जुनून ही जीवन है

17 साल की शिवांगी ने मई, 2018 में माउंट एवरेस्ट चोटी (8848 मीटर) फतह की. हिसार, हरियाणा की शिवांगी नेपाल साइड से माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली सब से कम उम्र की लड़की बन गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में शिवांगी की खूब तारीफ की. और भी कई नेताओं ने उस के अचीवमैंट से जुड़े ट्वीट किए. इस के बाद शिवांगी ने जुलाई, 2018 में अफ्रीका के सब से ऊंचे माउंटेन माउंट किलिमंजारों (5895 मीटर) की चढ़ाई सिर्फ 3 दिन में पूरी की तो 4 सितंबर,

2018 को यूरोप की माउंट एलबु्रस की चोटी (5642 मीटर) पर पहुंची. दिल्ली से करीब 170 किलोमीटर दूर है हिसार. हम हिसार की ग्लोबल सिटी सोसायटी पहुंचे जहां शिवांगी अपने परिवार के साथ रहती है. पहले शिवांगी का परिवार हांसी में रहता था, जहां पूरी सुविधाएं नहीं थीं.

हिसार एक ऐजुकेशन हब है. यहां 3 यूनिवर्सिटीज हैं – हरियाणा ऐग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, गुरु जंबेश्वर यूनिवर्सिटी औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी और लाला लाजपत राय वैटरिनरी यूनिवर्सिटी. हिसार में मैडिकल फैसिलिटी बहुत अच्छी है. यहां एशिया की सब से बड़ी औटो मार्केट हैं.

इन सब के अलावा जो हिसार की खासीयत है वह है लड़कियों की स्पोर्ट्स में रूचि. यहां की काफी लड़कियां स्पोर्ट्स में कैरियर बनाती हैं. शिवांगी ने जिस कोच से प्रशिक्षण लिया उन के 50 बच्चों में 35 लड़कियां हैं. इन में 4-5 नैशनल लैवल की प्लेयर हैं.

हरियाणा ऐग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में गिरी सैंटर है जहां ऐथलीट तैयार किए जाते हैं. यहां सिंथैटिक ग्राउंड है जो रनिंग के लिए काफी अच्छा होता है. शिवांगी अकसर वहां जा कर अभ्यास करती है. हिसार में बहुत बड़ी सैनिक छावनी हिसार कैंट है तो यहां की जिंदल स्टील फैक्टरी भी काफी मशहूर है.

हिसार में कहीं भी पहाडि़यां या बर्फ से ढकी पर्वत शृंखलाएं नहीं है. मगर जिसे सपने देखने का शौक होता है वह उन्हें पूरे करने के रास्ते और माहौल खुद बना लेता है. केवल 4 माह में शिवांगी ने 3 समिट पूरे किए. उस का सपना है कि 18 साल की उम्र से पहले ही वह सभी 7 समिट पूरे कर ले.

शिवांगी को जहां अपने पापा, चाचाचाची और दादी का भरपूर प्यार और सहयोग मिलता है वहीं मां भी हर पल उस का साथ देती हैं. मां आरती पाठक हर जगह उस के साथ होती हैं. ट्रेनिंग के समय भी और मोटिवेशन के समय भी. पिता राजेश पाठक, चाचा राजकुमार पाठक के साथ इलैक्ट्रौनिक्स की शौप चलाते हैं और बड़ा भाई मैडिकल की तैयारी कर रहा है.

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का विचार कैसे आया? सवाल के जवाब में शिवांगी मुसकराती हुई कहती हैं, ‘‘मुझे बचपन से ही कुछ खास करने का शौक था. मैं ने एक दिन गूगल में अपना नाम सर्च किया तो कुछ नहीं मिला. तब मेरे भैया ने कहा कि इस के लिए पहचान बनानी होगी. जो पहाड़ पर चढ़ते हैं, बड़े काम करते हैं उन का नाम आता है. उसी समय मेरे दिल में पहाड़ पर चढ़ने का विचार आया. फिर एक दिन मैं मां के साथ एक सेमिनार में गई जहां अरुणिमा सिन्हा की कहानी से जुड़ा वीडियो दिखाया जा रहा था. 22 मिनट के इस वीडियो को देख कर ही मैं ने पक्का फैसला कर लिया कि मुझे भी माउंट एवरेस्ट फतह करनी है. उस वक्त मैं 11वीं कक्षा में थी.

‘‘एक दिन पापा ने कहा कि चलो पहले यह देखते हैं कि आप फीयरलैस हो या नहीं. उस समय हम ऋषिकेश में थे. पापा ने मुझे 83 मीटर की ऊंचाई से बंजी जंपिंग करने की चुनौती दी. मैं ने कर के दिखा दिया तो उन्होंने ने मेरी ट्रेनिंग की व्यवस्था कर दी.

