REVIEW: बम की बजाय फुसफुस पटाखा ‘लक्ष्मी’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः केप आफ गुड फिल्मस, तुशार कपूर और शबीना खान

निर्देशकः राघव लारेंस

कलाकारः अक्षय कुमार,  कियारा अडवाणी, शरद केलकर, अश्विनी कलसेकर.

अवधिः दो घंटे 21 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिजनी

कोरोना के चलते सिनेमा घर बंद होने पर कई निर्माताओं ने अपनी फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म को बेची. उस वक्त अक्षय कुमार व तुशार कपूर ने अपनी फिल्म‘लक्ष्मी बम’,  जिसका नाम अब ‘लक्ष्मी’हो गया है,  को भी ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘हॉट स्टार डिजनी ’को बेच दिया था. तभी लोगों ने सवाल पूछा था कि अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म‘लक्ष्मी’को ओटीटी प्लेटफार्म को बेची, पर ओटीटी प्लेटफार्म पर वह ‘सूर्यवंशी’क्यों नही ला रहे हैं. अब फिल्म देखकर समझ में आ गया कि अक्षय कुमार ने एक व्यवसायी की भांति ओटीटी प्लेटफॉर्म को देकर अपना फायदा कर लिया. अन्यथा सिनेमाघरों में इस फिल्म को दर्शक नहीं मिलने थे. यह अतिघटिया व बकवास संवादों से युक्त फिल्म है. फिल्म्सर्जक राघव लारेंस की तमिल सुपर डुपरहिट फिल्म ‘कंचना’ का हिंदी रीमेक है. तमिल फिल्म का निर्देशन  करने के साथ साथ मुख्य भूमिका खुद राघव लारेंस ने ही निभायी थी. अब उसी पर बनी हिंदी फिल्म का लेखन व निर्देशन राघव लारेंस ने किया है, मगर मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार हैं. अन्य कलाकार भी बौलीवुड के हैं. मगर फिल्म ‘लक्ष्मी’ हॉरर कॉमेडी के नाम पर बकवास व मूर्खता के अलावा कुछ नही है. इसमें अंध विश्वास व भूत प्रेत को बढ़ावा देने के साथ ही लव जेहाद की बात की गयी है.

 कहानीः    

आसिफ (अक्षय कुमार) और रश्मि (कियारा अडवाणी) ने भागकर प्रेम विवाह किया है. आसिफ मुस्लिम और रश्मि हिंदू है. आसिफ ‘‘जागो आवाम कमेटी’से जुड़कर अंध विश्वास फैलाने वाले बाबाओं की पोल खोलता रहता है और उसका तकिया कलाम है ‘जिस दिन भूत देख लेगा, उस दिन हाथ में चूड़ियां पहन लेगा.

आसिफ चाहता है कि एक बार वह रश्मि की उनके माता पिता के साथ मुलाकात करवा दें. रश्मि की माता रत्ना(आएशा रजा मिश्रा)और पिता सचिन(राजेश शर्मा )की शादी की सिल्वर जुबली एनिवर्सरी है. रश्मि की मॉं इस मौके पर आसिफ व रत्ना को बुलाती है. इस बार आसिफ तय करके जाता है कि वह रश्मि के माता पिता को मना लेगा. लेकिन रश्मि के माता पिता के घर रेवाड़ी से दमन पहुॅचने से पहले वह उस जगह पहुंच जाता है, जहां नही पहुंचना चाहिए था. फिर भी वह सबक नहीं लेता. दूसरे दिन वह बच्चों के साथ उसी मैदान पर क्रिकेट खेलने जाता है, क्रिकेट नहीं खेल पाते, मगर आसिफ की जिंदगी बदल जाती है. उस पर एक ट्रांसजेंडर लक्ष्मी शर्मा की आत्मा प्रवेश कर जाती है. फिर बहुत कुछ घटता है. शाहनवाज पीर बाबा आते हैं. आसिफ अपने तकिया कलाम के अनुरूप हाथों में चूड़ियां पहन लेते हैं. अंततः लक्ष्मी की आत्मा आसिफ के माध्यम से अपनी हत्या कर प्लॉट हथियाने वालों की हत्या कर देती है. उसके बाद लक्ष्मी शर्मा की मुंह बोली बेटी गीता उसी प्लाट पर एक विशाल ‘लक्ष्मी फाउंडेशन ट्रांसजेंडर’ की इमारत खड़ी कर देती है.

लेखन व निर्देशनः

लेखन व निर्देशन दोनों स्तर पर फिल्म‘लक्ष्मी’देखना सिरदर्द है. इसमें न हॉरर है और न ही कॉमेडी है. सफल तमिल फिल्म का हिंदी रीमेक करते हुए राघव लारेंस ने इसकी स्क्रिप्ट इतने गलत ढंग से बदली है कि फिल्म का सत्यानाश हो गया. इसके संवाद अतिघटिया और बकवास हैं. एक संवाद है, जब एक ढोंगी बाबा से अक्षय कुमार कहते हैं–‘‘आप बाबाओं के बाबा हो, वैष्णवी का ढाबा हो. ’’फिल्म में लेखक व निर्देशक की अपरिपक्वता की तरफ इशारा करने वाले अस्वाभाविक दृश्यों की ही भरमार है. इसके साथ ही इसमें ‘लव जेहाद’बेवजह ठॅूंसा गया है. इस दृश्य के माध्यम से फिल्मसर्जक का सामाजिक समरसता का संदेश देने का प्रयास पूरी तरह से विफल रहा. यह फिल्म ट्रांसजेंडरों पर कोई बेहतरीन बात नही करती और न ही फिल्म देखकर ट्रांसजेंडरों के प्रति किसी भी तरह का दयाभाव ही पैदा होता है.

जहां तक गानों का सवाल है, तो बिन बुलाए मेहमान की भांति रंग में भंग डालने से नहीं चूकते.

अभिनयः

अफसोस इस फिल्म में किसी का भी अभिनय प्रभावित नही करता. अक्षय कुमार भी काफी निराश करते हैं. अक्षय कुमार ने क्या सोचकर इस फिल्म में अभिनय करने के साथ ही इसका सहनिर्माण किया है, यह तो वही जाने. कियारा अडवाणी महज शो पीस ही हैं और काफी छोटे किरदार में हैं.  कुछ हद तक शरद केलकर ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है.

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