन दर्द देता ही है, चाहे जितनी खुशियां मना लो. भारतपाकिस्तान और पाकिस्तान व बंगलादेश के विभाजनों ने इसे विशाल ब्रिटिश इंडिया जो 14 अगस्त, 1947 को एक था, के 3 टुकड़े देखे. तीनों के रहने वालों के दिलों में टूटन का दर्द है पर ऊपर से उछलते हैं जब दूसरे को कोई परेशानी हो. यही सनातन संस्कार हैं.

क्यों जरूरी है महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता

देश बदल रहा है. महिलाओं की दशा में सुधार हो रहा है. समय के साथसाथ नारी और सशक्त होती जा रही है. इंदिरा गांधी, इंदिरा नूई और किरण बेदी से ले कर सानिया मिर्जा, सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला तक जैसी कितनी ही आधुनिक भारत की महिलाओं ने देश को विश्वभर में गौरवान्वित किया. लेकिन फिर भी घर हो या बाहर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा और यौन अपराधों में लगातार वृद्धि होती रही है. इस की मूल वजह है महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता. महिला सशक्तीकरण तभी संभव है जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों.

आज भी महिलाओं की अधिकांश समस्याओं का कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भरता है. देश की कुल आबादी में 48 फीसदी महिलाएं हैं जिन में से मात्र एकतिहाई महिलाएं कामकाजी हैं. इसी वजह से भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फीसदी है.

हमारे समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों की बेडि़यों को पूरी तरह से तोड़ नहीं पाया है. उन का घर में अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है. एक तरह से हमारा पितृसत्तात्मक समाज उन्हें जन्म से ही ऐसे सांचे में ढालने लगता है कि वे अपने वजूद को बनाए रखने के लिए पुरुषों का सहारा ढूंढें़ और हर काम के लिए पुरुषों पर निर्भर रहें. जब कोई स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है तब कितने रीतिरिवाजों, परंपराओं और पुराणों में लिखी सीख की दुहाई दे कर उसे परतंत्र जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है.

समान अवसर दिए जाएं

भारतीय संसद में केवल 14 फीसदी महिलाएं हैं. इसी तरह पंचायत स्तर पर अधिकांश महिलाओं को केवल मुखौटे की तरह इस्तेमाल किया जाता है यानी चुनाव तो महिला जीतती है लेकिन सत्ता से संबंधित सभी निर्णय उस के परिवार के पुरुष सदस्य करते हैं. देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालयों में मौजूद न्यायाधीशों में महज 11 फीसदी महिलाएं हैं.

समय की मांग है कि अब महिलाएं अपनी क्षमता को पहचान कर, परंपरागत रूढि़यों को दरकिनार कर देश और परिवार की कमाऊ सदस्य बनें. यदि परिवार और समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त कर उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्रदान किए जाएं तो दूसरी महिलाएं भी गीता गोपीनाथ, इंदिरा नूई किरण मजूमदार की तरह सशक्त हो सकती हैं.

शिक्षा और आत्मनिर्भरता

लड़कियों को बचपन से ही पाक कला और गृहकार्य में निपुणता की शिक्षा दी जाती है. मगर इस से ज्यादा जरूरी है महिलाओं का शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. यह केवल परिवार के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी आवश्यक है. शिक्षा का महत्त्व तब पता चलता है जब परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा हो या किसी भी लड़की के वैवाहिक जीवन में अचानक परेशानी आ जाए.

ऐसे में शिक्षा और आर्थिक निर्भरता की बदौलत ही एक लड़की अपने मातापिता या पति की सहायता के बगैर भी सम्मानजनक जीवन जी सकती है.

महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. भारत में कई ऐसी महिलाएं हैं जो एक कुशल गृहिणी और मां तो हैं लेकिन इन सब के बदले उन्हें अपने कैरियर से हाथ धोने पड़े. कई महिलाएं पढ़ीलिखी हैं लेकिन मैटरनिटी लीव के बाद कभी औफिस जौइन ही नहीं कर पाईं और इस वजह से उन का बना हुआ कैरियर भी खत्म हो जाता है. ऐसी महिलाओं के लिए बाद में कई तरह की दिक्कतें आने लगती हैं और उन्हें समस्याओं से उबरने का मौका ही नहीं मिल पाता.

आर्थिक निर्भरता के माने

भले ही जीवन में पैसा सबकुछ नहीं होता लेकिन पैसे के बिना बेहतर जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. पैसा हमें आत्मनिर्भरता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है. आमतौर पर गृहिणियां घरबाहर के और अपने सभी छोटेछोटे खर्चों के लिए अपने पति पर निर्भर होती हैं. हालांकि पति की कमाई से खर्च करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन महिलाओं का वजूद दब सा जाता है. उन के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता के अपने अलग ही माने हैं.

जब एक महिला जौब या फिर कोई बिजनैस करती है तो वह केवल पैसे ही नहीं कमाती है बल्कि वह खुद को भी स्थापित करती है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनती है. वह कई तरह से खुद को एक बेहतर इंसान बनाने की तरफ कदम बढ़ाती है.

फाइनैंशियली इंडिपैंडैंट होने के कई लाभ

घर खर्च में कंधे से कंधा मिलाना. जब एक महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है तो वह बेहतर तरीके से अपने परिवार का सपोर्ट सिस्टम बन सकती है. आज के महंगाई के युग में केवल एक व्यक्ति की सैलरी से घर चलाना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में महिला की आमदनी घर खर्च को काफी आसान बना देती है. वह अपना और बच्चों का खर्च वहन करने में सक्षम बनती है. पति कभी बीमार हो जाए या उस की जौब छूट जाए तो ऐसे में महिला परिवार का सहारा बन पाती है.

आर्थिक आजादी का एहसास

जब महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होती हैं तो उन्हें हर छोटेबड़े खर्चे के लिए पति से पैसे मांगने पड़ते हैं. अगर पति मना कर दे तो उन्हें अपना मन भी मार कर रहना पड़ता है. कई दफा पति पैसों को ले कर बात भी सुना देते हैं. तब महिलाएं हर्ट हो जाती हैं और अपनी जरूरतें सीमित करने लगती हैं. लेकिन आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को आर्थिक आजादी प्रदान करती है. जब वे खुद कमाती हैं तो वे खुद पर खर्च भी कर सकती हैं और इस के लिए उन्हें अलग से किसी की परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं होती है.