‘‘13 नवंबर, 2016 से मेरी फिटनैस ट्रेनिंग शुरू हुई. उस वक्त मेरी उम्र 14 साल थी वजन 61 किलोग्राम. जाहिर है मुझे अपनी फिटनैस पर ध्यान देना था. रिंकू पानू कोच की शिष्या बन कर मैं ने ढाई घंटे सुबह और 3 घंटे शाम प्रैक्टिस शुरू की. सुबह 1 घंटा दौड़ना, शाम में 5000 स्कीपिंग, वेटलिफ्टिंग, मैडिटेशन जैसे फिटनैस वर्कआउट करने शुरू किए.

‘‘अप्रैल, 2017 में जम्मू के पहलगाम में मैं ने 1 माह का बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स जौइन किया, जिस में पहाड़ पर चढ़ने की बेसिक जानकारी दी गई. सितंबर, 2017 में ऐडवांस कोर्स किया, जिस में प्रैक्टिकली सबकुछ सिखाया गया. इस के बाद दार्जिलिंग में डबल ऐडवांस कोर्स भी किया. फिर सेवन समिट्स टै्रक्स एजेंसी के थ्रू माउंट एवरेस्ट पर गई.

‘‘41 दिन की एवरेस्ट जर्नी काफी चैलेंजिंग थी. 13-14 दिन बेस कैंप पहुंचने में लगे. एक कैंप जिसे मौत का घर भी कहते हैं पहुंचने में काफी बैलेंस मैंटेन करना पड़ता है. आगे का सफर और भी खतरनाक होता है. बर्फ के पिघलने और क्रीवर्स में गिरने का खतरा बना रहता है. हमें काफी सामान भी ढोना होता है. साढ़े 6 किलोग्राम के शूज के अलावा रकसेट जिस में बड़ीबड़ी पानी की बोतलें होती हैं, हार्नैस सैट, क्लोदिंग, ऐक्स्ट्रा जैकेट और खाने का सामान (फास्ट फूड, चावल, चौकलेट बगैरा) और 2 सिलैंडर 400-400 ग्राम वाले. इतना भार ढो कर 40 डिग्री टैंपरेचर पर ऊपर चढ़ना आसान नहीं था.’’

जोखिम में जिंदगी

शिवांगी 4 लोगों के ग्रुप में थी. बेस कैंप के बाद 4 कैंप होते हैं. एक से दूसरे कैंप में पहुंचने में लगभग 12 से 24 घंटे लगते हैं. वहां जा कर खाना बनाना होता है. इतनी ठंड में खाना बना कर खाना आसान नहीं. बर्फीला तूफान आने का डर बना रहता है. घायल माउंटेनियर को स्लीपिंग बैड से नीचे लाते हैं.

शिवांगी कहती है, ‘‘कैंप 3 में जब एक दिन हम बर्फ खोद कर पानी भरने का इंतजाम कर रहे थे तो अचानक अंदर से काले रंग का एक हाथ निकला. उस की उंगलियां टेढ़ीमेढ़ी  थीं. मैं उसे देख कर बहुत डर गई. मुझे बहुत अजीब लगा.’’

कठिनाइयां

डिसीजन लेना अकसर कठिन हो जाता है, क्योंकि पता नहीं होता कि चढ़ते समय कब क्या हो जाए, क्या प्रौब्लम आ जाए.

गर्ल्स प्रौब्लम: इतने कम टैंपरेचर में गर्ल्स प्रौब्लम काफी परेशान करती हैं. किसी को तो पीरियड जल्दीजल्दी होता है तो किसी को होना ही बंद हो जाता है. शिवांगी कहती है कि 41 दिन के सफर में 4 बार उन्हें इस समस्या से रूबरू होना पड़ा. यह बहुत कठिन था.

शिवांगी प्योर वैजिटेरियन है, इसलिए उसे खासतौर पर खानेपीने की समस्या का सामना करना पड़ा. इतने कम तापमान पर चढ़ाई करते समय शरीर को काफी ऐनर्जी की जरूरत होती है जो प्रोटीन से मिलती है. ऐसे में मांस खाना सब से बेहतर होता है. मगर शिवांगी के पास यह औप्शन भी नहीं था. कच्चे साग में नमकमिर्च लगा कर चावल के साथ भोजन कर वैजिटेरियन अपनी प्रोटीन की जरूरत पूरा करने का प्रयास करते हैं. चढ़ाई करते समय बारबार बर्फ के तूफानों का सामना करना पड़ता है.

