REVIEW: पंजाब की पृष्ठभूमि में लड़की के जन्मते ही हत्या पर सवाल करती फिल्म ‘काली खुही’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः रमन छिब,  संजीव कुमार नायर, अंकु पांडे, श्रीराम रामनाथन

निर्देशकः तेरी सॉन्मुद्रा

कलाकारः शबाना आजमी, संजीदा शेख, रीवा अरोड़ा, सत्यदीप मिश्रा, लीला सैम्सन,  हेतकी भानुशाली, रोज राठौड़, सैम्युअल जॉन, पूजा शर्मा, अमीना शर्मा व अन्य

अवधिः एक घंटा तीस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स पर, तीस अक्टूबर, दोपहर बाद

पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ रही प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मां के हाथ से नवजात शिशु को लेकर उन्हें काला जहर चटाकर मार देने की घटनाएं सिर्फ कबीलों और गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी खूब होती हैं. उसी को हॉरर फिल्म् का जामा पहनाकर निर्देशक टेरी समुंद्र ने कुछ कहने का प्रयास किया है. इस डेढ़ घंटे की फिल्म को ‘नेटफ्लिक्स’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

पंजाब की पृष्ठभूमि पर यह कहानी दस वर्षीय लड़की शिवांगी (रीवा अरोड़ा)  के इर्द गिर्द घूमती है. शिवांगी के कंधे पर पूरे गांव को श्रापमुक्त करने की जिम्मेदारी है. और उसके लिए जीवन मरण की. फिल्म शुरू होती है शहर से, जहां शिवांगी के पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) को खबर मिलती है कि शिवांगी की दादी (लीला सैम्सन)  बीमार हैं. दर्शन रात में ही बेटी शिवांगी और पत्नी प्रिया (संजीदा शेख) को लेकर रवाना होते हैं. गांव मे दर्शन की मां के पास सत्या मौसी (शबाना आजमी)  बैठी हुई हैं. सत्या मौसी की नाती चांदनी (रोज राठौड़)व शिवांगी सहेली हैं. चंादनी, शिवांगी को बताने का प्रयास करती है कि गांव में भूत का साया है. लोगो की जान ले रहा है. हर इंसान बीमार होता है, फिर उसे काली उलटी होती है और वह मर जाता है. इसके पीछे एक अतीत भी है, जिसका गवाह कुंआ है, जिसके अंदर कई नवजात लड़कियों के साथ ही कई औरतें दफन हैं. इस गुप्त अतीत की जानकारी दर्शन की मौसी सत्या मौसी(शबाना आजमी) हैं, जिन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक में दर्ज किया है. अतीत यह है कि यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मांओं के हाथों से बच्चियां ले लेने और फिर उन्हें काला जहर चटा देने की घटना है. अतीत में दर्शन की छोटी बहन की भी जन्मते ही हत्या की गयी थी.  शिवांगी के माता-पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) और प्रिया (संजीदा शेख) के बीच का घनिष्ठ संबंध अतीत की भयावहता का एक और सुराग प्रदान करता है जो खुले में अपना रास्ता बना रहे हैं.

लेखन व निर्देशनः

लेखक द्वय टेरी समुद्र और छेविड वाल्टर तथा निर्देशक टेरी समुद्र ने शुरुआती दृश्यों में ही भूत की अवधारणा स्पष्ट कर दी है. इसलिए रहस्य तो रह नहीं जाता. फिर भी कुछ कमजोरियों के बावजूद फिल्म अपनी गतिशीलता को बरकरार रखती है. पर हॉरर के नाम पर ऐसा कुछ नही है कि लोगों को डर लगे. हां डराने का प्रभाव संगीत जरुर कुछ पैदा करता है. इसके अलावा शिवांगी के माता पिता के गांव पहुंचने,  शिवांगी का बचपन की सहेली चांदनी से मिलना,  गांव,  तालाब,  नदी,  नाले,  बरसात,  मेंढक,  भैंस,  कीचड़ और घना कोहरा, सब कुछ मिलाकर निर्देशक ने हॉरर का पूरा माहौल बनाने का प्रयास जरुर किया है. कुछ दृश्य अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. निर्देशन प्रभावशाली है. जन्मते ही बेटियों की हत्या से लेकर  भ्रूण हत्या पर यह फिल्म बिना किसी भाषण के कई सवाल खड़े कर जाती है. सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसका संगीत है. पंजाबी पृष्ठभूमि की इस फिल्म में पंजाब की लोकसंस्कृति और वहां के भूले बिसरे लोकगीत लाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर दिया जा सकता था. संवाद प्रभाव पैदा नही करते. कई दृश्य स्पष्ट नही है.

कैमरामैन सेजल शाह की तारीफ करनी ही पड़ेगी.

अभिनयः

संजीदा शेख व सत्यदीप मिश्रा ने बेहतरीन अभिनय किया है. संजीदा शेख के हिस्से संवाद कम हैं, मगर वह अपनी आंखों से बहुत कुछ कह जाती है. कमाल का अभिनय है. वेब सीरीज‘तैश’की तरह यहां भी चुप रहकर वह अपने अभिनय को नया आयाम देते हुए नजर आती हैं. दस साल की लड़की शिवांगी के किरदार में बाल कलाकार रीवा अरोड़ा के साथ ही चांदनी के किरदार में बाल कलाकार रोज राठौड़ ने शानदार अभिनय किया है. लीला सैम्सन का किरदार काफी छोटा है, पर उसमें भी वह अपना प्रभाव डालने में सफल रही. भयानक बोझ वाली महिला सत्या मौसी के किरदार में प्रोस्थेटिक मेकअप का सहारा लेकर शबाना आजमी भयानक ही नजर आती हैं, मगर जब बात रिश्ते निभाने की हो, तो उनके चेहरे पर करूणा भी आ ही जाती है. अंततः वह एक शानदार अभिनेत्री हैं.

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