परिवार में सम्मान बढ़ता है

जो महिलाएं कमाती हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं उन्हें घरपरिवार में अधिक सम्मान मिलता है. घर में भले ही वे 24×7 काम करने के लिए तैयार होती हैं लेकिन फिर भी परिवार में लोग उन के घरेलू कामों को अहमियत नहीं देते. वहीं अगर वे किसी कंपनी में जौब करती हैं या फिर खुद का ही बिजनैस है तो पति या घर वालों के अलावा रिश्तेदार व पड़ोसी भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं.

रूढि़यां तोड़ सकती हैं

भारतीय घरों में महिलाओं के साथ शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन अधिकतर महिलाएं इस हिंसा को सिर्फ इसलिए बरदाश्त करती हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती हैं. उन्हें यह लगता है कि अगर वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगी तो उन्हें घर छोड़ना पड़ेगा और फिर उन का व उन के बच्चों का गुजारा कैसे होगा. इसी सोच के चलते वे जीवनभर एक टौक्सिक रिश्ते में भी बंधी रहती हैं.

लेकिन अगर महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है तो वह ऐसे रिश्ते को ढोने से इनकार कर अकेली रह सकती है, उस का दिल करे तो वह अविवाहित भी रह सकती है. उस में हिम्मत होती है कि वह पुरानी सोच और रूढि़यों के खिलाफ जा सके.

आत्मविश्वास बढ़ता है

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता महिलाओं को अधिक आत्मविश्वासी भी बनाती है. उन्हें यह एहसास होता है कि वे अपने पति व परिवार की परछाईं से अलग अपनी भी कोई पहचान रखती हैं और समाज में लोग उन्हें केवल पति के नाम से ही नहीं जानते. उन का अपना वजूद होता है. लोग उन्हें उन के नाम से पहचानते हैं.

यह आत्मविश्वास उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है. वे खुद को बेहतर तरीके से ट्रीट कर पाती हैं और अपनी पर्सनैलिटी को बेहतर बना पाती हैं. हर तरह के कपड़े कैरी करती हैं और लोगों के आगे अपनी बात रखने का जज्बा रखती हैं.

महिलाएं कहां करें निवेश

आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए पैसे कमाने और बचत करने के साथसाथ उन्हें सही जगह निवेश करना भी आना चाहिए. महिलाओं के लिए निवेश के कई औप्शन हैं. सोने में निवेश करना पुराने समय से चला आ रहा है. सोने में निवेश करने के लिए बहुत सारे विकल्प हैं, जिन में गोल्ड फंड, गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रेडेड फंड, बार, गहने, सिक्के, सौवरेन गोल्ड बौंड प्रोग्राम शामिल हैं.

भारत सरकार की रिटायरमैंट स्कीम में निवेश कर के कामकाजी महिलाएं बुढ़ापे के लिए पैंशन फंड एकत्रित कर सकती हैं. राष्ट्रीय पैंशन योजना में निवेश कर के पैसा सुरक्षित रख सकती हैं.

बिना रिस्क वाले निवेश विकल्पों की तलाश में तो उन के लिए एफडी भी एक बेहतर विकल्प है. कामकाजी महिलाएं हों या होम मेकर, पब्लिक प्रौविडैंट फंड उन के लिए निवेश का अच्छा विकल्प हो सकता है. इस में 15 साल तक निवेश करना होता है जिस पर सरकार अच्छा ब्याज देती है.

इसी तरह नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट सब से सुरक्षित निवेश की स्कीमों में से एक है. इस में आप एक निश्चित रकम एक निश्चित समय के लिए निवेश कर सकती हैं.

स्कीम मैच्योर होने के बाद आप को पूरा पैसा मिल जाता है. यह स्कीम महिलाओं के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि एक निश्चित समय में आप की बचत ब्याज समेत वापस मिल जाती है.

फिक्स्ड डिपौजिट स्कीम निवेश के साथसाथ सेविंग का भी एक अच्छा विकल्प है. इस में आप के खर्च के बाद जो भी रकम बचती है उस की आप एफडी करवा सकती हैं.

अलगअलग बैंकों में अलगअलग दर से ब्याज मिलता है. जरूरत पड़ने पर मैच्योरिटी से पहले भी एफडी तोड़ी जा सकती है. इसे किसी भी बैंक में खोला जा सकता है.

यदि आप थोड़े जोखिम के साथ निवेश प्लान के लिए तैयार हैं तो आप के लिए म्यूचुअल फंड एसआईपी बेहतर विकल्प साबित होगा. आप सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान (एसआईपी) के जरीए थोड़ाथोड़ा पैसा भी म्यूचुअल फंड में डाल सकती हैं.

आप अपने मोबाइल पर ऐप्लिकेशन डाउनलोड कर के म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकती हैं. इस निवेश पर होने वाले प्रौफिट में से म्यूचुअल फंड कंपनी अपनी फीस काट कर बाकी रकम आप को दे देती है. म्यूचुअल फंड्स की कई अलगअलग स्कीम्स मार्केट में उपलब्ध हैं जैसे डैब्ट फंड्स, इक्विटी फंड्स, बैलेंस्ड फंड्स आदि. म्यूचुअल फंड में होने वाला लौंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स फ्री होताहै. इस में आप को इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है.

जिंदगी ने मुझे सच्ची राह दिखाई: टीना गुहा

जिंदगी कई बार इंसान को सिखा देती है कि कैसे जीना है और मेरे साथ यही हुआ. पति की एक सड़क दुर्घटना ने मेरी जिंदगी का सुखचैन सब छीन लिया. मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि मैं इस से कैसे बाहर निकलूं. तभी मैं ने एक टीवी शो में देखा कि एक परेशान महिला, जो मेरी तरह ही दुविधा में थी, लेकिन एक आत्मशक्ति ने उसे राह दिखाई और वह उसी पथ पर चल पड़ी और सफल रही.

ऐसी ही बातों को शेयर कर रही थी, मुंबई की गोरेगांव स्थित अपने रेस्तरां ‘आहारे बांग्ला’ यानी ‘द फ्लेवर औफ बेंगल’ में बैठी 35 वर्षीय टीना गुहा, जिसे बताते हुए उन की आवाज भारी हो गई. टीना कहती हैं कि 8 साल पहले जब मेरे पति विधान गुहा जो फिल्मों के आर्ट डाइरैक्टर हैं, काम से रात को लौट रहे थे, लौटते समय एक बड़े ऐक्सीडैंट के शिकार हो कर बैड पर आ जाते हैं, उन के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन काफी महीनों तक बैड पर पड़े रहने के बाद ही वे थोड़े ठीक हुए हैं और अब मेरे साथ काम में हाथ बंटाते हैं. मैं कोलकाता की हूं और शादी के बाद मुंबई आई. यहां के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मेरी बेटी सुविथी गुहा भी तब बहुत छोटी, जब उनका एक्सीडेंट हुआ था.