चढ़ाई करते समय किन बातों का खयाल रखना जरूरी होता है? सवाल के जवाब में शिवांगी कहती हैं, कुछ खास बातों पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. ग्रुप में जितने लोग होते हैं उन का ध्यान रखना जरूरी होता है. हम 4 लोग थे. एकदूसरे का ध्यान रखते हुए ही आगे बढ़ सकते थे. आप के पास पानी कभी खत्म नहीं होना चाहिए, क्योंकि आप बिना पानी ऊपर नहीं जा पाएंगे.

‘‘मुंह चलाते रहना जरूरी होता है. इस के लिए हम हर 1 घंटे पर कुछ न कुछ खाते रहते थे. इस के अलावा कभी गाना गा कर तो कभी बातें कर मुंह चलाते रहने का प्रयास करते थे ताकि ठंड में दांत जम न जाएं. चने और बादाम खाने से दांत निकलने का खतरा रहता है. खुश रहना भी बहुत जरूरी है. खुद से बातें करना, मुसकराना और स्वयं को मोटिवेट करते रहना जरूरी है.

‘‘शेरपा से बना कर रखना बहुत जरूरी होता है. उसे अधिक नौलेज होता है. वह आप की हर तरह से मदद कर सकता है. किस स्थिति से कैसे निबटना है यह वही बताता है. वह सामान उठाने में भी मदद करता है.’’

कमी जो महसूस होती है

शिवांगी बताती है कि हमारी मेहनत का पूरा रिवार्ड नहीं मिलता. यह बहुत ही ऐक्सपैंसिव गेम है पर सरकार केवल ऐथलैटिक्स को सपोर्ट करती है हमें नहीं. सरकार की तरफ से किसी भी किस्म की मदद नहीं मिलती. टौप औफ द वर्ल्ड पर तिरंगा फहरा कर नाम रोशन करने वाले पर्वतारोहियों को इस बात का मलाल रहता है कि माउंटेनियरिंग को स्पोर्ट्स में शामिल नहीं किया गया है.

लोकल विधायक ने शिवांगी को मात्र 11 हजार का चैक पकड़ाया जबकि एवरेस्ट क्लाइंबिंग में क्व30 से 35 लाख तक का खर्च आया था.

एक प्राइवेट कंपनी पहले शिवांगी को स्पौंसर करने वाली थी, पर ऐन वक्त पर उस ने इनकार कर दिया. तब घर को गिरवी रख कर लोन लिया. आज क्व60 हजार प्रति माह एचडीएफसी बैंक को लोन की किस्त दी जा रही है.

एवरेस्ट के बाद बाकी 2 समिट के लिए शिवांगी को स्पौंसर मिल गए. कस्तूरी मैमोरियल ट्रस्ट और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद दोनों ने शिवांगी को ऐडौप्ट कर लिया है.

जीत की तैयारी

शिवांगी की कोच रिंकू पानू कहती हैं, ‘‘मेरी देखरेख में शिवांगी की फिटनैस ट्रेनिंग जनवरी, 2017 में शुरू हुई थी. उस समय वह बालों का पफ बना कर हाईपोनी करती थी. मगर मेरे कहने पर उस ने तुरंत बाल कटा लिए. डाइट पर ध्यान दिया. मैं ने उसे स्प्राउट्स, बादाम, किसमिस, पनीर, मशरूम आदि खाने पर जोर दिया. फास्ट फूड बंद करा दिया. जब वह आई थी तब 1 राउंड दौड़ने में ही थक जाती थी.

‘‘मगर माउंटेनियर बनने के लिए ऐंडोरैंस लैवल काफी अधिक होना चाहिए. सो सब से पहले उसे ऐंडोरैंस ट्रेनिंग दी गई. 2 घंटे लगातार दौड़ने पर भी पल्स रेट 100 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इस के अलावा उसे वेट ट्रेनिंग की गई. इस सावधानी के साथ कि मसल्स न बने, क्योंकि मसल्स से इंजरी का खतरा बढ़ जाता है. इस के लिए हर संभव प्रयास किए गए कि उस के शरीर की ताकत बढ़े ताकि उस का शरीर कम से कम तापमान सह सके. उस की स्पीड भी अच्छी होनी चाहिए थी.

‘‘कई दफा पहाड़ों पर बहुत तेजी से बढ़ना पड़ता है. जातेजाते औक्सीजन खत्म होने लगती है. ऊपर औक्सीजन नहीं मिल पाती, इसलिए तेजी से आगे बढ़ना जरूरी हो जाता है. शरीर को फ्लैक्सिबिलिटी की ट्रेनिंग भी दी गई ताकि वह पहाड़ों पर पतली जगह से भी बच कर निकल सके. ऐनर्जी के लिए प्रोटीन और विटामिन सप्लिमैंट्स दिए गए.’’

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