उस दौरान इस तरह के ?ाटके से मैं सहम गई क्योंकि मेरे पति अच्छा कमाते थे, मु?ो पैसे के बारे में कभी सोचना नहीं पड़ता था. उन के ऐक्सीडेंट के सारे खर्चे मैं ने जमापूंजी से किए. धीरेधीरे पैसे खत्म होने लगे. मु?ो सम?ा नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं ने कभी भी बाहर निकल कर कोई काम नहीं किया था, लेकिन मु?ो कुछ कर उन का साथ देना था. मु?ो खाना बनाना भी बहुत कम आता था, लेकिन मेरे दोस्तों ने सलाह दी कि मैं यही काम घर से कर सकती हूं. इस में वे मेरा साथ देंगी.

बढ़ने लगा व्यवसाय

इस से मेरे मन में इस काम को करने की प्रेरणा जगी. मैं ने आसपास के सभी दोस्तों और जानकारों से और्डर ले कर खाना सप्लाई करना शुरू कर दिया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया क्योंकि यहां लोग अधिकतर जौब के लिए आते हैं और अकेले रहते हैं. मेरा खाना साफसुथरा घर का खाना होता है.
टीना कहती हैं कि इसके कुछ समय बाद मैं ने जोमैटो और स्विगी के साथ औनलाइन जुड़ी. इस से मेरा व्यवसाय बढ़ने लगा, पैसे आने लगे. इस में बंगाल के खाने की क्वालिटी को मैं मैंटेन करती हूं. हर दिन 30 से 35 और्डर औनलाइन आते हैं. इस से मु?ो अधिक काम करने की प्रेरणा मिली. फिर मैं ने एक कमरा अपने एक दोस्त की वित्तीय मदद और खुद की जमापूंजी से लिया और उस का नाम ‘आहारे बांग्ला’ यानी ‘द फ्लेवर औफ बेंगल’ रखा.

लोगों की तारीफ इस नाम से यह स्पष्ट हो गया कि यहां मिलने वाले सारे व्यंजन बंगाल से प्रेरित हैं, जिन में मटन बिरयानी, चिकन बिरयानी, फिश चौप, फिश फ्राई, वैजिटेबल थाली, नौनवैज थाली आदि सभी प्रकार की डिशेज मैं सर्व करती हूं. मेरे रेस्तरां में खाने की भी व्यवस्था है. मैं खुद भी खाना बनाती हूं. बिरयानी और घर का खाना मेरी स्पैश्यिलिटी है, जिसे सभी खा सकते हैं. किसी की पसंद के अनुसार कस्टमाइज्ड फूड भी दिया जाता है.

इस काम में मुश्किल था लोगों को अपने खाने से परिचित करवाना, जो शुरूशुरू में बहुत मुश्किल था क्योंकि लोग मु?ो और मेरे खाने को जानते नहीं थे. इस में मेरे दोस्तों ने काफी सहयोग दिया. वे माउथ पब्लिसिटी करती थीं. मैं ने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया. उस में मैं तैयार व्यंजनों की तसवीरें डालती गई. इस से लोग जानने लगे.

अच्छा महसूस कर रही हूं, इस में मु?ो बर्थडे पार्टी या छोटीछोटी पार्टियों में खाना सर्व करने के औफर आने लगे थे. इस के अलावा औनलाइन मेरे खाने की लोग काफी तारीफ करते हैं. इस में मु?ो हर दिन कुछ नई रैसिपीज देने के बारे में सोचना पड़ता है क्योंकि एकजैसा टेस्ट किसी को भी पसंद नहीं होता है.
आगे मैं बड़ा रेस्तरां खोलना चाहती हूं और बंगाल की डिशेज को पूरे विश्व में फैलाने की इच्छा रखती हूं. कोलकाता में भी एक रेस्तरां खोलने की इच्छा है. मेरे इस काम में मेरी मां, पति और बेटी बहुत सहयोग देते हैं, जिस से काम में मुश्किल नहीं आती. मैं एक घरेलू महिला से व्यवसाय करने लगी हूं, जिस के बारे में मैं ने पहले कभी सोचा नहीं था. आज अच्छा महसूस कर रही हूं.

दुनिया को दिखाने के लिए  नहीं, अपने दिल की आवाज सुनने के लिए बनें पेरेंट्स

“मुनिया पूरे 1 साल हो गए अब बच्चे की किलकारी कब सुना रही हो ? देखो ज्यादा देर करने की जरूरत नहीं, छोटी उम्र में बच्चे हो जाएं तो अच्छा रहता है.”

जैसे ही मुनिया की सास ने यह बात बोली, मुनिया सोच में पड़ गई और अपने पति के घर  आते ही कहा ,” मां बच्चे की जिद कर रही हैं ,लेकिन मैं अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं.” इस पर मुनिया के पति ने हंसते हुए कहा तो तुमसे कौन जबरदस्ती कर रहा है एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो. हमें हमें जब प्लान करना होगा बच्चा , हम कर लेंगे.”

जी हां, पेरेंट्स बनना हर कपल की जीवन की सबसे बड़ी खुशियों में से एक है. हालांकि ये बात समझना जरूरी है कि यह जितनी बड़ी खुशी है, उससे कहीं बड़ी जिम्मेदारी है. एक नई जिंदगी को जीवन देना और फिर उसे बड़ा करना, कोई आसान काम नहीं है. दूसरी ओर भारत सहित अधिकांश देशों में नए नवेले जोड़ों पर माता-पिता बनने का एक अजीब सा प्रेशर बना दिया जाता है. इसे लेकर कई तर्क दिए जाते हैं. ऐसे में कई बार कपल पूरी तरह से बिना मेंटली  प्रिपेयर  हुए ही बच्चे की जिम्मेदारी उठाने का फैसला कर लेते हैं और बाद में उन्हें पछतावा होता है. पेरेंट्स बनने से पहले आपको शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार होना चाहिए. पेरेंट्स बनने से पहले इस बात पर जरूर ध्यान दें कि कहीं आप प्रियर प्रेशर या खुद की दबी इच्छाओं से प्रभावित होकर तो ऐसा फैसला नहीं कर रहे. फैसला लेने से पहले इन बातों पर ध्यान जरूर दें.

  1. समाज का पीयर प्रेशर

हमारे समाज में शादी के कुछ समय बाद ही नव विवाहित जोड़े से यह उम्मीद की जाती है कि वे पेरेेंट्स बन जाएं. अगर ऐसा नहीं होता तो समाज और रिश्तेदार कई तरह की बातें करने लगते हैं. ऐसे में कपल को यह डर सताने लगता है कि लोग ये सोचेंगे कि उनमें कोई कमी है. और इसी बात को गलत साबित करने के लिए वे पेरेंट्स बनने की प्लानिंग कर लेते हैं. जबकि वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं.

2. अब तो बस नाती-पोतों का मुंह देख लें

आपने अक्सर भारतीय घरों के बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना होगा कि बस हमारी एक ही इच्छा है कि अब नाती-पोतों का चेहरा देख लें. कुछ बुजुर्ग ये भी कहते हैं कि तुम तो बच्चा हमें दे देना, हम उसे पाल लेंगे. ऐसी सभी बातें कहीं न कहीं कपल्स पर प्रेशर बना देती हैं कि उन्हें अब पेरेंट्स बनना ही है. कई बार वे निर्णय लेने को मजबूर हो जाते हैं.

3. मजबूत होगा हमारा रिश्ता

कपल्स के बीच झगड़ा होना आम बात है लेकिन कई बार विवाद बढ़ जाते हैं. ऐसे में अक्सर लोग सलाह देते हैं कि एक बच्चा होता तो तुम्हारा संबंध मजबूत हो जाएगा. लोगों का तर्क होता है बच्चा होने से कपल करीब आएगा और दोनों के बीच की टेंशन कम होगी. लेकिन सच मानें तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो स्थितियां और भी विकट हो सकती हैं और एक मासूम बेवजह इन सबका हिस्सा बन जाएगा.

4. सामान्य परिवार दिखने की चाह

‘पड़ोसियों के बेटे-बहू की शादी पिछले साल हुई थी, अब एक बेटी भी हो गई, तुम्हारी शादी को दो साल हो गए, तुम भी कुछ सोचो’ आपने अक्सर ऐसी बातें सुनी होंगी. ऐसी बातें कपल्स पर यह प्रेशर बनाती हैं कि उन्हें भी किसी सामान्य परिवार की तरह नजर आना है. लेकिन ऐसा करना आपकी बड़ी गलती हो सकती है.

5. जो मैं नहीं कर पाया, वो मेरा बच्चा करेगा

हर किसी के जीवन में ऐसे कई सपने होते हैं जो अधूरे रह जाते हैं. ऐसे में वो सोचते हैं कि जो सपने आप पूरे नहीं कर पाए, वो आपका बच्चा पूरा करेगा. लेकिन ऐसा हो यह जरूरी नहीं है. आपके बच्चे की अपनी सोच और सपने होंगे. आप उसपर अपनी इच्छाएं नहीं थोप सकते. इसलिए अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बच्चे का सहारा न लें.

विधवा औरत धर्म के नाम पर शोषण

आज का 21वीं सदी का पढ़ालिखा, पैसे वाला, अंग्ररेजी बोलनेसम?ाने वाला और धर्म के चक्करों में घिरा आधुनिक समाज एक औरत की खुशी बरदाश्त नहीं कर सकता. आज भी विधवा या डिवोर्स हो जाने के बाद औरत को खुश रहने का कोई हक नहीं. उसे अपनी जिंदगी अपनी मरजी से जीने का कोई अधिकार नहीं है. उसे समाज की घिनौनी और दकियानूसी मानसिकता के अनुसार ही जीना होगा.

दोगला समाज एक तरफ स्त्री सशक्तीकरण के राग अलाप रहा है और दूसरी तरफ अगर कोई स्त्री चुटकीभर खुश रह कर गम को भुलाने की कोशिश करते जी रही है तो उस पर ढेरों लांछन लगा कर व्यंग्यबाण छोड़ने से नहीं चूकता.

हाल ही में सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर नीतू सिंह (नीतूऋषि कपूर) की एक पोस्ट पर लोगों की टिप्पणियां हैरान कर देने वाली हैं. लोगों द्वारा की गई गंदी व भद्दी टिप्पणियां उन के मानसिक दिवालियापन और दकियानूसीपन को दर्शाती हैं.

कुछ अरसा पहले ऋषि की कैंसर से मृत्यु हो गई थी. नीतू कपूर दुनिया में अकेली रह गई. अब आहिस्ताआहिस्ता दुख को भूलने की कोशिश में खुद को व्यस्त रखते हुए काम करने लगी है.

गुनाह क्यों

टीवी पर एक शो की जज के तौर पर जाहिर सी बात है वह सफेद साड़ी पहन कर तो नहीं बैठेगी. थोड़ा सा सजधज लिया, हंसबोल लिया या दर्शकों की फरमाइश पर डांस के 2 स्टैप्स क्या कर लिए जैसे कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. वे लोग जो भगवा ट्रोल करने के आदी हैं, इस मौके को भला कैसे छोड़ते. उन्होंने जबरदस्त ट्रोल किया.

‘कुछ तो शर्मलिहाज करो,’ ‘ऋषि कपूर को गुजरे कुछ समय ही बीता है,’ ‘इसे तो कोई दुख ही नहीं है,’ ‘कैसे ऐसे,’ ‘कपड़े पहन सकती है,’ ‘कैसे नाच सकती है,’ वगैरहवगैरह मैसेजों की बाढ़ सी आ गई.
पति के गुजर जाने के बाद औरत चारदीवारी में खुद को कैद कर के आंसू बहाती रहे तो ही इस कट्टर समाज को लगेगा कि उसे पति के जाने का दुख हुआ है. सफेद कपड़े, नम आंखें और लटका चेहरा ही गवाह होता है किसी के गम का?

कब तक कोई शोक मनाती बैठी रहे. चलो मान लो पूरी तरह से विधवाओं के लिए लादी गई रस्मों और परंपराओं का पालन रोतेधोते कर लिया तो क्या जाने वाला व्यक्ति वापस आ जाएगा? समाज को दिखाने के लिए जब तक जीए क्यों तब तक ?ाठे आंसू बहाते सुबूत देती रहे तो ही समाज मानेगा कि हां सच में दुखी है?

मंदिरा बेदी के पति राज कौशल का भी कुछ अरसा पहले निधन हो गया था. 2 बच्चों के साथ अकेली रह गईर् मंदिरा ने कुछ दिन पहले अपने दोस्त के साथ ऐंजौए करते सोशल मीडिया पर एक तसवीर डाली. उस पर भी हमारे कट्टरपंथी समाज ने जम कर लताड़ लगाई जैसे मंदिरा को खुश रहने का अब कोई हक ही नहीं रहा.

समाज को क्यों अखरता है

एक स्त्री के लिए अपना पति खोना जीवन की अपूर्णीय क्षति होती है, उस दर्द को शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि अपना सबकुछ खो चुकी औरत से आप जिंदा रहने की वजह तक छीन लो. अगर वह कहीं से टुकड़ाभर खुशी पाने की कोशिश करती है तो समाज को अखरता है.

मलाइका अरोड़ा खान को ही देख लीजिए. पति से तलाक के बाद अर्जुन कपूर के साथ रिश्ता बना कर खुश रहने की कोशिश की, तब उसे भी निम्न स्तरीय शब्दों से ट्रोल करते हलका दिखाने की कोशिश की जाती है. अरे, उस की अपनी जिंदगी है, किसी के भी साथ बिताए, रहने दो न खुश. क्या गलत है अगर 2 परिपक्व इंसान एकदूसरे के साथ जिंदगी जीने का फैसला लेते है? 2 लोगों की उम्र नहीं, सोच मिलनी चाहिए.

हद तो तब हुई जब इन की पोस्ट पर इन्हें ट्रोल करने वाली ज्यादातर पूजापाठी औरतें थीं. जब तक औरत ही औरत की दुश्मन बनी रहेगी, हम बाकी समाज से क्या उम्मीद कर सकते हैं? कम से कम महिलाएं तो महिला के पक्ष में रहें.

आम औरतों पर क्या बीतती होगी

यह तो सैलिब्रिटीज की बात हुई, सोचिए जब लोग इन्हें भी सरेआम सुनाने से बाज नहीं आते तो उन औरतों पर क्या बीतती होगी, जो परिवार और समाज की विचारधारा को मानते हुए लादी परंपरा का ताउम्र पालन करती रहेंगी? उन की जिंदगी तो पति के चले जाने के साथ ही खत्म हो जाती है.

लोग उन्हें पति को खा जाने वाली मानते हैं क्योंकि हमारे धर्मपुराण यही कहते हैं जिन्हें आज भी व्हाट्सऐप मैसेजों से दोहराया जाता है. एक टैलीग्राम चैनल पर कहा गया कि चंद्रमा के एक खास नक्षत्र में होने पर स्त्री को स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि जो स्त्री ऐसा करती है वह 7 जन्म तक विधवा होती है यानी पति की मृत्यु के लिए वह ही ऐसे किसी पाप के लिए दोषी है. ग्रंथों में ऐसे बीसियों प्रावधान हैं जो बताते हैं कि क्या करने से स्त्री विधवा हो सकती है. हरेक का अर्थ है कि पति की मृत्यु के लिए पत्नी उत्तरदायी है और समाज इसे दंडित करता है.

यह कैसी धर्मव्यवस्था

एक अन्य टैलीग्राम चैनल के एक मैसेज में एकादशी के महत्त्व पर उस दिन दानपुण्य करने की वकालत करते हुए यह भी जोड़ दिया गया कि यदि एक विधवा स्त्री एकादशी को भोजन करती तो उस के सारे कमाए पुण्य समाप्त हो जाते हैं और उसे गर्भपात करने वाला पाप लग जाता है. यह कैसी धर्मव्यवस्था है?
इस में श्रीकृष्ण का नाम भी जोड़ दिया कि यह संदेश उन का है. किन्हीं पंडित देवशर्मा का लिखित यह मैसेज फौरवर्ड किया गया लगता है पर विधवाएं इन्हीं बातों की शिकार होती हैं.

मगर यही सारे नियम, बंदिशें और परंपराएं मर्दों पर लागू नहीं होतीं. पत्नी के गुजर या डिवोर्स हो जाने के बाद 1-2 महीनों में ही दूसरी शादी कर सकते हैं, मजे से जी सकते हैं. उन्हें तो कोई 2 शब्द सुनाने नहीं जाता. मर्द क्या समाज का हिस्सा नहीं? मर्द हैं तो क्या उन्हें हर बात की, हर चीज की छूट मिल जाती है?
स्त्रियां पैरों की जूती नहीं दुख, दर्द, गम, अकेलापन इंसान को भीतर से तोड़ देता है. अगर जीने के लिए कहीं से वह खुशी पाने की कोशिश करती है तो क्यों इतनी जलन होती है? कब प्रैक्टिकल बनेगा समाज? जब तक धर्म का धंधा जिंदा है फूलफल रहा है किसी और की जिंदगी में दखल देना बंद नहीं होगा.
18वीं सदी की मानसिकता से घिरा दोगलेपन का शिकार है समाज जो आज भी स्त्रियों को पैरों की जूती बना कर रखने में खुद को महान सम?ाता है. यह समाज 18वीं सदी वाला शूद्र, गंवार और पशुओं का समाज ही है आज भी. -मदन कोथुनियां द्य

फूड व्यवसाय में हाथ आजमाती महिलाएं

आ जकल महिलाएं खासकर जो कम उम्र की हैं, अपनी पढ़ाई और ज्ञान का उपयोग करते हुए व्यवसाय शुरू करती हैं. ऐसा ही कुछ कोलकाता की रितिका अग्रवाल ने किया.

रितिका अग्रवाल एक सर्टिफाइड न्यूट्रिशन ऐक्सपर्ट हैं और खाने की शौकीन भी हैं. उन का मिशन पौष्टिक भोजन को ले कर लोगों की सोच बदलना रहा है.

रितिका अपनी डिशेज में हैल्दी टच और टेस्ट दोनों ही शामिल करती हैं. उन्होंने अपनी फ्रैंड के साथ मिल कर ‘फिट या फिक्शन’ नाम की पुस्तक का सह लेखन भी किया है.

मिंट एनफोल्ड एक हैल्दी स्नैकिंग ब्रैंड है जिस में ग्लूटेन फ्री, रिफाइंड शुगर फ्री, प्रीजर्वेटिव फ्री ग्रेनोलाज, कुकीज, ट्रफल्स और क्रैकर्स की एक रेंज शामिल है. स्वाद से सम?ाता किए बिना वे यहां सभी प्राकृतिक और पौष्टिक खाद्य स्रोतों से बनी चीजें ही रखती हैं. मिंट एनफोल्ड एक ही छत के नीचे नैचुरल, हैल्दी और टेस्टी स्नैक्स का बेहतरीन औप्शन है.

रितिका बताती हैं कि उन्होंने 2019 में कुछ पौपअप के साथ इस की अनौपचारिक शुरुआत की थी. लोगों से शानदार प्रतिक्रिया मिली और तब औपचारिक रूप से इस की शुरुआत करने का फैसला किया. लेकिन तभी कोविड-19 की वजह से उन्हें फिर से विराम लेना पड़ा. बाद में अक्तूबर, 2021 में औपचारिक रूप से इसे शुरू किया गया और तब से पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इस काम में उन्हें अपने मातापिता का पूरा सहयोग मिला.

प्रेरणा कैसे मिली

रितिका हमेशा खाने की शौकीन रही हैं लेकिन साथ ही सेहत और वैलनैस के प्रति भी सजग रहती हैं. इसलिए उन्होंने खुद को पहले एक हैल्थ कोच और क्यूलिनरी न्यूट्रिशन ऐक्सपर्ट के रूप में सर्टिफाइड किया.

तब अपने जनून और ज्ञान को कंबाइंड करने और अपना खुद का ब्रैंड बनाने का फैसला किया. उन्होंने सोचा कि क्यों न वे भोजन के प्रति अपने प्यार को दुनियाभर में फैलाएं और हैल्दी एवं टेस्टी स्नैक्स बनाएं जिन्हें आप बिना किसी अपराधबोध के खा सकते हैं और स्वाद के साथ हैल्दी रह सकते हैं.

इतने सालों में जो भी ज्ञान उन्होंने हासिल किया था उसे अप्लाई कर के द मिंट एनफोल्ड की शुरुआत की.

इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने के क्रम में किस तरह की समस्याएं आईं? इस सवाल के जवाब में वे कहती हैं कि कोई सर्टिफिकेट प्राप्त करना एक बात है और इसे हकीकत में अप्लाई करना दूसरी बात है. इसलिए जब मैं ने अपने सिद्धांतों के अनुसार काम करना शुरू किया तो एक ऐंटरप्रन्योर के रूप में मु?ो कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. दिनप्रतिदिन किसी व्यवसाय की पेचीदगियां और बारीकियां कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें आप आगे बढ़ते हुए सीखते हैं और यह सब से बड़ी चुनौतियों में से एक है.

उदाहरण के लिए लाइसेंस प्राप्त करने से ले कर वास्तव में ह्यूमन रिसोर्सेज को मैनेज करना यह सब आप के सामने तब आता है जब आप को इस से निबटना होता है और इसलिए कहते हैं कि समय सब से बड़ा शिक्षक है. इस के साथ ही मु?ो लगता है कि एक सब से बड़ी चुनौती अपने निजी जीवन और पेशेवर जीवन के बीच संतुलन बनाना भी होती है. आप समय और प्रैक्टिस से ऐसा करना सीख जाती हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो रातोंरात नहीं होती है. इसलिए मैं हर दिन अपना सर्वश्रेष्ठ देना जारी रखती हूं और हर दिन को वैसे ही लेती हूं जैसे वह आता है.

रितिका आगे क्या करने की योजना बना रही हैं? इस के जवाब में वे बताती हैं कि कुछ तात्कालिक योजनाओं में शामिल है- स्विगी और जोमैटो पर जाना और अपने ग्राहकों के लिए अधिक सुलभ होना. साथ ही अधिक विजिबल होना. कैफे शैल्फ स्पेसेस/डिपार्टमैंटल स्टोर्स आदि पर मौजूद रहना आदि.

मिंट एनफोल्ड की खासीयत

मिंट एनफोल्ड के प्रोडक्ट्स ग्लूटेन फ्री, रिफाइंड शुगर फ्री और पूरी तरह प्राकृतिक हैं. यह ब्रैंड वास्तव में एक स्वस्थ अनुभव प्रदान करता है. इस के अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि सेहत के साथ स्वाद भी मिले यानी सेहतमंद खाना सिर्फ बोरिंग और ब्लांड नहीं होता बल्कि यमी भी हो सकता है.

रितिका कहती हैं, ‘‘हम सम?ाते हैं कि हैल्दी स्नैकिंग का चलन बढ़ता जा रहा है. लेकिन उन में से अधिकांश में चीनी की मात्रा अधिक होती है और वे फायदे के बजाय नुकसान अधिक पहुंचाते हैं. हमारे प्रोडक्ट्स छोटे बैचों में बनाए जाते हैं और कमर्शियल प्रोडक्ट्स के विपरीत इन में चीनी की मात्रा कम होती है. फिर भी ये प्रोटीन, कौंप्लैक्स कार्ब्स और गुड फैट के अच्छे स्रोत

होते हैं.

ये वास्तव में सुपरफूड गुणों से भरपूर हैं. वास्तव में स्वस्थ अनुभव देने के लिए हम केवल टौप क्वालिटी के और्गेनिक इनग्रीडिऐंट्स का उपयोग करते हैं जो प्रोसैस्ड नहीं होते हैं या केवल मिनिमली प्रोसैस्ड होते हैं. आप जो देखते हैं वही आप को मिलता है यानी हैल्दी भोजन. हम कस्टमाइजेशन के लिए भी ओपन हैं. उदाहरण के लिए यदि आप को नट्स से ऐलर्जी है और बादाम की जगह पंपकिन सीड्स लेना चाहते हैं तो हम निश्चित रूप से ऐसा कर सकते हैं.

होमली जेस्ट

एक ही छत के नीचे विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसने वाला होम किचन लंदन में इंटरनैशनल बिजनैस की छात्रा साक्षी सुरेका ने जुलाई, 2020 में होमली जेस्ट नाम से साउथ कोलकाता क्लाउड किचन की स्थापना की. उन्होंने पढ़ाई और ऐंटरप्रन्योरशिप में बैलेंस रखते हुए अपने काम को खूबसूरती अंजाम दिया. उन्होंने भारतीय स्वाद यानी हमारे चहेते इंडियन भोजन में मौडर्न ट्विस्ट और कौंटिनैंटल फ्लेवर्स ऐड

कर अपने व्यंजनों को अलग अंदाज दिया है. साक्षी डबलिन, इटली और न्यूजीलैंड जैसी जगहों में की गई यात्राओं से और वहां के भोजन से प्रेरणा ले कर अपने खाने में वैरायटी लाती हैं.

होमली जेस्ट कोलकाता में एक फ्रैंडली मील सर्विस है जो रैस्टोरैंट स्टाइल होममेड फूड आप के घर तक पहुंचाता है. यहां भारतीय, चीनी, इतालवी, मैक्सिकन, जापानी, थाई, अरबी, लेबनानी, बंगाली, अमेरिकी, राजस्थानी क्विजीन की लाजवाब वैरायटी पेश की जाती है जिस में चाट और मिठाई भी शामिल है.

खाने में वैरायटी और एक ही छत के नीचे सभी की उपलब्धता निश्चित रूप से इस होम किचन की यूएसपी है.

साक्षी ने यह व्यवसाय कोविड-19 के दौरान शुरू किया. वे लंदन में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थीं और कोविड के कारण वापस लौटना पड़ा. हर दिन वे अपने परिवार के लिए अलगअलग व्यंजन बनाती थीं. तभी उन के पिता के मन में खुद का क्लाउड किचन शुरू करने का विचार आया. उन्हें इस काम में परिवार का पूरा समर्थन और सहयोग मिला.

होमली जेस्ट की खासीयत

कस्टमाइजेशन और पर्सनल टच के साथ सभी क्विजीन एक ही छत के नीचे प्रोवाइड किए जाते हैं ताकि ग्राहक अपनी पसंद के अनुसार भोजन कर सकें और घर जैसा महसूस कर सकें. ग्लासवेयर और प्लेटर्स में खाना सर्व किया जाता है.

साक्षी कहती हैं कि वर्तमान में देखा जाए तो लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी में बहुत सारे सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं जैसे शिक्षित लड़कियों की संख्या बढ़ रही है. मुझे लगता है

कि भले ही हमारे सामने बहुत सारी चुनौतियां होंगी लेकिन हम सभी में उन चुनौतियों से लड़ कर आगे बढ़ने और शानदार प्रदर्शन करने की क्षमता है.

मजदूर चाहिए पर नखरे नहीं

दुनिया के अमीर देश अब जनसंख्या के मामले में चौराहे  पर खड़े हैं. एक तरफ औरतें बच्चे पैदा करने में हिचकिचा रही हैं, दूसरी ओर तकनीक और इंडस्ट्रीयलाइजेशन के कारण लोगों की कमी अखरने लगी है. हर देश में अब अमीरी के साथ गरीब देशों के वर्कर बस रहे हैं. भारत, मैक्सिको, फिलीपींस, बंगलादेश, नेपाल, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका से लाखों लोग अपना जीवन सुधारने से ज्यादा अमीर देशों के अमीरों का जीवन सुधारने के लिए लाइनों में खड़े हैं.

अमीर देशों में हर सेवा में कालेपीले लोग दिख जाएंगे जो अपने देश से एक मेहनती बदन ही नहीं लाए हैं, अपने देश की संकीर्ण और निकम्मी संस्कृति भी सूटकेस में बांध कर लाए हैं. ये लोग अमीरों की सेवा विदेशी पैसे के लालच में कर रहे हैं पर जल्द ही इन्हें जन्म से मिली आदतें जोर मारने लगती हैं.

इन आदतों के कारण

अमीर देशों के अमीरों को, ये अमेरिकायूरोप के गोरे हो सकते हैं, पश्चिमी एशिया के अरब हो सकते हैं, दक्षिणपूर्व एशिया के ब्राउन भी हो सकते हैं, जो सेवा देने वाले सस्ते मजदूरों का काम चाहते हैं, इन से अपनी जीवनशैली बचाने का डर लग रहा है.

हर देश में राजनीति में ऐसे लोग घुस रहे हैं जो इस इंपोर्टेड लेबर को रोकना चाहते हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप इसी को ले कर पहले जीता था और 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन को हरा दे तो बड़ी बात नहीं होगी. यह सिरफिरा नेता बड़ी बात यही कहता है कि वह दक्षिण अमेरिका से चोरीछिपे आ रहे मजदूरों को नहीं आने देगा. उस की और बातों का जनता समर्थन करे या न करे, इस का जरूर करे. यह वैसा ही है जैसा नरेंद्र मोदी मुसलिमों के बारे में कहते और करते हैं.

अमीर देशों में राइटिस्ट

पार्टियां सिर उठा रही हैं और उनके जवाब में लैफ्ट पार्टियां भी मुखर हो रही हैं. बीच का रास्ता अपनाने वाली पार्टियों की कमी होती जा रही है. दुनिया के मुद्दों में अब लेबर एक बड़ा छिपा मुद्दा बन गया है जिस का उत्तर किसी के पास नहीं है.

इसराईल ने फिलिस्तिनियों के खिलाफ मोरचा खोल रखा है और हजारों को हमास के हमले के जवाब में मार डाला है पर फिलिस्तिनी मजदूरों की कमी उसे सताने लगी है. चीन को भी अब मजदूर चाहिए. जापान और कोरिया को भी चाहिए. ठंडेगरम सभी अमीर देश गरीब देशों से ले कर इंपोर्ट कर रहे हैं पर फिर भुनभुना रहे हैं.

यह वैसा ही है जैसा हमारे यहां हर घर में होता है कि बाई चाहिए पर उस के नखरे नहीं. अब अगर आप बाई अपनी जरूरतों की खातिर आएगी तो वह अपने साथ अपना तौरतरीका, कल्चर, रंगरूप साथ लाएगी. उसे सहना पड़ेगा. जैसे हमारे यहां कोई राज्य भूमिपुत्रों के लिए ही नौकरियां रिजर्व कर के पनप नहीं सकता वैसे ही कोई अमीर देश बिना इंपोर्टेड लेबर के नहीं पनप सकता पर उस की राजनीति अलग चीज है, धर्मगुरु  और छोटी आंख वाले नेता इस का पूरा लाभ उठा रहे हैं.

इज्जत बड़ी या राजनीति

महिला पहलवानों ने खुल्लमखुल्ला सड़कों पर उतर कर भारतीय कुश्ती संघ के पूर्र्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ सैक्सुअल हैरेसमैंट के आरोपों पर भारतीय जनता पार्टी के कानों पर महीनों जूं तक नहीं रेंगी. शायद वह महिला पहलवानों को नीची जाति की औरतें समझ कर उन्हें इस लायक नहीं समझ रहे थी कि एक सनातन तिलकधारी सांसद के खिलाफ कुछ किया जाए जो भक्त भी पैदा करता है और वोट भी बटोरता है.

बड़ी मुश्किल से वह संघ से निकाला गया. सरकार ने वर्ल्ड रैसलिंग फैडरेशन की ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ की मान्यता को खत्म करने के बाद मरे दिल से यह कदम उठाया पर बृजभूषण सिंह का दबदबा कायम रहा और ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ के चुनावों में बृजभूषण सिंह फिर छा गया. उस के घर से चल रहा रैसलिंग फैडरेशन बृजभूषण सिंह के दोस्त के ही हाथों में गया और वह भी 47 में से 40 वोटों से.

हार कर पहलवानों ने रैसलिंग से रिटायर होने की घोषणा करनी शुरू कर दी, पदक लौटाने शुरू कर दिए. ये टोकन स्टैप हर उन अखबारों में भी सुर्खियां बनने लगे जो भाजपा समर्थक हैं. अब भाजपा को होश आया है और उस ने स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के माध्यम से इस नए चुने पैनल को सस्पैंड कर दिया है.

रैसलर्स के कुछ आंसू तो पोंछे गए हैं पर यह समझ लें कि यह कदम केवल मई, 2024 तक के लिए चुनावों में भाजपा विपक्ष को कुछ कहने के लिए एक मुद्दा नहीं देना चाहती. वह नहीं चाहती कि राम मंदिर के उद्घाटन के समय शनि का कोई काला साया भाजपा पर पड़े. वह केवल कुछ समय चाहती है.

रैसलर्स या कुश्ती हमारे देश में जागीरदारों और अमीरों का प्रिय खेल रहा है पर वे खुद नहीं खेलते थे. वे खिलवाते थे और देखते थे. आज भी स्थिति बदली नहीं है. रैसलर पहलवान धन और धर्म की रक्षा का काम करते थे, करते हैं और करते रहेंगे. वे और कुछ ज्यादा न सोचें, यह संदेश साफ है. रही बात सैक्सुअल हैरेसमैंट की तो न भूलें कि इंद्र ने अहिल्या को छला और दोषी अहिल्या थी, द्रौपदी को जूए पर लगाया गया और युधिष्ठिर अपराधी नहीं थे, प्रेम निवेदन पर शूर्पणखा की नाक कटी थी, नाक काटने वाला दोषी नहीं था. बृजभूषण सिंह कुछ समय के लिए पद और प्रभाव त्याग रहा है, वनवास मिला है, फिर लौटेगा उसी दमखम से.

मंदिर दर्शन तो छलावा हैं

आजकल राहुल गांधी मणिपुर से मुंबई न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं. यह वैसे कोई सैरसपाटा नहीं है क्योंकि जैसे नरेंद्र मोदी मंदिरों के दर्शनों से देश को देखना चाहते हैं और वोट पाना चाहते हैं वैसे ही राहुल गांधी देश के शहर, गांव, जंगल, पहाड़, मैदान, नदि देखते हुए वोट की चाहत रखते हैं.

मोदी के दर्शन जहां एक प्रार्थना है कि हे प्रभु, हमारी झोली सीटों से भर दो, हम आप के मंदिर बनाएंगे, मंदिरों के बाहर रास्ते ठीक कराएंगे, मंदिरों के लिए रेलवे स्टेशन, हवाईअड्डे बनवाएंगे, वहीं राहुल गांधी वोट के साथसाथ लोगों के साथ भी जुड़ रहे हैं.

एक आम आदमी, खासतौर पर आम परिवार को भारत की यात्रा करनी चाहिए. यह पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के साथसाथ हरेक को अपना होराइजन बड़ा करने के लिए जरूरी है. हर टूर और ट्रैवल आप को नए लोगों से मिलाता है, नई भौगोलिक स्थिति से परिचित कराता है, नई भाषा सिखाता है और सब से बड़ी बात है कि आप को अनजान लोगों के साथ रहना सिखाता है.

अपने से अलग, अलग धर्म के, अलग भाषा के, अलग रंग के लोगों से जब मिलना होता है तो बहुत कुछ नया सीखना होता है. किसी भी पर्यटन पर आप को गैरों के बीच रहने की आदत डालनी होती है. आप को समझने को मिलता है कि आप के घर की सुरक्षा का घेरा आप के पास नहीं है. आप के दोस्त, रिश्तेदार, कलीग आप के आसपास नहीं हैं. आप जिस जगह हैं वहां क्या है यह नहीं जानते. पर्यटन, यात्रा आप को ऐडजस्ट कराना सिखाती है.

मंदिरोें में जब दर्शन करने जाते हैं तो आप का उद्देश्य अपना सुख होता है. भगवान मुझे कुछ दे दो. मेरे पापों को क्षमा कर के मरने के बाद मेरे पापों का फल अगले जन्म न दें इसीलिए तुम्हारी शरण में आया हूं, मुझ से दक्षिणा लो. मैं दरवाजे पर सोने की कील लगवाऊंगा, चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा, पंडितों को दक्षिणा दूंगा. मैं…मैं… मैं…

पर्यटन पर आप यह नहीं कहते कि आप जिस तरफ जा रहे हैं या हैं वहां कुछ कराएंगे. वहां से आप ज्ञान प्राप्त करेंगे. वहां के ऐटमौसफियर को जानेंगे, वहां की डाइवर्सिटी और वैरायटी को सम?ोंगे. खास खानपान को चखेंगे. अच्छा लगेगा तो खाने के 2-4 डब्बे दूसरों के लिए ले जाएंगे. गैरधार्मिक यात्रा हरेक को नया बनाती है.

खर्च तो धार्मिक यात्रा में ज्यादा होता है क्योंकि आनेजाने, रहने के अलावा दानदक्षिणा में जेब ढीली करनी होती है. दूसरे टूर में आप उस जगह की निशानी ले कर आते हैं. वहां से सीख कर आते हैं, कुछ मांगते नहीं हैं.

राहुल गांधी की यात्रा का उद्देश्य जनता की सेवा करना हो, ऐसा नहीं लगता पर मंदिरों में भरपूर सरकारी पैसे से आयोजनों से जनता को कुछ नहीं मिलेगा यह पक्का है. कुछ को यह सुखद भाव मिल सकता है कि वे 1000 या 2000 साल की गुलामी के निशान मिटा रहे हैं पर जब पूरे देश पर बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, भूख, करप्शन, अन्याय की जंजीरें लगी हों, औरतें, लड़कियां पिता या पति के घर में भी सुरक्षित न हों, तो वैसा 1000-2000 साल में क्या रिवैंज?

दर्शनों के लिए अपनों के जत्थों के बीच रेलों, हवाईजहाजों, बसों, कारों के काफिलों और प्राइवेट व पब्लिक जेटों से कहीं भी पहुंचें पर आप को भारत के दर्शन नहीं होंगे, आप को सिर्फ मोमैंट्री एहसास होता कि हम ने इतिहास का बदला ले लिया पर क्या उस से लिया जिस ने आप के पुरखों को नुकसान पहुंचाया, जिस के बारे में आप खुद नहीं जानते, आप ने उसे देखा नहीं, आप ने उस के अत्याचार भुगते नहीं. आप ने बारबार पढ़ा था कि जुल्म हुआ पर यह भी संभव है कि आप का ब्रेनवाश किया गया है.

इस से अच्छा तो यह है कि आप डल लेक देखिए, आप ताजमहल देखें, अजंता की गुफाएं देखें, गोवा के तट देखें, राजस्थान का रेगिस्तान देखें, मध्य प्रदेश की भीम बैटका (भीम बैठका) गुफाएं देखें. हरेक से आप को अभूतपूर्व आनंद मिलेगा बिना नकली रोकटोक के, अपने प्राकृतिक सौंदर्य के बीच, बिना दक्षिणा के.

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